Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 01:49 AM,
#61
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
अब मे पहली बार उसकी चूत चाटने वाला था, सो लग गया अपना हुनर दिखाने.. थोड़ी ही देर में वो अपना दर्द भूलके, उड़ चली ऊडन खटोले पे बैठ के आसमानों में, जब उतरी तो उसकी चूत आँसुओं से तर थी.

मैने उसे पुछा गन्ना चूसना चाहोगी, तो वो तैयार हो गयी और में खड़ा हो गया, वो पंजों के बल बैठ कर मेरे लौडे को चूसने लगी, नौसीखिया थी, पर चलेगा....

थोड़ी देर लॉडा चुसवाने के बाद, जब मेरा जंग बहादुर जंग लड़ने के लिए पूरी तरह अकड़ कर खड़ा हो हो गया, तो मैने उसे लिटाया, और सेट करके, धीरे-2, आहिस्ता-2, दो-तीन बार में पूरा डालके चोदने लगा.. 

इस बार मैने उसे ज़्यादा दर्द नही होने दिया, और एक मझे हुए खिलाड़ी की तरह चोदने लगा, जब वो एक बार और झड गयी तो फिर मैने उसे घोड़ी बना दिया, और पीछे से उसकी टांगे चौड़वाकर पेल दिया उसकी नयी फटी चूत में..

आहह… क्या मज़ा आ रहा था, लौंडिया मस्ती में अपनी गान्ड को मेरे लंड पे पटक रही थी, मेरे लंड के साइड वाला प्लेट फारम धप्प से उसके चुतड़ों पर टकराता.. लगता जैसे मृदंग पर थाप पड़ी हो कही..

20 मिनट में ही हम हाफने लगे.. पूरा दम लगा दिया हम दोनो ने तब जाके कहीं बादल बरसे.. और जब बरसे तो क्या खूब बरसे… आहह.. बेसूध पड़ गये..

जाने कब तक एक दूसरे की बाहों में पड़े रहे… जाने कब नींद में चले गये… होश ही नही रहा..जब आँख खुली तो 5 बज रहे थे, मैने उसे जगाया..

मे- दीदी..दीदी.. उठो, सुबह हो गयी… 

वो हड़बड़ा कर उठी, अपनी हालत देखी, हड़बड़ाहट में जैसे ही पलंग से नीचे उतरी तो खड़ी ना रह सकी, और फिर से पलंग पर गिर पड़ी..

मे- दीदी आराम से, अभी ताज़ा ताज़ा औरत बनी हो.. थोड़ा दर्द रहेगा..

वो फिर जल्दी जल्दी कपड़े पहन कर निकल गई मेरे कमरे से.. क्योकि डर था कोई देख ना ले, गाँव में वैसे भी सभी जल्दी उठते है.. शौच वग़ैरह के लिए, 

उस जमाने में गाँव में घरों में तो शौचालय होते नही थे तो खेतों में ही जाना पड़ता था.

उस दिन कुछ खास नही किया, गर्मियो के दिन थे, तेज धूप की वजह से कहीं आने-जाने का मन नही, हम दोनो दोस्त घर में ही पड़े रहे, कभी भाभी से मस्ती मज़ाक चलता रहा, तो कभी मौका पाके रेखा की खबर खबर लेली, उसको थोड़ा दर्द सा था सुबह-2 तो एक पेन किल्लर देदि..

शाम को मे और धनंजय, मंदिर की तरफ नहर के किनारे निकल गये, जहाँ थोड़ा गर्मी के दिनो में ठंडा सा रहता था नहर की वजह से.

मंदिर पे आके भगवान के सामने माथा टेका, और थोड़ी देर ठंडी हवा में मंदिर के चिकने फर्श पर लेट के बातें करते रहे..

कुछ देर बाद नहर के किनरे-2 टहलते हुए पानी के बहाव के बिपरीत दिशा में चल पड़े.. और मंदिर से कोई 1 किमी दूर निकल आए, तब तक नहर का दूसरा पुल (ब्रिड्ज) भी आ गया.

सूरज ढल रहा था, उस ब्रिड्ज से एक रास्ता नहर के उस पार बसे दूसरे गाँव को जाता था, हम अपनी धुन में चलते-2 उस ब्रिड्ज के नज़दीक तक पहुच गये.

हुआ यौं कि जब हम मंदिर में लेटे थे, तब वो जो लड़के मैने ठोके थे उस दिन, वोही लड़के नहर के दूसरी साइड बैठे थे, उन्होने मुझे देख लिया पर मेरी नज़र उन पर नही पड़ी.

लेकिन जैसे ही हम नहर पर टहलने निकले, वो वहाँ से रफ्फु चक्कर हो गये, और अपने गाँव जाके, अपने घरवालों और दोस्तों को ले आए.

हम उस ब्रिड्ज पर थोड़ी देर बैठने के मूड में थे, लेकिन जैसे ही हम ब्रिड्ज के पास पहुँचे, उसी ब्रिड्ज से आते हुए, 8-10 लोग लाठियाँ डंडे हाथों में लिए हमारी ओर आते दिखे.. 

