RE: Antarvasna kahani चुदाई का वीज़ा
थोड़ी देर बाद वो वॉश रूम से बाहर आए तो उन्होंने कपड़े पहने हुए थे.
मुझे अभी तक कंबल में लेटे देखा तो बोले “बेटी उठो कपड़े बदल लो फ्लाइट सीट कन्फर्म होगई है हमे जल्दी एरपोर्ट चलना है.
बेटी कहने पर मैने उन को नफ़रत से देखा और गुस्से में चिल्लाते हुए बोली” खबरदार अगर मुझे अब बेटी कहा बेगैरत इंसान”
अब्बा ने मेरे गुस्से का कोई असर नही लिया बल्कि वो मुस्कुराते हुए कमरे से बाहर निकल गये.
उन के जाने के बाद में ब्लंकेट लपेट कर उठ गई और शवर में जा कर अब्बा के लाए हुए दूसरे कपड़े बदल लिये.
जहाज़ में अब्बा मेरे साथ ही बैठे हुए थे. और उन की बे शर्मी की हद ये थी कि सीट पर ऐसे पुर सकून सोते हुए खर्राटे ले रहे थे जैसे कुछ हुआ ही नही.
जब कि मेरे दिल-ओ-दिमाग़ में एक तूफान बर्पा हुआ था. कि आज में अपने उस सुसर के हाथों ही बे आबरू हो चुकी थी. जिस ससुर को मैने दिल की गहराइयों से अपने बाप का मुकाम दिया था.
जब में कराची वापिस अपने ससुराल पहुँची तो अपनी सास को देखते ही में अपनी सास को बताना तो चाहती थी. कि उन के शोहर ने किस तरह होटेल के कमरे में मेरी इज़्ज़त की धज्जियाँ उड़ा दीं हैं.
मगर चाहने के बावजूद मेरी ज़ुबान ने मेरा साथ देने से इनकार कर दिया.और में अपना मुँह खोलने की बजाए उन से से लिपट कर बुरी तरह रोने लगी .
अब्बा ने मुझे रोते देखा तो अम्मी से कहने लगे कि हमारी बेटी को वीसा ना मिलने का बहुत दुख हे. इस लिए ये सारे रास्ते रोती ही रही हे.
जिस पर मैरी सास मुझे तसल्ली देने लगीं और अब्बा अपने नवासों नवासी से खेलने में मसरूफ़ हो गये.
अब्बा पूरे खानदान में एक शरीफ आदमी मशहूर थे और मुझ समेत अपनी बेटी को चादर ओढ़ने और बारीक कपड़े ना पहनने का हुकुम देते थे.
लेकिन में नही जानती थी कि नज़ाने कब से वो अपनी ही बहू की चादर उतरने का मंसूबा बनाए बैठे थे.
मेने फ़ैसला कर लिया था कि कुछ भी हो जमाल को ज़रूर बताउन्गी और मुझे तो अब अपनी सुसराल के हर मर्द से नफ़रत हो गई थी.
रात को जमाल का फ़ोन आया तो में टूट टूट कर रोने लगी और कहा कि आप के अब्बा सही आदमी नहीं हैं.
मेने सोचा अगर जमाल को एक दम सारी बात बताउन्गी तो उन पर क़यामत टूट पड़ेगी.
इस लिए में अपने शोहर से खुल कर बात करने की बजाए उन को इशारे में अपनी बात समझाना चाहती थी.
मेरी बात सुन कर जमाल हंसते हुए कहने लगे कि क्या कह दिया मेरे अब्बा ने. तो मेने फिर भी पूरी बात तफ़सील से बताने की बजाय कहा कि वो मुझे ग़लत नज़रों से देखते हैं.
मेरा इतना कहने की देर थी कि जमाल चीख उठे और मुझ पर चिल्लाते हुए बोले “ मेरे खानदान के सब लोग सही कहते थे कि खानदान से बाहर शादी ना करो,आज तुम मेरे बाप की नज़रों पर इल्ज़ाम लगा रही हो कल ये भी कह देना कि वो तुमसे सेक्स करना चाहते हैं”.
