Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
05-19-2019, 01:47 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
अनुम अपने रूम में लेटी हुई थी उसे नींद नहीं आ रही थी वो उठकर जीशान के रूम में चली जाती है ये देखने कि वो सोया है या नहीं ? मगर जीशान को रूम में ना पाकर वो परेशान से हो जाती है, और रज़िया के रूम के पास आते ही उसके पैर वहीं दरवाजा के बाहर रुक जाते हैं। अंदर से वही सिसकियों की आवाज़ें आ रही थीं, जो कभी उसके मुँह से निकला करती थीं, जब अमन उसे बुरी तरह नीचे कुचलता हुआ चोदता था। अपने दिल की धड़कनों को संभालती हुई वो बिना कुछ बोले फिर से अपने रूम में आकर सोने की कोशिश करने लगती है। मगर उसकी हर कोशिश नाकाम रहती है। 

रात के तकरीबन 3:00 बजे जब रज़िया की चूत में एक बार और गाण्ड में एक बार पानी निकालने के बाद जीशान अपने रूम में सोने के लिए जाता है तो उसे अनुम के रूम की लाइट ओन दिखाई देती है। उसे हैरानी होते है और वो उसके रूम में चला जाता है। 

अनुम खिड़की से बाहर देख रही थी। 


जीशान-अम्मी। 

अनुम कुछ नहीं कहती ना अपनी नजरें जीशान की नजरों से मिलाती है। 

जीशान रूम के अंदर चला जाता है, और पीछे से अनुम के कंधे पर अपना हाथ रखने लगता है। अनुम उसका हाथ झटक देती है और थोड़ा आगे बढ़ जाती है। वो अब भी खामोश थी। 

जीशान-एक बार मेरी बात तो सुन लो। 

अनुम-मेरे रूम से बाहर निकल जाओ अभी के अभी। 

जीशान अनुम का हाथ पकड़कर उसे बेड पर बैठा देता है और खुद उसके कदमों में नीचे बैठ जाता है-“मेरी बात सुनो पहले एक बार, उसके बाद मैं कभी भी आपसे बात नहीं करूँगा और ना v आपको परेशान करूँगा…” 

अनुम अपनी आँखें बंद कर लेती है। जीशान अनुम का हाथ अपने हाथ में लेने लगता है। 

मगर अनुम उसे भी झटक देती है-“जो बोलना है बोलो और दफा हो जाओ यहाँ से कमीने इंसान…” 

जीशान-“ठीक है। हाँ हाँ मैं कमीना हूँ । बदजात भी कह सकती हो आप मुझे। मगर आप जानती हो मैं ऐसा क्यों हूँ ? आपकी वजह से। जी हाँ आपकी वजह से। देखो मुझे, क्या मैं अब्बू की तरह नहीं दिखता? क्या मेरा जिस्म भी अब्बू की तरह नहीं है? मेरा भी वही खून है जो अब्बू का था। अगर आप अब्बू से शादी नहीं करते, अगर आप उनसे मोहब्बत नहीं करते, अगर आप वो सब नहीं करते अब्बू के साथ जो एक बहन को अपने भाई के साथ नहीं करना चाहिए तो क्या मैं वजूद में आता? अगर मैं दुनियाँ में हूँ तो आप दोनों की वजह से। मैं आपको गुनहगार नहीं कह रहा अम्मी। बल्की मैं आपकी और अब्बू की मोहब्बत की बहुत इज़्ज़त करता हूँ । आपने अब्बू से मोहब्बत की, उनसे शादी भी की, अपने रिश्ते को एक नाम दिया, अपनी मोहब्बत को अंजाम तक पहुँचाया आपने। वही मोहब्बत मुझे भी आपसे है, उसी जज़्बे के साथ। ये सिर्फ़ जिस्म की मोहब्बत नहीं , रूह की है। अम्मी मैं आपसे दिल की गहराईयों से मोहब्बत करता हूँ । अब्बू जब तक आपकी जिंदगी में थे, मुझे सकून था कि आप खुश हैं। अब्बू आपको वो सब दे रहे थे जिसकी आपको ज़रूरत है। आप उनके साथ बहुत खुश थी। तब तक मैंने अपनी मोहब्बत अपने जज़्बात को आपके सामने जाहिर नहीं किया। मगर अब आप खुश नहीं है, अम्मी आपको तवज्जो की ज़रूरत है। आप वो शख्सियत हैं जिसे दिन रात भी मैं देखता रहूं तो मेरे देखने के चाह पूरी ना हो। आप खुश कितनी अच्छी लगती हो। आप मुश्कुराती हो तो मुझे ये दुनियाँ हसीन लगती है, और जब आप नाराज रहती हो तो यही दुनियाँ मुझे जहन्नुम सी लगती है। मैं आपसे कुछ नहीं चाहता। मैं ये भी नहीं कहता आपसे कि जितनी मोहब्बत मैं आपसे करता हूँ , आप भी मुझसे करो। बस मैं ये चाहता हूँ कि अपने दिल के किसी कोने में मुझे भी जगह दे दो…” 