जैसे ही हमने उन्हें देखा, मैने झट से उनमें से एक लड़के को पहचान लिया, और धनंजय से बोला…

मे- धन्नु लगता है हम फँस गये… ये लोग हमें ही ठोकने आरहे हैं. 

धनंजय - डरते हुए… क्या बात करता है यार..

मे- में सही कह रहा हूँ, ये साले वोही हैं जो उस दिन ठुक के गये थे..

धनंजय - अब क्या करें…?

मे- कुछ नही गान्ड कुटवा लेते हैं और क्या..

धनंजय - मज़ाक नही यार, जल्दी बोल अब क्या करें..

तब तक वो लोग हमारे और नज़दीक आ गये थे..

मे- धीमी आवाज़ में फुसफुसाते हुए… देख हमे सिर्फ़ इनके वार को बचाना है, उससे पहले एक-एक लाठी अपने हाथ में आ जानी चाहिए..

डरना मत हम वेल ट्रेंड हैं इन मामलों में सिर्फ़ विवेक से काम लेना बस.. अब देख एक ड्रामा करते हैं, तू सिर्फ़ साथ देते जा..

और तभी मैने धनंजय का कॉलर पकड़ लिया, वो तुरंत मेरी चाल समझ गया..

मे- उसका कॉलर पकड़ के…! साले फँसा दिया ना मुझे, आख़िर अपने इलाक़े का ही साथ दिया ना तूने, मुझे यहाँ लाने की तेरी चाल थी ना ये..?

धनंजय - मेरे कॉलर पकड़ते हुए..क्या बकवास कर रहा बेह्न्चोद.. उल्टा तेरी वजह से मे भी मुसीबत में फँस गया..ना तू उस दिन उन लड़कों को मारता और ना ये सब नौबत आती..

वो सब आश्चर्य चकित रह गये, और हमें आपस में ही भिडते हुए देखने लगे.. 
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12-19-2018, 01:49 AM,
#62
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मे- साले में सब तेरी चाल समझ गया हूँ, हरम्खोर, चूतिए.. और एक हल्के हाथ का मुक्का उसके मुँह पे जड़ दिया..!

धनंजय ने भी गाली देते हुए मेरे पेट में एक मुक्का जड़ दिया.. इसी तरह लड़ते-2 हम उन लोगों के बीच तक पहुँच गये. वो लोग अब अपनी-2 लाठियाँ ज़मीन पर टिकाए खड़े-2 ये तमाशा देखने लगे, सोच रहे होंगे.. कि ये साले तो आपस में ही लड़ने लगे, हमें कुछ करने की ज़रूरत ही नही पड़ी.

लड़ते-2 मैने धनंजय को इशारा किया, कि पास वाले पहलवान जैसे आदमी की लाठी लेले..

मैने जैसे ही एक मुक्का मारा धनंजय ने पीछे उलटने का नाटक किया, और फिर उस आदमी की लाठी पे हाथ रख के बोला. देना पहलवान अपनी लाठी, साले का सर फोड़ देता हूँ. 

उसने अपनी लाठी बड़े प्यार से पकड़ा दी, मैने फिर इशारे से मेरे उपर वार करने को कहा, तो उसने लाठी मेरे उपर चलाई,

मैने घूम के लाठी का वार बचा दिया और पास खड़े दूसरे आदमी के हाथ से लाठी लेली, उसने भी कोई विरोध नही किया.

जैसे ही लाठी मेरे हाथ लगी, पूरा 360 डिग्री घूम कर एक भरपूर लाठी का वार उस पहलवान जैसे आदमी के कंधे पर पड़ा..

कड़क… उसका कंधा, उतर गया, और वो आदमी वही बैठ गया…तबतक धनंजय ने भी अपनी लाठी पूरी ताक़त से घुमाई और तड़क… दूसरे वाले की पीठ गयी काम से, और वो भी मुँह के बल ज़मीन चाटने लगा. 

वाकी लोग भोंचक्के रह गये, हमले इतनी फुर्ती से हुए, कि वो कुछ समझ ही नही पाए.. और जब तक उनकी समझ में आया, तबतक हम दो-तीन को और धूल चटा चुके थे..

हम भी गाँव के रहने वाले थे, लाठियों की लड़ाइयाँ हमने भी देखी और लड़ी थी, उपर से हम स्पेशल ट्रेंड…फिर क्या था किसी के हाथ तोड़े, किसी के पाव, किसी की पीठ पे वार तो किसी की टाँग, दो-चार तो नहर में ही जा पड़े..

5 मिनट में नज़ारा देखने लायक था, सभी पड़े-2 कराह रहे थे, फिर हमने उन चार लड़कों में जो उस दिन ज़्यादा हेकड़ी पेल रहा था, उसको उठाया और पुछा बता तू किसका लड़का है और कोन्से गाँव का है.

उसने अपने गाँव का नाम बताया और बोला मे प्रधान जी का लड़का हूँ.

मे- धन्नु लटका ले साले को.. और ले चल अपने गाँव, अब इसका फ़ैसला चौपाल पे ही होगा..

और उन सबको बोला… जाओ तुम लोग और भेजना इसके बाप को मुखिया जी की चौपाल पर अगर अपना लड़का चाहिए तो, वरना ये कल जैल में होगा.

