RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
प्रिन्सिपल सर और मेरे अन्य साथियों ने ताली बजा कर मेरी बात का अनुमोदन किया.. फिर प्रिन्सिपल बोले…
प्रिंसीपल- डियर स्टूडेंट्स.. ये कॅंपस आप लोगों के आने वाले भविश्य के निर्माण का एक ऐसा श्रोत है, जिसकी हम जैसी कद्र करेंगे, ये हमें वैसा ही मार्ग दर्शन देगा.
अगर हम इसे बुराईओं का अड्डा बना देंगे, तो कल को हमारे संस्थान से निकले हुए स्टूडेंट की सामाजिक प्रतिष्ठा भी धूमिल पड़ जाएगी, लोग हमें इज़्ज़त की नज़र से देखना बंद कर देंगे.
आप सबका नाम देख कर एक बार को मेरे दिमाग़ मे आया था कि अगर मुझे अपने कॉलेज को साफ-सुथरा करना है तो आप सभी को यहाँ से निकल देना चाहिए. लेकिन…
मेरे कंधे पर हाथ रखते हुए… हमें रियली प्राउड फील करना चाहिए.. कि हमारे कॉलेज में अरुण जैसा स्टूडेंट मौजूद है.
जानते हो जब मैने आप सभी को रेस्ट्रीक्ट करने का फ़ैसला किया तो इसने क्या कहा…?? सभी उनके चेहरे की तरफ उत्सुकता से देखने लगे..
इसने कहा- सर इन बच्चों की नादानियों का इनके माता-पिता को डंड देना ठीक नही है, इसमें उनकी क्या ग़लती है? बड़े अरमान सँजोके उन बेचारों ने अपने बच्चों को यहाँ भेजा है, जिनमें से कुछ तो ऐसे भी हो सकते हैं कि दो वक़्त की रोटी का साधन जुटाने में भी असमर्थ हों, लेकिन महंत मजूरी करके इन्हें यहाँ पढ़ा रहे हैं.
और फिर इसी के सुझाव को मद्दे नज़र रखते हुए ये फ़ैसला लिया कि आप सभी को एक मौका और दिया जाए तो में चाहता हूँ, कि आप सभी ये वादा करें कि आज के बाद ऐसी कोई भी ग़लत आदत में नही पड़ोगे, अगर कोई भी स्टूडेंट दुबारा ऐसा करते हुए पाया गया, तो फिर कॉलेज उसे किसी भी कीमत पर आगे नही रख पाएगा.
क्या आप सभी एक मौका और चाहते हैं ? अपने-2 हाथ खड़े करके सहमति दें.. सबने अपने हाथ खड़े कर दिए..
प्रिंसीपल- आशा करता हूँ, आप सभी मन लगा कर अपनी पढ़ाई में लगेंगे, और आनेवाले एग्ज़ॅम में अच्छा कर के दिखाएँगे, ऑल दा बेस्ट बाय्स…आंड टेक केयर…
जैसे ही प्रिन्सिपल मीटिंग हॉल से गये, हम भी उनके पीछे-2 निकालने लगे, तो सभी स्टूडेंट्स ने हमें आवाज़ दे कर रोक लिया..
हम लोग मुड़े और उन लोगों की तरफ देखा. उनमें ज़्यादातर सीनियर्स ही थे. उन सभी ने मुझे थक्स बोला और सच्चे दिल से अपनी ग़लती स्वीकार करते हुए, सुधरने का वादा किया.
कुछ एक तो मेरे पैरों में पड़ गये, और रोते हुए कहने लगे…
सच में अरुण तूने हमें बचा लिया, वरना हमारे निकाले जाने के बाद हमारे माँ-बाप शायद जिंदा नही बचते.. वो कैसे-2 करके हमें यहाँ पढ़ा रहे हैं, और हम ये नीच काम में लगे है… अपने आप पर ही घिन सी आ रही है हमें.
मे- बीती बात बिसार के आगे की सुध लो… यही रास्ते को फॉलो करो और अपनी ग़लतियों से सबक लेके आगे बढ़ते रहो, सफलता तुम्हारे कदम चूमेगी, सो प्लीज़ डॉन’ट बे शाइ आंड मूव फॉर्वर्ड…
एक महीने बाद फाइनल एग्ज़ॅम शुरू हो गये, सब उसमें बिज़ी हो गये..
एक साल कैसे बीट गया, पता ही नही चला, कुछ खट्टी-मीठी यादों के बीच कहना पड़ेगा इट वाज़ नोट बाद.
