Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
05-19-2019, 01:46 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
जीशान अपने पैंट की जिप लगाता हुआ बाथरूम से बाहर निकलता है तो सकपका जाता है, क्योंकी सामने नग़मा खड़ी थी। नग़मा ने शायद सब बातें सुन ली थी। उसकी लाल चमकती हुई आँखें साफ बता रही थी कि वो क्या सोचकर यहाँ खड़ी है? 

जीशान-अरे नग़मा तुम यहाँ? 

नग़मा-“वही तो मैं भी सोच रही हूँ भैया कि आप यहाँ? और हैरत की बात है कि आपी भी अंदर है…” 

जीशान-वो मैं… नग़मा मैं तो शावर का वाल्व ठीक करने अंदर गया था। 

नग़मा आगे बढ़ती है और जीशान के गाल पे उंगली लगाकर वो चिपचिपा वीर्य उंगली पर लेकर जीशान को दिखाती है-“ये क्या है भाई जान?” 

जीशान अपने गाल को साफ करता हुआ आगे बढ़ने लगता है-“मुझे नहीं पता, मुझे बहुत काम है…” 

नग़मा-मैं अम्मी से पूछने जा रह हूँ । 

जीशान के पैर थम जाते हैं, साँसें उखड़ने लगती हैं। वो पीछे पलटकर देखता है और नग़मा के होंठों पर कातिलाना हँसी देखकर उसे भी समझते हुये देर नहीं लगते कि नग़मा क्या चाहती है? 

नग़मा-क्यों क्या हुआ जाओ ना? आपको तो बहुत काम है ना? 

जीशान दरवाजा बंद कर देता है और नग़मा के पास आकर खड़ा हो जाता है। दोनों एक दूसरे की आँखों में देखने लगते हैं। 

जीशान-तुम अम्मी के पास नहीं जाउन्गी नग़मा। 

नग़मा-जाउन्गी, ज़रूर जाओगी । 

जीशान नग़मा का हाथ पकड़कर उसे दीवार से लगा देता है और अपने होंठों को उसके गाल पे लगाकर धीरे से उसके कान में कहता है-“जो आपी को मिला है तुझे भी मिल सकता है अगर तू अपना मुँह बंद रखेगी…” 

नग़मा-“उन्ह… छोड़ो मुझे। मुझे कुछ नहीं चाहिए आपसे, छोड़ो मेरा हाथ…” 

जीशान अपने हाथ में नग़मा की चुची पकड़ लेता है-“अगर नहीं चाहिए तो ये इतने मोटी -मोटी कैसे हो गई हैं?” कहकर वो निप्पल को मरोड़ने लगता है। 

नग़मा तो पहले से ह गरम थी, ऊपर से जीशान के पत्थर से हाथों की पकड़ से वो मोम की तरह पिघलने लगती है-“आप बड़े खराब हो भाई… आपने अम्मी के साथ भी ऐसा ही किया था…” 

जीशान जोर से नग़मा की चुची मरोड़ने लगता है-“तुझे कैसे पता? हाँ, बोल तुझे कैसे पता?” 

नग़मा-“उन्ह… मैं देखी थी आपको और अम्मी को रूम में बिना कपड़ों के वो गंदा काम करते हुये…” 

जीशान इस बात से अंजान था कि नग़मा ने उसे और शीबा को चुदाई करते हुये देख चुकी थी और यही वजह थी की उसका नज़रिया जीशान के लिए बदल चुका था। जबसे उसने जीशान के मोटे मूसल जैसे लण्ड को अपने अम्मी शीबा की चूत में घुसते हुये देखी थी, तबसे उसकी चूत भी खुद पर सितम ढाने के लिए तैयार बैठी हुई थी। मगर हालत ऐसे नहीं थे कि नग़मा कुछ कह पाती। 

शीबा की मौत के बाद से जीशान भी उससे दूर -दूर रहने लगा था। मगर जब आज उसने जीशान और सोफिया को फिर से वही गंदा काम करते हुये देखा तो, उसके चूत में चिंगारी फिर से जल उठी थी। 

जीशान धीरे से अपने हाथ का पंजा नग़मा की शलवार पर रख देता है। उसकी उंगलियाँ ठीक नग़मा की चूत के क्लोटॉरिस के ऊपर थीं, और वो हल्के-हल्के उसे सहला रहा था। 

नग़मा-भाई क्या करते हो, मत करो ना? 

जीशान-तुझे भी करना है ना मेरे साथ वो सब जो अम्मी करती थी? 

नग़मा-“उन्ह… नहीं करना आह्ह…” 

जीशान-“ये गीली क्यों हो गई है? नग़मा हाँ बोल?” 

नग़मा-“आह्ह… वो तो हमेशा ह गीली रहती है आह्ह… भाई…” 

जीशान-कैसे मेरी बहन? 

नग़मा-“उन्ह… आपका सोच-सोचकर भाई आह्ह… अम्मी जीई…” 

ये सुनकर जीशान अपनी बहन नग़मा को अपने तरफ घुमा लेता है और अपने रसीले होंठों में उसके नाजुक होंठों को पकड़ लेता है। नग़मा अपने आँखें बंद कर लेती है। क्लोटॉरिस की घिसाई से वो अपने होश-ओ-हवास में नहीं थी। उसका जिस्म थरथर काँप रहा था। वो मुँह वोले बसूजी शान के आगे खड़ी थी। जो कर रहा था जीशान कर रहा था। 

जीशान को महसूस हो रहा था जैसे वो शीबा के होंठों को चूम रहा हो, उसे बहुत खुशी थी कि घर की लड़कियाँ उसके दीवानी हैं, मगर वो जिसका दीवाना है वो अब तक उसके इश्क़ से बेमहसूस है। बाहर से किसी के कदमों की आवाज़ सुनाई देती है और जीशान नग़मा को छोड़ देता है। 

नग़मा अपने मुँह पर दुपट्टा रख कर वहाँ से निकल जाती है। 

नग़मा के जाने के बाद वहाँ फ़िज़ा आती है-“अरे जीशान , तुम यहाँ हो। क्या बात है भाई, अपनी आंटी से मिलने की फुरसत भी नहीं है तुम्हें?” 

जीशान-नहीं आंटी , ऐसे बात नहीं है। मैं आपकी ही तरफ आ रहा था। 

फ़िज़ा नीचे से ऊपर तक जीशान को देखती है-“बहुत कम मर्द देखे हैं मैंने तुम्हारी तरह जीशान …” 

जीशान-क्या मतलब आंटी ? 

फ़िज़ा अपना एक हाथ जीशान की छाती पर रख कर धीरे से कहती है-“मर्द तो कई हैं दुनियाँ में, मगर जो इस निगाह को भा जाए वो तुम हो…” 

जीशान आँखें फाड़े फ़िज़ा को देखता रह जाता है। 

तभी अनुम-“अरे फ़िज़ा, चलो अम्मी तुम्हें बुला रही हैं। और जीशान तुम यहाँ क्या कर रहे हो?” 

उन दोनों के बीच की बात अधूरी रह जाते है अनुम के वहाँ आने से। और दोनों एक दूसरे को आँखों-आँखों में कुछ कहते हुये हाल में चले जाते हैं। 

रज़िया हाल में हीबैठे हुई थी-“फ़िज़ा तुम और कामरान सोफिया के रूम में सो जाओ, और सोफिया मेरे साथ सो जाएगी…” 

कामरान अपनी अम्मी फ़िज़ा की तरफ देखकर मुश्कुरा देता है, जैसे कह रहा हो चल मेरी जान तेरी चूत कुटाई का वक्त हो गया है। 

फ़िज़ा भी सभी को शब्बा खैर कहकर सोफिया के रूम में चली जाती है। 

तब तक सोफिया भी फ्रेश होकर हाल में आ चुकी थी। 

रज़िया-सोफिया तुम मेरे साथ रूम में सो जाओ। 

सोफिया-ठीक है दादी । 

जीशान रज़िया की तरफ ह देख रहा था, और रज़िया बड़े दिलकश अंदाज में जीशान की तरफ देखकर मुश्कुरा रही थी। वो एक तरह से जीशान को चिढ़ा रही थी। 

धीरे-धीरे सभी अपने-अपने रूम में चले जाते हैं, और जीशान हाल में बैठा टीवी देखता रहता है। तकरीबन एक घंटे बाद जीशान उठकर अपनी दादी के रूम में चला जाता है। जब वो रूम में दाखिल होता है तो सामने दोनों खूबसूरत औरतों को देखकर मचल जाता है। सोफिया बेड के एक कॉर्नर में गहरी नींद में सो चुकी थी और रज़िया कोइ किताब पढ़ रही थी, जीशान को अपने रूम में देखकर वो इशारे से यहाँ आने की वजह पूछती है। 

जीशान दरवाजा बंद कर देता है और नाइटी लाइट ओन करके रज़िया की आँखों में आँखें डालकर पहले अपनी शर्ट उसके बाद अपनी पैंट उतार देता है। रज़िया का दिल जोर से धड़कने लगता है। वो शायद नहीं चाहती थी कि अपने बेटी सोफिया के सामने अपने पोते जीशान के साथ चुदाई करे। 

मगर जीशान अमन ख़ान की औलाद था। डर उसे किसी चीज का नहीं था और बेशर्म वो अपने बाप से भी ज्यादा था। जीशान आगे बढ़ता है और रज़िया की बगल में आकर लेट जाता है। 

रज़िया धीमी आवाज़ में उससे कहती है-“ये क्या कर रहे हो? पैंट तो पहन लो, सोफिया उठ जाएगी…” 

जीशान रज़िया की गर्दन में हाथ डालकर उसके गाल को चूम लेता है और अपने होंठों को रज़िया के कान में लगाकर धीरे से कहता है-“मैं हूँ अमन विला का एकलौता मालिक मैं तुम सब औरतों का एकलौता मर्द 
मैं, जहाँ चाहूं वहाँ जा सकता हूँ । तुम ना सिर्फ़ मेरी दादी हो बल्की बहुत जल्दी मेरी शरीक -ए-हयात भी बनोगी दादी …” 


रज़िया फटी-फटी आँखों से जीशान की तरफ देखने लगती है। जीशान ने खुले आम आज रज़िया से शादी की बात कहकर उसे चौंका दिया था। 

जीशान रज़िया के होंठों को चूम लेता है-“हाँ दादी , मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ , तुम्हें अपनी पहली बीवी बनाना चाहता हूँ । तुम्हारे दिल-ओ-दिमाग़ से अमन ख़ान का नाम-ओ-निशान मिटा देना चाहता हूँ । इस जिस्म पर आज के बाद सिर्फ़ एक इंसान का कब्जा होगा, मेरा। मैं आज के बाद आपको अपनी दादी की तरह नहीं बल्की अपनी बीवी की तरह देखना चाहता हूँ , अपनी बीवी की तरह चोदना चाहता हूँ । जिस चूत से मेरे अब्बू निकले थे, आज के बाद उस चूत में मेरा, यानी तुम्हारे शौहर जीशान ख़ान का लण्ड रहेगा। तुम रात में अकेले नहीं सोओगी। आज के बाद तुम्हारी ये चूत तरसेगी नहीं । इसका मालिक मैं बनना चाहता हूँ हमेशा-हमेशा के लिए । बोलो दादी करोगी मुझसे शादी ?” 

रज़िया की आँखें गीली हो जाती हैं वो अपने हाथ में की किताब फेंक देती है और दोनों हाथों से जीशान के चेहरे को पकड़कर बेसाखता जीशान के होंठों को चूमने लगती है। 
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05-19-2019, 01:46 PM,
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रज़िया-“हाँ हाँ मेरे सरताज, मैं करूँगी आपसे शादी । मैं कहलाना चाहती हूँ आज से जीशान ख़ान की बीवी। बना लो मुझे अपना शरीक-ए-हयात, और मेरे जिस्म को हमेशा-हमेशा के लिये अपना बना लो। जीशान गुलामी करूँगी मैं आज से आप जैसा कहोगे वैसा करूँगी। मेरा जवान पोता आज मेरा शौहर हुआ। आज से रज़िया ख़ानम आपकी बीवी हुई। 

जीशान-“रज़िया मेरे जान…” कहकर वो अपनी दादी के होंठों को चूमता चला जाता है। 

और ये सुनकर पास में लेटी हुई सोफिया के जिस्म में सरसराहट सी पैदा हो जाती है। 

जीशान-“रज़िया मैं आज तुम्हें दिल-ओ-जान से प्यार करना चाहता हूँ , हर उस जगह से अमन ख़ान का नाम मिटा देना चाहता हूँ । बस आज से इस जिस्म पर एक नाम होगा मेरा…” 

रज़िया-“कर लो जो करना है, शौहर बीवी से इजाजत नहीं लेता जान … बस करता है उन्हें जो करना होता है…” 

रज़िया की आँखों में आज वही चमक थी जो कभी अमन के साथ रहने पर दिखाई देती थी। अपने हुश्न से रज़िया ने अपने 20 साल के जवान पोते को अपनी तरफ इस तरह आकर्षित कर लिया था कि जीशान को रज़िया के हुश्न के सिवा कोई और हसीन चीज उस वक्त नजर नहीं आ रही थी। 

जीशान रज़िया को लेटा देता है और उसके ऊपर लेट जाता है-“मैं भारी तो नहीं हूँ ना दादी ?” 