वो लोग गिरते पड़ते सर पे पैर रखके अपने गाँव की तरफ भाग लिए, और हम दोनो ने उस लड़के को लटकाया मरे हुए सुअर की तरह और लाके पटका चौपाल पे.

शाम का वक़्त था, गाँव में लोग ज़्यादातर फ्री टाइम में चौपालों पर जमा होते ही हैं गप्पें मारने और इधर-उधर की खबरें देने-लेने को.

जब हमने उस प्रधान के लड़के को वहाँ लाके पटका, तो कुछ लोगों ने उसे पहचान लिया, पड़ोसी तो था ही, वो भी ग्राम प्रधान का लड़का, देखते-2 लग गया हुजूम, लगे तरह के सवाल करने, क्या हुआ ? कैसे हुआ? यहाँ क्यों लाए.. वागरह-2..

हमने धनंजय के पिता जी समेत सब लोगों को सारी घटना का विवरण दिया, तो पहले तो सब खुश हुए, फिर आश्चर्य पूर्वक कहा, ये कैसे संभव है कि तुम दोनो ने 10 लठेतो को धूल चटा दी..?

धनंजय बोला- ये सब इसकी करामात है..! तो उसका एक गाँव का दोस्त बोला कि ऐसा हो ही नही सकता.. सच बता कैसे किया तुम दोनो ने ये सब..?

मे- अरे भाई आप लोगों को अभी तक पता नही है कि नहर के पास एक जिन्न रहता है, जो कमजोर का हमेशा साथ देता है, उसी ने किया है ये सब..

दोस्त- क्या बात करते हो भाई..? हमने तो किसी ने आजतक ना उसे देखा और ना सुना फिर आज कैसे…?

मे- और मज़े लेते हुए.. क्या तुम लोगों पर ऐसी कभी मुशिबत आई..?

दोस्त – नही… पर्रर..!

तबतक धनंजय को हसी आ गई, और वाकी लोग भी समझ गये कि मे उससे चूतिया बना रहा हूँ.. तो सब ठहाका मार मार के हँसने लगे और वो लड़का झेंप कर खिसियानी हँसी हसने लगा.. हहहे…तुम लोग झूठ बोल रहे हो..
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12-19-2018, 01:49 AM,
#63
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
यही सब वार्तालाप चल रहा था वहाँ, कि तब तक उस गाँव का प्रधान करीब 25-30 लोगों के साथ आ गया.. और आते ही भड़क कर बोला..

मुखिया जी ! ये क्या गुंडागिरी चल रही है, आपके लड़के अब किसी को भी मार-पीट कर उठा लाएँगे और हम देखते रहेंगे.. ऐसा नही चलेगा..

मुखिया जी- पहले आप शांति से बात करिए, यहाँ बदतमीज़ी से बात करने की ज़रूरत नही है.. क्या आपको सारी सच्चाई पता है या बस ऐसे ही भड़क रहे हो, प्रधान हो इसलिए..?

फिर आगे बोले मुखिया जी- आपके लड़कों की एक ग़लती नही है, इन्होने दो-दो ग़लतियाँ की हैं, 

पहली ग़लती- तुम्हारे चार लड़कों ने उस दिन मंदिर पर दर्शन करने गयी मेरी बेटी और बहू के साथ बदतमीज़ी की, बदतमीज़ी ही नही, उनका हाथ पकड़ा और छेड़ा, अगर ये बच्छा ना होता तो पता नही क्या अनर्थ कर देते ये उस दिन, क्या आपको खबर है इस बात की..?

प्रधान ने ना में अपनी मुन्डी हिलाई..

दूसरी ग़लती- आज जब ये डन बच्चे नहर के किनारे घूमने गये तो तुम्हारे 10 लठेत इन निहत्तों को मारने के लिए आए.. ये तो पता होगा..?

अगर नही पता तो तुम ग्राम प्रधान बनने के बिल्कुल काबिल नही हो.

अब रही बात यहाँ आकर हमे हमारे ही गाँव में हमारी चौपाल पर धमकी देने की तो एक बात कान खोल कर सुनलो प्रधान जी..जब मेरा एक लड़का तुम्हारे चार लड़कों को मार-2 के भुर्ता बना सकता है, दो निहत्थे बच्चे जो अभी 20-20 साल के ही हैं, तुम्हारे 10 लठेतो की ऐसी की तैसी कर सकते हैं..

तो सोचो ये सारा गाँव तुम्हारे छोटे से गाँव का क्या हश्र करेगा खुद सोच सकते हो, अब जाओ और अपने लड़के की जमानत वग़ैरह का इंतेज़ाम कराओ जाके..

वो प्रधान मुखिया जी के पैरों में पड़ गया, और गिडगिडाने लगा-मुखिया जी मेहरबानी करके इन्हें माफ़ कर दीजिए इन हरामजादो की तो मे घर जाकर खबर लेता हूँ.. आपको मे विश्वास दिलाता हूँ, मेरे गाँव का कोई भी आदमी आपके गाँव की तरफ आइन्दा आँख उठा कर भी नही देखेगा आज के बाद.

नही प्रधान जी पानी अब सर से गुजर गया है, बोले मुखिया जी.. अरे हम तो उसी दिन फ़ैसला कर देते तुम्हारे इन हरामी पिल्लों का पर, इनकी पहचान नही थी हमारे बच्चों को.

