Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
03-24-2020, 09:13 AM,
#82
RE: Adult Stories बेगुनाह ( एक थ्रिलर उपन्यास )
"शायद तुम्हारी यह मुराद पूरी न हो।"
"लेकिन मिसेज चावला का हाथ तो मैं अभी देखेगा ।"
"बहुत बड़ी गलती करोगे । अगर हत्यारी वह न हुई लेकिन हत्यारे से उसका गंठजोड़ हुआ तो वह हत्यारे को चेतावनी नहीं दे देगी कि तुम किस फिराक में हो !"
“हत्यारा क्या करेगा ? वह अपना हाथ काटकर फेंक देगा या उसे किसी स्वस्थ हाथ से बदल लेगा ?"
"वह गायब हो जाएगा और तब प्रकट होगा जब उसका हाथ एकदम ठीक हो चुका होगा ।
" वह बात यादव को जंची ।
"ठीक है ।" - वह निर्णयात्मक स्वर में बोला - "आज शाम आठ बजे में केस से संबन्धित सारे लोगों को मिसेज चावला की कोठी पर जमा करूगा । तुम भी आना ।"
"मैं जरूर आऊंगा ।
और तुम बंबई पुलिस से संपर्क जरूर करना ।"
"करूगा ।
कल मुझे लेजर बुक मिल जाये ।"
"जरूर मिल जाएगी ।"
"न मिली तो तुम्हारी खैर नहीं ।"
"न का कोई मतलब ही नहीं ।”
"फूटो ।”
"यानि कि मैं आजाद हूं?"
"अब क्या लिखकर देना होगा ?"
"नहीं । ऐसे ही चलेगा।" मैं वहां से विदा हो गया। मैं ग्रेटर कैलाश पहुंचा। वहां अपने फ्लैट के आगे मुझे एलैग्जैण्डर की इम्पाला खड़ी न दिखाई दी। यानी कि एलेग्जैण्डर या उसके चमचे का एक फेरा और वहां लग चुका था।
अपने फ्लैट में मुझे वो अव्यवस्था न दिखाई दी जो कि पुलिस और एलैग्जैण्डर के आदमियों के वहां आगमन के बाद अपेक्षित थी । मैं यह तक अंदाजा न लगा सका कि चौधरी की लाश मेरे बैडरूम में पाई गई थी या ड्राइंगरूम में ।।
अच्छी और संतोषजनक खबर यह थी कि लैजर बुक टॉयलेट में अपनी जगह मौजूद थी। मैंने ऑफिस में फोन किया। "दिस इज यूअर एम्प्लायर स्पीकिंग।" - डॉली लाइन पर आई तो मैं बोला।
"नहीं हो सकता।" –
मेरी मेहरबान सैक्रेट्री बोली - "मेरा एम्प्लायर तो जेल में है।"
अरे, मैं ही बोल रहा हूं।" मैं झल्लाया - "राज ।"
“कमाल है ! यानी कि अब जेल की कोठरियों में भी टेलीफोन लग गए हैं !"

"मैं अपने फ्लैट से बोल रहा हूं।"
"अछ। ! बड़ी जल्दी छूट गए आप !"
"अफसोस हो रहा होगा तुम्हें इस बात का !"
"नहीं, मैं तो आपके लिए बहुत फिक्रमंद थी ।"
"फिक्रमंद भी तो कुछ किया नहीं ?"
"वया वरती ?"
"किसी वकील के पास जाती । मुझे जमानत पर छुड़ाने की कोशिश करती ।"
"सॉरी । भूल गयी । अगली बार ऐसा ही करूगी ।" ।
"यानि कि तुम्हें भूल-सुधार का मौका देने के लिए मुझे फिर गिरफ्तार होना पड़ेगा ?"
"कितने समझदार हैं आप !"
"और कितनी कमबख्त हो तुम !"
वह हंसी।
"हंस रही हो ? यानी कि बेवकूफ भी हो ? यह भी नहीं जानती हो कि कब हंसना होता है, कब रोना होता है ?"
"जानती हूं । हंस रही हूं लेकिन फूट-फूटकर । चाहें तो आकर देख लीजिये।"
"मेरा कोई फोन आया था ?"
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