Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
05-14-2019, 11:28 AM,
#13
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ
यार बना प्रीतम - भाग (1)

प्रीतम से परिचय

प्रीतम से मेरा परिचय पहली बार तब हुआ जब मैं शहर में कॉलेज में पढ'ने के लिए आया. हॉस्टिल में जगह ना होने से मैं एक घर ढूँढ रहा था. तब मैं सोलह वर्ष का किशोर था और फर्स्ट एअर में गया था. शहर में कोई भी पहचान का नहीं था, इस'लिए एक होटेल में रुका था.

रोज शाम को कॉलेज ख़तम होते ही मैं घर ढूँढ'ने निकलता. मेरी इच्च्छा शहर के किसी अच्छे भाग में घर लेने की थी. मुझे यह आभास हो गया था कि इस'के लिए काफ़ी किराया देना पडेग और किराया बाँट'ने के लिए किसी साथी की ज़रूरत पडेगी. इसी खोज में था कि कौन मेरे साथ घर शेयर कर'के रहेगा.

एक दिन एक मित्र ने मेरी मुलाकात प्रीतम से करा दी. देखते ही मुझे वह भा गया. वा फाइनल एअर में था; उम्र में मुझसे पाँच छह वर्ष बड़ा होगा. उसका शरीर बड़ा गठा हुआ और सजीला था. हल्की मून्छे थी और नज़र बड़ी पैनी थी. रंग गेहुआ था और चेहरे पर जवानी का एक जोश था. ना जा'ने क्यों उस'के उस मस्ता'ने मर्दा'ने रूप को देख'कर मेरे मन में एक अजीब सी टीस उठ'ने लगी.

मुझे अपनी ओर घूरते देख वह मुस्कराया. उस'ने मुझे बताया कि वह भी एक घर ढूँढ रहा है क्योंकि हॉस्टिल से ऊब गया है. उस'की नज़र मुझे बड़े इंटरेस्ट से देख रही थी. उस'की पैनी नज़र और उसका पुष्ट शरीर देख कर मुझे भी एक अजीब सी मीठी सुर'सरी होने लगी थी.

हम ने तय कर लिया कि साथ साथ रहेंगे और आज से ही साथ साथ घर ढूंढ़ेंगे. शाम को उस'ने मुझे हॉस्टिल के अप'ने कमरे पर आने को कहा. वहाँ से दोनों एक साथ घर ढूँढ'ने जाएँगे ऐसा हमारा विचार था. सारा दिन मैं उस'के विचार में खोया रहा. सच तो यह है कि आज कल मेरी जवानी पूरे जोश में थी और मेरा लंड इस बुरी तरह से खड़ा होता था की रोज रात और दोपहर में भी कॉलेज के बाथ रूम में जा'कर दो तीन बार हस्तमैथुन किए बिना मन नहीं मान'ता था. लड़कियाँ या औरतें मुझे अच्छी तो लग'ती थी पर आज कल गठे हुए शरीर के चिक'ने जवान मर्द भी मुझे आकर्षित कर'ने लगे थे. और यह आकर्षण बहुत तीव्र था. ख़ास कर तब से जब से मैने गे सेक्स की कुच्छ सचित्र किताबें देख ली थी. सच तो यह है कि मुझे अहसास होने लगा था कि मैं बाइसेक्सुअल हूँ.

पिच्छाले साल भर से मूठ मारते हुए मैं अक्सर यही कल'पना कर'ता था कि कोई जवान मेरी गान्ड मार रहा है या मैं किसी का लंड चूस रहा हूँ. या फिर मा की उम्र की किसी अधेड भरे पूरे बदन की महिला की गान्ड मार रहा हूँ. मुझे अब ऐसा लग'ने लगा था कि औरत हो या मर्द, जो भी हो पर जल्दी किसी के साथ मेरी कामलीला शुरू हो. मुझे यहाँ नये शहर में संभोग के लिए कोई नारी मिलना तो मुश्किल लग रहा था, मेरे जैसे शर्मीले लड़'के के लिए तो यह करीब करीब असंभव था. इस'लिए आज प्रीतम को देख'कर मैं काफ़ी बेचैन था. अगर हम साथ रहे तो यह गठीला नौजवान मेरे करीब होगा, ज़रूर कुच्छ चक्कर चल जाएगा, इस'की मुझे पूरी आशा थी! पर मुझे यह पक्का पता नहीं था कि वह मेरे बारे में क्या सोच'ता है. खुद पहल कर'ने का साहस मुझ'में नहीं था.