अब तो प्रधान की हालत ही खराब, वो बुरी तरह गिडगिडाने लगा, मिन्नतें करने लगा.. तो मुखिया जी ने हमारी ओर देखा.. जैसे पूछना चाहते हों कि क्या करना है अब.

मैने इशारे से उन्हें एकांत में बुलाया और समझाया- अंकल जी, पोलीस केस से हमें कोई फ़ायदा नही होगा, उल्टा थाने-वाने के चक्कर हो जायेंगे और वैसे भी बहू-बेटी का मामला, ज़्यादा ना उछले तो अच्छा है,

मुखियली – जैसा तुम कहो… और वापस अपनी कुर्सी पर जाकर बैठ गये..

मैने बोलना शुरू किया- एक शर्त पर इन बदमाश लड़कों को माफ़ किया जा सकता है, ये चारों अगर रेखा दीदी और भाभी के पैरों पर नाक रगड़ कर माफी माँगे और अपने ही हाथों से कस्के 10-10 थप्पड़ लगाएँ तो वो दोनो शायद इन्हें माफ़ करदें, क्योंकि ये उन दोनो के गुनेहगार हैं. 

प्रधान झट से राज़ी हो गया, मैने रेखा और भाभी को बुलवाया, वो जैसे ही आके चौपाल पे खड़ी हुईं, वो चारों लड़के उनके पैरों पर नाक रगड़ते हुए माफी माँगने लगे, फिर खड़े कोकर अपने हाथों से अपने ही हाथों से थप्पड़ मारने शुरू करने ही वाले थे कि मैने कहा.

थप्पाड़ों की आवाज़ यहाँ खड़े सबके कानों तक पहुँचनी चाहिए, अगर एक भी थप्पड़ मुझे कमजोर लगा, तो उसकी जगह भैया या धनंजय मारेंगे ये ध्यान रखना.

उन्होने पूरी ताक़त से 10-10 थप्पड़ पूरे किए, दोनो गाल लाल हो चुके थे हरमियों के, उसके बाद उन्हें जाने दिया, धीरे-2 वहाँ से सारी भीड़ चली गयी.

मुखिया जी और सारे घरवाले मेरे इस फ़ैसले से बहुत खुश थे, पूरे गाँव के सामने उनके मान-सम्मान और जो बढ़ गया था. उनका सीना और ज़्यादा चौड़ा हो गया .

कुछ देर के बाद सब बैठक में खाना खा रहे थे, मुखिया जी बड़े गर्वित स्वर में बोले- 

धन्नु बेटे हम सच में अभी तक ये नही समझ पा रहे, कि सब तुम दोनो ने संभव किया कैसे? मतलब मैने अपनी जिंदगी में इतनी बहादुरी कहीं नही देखी हां किस्से कहानी में पढ़ा हो वो बात अलग है..

धनंजय- पिता जी..! ये जो आपके सामने बैठा मासूम सा लड़का देख रहे हैं, आपको लग रहा होगा, कितना भोला और मासूम है बेचारा… असल में ये दस सर वाला रावण है.. रावण..

वो बोले- ये क्या कह रहे तुम.. ?

धनंजय- मे सच कह रहा हूँ पिता जी, पिछले दो सालों में इसने जो-जो काम किए हैं वो पूरे शहर की पोलीस नही कर पाई,

इसको आज तक हमने घबराते या डरते हुए नही देखा.. मे मानता हूँ, कि इसके साथ हम कुछ दोस्त भी रहे हैं हर जगह, और आज भी में था, लेकिन करवाने वाला यही होता है, पता नही विपरीत परिस्थितियों में जहाँ हमारे जैसा आम इंसान भय से काँपने लगता है वहीं ये ऐसे-2 प्लान बना लेता है कि सफलता हाथ लग ही जाती है.

इसके इसी विस्वास पे हम लोग विस्वास करके आँख बंद करके इसका साथ देने को तैयार हो जाते हैं. 

लेकिन हां ये भी अपनी जगह सही है, कि इसने आजतक कभी ग़लत का साथ नही दिया है, और नही ग़लत होने दिया है.

सब मुँह बाए मेरी ओर ही देख रहे थे… भाभी और रेखा की आँखों में तो ना जाने कितना प्रेम और कृताग्यता थी, कि मे उनसे नज़र ही नही मिला सका देर तक.

जब काफ़ी देर खामोशी छाई रही और सबकी सवालिया नज़र मेरे से नही हटी तो फिर मुझे बोलना ही पड़ा…!

मे- ऐसा कुछ नही है अंकल जी, धन्नु तो बस ऐसे ही हर जगह मुझे आगे दिखाने की कोशिश करता रहता है..!

अंकल - फिर भी बेटे… मे अपने बेटों को अच्छी तरह जानता हूँ, उनमें किसी में भी इतना साहस नही है कि वो 10 तो क्या किसी एक लठेत आदमी से अकेले मुकाबला कर सके तो फिर आज जो हुआ वो तो किसी सूरत में संभव नही था.

मे- सच मानिए अंकल जी, आज की लड़ाई में धनंजय बराबर का साथी था, मैने तो बस उसकी क्षमता को उसे दिखाया.