अनुम-“बोल दिया जो बोलना था अब मेरी सुन। मैं खुश हूँ , बहुत खुश हूँ समझा? और एक बात और सुन ले। अपनी हवस को अपनी हमददी का नाम मत दे। तुझे अम्मी के साथ जो करना है वो कर, मगर तूने नग़मा और लुबना की तरफ अपनी गंदी नजर डालने की कोशिश भी किया ना तो मैं तुझे संभलने का मौका तक नहीं दूँगी जीशान ख़ान…” 

जीशान हँस देता है-“नग़मा और लुबना आह्ह्ह… अब मैं आपको क्या बताऊँ वो दोनों कब से बेताब हैं मुझे अपने ऊपर सुलाने के लिये…” 

अनुम तमाचा जड़ देती है। 

जीशान-“शुक्रिया। चलिए इसी बहाने आपने मुझे छुआ तो सही …” कहकर वो खड़ा हो जाता है-“आपने मेरे सिर पर हाथ रख कर कुछ देर पहले एक कसम खाई थी कि आप मुझसे बात नहीं करेंगी, वो कसम भी मैंने तुड़वा दिया। मगर मैं एक कसम खाता हूँ कि मैं आपको मजबूर भी नहीं करूँगा, आपके साथ जबरदस्ती भी नहीं करूँगा, और एक दिन आपको हमेशा-हमेशा के लिए अपनी दुल्हन बना लूँगा अम्मी जान…” और वो अनुम की आँखों में अपनी छाप छोड़कर अपने रूम में चला जाता है। 
और अनुम उसे जाता देखती रह जाती है। 

रात भर दोनों को नींद नहीं आती जहाँ अनुम जीशान की बातें सोच-सोचकर परेशान हुई जा रही थी और अपनी बेटी और नग़मा को जीशान से दूर रखने की कोशिश सोच रही थी। वहीं जीशान लुबना और नग़मा को अपने करीब करने के बारे में प्लान बना रहा था। वो जानता था कि अनुम को हाँसिल करना है तो लुबना और नग़मा को अपना बनाना ही पड़ेगा। 

सुबह नाश्ते की टेबल पर सभी नाश्ता कर रहे थे। फ़िज़ा और कामरान सुबह ही अपने घर चले गये थे। कामरान के अब्बू घर आ चुके थे इसलिए। लुबना और जीशान हँसते हुये बातें कर रहे थे। 

वहीं सोफिया अनुम से नजरें चुराकर नाश्ता कर रही थी, मगर उसका पूरा ध्यान जीशान पर ही था। 

रज़िया नग़मा के पास बैठी चुपचाप खा रही थी। लुबना की आदत थी कि वो किसी के मुँह का पानी तक नहीं पीती थी। जबकि घर में सभी कभी ना कभी एक प्लेट में खाना खा लिया करते थे। मगर लुबना कभी दूसरे के साथ एक प्लेट में खाना भी नहीं खाया करती थी, और ये बात घर में सभी को मालूम थी। 

जीशान के सामने पानी का जग रखा हुआ था। लुबना के गिलाष में का पानी जो कुछ देर पहले नग़मा ने पी थी, फेंक के खाली ग्लास जीशान को देती है। 

लुबना-“जरा पानी दे दो ना जी…” लुबना तो बचपन से जीशान को अपना सब कुछ मान चुकी थी। मगर ये बात अभी तक किसी ने नोटिस नहीं किया था कि लुबना जीशान को नाम से या भैया नहीं बुलाती थी। 

जीशान ग्लास में पानी डालता है और अनुम की तरफ देखते हुये थोड़ा पानी पी लेता है, और बाकी का बचा हुआ पानी लुबना की तरफ बढ़ा देता है-“लो लुबना, थोड़ा पानी बचा है इसमें मेरे मुँह का पी लो…” 

लुबना जीशान की आँखों में देखती हुई बिना कुछ बोले वो बचा हुआ पानी पी लेती है। जीशान एक बार फिर से अनुम की तरफ देखता है, ये बताने के लिए कौन किसका क्या है? 