उस शाम इतनी बारिश हुई कि मैं बिलकुल भीग गया. मैं जब प्रीतम के कमरे में पहुँचा तो सिर्फ़ जांघिया और बनियान पह'ने हुए वह कमरे में रब्बर की हवाई चप्पल पहन'कर घूम रहा था. मुझे देख उस'के चेहरे पर एक खुशी की लहर दौड़ गयी. मुझे कमरे में लेते हुए बोला

आ गया सुकुमार, मुझे लगा था कि बारिश है तो तू शायद नहीं आएगा. इसीलिए मैं तैयार भी नहीं हुआ. तू बैठ, मैं कपड़े पहन'ता हूँ और फिर चलते हैं. मेरे भीगे कपड़े देख कर वह बोला.

यार, तू सब कपड़े उतार के मुझे दे दे, यह तौलिया लपेट कर बैठ जा, तब तक मैं प्रेस से ये सूखा देता हूँ. नहीं तो सर्दी लग जाएगी तुझे, वैसे भी तू नाज़ुक तबीयत का लग रहा है. मैने सब कपड़े उतारे और तौलिया लपेट'कर कुर्सी में बैठ गया. मेरे कपड़े उतार'ने पर मुझे देख कर वह मज़ाक में बोला.

सुकुमार, तू तो बड़ा चिकना निकला यार, लड़कियों के कपड़े पहन ले और बॉल बढ़ा ले तो एक खूबसूरत लड़'की लगेगा. वह प्रेस ऑन कर'के कपड़े सूखा'ने लगा और मुझसे बातें कर'ने लगा. बार बार उस'की नज़र मेरे अधनन्गे जिस्म पर से घूम रही थी. मैं भी तक लगा कर उस'के कसे हुए शरीर को देख रहा था. मन में एक अजीब आकर्षण का भाव था. हम दोनों में ज़मीन आसमान का अंतर था और लग'ता है कि यही अंतर ह'में एक दूसरे की ओर आकर्षित कर रहा था.

मेरे छरहरे चीक'ने गोरे दुबले पतले पचपन किलो और साढ़े पाँच फुट के शरीर के मुकाबले में उसका गठा हुआ पुष्ट शरीर करीब पचहत्तर किलो वजन का होगा. मुझसे वह करीब चार पाँच इंच ऊँचा भी था. भरी हुई पुष्ट छा'ती का आकार और चूचुकों का उभार बनियान में से दिख रहा था. छा'ती मेरी ही तरह एकदम चिकनी थी, कोई बाल नहीं थे.

मैं सोच'ने लगा कि आख़िर क्यों उस'के चूचुक इत'ने उभरे हुए दिख रहे हैं. फिर मुझे ध्यान आया कि औरतों की तरह ही कयी मर्दों के भी चूचुक उत्तेजित होने पर खड़े हो जाते हैं. मैने समझ लिया कि शायद मुझे देख'कर उसका यह हाल हुआ हो. मेरा भी हाल बुरा था और मेरा लंड उस'के अर्धनग्न शरीर को पास से देख'कर खड़ा होना शुरू हो गया था.

मेरा ध्यान अब उस'की मासल जांघों और बड़े बड़े चूतदों पर गया. उसका जांघिया इतना फिट बैठ था की चूतदों के बीच की लाइन सॉफ दिख रही थी. जब भी वह घूम'ता तो मेरी नज़र उस'के जांघीए में छुपे हुए लंड पर पड़'ती. कपडे के नीचे से सिकुडे और शायद आधे खड़े आकार में ही उसका उभार इतना बड़ा था की जब मैने यह अंदाज़ा लगाना शुरू लिया कि खड होकर यह कैसा दिखेगा तो मैं और उत्तेजित हो उठा.

मेरी नज़र बार बार उस'की चप्पलो पर भी जा रही थी. मेरा शुरू से ही चप्पालों की ओर बहुत आकर्षण रहा है. ख़ास कर'के रब्बर की हवाई चप्पलें मुझे दीवाना कर देती हैं. मेरे पास भी मेरी पुरानी चप्पलो के छह जोड़े हैं. उन्हें हमेशा धो कर सॉफ रख'ता हूँ क्योंकि रोज के हस्तमैथुन में चप्पलो का मेरे लिए बड महत्व है. मूठ मारते समय मैं पहले उनसे खेल'ता हूँ, चूम'ता हूँ, चाट'ता हूँ और फिर मुँह में लेकर चबाते हुए झड जाता हूँ. यही कल'पना कर'ता हूँ कि वो चप्पलें किसी मतवाली नारी या जवान मर्द की हैं. कभी यह कल'पना कर'ता हूँ कि कोई जवान मुझे रेप कर रहा है और मुझे चीख'ने से रोक'ने के लिए मेरे मुँह में अपनी चप्पल ठूंस दी है.

प्रीतम की सफेद रब्बर की चप्पलें भी एकदम सॉफ सुथरी और धुली हुई थी. पहन पहन कर घिस कर बिलकुल मुलायम और चिकनी हो गयी थी. जब प्रीतम चल'ता तो वे चप्पलें सपाक सपाक की आवाज़ कर'के उस'के पैरों से टकरातीं. उन्हें देख'कर मेरा लंड और खड हो गया. मैं सोच'ने लगा कि काश ये खूबसूरत चप्पलें मुझे मिल जाएँ!