आंटी – वोही..! वोही तो हम समझना चाहते हैं अरुण बेटे..! कि हम माँ-बाप होके अपने बेटे की क्षमताओं को नही देख पाए, वो तुम्हें कैसे दिखाई दे गयी..?

मे- क्योंकि उसकी उन क्षमताओं की आपको ज़रूरत ही नही पड़ी..! हर माँ-बाप अपनी औलाद को हर मुशिबत से दूर रखना चाहता है, जिन बातों की उसे अपने बच्चों से अपेक्षा होती है वोही सिखाता है.

अंकल- ये बात एकदम सही कही है बेटे तुमने, पर ये तो बताओ, तुम में ये गुण आए कैसे, क्या तुम्हारे माँ-बाप ने इन सब बातों के लिए प्रेरित किया था.

मे- नही ! मेरे माता-पिता कोई अलग थोड़ी हैं, हां चाचा के साथ बचपन ज़्यादा बीता है, वो एक निडर व्यक्ति हैं. में जब भी कोई बात पुछ्ता था कि ये आपने कैसे किया, तो उनका एक ही जबाब होता था… कोशिश..! कोशिश करोगे तो ज़रूर होगा.

इसका अनुभव मुझे हुआ जब में कोई 8-10 साल का था, फिर मैने उन्हें अपनी लकड़बग्घा के साथ हुई टक्कर का व्रतांत सुनाया, कि किस तरह मौत सामने देख कर मैने उससे लड़ने का फ़ैसला लिया और में जीत गया..!

बस तभी से मैने एक बात अपने जीवन गाँठ बाँध ली, की कोई भी काम असंभव नही होता, कोशिश करने वाले को हमेशा कामयाबी मिलती ही है.

जीवन का एक मात्र सत्य है, कि जिसने जीवन लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है.. तो जो सत्य है उससे भय कैसा, वो तो अपने निहित समय पर आनी ही है. उससे डर के हम अपना जीवन तो निस्फल नही कर सकते.

और एक बात जो मेरे पिता जी ने मुझे सिखाई है, कि कोई भी अच्छा कार्य करने में ईश्वर की इच्छा सम्मिलित होती है, और वो हमारी किसी ना किसी रूप में सहयता अवश्य करते हैं, फिर चाहे वो आपका अंतर्मन ही क्यों ना हो.
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12-19-2018, 01:49 AM,
#64
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
तभी धनंजय बोल पड़ा- सही कह रहा है यार तू ! कई बार मैने अनुभव किया इस दौरान, कि जब हम कोई काम करने जाते थे तो एक भय जैसा रहता था, लेकिन काम पूरा होने पर हमें खुद आश्चर्य होता था, कि ये कैसे हो गया.

मे- देखो जिंदगी में भय होना भी ज़रूरी है, अगर हमारा भय चला गया तो हमें अपने आप पर घमंड होने लगेगा, और फिर हम सही ग़लत की पहचान भूल जाते है.

अंकल- सुंदर ! क्या उत्तम बात कही है.. इतनी कम उम्र में इतना ज्ञान.. आश्चर्य जनक है.. है ना जानकी. उन्होने अपनी पत्नी को कहा.

आंटी- सही कह रहे हैं जी आप, हमारा धन्नु भाग्यशाली है, जिसे इसके जैसा गुणवान दोस्त मिला है.

और उन्होने मुझे गले से लगाकर मेरा माथा चूम लिया. अंकल भी अपने आप को रोक नही पाए, फिर धन्नु के भाई, अंत में धन्नु और रेखा ने एक साथ दोनो ओर से जकड लिया.

मैने भाभी से चुटकी लेते हुए कहा, क्यों आपको मेरी बातें पसंद नही आई..? आप गले नही लगोगी..? अरे देवर नही तो छोटा भाई समझ के ही लगा लीजिए..

तो झेप्ते हुए वो भी गले लग गयी, मैने मौके का फ़ायदा लेते हुए, गले को चूम लिया और कान में कहा.. क्यों क्या विचार है आज का ?

उन्होने हल्की सी सिसकी ली और बाय्ल…. कोशिश…

मुझे हँसी आ गयी….और वो शरमा गयी…

रात को अपने पति के सो जाने के बाद भाभी मेरे रूम में आई और फिर 2-3 घंटे हमारी खत कबड्डी जम के चली.

सुबह मैने धनंजय को बोला यार ! अब चलना चाहिए.. अपने क्लासस शुरू होने वाले हैं, तो माँ का दिल, बोली बेटा दो साल में तो ये अब आया है, अभी 4 दिन ही तो हुए हैं, और दो-चार दिन रुक जाओ, मैने कहा- आंटी जी 2-4 क्या मेरा तो हमेशा के लिए यही रहने का मन है, लेकिन कुछ उत्तरदायित्व होते हैं जीवन में, वो भी निभाने पड़ते हैं.

आंटी- अच्छा ज़्यादा नही दो दिन और रुक जाओ, परसों चले जाना.. मैने धनंजय की ओर देखा, वो भी बोला, हां यार परसों चलते हैं. 

मे- ठीक है भाई ! गाम करे सो राम करे.. इस बात पर सभी एक साथ हंस पड़े.. 