रज़िया-“बिल्कुल नहीं और खबरदार जो आज के बाद अकेले में मुझे दादी कहकर बुलाए तो? वो औरत ही नहीं जो अपने शौहर को अपने ऊपर लेने से थक जाए। मैं रात भर तुम्हें अपने ऊपर रखना चाहती हूँ , ऐसे ही बिल्कुल अपने सीने से चिपकाए…” 

जीशान-ऐसे ही ? 

रज़िया-हाँ ऐसे ही । 

जीशान-ऐसे नहीं रजो। 

रज़िया-तो फिर कैसे जीशान ? 

जीशान-“बिल्कुल नंगी करके मैं तुम्हारे ऊपर सोना चाहता हूँ , अपने लौड़े को तुम्हारी चूत के अंदर तक रख कर सोना चाहता हूँ , जब चुदाई के बाद मेरी आँख लगे तो मैं चाहता हूँ मेरा लौड़ा तुम्हारी गरम चूत के अंदर ही रहे। जब मैं सुबह उठु तो उस वक्त भी वो अंदर ही हो, ताकी मैं सुबह की रोशने में भी तुम्हें चोद सकूँ …” 

रज़िया अपने जीशान के होंठों को चूम लेती है-“हाँ मेरे सरताज रखूँगी, आज के बाद ये चूत कभी वाली मत रखना। रात भर मैं तुम्हें अपने अंदर महसूस करना चाहती हूँ । सुबह भी तुम्हारे साथ उठना चाहती हूँ और तुम्हारे साथ ह नहाना चाहती हूँ … मैं चाहती हूँ तुम मुझे बाथरूम में भी करो…” 

जीशान-कैसे रजो? 

रज़िया अपने दोनों हाथ जीशान के अंडरवेअर में डालकर दोनों हाथों से जीशान की कमर थाम लेती है-“आह्ह… बाथरूम में नहाते हुये मेरे चूत के अंदर अपना लौड़ा रख कर अंदर-बाहर करते हुये दोनों के जिस्म पर शावर से पानी गिरते हुये, हर वक्त हर जगह मैं तुमसे चुदना चाहती हूँ जीशान , पेशाब करते हुये भी…” 

जीशान-पेशाब करती हुई भी? 

रज़िया-“हाँ मेरे जान पेशाब करते हुई भी… पीछे से उन्ह… मेरी गाण्ड में अपना लौड़ा डालकर मुझे चोदोगे ना। मैं अपनी गाण्ड में इसे लेकर पेशाब करना चाहती हूँ , मैं जीना चाहती हूँ । हर ख्वाहिश पूरी करना चाहती हूँ वो भी जो तुम्हारे अब्बू नहीं कर पाये, और वो भी जो तुम मेरे साथ अपने खुशी से करना चाहते हो…” 

जीशान अपनी रज़िया की बातों से इस कदर गरम हो चुका था कि वो रज़िया की नाइटी को एक झटके में उसके जिस्म से निकालकर फेंक देता है। रज़िया अंदर कुछ नहीं पहनी थी, जीशान को हैरानी होती है। जीशान सवालिया नजरों से रज़िया से पूछ लेता है कि उसने अंदर पैंट और ब्रा क्यों नहीं पहनी? 

रज़िया मुश्कुरा देती है और जीशान को अपने से चिपका के धीरे से उसके कान में कहती है-“मैं जानती थी तुम मुझे चोदने ज़रूर आओगे जान मुऊआह्ह…” 

जीशान अपने अंडरवेअर को कमर से निकाल देता है दोनों उस वक्त पूरी तरह नंगे हो चुके थे। जीशान का जवान लण्ड तो रज़िया की बात सुनकर ही तन चुका था, और अब वो सीधा रज़िया की चूत पे आगे पीछे घिस रहा था। 

रज़िया-“उन्ह… मुँह में डालिए ना…” 

जीशान लेट जाता है और रज़िया उठकर बैठ जाती है। उसे कोई परवाह नहीं थी की पास ही में सोफिया भी लेटी हुई है, जो उस वक्त तक जाग चुकी थी और अपनी अम्मी की बातें सुनकर पूरी तरह गीली हो चुकी थी। आज सोफिया को पता चला था कि उसका जिस्म इतना जोशीला क्यों है? क्यों वो अमन की तरफ आकर्षित हुई थी? ये उसके खून में था। 

जीशान-“अपनी कमर मेरी तरफ करो…” 

रज़िया 69 की पोजीशन में आती हुई अपनी कमर को जीशान के चेहरे के तरफ झुका देती है और झट से जीशान के लण्ड को चूम लेती है। कहती है-“इतना खूबसूरत तो तेरे अब्बू और दादी का भी नहीं था…” 

जीशान-“ले मुँह में मेरी जान…” 

रज़िया-“गलपप्प-गलपप्प-गलपप्प…” जीशान के लण्ड को आंडो तक अपने मुँह में ले लेती है और नीचे के लटकते हुये आंडो को अपनी मुट्ट में लेकर मरोड़ने लगती है। 

जीशान अपने होंठ रज़िया की चूत पर रख कर जीभ को अंदर घुसा देता है। इतने दिनों तक अमन के अब्बू से और फिर अमन से चुदने के बाद भी रज़िया की चूत इस कदर कसी हुई थी, जैसे कुँवारी चूत हो। और यही वजह भी थी जीशान के उसकी तरफ आकर्षित होने की। 

रज़िया-“आह्ह… मेरे जान आह्ह… खोल दो अपनी रज़िया के चूत को… ऐसे तो अमन भी ना कर सका आह्ह…” 

जीशान-“गलपप्प भूल जाओगी रज़िया तुम अमन ख़ान को आज के बाद गलपप्प-गलपप्प…” 
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05-19-2019, 01:46 PM,
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रज़िया-“हाँ भुला दो मुझे अपना वजूद भी भुला दो तुम मुझे आह्ह… गलपप्प-गलपप्प…” रज़िया की चूत से पानी बहने लगता है, मगर वो पानी बहने से ठंडी नहीं पड़ती थी, बल्की उसकी चूत और ज्यादा ख़ूँख़ार हो जाती थी। वो जीशान के आंडो को मरोड़ते हुये उसे चूसने लगती है गलपप्प-गलपप्प। 

पास में लेटी हुई सोफिया का हाथ अपनी चूत के ऊपर चला जाता है और वो शलवार के ऊपर से ही अपनी चूत को सहलाने लगती है। 

रज़िया अपनी एक उंगली जीशान की गाण्ड में डालकर उसका लण्ड चूसने लगती है। जीशान के उत्तेजना की इंतिहा नहीं थी, जिस्म था कि झटके पे झटके खाने लगता है 

रज़िया-“उन्ह… चोदिए ना मुझे, बर्दाश्त नहीं होता जीशान आह्ह… चोदो मुझे, मेरी चूत नहीं रह पा रही है उन्ह…” 

जीशान रज़िया को सोफिया के एकदम पास लेटा देता है ऐसे कि उसका जिस्म सोफिया की पीठ से टच होने लगता है। 

अपनी पीठ पर अपनी अम्मी का नंगा जिस्म महसूस करके सोफिया की हालत और खराब होने लगती है। 

जीशान रज़िया की दोनों टाँगों को अपने कंधे पर रख लेता है और अपने लण्ड को हाथ में पकड़कर उसे चूत पर घिसने लगता है। 

रज़िया-“आह्ह… डाल भी दो, जालिम ऐसा मत कर आह्ह…” 

जीशान अपनी दादी की बेचैनी देखकर मुश्कुरा देता है और लण्ड का सुपाड़ा रज़िया की चूत के अंदर घुसा देता है। लण्ड का सुपाड़ा अंदर जाते ही रज़िया और बेचैन हो जाती है, उसे तो पूरा का पूरा अपने अंदर चाहिए था, इसी लालच में वो अपनी कमर को ऊपर की तरफ उठा देती है और उसी वक्त जीशान भी जोर का झटका नीचे की तरफ देता है। दोनों की जांघे एक दूसरे से टकरा जाती हैं, और लण्ड रज़िया की चूत को चीरता हुआ अंदर तक घुसता चला जाता है। 

जीशान-“रज़िया आह्ह… दादी ई आह्ह…” 

रज़िया-“जीशान आआऽऽ मार डाला रे आह्ह… ये लौड़ा है कि फौलाद की कोई सलाख है मेरे बच्चे आह्ह…” 

जीशान-“लौड़ा है दादी तुम्हारे लिए आह्ह…” और रज़िया के दोनों पैरों को कंधे पर टिकाए दनादन वो अपने लण्ड को रज़िया की चूत की गहराईयों में पेलता चला जाता है। 

इधर रज़िया के पास लेटी सोफिया की हालत इस कदर खराब हो चुकी थी कि अब हाथ से काम चलाना उसके लिए मुश्किल हो चुका था। 

रज़िया की आँखें बंद थी और वो अपने जीशान के लण्ड को अपनी चूत की गहराईयों में महसूस करके जन्नत में पहुँच चुकी थी। 

जीशान अपना हाथ सोफिया की कमर पर रख देता है। नरम कमर के ऊपर जैसे ही जीशान का हाथ पड़ता है, सोफिया की चूत से पानी और जोर से बहने लगता है। 

रूम में अंधेरा काफी था उसी का फायेदा उठाकर जीशान हाथ को आगे बढ़ाता हुआ सोफिया की चूत तक पहुँच जाता है, और जैसे ही उसके उंगलियाँ सोफिया की चूत के ऊपर पहुँचती हैं, गीला-गीला चिपचिपा सा रस उसकी उंगलियों से चिपक जाता है। वो समझ जाता है कि सोफिया जाग रही है। 


वो रज़िया के ऊपर और झुकता है, जिससे रज़िया की दोनों टाँगे जीशान की कमर से लिपट जाती हैं। जीशान अपने लण्ड को सटासट रज़िया की चूत में अंदर-बाहर करते हुये अपने हाथ की पकड़ सोफिया की चूत पर बढ़ा देता है। 

सोफिया भी अपना हाथ जीशान के हाथ पर रख देती है जैसे उससे कह रह हो कि तुम मेरी चूत में कब डालोगे? 

जीशान-“रज़िया, ये चूत किसकी है?” 

रज़िया-“तुम्हारी उन्ह…” 

जीशान-“और इस चूत से निकली हुई?” 

रज़िया-वो भी तुम्हारी । 

जीशान-“यानी अम्मी और सोफिया भी मेरी ?” 

