RE: Antarvasna kahani चुदासी चौकडी
मैं बड़ा हैरान था ... म्र्स केपर मुझे क्यूँ बुलाने लगी..और मा तो वहीं हैं ..फिर कोई काम होता वे मा से भी बता सकती थीं..मुझे बुलाने की क्या ज़रूरत..? और आज तक तो कभी उन्होने बुलाया नहीं ...क्या बात हो सकती है..?
हम सब वहाँ उन्हें मेम साहेब ही बोलते थे....एक दो बार मैने उन्हें देखा भी था ..बहुत सीरीयस सी लगी मुझे ..थोड़ी मोटी..भारी भारी सा बदन ...एक पंजाबी औरत की तरह ...बिल्कुल गोरी चिटी ..पर मिज़ाज़ हमेशा गर्म ही रहता ....मैं डरा डरा सा था ...
मैने फिर से भाऊ से पूछा " मेम साहेब मुझे बूला रही है..?? क्या बात है भाऊ..?"
" अब मैं क्या बताऊ रे जग्गू ..जा जल्दी जा ..देर ना करना ..वरना चील्लायेगि ..."
" अच्छा ठीक है तू चल मैं अभी के अभी आया ..कपड़े तो पहेन लूँ "
भाऊ वापस लौट गया और मैं अंदर गया..कपड़े पहेने , बाल-वाल ठीक किए और बंगले की ओर निकल पड़ा .
मेरे चेहरे पे एक उलझन, शंका, डर , परेशानी ..इन सब का मिला जुला झलक सॉफ नज़र आ रहा था ..
मैं लंबे लंबे कदमों से वहाँ पाहूंचा .
बरामदे की सीढ़ियाँ चढ़ ही रहा था के दरवाज़ा खुला और मा बाहर आई ...और मुझे देखा ..मैं परेशान सा था ...मा ने मेरे चेहरे पे हवाइयाँ उड़ते देखा और वो जोरों से हंस पड़ी ...
मुझे थोड़ा गुस्सा भी आया ..मेरी जान निकल रही है और ये हँसे जा रही है...
मा मेरे पास आई ..मेरे गालों को पूचकारते हुए कहा
" अरे..अरे तू तो बड़ा परेशान है...अरे कोई परेशानीवाली बात नही ..अंदर जा और मेम साहेब से अदब से बात करना ..और जो वो कहें हां कर देना ...ठीक है ना..? " उस के चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान थी ..मुझे कुछ समझ नहीं आया उसकी मुस्कुराहट के पीछे क्या छिपी थी ...
मैने " हां " में गर्दन हीला दी ..पर चेहरे पे उलझन कम नहीं हुई और भी बढ़ गयी ..
मा तो मुझे दिलासा देती हुई अपनी अजीब सी मुस्कान लिए आगे बढ़ गयी घर की ओर ..पर मैं और ही हैरान परेशान था ..
मेम साहेब मा से भी खबर भिजवा सकती थीं ...मेरे को ही क्यूँ बुलाया ..मैं लाख कोशिश करता रहा ..दीमाग चलाता रहा ..पर ये सवाल अभी भी मेरे सामने पहाड़ की तरह खड़ा था ...
मैने डरते डरते अपने कदम आगे बढ़ाए ..दरवाज़े के बाहर अपने चप्पल उतारे और दरवाज़ा खटखटाया ...
अंदर देखा तो वहाँ कोई नहीं था ..ड्रॉयिंग रूम खाली था ...
थोड़ी देर तक दरवाज़े पर ही खड़ा रहा ...कोई बाहर नहीं आया ..मेरी परेशानी बढ़ती जा रही थी ..एक मिनिट..दो मिनिट ..कोई नहीं ..मैने फिर से दरवाज़ा खटखटाया ...
इस बार अंदर से आवाज़ आई " कौन है ..?" बड़ी रुअब्दार और कड़क आवाज़ थी ...एक औरत की आवाज़ और इतनी रूखी ..मेरी तो जान ही निकल गयी ...मैने इस से पहले कभी भी मेम साहेब की आवाज़ नहीं सुनी थी ...पर उनका सीरीयस चेहरा ज़रूर देखा था..और ये आवाज़ उनके सीरीयस चेहरे से बिकुल मेल खा रहा था
मैने हकलाते हुए जवाब दिया " मैं हूँ जग्गू..मेम साहेब.." मेरी आवाज़ ऐसी थी ..मुझे खूद सामझ नहीं आया ये आवाज़ मेरी ही थी ...
" ओऊह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह जग्गू ..तू आ गया ...ज़रा बैठ , मैं बस आई.." इस बार आवाज़ कुछ नर्मी लिए थी...थोड़ी राहत मीली ....
मैं खड़ा ही रहा , थोड़ी देर बाद ड्रॉयिंग रूम की सीढ़ियों से चलती में साहेब नीचे उतरने लगी ...
मेरी परेशानी फिर से बढ़ गयी ...
मैं आँखें फाडे उनकी तरफ देख रहा था ..क्या यही हैं वो सीरीयस सी दिखनेवालि मेम साहेब .???