वो दिन भी बीत गया, शाम हुई, रात का खाना ख़ाके, सोने भी चले गये सब लोग, आज दोनो जुगाड़ो में से किसी से कोई बात नही हो पाई थी, पता नही क्या होगा, मे अपना पलंग पकड़ के सो गया…!
…………………………..
…………………………………
थर्ड एअर की हमारी क्लासस शुरू हो चुकी थी, कॉलेज आकर सबसे पहले हमने अपनी कमिटी को अपडेट किया, सागर और मोहन हमेशा के लिए जा चुके थे तो हमें और नये मेंबर बढ़ाने थे.

कुछ अति उत्साहित स्टूडेंट्स में से चार लोगों को चुना जिनके नाम थे :

मनोज और राजेश – लास्ट एअर , विक्रम- फर्स्ट एअर, और विकास- सेकेंड एअर से..

अब हमारी कमिटी में 10 मेंबर्स हो गये थे.

नये मेंबर्ज़ को सख़्त हिदायत दी गयी थी, चाहे ज़रूरत हो या ना हो अपने को फिज़िकली और मेंटली फिट रखना ही है. और डेली अपने साथ 5 बजे से जिम में एक्सर्साइज़ और फाइटिंग टिप्स लेते रहना है.

समय गुजर रहा था, घर से आए हुए हमें 3 महीने हो चुके थे. एक दिन धनंजय के घर से खत आया, तो वो उसे पढ़कर उच्छलने-कूदने लगा, खुशी से नाचने लगा.. 

मे- अब्बे क्या बात है ? क्यों बंदर की तरह उच्छल-कूद कर रहा है…

धनंजय- याहू…!!! मत पुच्छ यार..!! आज मे इतना खुश हूँ.. इतना खुश हूँ कि बता नही सकता..?

ज – अरे भाई, जब बता ही नही सकेगा, तो हमें तेरी खुशी का राज़ कैसे पता चलेगा..?

धनंजय- पता है..! मे अपने घर में सबसे छोटा था, तो मुझे कोफ़्त सी होती थी.. लेकिन अब मे सबसे छोटा नही रहूँगा…! अब चाचा बनाने वाला हूँ.. याहू..!

र- ये तो वाकई खुशी की बात है… कंग्रॅजुलेशन्स !! 

मे- फिर तो आज पार्टी हो जाए.. क्यों?

धनंजय- अरे तू जो बोले…! आज कोई कुछ भी बोलो…! मे करूँगा तुम लोगों के लिए.

फिर तय हुआ, कि कॉलेज के बाद हम सभी कमिटी मेंबर्ज़ मूवी देखने जाएँगे, और फिर शहर में थोड़ी मस्ती करेगे, और किसी रेस्टोरेंट में डिन्नर करके ही वापस लौटेंगे.

उठाई प्रिन्सिपल की जीप और चल दिए अपने प्लान के मुतविक मस्ती करने..!

हम लोग मूवी देखने के बाद थोड़ी देर यूही सड़कों पे भटके, और फिर एक अच्छे से रेस्तरा में खाना खाने घुस गये.

हमारे लिए मॅनेजर ने दो टेबल इकट्ठा लगवा दी. हमसे दो टेबल छोड़ के चार हसीनायें वो भी शायद किसी कॉलेज की स्टूडेंट्स थी, बैठी खाना खा रही थी, हम में से कुछ की नज़र उनपर पड़ी, तो उधर से भी लड़कियों की नज़र हमारे कुछ साथियों पर, दोनो तरफ से सैन मटक्का होने लगा.

शायद नयन सुख लिया जा रहा था, हम खाना थोडा पहले स्टार्ट कर चुके थे, वैसे भी आदमी और औरत के खाने में फ़र्क होता है. 

आदमी जहाँ खाने पर टूट के पड़ता है भुक्कड़ की तरह, वो भी हमारे जैसा मास का खाने वाला, वहीं लड़कियाँ थोड़ा नजरो से बातें करती हुई समय लेती हैं.
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12-19-2018, 01:49 AM,
#65
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
धनंजय बिल पे करने काउंटर पे खड़ा था और हम टेबल पर बैठे उसका इंतजार कर रहे थे, कि तभी वहाँ 10-12 लड़के एंटर हुए, फुल ऑफ मस्ती नशे में झूमते हुए..

घुसते ही हंगामा, चारों तरफ नज़र दौड़ाई, और फिर जैसे ही उनकी नज़र उन लड़कियों पर पड़ी, वो उधर को ही बढ़ गये.

लड़कों का लीडर जो एक मरियल सा दिखने वाला, यही कोई 25-26 साल का लंबे मिथुन कट बाल आँखें चढ़ि हुई.. 

“सीना संदूक, गान्ड बंदूक ! हाथ अगरबत्ती, पाँव मोमबत्ती”. शायद ये उपमा काफ़ी थी उसके व्यक्तित्व को दर्शाने के लिए…

हां बाकी सब ज़्यादातर हट्टे-कट्टे थे, शायद उसके पैसों का नाजायज़ फ़ायदा ले रहे होंगे उसकी चमचागिरी करके..!

