RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
तभी थामस ने वहां कदम रखा।
मैंने थोड़ा-सा पहलू बदला ताकि उसके साहब को कवर किये हुये मेरे हाथ में थमी रिवॉल्वर की झलक उसे मिल
जाती और बोला - "खबरदार।"
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वह दरवाजे के पास ही थमककर खड़ा हो गया।
"दरवाजे से परे हटो और चौधरी के पास जाकर खड़े होवो ।"
उसने आदेश का पालन किया।
"चौधरी के हाथ-पांव बांधो ।"
"रस्सी !" - थामस बोला - "रस्सी कहां है?"
"पर्दे की डोरियां निकालो।"
उसने वैसा ही किया। मेरे आदेश पर थामस ने चौधरी के और एलैग्जैण्डर ने थामस के हाथ-पांव बांधे।
उस काम से निपटकर एलैग्जैण्डर ने उठकर सीधा होने का उपक्रम किया तो मैंने रिवॉल्वर को नाल की तरफ से । पकड़कर उसकी मूठ का एक भीषण प्रहार उसकी कनपटी पर किया । वह निशब्द थामस के पहलू में ढेर हो गया। तुरन्त उसकी चेतना लुप्त हो गयी। उसके दिये दस-दस के नोट मैंने उसके मुंह में ठूस दिये। फिर मैंने सावधानी से कमरे के बाहर कदम रखा। वहां मुझे कोई शख्स दिखाई न दिया । पिछवाड़े से ही मैं कोठी से बाहर निकला और उसका घेरा पार कर सामने पहुंचा। सामने कम्पाउन्ड में दो कारें खड़ी थीं। एक इम्पाला कार के करीब एक वर्दीधारी शोफर खड़ा था । जरूर वह कार एलैग्जैण्डर की थी। मैं उसकी तरफ बढ़ा। मैं उसके काफी करीब पहुंच गया तो उसे मेरे उधड़े हुए चेहरे और खून से रंगे कपड़ों की झलक मिली। उसका हाथ फौरन वर्दी के भीतर की तरफ लपका।
लेकिन तब तक मैं उसके सिर पर पहुंच चुका था । रिवॉल्वर वाला हाथ मैं अपने से आगे फैलाए हुए था। रिवॉल्वर पर निगाह पड़ते ही उसके कस-बल निकल गए।
मैं उसके समीप जाकर ठिठका। "जेब में रिवॉल्वर है ?" - मैंने पूछा।
,,, उसने सहमति में सिर हिलाया। "उसके दस्ते को दो उंगलियों से थामकर रिवॉल्वर बाहर निकाल ।”
उसने ऐसा ही किया ।
मैंने उसकी रिवॉल्वर की गोलियां निकालकर कम्पाउन्ड से बाहर उछाल दीं और रिवॉल्वर को झाड़ियों में फेंक दिया। "कार की चाबियां कहां हैं ?" - मैंने पूछा।
"इग्नीशन में ।" - उत्तर मिला।
"जमीन पर औंधे मुंह लेट ।"
अपनी शानदार वर्दी के साथ कम्पाउंड की धूल में वह औंधा लेट गया।
मैं कार में सवार हुआ। चाबियां इग्नीशन में मौजूद थीं। मैंने कार स्टार्ट की और निर्विघ्न कोठी से बाहर पहुंच गया। एक निगाह मैंने अपने पीछे डाली। पीछे कोई नहीं था। मैंने पूरी रफ्तार से कार वहां से भगा दी। पहले मेरा ख्याल एलैग्जैण्डर की कार राजेन्द्र प्लेस छोड़कर वहां से अपनी कार उठाने का था लेकिन राजेन्द्र प्लेस पहुंचते-पहुंचते मैंने वह ख्याल त्याग दिया । राजेन्द्र प्लेस एलैग्जैण्डर का अड्डा था। मेरे वहां पहुंचने से पहले वह इसीलिए अपने दादाओं को वहां फोन कर चुका हो सकता था कि मैं वहां अपनी कार लेने के लिए आ सकता था। फिलहाल दोबारा फौरन किसी झमेले में फंसने का मेरा कोई इरादा नहीं था। मैं कार को पूरी रफ्तार से राजेन्द्र प्लेस के आगे से दौड़ा ले गया। मैंने अपने घर का रुख किया। वहां पुलिस मेरा इन्तजार कर रही थी।
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बेगुनाह चॅप्टर 3
मेरे फ्लैट वाली इमारत के सामने पुलिस की एक जीप खड़ी थी जिसमें दो पुलसिये सवार थे। उन्होंने मुझ जीप के पीछे कार पार्क करते देखा । मैं कार में से उतरकर उसे ताला-वाला लगाकर इमारत के फाटक पर पहुंचा । फाटक खोलकर मैं भीतर दाखिल होने ही वाला था कि मेरे कानों में एक आदेश पड़ा - "ठहरो !" मैं ठिठका, घूमा । मैंने देखा, वे दोनों पुलसिये जीप में से उतर आये थे ओर मेरी तरफ बढ़ रहे थे। उनमें से एक ए एस आई था और
दूसरा हवलदार । "राज !" - ए एस आई बोला- "तुम्हारा नाम राज है?"
"है।" - मैं बोला - "फिर ?"
"तुम्हें हमारे साथ चलना है।"
"कहां ?"
"नारायणा ।"
"वहां क्या है ?"
"वहां एक आदमी पुलिस की हिरासत में है जो कहता है कि वो तुम्हारा आदमी है।"
"मेरा आदमी ?"
"हां । तुम प्राइवेट डिटेक्टिव हो ?"
"हां।"
"वो कहता है, वो तुम्हारे लिए काम कर रहा था।"
"क्या काम कर रहा था ?"
"बॉडीगार्ड का काम कर रहा था वो।"
"कर रहा था ? अब नहीं कर रहा है ?"
"नहीं, अब नहीं कर रहा ।"
"क्यों ?"
"एक तो इसलिए क्योंकि वो पुलिस की हिरासत में है और दूसरे इसलिए कि अब उस काम की जरूरत नहीं रही ।"
"जरूरत नहीं रही !" - चिन्तित तो मैं पहले ही हो उठा था, अब तो मेरा कण्ठ सूखने लगा - "क्यों जरूरत नहीं रही
"क्योंकि जिस लड़की का वो बॉडीगार्ड बना हुआ था वो मर चुकी है।"
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