अब तक कपड़े सूख गये थे और प्रीतम ने मुझे पहन'ने के लिए वे वापस दिए. मुझे उस'ने आप'ने शरीर और चप्पालों की ओर घूरते देख लिया था पर कुच्छ बोला नहीं, सिर्फ़ मुस्करा दिया. मैं कुर्सी पर से उठ'ने को घबरा रहा था कि उसे तौलिया में से मेरा तन कर खड लंड ना दिख जाए. उस'ने शायद मेरी शरम भाँप ली क्योंकि वह खुद भी मूड कर मेरी ओर पीठ कर'के खड हो गया और कपड़े पहन'ने लगा.

हम लोग बाहर निकले. अब हम ऐसे गप्पें मार रहे थे जैसे पूरा'ने दोस्त हों. उस'ने बताया कि पिछले हफ्ते उस'ने एक घर देखा था जो उसे बहुत पसंद आया था पर एक आदमी के लिए बड़ा था. वह मुझे फिर वहीं ले गया. फ्लैट बड़ा अच्च्छा था. एक बेड रूम, बड बैठ'ने का कमरा, एक किचन और बड़ा बाथ रूम. घर में सब कुच्छ था, फर्नीचर, बर्तन, गैस, ह'में सिर्फ़ अप'ने कपड़े लेकर आने की ज़रूरत थी. किराया कुच्छ ज़्यादा था पर प्रीतम ने मेरी पीठ पर प्यार से एक चपत मार कर कहा कि घर मैं पसंद कर लूँ, फिर ज़्यादा हिस्सा वह दे देगा. कल से ही आने का पक्का कर के हम चल पड़े.

हम दोनों खुश थे. मुझे लग'ता है कि हम दोनों को अब तक मन में यह मालूम हो गया था कि एक साथ रह'ने पर कल से हम एक दूसरे के साथ क्या क्या करेंगे. प्रीतम मेरा हाथ पकड़'कर बोला.

चल यार एक पिक्चर देखते हैं. मैने हामी भर दी क्योंकि प्रीतम से अलग होने का मेरा मन नहीं हो रहा था. प्रीतम ने पिक्चर ऐसी चुनी कि जब हम अंदर जा'कर बैठे तो सिनेमा हॉल एकदम खाली था. मैने जब उससे कहा कि पिक्चर बेकार होगी तो वह हंस'ने लगा.

बड़ा भोला है तू यार, यहाँ कौन पिक्चर देख'ने आया है? ज़रा तेरे साथ अकेले में बैठ'ने को तो मिलेगा. उस'की आवाज़ में छुपी शैतानी और मादक'ता से मेरा दिल धडक'ने लगा और मैं बड़ी बेसब्री से अंधेरा होने का इंतजार कर'ने लगा.

पिक्चर शुरू हुई और सारी बत्तियाँ बुझा दी गयीं. हम दोनों पीछे ड्रेस सर्कल में बैठे थे. दूर दूर तक और कोई नहीं था, कोने में एक दो प्रेमी युगल अलग बैठे थे. सिर्फ़ हमीं दोनों लड़'के थे. मेरे मन में ख्याल आया कि असल में उन युगलों में और हम'में कोई फरक नहीं है. हम भी शायद वही करेंगे जो वे कर'ने आए हैं. मेरा तो बहुत मूड था पर अभी भी मैं पहल कर'ने में डर रहा था. मैने आख़िर यह प्रीतम पर छोड दिया और देख'ने लगा कि उस'के मन में क्या है. मेरा अंदाज़ा सही निकला. अंधेरा होते ही प्रीतम ने बड़े प्रेम से अपना एक हाथ उठ'कर मेरे कंधों पर बड़े याराना अंदाज में रख दिया. फुसफुसा कर हल्की आवाज़ में मेरे कान में वह बोला.

यार सुकुमार, कुच्छ भी कह, तू बड़ा चिकना छ्हॉकरा है दोस्त, बहुत कम लड़कियाँ भी इतनी प्यारी होती हैं. मैने भी अपना हाथ धीरे से उस'की जाँघ पर रखते हुए कहा.

यार प्रीतम, तू भी तो बड मस्त तगड़ा और मजबूत जवान है. लड़कियाँ तो तुझ पर खूब मर'ती होंगीं? उसका हाथ अब नीचे खिसक'कर मेरे चेहरे को सहला रहा था. मेरे कान और गाल को बड़े प्यार से अपनी उंगलियों से धीरे धीरे गुदगुदी कर'ता हुआ वह अपना सिर बिलकुल मेरे सिर के पास ला कर बोला

मुझे फराक नहीं पड़ता, वैसे भी छ्हॉकरियों में मेरी ज़्यादा दिलचस्पी नहीं है. मुझे तो बस तेरे जैसा एकाध चिकना दोस्त मिल जाए तो मुझे और कुच्छ नहीं चाहिए. और उस'ने झुक कर बड़े प्यार से मेरा गाल चूम लिया.