रज़िया-“हाँ मेरे बच्चे, तुम इस घर के सरदार हो। हर औरत तुम्हारी है, उसपर सबसे पहला हक तुम्हारा है। तुम अमन विला के बादशाह हो और हम सब तुम्हारे गुलाम हैं, जो करना है कर सकते हो तुम हमारे साथ। हम उफफ्फ़ तक नहीं करेंगे उन्ह…” 
जीशान यही सुनना चाहता था और सोफिया को भी सुनाना चाहता था। 



अपनी अम्मी के मुँह से ये सब सुनकर सोफिया की पकड़ जीशान के हाथ पर हल्की पड़ जाती है और वो अपना हाथ जीशान के हाथ पर से हटा लेती है। 

जीशान सोफिया की शलवार का नाड़ा खोल देता है और रज़िया को चोदते हुये अपना हाथ उसकी पैंटी के अंदर घुसा देता है। 

अपनी चूत पर जीशान का गरम हाथ पड़ते है सोफिया की सारी शर्म-ओ-हया जैसे गायब हो जाती है, और वो भी रज़िया ख़ानम की सगी बेटी की तरह खुद को महसूस करने लगती है, वो बेटी जिसका कोई भाई नहीं , बस एक मालिक है, एक सरदार है, एक बादशाह है, और वो है जीशान। जिसकी वो भी अपनी अम्मी की तरह गुलाम है। 

जीशान अपनी उंगलियों से सोफिया की क्लोटॉरिस को सहलाने लगता है और रज़िया के होंठों को अपने मुँह में लेकर चूसने लगता है
। 
जीशान का लण्ड रज़िया की चूत में अंदर-बाहर हो रहा था। मगर वो महसूस सोफिया को हो रहा था, हर झटका सोफिया अपनी चूत में महसूस कर रही थी, उसकी चूत से इतना पानी बह चुका था, जितना कि रज़िया की चूत से भी नहीं निकला था। 

रज़िया-“आह्ह… जीशान , लौड़ा घुमाकर चोदो मुझे, जैसे मेरी चूत को अपने लौड़े से मथ रहे हो तुम…” 

जीशान अपनी दादी की, अपनी रज़िया की हर मुराद पूरा करने की कसम खा चुका था। वो अपनी कमर को घुमाते हुये रज़िया को चोदने लगता है। उसका मोटा लण्ड पहले तो रज़िया की चूत में पूरी तरह अटक रहा था, उसपर जब वो अपनी कमर को घुमाते हुये रज़िया को चोदने लगता है। 

रज़िया को ऐसे महसूस होता है जैसे जीशान का लण्ड नहीं कोई स्क्रु -ड्राइवर हो जिससे वो उसकी चूत को कस रहा हो। वो चीख पड़ती है और जीशान को बेतहाशा चूमने लगती है। 

जीशान एक हाथ से रज़िया के निप्पल को मरोड़ने लगता है और दूसरे हाथ की उंगलियाँ सोफिया की चूत के अंदर डाल देता है। 

सोफिया के मुँह से ‘उन्ह’ की सिसकी निकल जाती है, जो रज़िया के कानों तक पहुँच जाती है। वो अपनी गर्दन उठाकर जब देखती है तो हैरान रह जाती है कि सोफिया की सलवार कमर के नीचे सरकी हुई है और जीशान का एक हाथ उसकी चूत के पास है और वो अपनी उंगलियाँ अंदर-बाहर कर रहा है। अपनी बेटी के सामने चुदने से रज़िया का जोश और बढ़ जाता है और वो अपनी कमर को ऊपर तक उठा-उठाकर जीशान का साथ देने लगती है। 

जीशान रज़िया को देखकर मुश्कुरा देता है और इधर अपने लण्ड से और उधर अपने हाथ से दोनों माँ-बेटी की चुदाई जम के करने लगता है। तीनों इस कदर जोश में पहुँच जाते हैं कि तीनों एक साथ चीखते हुये झड़ने लगते हैं। जीशान के लण्ड का पानी रज़िया की चूत में, और रज़िया का पानी जीशान के लण्ड के साथ नीचे जांघों से होता हुआ बेडशीट पर गिरने लगता है। 

वहीं सोफिया की चूत अपना लावा जीशान के हाथों पर उड़ेल देती है। 

तीनों हाँफने लगते हैं। जहाँ एक तरफ दो प्यार करने वाले इंतिहा तक पहुँच गये थे, वहीं जीशान का हाथ अपनी बहन की चूत के अंदर तक पहुँच गया था। अब वो वक्त दूर नहीं था, जब ये लण्ड भी चूत के अंदर जाने वाला था। 

जीशान करवट लेकर सोफिया और रज़िया के बीच में आकर लेट जाता है। उसका लण्ड एकदम खड़ा था। रज़िया अपना एक पैर उसके ऊपर डालकर अपनी चूत की गर्मी जीशान के लण्ड को देने लगती है। दोनों एक दूसरे की आँखों में देखने लगते हैं, और रज़िया थोड़ा आगे की तरफ बढ़ती है, और जीशान अपनी रज़िया के होंठों को अपने होंठों में ले लेता है। दोनों कितनी ही देर एक दूसरे का लार पीते रहते हैं 
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05-19-2019, 01:46 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
जब कुछ देर बाद जीशान अपनी आँखें खोलकर रज़िया को देखता है, तो उसे रज़िया के चेहरे पर महताब सी रोशनी नजर आती है, वो चमक, वो खुशी जो एक औरत अपने मर्द से अपने शौहर से जी भरकर चोदने के बाद महसूस करती है। 

जीशान रज़िया से-तुम खुश तो हो ना? 

रज़िया-“बेहद खुश हूँ मैं जीशान , और ये खुशी सिर्फ़ तुम मुझे दे सकते थे। सच में अगर आज अमन भी जिंदा होते तो मैं उनके पास भी इतनी खुशी महसूस नहीं करती, जितनी आज मुझे तुम्हारी बाहों में महसूस हो रही है…” 

जीशान अपनी रज़िया को अपने ऊपर खींच लेता है और दो जिस्म फिर से अपनी लगाई हुई आग में जलने लगते है। रात भर जीशान अपनी दादी के जिस्म के ऊपर कभी नीचे होता रहा, ना वो खुद सोया और ना उसने रज़िया की आँख लगने दी । 


सबसे ख़तरनाक बात ये हुई कि उन दोनों की चुदाई की वजह से सोफिया भी सो नहीं पाई, उसकी चूत उंगलियों से घिसती रही और रोती रही । 

सुबह होने से पहले जीशान कपड़े पहनकर अपने रूम में चला जाता है और रज़िया नाइटी पहनकर कुछ देर सो जाती है। 

मगर सोफिया की आँखों से नींद नदारद हो चुकी थी। उसकी आँखों में बस एक चीज थी जीशान। 

सुबह 7:00 एएम बजे, अमन विला 

जीशान अपने रूम में गहरी नींद में सोया हुआ था। रात अपनी होने वाली बेगम के साथ गुजरने के बाद उसका जिस्म काफी रिलेक्स था। 

मगर आज सुबह से घर में शोर-ओ-गुल था। जब जीशान फ्रेश होकर हाल में आता है तो उसे रज़िया और अनुम बातें करती हुई मिलती हैं। वो भी आकर अनुम के बगल में बैठ जाता है। 

जहाँ अनुम जीशान को देखकर मुश्कुरा देती है, वहीं रज़िया किसी नई-नवेली दुल्हन की तरह अपने महबूब को देखकर शरमा जाती है। जीशान की सारी हरकतें, उसकी रात में किये हुई वो मोहब्बत के वादे, सभी एक पल में रज़िया को याद आ जाते हैं। 

जीशान रज़िया को देखकर आँख मार देता है-“क्या बात है घर में इतना शोर-ओ-गुल क्यों है?” 

अनुम-“खालिद और उनके परिवार वाले आ रहे हैं लंच पे…” 

जीशान-क्यूँ ? 

अनुम-“उफफ्फ़हो… जीशान , तुम भी ना… फ़िज़ा और कामरान घर पर हैं, हमने सोचा कि खालिद और उनके परिवार को भी इन्वाइट करके अगले महीने की शादी की डेट फ़िक्स कर देते हैं। 

जीशान-“किससे पूछकर आप सभी ने ये फैसला लिया? मुझसे तो किसी ने कुछ पूछा भी नहीं …” वो थोड़ा गरज के बोला था। उसकी आवाज़ बिल्कुल हुक्मरानो वाली थी। 

अनुम और रज़िया दोनों सहम जाते हैं, और फटी-फटी नजरों से जीशान के चेहरे को देखने लगते हैं। 

जीशान-“मैं घर का मालिक हूँ , मुझसे किसी ने क्यों नहीं पूछा ?” 

रज़िया-जीशान , वो हम ने सोचा कि… 

जीशान-“अच्छा अब तुम सब सोचने भी लगी हो? बहुत खूब…” 

कुछ देर वहाँ खामोशी छा जाती है, कोई कुछ नहीं कहता। अनुम और रज़िया को एहसास होता है कि उन्होंने जीशान से ना पूछकर जो प्रोग्राम बनाया है, उसे लेकर जीशान सख़्त नाराज है। मगर अचानक से जीशान के हँसने की आवाज़ से दोनों औरतें और माहौल थोड़ा खुशनुमा हो जाता है। 

जीशान-“आह्ह… अरे मैं तो मजाक कर रहा था…” 

अनुम हल्की सी थपकी जीशान की मुन्डी पर मारती है-“तुम भी ना जीशान , हमें डरा ही दिया तुमने…” 

जीशान थोड़ा कड़क आवाज़ में कहता है-“अभी मजाक कर रहा था। मगर इसका मतलब ये नहीं कि तुम सब आइन्दा ऐसी हरकत करो। अगर आइन्दा मुझसे बिना पूछे कोई भी प्रोग्राम तय किया गया तो?” वो दोनों की आँखों में देखकर बोल रहा था। 

उस वक्त रज़िया के साथ-साथ अनुम को ये एहसास हुआ था कि जीशान अपने खालिद की तरह है, जो मोहब्बत में सब कुछ लुटा देता है मगर उसकी ना-फरमानी करने से वो खफा भी बहुत हो जाता है। हर औरत ये चाहती है कि उसका एक मर्द हो, जो उसपर हुकूमत करे, उसे कुचले, उसे अपने कंट्रोल में रखे, इसी में वो औरत खुद को महफूज समझती है। अगर घर में मर्द ना हो तो वो औरत खुद को असुरक्षित महसूस करती है। 

जीशान की बात से रज़िया और अनुम का दिल बाग-बाग हो गया था, और दोनों अपने घर के एकलौते मर्द की शेर जैसी दहाड़ से घबराई नहीं थीं, बल्की उन्हें उसकी बातों पर आज फख्र महसूस हो रहा था। 

अनुम-“आइन्दा ऐसे गलती नहीं होगी जीशान …” और अनुम उठकर किचेन में चली जाती है। 

और जीशान की नजरें उसकी कमर को देखती रहती हैं। किस कदर खूबसूरत थी अनुम, उसके हुश्न की कदर अमन भी ना कर सका था। जिस हुश्न की मलिका के साथ रात दिन मोहब्बत करना चाहिए था उससे बेमहसूस रहता था अमन ख़ान। 

मगर असली हीरे की परख जीशान को थी और उस हीरे को पाने के लिए जीशान कुछ भी करने को तैयार था। 

रज़िया जीशान को खामोश देखकर खंखारती है। 

जीशान रज़िया की तरफ देखते हुये कहता है-“नींद अच्छे से आई थी मेरी जान को?” 

रज़िया कुछ नहीं कहती, बस झुकी हुई नजरें सारा दिल का हाल बयान कर देती हैं। 

सोफिया दूर से उन दोनों को देख रही थी। उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वो उन दोनों के सामने जाए, ख़ास तौर पे जीशान के सामने। रात उसने जोश के आलम में सोफिया को उस जगह छुआ था जहाँ तक सिर्फ़ अब तक एक शख्स पहुँच पाया था मगर उस छुवन से सोफिया के कितने ही सोए हुये ख्वाब जाग गये थे। जीशान की मर्दाना शख्सियत में सोफिया को अपना मुस्तकबिल नजर आने लगा था। जो कसमें वादे किसी वक्त सोफिया ने अमन के साथ किये थी और जिसके टूट जाने से उसके दिल के भी हजार टुकड़े हो चुके थे, उन सारे रेजा-रेजा ख्वाबों को पूरा करता दिखाई दे रहा था जीशान। 
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05-19-2019, 01:46 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
नग़मा पीछे से सोफिया का कंधा हिलाती है-“कहाँ गुम हो आपी? लगता है भाईजान के बारे में सोच रही हो?” 

सोफिया-“हट… मैं क्यों सोचने लगी जीशान के बारे में?” 

