Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 01:46 AM,
#44
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
बोटेल से पानी लेके उसके मुँह पर मारा, थोड़ी देर में उसे होश आ गया, उसने हाथ पैर हिलाने की कोशिश की लेकिन कामयाबी नही मिली, फिर उसने हम लोगों को ध्यान से देखा, और बोला- 

कॉन हो तुम लोग ? और मुझे यहाँ क्यों लाए हो..? क्या चाहते हो मुझसे..?

मे- अरे! अरे! अशरफ मियाँ…. सांस तो लो यार !, हमें तुम अपना दोस्त ही समझो, बसरते हमारे कुछ सवाल हैं उनका सही-2 जबाब दो तो.

असरफ़- क्या जानना चाहते हो मुझसे…??

मे- ये जो तुम ड्रग का धंधा करते हो वो कहाँ से आता है ? मेरा मतलब तुम तो पैदा करते नही होगे तो तुम्हारे पास भी तो कहीं से आता ही होगा ना..

अशरफ- क्या करोगे जान कर..? 

मे- हम भी सोच रहे है, यही धंधा करने का.. अच्छी-ख़ासी कमाई होती होगी इसमें क्यों..?

अशरफ- तो इसके लिए मुझे उठाने की क्या ज़रूरत थी..?

मे- हमने सोचा एकांत में बैठ कर शांति से अच्छी बातें हो जाएँगी इसलिए तुम्हें यहाँ ले आए, अब हमारे दिमाग़ मे तो यही तरीका आया सो कर लिया.

अशरफ- तो यहाँ बाँध के क्यों रखा है, दोस्तों के साथ ऐसा वार्तब किया जाता है ?

मे- अरे वो तो बस ऐसे ही, हमने सोचा पता नही तुम हमें देखते ही भड़क ना जाओ, और कुछ उल्टा पुल्टा हो गया तो, बस इसलिए…! वैसे अभी तक बताया नही तुमने कहाँ से माल आता है तुम्हारे पास..

अशरफ – मुझे तुम लोगों की बात का भरोसा नही है, और वैसे भी मे तो यहाँ का बहुत छोटा सा डीलर हूँ, तो बस ऐसे ही इधर-उधर से इंतेजाम हो जाता है.

मे- लेकिन तुमने मोनू को तो बताया था, कि तुम्हारे पास बहुत बड़ा स्टॉक है, जितना चाहिए मिलेगा..!

अशरफ- वो तो बस ऐसे ही ग्राहक बनाने की ट्रिक होती है..

मे- तो इसका मतलब तुम नही बताओगे..! हमने सोचा कि यारी दोस्ती से काम निकल आए तो अच्छा है, लेकिन अब लगता है कि सीधी उंगली से गीयी नही निकलेगा.

अशरफ- क्या करना चाहते हो..? देखो मे तुम लोगों को बताए देता हूँ, आग में हाथ मत डालो,वरना जल जाओगे. तुम लोग पढ़ने लिखने वाले बच्चे लगते हो तो अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो, इन सब झमेलों में मत पडो वरना….?

मे- वरना क्या..?? वोही तो जानना चाहते हैं कि वरना है कॉन ? और रही बात पढ़ने की तो वो तुम लोग वो करने ही नही दे रहे हो, ड्रग्स की लत जो लगा दी है हम स्टूडेंट्स को.

अशरफ- म.म्म..में कुछ नही जानता, देखो म..मुझे छोड़ दो, मे वादा करता हूँ ये सब धंधे छोड़ दूँगा..अब.

मे- अरे वाह फिर तो बड़ी अच्छी बात है, हम भी तो यही चाहते हैं, तुम भी छोड़ दो और दूसरे लोगों के नाम बता दो तो उनसे भी छुड़वा देते हैं.

अशरफ- में किसी और के बारे में कुछ नही जानता..? 

मे- पक्का ! नही जानते..? धन्नु, वो कटर तो देना ज़रा…! धनंजय ने कटर निकाल के दिया.,. कटर हाथ में लेकर उसको 2-3 बार कैंची की तरह उसकी आँखों के सामने चलाया और मैने उसके पैर की एक उंगली पकड़ ली और उसकी आँखों में देखते हुए कहा…!

अशरफ मियाँ, जानते हो ये क्या है ? इससे लोहे की शीट भी ऐसे कट जाती है जैसे दर्जी कपड़ा काटता है. अब एक सवाल और उसका जबाब ! ना मिलने पर एक उंगली.

अशरफ – त्त..त्तुम्म.. मज़ाक कर रहे हो.., मेरे साथ ऐसा नही कर सकते..!

मे- अब तुम हमें सहयोग नही करोगे तो फिर कुछ तो करना पड़ेगा ना ! अब जल्दी बोलो… कहाँ से मिलता है तुम्हें माल.

अशरफ के दिमाग़ मे पता नही क्या चल रहा था, शायद वो सोच रहा था ये कल के लौन्डे पड़ने लिखने वाले ऐसा कुछ नही कर सकते, खाली-पीली धमकी दे रहे होंगे.. सो चुप रहा, 

मैने फिर उसे पुछा तो उसकी मुन्डी ना मे हिली…! और फिर “खचक”…एक उंगली शाहिद हो गयी उसकी…और उसके गले से एक दिल दहलाने वाली चीख उस तहख़ाने जैसे हॉल में गूज़्ने लगी.

वो फटी आँखों से ही-. मचलते हुए मुझे घूर रहा था…! मे बोला अब बोलो… या दूसरी का नंबर लूँ, और इतना बोलके मैने उसके एक हाथ की उंगली को पकड़ लिया..