अपने शोहर को इस तरह गुस्से में आता देख कर मैने उन को अपनी पूरी कहानी बयान करने की एक और कॉसिश की तो मेरी बात स्टार्ट होते ही जमाल ने दुबारा फोन पर गुस्से में चिल्लाते हुए मुझे अपनी ज़ुबान बंद करने का कहा “आज तो ये बात कह दी है अगर फिर कभी ऐसी ज़लील बात की तो में अभी तलाक़ देने को तैयार हूँ. कल मेरी बहनों और बहनोइयों पर भी इल्ज़ाम दे देना” और धक्के में फ़ोन रख दिया.
मुझे जमाल की बातों पर ज़ररा बराबर भी अफ़सोस ना हुआ क्यों कि अपनी इज़्ज़त अपने ही सुसर के हाथों लूटने के बाद जमाल की बातों की अब क्या हैसियत थी.
में समझ गई कि एक बेटा होने के नाते जमाल अपने जाहिरे शरीफ नज़र आने वाले अब्बा के बारे में मेरी किसी बात का यकीन नही करेंगी.
इस लिए अपना बसा बसाया घर उघड़ने की बजाए इस वाकये को एक भयानक ख्वाब समझ कर भूल जाना ही मेरे लिए बहतर बात है.
इस लिए में खामोश हो गई और फिर जमाल को फ़ोन किया और माफी माँग ने लगी.
जमाल ने मेरी बात को एक ग़लती समझ कर इस शर्त पर मुझे माफ़ किया कि में दुबारा कभी उन के अब्बा पर किसी किस्म के इल्ज़ाम तराशि नही करूँगी.
हाला कि अगर मेरा शोहर ठंडे दिल से मेरी पूरी बात सुन लेता.तो शायद उन को ये अंदाज़ा हो जाता कि जिस बात को वो इल्ज़ाम तराशि कह रहे हैं वो असल में हक़ीकत है.
अपने शोहर की तरफ से इस तरह का रिक्षन आने के बाद मैने अपने दिल में पक्का फ़ैसला कर लिया था. कह में इस तरह अपनी ज़िंदगी नहीं गुज़ारुँगी.
लेकिन एक मसलिहत के तहत थोड़ी मुद्दत के लिए मैने बिल्कुल खामोशी इक्तियार कर ली.
इस की वजह ये थी. कि उन्ही दिनो मेरा भाई और मेरी अम्मी हमारे सब से बड़े भाई के पास दुबई गये हुए थे.
इस लिए में अब उन की वापसी की मुन्तिजर थी. कि ज्यूँ ही मेरा भाई और अम्मी पाकिस्तान वापिस आएँगे तो में अपना सुसराल छोड़ कर अपने मेके में अपनी अम्मी के पास चली जाउन्गी.
इसी दौरान इस्लामाबाद से वापिस के कुछ दिनो तक तो अब्बा मुझ से थोड़े दूर दूर ही रहे.
उस की वजह शायद ये हो सकती थी. कि वो फोन पर अपने बेटे जमाल की बात चीत से इस बात का अंदाज़ा लगा रहे हों गये. कि मैने अपने शोहर को उन की हरकत के मुतलक बता दिया है कि नही.
फिर जब अब्बा को अंदाज़ा हो गया कि मैने उन के बेटे जमाल से उस वाकिये के बारे में कोई बात नही की. तो उस का हॉंसला और बुलंद हो गया.
अब अब्बा का जब दिल चाहता वो रात को चोरी छुपे मेरे कमरे में घुस आते और अपनी गंदी हवस पूरी कर लेते और में एक बेजान लाश की तरह कुछ भी नही कर सकती.
मेरी नींद और उस का शोहर घर के उपर वाली मंज़िल में रिहाइश पज़ीर थे.
इस लिए वो लोग रात को एक दफ़ा उपर की मंज़िल पर जाने के बाद सुबह तक दुबारा नीचे नीचे नही आते थे.
जब कि मेरी सास अपने इलाज के लिए जो दवाई इस्तेमाल कर रही थीं. उनमे नींद की दवा शामिल होती थी.
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