नग़मा-“हे मैं जीशान भाई के बारे में नहीं , बल्की खालिद भाईजान के बारे में कह रही हूँ …” 

सोफिया शरमा जाती है और अपने रूम में चली जाती है। वो दिल ही दिल में सोचने लगती है कि ये मुझे क्या हो गया है? मेरी शादी होने वाली है और मैं अपने जीशान से इश्क़ कर बैठी हूँ । नहीं नहीं , मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए। वो अपने सवालों के जवाब खुद को ही दे रही थी। 

जीशान पीछे से उसकी कमर पर हल्के से थपकी मारता है। 

सोफिया-“ऊउउच…” वो पलटकर पीछे देखती है और जीशान को मुस्कुराता देखकर फिर से नजरें झुका लेती है। 

जीशान दरवाजा बंद कर देता है और सोफिया को अपनी तरफ घुमा लेता है 


सोफिया के दिल की धड़कनें बहुत तेज चल रह थीं-“छोड़ो, मुझे बहुत काम है…” 

जीशान सोफिया का चेहरा ऊपर उठाता है दोनों की नजरें मिलती हैं-“मुझे गुडमॉर्निंग किस चाहिए…” 

सोफिया की जबान लड़खड़ाने लगती है-“क्या क्या? मुझे जाने दो ना जीशान …” 

जीशान दोनों हाथों से सोफिया के खूबसूरत गालों को थाम लेता है, जिसकी वजह से उनके होंठ एक दूसरे से चिपक जाते हैं। सोफिया किसी किस्म का ऐतराज नहीं दिखा रही थी, बस मुँह से वो जीशान को मना कर रही थी और जीशान भी अच्छी तरह जानता था कि सोफिया अब उसे किस कदर प्यार करने लगी है। जीशान उसे अपने करीब करता जाता है, इतना कि दोनों की गरम साँसे एक दूसरे से मिलकर एक होने लगती हैं। सोफिया के लरजते होंठ, थिरकती हुई साँसे और काँपता हुआ जिस्म जीशान के हवाले था, मगर वो अब भी होंठों से इनकार कर रही थी। 
जीशान उसे छोड़ देता है। 

सोफिया सवालिया नजरों से जीशान को देखने लगती है, जैसे पूछ रही हो कि क्या हुआ? 

जीशान-“आपी मैं चाहता तो आपको रात में ही अपना बना लेता। मगर मैं चाहता हूँ आप मुझसे पहले कहें कि आप मुझसे मोहब्बत करती हैं। जबरदस्ती ख़ान नहीं किया करते…” 

सोफिया अपने पैर के नाखूनों को देखने लगती है 

जीशान वहाँ से जाने के लिए अपने कदम बढ़ाता ह है कि सोफिया उसका हाथ पकड़ लेती है। जीशान पलटकर सोफिया की तरफ देखता है, और उसी पल सोफिया जीशान को अपनी बाहों में जकड़ लेती है। दोनों भाई-बहन एक दूसरे में पिघलने लगते हैं। 

जीशान-“आपी मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ हमेशा से। अम्मी के बाद तुमसे ही मैंने मोहब्बत की है, तुम्हें ही अपने सबसे करीब पाया है। आइ लव यू सोफिया मेरी जान…” 

सोफिया जीशान के होंठों पर अपने होंठ रख देती है और उसके निच ले होंठों को अपने मुँह में लेकर चूसने लगती है। ये पहली बार था कि सोफिया खुद किसी को किस कर रही थी। अमन खुद उसे किस करता था, कभी भी सोफिया ने अमन को किस नहीं की थी। 

मोहब्बत जब अपने शिखर पर होती है, जब वो इंतिहा को पार कर जाते हैं, जब दिल के जज़्बात सारी बंदिशें तोड़ देते हैं। तब ऐसे दिल की हालत होती है कि ना किसी का खौफ होता है और ना कोई काम करने से दिल डरता है। सोफिया आज उस मुकाम पर पहुँच चुकी थी। 

सोफिया-“मेरे मालिक, मेरे सरताज, मेरे जीशान, मेरे हमदम, मुझे अपना बना लो, अपनी आपी को हमेशा-हमेशा के लिए अपना बना लो। मुझे आपी से सोफिया बना लो, अपनी बेगम बना लो, मुझे भी वो मुकाम दे दो जो तुमने अम्मी को दिया है। मैं भी तुमसे पिसना चाहती हूँ , तुम्हारे नीचे कुचलना चाहती हूँ , मुझपर भी वो जुल्म करो, मुझे भी रात भर सोने मत दो, मुझे भी प्यार करो, मुझे अपनी बहन नहीं बल्की अपनी बीवी की तरह प्यार करो। मुझे भी चोदो मेरे जीशान। हाँ मैं तुमसे कह रही हूँ , मुझे भी चोदो रात भर…” 

जीशान अपनी आपी को अपने जिस्म के हर हिस्से में दबाते हुये उसके होंठों का रास पीता चला जाता है। उसके दोनों हाथ सोफिया की कमर पर आकर रुक जाते हैं, और वो बड़े बेरहमी के साथ दोनों को मसलता हुआ सोफिया को चूमने लगता है। 

सोफिया-“मुझे निशानी दो अपने प्यार की अभी…” 

जीशान सोफिया के नीचे के होंठ को अपने मुँह में लेकर उसे अपने दाँतों में जोर से दबाता है। 

सोफिया-“उन्ह… अम्म्मी उन्ह…” खून सोफिया के होंठों से बहने लगता है और जिस्म लरजता है। 

जीशान ने अपनी सोफिया के होंठों पर अपने दाँतों से निशानी दे दिया था, ये जानते हुये कि आज उसे उसका होने वाला शौहर भी देखने आएगा और उसके सामने जब सोफिया जाएगी तो अपने कटे हुई होंठ की वजह से उसे उस वक्त भी सिर्फ़ जीशान याद आएगा। 

सोफिया की आँखों में आँसू आ जाते हैं-“शुक्रिया मेरे सरताज…” 

जीशान फिर से सोफिया के होंठों को अपनी रूमानियत से नहीं , बल्की उसके होंठों से निकलते हुये खून को बंद करने के लिए कितनी ही देर तक दोनों एक दूसरे के होंठों को चूमते रहते हैं, और उसकी वजह से सोफिया के होंठों से खून निकलना बंद हो जाता है। 

कुछ देर बाद सोफिया बाहर चली जाती है। हर कोई उससे यही पूछता है कि होंठ कैसे कट गया? और वो मुश्कुराती हुई सबकी बात को टालती चली जाती है। 
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05-19-2019, 01:46 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
दोपहर तक खालिद और उनका परिवार भी अमन विला में आ जाता है। 

सोफिया और नग़मा तैयार होकर बाहर आते हैं, मगर जीशान अभी भी अपने रूम में तैयार हो रहा था। 

लुबना जीशान के रूम में जाकर दरवाजा बजाती है-“चलिए नवाब साहब बाहर मेहमान आ गये हैं…” 

जीशान-“बस दो मिनट…” 

फिर वो अपने बाल सँवारता हुआ जब लुबना की तरफ पलटता है तो लुबना की आँखें चकाचौंध हो जाती हैं। बला का खूबसूरत बंदा था जीशान। हर तरह से एक मुकम्मल पठान की औलाद 

6 फिट से ज्यादा कद बड़े-बड़े नुमाया कंधे, मस्क्युलर बाडी और मुस्कुराता हुआ चेहरा, जो कोई एक बार देख ले बस देखता ह रह जाए। लुबना भी अपनी नेजरें जीशान पर से हटा नहीं पाती। 

जीशान-“उउहहो… नजर लगाने का इरादा है क्या मोटी ?” 

लुबना अपनी जुबान निकालकर जीशान को चिढ़ाती है-“नजर हुन्ने्ीं… मेरी जुती । ये मुँह और मसूर की दाल…”

जीशान-“हाहाहाहा… जानता था मैं अच्छा लग रहा हूँ । तूने बुरा कहा मतलब बहुत अच्छा लग रहा हूँ । थैंक्स फार द काज़म्प्लमेंट्स…” 

लुबना जीशान को घूर ती रह जाती है। मगर जीशान उसे आज सताने के मूड में नहीं था। वो लुबना के करीब आता है और उसका वो हाथ अपने हाथ में ले लेता है, जिसे उसने कल चाकू से काट लिया था -“अब कैसा है ये?” वो बड़े गम्भीर अंदाज में बोला था। 

लुबना-“बस ठीक है…” 

जीशान उसके हाथ को अपने होंठों से लगाकर चूम लेता है-“अगर आइन्दा ऐसी कोई भी हरकत तूने की लुब तो, मुझसे बुरा कोई नहीं , वो हाल करूँ…” 

लुबना-“जो करना है कर लीजिये , मैं कुछ भी नहीं कहूँ गी…” वो जीशान के शब्द पूरे होने से पहले ही बोल देती है। और जीशान उसके मासूम चेहरे को देखता रह जाता है। 

लुबना-अब चलिए भी सब आपका इंतजार कर रहे हैं। 

जीशान अपने लुबना के साथ मेहमानों के पास आ जाता है। 

अनुम की नजर जब जीशान पर पड़ती है तो एक पल को ऐसे महसूस होता है उसे कि अमन अपने तमाम खूबसूरतियों के साथ उसके सामने खड़ा है। मगर अगले ही पल उसे एहसास होता है कि ये अमन नहीं बल्की जीशान है, जो अपने खालिद से भी कहीं ज्यादा खूबसूरत है। 

जीशान अनुम को देखकर मुश्कुरा देता है, और सभी मेहमानों से एक-एक करके मिलने लगता है। घर के सभी मेंबर्स के सामने सोफिया और नग़मा की शादी की डेट फ़िक्स हो जाती है। अगले महीने की डेट फ़िक्स होती है। सभी एक दूसरे को मुबारकबाद देते हैं। 

फ़िज़ा जो काफी वक्त से जीशान पर अपनी नजरें गढ़ाए बैठी थी, उसके करीब आती है-“बहुत-बहुत मुबारक हो जीशान बेटा आपको…” 

जीशान-आपको भी आंटी । 

फ़िज़ा-ऐसे नहीं , गले लगकर मुबारकबाद देते हैं। 

जीशान आगे बढ़ता है-“फ़िज़ा यहाँ नहीं , तुम्हारे रूम में मैं इंतजार कर रही हूँ तुम्हारा…” 

फ़िज़ा जीशान के रूम में चली जाती है और जीशान सभी से नजरें बचाते हुये अपने रूम में फ़िज़ा के पीछे-पीछे चला जाता है। जब जीशान अपने रूम में दाखिल होता है तो फ़िज़ा जल्दी से दरवाजा लाक कर देती है और अपना दुपट्टा एक तरफ रख कर जीशान की छाती से चिपक जाती है। 

फ़िज़ा-“ओह्ह… जीशान, जब भी तुम्हें देखती हूँ मुझे तुम्हारे अब्बू याद आ जाते हैं…” 

जीशान-“क्यों अब्बू ने आपकी भी ली थी क्या?” 

फ़िज़ा जीशान की आँखों में देखने लगती है-“हाँ… तुम्हारे अब्बू ने मुझे और मेरी अम्मी दोनों को एक साथ एक बिस्तर पर रात भर कई रातें चोदा था…”

जीशान-उनकी जगह अब उनका बेटा है। 

फ़िज़ा-मतलब? 

जीशान-“मतलब ये कि अमन विला पर अब्बू की हर चीज पर मेरा हक है। उन्होंने जिस चीज को भी छुआ था, जो उनकी थी उसपर भी मेरा हक है। इस तरह आप पर भी मेरा हक है…” 

फ़िज़ा-चल हट बेशर्म। 

जीशान तो अपने बाप का भी बाप था बेशर्मी में। वो बखूबी जानता था कि फ़िज़ा की शलवार के अंदर क्या चीज है, जो उसे बेचैन किए हुई है? वो फ़िज़ा को बेड पर गिरा देता है और उसके संभलने से पहले ही उसके ऊपर सवार हो जाता है। फ़िज़ा की दोनों टाँगों को ऊपर उठा करके वो खोल देता है, और पूरी तरह फ़िज़ा के ऊपर आकर अपना हाथ फ़िज़ा की चूत के ऊपर रख कर हल्के से उसकी क्लोटॉरिस को मसल देता है। 

ये सब इतनी जल्दी में होता है कि फ़िज़ा कुछ कर भी नहीं पाती, और कुछ कह भी नहीं पाती। बस ‘उन्ह’ की एक सिसकी उसके मुँह से निकल जाती है 

जीशान अपनी फ़िज़ा की आँखों को चूमते हुये होंठों तक पहुँच जाता है-“जिस चूत में पहले वो रहते थे, अब मैं रहूँ गा यहाँ ना। हाँ यहाँ…” वो चूत को रगड़ते हुये फ़िज़ा से पूछने लगता है। 

फ़िज़ा तिलमिला जाती है-“हाँ जीशान , मैं भी तड़प रही हूँ । मेरे शौहर किसी काम के नहीं , और कामरान में वो बात नहीं जो मुझे संतुष्ट कर सके। बस तुझसे उम्मीद है मेरे बच्चे, अपनी आंटी को मुकम्मल कर दे आह्ह…” 

जीशान फ़िज़ा की शलवार का नाड़ा खोलकर उसकी पैंटी के अंदर हाथ डालकर दो उंगलियाँ चूत के अंदर डाल देता है-“फ़िज़ा आंटी इस चूत में पहली बार अब्बू ने डाला था ना?” 