इस एक साल के कॉलेज के अनुभव ने मेरे सेल्फ़ कॉन्फिडॅन्स को और बढ़ा दिया था, बचपन से चाचा के साथ बीते मेरे दिनो की वजह से जो दिलेरी आ चुकी थी, वो आज कारगर सिद्ध हो रही थी.
एग्ज़ॅम गुजर गया, सीनियर वाले चले गये, हम सीनियर में आ गये, नये एडमिसन शुरू हुए, रगिन्ग की प्रथा फिर एक बार शुरू हुई, मेरे दोस्तों ने भी कहा, कि यार चलो किसी की रगिन्ग करते हैं, मैने मना कर दिया, कि देखो भाई, में कोई ऐसा काम नही करना चाहता जिससे किसी को कष्ट हो.
स्टूडेंट्स जो ड्रग अडिक्ट हो गये थे, वो कॉलेज छोड़ने से पहले पर्षनली मिलके गये, और मुझे उन्होने सच्चे मन से थॅंक्स कहा और आक्सेप्ट किया कि आज जो उन्हें डिग्री मिली है, वो मेरी वजह से है, वरना क्या पता वो एग्ज़ॅम दे भी पाते या नही, और देते भी तो कैसे?
उन चार लड़कों को मैने कमिटी मेंबरशिप तो दी, लेकिन उनका नाम गुप्त रखा और उन्हें सेक्रटेली काम करने के लिए कहा, जिससे इन्फर्मेशन निकालने में ज़्यादा मुश्किल पेश ना आए.
क्लासस स्टार्ट हो चुकी थी, सब अपनी-2 स्टडी मे बिज़ी हो गये.
हर हफ्ते रिंकी का लेटर मुझे मिलता रहता था, वो इंटर्मीडियेट कर चुकी थी और कोशिश में थी कि उसके पापा, आगे भी पढ़ने की पर्मीशन दे दें.
इस बीच, कुछ बाहरी असमाजिक तत्व कॅंपस में घुसने की कोशिश करते रहते थे अपने धंधे को आगे कॅंपस में फैलाने के लिए, चूँकि हमारी टीम सतर्क थी तो उन्हें चान्स नही मिल पा रहा था,
फिर भी डर तो रहता ही था, कि कभी ना कभी ये फिर पन्पेन्गे और बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करेंगे. इसका कोई पार्मानॅंट सल्यूशन तो ढूढ़ना ही पड़ेगा.
मैने इस बाबत प्रिन्सिपल सर से मुलाकात की, और उनको रिक्वेस्ट की अगर आप पोलीस का बॅक-अप सपोर्ट अगर दिला सकें तो इस समस्या का समाधान निकालने की कोशिश की जा सकती है.
उनके संबंध शहर के एसपी से अच्छे थे, उन्होने उनसे मिलने के लिए रिक्वेस्ट की, तो उन्होने हमें मिलने का समय दे दिया.
में प्रिन्सिपल के साथ एसपी ऑफीस पहुँचा, और उन्हें इस समस्या के निदान के लिए बात की.
प्रिंसीपल- एसपी साब, आपको तो ग्यात ही होगा, बीते साल हमारे कॉलेज में एक ड्रग डीलिंग का केस पकड़ा था, जिसमें 8 स्टूडेंट एन मौके पर पकड़े गये थे डीलिंग करते हुए..
एसपी- हां सर मुझे पता है, और उन आठों पर अभी भी केस चल रहा है.
प्रिंसीपल- उनको रंगे हाथों पकड़वाने का श्रेय, इस बच्चे और इसके 3 अन्य साथियों पर जाता है..
एसपी प्रशंसा भरी नज़रों से मुझे देखते हुए बोले- वेल डिड यंग मॅन.. क्या नाम है तुम्हारा…
मे- सर ! अरुण…
प्रिंसीपल- तबसे लेके आज तक, बाहरी ड्रग डीलर्स ने कई बार कोशिश की है घुसने की, लेकिन अरुण जैसे हमारे कुछ और भी स्टूडेंट्स हैं, जो इन चीज़ों पर नज़र रखे हुए हैं, और उन्हें नाकाम करते रहे हैं.
लेकिन कब तक,,? इसलिए हम चाहते हैं, कि इस बुराई का कोई स्थाई हल खोजा जाए, और इस शहर को भी इससे मुक्ति मिल सके. इसके लिए अरुण के पास एक योजना है, लेकिन वो तभी कारगर हो सकती है, जब उसमें पोलीस का सपोर्ट हो.
एसपी- श्योर सर हमारा महकमा आपकी हर संभव मदद करेगा, इनफॅक्ट हम भी इस बुराई का अंत चाहते हैं. बताओ अरुण तुम्हारी क्या योजना है ?
|