Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 01:39 AM,
#9
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
शरीर क्या? बस एक पोना-एक किलो का हल्के पीले कत्थई रंग का बहुत ही पतला सा जैसे कि कोई खिलोना हो और उसपे शरीर के अंग स्केच कर दिए हों बस…

थोड़ी देर टटोल-टटाल ने के बाद दाई को जब कोई प्रतिक्रिया बच्चे की तरफ से नही दिखी, तो उसने उसे मृत घोसित कर दिया…

कितना ही अन-चाहा गर्भ क्यों ना हो, जब एक माँ उसे 9 महीने गर्भ में रख चुकी हो और फिर उसे पता लगे कि बच्चा तो मरा पैदा हुआ है, तब उस माँ को कितना दुख होता होगा ये हम कोई भी इमॅजिन नही कर सकते, ये तो वो माँ ही बता सकती है या उसका दिल…

पद्मावती जी ये सुन कर सन्न्न.. रह गयी, हाल ही मे प्रसूति की पीड़ा झेलचुकी वो माँ अपने बच्चे को मृत हुआ सुन कर एक दर्दनाक चीख के साथ बेहोश हो गई…

उधर ये बात बाहर घर के दूसरे लोगों को पता चली, तो सभी दुखी हो गये…., 

होनी को कों टाल सकता है.., जो होना था सो तो हो गया, भगवान को शायद यही मंजूर था, और वैसे भी आदमी अपनी करनी को छिपाने के लिए भी यही बोलता है,,

ये सोचके उस बच्चे को ज़मीन में गाढ़ने के लिए मरघाट स्थल की ओर ले चले उसे एक सफेद कपड़े में लपेट कर..

गाओं से करीब 500 मीटर दूर एक छोटे से तालाब के किनारे 12 साल से छोटे बच्चों को ज़मीन में दफ़नाने की प्रथा है, सो वहाँ जाके एक छोटा सा गड्ढा करीब 5 फीट गहरा तैयार कर लिया बच्चे के लिए….

वैसे तो जानकी लाल, श्याम के जन्म के बाद से ही नही चाहते थे कि आगे उनके और कोई भी संतान पैदा हो, और उसी सोच के कारण उन्होने अपनी पत्नी को गर्भ गिराने के उपाय कराए थे… लेकिन फिर भी वो एक पिता थे और जब बच्चा धरती पर आ ही गया था तो मरा ही क्यों…??

यही बातें सोचते-सोचते, अश्रुपूर्ण आँखों से वो अपने बच्चे को लपेटे हुए कपड़े के साथ ही उस गड्ढे में रखने के लिए झुके ही थे कि बुरी तरह से चोंक पड़े और उनके रोंगटे खड़े हो गये…………….

चित्रगुप्त अपने आसान पे विराजमान थे, सफेद दूधिया वस्त्र, एकदम फक्क-सफेद लंबी दाढ़ी, जो उनके सीने को आधा ढके हुए थी, वो उस समय ब्रह्मांड व्यवस्था निर्धारण पद्यति का अध्ययन कर रहे थे जिसमें ब्रह्मांड में उपस्थित सभी जीवात्माओं का लेखा जोखा था.

एक पुष्प लाड़ित आसान पर विराजमान उनका शरीर एक ऐसे अनूठे प्रकाश से प्रकाशमान था, जिसे कोई आम इंसान अपनी साधारण आँखों से देख नही सकता. 

उनके आसान के दाई तरफ सफेद चमकीले वस्त्रों में देवदूत एक लाइन में खड़े थे, और बाई तरफ एक लाइन में काले वस्त्रों में यमदूत.

पूरा वातावर्ण, हल्के नीले सफेद पारदर्शी धुए जैसी चादर से ढका हुआ था, वाबजूद इसके सब कुच्छ साफ-साफ दिखाई दे रहा था वहाँ जो भी कुच्छ था.

अचानक चित्रगुप्त ने अपनी नज़रें उपर की, जैसे ही उनकी नज़र एक यमदूत के साथ खड़ी एक जीवात्मा पर पड़ी तो वो चोंक पड़े, और उस यमदूत से बोले..

