Antarvasna kahani ज़िद (जो चाहा वो पाया)
10-06-2018, 12:59 PM,
#16
RE: Antarvasna kahani ज़िद (जो चाहा वो पाया)
मैने उसके चेहरे को फिर से दोनो हाथो से पकड़ कर ऊपर उठाया तो उसकी आँखो मे अजीब से सवाल तैर रहे थे…जो मेरी समझ से परे थे…उसने अपने दोनो हाथों से मेरी कलाईयों को पकड़ लिया और मेरे हाथों को अपने गालो से दूर हटाने की कॉसिश करते हुए पीछे होने लगी….मैने भी ज़ोर लगाया….और उसके गालो पर अपने हाथ जमाए रखे….वो पीछे होते दीवार से सट गयी…अब मे उसके बेहद करीब खड़ा था….हम दोनो एक दूसरे की आँखो मे देख रहे थे….

ना वो कुछ बोल रही थी….और ना मे…बस वो अपने हाथो से मेरी कलाईयों को पकड़े हुए अपने चेहरे से अलग करने की कॉसिश कर रही थी…जो कॉसिश अब कम होने लगी थी….मैने उसकी आँखो मे देखते हुए उसके होंठो की तरफ अपने होंठो को बढ़ाया…तो उसने मेरी आँखो मे देखते हुए ना मे सर हिला कर मना किया.. पर मे ना रुका और उसके लरज़ते हुए होंठो के ऊपर अपने होंठ रख दिए….

जैसे ही मेरे होंठो का स्पर्श उसके होंठो से हुआ…..उसका पूरा बदन थरथरा गया….वो अपने आप मे सिमटने से लगी…..उसने पूरे ज़ोर के साथ अपनी आँखे बंद कर ली…इतने ज़ोर से कि उसकी भवों पर बल पड़ गये…फिर उसने एक बार अपनी पूरी ताक़त से मेरी कलाईयों को पकड़ कर दूर करने की कॉसिश की….अपनी ताक़त लगाते हुए उसने अपने पेट को अंदर की तरफ खींच लिया…जैसे उसने नाक से एक लंबी साँस खींची हो…6-7 सेकेंड ज़ोर लगाने के बाद उसकी बाहें ढीली पड़ गयी…

मे अभी भी उसके होंठो को चूस रहा था….फिर 2-3 सेकेंड रुकने के बाद उसने फिर से नाक से साँस लेते हुए अपने पेट को अंदर की तरफ खींचा…और फिर से पूरी ताक़त के साथ मेरे हाथो को हटाने की कॉसिश की….पर इस बार भी वो नही कर पायी….कहाँ मे जो बिना किसी काम के खा-2 कर सांड़ की तरह फैल गया था….और कहाँ वो नाज़ुक सी कली….मेरे सामने उसका ज़ोर बेकार था…इश्स बार उसने अपना बदन ढीला छोड़ दिया था…उसका विरोध ख़तम हो चुका था….जैसे ही उसका विरोध ख़तम हुआ मैने उसके नीचे वाले होंठ को अपने होंठो मे भर कर चूसना शुरू कर दिया….

और उसके चेहरे से अपने हाथो को हटा कर उसके कमर पर कस लिया था…मेने कुछ देर उसके होंठो को चूसा और फिर उसके होंठो से अपने होंठो को हटाते हुए उसकी गर्दन पर अपने होंठो को रगड़ने लगा…अगले ही पल वीना एक दम से कसमसा गयी….मुझे ऐसा लगाने लगा था कि, ये चिड़िया अब मेरे जाल मे बुरी तरह फँस चुकी है…

.”अह्ह्ह्ह सीईईईई” वो एक दम से सिसक उठी….उसको गरम होता देख मे भी कुछ निश्चिंत सा हो गया था…और मैने अपनी पकड़ ढीली कर दी थी…

पर अगले ही पल उसने अपने हाथो को मेरे कंधो पर रखते हुए पूरी ताक़त के साथ दूर धकेल दिया….अगले ही पल उसे अलग हो चुका था…वो उखड़ी हुई साँसे लेते हुए मेरे तरफ देख रही थी….मे फिर से उसकी तरफ बढ़ा तो उसने अपना फेस सेल्फ़ की तरफ कर लिया…..”चले जाइए यहाँ से….” उसने थोड़ा उँची आवाज़ मे कहा….”चले जाइए…” इस बार उसकी आवाज़ मे गुस्सा भी ज़्यादा था और उँची मे ज़्यादा थी….

अब मुझे लगने लगा था कि, शायद मेने बहुत ज़्यादा जल्द बाज़ी कर दी है…”अब मेरे पास कोई और चारा नही था….मे चुप चाप किचन से बाहर निकला और ऊपर आ गया. और फिर अपने घर की छत पर चला आया….मुझे अपने जल्दबाज़ी मे उठाए हुए कदम पर अब पछतावा होने लगा था….मुझे इतनी जल्दबाज़ी नही करनी चाहिए थी….और अब मे ऊपर से डरा हुआ भी था….मैने किसी की पत्नी को सेक्शुल्ली परेशान किया था.. अगर वो ये बात कमलेश को बता देगी तो लेने के देने पड़ जाएँगे…

मे बेहद डरा हुआ था….कुछ और तो कर नही सकता था…तो सोचा जो होगा देखा जाएगा….फिर मे जो विक्रांत ने वर्क मेल मे भेजा था…उसमे बिज़ी हो गया…3 घंटे तक टाइपिंग करने के बाद मे उकता सा गया…और अपनी आँखो और उंगलियों को थोड़ी देर रेस्ट देने के लिए आराम करने के सोचने लगा….मे चेयर से उठा और बाथरूम की तरफ चला गया….जब मे बाहर पहुँचा तो मेरे नज़र बाउंड्री पर पड़ी हुई कटोरी पर पड़ी…जो एक छोटी प्लेट से ढँकी हुई थी…