अनुम खड़ी हो जाती है-“लुब तुम फॅक्टरी चलो…” वो जीशान की तरफ देखते हुये कहती है। 

जीशान-“मैं दोपहर में आऊूँगा। पता नहीं रात में नींद नहीं हुई, थोड़ा सो जाता हूँ सिर भी बहुत दर्द कर रहा है…” 

रज़िया-“चलो जीशान , मैं सहला देती हूँ सिर तुम्हारा, रिलेक्स हो जाओगे तुम…” 

जीशान मुस्कुराता हुआ रज़िया की तरफ देखता है-“दादी सोफिया आपी बहुत अच्छे से करती हैं। चलो ना आपी…” 

सोफिया चौंकती हुई पहले जीशान को और फिर अनुम को देखने लगती है। अनुम की आँखों की तपिश वो सह नहीं पाती और अपनी पलकें नीचे झुका लेती है। 

लुबना-“ठीक है। आप सो जाओ दोपहर में लंच के बाद आ जाना। चलिए अम्मी हम चलते हैं…” और अनुम लुबना के साथ कार में बैठकर फॅक्टरी चली जाती है। 

जीशान सोफिया की तरफ देखता है। सोफिया अब थोड़ा रिलेक्स महसूस कर रही थी। नग़मा भी अपना नाश्ता ख़तम करके अपने रूम में चली जाती है। 

तभी जीशान खड़ा होता है और सोफिया को अपने गोद में उठा लेता है। 

सोफिया-“ओह्ह… क्या करते हो? नग़मा आ जाएगी…” 

जीशान उसकी माँ को-“तुम्हें क्या डर पड़ा है? किसका शौहर हूँ मैं तुम्हारा। चलो मेरा बहुत दिल कर रहा है तुम्हें दिन की रोशनी में चोदने का। 

जीशान रज़िया की तरफ देखते हुये सोफिया को अपने रूम में ले जाता है। रात की अधूरी चुदाई तो सोफिया को कल रात से परेशान कर रही थी, वो भी बेचैन थी जीशान के जुल्म सहने को। जीशान जैसे ही सोफिया को बेड पर लिटाता है। सोफिया उसे दरवाजा लाक करने के लिए कहती है। मगर जीशान उसकी बात अनसुना करके अपनी पैंट नीचे उतार देता है, और सोफिया की गर्दन पकड़कर उसे अपने लण्ड की तरफ झुकाता है। 

सोफिया अपने नाजुक हाथों में जीशान के लण्ड को पकड़ लेती है और उसे चूसने लगती है। जीशान अपनी टीशर्ट भी निकाल देता है। उसकी नजरें दरवाजे की तरफ थीं। वो जानता था कि नग़मा कभी भी अंदर आ सकती है। 

जीशान के लण्ड को खड़ा करने के बाद सोफिया जल्दी से अपने कपड़े उतार देती है और दोनों टाँगे खोलकर जीशान के सामने लेट जाती है-“आह्ह… जेशु जल्दी से पहले एक बार अंदर डाल दो… नहीं रहा जा रहा मुझसे प्लीज़्ज़…” 

जीशान मुश्कुरा देता है और अपने अंगूठे से सोफिया की चूत के दाने को सहलाने लगता है। 

सोफिया-“उन्ह… क्या करते हो जी? अंदर तक डालो ना उन्ह…” 

जीशान-पहले मुझसे एक वादा करो। 

सोफिया-कैसा वादा? 

जीशान-“वादा ये कि जब मैं कहूँ , जहाँ मैं कहूँ , वहाँ तुम्हें अपने कपड़े उतारकर इसी तरह अपने पैर खोलकर मुझसे चुदवाना होगा…” 

सोफिया-“नहीं ऐसे कैसे? मैं नहीं करती उन्ह…” 

जीशान-“तो ठीक है। अपनी शादी तक अपनी चूत को सहलाती रह। फिर उसके बाद भी यहाँ आओगी तो सब मिले गा मगर ये नहीं …” 

सोफिया झट से जीशान के लण्ड को हाथ में पकड़कर अपनी चूत के मुँह पर लगा देती है-“आह्ह… मैं वादा करती हूँ जहाँ तुम कहोगे वहाँ चुदवाउन्गी। अब तो डाल दो जान मेरी उन्ह…” 

और चिकनी चूत को छेदता हुआ जीशान का लण्ड सोफिया की चूत में चला जाता है। 

सोफिया-“आह्ह… एक महिना है आपके पास, अपनी बीवी को प्रेगनेंट कर दो। मुझे आपसे और कुछ नहीं चाहिए उन्ह…” 

जीशान-“इसके लिए तुझे हर वक्त मेरे लौड़े के नीचे होना होगा सोफी…” 

सोफिया-“आह्ह… रहूंगी , मुझे किसी का डर नहीं , अब जब आप मेरे साथ हो आह्ह… जोर-जोर से करो ना मुझे अंदर लेना अच्छा लगता है आह्ह… हाँ ऐसे ही आह्ह…” 

नग़मा अपने मुँह पर हाथ रखे दरवाजे में खड़ी थी। जब दोनों उसकी तरफ देखते हैं तो वो अपने रूम में भाग जाती है। 
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