Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 01:37 AM,
#3
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
जिसके खेतों में पानी जा रहा था वो भी अरुण का एक लन्गोटिया यार, जिसका नाम नीरज था, जैसे ही अरुण वहाँ पहुँचता है, उसके चचेरे भाई जो वहाँ पहले से मौजूद थे वो बोले, कि चलो तू अच्छा आ गया, मुझे कहीं काम से जाना था तो तू यहाँ रुक, में चलता हूँ और 3-4 घंटे में आता हूँ.

यहाँ अभी ये इतना क्लियर कर देना बेहतर होगा कि अरुण और उसके चचेरे भाईओं की खेती शामिल ही होती थी, उनकी ज़मीन 3 जगहों पर थी और जिसमें दो जगह ट्यूब वेल थे और एक जगह बिल्कुल गाओं के पास वाली ज़मीन कम थी इस लिए वहाँ दूसरे के साधन से सिचाई होती थी.

बॅक ऑन टॉपिक: चचेरे भाई के जाने के बाद अरुण का दोस्त नीरज जो अपने खातों में पानी दे रहा था उसके ट्यूब वेल से उसकी बेहन –

एज ~18 साल, रंग एकदम गोरा इसलिए उसका नाम भूरी था, काली-काली हिरनी जैसी प्यारी आँखें लगता था जैसे अभी कुच्छ कहेंगी, पतले सुर्ख रसीले होंठ, सुतवा नाक, गोल गोल गाल, राउंड फेस, सीने पे दो कश्मीरी सेब के आकर के चूचे एकदम कड़क उठे हुए, सपाट पेट, पतली 22 की कमर, गोल-गोल लेकिन ज़्यादा उठी हुई नही यही कोई 28-30 की गान्ड कुल मिलाकर गाओं की नॅचुरल ब्यूटी क्वीन, जिसने कभी पाउडर भी यूज़ नही किया होगा, किया कहाँ से होगा बेचारी के पास था ही नही..

अपने भाई के लिए खाना लेके आती है और सीधी अपने खातों में भाई के पास जाके उसको खाना ख़िलाकर लौटती है, तभी उसका भाई नीरज उसको बोलता है…

नीरज : भूरी, घर जा रही है…

भूरी: हां भैया…

नीरज: एक काम कर, पानी की नाली को चेक करते हुए ट्यूब वेल तक जाना, ये देखते हुए कि पानी कहीं से निकल तो नही रहा… 

भूरी- ठीक है भैया और वहीं से सीधी घर चली जाउन्गि… 

वैसे यहाँ बता दूँ… कि जहाँ तक अरुण के खेतों की हद थी वहाँ तक की नाली लगभग सिमेंटेड ही थी, फिर भी कभी कभी दूसरे बंद रास्ते ना खुल जाए इतना तो चेक करना ही पड़ता था समय-समय पर.

नीरज के खेत जहाँ पानी जा रहा था वो लगभग 250-300 मीटर दूर थे और ट्यूबिवेल का जो रूम था जिसमें मोटर ऑर पंप थे उसके पीछे की साइड उसके खेत थे, माने कि अगर कोई रूम के गेट की तरफ है तो उसके खातों से नही दिखेगा,

अरुण टेब्वेल्ल के कमरे में एक चारपाई (कॉट) पे लेटा हुआ आँखें बंद किए अपनी ही सोच में गुम था जो बातें कुच्छ देर पहले भाईओं के बीच हुई थी उनको लेकर..

इधर जैसे ही भूरी दरवाजे पे पहुँची, और उसकी नज़र अरुण पे पड़ी, तो उसकी बाछे खिल उठी, 
अरुण का सर दरवाजे की तरफ था और अपने विचारों से जुझरहा था उसने भूरी के आने की आहट तक भी नही सुनी,

अचानक जब उसकी आँखों पर किसी ने हाथ रख के बंद किया तो वो चोंक गया, लेकिन जैसे ही महसूस हुआ कि ये तो किसी लड़की के हाथ हैं तो मन ही मन गुदगुदा उठा….

