सिख्नी की चुत - पार्ट - 2
07-02-2020, 01:08 AM,
#1
सिख्नी की चुत - पार्ट - 2
अस्सलाम वालेकुम दोस्तो मे अस्लम खान कहानी का अगला पार्ट लेके अया हू। तो चालिये कहानी शुरु कर्ते है।<br/><br/>कमलदीप ऑफिस मे अपने काम मव बिज़ी थी के अचानक उसे एक अवाज सुनाई दी, 'हाय कमल" कमल ने जब देखा तो सामने से गगनजीत आ रही थी।<br/>"ओह हाय गगन"कमलदीप ने खुश होते हुए कहा और दोनो गले मिली। "केसी है तू" गगन ने कमल से पूछा। "अरे मव तो ठीक हू लेकिन तू बात तू केसी है, 2दिन से जॉब पर भी नही आयी" कमलदीप गगन को बोली। "मे ठीक हू यार बस थोडी सी तबियत बिगड़ गयी, इस्लिये काम पर नही आ पई" गगन बोली।<br/>"तू तो काफी बिज़ी लग रही है मुझे, मेरि हैल्प की जरूरत है" गगन ने कमल को पूछा। "हा यार जब से आयी हू तब से भंडार पड़ा है फाइल्स का, इन्हे अलग अलग sections मे लगवा दे मेरे साथ" कमलदीप गगन को बोली। "अरे अभी लो, 2मिंट मे करवा देती हू" गगन कमल की मदद करने लगी।<br/>"थैंक्स यार कुछतो टेंशन कम हुई" कमल गगन को मदद करते देख बोली।<br/>"और बता रुम केसा है तेरा सेटिंग करवा ली सारी जो जरूरी थी" गगन कमल को बोली।<br/>"अरे रुम का मत पूछ यार, कल मेरि चाबी खो गयी कही तो ताला तोड़ना पड़ा, अज नया ताला लग्गा के आ रही हू " कमल बोली।<br/>"ओह ताला केसे तोडा फिर तूने" गगन कमल की देख बोली। "मेने कहा तोडा, वो तो भला हो अब्दुल मियां का जिन्होने उसे तोड दिया वर्ना मे सारी रात बाहर ही रह जाती" कमल बोली।<br/>"अरे मे तो भूल गयी थी, केसे है अब्दुल मियां" गगन बोली। "बिल्कुल ठीक है, एक दम अच्छे से, कल तेरे बारे मे भी पूछ रहे थे के आयी क्यो नही कयी दिन से" कमल गगन को देख बोली। "तो तुने कया बताया फिर " गगन ने पूछा। "मेने कया बताना था मेने बोल दिया के वो तो ओफिस भी आयी दो दिन से यहा कया आयेगी" कमल बोली।<br/>"मे बिमार थी ना यार फिर केसे आती, और क्या बोले अब्दुल मियां" गगन ने पूछा।<br/>"और,,,, हा एक मजे की बात बताऊ जब ताला तोडने के बाद हम दोनो चाय पी रहे थे ना मेरे कमरे मे अब्दुल ने वो तलवार देखी और बोला के मेने आज तक किसी लड्की या औरत के पास इसे नही देखा है" कमल बोली। "फिर तू बोल देती ना के हम सिख्निया है ओर सिख्निया शेरनीयां होती है" गगन ने कमल को देख कर बोला। "अरे हा मेने भी ऐसा हो बोला था तो अब्दुल मियां बोले के हम भी शेर है ब्स हमरे मुल्को मे एक ही चीज की कमी है, मेने बोल वो कया तो बोला वहा शेरनीयां नही है" कमल ने गगन को बोला ओर दोनो हंस पड़ी। "तो अब इसमे हमारा कया कसूर जब व्हा शेरनीया नही है तो " गगन हस्ते हुये कह रही। "वही तो मुझे भी बहुत हंसी आयी उसके सामने जब उस्ने एसा बोला" कमल बोली।