RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
"किसे ?"
"अपने वहां के प्रतिनिधि को । आठ बजे के आसपास ही मेरी कॉल लगी थी और मैंने उससे बात की थी।"
"आपने कॉल बुक कराई थी । सीधा डायल नहीं किया था बम्बई का नम्बर ?"
"नहीं किया था। यहां के किसी फोन में एस टी डी की सुविधा नहीं है। मिस्टर राज, टेलीफोन कम्पनी के रिकार्ड से यह जाना जा सकता है मेरे बम्बई प्रतिनिधि के बयान से यह साबित हो सकता है कि मेरा कत्ल से कोई वास्ता नहीं
,,, "ऊपर से आप चौकीदार को समझा सकते हैं कि पूछने पर वह यह कहे कि आठ बजे उसने आपको यहां बैठे देखा
था।"
"यह भी हकीकत है । मुझे अब याद आया है कि आठ बजे मैंने उससे क्लेरिसिज से खाना मंगवाया था।"
"इतनी अहम बात आपको अब याद आई है ?"
"हां ।"
"मैं चौकीदार को बुलाकर इस बात की तसदीक कर सकता हूं?"
"जो चौकीदार फाटक पर बैठा है, वह वो चौकीदार नहीं है । रात वाला चौकीदार शाम के छ: बजे आता है।"
"और शाम होने में अभी बहुत वक्त है । तब तक आप उसे जो चाहे सिखा-पढ़ा लेंगे, आखिर वह आपका मुलाजिम है।
उसने आहत भाव से मेरी तरफ देखा। "एनी वे" - मैं उठ खड़ा हुआ - "जानकर खुशी हुई कि आप अपने दोस्त के कत्ल के लिए जिम्मेदार नहीं । इस केस में दरअसल मर्डर सस्पैक्ट्स की कोई कमी नहीं है। अच्छा है कि उनमें से एक तो कम हुआ ।” उसने उठकर मुझसे हाथ मिलाया। "मैं कभी फिर हाजिर होऊं तो आपको कोई असुविधा तो नहीं होगी ?"
"नो । नैवर । ड्रॉप इन ऐनी टाइम ।"
"बैंक्यू ।"
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ठीक पांच बजे मैं नारायण विहार में जूही चावला के बंगले में था । उसके मां-बाप जरूर अंतर्यामी थे जो उन्होंने
अपनी बेटी का नाम फूल के नाम पर रखा था। वह वाकई फूल जैसी ही सुन्दर, कोमल और नाजुक थी । उम्र में वह बाइस-तेईस साल से ज्यादा हरगिज नहीं थी। कद उसका खूब लम्बा-ऊंचा था और उसकी चाल-ढाल से अन्धा भी पहचान सकता था कि वह तजुर्बेकार फैशन मॉडल थी । वह चलती थी तो उसकी केवल टांगें हरकत में आती थीं। उसके जिस्म का ऊपर का भाग एकदम स्थिर रहता था और ठोढ़ी हवा में तनी रहती थी । उसका रंग गोरा था और नयन-नक्श बहुत साफ-सुथरे थे । उस वक्त वह चूड़ीदार पाजामा और कुर्ता पहने थी जो कि उसके कमसिन जिस्म पर गजब ढा रहा था। अलबत्ता सूरत से वह परेशानहाल लग रही थी। मेरी तो उस पर एक निगाह पड़ते ही लार टपकने लगी थी।
मालूम हुआ कि वइ वहां अकेली रहती थी। उसने मुझे एक छोटे से लेकिन खूबसूरत ड्राइंगरूम में बिठाया । वहां की हर चीज मॉडल थी और किसी फैशन मॉडल के ही व्यक्तित्व के अनुरूप थी। एक पूरी दीवार पर उसका 6x8 फुट का निहायत जानदार ब्लोअप लगा हुआ था। "वक्त के बहुत पाबन्द हैं आप शर्मा साहब !" - वह बोली ।
“ऐसी कोई बीमारी मुझे नहीं है" - मैं बोला - "यहां मैं पूरे पांच बजे पहुंचा हूं यह महज इत्तफाक है।"
"कुछ पियेंगे आप ?"
"कुछ नहीं पियूँगा । कोई खास चीज पिलाएं तो मना भी नहीं करूंगा।"
,,, "खास चीज, जैसे ड्रिक ?"
"आप शौक रखती हैं ?"
"शौक नहीं रखती लेकिन ड्रिक रखती हूं । चावला साहब को शौक था उनके लिए..."
वह खामोश हो गई। उसने असहाय भाव से कन्धे झटकाए और एक बड़ी सर्द आह भरी।
"अभी मैं ड्रिंक का खाहिशमन्द नहीं" - मैं जल्दी से बोला, अकेले पीने का क्या फायदा था ? मैं तो दरअसल शराब में घोलकर शबाब पीने की फिराक में था - "आप तकल्लुफ न करें । मैं जरूरत महसूस करूगा तो कह दूंगा।"
"श्योर ?"
"श्योर।"
"ओके दैन ।”
"चावला साहब आपसे मुहब्बत करते थे ?"
"हां ।"
"आप भी उनसे ?"
"हां । बहुत ।”
"बहुत खुशकिस्मत थे चावला साहब जो उन्हें आप जैसी स्वर्ग की अप्सरा की मुहब्बत हासिल थी।"
"मैं एक मामूली लड़की हूं। यह उनकी मेहरबानी थी कि मैं उन्हें पसन्द थी।"
"आप दोनों में उम्र के लिहाज से कुछ ज्यादा ही फर्क नहीं था ?"
"सच्ची मुहब्बत ऐसा कोई फर्क नहीं मानती । यह दिल का सौदा है जो दिल से होता है।"
"आपको तो फिल्म अभिनेत्री होना चाहिये था।"
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