अरुण ने भूरी के मुलायम हाथों के उपर जैसे ही अपने हाथ रखे, उसे महसूस हुआ कि ये तो मेरी कोई दिलरुबा ही है, 

जैसे ही उसने भूरी के हाथ पकड़ के उसे घूमके सामने करने की कोशिश की, खिलखिलाती हुई भूरी भरभरा के उसके सीने से चिपक गई…

भूरी ने अधलेटे हुए अरुण के कंधे पर अपना सर रख दिया और उसके गले में अपनी पतली-2 कोमल बाहों का हार पहना दिया, जिससे उसके सख़्त और गोल-2 इलाहाबादी अमरूद जैसे उरोज अरुण की मेहनतकश चौड़ी छाती में दबने लगे…

स्वतः ही अरुण के दोनों हाथ भूरी के कड़क और गोल-मटोल चुतड़ों पे कस गये और उसने उन्हें एक बार ज़ोर्से मसल दिया….

ससिईईईईईईईईईईईय्ाआहह…. भैय्ाआआ…. क्या करते हो….. धीरे…

क्यों साली… इतनी ज़ोर से मेरे उपर क्यों कूदी तू…. ?? अरुण उसके चुतड़ों को मसल्ते हुए बोला…

पता नही.… आपको देखते ही मुझसे क्या हो जाता है, रहा ही नही जाता…, मेरा पूरा शरीर आपके नज़दीक आते ही काँपने सा लगता है.. कहते ही वो उसका पाजामा के उपर से ही लंड पकड़ लेती है और उसे ज़ोर-ज़ोर से मसल्ने लगती है, जिससे अरुण का 7.5” लंड जो भूरी के हाथ की मुट्ठी में भी नही समाता, एकदम खड़ा डंडे की तरह कडक हो जाता है…

भूरी उसके लंड को पकड़ के सलवार के उपर से ही अपनी चूत के उपर रगड़ने लगती है और सीसीयाने लगती है…. सीईईईयाहह.. उउंम्म….भूरी की चूत लंड की रगड़ से पनियाने लगती है…

हालाँकि भूरी के मादक शरीर के स्पर्श से ही अरुण का लंड फुफ्कारने तो लगा था फिर भी उसका मन चुदाई करने के लिए नही था इस समय, क्योंकि अभी-भी उसके अंतर्मन में द्वंद चल रहा था सुबह के बार्तालाप को लेकर, इसलिए वो बोला…

भूरी छोड़ ना…. ये क्या कर रही है, पता नही., तेरा भाई खातों में पानी लगा रहा है, और यहाँ कभी भी आ सकता है….. छोड़…मुझे.. अब..

उन्नहुऊऊ.. बस एक बार करदो ना… 15 मिनट की ही तो बात है, वो अभी नही आएँगे… में अभी तो नाली चेक करके आरहि हूँ… वैसे भी उन्हें ये पता नही कि आप यहाँ हो… वो तो समझ रहे है कि ट्यूबिवेल पर स्वामी दादा ही हैं…ये कहते हुए भूरी उसका पाजामा नीचे सरकाने लगी..

चल ठीक है फिर, गेट तो बंद कर्दे, और अपने कपड़े उतार के आजा… आज तुझे जन्नत की सैर कराता हूँ.. 

भूरी उठके गेट लॉक करती है और अपनी कमीज़ और सलवार उतार के सिरहाने रख देती है, अब वो मात्र एक छोटी सी पैंटी में थी जो उसके गान्ड पे चिपकी हुई सी थी..

इधर अरुण ने भी अपने कपड़े उतार दिए थे…और खड़े होकर भूरी के चेहरे को अपने दोनों हाथों में लेकर उसके होठों पर अपने होठ रख दिए… एक छोटा सा किस किया… 

भूरी उसकी आँखों में आँखे डालके उसका लंड पकड़के मरोड़ देती है जिससे अरुण के मूह से एक आअहह सी निकल जाती है… और वो झपट के उसके होठों को फिरसे अपने मूह में भर लेता है और ज़ोर ज़ोर से उनका रस निकालने की कोशिश सी करता है…भूरी भी अपने होंठो को खोल देती है और अपनी जीभ को उसके मूह में पेवस्त कर देती है…

दोनों की ज़ुबाने एक दूसरे से कुस्ति करने लगती हैं… लगभग 4-5 मिनट के बाद अरुण उसके मूह को छोड़ भूरी के चुचकों को जकड लेता है और कड़क हाथों से उन्हें मसल देता है….