<br/>"वेसे एक बात बोलू यार ये मुस्लिमस होते वाक़ई शेर है" गगन हंसी को रोकते हुए बोली। "वो केसे भला" कमल ने पूछा। "अरे कल की ही बात है जब मे दवाई लेके आ रही थी तो रास्ते मे कुछ लोग एक लद्के को मार रहे थे के तभी वहा एक और लड़का और उसने वहा सबको मार्ना शुरु कर दिया, सबको भगा दिया यार अकेले ने" गगन कमल को देखते हुए बोली। "और तुझे केसे पाता चला के वो मुस्लिम ही था" कमल ने गगन को सवाल किया।<br/>"वो लद्का जिसे उस्ने बचाया वो उसे जहीर बुला रहा था इस से मुझे पाता चला, और अब तू खुद ही देख ना अब्दुल मियां को भी, क्या जिस्म है यार उनका, एक दम गठीला और मस्लर और वो भी 40की उमर मे जब लोग बूढे होने लग जाते है" गगन बोले जा रही थी। "हा यार जिस्म तो अब्दुं मियां का वाक़ई लाजवाब है, बॉडी बिल्डर लगते है" कमल ने भी गगन की हा मे हा बुलाई। "एक बात बोलू अगर मेरि और अब्दुल मियां की उमर मैच होती ना तो मे उनसे शादी कर लेती" गगन बोली। "कया" कमल थोडा हैरां होते हुए बोली। "और नही तो कया, कित्ना मस्त जिस्म है, सोच 40की उमर मे एसा है तो 20-25की उमर मे केसे रहे होगे, हॉट, " गगन बोले जा रही थी,<br/>"तेरे तो बगल वाले कमरे मे रह्ते है, तू तो रोज देखती है अब्दुल मियां" कभी तुमे एसा कुछ नही लगा।<br/>"यार तू पागल है बिल्कुल उमर तो देख उनकी, 40के है वो, और हम दोंनो मे 23की और तू तो 21की ही है" कमलदीप गगन को देख बोली।<br/>"अरे तो क्या हुआ यार उमर का ही फर्क है, वेसे अब तो उन्होमे तुमे बोल भी दिया, शायद तुम नही समझ पाई" गगन कमल को बोली। "कया बोल दिया " कमल बोली। "यही के उन्के य्हा शेरनीयो की कमी है, " गगन कमल को देख बोली "तो तू बनजा ना उस अहर की शेरनी"। "यार तू पागल है बिल्कुल" कमल गगन को देख्ते हुये बोली "कुछ तो सोच तू हम सिख्निया है और वो मुस्लिम और तू है के"। "मे कया, सही ही तो बोल रही हूं, अब्दुल मिया भी तो तुझे चह्ते है" गगन ने कमल को कहा।<br/>"तुझे केसे पता" कमल गगन को देख्ते हुए बोली।<br/>"दिखायी पड़ता है यार वर्ना क़्यो वो रोज रोज तेरे से इत्नी बाते करे तू खुद ही सोच, " गगन बोली।<br/>"तो उसमे कया है मे भी रुम मे वहा अकेली रह्ती हू और वो भी तो टाईम पास के लिये बाते कर लेते है, इसमे एसी तो कोई बात नहीं लगती मुझे के अब्दुल मियां मुझे गलत नज़रो से देख्ते हो" कमल बोली।<br/>"अच्छा मतलब तू ये नही मानती के अब्दुल मिया तुमे चाह्ते है या प्यार करते है" गगन बोली।<br/>"नही मुझे नही लगता" कमल ने साफ जवाब दिया।<br/>"ओके तो अब जब तू उनसे बात करेगी ना तो उनकी नज़रो को देख्ना कहा कहा घूमतीहै अगर वो यहा आकर रुकी तो समझ लेना के वो तुमसे कया चह्ते है" गगन कमल के मुम्मो पर हाथ लगते हुये बोली।