RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
चावला को नहीं मालूम था कि उसकी बीवी उस रात फार्म पर जाने वाली थी इसलिए वह जूही चावला के साथ तफरीह के लिए वहां आया हो सकता था। उन दोनों में कोई तकरार छिड़ी हो सकती थी जिसका अंजाम चावला के कत्ल तक पहुंचा हो सकता था। लेकिन अभी तो इसी बात का कोई सबूत सामने नहीं आया था कि चावला के जूही चावला के साथ कोई ऐसे वैसे, तफरीह मार्का, ताल्लुकात थे। घूम फिरकर बात फिर कमला पर ही पहुंच जाती थी और मैं बौखलाने लगता था। पैसे का लालच कहीं इस बार मेरी दुक्की तो नहीं पिटवाने वाला था। तभी एक पुलिसिये ने टैरेस पर कदम रखा। "आपको साहब बुला रहे हैं ।" - वह बोला। मैं उसके साथ फिर इमारत में दाखिल हुआ। कमला ड्राइंगरूम में अकेली बैठी थी लेकिन पुलिसिये ने मुझे वहां न रुकने दिया। वह मुझे सीधा स्टडी में ले गया जहां दरवाजे के पास एक कुर्सी पर यादव बैठा था। "बैठो।" - वह बगल में पड़ी एक अन्य कुर्सी की ओर इशारा करता हुआ बोला । बैठने से पहले मैंने मेज की दिशा में निगाह उठाई।
गनीमत थी कि किसी ने लाश को चादर से ढक दिया हुआ था।
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"अब बोलो, क्या हुआ था ?" - यादव बोला - "कैसे पहुंच गए तुम यहां ? मिसेज चावला से कैसे वास्ता हुआ था ? शुरू से शुरू करो।"
"आज फोन किया था मुझे मिसेज चावला ने ।" - मैं बोला - "उसे मेरी व्यावसायिक सेवाओं की जरूरत थी।"
"क्या कराना चाहती थी वह तुमसे ?" । “यही बताने के लिए उसने मेरे साथ यहां की आठ बजे की अपोइंटमेंट फिक्स की थी।"
"कुछ हिंट तो दिया होगा उसने काम का ?" –
"हां, इतना हिंट दिया था कि काम का ताल्लुक उसकी शादीशुदा जिन्दगी से था।"
फिर ?"
"फिर क्या निर्धारित समय पर मैं यहां पहुंचा तो यहां कुछ और ही गुल खिला हुआ था ।"
“मिसेज चावला से कहां मुलाकात हुई तुम्हारी ?"
"बाहर ।"
"वो पहले से यहां थी ?"
"हां, लेकिन अभी पहुंची ही थी । सच पूछो तो हम दोनों आगे पीछे ही यहां तक पहुंचे थे। वह कार को पार्क करके उसमें से बाहर कदम रख रही थी कि मेरी कार फार्म में दाखिल हुई थी।"
"तुमने उसकी कार को फार्म में दाखिल होते हुए देखा था ?"
"नहीं ।"
"बाहर सड़क पर अपनी कार के आगे-आगे देखा हो ?"
फिर तुम कैसे कह सकते हो कि वह तुम्हारे आगे-आगे वहां पहुंची थी ?"
"क्योंकि मैंने उसे अपनी कार से बाहर निकलते देखा था।"
"शायद वो अपने पति का काम तमाम करके यहां से कूच कर जाने के लिये कार में दाखिल हो रही हो और तुम्हारी कार को आता पाकर बाहर निकलने लगी हो ?"
मैं खामोश रहा । मैंने तनिक बेचैनी से पहलू बदला।
"सिर्फ उसके कार के करीब पाये जाने से" - यादव के स्वर में जिद का पुट था - "यह कैसे साबित होता है कि वह तभी वहां पहुंची थी ? तुमने सच ही उसे कार में दाखिल होते नहीं, कार से निकलते देखा था तो भी वह कैसे साबित होता है कि वह कार तक उसका दूसरा फेरा नहीं था, यानी कि वह पहले ही इमारत के भीतर नहीं हो आई हुई थी ?"
मुझे जवाब न सूझा ।
"खैर, छोड़ो । बहरहाल तुम यहां पहुंचे । तुमने मिसेज चावला को अपनी कार से निकलते देखा, तुमने करीब लाकर अपनी कार खड़ी की और फिर मिसेज चावला से मुखातिब हुए । ठीक ?"
"ठीक ।"
उस वक्त मूड कैसा था मिसेज चावला का ? क्या वह घबराई, बौखलाई हुई थी, आन्दोलित थी, किसी बात से त्रस्त
लग रही थी, किसी इमोशनल स्ट्रेन में थी ?"
"ऐसी कोई बात नहीं थी। मुझे तो वह बिल्कुल ठीक-ठाक और स्वाभाविक मूड में लगी थी।"
"फिर ?"
"फिर मैंने उसे अपना परिचय दिया । एकाध और औपचारिक बात की और फिर हम इमारत तक पहुंचने वाली
सीढ़ियों की तरफ बढ़ गये । इमारत में रोशनी थी जो कि मिसेज चावला को हैरानी की बात लगी थी। हम इमारत में दाखिल हुए थे। हम यहां, स्टडी में पहुंचे थे तो यहां अमर चावला की लाश पड़ी थी ।
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