Antarvasna kahani चुदासी चौकडी
10-15-2018, 10:57 PM,
#24
RE: Antarvasna kahani चुदासी चौकडी
12

गतान्क से आगे…………………………………….

उनकी बातें ख़तम होने से पहले ही मैं उनकी तरफ झुका..उनके जीन्स की ज़िप खोल दी ....अंदर कोई रुकावाट नहीं थी..उन्होने पैंटी नहीं पहेनी थी ..उनकी प्लॅनिंग सटीक थी ...ज़िप के अंदर का नज़ारा देखते ही मैं भी चीख उठा ... "अयाया ...उफफफफ्फ़"

उनकी फूली फूली चूत मेरी आँखों के सामने थी ...बिल्कुल शेव्ड ...गुलाबी फाँक ..बूरी तरह गीली ... दोनो होंठ अलग .. फिर भी कसी कसी ..

मैं बस देखता ही रहा ..उन्होने अपनी जीन्स अपनी चूतड़ उठा कर घूटनों तक कर दिया , टाँगें फैला दीं , चूत की फाँक बिल्कुल खुल कर मेरे सामने थी

उन्होने अपनी उंगलियों से चूत की फाँक अलग करते हुए कहा

" देख ले जग्गू ..रास्ता कैसा है ....तेरी स्टिक ठीक फिट होगी ना ..?? "

" मेम साहेब...अब बिना छूए कैसे बताऊं ..."

उन्होने झट से मेरी हथेली थामते हुए अपनी गर्म गर्म चूत की फाँक पर रख दी

और कहा " हां छू ले सहला ले ..टटोल ले , अच्छे से परख ले ...बाद में कुछ बोलना मत .."

मैने उनकी चूत अपनी हथेली से दबोच लिया ..अपनी मुट्ठी में भर लिया ...उफ्फ कितना मांसल , फूला फूला और मुलायम था .....

मेम साहेब भी चीख उठीं .." हाईईईईईईई.. उईईईईईईईईईईईई....आआआआआआः ..क्या किया रे तू ने ..." उनका पूरा बदन कांप उठा

मैं उनकी जाँघ के बीच अपना चेहरा किया और पूछा

" मेम साहेब ..मैं इन्हें अच्छे से देख सकता हूँ..? "

मेरी हथेली पहले से ही वहाँ टटोलने का काम बखूबी कर रही थी ..मेम साहेब बूरी तरह कांप रही थी ...उसकी चूत से लगातार पानी रीस रहा था

मेम साहेब ने अपनी सूस्त और नशीली आवाज़ में कहा' जग्गू पूछ मत ..बस जो करना है कर ले जल्दी ...उउईइ,,,अयाया " मेरी हथेली उनकी चूत को उंगलियों से सहलाए जा रही थी घीसती जा रही थी

मैने उनकी चूत पर अपना चेहरा झुका दिया ...मेरी सांस उनकी चूत से टकराई ...

उफफफफफ्फ़ अंदर क्या नज़ारा था ...उनकी चूत की मीठी मीठी सुगंध मेरे नाक के अंदर भर गयी ... चूत का सांकरा छेद बिल्कुल गीला गीला सा..अंदर उनकी चूत की दीवार फडक रही थी .. फक फक फक ...जैसे दिल की धड़कन ...

मुझ से रहा नहीं गया ...

मैने फिर पूछा .."मेम साहेब ....आप की चूत की सुगंध इतनी मीठी है ,उसका रस और भी मीठा होगा ..क्या मैं रस चूस लूँ..?"

उन्होने बिना कुछ बोले , फ़ौरन मेरे सर के पीछे हाथ रखते हुए मेरे मुँह को अपनी चूत पर दबा दिया ....और अपनी चूतड़ भी उपर कर दी .. बॅकरेस्ट को भी नीचे और नीचे कर दिया..अब वो करीब करीब सीधी लेटी थीं और चूतड़ उपर हो गया और चूत मेरे मुँह के सामने...