फ़िज़ा-“हाँ आह्ह… इसमें तेरे अब्बू की मोहर लगी हुई है। मुँह पर तेरे अब्बू की मोहर है, और उस मोहर पर सिर्फ़ तुम मोहर लगा सकते है जीशान आह्ह…” 

जीशान-“तुम्हारे घर कल आऊूँगा मैं, और वहीं सारे हिसाब पूरे होंगे…” 

फ़िज़ा-“उन्ह… मैं इंतजार करूँगी…” और दोनों एक दूसरे को चूमने लगते हैं। तभी बाहर से किसी के दरवाजा नाक करने से दोनों झट से एक दूसरे से अलग हो जाते हैं। 

बाहर अनुम खड़ी थी। जीशान जब दरवाजा खोलता है तो अनुम जीशान से फ़िज़ा के बारे में पूछती है। 

जीशान-मुझे क्या पता आंटी कहाँ हैं? शायद बाथरूम में गई होंगी। 

अनुम वहाँ से चली जाती है, और फ़िज़ा बाथरूम से बाहर निकलकर जीशान को चूमते हुये रूम से बाहर निकल जाती है। 

मेहमानों के जाने के बाद रात में सभी बहुत थक चुके थे। अनुम अपना काम निपटाकर सोने चली जाती है। नग़मा भी लुबना के साथ बातें करती हुई उसके रूम में सोने चली जाती है। 

सोफिया अपने रूम में बैठी हुई थी, जीशान उसके पास आता है-“चलो मेरे साथ…” वो सोफिया का हाथ पकड़कर उसे उठा देता है। 

सोफिया-कहाँ जीशान ? 

जीशान-“जब तुमने खुद को मेरी बेगम मान है लिया है तो मैं तुम्हें अपनी पहली बेगम से मिलवाना चाहता हूँ …" 

और इधर रज़िया अपने रूम में जीशान का इंतजार करने लगती है कि तभी रूम का दरवाजा खुलता है और जीशान के साथ-साथ सोफिया भी रूम में दाखिल होती है। 

जीशान और सोफिया जब रज़िया के रूम में पहुँचते हैं तो रज़िया उन्हें बेड पर बैठी नजर आती है। 

रज़िया-अरे क्या बात है दोनों भाई-बहन एक साथ? नींद नहीं आ रही है क्या सोफिया बेटी ?” 

जीशान रूम का दरवाजा बंद करके रज़िया के पास आकर बैठ जाता है। उसकी आँखों में मस्ती साफ नजर आ रही थी, जिसे रज़िया भाँप गई थी। मगर वो उस वक्त सोफिया के सामने कोई भी ऐसी हरकत नहीं करना चाहती थी। वो जीशान को बातों में उलझाने लगती है। 

जीशान सोफिया को अपने पास बैठा देता है। 

रज़िया-जीशान आज तुम बहुत खूबसूरत लग रहे थे। 

जीशान-दादी । 

रज़िया-हाँ, क्या बात है जीशान ? 

जीशान-मैं आपको अपनी दूसरी बेगम से मिलवाना चाहता हूँ । 

रज़िया की पेशानी पर पसीना आने लगता है-“क्या? मैं समझी नहीं ?” 

जीशान-“उठो और यहाँ बैठो नीचे…” वो बड़े रुख़ाब से बोला था। 

रज़िया की आँखें झुक जाती हैं। 

जीशान-सुनाई नहीं देता, यहाँ बैठो नीचे? 

रज़िया चुपचाप जमीन पर बैठ जाती है 

जीशान सोफिया के चेहरे को दोनों हाथों में लेकर उसके होंठों को बुरी तरह चूम लेता है ऐसे कि सोफिया की साँसे उखड़ने लगती है। सोफिया के मुँह से जब जीशान के होंठ अलग होते हैं तो वो जज़्बात के रौ में इस कदर बह चुके थे कि ऊपर के साँसे ऊपर होने लगती है। 

जीशान-इनसे मिलो ये हैं सोफिया, मेरी दूसरी बेगम। 

सोफिया अपनी नजरें झुका लेती है। वो उठकर वहाँ से जाने लगती है। मगर जीशान उसका हाथ पकड़कर उसे वापस बैठा देता है। 

सोफिया खुद को बहुत अनकंफटेबल महसूस कर रही थी। अपनी अम्मी के सामने अपने भाई के साथ ये सब करने में उसे बहुत डर लग रहा था। मगर जीशान भी अपने बाप का बेटा था, शर्म-ओ-हया के पर्दे गिराना उसे बखूबी आता था।

रज़िया खड़ी होने लगती है मगर जीशान आँखें दिखाकर उसे बैठने के लिए कहता है। जीशान रज़िया के सामने खड़ा हो जाता है और अपनी पैंट की जिप खोलकर पैंट नीचे गिरा देता है। पैंट के नीचे गिरते ही जीशान का खूबसूरत लण्ड दोनों माँ बेटी की आँखों के सामने आ जाता है। 

सोफिया तिरछि नजरों से जीशान के लण्ड को देखने लगती है। 

रज़िया-ये क्या बदतमीजी है जीशान? 

जीशान-“जीशान… नाम लेती है मेरा? तुझे पता नहीं है क्या कि शौहर का नाम नहीं लिया करते…” कहकर वो रज़िया के बालों को इतने बुरी तरह से खींचता है कि रज़िया की आँखों में आँसू तैर जाते है। फिर जीशान कहता है-“माफी माँग…” 

रज़िया-“मुझे माफ कर दो जीई…” 

जीशान-“मुँह खोल…” 

रज़िया सोफिया की तरफ देखने लगती है। सोफिया उसे ही देख रही थी। 

जीशान-“रज़िया, क्या कहा मैंने?” 

रज़िया अपना मुँह खोल देती है। 

जीशान अपने लण्ड को हाथ में पकड़कर रज़िया के मुँह पर मारने लगता है-“ साली शौहर का नहीं सुनती? जो मैंने कहा उसे बिना सोचे पूरा करना एक बीवी का फर्ज़ है। आइन्दा जब भी मैं कुछ कहूँ वो तुम्हें करना होगा, बिना कुछ सोचे। सुना न क्या कहा मैंने?” 

रज़िया आँखें बंद कर लेती है-“हाँ जान करूँगी ना… आप जो कहोगे वही मैं करूँगी उन्ह…” 

जीशान अपने लण्ड को रज़िया की जीभ पर रख देता है और रज़िया उसे अपने मुँह में खींच लेती है-“गलपप्प गलपप्प-गलपप्प…” 

जीशान अपने दोनों हाथों से रज़िया की गर्दन पकड़कर दबाने लगता है, जिससे रज़िया की साँस रुकने लगती है, और सटासट अंदर-बाहर होते लण्ड की वजह से मुँह से साँस लेना भी दुश्वार हो जाता है। उसके आँखें फटी की फटी रह जाती हैं। मुँह में से लार बाहर गिरने लगती है। 

मगर रज़िया भी वो औरत थी, जिसके सामने अमन भी पानी भरता था। जो अगर अपनी पूरी औकात पर आ जाए तो मर्द अपने लण्ड को गाण्ड में घुसाकर भाग जाए। आज तक किसी ने भी रज़िया का वो रूप नहीं देखा था, ना अमन ने और ना उसके अब्बू ने। मगर पता नहीं आज क्यों जीशान की हरकतों ने रज़िया को ऐसे उकसाया था कि वो आज जीशान को किसी कीमत पर छोड़ने वाली नहीं थी। 
शायद रज़िया खुद को बेबस महसूस कर रही थी, और जब औरत बेबस हो जाती है तो वो कुछ ऐसा कर जाती है जो सामने वाला सोच भी नहीं सकता। 

रज़िया जीशान के आंडो को मुट्ठी में पकड़कर मरोड़ते हुई लण्ड को गले तक अंदर करने लगती है, उसे साँस लेने में दुश्वार हो रही थी, मगर वो जीशान को ये नहीं कह रही थी कि मेरा गला छोड़े, बल्की इसके खिलाफ वो और अंदर तक घुटि साँसों के साथ लण्ड को मुँह में लिए जा रही थी। 

आंडो के मरोड़े जाने से जीशान को मीठा-मीठा दर्द होने लगता है और वो रज़िया का गला छोड़कर अपने लण्ड को थोड़ी देर के लिए बाहर निकाल लेता है 

फूली हुई साँसों के साथ रज़िया जीशान की आँखों में देखने लगती है। लण्ड का पानी और मुँह से निकलता थूक रज़िया की चुची पर गिरने लगता है। रज़िया मुश्कुराती हुई जीशान और सोफिया को देखने लगती है। सोफिया के जिस्म में भी अपनी अम्मी की तरह जोश बढ़ने लगा था। बस उसे चिंगारी की ज़रूरत थी और वो चिंगारी जीशान नहीं बल्की रज़िया लगा देती है। वो सोफिया का हाथ पकड़कर उसे नीचे अपने पास बैठा लेती है। 
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05-19-2019, 01:47 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
फूली हुई साँसों के साथ रज़िया जीशान की आँखों में देखने लगती है। लण्ड का पानी और मुँह से निकलता थूक रज़िया की चुची पर गिरने लगता है। रज़िया मुश्कुराती हुई जीशान और सोफिया को देखने लगती है। सोफिया के जिस्म में भी अपनी अम्मी की तरह जोश बढ़ने लगा था। बस उसे चिंगारी की ज़रूरत थी और वो चिंगारी जीशान नहीं बल्की रज़िया लगा देती है। वो सोफिया का हाथ पकड़कर उसे नीचे अपने पास बैठा लेती है। 

सोफिया-अम्मी। 

रज़िया-“जब जीशान को अपना शौहर बना ही चुकी है तो, सोफिया तू मुझे भी बता कि तू मेरे जीशान के लायक है भी या नहीं ? तू अपने अब्बू की औलाद है भी या नहीं ? मैं भी तो देखूं ऐसा क्या दिखाई दिया जीशान को तुझमें जो उसने तुझे अपनी बेगम बनानै का फैसला किया है?” 

सोफिया ये सुनते ही सामने लटकते हुये जीशान के लण्ड को अपनी मुट्ठी में जकड़ लेती है-“आपको क्या लगता है सिर्फ़ आप ही इस घर में वो हेड औरत है जो सब कुछ कर सकती हैं? मैं भी आप की बेटी हूँ , अमन ख़ान की बेटी , आप दोनों का खून मेरी रगों में दौड़ रहा है…” ये कहती हुई वो जीशान के लण्ड को मुँह में खींच लेती है। 

सोफिया अपनी अम्मी से बुरी तरह जीशान के लण्ड को मुँह में खींचते हुई चाट रही थी। कभी-कभी वो अपने दाँतू भी लण्ड में गड़ा देती जिससे जीशान को दर्द होने लगता, और वो उसके मुँह पर थप्पड़ जड़ देता है। 

जीशान-“आह्ह… साली दर्द होता है ना…” 

सोफिया-“मुझे नहीं पता, सब कुछ मेरा है और मैं इसके साथ जो चाहूं वो करूँ। खबरदार जो मेरे और इसके बीच में बोले तो… गलपप्प-गलपप्प…” 

रज़िया आँखें फाड़े अपने बेटी को और जीशान के लण्ड को देखने लगती है। हालात ही कुछ ऐसे पैदा हो गये थे कि माँ-बेटी के बीच में एक तरह से कंप्टिशन सा पैदा हो गया था मगर इस सबका फायेदा जीशान को होने वाला था। 

जीशान लण्ड को सोफिया के मुँह में से निकालकर बेड पर लेट जाता है और सामने खड़ी दोनों औरतों को देखने लगता है। 

रज़िया सोफिया की तरफ देखती है। 

जीशान-“खड़ी क्या हो? चलो दोनों एक दूसरे के कपड़े उतारो…” 

रज़िया अपने शौहर की बात सुनते ही सोफिया की कमीज की जिप खोलने लगती है और सोफिया भी रज़िया की शलवार उतारने लगती है। देखते ही देखते दोनों सिर्फ़ पैंट और ब्रा में रह जाती हैं। दोनों बुरी तरह शरमा रही थी, मगर कोई तो बात थी जो उनके जिस्म में सरसराहट और जोश पैदा किए हुये थी। 

जीशान-“सोफिया अपनी अम्मी की पैंटी में हाथ डाल, और रज़िया तुम सोफिया के पैंट में हाथ डालो…” 