सस्सिईईईईईयाअहह…. भूरी की सिसकारी छ्छूट जाती है… 

चल अब इसे चूस…. साली… अरुण उसे दबा कर नीचे धकेलते हुए बोलता है, 

भूरी अपने पंजों के बल बैठ कर अरुण के जंग बहादुर को हाथों से मसल मसल कर उसे मुठियाने लगती है…. उसके रानीखेत के सेब जैसे सुपाडे के चीरे पर एक बूँद जैसी लगी थी जिसे भूरी बड़े अंदाज़ से अरुण की आँखों में देखती हुई अपनी जीभ के सिरे से चाट लेती है और चटकारे लेकर बोलती है, 

आआआअहह कितना मीठा है ये…..

चल अब ढंग से इसे मूह में लेके चूस पूरा…. कहते हुए अरुण उसकी चुचियों को दोनो हाथो में लेकेर मसलने लगता है..

इधर भूरी पूरी तन्मयता से अरुण के लंड को चूसने लगी…. मारे मज़े के ना चाहते हुए भी अरुण के मूह एक लंबब्बीईईईईईई सी आहह निकलती है…

ससुउुुुुुुउउ आआहह…….. भूरिया सालीइीईई, क्या मज़ा देती है तुउउउ... सच में तू लज़्बाब है… और उसके कंधों को पकड़ के उससे खड़ा करता है और फिर से उसके रसीले होठों पे टूट पड़ता है… कुच्छ देर होंठ चुसाई के बाद अरुण उसके अमरूदों का स्वाद लेने की गर्ज से उसकी गोल-गोल अमरूद के साइज़ की चुचि को मूह में पूरा भर के खिचता है और दूसरी को एक हाथ से भीचने लगता है, उसकी चुचियों की घुंडिया एकदम चिड़िया की चोंच की तरह खड़ी हो गयी थी..जिन्हें वो बड़ी बेदर्दी से अपने हाथों के अंगूठे और उंगली के बीच पकड़ कर मरोड़ देता है….

आआहह…..मुंम्म्ममिईीईईईईई…..सस्स्सिईईहहिि… ओह्ह्ह्ह… भैय्ाआ….मरररर जाउन्गी…. कुकचह करूऊ नाआआआअ प्लस्सस्स्स्सस्स….

तब अरुण उसकी चुचियों को अच्छे से सर्विस देने के बाद वो उसी चारपाई के उपर धकेल देता है और खुद उसके दोनो टाँगों के बीच आकर उसकी गान्ड से चिपकी हुई पैंटी को कमर के दोनो साइड उंगली फँसाकर निकाल देता है…. भूरी की हल्के बालों वाली “पिंकी” जो कब्से आँसू बहाए जारही थी बेचारी,, नुमाया हो जाती है, जिसे अरुण नज़र भर देखता है…. फिर अपने हाथ का जेंटल टच उसपे करता है….. भूरी मारे मज़े के आपनी टांगे भींचने की कोशिश करती है, जो अरुण के वहाँ बैठे होने की वजह से संभव नही हो पाता…

अरुण ने भूरी की टाँगों के बेंड को अपने कंधों पे सेट किया और धीरे से अपनी जीभ की नोक को उसकी पिंकी के होठों के चारों तरफ फिराया……. भूरी को लगा मानो वो आसमानों में उड़ रही है… मज़े की वजह से उसकी आँखे बंद हो जाती हैं और मूह से मीठी-मीठी सिसकारियाँ फूटने लगती है…

कुच्छ समय ऐसे ही अपनी जीभ का जेंटल टच उसकी चूत के होंठों पर देने के बाद अरुण अपनी जीभ को उसकेछेद में नीचे से भिड़ा देता है और फिर उसे मूह में भरके ज़ोर्से खींचने लगता है, साथ ही साथ अपनी मध्यमा उंगली को उसकी चूत के सुराख में ठेल कर अंदर बाहर करता है…. नतीज़ा सब जानते है…..
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