<br/>"ठीक है अगर एसा नही हुआ तो तू बहुत पिटेगी मुझसे" कमल ने गगन को बोला। "हा बिल्कुल "गगन ने पूरे विश्वास से कहा। दोनो अप्ने काम मे लग गयी।<br/>शाम को जब कमल ऑफिस से घर आयी तो अब्दुल दरवाजे के बाहर कुर्सी पर बेठा चाय पी रहा था।<br/>"कया हुआ कमल्दीप चेहरा क़्यो लटका है तेरा" अब्दुल ने कमल को आते देख पूछा। "कुछ नही अब्दुल मियां, आज ऑफिस मे काम ही इतना था के थक गयी हू" कमल ने अब्दुल को बोला ओर ताला खोलने लगी।<br/>"कडक सी चाय बना के दूं" अब्दुल बोला। "अरे नही नही अब्दुल मियां मे बना लेती हू" कमल बोली।<br/>"नही केसे बई, थकी हुई हो, तुम आराम करो मे 2मिंट मे चाय ले के आता हूँ" अब्दुल बोल। इस से पहले के कमल कुछ बोलती अब्दुल चाय बनाने अन्दर चला गया। कमल ने दरवाज खोला और अन्दर आ कर अपना परस टेबल पर रख मुंह हाथ धोने चली गयी। जब तक कमल फ्रेश होकर आयी अब्दुल चाय लेके उसके कमरे मे आ चुका था, "ये लो कमल गर्मा गर्म चाय बिल्कुल तुम्हारी तरह" अब्दुल कमल को चाय पकड़ाते हुये बोला। कमल ने मुस्कुरा कर चाय का कप ले लिया और दोनो बेठ कर पिने लगे। कमल को अब भी गगन की बात याद आ रही थी "अग्र बाते बाते करते वक़्त उनकी नज़र य्हा रुकी तो समझ लेना के वो तुमसे कया चह्ते है" कमल आंख बचा कर अब्दुल को देख रही थी। उसने देखा के अब्दुल की नज़र उसके छोटे छोटे मुम्मो पर गडी थी। कमल को भी अब लग्ने लगा जेसे अब्दुल उसे प्यार करता हो या पाना चह्ता हो। कमल ने चाय पीके कप टेबल पर रखा और खडी होकर मिरर की तरफ चली गयी। "कमल आज खाना मत बनाना तुम" अब्दुल बोला। "क्यो अब्दुल मियां " कमल बोली।<br/>"अरे आज ईद है तो हम साथ मे खायेगे " अब्दुल बोला। कमल ने अब्दुल को देखा तो वो उसे देख मुस्कुर रहा था, "ठीक है अब्दुल मियां" कमल बोली।<br/>"ये हुई ना बात" अब्दुल बोला और चला गया।<br/>अब्दुल के जाते ही कमल ने कमरे का दरवाजा बंद किया और मिरर के पास आ गयी। वह खुद को देख रही थी। गगन की बातो वह गरम हो गयी थी। "आखिर अब्दुल मिया देख कया रहे थे" कमल मन मे सोच रही थी, कमल ने मिरर के साम्ने आपनी कुर्ती और ब्रा उतारि तो उसे मिर्रर मे अपने चोते छोटे32 के गोरे मुम्मे दिखायी दे रहे थे। कमल उन्हे छूने लगी, "उउफ्फ्फ कया कर रही हू मे" कमल के दिल बातो का तूफान चल र्हा था। वह मिरर के सम्ने खडी अपने मुम्मो को हाथ मे लिये सहला रही। कमल केसे जेसे अपने मुम्मो को श्लती तो उसे गगन की बाते याद आ जाती और उसे लग्ता जेसे अब्दुल उसके पीछे ही खडा हो। कित्ना ही टाईम कमल एसे ही खडी रही, लेकिन फिर अचानक से उसने कपडे पहने और ऑफिस का बचा काम निपटाने मे लग गयी।
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