दोनों माँ-बेटी एक दूसरे को देखती हुई काँपते हाथों से एक दूसरे की पैंटी में हाथ डाल देती हैं। रज़िया कई बार अनुम के साथ नंगी सो चुकी थी मगर सोफिया के लिए अपनी माँ की चूत को सहलाना, उस चूत को जिससे वो 20 साल पहले बाहर निकली थी, एक नया एहसास था। 

सोफिया अपनी आँखें बंद कर लेती है और अपनी दो उंगलियाँ रज़िया की चूत के अंदर घुसा देती है। 

रज़िया ‘उन्ह’ एक दिल की सिसकी होंठों से बयान हो जाती है। अपने जज़्बात को कितनी देर से काबू में रखने वाली रज़िया का सबर भी झलक पड़ता है और वो अपनी बेटी के होंठों पर अपने मखमली होंठ लगाकर अपनी उंगली को सोफिया की चूत के अंदर तक, जहाँ सिर्फ़ अमन पहुँच पाया था, डाल देती है। दोनों एक दूसरे से चिपक जाती हैं, और एक दूसरे की चूत में उंगली करती हुई होंठों में होंठ फँसाकर लार पीने लगती हैं गलपप्प-गलपप्प। 

सामने लेटा जीशान दोनों को देखकर मुश्कुराने लगता है अपने हाथ में लण्ड को सहलाते हुए वो दोनों को आवाज़ देता है-“बेगम इधर आओ अपने शौहर के पास…” 

दोनों एक दूसरे से अलग होकर जीशान की तरफ चली आती हैं। दोनों जीशान के बिल्कुल पास आकर बैठी हुई थीं। जीशान पहले रज़िया की और फिर सोफिया की ब्रा निकाल देता है, और दोनों को अपने ऊपर झुकाकर दोनों के होंठों को चूमने लगता है। 

सोफिया नीचे सरकती चली जाती है, और अपने महबूब के लण्ड को दुबारा अपने मुँह में लेकर फिर से चूसने लगती है। 

जीशान का लण्ड पूरी तरह से तन चुका था उससे और बर्दाश्त नहीं होता। वो सोफिया को लेटा देता है और उसके निपल्स को मुँह में लेकर चूमने लगता है-गलपप्प-गलपप्प। 

सोफिया-“आह्ह… जीशान शुउउउ उन्ह…” 

जीशान-“मुझे इनसे दूध भी पीना है सोफिया गलपप्प-गलपप्प…” 

सोफिया-“आह्ह… पिलाऊूँगी ना जब आपका बच्चा मैं आपके गोद में दूँगी उसके बाद। अम्मी जीई…” 

जीशान दोनों हाथों में सोफिया की चुचियों को लेकर चूसने लगता है, 

पास में बैठी रज़िया जीशान के लण्ड को अपने मुँह में लेकर चूमने चाटने लगती है दोनों माँ-बेटी उस व्क़्त तक ये भूल चुकी थी कि उनके बीच रिश्ता क्या है? 

जीशान नीचे सरकती हुई सोफिया के दोनों पैरों को खोल देता है। आज पहली बार वो सोफिया की चूत देख रहा था। गुलाबी होंठों वाली सोफिया की चिकनी चूत को देखकर जीशान के मुँह से राल टपकने लगती है और वो सोफिया की चूत पर थोड़ा सा लार गिराकर अपनी जीभ से उसे चाटने लगता है। 

अपनी चूत के दाने पर गरम-गरम जीशान की जुबान को महसूस करके सोफिया चीख पड़ती है-“अम्मी जीई उन्ह भैया आह्ह… जीशान शुउउउ नहीं िहाीं नहीं आह्ह…” 

जीशान अपनी जुबान को अंदर तक डाल देता है और चूत की क्लोटॉरिस को दाँतों से काटते हुये चाटने लगता है गलपप्प-गलपप्प। 

इधर रज़िया के मुँह में भी जीशान के गाढ़े-गाढ़े पानी के कतरे गिरने लगते हैं 

सोफिया चीख पड़ती है। चूत की आग दिमाग़ में चढ़ने लगी थी-“भाई जीशान चोदो मुझे… बना लो हमेशा-हमेशा के लिए अपनी दुल्हन आह्ह… डालो ना जीई भर दो अपने पानी से मेरी चूत को आह्ह…” 

जीशान सोफिया की दोनों टाँगों को इस हद तक खोल देता है कि दोनों पैर एक दूसरे के अपोजिट डाइरेक्सन में आ जाते हैं। ठीक उसी वक्त रज़िया अपने होंठ सोफिया के होंठों पर लगाकर उसे जीशान के पानी से सराबोर करने लगती है। 

जीशान दोनों हाथों में सोफिया की चुची को लेकर धीरे से अपने लण्ड का सुपाड़ा अपनी बहन की चूत में डाल देता है। एक सकून सोफिया के चेहरे पर उतर आता है, कितने दिनों से प्यासी थी ये चूत , आज अपने भाई से मिलने के बाद इसे सकून मिला था। 

सोफिया अपनी बाहें खोल देती है और जीशान उसपर झुकता चला जाता है, अपने लण्ड को चूत की गहराईयों में उतारते हुये वो लंबे-लंबे झटके अंदर की तरफ देने लगता है, और धक्के के साथ सोफिया भी अपनी कमर को ऊपर की तरफ उठाती चली जाती है। 
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05-19-2019, 01:47 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
रज़िया अपनी बेटी की इस तरह से चुदाई से खुद भी भड़क उठती है। वो बार-बार सोफिया की चूत से जीशान का लण्ड निकालकर उसे मुँह में लेकर गीला करने लगती है और दुबारा सोफिया की चूत में डालने लगती है। 

सोफिया-“आह्ह… अम्मी ऐसा मत करो ना मुझे अंदर तक चाहिए आह्ह… जीशान रुको मत करते जाओ आह्ह…” 

जीशान का लण्ड मोटा होने की वजह से सोफिया की चूत की दीवारें उसे पहले-पहले संभाल नहीं पाती , मगर जीशान की ताकत के आगे वो भी हार मान लेती हैं और सोफिया की चूत काफी हद तक खुल जाती है। 

आज बेटी अपने भाई से अम्मी के सामने चुदाई कर रही थी। ये बात तीनों के लिए नई थी, और यही वजह थी कि तीनों इस आग में जलते चले जा रहे थे। 

सोफिया-“अजी जी… आराम से, आराम से ना… आह्ह… आह्ह…” 

जीशान-“क्या करूँ मेरी जान? बहुत तरसाया ना तूने मुझे, अब हाथ आई है तो कैसे आराम से करूँ बोल? आह्ह…” 

सोफिया अपने नाखून जीशान की पीठ में गड़ा देती है और जोर से कमर को ऊपर की तरफ उठाकर झड़ने लगती है-“जीशान उउउ मेरी चूत में झरना आह्ह…” सोफिया बहुत जल्दी मंज़िल के करीब पहुँच गई थी। 

मगर जीशान अभी बहुत दूर था। चिकनी चूत से लण्ड उसे बाहर निकालना पड़ता है, क्योंकी सोफिया निढाल सी हो गई थी। 

रज़िया अपने हाथ में जीशान का औजार पकड़ लेती है-“बेटी तो थक गई, देखते है अम्मी को थका पाते हो कि नहीं ?” 

जीशान मुस्कुराता हुआ रज़िया की कमर पर थप्पड़ मार देता है और उसे डोगी स्टाइल में झुकाकर उसकी चूत ड़ों की दरार में अपना लण्ड घिसने लगता है। 

रज़िया-“आह्ह…” करके अपने दाँतों से जीशान के गाल को काटने लगती है। वो जानती थी कि जीशान क्या करने वाला है, और जीशान वही करता है। अपने लण्ड को रज़िया की नरम बड़े गाण्ड के सुराख पर रख कर वो सट करके अंदर की तरफ झटका देता है। 

रज़िया पीछे से लेने की शौकीन थी। अमन से भी ज़िद करके वो पहले पीछे के दरवाजे पर दस्तक करवाती थी। आज जीशान ने उसके दिल की मुराद पूरी कर दिया था। 

रज़िया-“आह्ह… मेरे लाल मुझे पता था कि तुम उन्ह…” 

जीशान-क्या? क्या पता था रानी? 

रज़िया-“उन्न्ह … न्ह आह्ह…” वो बोल है नहीं पाती क्योंकी जीशान के धक्के उसे कुछ बोलने ही नहीं देते। रज़िया की गाण्ड का सुराख फैलते चला जाता है। वो अपनी कमर को जीशान के लण्ड की तरफ बढ़ाती है और जीशान पीछे से उसकी गाण्ड में अपना लण्ड डालता चला जाता है। 

तभी बाहर दरवाजे पर किसी केी दस्तक होती है और जीशान के साथ रज़िया और सोफिया भी घबरा जाते हैं। पच्च की आवाज़ के साथ जीशान का लण्ड रज़िया की गाण्ड से बाहर निकल जाता है। 

अनुम-दरवाजा खोलो जल्दी से। 

तीनों डर के मारे अपने-अपने कपड़े पहनने लगते हैं, और थोड़ी देर बाद रज़िया दरवाजा खोलती है। 

अनुम अंदर आती है, एक जोरदार थप्पड़ सोफिया के और एक जीशान के मुँह पर जड़ देती है-“सोफिया अपने रूम में जाओ जल्दी …” 

सोफिया काँपती हुई वहाँ से अपने रूम में भाग जाती है। 

अनुम दरवाजा बंद करती है और जीशान के पास आकर एक और थप्पड़ उसके मुँह पर रख देती है-“कम्बख़्त इंसान मैं पानी पीने उठी तो इस रूम से आवाज़ें सुनाई दी । पता चला दादी पोते मिलकर बहन के साथ ये सब कर रहे हैं। मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी। अम्मी तुम भी…” 

जीशान की आँखों में आँसू तैर जाते हैं। 

अनुम-“तुमने मेरा यकीन मेरा भरोसा तोड़ दिया जीशान। मैं तुम्हें क्या बनाना चाहती थी और तुम अपने अब्बू के रास्ते पर चल निकले। मुझे घिन आती है तुमसे और तुम सबसे…” अनुम अपना हाथ जीशान के सिर पर रख देती है-“आज के बाद मैं तुझसे बात नहीं करूँगी और ना तू मुझसे करना जीशान…” ये कहती हुई अनुम वहाँ से चली जाती है। 

जीशान और रज़िया उसे देखते रह जाते है। 

अनुम के जाने के बाद रज़िया के रूम में खामोशी सी छा जाती है। जीशान भीगी पलकों से रज़िया की तरफ देखने लगता है। उस हालत में रज़िया ही थी जो जीशान को संभाल सकती थी। रज़िया रूम का दरवाजा बंद कर देती है, और जीशान की आँखों में आँखें डालकर अपने नाइटी निकाल देती है। 

जीशान अभी भी अपनी अम्मी के थप्पड़ की गूँज से बाहर नहीं निकला था। सामने हुश्न की मलिका खड़ी थी, मगर वो खामोश था। 

रज़िया जीशान के पास आती है और अपनी बाहें उसके गले में डालकर जीशान के होंठों को चूम लेती है-

“जीशान मेरी जान, तुम्हारी आँखों में आँसू नहीं जान मेरी , तुम ख़ान की औलाद हो एक पठान का बच्चा रोता नहीं रुला देता है…” 

जीशान-“पर अम्मी ने सब…” 

रज़िया अपनी उंगली जीशान के होंठों पर रख कर उसे खामोश करवा देती है-
“अम्मी है ना वो तेरी । जब तुम इस रास्ते पर चल निकले हो तो एक बात याद रखो जीशान , यहाँ कोई रिश्ता सगा नहीं होता। बस एक चीज दिखाई देनी चाहिए तुम्हें। ये अमन विला और यहाँ की सभी औरतें जो सिर्फ़ तुम्हारी बन सकती हैं, अगर तुम उन्हें उनकी औकात दिखा दो। तुम वो मर्द हो इस घर के जिसके सामने मैं क्या अनुम भी कुछ नहीं । अपनी ताकत को पहचानो और जीत लो अपनी अम्मी को, जिस तरह तुमने मुझे जीता है, सोफिया को जीता है। अगर तुम अनुम का दिल जितने में कामयाब हो गये तो यकीन मानो तुम अपने आपको उन लोगों में पाओगे जो सबसे खुशनसीब होते हैं। अपनी अम्मी के साथ जिस रात तुम हमबिस्तर होगे, जीशान वो रात तुम कभी नहीं भूल पाओगे। मगर एक बात याद रखना, अनुम को जीतना इतना आसान नहीं और अपने अब्बू की तरह जोर जबरदस्ती मत करना। क्योंकी जोर जबरदस्ती से औरत का जिस्म तो मिल जाता है, मगर रूह से रूह का मिलन नहीं हो पाता …” 

जीशान मुश्कुरा देता है-“आपका और मेरा मिलन जिस्म का है या पाता का?” 