अशरफ- बताता हूँ !!! प्लीज़ और कुछ मत करना मुझे.. और वो तोते की तरह शुरू हो गया,

इस शहर का मैं डीलर हकीम लुक्का है, बहुत ही ख़तरनाक है वो, यहाँ के बड़े-बड़े नेताओ से उसके अच्छे संबंध हैं, ऐसा कोई ताना नही है शहर में जहाँ उसके यहाँ से कमिशन ना जाता हो.

मे- गुड, अब ये बताओ, तुम्हारे पास वो पोलीस वाला आया था, उसका क्या नाम है, क्या ओहदा है, कोन्से थाने का है, और कॉन-कॉन हैं उसके साथ.

उसने बताया कि वो हमारे इलाक़े के थाने मे सब इनस्पेक्टर है, उस थाने का इंचार्ज और उसके साथ जो दो कॉन्स्टेबल आए थे वो भी हिस्सेदार हैं.

और कॉन-कॉन डीलर हैं इस शहर में.. मैने अगला सवाल किया, उसने वो भी बता दिया..

उसने उन डीलरों के भी नाम और पते बता दिए, बाइ लक अशरफ हमें ऐसा मोहरा मिल गया था जिसकी सीधे तौर पर हकीम लुक्का से डीलिंग होती थी और छोटे-मोटे डीलर उसके द्वारा ही डील करते थे, शहर में कॉन-कॉन थाना, कॉन्सा पोलीस वाला मिला हुआ था.

सारे डीटेल लेके उसे पानी पिलाया, और उसे वहीं बँधा छोड़ कर हम चलने लगे, तो वो मिमियाते हुए बोला..

देखो जो तुमने पुछा वो सब मैने बता दिया अब तो मुझे छोड़ दो..

मे- छोड़ देंगे प्यारे, हमें कॉन्सा तुम्हारा अचार डालना है? बस कुछ अर्जेंट काम निपटा कर मिलते हैं एक छोटे से ब्रेक के बाद… ओके. डॉन’ट वरी !!

अशरफ को वहीं बँधा छोड़ कर हम हॉस्टिल लौट आए, रूम में जाने से पहले, मैने धनंजय को साथ लिया और बाकी को रूम में भेज दिया, हम दोनों प्रिन्सिपल के घर पहुँचे जो कि कॅंपस में ही था.

रात के करीब 10 बज चुके थे, हमें इतनी रात गये, अपने घर देख कर वो बोले—

क्यों भाई, इतनी रात गये कैसे आना हुआ ? क्या करते फिर रहे हो तुम लोग..?

मे- अब सर ओखली में सर रख ही दिया है, तो मूसल तो झेलने ही पड़ेंगे.

प्रिंसीपल- ठहाका लगाते हुए…. ऐसा क्या हुआ.. बताओ भी..?

मैने उन्हें सारी घटना डीटेल में बताई, तो वो एकदम शॉक हो गये.. और बोले…

प्रिंसीपल- तो फिर अब अगला कदम क्या होगा तुम्हारा.. ??

मे- सर अब आगे आपका काम है, एसपी और उसके उपर के अधिकारियों की इस मामले में पोज़िशन क्या है ये पता लगाना होगा.

प्रिंसीपल- हम.म.. सही कहते हो कहीं उपर के लोग भी मिले हुए ना हों..? क्योंकि जिस तरह से पोलिटिकल लोग मिले हुए हैं, फिर तो कुछ भी हो सकता है..? 

उन्होने तुरंत स्प का पर्सनल फोन लगाया.. थोड़ी देर बेल जाने के बाद एक जानना आवाज़ आई…

हेलो.. कॉन..?, 

प्रिंसीपल—एसपी साब हैं, मे एनईसी का प्रिन्सिपल सिंग बोल रहा हूँ..!
थोड़ी देर शांति रही फिर लाइन पर एसपी की आवाज़ सुनाई दी..

एसपी- हेलो प्रिन्सिपल साब गुड ईव्निंग… कैसे याद किया..?

प्रिंसीपन- एसपी साब, ड्रग्स वाले मामले में आपकी राई जाननी थी..! क्योंकि हमें पता लगा है कि ये हमारे ही कॉलेज तक सीमित नही है, और कॉलेज भी इससे अफेक्टेड हैं, इनफॅक्ट पूरा शहर इस जहर की चपेट है, लेकिन आपके प्रशासन की तरफ से कोई कार्यवाही अबतक दिखी नही..!

एसपी- प्रिन्सिपल साब आइ आम रियली वेरी सॉरी, लेकिन आप तो जानते ही हैं, कि में अकेला तो कुछ नही कर सकता, करने वाले तो थानों के इंचार्ज और उनके नीचे का स्टाफ ही होता है, उनसे रिपोर्ट ली थी, लेकिन उसमें कुछ सीरीयस लगा नही, वैसे आपके कॉलेज वाले केस से इस विषय पर कमिशनर साब भी चिंता व्यक्त कर चुके हैं.

प्रिंसीपल- क्या रियली आप और कमिशनर साब इस मुद्दे को सॉल्व करना चाहते हैं ?

एसपी- क्या बात कर रहे हैं सर आप ? क्या आपको हमारी नीयत पर कोई शक है..?

प्रिंसीपल- तो फिर आप कमिशनर साब के साथ हमारा अपायंटमेंट फिक्स करिए, और ये जितना जल्दी हो उतना अच्छा है.

एसपी- ठीक है सर, में आपको जल्दी ही बताता हूँ, शायद अभी..! और लाइन कट गयी.

मे- आपको क्या लगता है सर..?

प्रिंसीपल- एसपी की बातों से तो लगता है, कि उपर के लोग असमर्थ हैं, और बात भी सही लगी उनकी कि करने वाले तो नीचे के ही अधिकारी और उनका स्टाफ है, वो तो उनकी रिपोर्ट पर ही आक्षन ले सकते हैं.
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