अरे भाई ! ये जीवात्मा यहाँ क्या कर रहा है ? इसे तो हमने कुच्छ समय पुर्व मृत्यलोक में एक स्त्री के गर्भ द्वारा मानव शरीर में भेजा था…

यमदूत: श्रीमान, मुझे आदेश मिला था कि मृत्यलोक से एक जीव को लाना है, में जब उस जगह पर पहुँचा, तो वही पर वातावरण में बिचरते हुए ये मुझे वही मिल गया और में इसे पकड़ लाया… सोचा यही होगा…

अरे मूर्ख…. चित्रगुप्त गुस्से में बोले.., इसे अति शीघ्रा वापस भेजो, और फिर उस जीवात्मा से मुखातिव हुए… 

क्यों भाई, तुम्हें तो गर्भ से मानव शरीर में प्रवेश करना था, तो तुम बाहर क्यों विचरण कर रहे थे,

जीवात्मा: श्रीमान वो शरीर इतना कमजोर था कि प्रवेश करते ही मुझे उसमें घुटन सी होने लगी और में बाहर आगया…

चित्रगुप्त – अरे वाह ! अब ये तुम निर्णय करोगे ? कि किसको कैसा शरीर मिलना चाहिए…! 

देवदूत...! इसे अति शीघ्रा लेकर जाओ और उस शरीर में प्रवेश करा कर ही लौटना…! 

जल्दी करो वरना वो शरीर भी नष्ट हो जाएगा और फिर इसे लंबे वक्त तक ऐसे ही भटकना पड़ेगा.

फटाफट, देवदूत उसे लेकर प्रकाश की गति से भी तेज उड़के उस जगह पहुच गया जहाँ उसके निर्जीव शरीर को दफ़नाया जा रहा था…. 

गड्ढा खुद के तैयार था, जानकी लाल दुखी मन से रुन्धि हुई आँखों से उसके शरीर को कपड़े में लपेटे हुए गड्ढे में उतार चुके थे…

देवदूत … जीवात्मा से… ये प्राणी…, जल्दी से इस शरीर में प्रवेश कर..

जीवात्मा: आप ही देखिए श्रीमान इस शरीर को…, क्या आपको लगता है कि ये जीवन जीने लायक है..?

अरे भाई जल्दी कर वरना ये लोग इसे मिट्टी में दफ़ना देंगे और मेरी नौकरी ख़तरे में पड़ जाएगी, इतना बोलकर उस देवदूत ने अपनी कर्म-दांडिका जीवात्मा के दाहिने वक्ष के नीचे रखके एक धक्का दिया और उस शरीर में प्रवेश करा दिया…!

ये वोही समय था जब जानकी लाल अपने बेटे के निर्जीव शरीर को आख़िरी बार अपने सीने से चिपकाए उस गड्ढे में रखने के लिए झुके…

जैसे ही जीवात्मा उस शरीर में प्रवेश हुई, शरीर में मानो 440वाट का झटका लगा, बच्चे के पैर एक साथ जानकी लाल जी के कनपटी पर लगे, वो एकदम से चोंक गये, इतने में बच्चे के रोने की आवाज़ भी सुनाई दी….

मारे खुशी के उनका शरीर उत्तेजना से काँपने लगा, उन्होने जल्दी से बच्चे को बाहर खड़े अपने भतीजे यशपाल को दिया और बोले…

बेटा ये जिंदा है… जल्दी से इसका मूह बाहर निकाल…, उनकी आवाज़ खुशी से काँप रही थी, होंठ थरथरा रहे थे, 

यशपाल ने लपक के बच्चे को पकड़ा और उसका मूह कपड़े से बाहर निकाल कर सीने से चिपका लिया..बच्चा बेजार रोए जा रहा था.

लगभग भागते हुए यशपाल बच्चे को चिपकाए, घर पहुँचा और उसे अपनी ताई की गोद में डाल दिया जो इस समय अर्धमुर्छित अवस्था में पड़ी थी…

बच्चे के रुदन ने उन्हें पूरी तरह होश में ला दिया…

फिर सारी विधियाँ जो एक नवजात शिशु के होने पर होती हैं हुई..

जब बच्चे के शरीर को नहलाने के लिए उसे बड़ी सावधानी पूर्वक कपड़े से मुक्त किया, वहाँ मौजूद सभी औरतें चोंक गयी…
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