रज़िया अपने होंठों की गर्मी से जीशान को जवाब देने लगती है-“अब इस जिस्म से लेकर पाता तक बस मेरा जीशान है बसा है रज़िया में…” 

जीशान अपनी रज़िया को गोद में उठाकर बेड पर ले जाता है-“जब ऐसी बात है रज्जो तो तुम देखोगी कि इस घर की हर औरत, हर लड़की कल से मेरी गुलाम होगी। मैं उन्हें जहाँ कहूँ गा वो वहीं अपने कपड़े उतारेन्गी और वहीं अपनी दोनों टाँगे भी खोलेंगी । एक दिन मैं तुम दोनों माँ-बेटी को एक साथ एक बिस्तर पर पूरी नंगी करके ऐसे चोदुन्गा के अम्मी की चीखें पूरे अमन विला में गूंजेंगी …” 

रज़िया-“हाँ मेरी जान… मैं भी वो दिन देखना चाहती हूँ …” रज़िया जीशान की पैंट को उतारकर जिस्म से अलग कर देती है, और झूलता हुआ जीशान का लण्ड अपने हाथ में लेकर हिलाने लगती है। 

जीशान रज़िया के बाल पकड़ लेता है-“हिलाती क्या है, मुँह में ले इसे…” 

रज़िया-“लण्ड को मुँह में घुसा लेती है गलपप्प-गलपप्प…” 

जीशान रज़िया के मुँह को देखने लगता है। उसे उस वक्त रज़िया पर बहुत प्यार आ रहा था। अपनी रज़िया की बातें जीशान के कानों में गूँज रह थीं, उसके लण्ड में खिंचाव आने लगता है। रज़िया इस अदा से लण्ड को अपने मुँह में लेकर चूसती थी कि बूढ़ा लण्ड भी जवानी की दुआ माँगता था। 

जीशान रज़िया को फिर से उल्टा कर देता है, और दो तीन थप्पड़ रज़िया के चूत ड़ों पर मारके उसे लाल कर देता है। 

रज़िया-“आह्ह… बड़ा जालिम है रे तू जीशान … अपनी अम्मी का गुस्सा मुझ पर निकाल रहा है…” 

जीशान-“गुस्सा अब निकलेगा रज्जो, जब मेरा लौड़ा तुम्हारी चूत के अंदर दहाड़ेगा…” कहकर रज़िया के दोनों पैरों को पूरी तरह खोलकर पीछे से जीशान अपने लण्ड को हाथ में लेकर रज़िया की चूत पर घिसने लगता है और दन्न देने से उसे रज़िया की चूत के गहराईयों में उतार देता है। 

रज़िया-“उन्ह आह्ह… ये वो लौड़ा है मेरे घर का, जिससे नया खून वजूद में आएगा और जो एक नया अमन विला बनाएगा आह्ह… चोदो मेरे मालिक अपनी गुलाम बीवी को आह्ह…” रज़िया की आवाज़ बाहर तक सुनाई दे रही थी। 
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05-19-2019, 01:47 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
अनुम अपने रूम में लेटी हुई थी उसे नींद नहीं आ रही थी वो उठकर जीशान के रूम में चली जाती है ये देखने कि वो सोया है या नहीं ? मगर जीशान को रूम में ना पाकर वो परेशान से हो जाती है, और रज़िया के रूम के पास आते ही उसके पैर वहीं दरवाजा के बाहर रुक जाते हैं। अंदर से वही सिसकियों की आवाज़ें आ रही थीं, जो कभी उसके मुँह से निकला करती थीं, जब अमन उसे बुरी तरह नीचे कुचलता हुआ चोदता था। अपने दिल की धड़कनों को संभालती हुई वो बिना कुछ बोले फिर से अपने रूम में आकर सोने की कोशिश करने लगती है। मगर उसकी हर कोशिश नाकाम रहती है। 

रात के तकरीबन 3:00 बजे जब रज़िया की चूत में एक बार और गाण्ड में एक बार पानी निकालने के बाद जीशान अपने रूम में सोने के लिए जाता है तो उसे अनुम के रूम की लाइट ओन दिखाई देती है। उसे हैरानी होते है और वो उसके रूम में चला जाता है। 

अनुम खिड़की से बाहर देख रही थी। 


जीशान-अम्मी। 

अनुम कुछ नहीं कहती ना अपनी नजरें जीशान की नजरों से मिलाती है। 

जीशान रूम के अंदर चला जाता है, और पीछे से अनुम के कंधे पर अपना हाथ रखने लगता है। अनुम उसका हाथ झटक देती है और थोड़ा आगे बढ़ जाती है। वो अब भी खामोश थी। 

जीशान-एक बार मेरी बात तो सुन लो। 

अनुम-मेरे रूम से बाहर निकल जाओ अभी के अभी। 

जीशान अनुम का हाथ पकड़कर उसे बेड पर बैठा देता है और खुद उसके कदमों में नीचे बैठ जाता है-“मेरी बात सुनो पहले एक बार, उसके बाद मैं कभी भी आपसे बात नहीं करूँगा और ना v आपको परेशान करूँगा…” 

अनुम अपनी आँखें बंद कर लेती है। जीशान अनुम का हाथ अपने हाथ में लेने लगता है। 

मगर अनुम उसे भी झटक देती है-“जो बोलना है बोलो और दफा हो जाओ यहाँ से कमीने इंसान…” 

जीशान-“ठीक है। हाँ हाँ मैं कमीना हूँ । बदजात भी कह सकती हो आप मुझे। मगर आप जानती हो मैं ऐसा क्यों हूँ ? आपकी वजह से। जी हाँ आपकी वजह से। देखो मुझे, क्या मैं अब्बू की तरह नहीं दिखता? क्या मेरा जिस्म भी अब्बू की तरह नहीं है? मेरा भी वही खून है जो अब्बू का था। अगर आप अब्बू से शादी नहीं करते, अगर आप उनसे मोहब्बत नहीं करते, अगर आप वो सब नहीं करते अब्बू के साथ जो एक बहन को अपने भाई के साथ नहीं करना चाहिए तो क्या मैं वजूद में आता? अगर मैं दुनियाँ में हूँ तो आप दोनों की वजह से। मैं आपको गुनहगार नहीं कह रहा अम्मी। बल्की मैं आपकी और अब्बू की मोहब्बत की बहुत इज़्ज़त करता हूँ । आपने अब्बू से मोहब्बत की, उनसे शादी भी की, अपने रिश्ते को एक नाम दिया, अपनी मोहब्बत को अंजाम तक पहुँचाया आपने। वही मोहब्बत मुझे भी आपसे है, उसी जज़्बे के साथ। ये सिर्फ़ जिस्म की मोहब्बत नहीं , रूह की है। अम्मी मैं आपसे दिल की गहराईयों से मोहब्बत करता हूँ । अब्बू जब तक आपकी जिंदगी में थे, मुझे सकून था कि आप खुश हैं। अब्बू आपको वो सब दे रहे थे जिसकी आपको ज़रूरत है। आप उनके साथ बहुत खुश थी। तब तक मैंने अपनी मोहब्बत अपने जज़्बात को आपके सामने जाहिर नहीं किया। मगर अब आप खुश नहीं है, अम्मी आपको तवज्जो की ज़रूरत है। आप वो शख्सियत हैं जिसे दिन रात भी मैं देखता रहूं तो मेरे देखने के चाह पूरी ना हो। आप खुश कितनी अच्छी लगती हो। आप मुश्कुराती हो तो मुझे ये दुनियाँ हसीन लगती है, और जब आप नाराज रहती हो तो यही दुनियाँ मुझे जहन्नुम सी लगती है। मैं आपसे कुछ नहीं चाहता। मैं ये भी नहीं कहता आपसे कि जितनी मोहब्बत मैं आपसे करता हूँ , आप भी मुझसे करो। बस मैं ये चाहता हूँ कि अपने दिल के किसी कोने में मुझे भी जगह दे दो…” 

अनुम-“बोल दिया जो बोलना था अब मेरी सुन। मैं खुश हूँ , बहुत खुश हूँ समझा? और एक बात और सुन ले। अपनी हवस को अपनी हमददी का नाम मत दे। तुझे अम्मी के साथ जो करना है वो कर, मगर तूने नग़मा और लुबना की तरफ अपनी गंदी नजर डालने की कोशिश भी किया ना तो मैं तुझे संभलने का मौका तक नहीं दूँगी जीशान ख़ान…” 

जीशान हँस देता है-“नग़मा और लुबना आह्ह्ह… अब मैं आपको क्या बताऊँ वो दोनों कब से बेताब हैं मुझे अपने ऊपर सुलाने के लिये…” 

अनुम तमाचा जड़ देती है। 

जीशान-“शुक्रिया। चलिए इसी बहाने आपने मुझे छुआ तो सही …” कहकर वो खड़ा हो जाता है-“आपने मेरे सिर पर हाथ रख कर कुछ देर पहले एक कसम खाई थी कि आप मुझसे बात नहीं करेंगी, वो कसम भी मैंने तुड़वा दिया। मगर मैं एक कसम खाता हूँ कि मैं आपको मजबूर भी नहीं करूँगा, आपके साथ जबरदस्ती भी नहीं करूँगा, और एक दिन आपको हमेशा-हमेशा के लिए अपनी दुल्हन बना लूँगा अम्मी जान…” और वो अनुम की आँखों में अपनी छाप छोड़कर अपने रूम में चला जाता है। 
और अनुम उसे जाता देखती रह जाती है। 

रात भर दोनों को नींद नहीं आती जहाँ अनुम जीशान की बातें सोच-सोचकर परेशान हुई जा रही थी और अपनी बेटी और नग़मा को जीशान से दूर रखने की कोशिश सोच रही थी। वहीं जीशान लुबना और नग़मा को अपने करीब करने के बारे में प्लान बना रहा था। वो जानता था कि अनुम को हाँसिल करना है तो लुबना और नग़मा को अपना बनाना ही पड़ेगा। 

सुबह नाश्ते की टेबल पर सभी नाश्ता कर रहे थे। फ़िज़ा और कामरान सुबह ही अपने घर चले गये थे। कामरान के अब्बू घर आ चुके थे इसलिए। लुबना और जीशान हँसते हुये बातें कर रहे थे। 

वहीं सोफिया अनुम से नजरें चुराकर नाश्ता कर रही थी, मगर उसका पूरा ध्यान जीशान पर ही था। 

रज़िया नग़मा के पास बैठी चुपचाप खा रही थी। लुबना की आदत थी कि वो किसी के मुँह का पानी तक नहीं पीती थी। जबकि घर में सभी कभी ना कभी एक प्लेट में खाना खा लिया करते थे। मगर लुबना कभी दूसरे के साथ एक प्लेट में खाना भी नहीं खाया करती थी, और ये बात घर में सभी को मालूम थी। 

जीशान के सामने पानी का जग रखा हुआ था। लुबना के गिलाष में का पानी जो कुछ देर पहले नग़मा ने पी थी, फेंक के खाली ग्लास जीशान को देती है। 

लुबना-“जरा पानी दे दो ना जी…” लुबना तो बचपन से जीशान को अपना सब कुछ मान चुकी थी। मगर ये बात अभी तक किसी ने नोटिस नहीं किया था कि लुबना जीशान को नाम से या भैया नहीं बुलाती थी। 

जीशान ग्लास में पानी डालता है और अनुम की तरफ देखते हुये थोड़ा पानी पी लेता है, और बाकी का बचा हुआ पानी लुबना की तरफ बढ़ा देता है-“लो लुबना, थोड़ा पानी बचा है इसमें मेरे मुँह का पी लो…” 

लुबना जीशान की आँखों में देखती हुई बिना कुछ बोले वो बचा हुआ पानी पी लेती है। जीशान एक बार फिर से अनुम की तरफ देखता है, ये बताने के लिए कौन किसका क्या है? 