मैं उसके बगल से उसकी चूत पर टूट पड़ा ..अपने होंठों से जाकड़ लिया ..और बूरी तरह चूसने लगा ... उसके चूत का रस सीधा मेरे गले से नीचे उतर गया ..क्या स्वाद था ...नमकीन और कुछ खट्टा खट्टा सा...पूरा मुँह मेरा भर गया था ...मैने पूरे का पूरा अंदर ले लिया ...

में साहेब उछल पड़ी .उसका चूतड़ कार की सीट से उछलता और फिर धँस जाता ..जितनी बार मैं चूस्ता , उनका चूतड़ उछलता और धंसता ...

" जग्गू ठीक है ना होल ..जाएगा ना तेरा स्टिक वहाँ ..?? "

"" हां मेम साहेब ....दिखता तो है जाएगा ..पर एक बार स्टिक लगा कर ठीक से देखना होगा ना ..कहीं धोखा ना हो जाए ..."

' हां जग्गू ..फिर ऐसा कर ..चल घर चलते हैं वहाँ अच्छे से स्टिक डाल कर देख ले ..."

इस बात पर मैं तो झूम उठा ...

" हां मेम साहेब .. चलते हैं ...और आप की होल जाँचते हैं ..."

मैं फ़ौरन ड्राइविंग सीट पर वापस अच्छे से बैठ गया ..मेम साहेब बॅकरेस्ट पर अपना सर रखे आँखें बंद किए सिसकारियाँ ले रही थी..अपनी चूत की छूसा का मज़ा अभी भी उनके चेहरे पर था....

और मैं रिवर्स करता हुआ बंगले की ओर कार तेज़ी से दौड़ा दिया ....

कार मैने पोर्टिको के अंदर खड़ी की..एंजिन बंद किया और झट उतरते हुए मेम साहेब की तरफ गया ..उनका दरवाज़ा खोला ....उन्होने मेरे कंधों को थाम लिया और अपना वजन मेरे कंधों पर डालते हुए कार से बाहर आ गयी ...

बाहर आते ही उन्होने मेरी कमर के गिर्द अपना हाथ रख दिया , मुझे अपनी तरफ खिचते हुए अपने से चिपका लिया ...मैं थोड़ा झिझक रहा था..कहीं कोई देख ना ले...मैं पीछे मूड के देखा ...मेम साहेब समझ गयीं ... उन्होने मेरा हाथ पकड़ अपनी मोटी., सुडौल और मांसल कमर के गिर्द कर दिया और कहा

" डर मत जग्गू ..यहाँ कोई नहीं अभी..कोई नहीं देखेगा " और मुझे और भी करीब खिच लिया ....मैने भी उनकी कमर की गोश्त को मुट्ठी से दबाता हुआ उन से और चिपका गया ..और घर के अंदर दोनो एक दूसरे से चिपके बढ़नेलागे .उनकी कमर दबाने में मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी बड़े मुलायम गद्दे में हाथ धंसा है ..मैं और दबाता रहा ...बड़ा मज़ा आ रहा था ...ऐसा महसूस मुझे आज तक नहीं हुआ था ...

हम दोनो कमरे के अंदर आ गये थे ...

मैं तो पागल हो रहा था..मेम साहेब का पूरा जिस्म भरा भरा ..जहाँ से दबाओ ..बस मुट्ठी भर जाती उनके मुलायम और गर्म गर्म गोश्त से..उफफफफ्फ़ ...मन तो कर रहा था उनको खा जाऊं...

अंदर जाते ही मैने उन्हें सोफे पर बिठा दिया और दरवाज़ा बंद कर दिया ..