मरियल लड़का, लड़कियों की टेबल के पास खड़े होते हुए जो साथ में हिल भी रहा था बोला- अरे वाह ! यहाँ तो सुंदरियों का मेला लगा है, और हम साला शहर में भटक रहा है..

और एक लड़की का हाथ पकड़ते हुए बोला- चलो उठो रानी हमारे साथ, तुम लोगों को जन्नत की सैर करते हैं, यहाँ क्या इस सडेले से रेस्तरा में बैठी हो..! और अपने साथियों की तरफ घूम कर..

चलो रे एक-एक करके उठा लो इनको और ले चलो अड्डे पे….

वो साले सांड भी पक्के गुलाम निकले उस मरियल के, उसके बोलते ही उन्होने बिना सोचे समझे उन लड़कियों को उठा भी लिया,

लड़कियाँ चीख पुकार करने लगी, छूटने के लिए हवा में हाथ पैर भी मार रही थी, मज़ाल कि कोई माई का लाल उस पूरे रेस्टोरेंट में उठा हो उनकी मदद के लिए.

अबतक धनंजय लौट रहा था बिल देके और वो लड़के निकल रहे थे उन लड़कियों को लेके, तो सामने आ गया, और उस मरियल से बोला.

धनंजय – आए..! भाई कहाँ ले जा रहे हो इन बेचारी लड़कियों को..?

मरियल - तेरे से मतलब…! हट आगे से और उसने धनंजय को धक्का देना चाहा, लेकिन वो तो टस-से-मस नही हुआ उल्टा वो मरियल अपनी झोंक में ही एक तरफ लूड़क गया.

तब तक उसके चार साथी आकर धनंजय से भिड़ गये, दो ने उसके दोनो हाथ पकड़ लिए और एक ने उसके मुँह पर मुक्का मारा, 

मेरे वाकी साथी, मेरी ओर देख रहे थे और सोच रहे थे कि मे कुछ कर क्यों नही रहा और ना ही किसी को बोला उसकी मदद के लिए..

उधर जैसे ही उस गुंडे ने मुक्का घुमाया उसे मारने के लिए, धनंजय झुक गया, नतीजा उस गुंडे का मुक्का उसके एक साथी के थोबडे पर पड़ा जो धनंजय को पकड़े था एक तरफ.

वो गुंडा धडाम से पीछे को गिरा और धनंजय एक तरफ से आज़ाद हो गया, और फ्री हुए हाथ का मुक्का उस दूसरे वाले की कनपटी पे मारा..

तबतक चौथा उसे मारने बढ़ा तो धनंजय ने एक फ्लाइयिंग किक उसकी कनपटी पे रसीद करदी और वो बुरी तरह चीखते हुए जिधर से आया था उधर ही ढेर हो गया.

जब उनके चार-चार साथी फर्श की धूल चाट गये, तो जो गुंडे लड़कियों को उठाए हुए थे उन्होने उन लड़कियों को नीचे उतारा और अपने साथियों की मदद के लिए आगे आए, झट से हम सभी दोस्त उठा खड़े हुए और उनके सामने आ गये, मैने उनसे कहा,…!

ये फाउल है भाई.. 4 के उपर 1 तो ठीक है, अब और नही.. और फिर हम सबने मिलकर उन गुण्डों की वो धुलाई की… वो धुलाई की… कि निर्मा की सफेदी भी फीकी पड़ गयी..

वो लड़कियाँ हमें कृीतग्यता से देख रही थी. तब तक मॅनेजर ने पोलीस को फोन कर दिया था, सो पोलीस भी वहाँ आ गई और उन गुण्डों को उठा लेगयि, और हमें उन लड़कियों के साथ थाने आकर स्टेट्मेंट देने के लिए बोल गये.

अब जीप में तो इतनी जगह थी नही कि वो लड़कियाँ भी बैठ सकें क्योंकि हम ही 10 लोग थे. तो धनंजय और रोहन को उनके साथ टॅक्सी में लेकर जाने को बोलकर हम 8 जाने जीप से थाने पहुँच गये…!

उधर थाने में तो मामला ही उल्टा निकला, पोलीस उन गुण्डों को हवालात में डालने की वजाय, थाना इंचार्ज अपने ऑफीस में बिठा कर उनकी खातिरदारी कर रहा था, 

हम थाने में धनंजय वग़ैरह से पहले पहुँच गये थे, हमें देखकर इनस्पेक्टर ने हमसे लड़कियों के बारे में पुछा, तो हमने बताया कि वो आती ही होगी आप एफआइआर लिखो…. 

हमारी बात सुनकर उस इनस्पेक्टर ने जो हमसे कहा, उसे सुनकर हम दंग रह गये….!

इंस्पेक्टर- एफआइआर..? कोन्सि एफआइआर..? किसकी एफआइआर..? और किसके खिलाफ…?

मे मुँह फाडे उसकी तरफ देखता रह गया..! फिर कुछ देर बाद बोला- इन गुण्डों के खिलाफ और किसके खिलाफ..? ये उस रेस्टोरेंट में उन लड़कियों को उठाके ले जेया रहे थे ज़ोर ज़बरदस्ती से, इसलिए..!