एक मोटी औरत भी इतनी खूबसूरत दिख सकती है ..आज तक मैने सोचा ना था ..
जैसे जैसे सीढ़ियों से उतरते पास आती जाती ..उनके शरीर की बनावट और खूबसूरती भी मेरे सामने उभरती जाती ...
आज तक मैने उन्हें इतने पास से कभी नहीं देखा था ...और ज़्यादा ध्यान से भी नहीं देखा था ...
उनकी हाइट एक औरत की उँचाई के हिसाब से ज़्यादा ही थी ..इस से उनका मोटापा ज़्यादा नहीं दिखता ..मांसल बाहें ...भरा भरा सीना ..लो कट कुर्ता था .....दूधिया रंग ...नाक नक्शा भी सुडौल ...गहरे पिंक लिपस्टिक ...होंठों पर खीलते हुई ...टाइट सलवार से जंघें बाहर निकलने को बेताब ....
और हल्का सा पर्फ्यूम ...
उनका ये रूप मेरी परेशानी को और भी बढ़ा दिया ....पर डर कम हो गया ...कम से कम इतना मुझे विश्वास हो गया और कुछ भी कर लें मेम साहेब ..पर इस रूप में गुस्सा तो नहीं ही करेंगी..
मैं अभी भी खड़ा ही था ..
वो पास रखे सोफे पर आ कर बैठ गयी ..और मुझे अपने पास बुलाया
" आ जग्गू बैठ ..खड़ा क्यूँ है ..? "
मेरी हिम्मत नहीं हुई उनके साथ बैठने की " नहीं मेम साहेब मैं यहीं ठीक हूँ.."
" अरे आ तो ..मैं क्या इतनी भयानक हूँ..मेरे से डर लग रहा है तेरे को..? " उन्होने हंसते हुए कहा ..
" आ जा आ पास बैठ ..तुझ से कुछ ज़रूरी बातें करनी है..तू उतनी दूर खड़ा रहेगा फिर बातें कैसी होगी..?? डरो मत ..आ जाओ.." उन्होने बड़ी प्यारी प्यारी आवाज़ में कहा..
मैं सेहम्ते हुए पास गया और उन से कुछ दूरी बनाते हुए सोफे के बिल्कुल आगे की तरफ बैठ गया ..सर सामने की तरफ ...
उन्होने समझ लिया फिलहाल मैं इस से ज़्यादा और पास नहीं आ सकता ...
उन्होने बात शुरू की
" देख जग्गू ..तुझे कार चलानी आती है ना ..?? शांति बता रही थी तू जानता है...?"
'' हां मेम साहेब ..पर मेरे पास लाइसेन्स नहीं.." मैने कार सफाई करते करते अपने एक और सफाई करनेवाले दोस्त से जो पार्ट टाइम ड्राइवरी भी करता था ..उस से कार चलाना सीख ली थी...ये मेरे लिए भी ज़रूरी था ..क्योंकि कभी कभी सफाई की कार आगे पीछे भी करनी पड़ती थी , और कभी वॉश करने के लिए पानी के नल के पास कार ले जानी पड़ती ..कार चलाना जान ने से मेरे काम में सहूलियत होती
" कोई बात नहीं जग्गू ..फिलहाल कॉंपाउंड से बहार जाने की ज़रूरत नहीं ..तू मुझे कार चलाना सीखा दे ...कॉंपाउंड के अंदर ही..बोल सीखायगा ..?? कुछ दिनों बाद मैं अपना और तेरा दोनो का साथ ही पक्का लाइसेन्स भी बनवा दूँगी..."
बात करते करते मेम साहेब मेरे करीब आ गयी ..मुझ से लघ्भग चिपकती हुई...उनके बदन की खूशबू मुझे और भी परेशान कर रही थी ..आज मेरी परेशानी कम होती नज़र ही नहीं आती ...
" हां मेम साहेब सीखा दूँगा ..." मैने धीमी आवाज़ में कहा ..
" गुड ..चलो अच्छा हुआ तुम ने हां कर दी..कल से शुरू कर दें..? मैं इतने दिनों से तेरे को देख रही हूँ..तू काम से आता है फिर हमेशा घर पर ही रहता है..और लड़कों की तरह आवारगार्दी नहीं करता ..इसलिए मैने तुझ को ही बोला ..." ऐसा कहते हुए उन्होने अपना एक हाथ मेरे कंधे पर रख दिया और उसे हल्के से दबा भी दिया ...
उनकी इस हरकत से में चौंक उठा ..और उनकी तरफ देखा ... उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान थी ..
" अरे बाबा तू इतना आगे क्यूँ बैठा है..आराम से बैठ ना ..."
" जी मैं ठीक हूँ .. " मैं ने फिर से धीमी आवाज़ में कहा ..
"खाक ठीक है..चल पीठ पीछे कर और सोफे से पीठ टीका ...दिखने में इतना लंबा चौड़ा लगता है..पर इतना डरता है ...मैं कोई खा जाऊंगी ..??" और हँसने लगी
क्रमशः…………………………………………..
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