मुझे बहुत अच्च्छा लगा, बिलकुल ऐसे जैसे किसी लड़'की को लग'ता होगा अगर उसका प्रेमी उसे छूता होगा. मेरा लंड अब तक पूरी तरह खड़ा हो चुका था. मैने अपना हाथ अब साहस कर'के बढ़ाया और उस'की पैंट पर रख दिया. हाथ में मानो एक बड तंबू आ गया. ऐसा लग'ता था कि पैंट के अंदर उसका लंड नहीं, कोई बड़ा मूसल हो. उस'के आकार से ही मैं चकरा गया. इतना बड़ा लंड! अब तक हम दोनों के सब्र का बाँध टूट चुका था. प्रीतम ने अपना हाथ मेरी छा'ती पर रखा और मेरे चूचुक शर्त के उपर से ही दबाते हुए मुझे बोला.चल बहुत नाटक हो गया, अब ना तड़पा यार, एक चुम्मा दे जल्दी से. मैने अपना मुँह आगे कर दिया और प्रीतम ने अपना दूसरा हाथ मेरे गले में डाल कर मुझे पास खींच'कर अप'ने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए. हमारा यह पहला चुंबन बड़ा मादक था. उस'के होंठ थोड़े खुरदरे थे और उस'की छोटी मूँछहों से मेरे ऊपरी होंठ पर बड़ी प्यारी गुदगुदी हो रही थी. उस'की जीभ हल्के हल्के मेरे होंठ चाट रही थी. उस'के मुँह से हल्की हल्की आफ्टर शेव की खुशबू आ रही थी. मेरा मन हो रहा था कि उस'के मुँह में जीभ डाल दूँ या उस'की जीभ चूस लूँ, किसी भी तरह उस'के मुखरस का स्वाद लूँ, पर अब भी थोड़ा शरमा रहा था.

हम एक दूसरे को बेतहाशा चूमते हुए अप'ने अप'ने हाथों से एक दूसरे के लंड टटोल रहे थे. हमारी चूमा चॅटी अब ह'में इतनी उत्तेजित कर उठी थी कि मुझे लगा कि वहीं उसका लंड चूस लूँ. पर जब हमारे आस पास अचानक होती हलचल से ये समा टूट तो हम'ने चुंबन तोड़ कर इधर उधर देखा. पता चला कि काफ़ी दर्शक हॉल में आना शुरू हो गये थे. वे सब हमारे आस पास बैठ'ने लगे थे. धीरे धीरे काफ़ी भीड़ हो गयी. ह'में मजबूरन अपना प्रेमालाप बंद करना पड़ा. अप'ने उछलते लंड पर मैने किसी तरह काबू किया. प्रीतम भी खिसक'कर बैठ गया और वासना थोड़ी दब'ने पर बोला.

चल यार, चलते हैं, यहाँ बैठ'कर अब कोई फ़ायदा नहीं. साली भीड़ ने आ'कर अपनी 'के एल डी' कर डी मैने पूचछा कि 'के एल डी' का मतलब क्या है तो हंस कर बोला.

यार, इसका मतलब है - खड़े लंड पर धोखा. हम बाहर निकल आए. एक दूसरे की ओर देख'कर प्यार से हँसे और हाथ में हाथ लिए चल'ने लगे. प्रीतम ने कहा

अच्च्छा हुआ यार, असल में ह'में अपना पहला रोमास आराम से अप'ने घर में मज़े ले लेकर करना चाहिए, ऐसा च्छूप कर जल्दी में नहीं. चल, कल रात को मज़ा करेंगे. मैने चलते चलते धीरे से पूचछा

प्रीतम, मेरे राजा, यार तेरा लंड लग'ता है बहुत बड़ा है, कितना लंबा है? वह हंस'ने लगा.

क्रमशः................
Reply


Messages In This Thread
RE: Adult Kahani समलिंगी कहानियाँ - by sexstories - 05-14-2019, 11:28 AM

Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Thriller Sex Kahani - मोड़... जिंदगी के sexstories 21 2,053 9 hours ago
Last Post: sexstories
  Incest Sex kahani - Masoom Larki sexstories 12 996 10 hours ago
Last Post: sexstories
Wink Antarvasnasex Ek Aam si Larki sexstories 29 831 10 hours ago
Last Post: sexstories
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,742,976 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 574,987 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,337,248 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 1,020,631 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,795,014 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,198,607 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 3,154,896 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 1 Guest(s)