Antarvasna kahani चुदासी चौकडी
10-15-2018, 10:54 PM,
#1
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चुदासी चौकडी 

मैं जगताप ..लोग मुझे जग्गू बोलते हैं भाई ..जग्गू भाई ..मेरी उम्र अभी तो सिर्फ़ 22 साल की है ... मेरे लफ़्ज़ों से आप जान गये होंगे ..मैं ज़्यादा पढ़ा लिखा नहीं ...ग़रीबी में पैदा हुआ..ग़रीबी में पला बढ़ा पर अब ग़रीबी से पीछा छुड़ाने की बहुत कोशिश कर रहा हूँ ..

आप तो जानते ही हो ग़रीब लोग कैसे अपना मन बहलाते हैं ..बस देसी दारू गले के नीचे उतारते , अपनी बीबी की टाँगें खोलते , उसकी सुखी चूत में लंड डाले और बस मन बहलाना शुरू ....साला मेरा बाप भी खूब मन बहलाता था ..शराब के नशे में ..और फकाफ़क चोद्ता था मेरी माँ की टाइट चूत और फिर हम तीनों भाई बहेन बारी बारी से उसकी शादी के 9 -9 महीने के बाद ही माँ की चूत से निकले ..इस साली दुनिया में आ गये ...आप समझ सकते हो मेरी और मेरी बहनो की उम्र में कोई खास फरक नहीं .....और मेरी माँ भी हम से सिर्फ़ 15 साल ही बड़ी है ....

माँ कसम यारो..मेरी माँ अभी भी क्या लगती है ...बोले तो एक दम झक्कास.. लंबा कद ..उभरा हुआ सीना ..भारी भारी गांद ...चर्बी का नामो निशान नहीं ... अरे चर्बी कहाँ से चढ़ेगी भाई....बेचारी दिन भर तो काम मे लगी रहती है ..घर घर झाड़ू पोंच्छा करती है , बर्तन और कपड़े धोती है ..इसी वजेह बॉडी एक दम फिट और मस्त है ..... क्या टाइट चुचियाँ हैं ....मैं तो बस मरता हूँ यारो.. अपनी माँ पर.... जान छिडकता हूँ उस पर ...ग़लत नहीं समझना भाई लोग... सारी दुनियाँ में सब से खूबसूरत लगती है ..माँ कसम बहुत हसीन .... प्यार व्यार क्या होता है मैं क्या जानू ..ये तो बड़े लोगो के लफडे हैं..मैं इतना जानता हूँ के मेरा बस चले तो अपनी माँ को फूलों की सेज़ पे बिठा दूं ...और बस आराम की जिंदगी दूं उसे.. कभी काम ना करे ..किसी की चार बातें ना सुन नी पड़े उसे..बेचारी हम भाई बहनो के लिए कितना मर मर के ख़त ती है....

मेरी बहेनें भी वोई करती हैं अब जो मेरी माँ करती है ..घर घर में काम ..दोनो अपनी माँ पर ही गयीं हैं..बस वैसी ही हसीन और मस्त ...मुझ से छोटी का नाम बिंदिया पर उसे हम बिंदु बोलते हैं और सब से छोटी सिंधु .....और माँ को क्या नाम दूं ...माँ तो माँ ही होती है ना ..

साला मेरा बाप उसे शराब के नशे में कुछ भी बोलता था ..रंडी ..मादरचोद , भोंसड़ी वाली पर उसका असली नाम जब होश में आता तभी बोलता ..जो शायद ही कभी होता ...और ऐसे समय उसे शांति बुलाता था ....

माँ बाप भी कैसे कैसे नाम रखते हैं अपने बच्चों के .मेरी .माँ का नाम शांति ..पर बेचारी की जिंदगी में कोई शांति नहीं ....

पहले दिन भर दूसरे के घरों में काम करती और रात भर अपने घर अपने शराबी मर्द (पति) का काम ....उसकी गालियाँ खाती..अपनी चूत में उसके लंड की मार झेलती .... फिर बेचारी पस्त हो कर थोड़ी देर सो जाती ....और दूसरे दिन सुबेह से फिर वोई सिलसिला ..

और मेरा बाप इसी तरह शराब पीते पीते अपने पेट की अंतड़िया जला जला कर साला दो साल पहले .. मर गया

मुझे समझ नहीं आया मैं रो-ऊँ या खुशियाँ मनाउ..???

मेरी माँ उस दिन बिल्कुल चुप थी ...किसी से कोई बात नहीं ..आँखों में कोई आँसू नहीं ..ऐसा लगा जैसे उस ने अपने मरद की जिंदगी में ही उसके लिए अपने आँसू बहा लिए थे...उसकी मौत के बाद माँ की आँखों में कुछ भी नहीं बचा था ....