वो सोफे पर टाँगें फैलाए , अपनी पीठ सोफे पर टीकाए बैठी थी..उनके जीन्स की ज़िप अभी भी खुली ही थी ...टाँगें फैलने से उनकी चूत सॉफ नज़र आ रही थी ...मैं उनके सामने खड़ा बस उन्हें निहार रहा था....मुझे समझ नहीं आ रहा था कहाँ से शुरू करूँ ...

उन्होने मुझे देखते हुए अपने हाथ फैला दिए मानो कह रही हों " आ जा मेरी बाहों में..चूस ले , खा ले , नोच ले , निचोड़ ले मुझे..."

मैं उनकी टाँगों के बीच आ गया और उनसे लिपट गया..मेरे पॅंट की ज़िप भी खुली थी, लौडा बाहर ही था पूरी तरह तन तनाया ..मैने उनकी चूत को अपने लौडे के नीचे महसूस किया ..अपनी कमर नीचे करता हुआ उनकी चूत पर लौडा दबा दिया ..और अपनी हथेली उनकी दोनो

चूचियों पर रख मसलना शुरू कर दिया , अपने होंठ उनके भरे भरे होंठों पर लगा उन्हें जोरों से चूसना शुरू कर दिया ...

मेम साहेब आँखें बंद किए मज़े के सागर में गोते लगा रही थी ..सिसकारियाँ ले रही थी ...उनके हाथ मेरे सर पर थे और उसे अपने होंठों से और भी चिपका रही थी ..उनका मुँह पूरा खुला था ..

मेरा लौडा उनकी चूत दबाता जा रहा था , मेरी हथेलिया उनकी भारी भारी चुचियाँ दबाए जा रही थी ..पूरे का पूरा मेरी चौड़ी हथेली में भरी भरी थी ..गोल गोल मोटी चुचियाँ ..

फिर एक दम से मुझे अलग करती हुई वो उठ पड़ी सोफे से ..और मेरा हाथ पकड़ते हुए मुझे घसीट ते हुए अंदर की ओर चल पड़ी ...और ड्रॉयिंग रूम से लगे अपने बेड रूम में पलंग पर बिठा दिया ...और एक झटके में अपने कपड़े उतार दिए ..फिर मेरी तरफ बढ़ी ..मेरे शर्ट और पॅंट भी उतार दिए ...अंडरवेर अपनी उंगलियों से खिचते हुए नीचे कर दिया .मैने भी बिना देर किए उसे अपने पैरों से बाहर कर दिया..

हम दोनो एक दम नंगे एक दूसरे के सामने खड़े थे..

मैं तो बस उन्हें देखता ही रह गया ...

मेम साहेब उपर से नीचे तक बस गोलैईयों से भारी थी ...लंबा कद उनकी गोलैईयों को भद्दा होने की बजे एक बहुत सेक्सी रूप दे रहा था..मुझे ऐसा लगा उन पर टूट पडू और गोलैईयों को दबा दबा कर पीचका दूं ....उनकी भारी भारी चुचियाँ..उनका भरा भरा पेट ...मोटी मांसल जंघें..फूली फूली चूत ...गोल भरा भरा चेहरा और गुदाज़ गाल.... रस से भरे भरे होंठ ....उफफफफफफ्फ़ ..मैं देखता रहा...दूधिया रंग ...और सब से बड़ी बात थी उनका एक एक अंग कसा कसा था ..कहीं भी उम्र की मार नहीं थी ..कहीं कुछ भी ढीला नहीं था ... लगता था कभी किसी मर्द ने उन्हें रौंदा नहीं था ..निचोड़ा नहीं था ..बिल्कुल अछूती सी...

" अरे सिर्फ़ देखता ही रहेगा.. " और फिर से उन्होने अपनी टाँगें फैलाते हुए अपनी बाहें खोल दीं और खुद ही आगे बढ़ते हुए मुझे अपने से चिपका लिया ...और अपनी जांघों के बीच मेरे तननाए लौडे को जोरों से दबा दिया ..