अनुम खड़ी हो जाती है-“लुब तुम फॅक्टरी चलो…” वो जीशान की तरफ देखते हुये कहती है। 

जीशान-“मैं दोपहर में आऊूँगा। पता नहीं रात में नींद नहीं हुई, थोड़ा सो जाता हूँ सिर भी बहुत दर्द कर रहा है…” 

रज़िया-“चलो जीशान , मैं सहला देती हूँ सिर तुम्हारा, रिलेक्स हो जाओगे तुम…” 

जीशान मुस्कुराता हुआ रज़िया की तरफ देखता है-“दादी सोफिया आपी बहुत अच्छे से करती हैं। चलो ना आपी…” 

सोफिया चौंकती हुई पहले जीशान को और फिर अनुम को देखने लगती है। अनुम की आँखों की तपिश वो सह नहीं पाती और अपनी पलकें नीचे झुका लेती है। 

लुबना-“ठीक है। आप सो जाओ दोपहर में लंच के बाद आ जाना। चलिए अम्मी हम चलते हैं…” और अनुम लुबना के साथ कार में बैठकर फॅक्टरी चली जाती है। 

जीशान सोफिया की तरफ देखता है। सोफिया अब थोड़ा रिलेक्स महसूस कर रही थी। नग़मा भी अपना नाश्ता ख़तम करके अपने रूम में चली जाती है। 

तभी जीशान खड़ा होता है और सोफिया को अपने गोद में उठा लेता है। 

सोफिया-“ओह्ह… क्या करते हो? नग़मा आ जाएगी…” 

जीशान उसकी माँ को-“तुम्हें क्या डर पड़ा है? किसका शौहर हूँ मैं तुम्हारा। चलो मेरा बहुत दिल कर रहा है तुम्हें दिन की रोशनी में चोदने का। 

जीशान रज़िया की तरफ देखते हुये सोफिया को अपने रूम में ले जाता है। रात की अधूरी चुदाई तो सोफिया को कल रात से परेशान कर रही थी, वो भी बेचैन थी जीशान के जुल्म सहने को। जीशान जैसे ही सोफिया को बेड पर लिटाता है। सोफिया उसे दरवाजा लाक करने के लिए कहती है। मगर जीशान उसकी बात अनसुना करके अपनी पैंट नीचे उतार देता है, और सोफिया की गर्दन पकड़कर उसे अपने लण्ड की तरफ झुकाता है। 

सोफिया अपने नाजुक हाथों में जीशान के लण्ड को पकड़ लेती है और उसे चूसने लगती है। जीशान अपनी टीशर्ट भी निकाल देता है। उसकी नजरें दरवाजे की तरफ थीं। वो जानता था कि नग़मा कभी भी अंदर आ सकती है। 

जीशान के लण्ड को खड़ा करने के बाद सोफिया जल्दी से अपने कपड़े उतार देती है और दोनों टाँगे खोलकर जीशान के सामने लेट जाती है-“आह्ह… जेशु जल्दी से पहले एक बार अंदर डाल दो… नहीं रहा जा रहा मुझसे प्लीज़्ज़…” 

जीशान मुश्कुरा देता है और अपने अंगूठे से सोफिया की चूत के दाने को सहलाने लगता है। 

सोफिया-“उन्ह… क्या करते हो जी? अंदर तक डालो ना उन्ह…” 

जीशान-पहले मुझसे एक वादा करो। 

सोफिया-कैसा वादा? 

जीशान-“वादा ये कि जब मैं कहूँ , जहाँ मैं कहूँ , वहाँ तुम्हें अपने कपड़े उतारकर इसी तरह अपने पैर खोलकर मुझसे चुदवाना होगा…” 

सोफिया-“नहीं ऐसे कैसे? मैं नहीं करती उन्ह…” 

जीशान-“तो ठीक है। अपनी शादी तक अपनी चूत को सहलाती रह। फिर उसके बाद भी यहाँ आओगी तो सब मिले गा मगर ये नहीं …” 

सोफिया झट से जीशान के लण्ड को हाथ में पकड़कर अपनी चूत के मुँह पर लगा देती है-“आह्ह… मैं वादा करती हूँ जहाँ तुम कहोगे वहाँ चुदवाउन्गी। अब तो डाल दो जान मेरी उन्ह…” 

और चिकनी चूत को छेदता हुआ जीशान का लण्ड सोफिया की चूत में चला जाता है। 

सोफिया-“आह्ह… एक महिना है आपके पास, अपनी बीवी को प्रेगनेंट कर दो। मुझे आपसे और कुछ नहीं चाहिए उन्ह…” 

जीशान-“इसके लिए तुझे हर वक्त मेरे लौड़े के नीचे होना होगा सोफी…” 

सोफिया-“आह्ह… रहूंगी , मुझे किसी का डर नहीं , अब जब आप मेरे साथ हो आह्ह… जोर-जोर से करो ना मुझे अंदर लेना अच्छा लगता है आह्ह… हाँ ऐसे ही आह्ह…” 

नग़मा अपने मुँह पर हाथ रखे दरवाजे में खड़ी थी। जब दोनों उसकी तरफ देखते हैं तो वो अपने रूम में भाग जाती है। 
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05-19-2019, 01:47 PM,
RE: Antarvasna अमन विला-एक सेक्सी दुनियाँ
जीशान सोफिया की तरफ देखता है और उससे इशारे से पूछता है-अब क्या? 

सोफिया के मुँह से बस इतना ही निकलता है-“आह्ह… चोदो मुझे उन्ह…” 

जीशान अपने लण्ड को सोफिया की चूत में अंदर डालकर उसे गोद में उठा लेता है और उसी तरह नीचे से धक्के मारता हुआ उसे बाथरूम में ले जाता है, और एक हाथ से शावर ओन कर देता है। ऊपर से गिरता हुआ गरम पानी और नीचे से लगते जोरदार धक्के सोफिया की चूत को तरबतर कर देते है। 

सोफिया गलपप्प करके अपने होंठों से जीशान के होंठों को पकड़ लेती है-“हाँ ऐसी घिसाई तो अब्बू भी ना कर सके, जब मैं उनके नीचे होती थी आह्ह… ये लौड़ा है या तलवार? छेद देता है मेरे भाई तू मुझे… अम्मीजी…” 

जीशान-“आप्पी अपकी चूत कसी हुई नहीं है। आपकी चूत को अब्बू ने खोलकर रख दिया है आह्ह… मुझे एक कसी हुई चूत दिला दो आह्ह…” 

सोफिया-“उन्ह… जीशान शउउउ मेरी चूत के होते हुये तुझे और चाहिए मेरे भाई?” 

जीशान-“हाँ आपी। नग़मा चाहिए मुझे, उसे तैयार करो शादी से पहले सुहागरात के लिये…” 

सोफिया नग़मा की बात सुनकर अपनी कमर को आगे पीछे करने लगती है। वो अभी भी जीशान की गोद में हीथी। ना जाने क्यों अपनी बहन के बारे में सोचकर उसका जिस्म काँप गया था। 

जीशान-बोलो क्या हुआ? 

सोफिया-“अमन विला तेरा है, तू मालिक है हमारा। नौकरों से क्या पूछते हो आह्ह… जो चाहिए उसे नीचे ले लो जीशान , बस अम्मी को पता ना चल सकेऽऽ…” 

जीशान सोफिया को नीचे खड़ा कर देता है और एक पैर अपने हाथ में लेकर खड़े-खड़े उसे चोदने लगता है-“अम्मी… उन्हीं के लिए तो कर रहा हूँ मैं ये सब…” 

सोफिया चौंकते हुये जीशान की तरफ देखती है-क्याऽऽ? 

जीशान-“हाँ आपी। कितना अच्छा होगा ना जब तुम सब नंगी होकर एक बिस्तर पर मेरे लौड़े को मुँह में लेकर चूसो गी अम्मी के साथ…” 

सोफिया-“जीशान मेरे भाई। ये तू क्या कह रहा है? उन्ह… वो तो मैं थी जो तेरे झाँसे में आ गई। अम्मी हम दोनों को फिर से एक साथ देख लेंगी तो जान से मार देंगी आह्ह… मेरी चूत आह्ह…” 

जीशान सोफिया को दीवार से सटा देता है और अपने लण्ड को उसकी चूत में अंदर ठूँस कर रोक देता है-“अगर ये इसी तरह रोज-रोज चाहिए शादी के बाद भी, तो नग़मा को तैयार करो जल्दी से जल्दी…” 

सोफिया-“हाँ करूँगी, बस इसे रोक मत कर अंदर डालकर आह्ह… हाँ ऐसे ही आह्ह…” 

जीशान के दनादन धक्के सोफिया की चूत से पानी की बौछार बाहर बहा देते हैं, और दोनों एक दूसरे को चूमते हुये अंदर ही अंदर झड़ने लगते हैं। थोड़े देर बाद जीशान अपना लण्ड बाहर निकाल देता है। दोनों पूरी तरह पानी में भीग चुके थे। जीशान के जिस्म से गिरता हुआ पानी उसके लण्ड से होता हुआ नीचे बह रहा था। 

सोफिया साबुन लेकर खुद के जिस्म पर और फिर जीशान के जिस्म पर लगा देती है दोनों एक दूसरे को छोड़ने को तैयार नहीं थे। अपने नाजुक हाथों से सोफिया जीशान के लण्ड को साफ करती है और उसे गौर से देखने लगती है। 

जीशान-क्या देख रह हो आपी? 

सोफिया-यही कि बेटा बाप से बड़ा कैसे हो गया? 

जीशान-“दादी और बहन की चूत के पानी से बच्चा बड़ा हो गया है आपी…” 

सोफिया-“सिर्फ़ मेरा है… गलपप्प-गलपप्प…” 

जीशान-“आह्ह… क्या कर रही हो आपी आह्ह… साली तेरा दिल नहीं भरता क्या कभी आह्ह… ओह्ह…” 

सोफिया-“नहीं मैंने कहा था ना मुझे हमेशा अपने अंदर चाहिए गलपप्प-गलपप्प…” वो जीशान के आंडो को मरोड़ती हुई लौड़े को मुँह में चूसने लगती है। आखिरकार, भाई का लण्ड था, बहन के मुँह जाने के बाद कितना देर चुप रहता? उसे झड़े हुए बस कुछ ही पल हुये थे मगर लौड़ा था की खड़ा ही रहने लगा था। 
सोफिया छोटे जीशान को अपने मुँह से अलग नहीं करती और उसे खड़ा करके ही मुँह से निकालती है। 

जीशान अपने लण्ड को हाथ में पकड़कर उसे सोफिया के गाल पर इधर-उधर मारने लगता है। 

सोफिया उसे पकड़ लेती है-“तुझे मेरी चूत खुली हुई लगती है ना? ले अब तुझे छोटा सुराख दिखाती हूँ …” ये कहती हुई सोफिया अपनी कमर जीशान की तरफ कर देती है। 

जीशान-“आपी फट ना जाए आपकी पीछे…” 

सोफिया-“फटने दे तू नहीं फाड़ेगा तो क्या खालिद फाड़ेगा आह्ह… पहले ऐसे ही ऊपर ऊपर घिसते रह… हाँ ऐसे ही आह्ह…” 

जीशान अपने दोनों हाथों में कमर को पकड़ लेता है। खूबसूरत चिकनी कमर देखकर जीशान का दिल उसमें जल्दी से जल्दी अपना औजार डालकर उसका उद्घाटन करना चाहता था। मगर सोफिया अपनी कमर इधर-उधर हिलाकर जीशान को थोड़ा तरसा रही थी। जीशान दो-तीन हल्के थप्पड़ सोफिया की कमर पर मार देता है और उसे लाल कर देता है। 

सोफिया-“आह्ह… बड़ा जालिम भाई है तू … हमेशा बहन को दर्द देता है आह्ह… मगर तेरे दर्द में भी प्यार है रे अम्म्मी जी…” उसके शब्द पूरे भी नहीं हो पाए थे कि जीशान का साँप उसकी छोटी सी बिल में घुस जाता है। 


जीशान-“अप्पीई आह्ह…” 

सोफिया-“लेना अब मेरे छोटे से सुराख को जितना खोलना है खोल दे। इस पर तेरा ही हक रहेगा हमेशा। कोई भी इसके अंदर नहीं जा पाएगा आह्ह…” 

जीशान-“आपी हमेशा मैं ही इसे मारूँगा हाँ…” 

सोफिया-“हाँ जीशान , मेरी गाण्ड सिर्फ़ तेरे लौड़े से चुदेगी अमीई आह्ह…” 

जीशान अपनी आपी को चोद रहा था और इधर नग़मा अपने ख्यालों में खोई हुई थी। वो ये तो जानती थी कि उसकी अम्मी जीशान से करवा चुकी हैं। मगर सोफिया के बारे में जानकर उसे एक तरह से झटका ज़रूर लगा था। आखिरकार, वो अमन विला के उस राज से अंजान थी जो उसे छोड़कर सभी को पता था। 
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