उस रोज दिन भर तो माँ चुप थी....मानो कुछ हुआ नहीं ...अपने मरद की मौत पे सारी औरतें कितना रोती हैं ..तडपति हैं ..पर मेरी माँ बिल्कुल शांत थी...

पर उस रात को जब मैने उसका हाल देखा ....मैं सन्न रह गया......

उस रात मैं भी घर काफ़ी देर से आया था..घर क्या भाई लोगो...एक झोंपड़ी , इसी में हमारा सब कुछ ..बेडरूम बोलो ..ड्रॉयिंग रूम बोलो यह किचन बोलो..ऑल इन वन ....

तो घर में आते ही देखा बिंदु और सिंधु दोनो माँ के अगल बगल बैठी उस से चिपकी उसे सहला रही थी ..पूचकार रहे थे ....उसे ढाढ़स बँधा रहे थे..और माँ थी कि हिचकियाँ ले ले के रोए जा रही थी .... बस रोए ही जा रही थी ....आँसू उसकी बड़ी बड़ी आँखों से टपके जा रहे थे...

मैं भी पास आ कर बैठ गया और इशारे से दोनो बहनो से पूछा "क्या हुआ..? "

बिंदु बोली.." भाई..क्या पता ..सारा दिन तो चुप थी ..अभी हम खाना खाए..और जब आई ( माँ) लेती ..थोड़ी देर बाद अचानक उठ गयी और तब से रो रही है ... "

सिंधु ने भी उसकी हां में हां मिलाई "हां भाई ..देखो ना बस रोए ही जाती है...."

मैं माँ के सामने बैठ गया ....उसके चेहरे को अपनी हथेली में किया और पूछा..

" माँ क्या हुआ ...???बताओ ना..? "

माँ मुझे देखते ही मेरे सीने से चिपक गयीं और रोते रोते कहा

" अरे बेटा होगा क्या ..? जिसे जाना था वो तो गया ..पर इतने दिन साथ था ना...कुछ अच्छा नहीं लगता रे... आख़िर था तो मेरा आदमी .... "

मैने भी उसे अपने चौड़े सीने से लगा लिया .....( यहाँ मैं बता दूं कि मैं भी अपनी माँ पर ही गया हूँ खास कर दिखने में , लंबाई 5'11'' , चौड़ा सीना ...और बिल्कुल मजबूत और मस्क्युलर बाहें ..जिम का कमाल नहीं भाइयो..मेहनत का कमाल ...मैं भी अब कुछ कमा लेता हूँ..एक पास की बिल्डिंग में कार धुलाई करता हूँ...)

जैसे ही मेरी माँ मेरे सीने से चिपकी....मुझे बहुत सुकून मिला ..जैसे मुझे कोई ख़ज़ाना मिल गया हो....अभी तक सिर्फ़ सोचता ही था के कैसा लेगेगा अगर मैं उसे अपने सीने से लगाऊं ..आज सच में वो मेरे सीने पर थी...

उसकी बड़ी बड़ी मांसल और टाइट चुचियाँ मेरे सीने से ऐसे दबी थीं जैसे कोई गुब्बारा दबा हो ...मेरी तो सांस उपर की उपर और नीचे की नीचे रह गई ....

वो अब भी सिसक रही थी ... और उसकी छाती मेरी छाती से उपर नीचे हो रही थी ... बड़ा मज़ा आ रहा था ...

बाप के मरने का ये एक बड़ा फ़ायदा हुआ......

मैने उसके घने बालों को सहलाते हुए कहा

" क्यों रोती है मान ..तेरे मर्द ने तुझे क्या सुख दिया आज तक..जो तू ऐसे रो रही है..?? "

" तू अभी नहीं समझेगा जग्गू .... आख़िर तो वो मेरा आदमी था ना .. मेरे सर पर उसका हाथ तो था ना ..."

" अरे कैसा हाथ माँ ....जिस ने तेरे को सिर्फ़ मारा ही तो है..कभी प्यार तो नही दिया ना..." मैने ऐसा कहते हुए अपने हाथ उसकी पीठ से लगता हुआ अपने से और चिपका लिया ...

जाने माँ को क्या लगा ..उस ने भी अपने हाथ मेरी पीठ से लगाया , मुझे और भी करीब खिच लिया और रोना बंद हो गया ..पर अभी भी सिसकना चालू था ...हर सिसकी पर उसकी चुचियाँ मेरे सीने से उठती और दब्ति जाती ...

मेरा बुरा हाल हो रहा था.....मेरा लंड नीचे (8"लंबा 3"मोटा)... अकड़ता जा रहा था ..

थोड़ी देर बाद सिसकते सिसकते माँ मेरे सीने से लगे लगे ही सो गयी..जैसे माँ अपने बच्चे के गोद में ....

शायद उसकी जिंदगी में पहल्ली बार किसी मर्द के हाथों ने इतने प्यार से उसे सहलाया था ...
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