उन्होने मुझे धकेलते हुए पलंग पर गीरा दिया और मेरे उपर चढ़ बैठी ...और मेरे लौडे को अपनी हथेलियों से दबोच लिया ...जोरों से दबाने लगी ..मानो उसे उखाड़ लेंगी और अपनी चूत में घूसेड देंगी...उफफफफ्फ़ ..मेरे लौडे के लिए इतना पागलपन ..मुझे अपनी प्ययरी बहेना सिंधु की याद आ गयी ...अभी मेम साहेब एक कम्सीन लड़की की तरह चूदासी थीं ..लौडा अपने अंदर लेने को बेताब ...

मैने उन्हें कमर से थामते हुए अपने नीचे कर दिया ..मैं भी अब उन्हें अपना खेल दिखाने को पागल हो उठा ....और टूट पड़ा उन पर ...उनकी चुचियाँ अपनी हथेलियों मे भर लिया और मथने लगा ...उन्हें आटे की तरह गूँथने लगा ...इतना मुलायम और भरा भरा ...जितना दबाओ और दब्ता ही जाता था ...कोई हद नहीं थी ...

अपने लौडे को उनकी जांघों के बीच जोरों से दबाता रहा ...लौडा बार उनके रस से सराबोर चूत पर फिसल जाता ..मैं फिर से अपनी कमर उठा उठा कर दबाता ...अपने होंठ उनके होंठों से लगा चूस्ता जाता ..चूस्ता जाता ..उनके मुँह से थूक और लार टपक रहे थे ..मैं उन्हें भी चूस चूस अंदर लेता जाता..फिर अपनी जीभ अंदर डाल दी उनके मुँह में ..उनके मुँह के अंदर घुमाता रहा अपनी जीभ ...मेम साहेब अब "हाईईईई...उईईईईई...ऊवू ...हाआँ ..हां ..अया ..आ " किए जा रही थीं..मेरी पीठ पर अपने हाथ रखे मुझे अपने से चिपका लिया था .अपनी टाँगें मेरे चूतड़ पे रख दबाती जाती ..मेरा लौडा उनकी चूत पर रगड़ता जा रहा था ...

दोनो पागल हो उठे थे...

" जग्गू ..चूस ले रे ..चाट ले रे मुझे ..उफफफ्फ़ ...आज मुझे मार डाल ..ले ले अपने अंदर ..कितने दिनों बाद आज किसी ने मुझे हाथ लगाया है..अपनी बाहों में लिया है....हा ..रे ...निचोड़ ले मुझे ....उफफफफ्फ़ ..मैं मर जाऊंगी...दबा ..दबा खूब दबा मेरी चुचियाँ ...इन्हें चूस ना ..आज तक मुझे किसी ने नहीं चूसा रे..जग्गू ..चूस ले ...मेरी भूख मीटा दे रे ..मेरा सब कुछ ले ले.....उफफफ्फ़..मैं तो तेरी हूँ रे..कैसे भी कर कुछ भी कर ...चोद डाल मुझे ...." मेम साहेब की भूख उबल पड़ी थी ...इतने दिनों तक का रुका हुआ हवस का बाँध फूट पड़ा था

मैं उन्हें खाए जा रहा था ..दबाए जा रहा था..उनके हवस की पागलपन ने मुझे भी पागल कर दिया था ..मैने अब उनकी चूचियों को अपने हाथों से दबाता हुआ अपना लौडा चूचियों के बीच कर दिया ..और चूचियों के बीच चुदाई करना चालू कर दिया ...

उफफफफफ्फ़ ...मेरा लौडा चूचियों के बीच , उनकी मोटी , मुलायम और गोल गोल चूचियों के बीच खो गया था ...मेम साहेब कराह रही थी ....कभी कभी जोरदार धक्के से लौडा चूचियों से बाहर निकलता हुआ उनके होंठों से जा लगता ...मेम साहेब उसे जीभ से चाट लेती .....उफफफ्फ़ मैं सिहर उठा था ...
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