और उस प्लेट के ऊपर पैसे रखे हुए थे…..मेने पैसे उठाए और पॉकेट मे डाल लिए…फिर उस प्लेट को उठा कर देखा तो, उस कटोरी मे खीर थी….यार इन औरतों की फितरत बड़ी अजीब होती है….इनको समझना सच मे बहुत मुस्किल काम है…खैर मेने उसको फिर से ढँक दिया….और वही पर छोड़ कर चला गया….बाथरूम मे हल्का होने के बाद मे अपने रूम मे आ गया…..और डोर लॉक करके बेड पर लेट गया…..शाम के 5 बजे तक सोता रहा और फिर उठ कर काम करने लगा…..



रात को मे 8 बजे घर से खाना खाने के लिए ढाबे पर चला गया….और खाना खाने के बाद मे 9 बजे वापिस आया….मे ऊपर आया और फिर से कंप्यूटर ऑन करके काम मे लग गया…दोपहर को खूब सोया था….इससलिए काम मे लग गया…अभी कुछ ही देर काम किया था कि, मुझे बाहर वीना के घर की छत से कमलेश की आवाज़ आई. मे जब उठ कर बाहर आया तो देखा कमलेश हाथ मे खाने की थाली लिए खड़ा था….

कमलेश: लीजिए भाई साहब खाना खा लीजिए…..

मे: नही कमलेश भाई मे खाना अपने दोस्त के घर से खा कर आया हूँ….

कमेल्श: क्या हो गया भाई…आज आप अहाते मे भी नही आए….

मे: वो बता तो रहा हूँ….दोस्त के यहाँ चला गया था….वही पर टाइम लग गया था…..इससलिए मैने खाना वही खा लिया…..

कमलेश: चलिए कोई बात नही….

कमलेश नीचे वापिस जाने लगा तो भी अपने रूम मे जाने लगा तभी मुझे वीना की आवाज़ आई…वो शायद सीडीयों पर ही खड़ी थी….”क्या हुआ खाना नही खाया उन्होने….” वीना की आवाज़ सुन कर मे वही रुक गया…क्योंकि मे बरामदे मे खड़ा था…इसलिए बरामदे की दीवार के कारण वो मुझे नही देख सकती थी….

कमलेश: नही वो अपने दोस्त के घर चले गये थे….वही से खा कर आए है….चल नीचे ये खाना मे ही खा लेता हूँ…और लगाने के ज़रूरत नही है…

उसके बाद दोनो नीचे चले गये….और मे अपने रूम मे आकर कंप्यूटर पर बैठ गया…..रात के 1 बजे तक मैने सारा काम निपटा कर विक्रांत को मेल कर दी थी…अगली सुबह मे 8 बजे उठा….ब्रश आज ऊपर ही कर लिया और फ्रेश होकर नहाया धोया और अपने रूम मे आकर बैठ गया....रूम के विंडोस के आगे से पर्दे हटा दिए… और मे बैठ कर वेट करने लगा….कि क्या वीना आज खाना देने ऊपर आएगी कि नही…

और मुझे ज़्यादा देर इंतजार नही करना पड़ा…वीना दीवार के पास आकर खड़ी हो गयी….उसने खाने की थाली वहाँ दीवार पर रखी और अंदर रूम की तरफ देखने लगी….क्योंकि विंडो के ग्लास से बाहर से अंदर कुछ नज़र नही आता था..इसीलिए वो मुझे नही देख पा रही थी….हां डोर खुला था….पर मे डोर के सामने नही बैठा हुआ था…वो वही खड़ी अंदर झाँक रही थी…..शायद इस कशमकश मे थी कि, वो मुझे बुलाए तो कैसे…

वो वहाँ 5 मिनिट से खड़ी थी…वो इस तरह खड़े हुए घबरा रही थी…ताकि उसको कोई देख ना ले…क्योंकि अगर देखने वाला देखता तो वो समझता कि वीना मेरे घर मे चोरी चुपके तान्क झाँक कर रही है….इसलिए मे उठ कर खुद ही बाहर आ गया…मुझे देख कर उसने अपनी नज़रे झुका ली….पर मे उसकी तरफ ना जाकर बाथरूम की तरफ बढ़ने लगा….”नाश्ता कर लीजिए….” उसने सर को झुकाए हुए कहा… मे उसकी तरफ बढ़ा….

मे: क्यों अब तुम खाना मुझे देकर क्या जतलाना चाहती हो….

वीना: जी कुछ भी नही….आप नाश्ता कर लीजिए…..

मे: मुझे नही करना नाश्ता मे बाहर से कर लूँगा….

वीना: आप अभी भी नाराज़ है….?

मे: मे क्यों नाराज़ होने लगा….नाराज़ तो अपनों से हुआ जाता है….आप तो सिर्फ़ पड़ोसी हो…और कुछ नही…

वीना: देखिए तुषार बाबू जी….हम बहुत ग़रीब लोग है…और हम ग़रीब लोगो के पास अपनी इज़्ज़त और मान मर्यादा के अलावा कुछ नही होता….मुझे पता है कि, आप को मेरा इस तरह आप पे चिल्लाना बुरा लगा होगा….पर उस समय जो मुझे सही लगा वही मैने किया….
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