इंस्पेक्टर- तुम लोगों को शायद कोई ग़लत फहमी हो गयी है, ये तो बहुत सरीफ़ लोग हैं, मे इन्हें व्यक्तिगत तौर से जानता हूँ. 

फिर आगे बोला- जानते हो ये कॉन हैं..? उस मरियल की तरफ इशारा करके बोला.. ये मुन्ना बाबू हैं, यहाँ के एमएलए साब के सुपुत्र…!

अब मुझे बात समझ में आई कि क्यों ये इनकी मेहमान नवाज़ी कर रहा है..?

मे- अच्छा तो ये एमएलए का कपुत है, इसलिए आप लोग इसकी चापलूसी में लगे हो..! अब कुछ-2 मेरी समझ में आरहा है.

इंस्पेक्टर- आए लड़के तमीज़ से बात कर वरना…

मे- वरना…? वरना क्या..? क्या करोगे, फाँसी चढ़ा दोगे हमें..?

इंस्पेक्टर- देखो ये एमएलए साब के सुपुत्र हैं, मामले को समझने की कोशिश करो.. और तुम लोग यहाँ से चले जाओ.. मे उन लड़कियों से बात कर लेता हूँ सब कुछ सही है कोई प्राब्लम नही होगी.

मे- आप ये बार-2 एमएलए का नाम लेके क्या साबित करने चाहते हो..? क्या एमएलए जनता ने गुंडागर्दी या अयाशी करने के लिए चुना है..? 

हमारी ये वार्तालाप चल ही रही कि तबतक धनंजय और रोहन भी उन लड़कियों को साथ लेकर आ गये..!
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12-19-2018, 01:49 AM,
#66
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
आए लौन्डे ज़ुबान संभाल के बात कर, वरना में तेरा वो हाल करूँगा – वो हाल करूँगा..कि… तडाक….!! 

अभी बात पूरी भी नही कर पाया वो मरियल के जगेश ने उसके कान पर एक और बजा दिया.

अपने मुँह पे ताला लगा हरामी वरना, यही टेन्टुअ दबा दूँगा साले, एक मिनट में खेल ख़तम कर दूँगा… तू हमें नही जानता.. मैने तैश में आकर कहा..,

तभी वो इनस्पेक्टर उठ खड़ा हुआ और इससे पहले की वो कुछ कहता या करता, 

मे बोला- आए इनस्पेक्टर होश में आ, ऐसा ना हो कि तुझे भी लेने के देने पड़ जाएँ, ला फोन दे इधर, और फोन अपनी तरफ करके एसपी का नंबर लगा दिया..

दूसरी तरफ बेल जा रही थी, तभी इनस्पेक्टर बोला.. करले-2 फोन बुला ले तेरा जो भी कोई बाप हो उसे.. मे भी देखता हूँ तू क्या कर पाता है..

थोड़ी देर में एसपी ने फोन पिक कर लिया और हेलो बोलके पुछा- एसपी सिन्हा हियर, कॉन बोल रहे हैं.

मे- सर मे अरुण मेसी कॉलेज से…!

एसपी- ओह अरुण बोलो कैसे फोन किया.. सब ठीक तो है..?

मे- सर कुछ भी ठीक नही है, वरना मे आपको कष्ट ही क्यों देता..?

एसपी- अब क्या प्राब्लम हो गयी भाई.. ?

मैने उन्हें पूरी बात बताई तो उन्होने पुछा कॉन सा इनस्पेक्टर है, ज़रा फोन तो देना उसे..!

मैने फोन उस इनस्पेक्टर को दे दिया..

इंस्पेक्टर- हेलो ! हां ! में इनस्पेक्टर यादव बोल रहा हूँ, क्या तकलीफ़ है तुम्हें..?

एसपी- तकलीफ़ तो तुझे हो सकती है यादव, लगता अब तेरी वर्दी ही उतरवानी पड़ेगी, तेरी अकड़ अभी गयी नही..?

इंस्पेक्टर- हकलाते हुए… स.स.सस्स. जय हिंद सर.. सॉरी सर.. मुझे पता नही था, आप हैं फोन पर..!

एसपी- वो सब छोड़, ये क्या किस्सा है…? क्यों हर किसी से बदतमीज़ी से पेश आते हो, देखो तुम फिर कोई मुसीबत में पडो उससे पहले अरुण जैसे कहे वैसा करो, वरना इस बार तुम्हारी नौकरी भी नही बचेगी सोच लो.

इंस्पेक्टर- लेकिन सर दूसरी तरफ एमएलए साब के लड़के का मामला है, अब बताइए मे क्या करूँ..?

एसपी- अच्छा ? तुम अरुण को फोन दो एक मिनट. उसने मुझे फोन दिया.., एसपी आगे बोले- देखो अरुण हमारी भी मजबूरी समझो, लोकल लीडर को भी हमें तबज्जो देनी पड़ती है, तो जो आसानी से हल निकल सके वो निकाल लो प्लीज़..!

मे- ये आप क्या कह रहे हैं एसपी साब, उसको अभी छोड़ दिया तो वो फिरसे गुंडा गर्दि करेगा, इसने ज़बरदस्ती चार लड़कियों को उठवाया है.. ये कोई मामूली घटना नही है… अगर पोलीस ने कुछ नही किया तो जानते हैं क्या होगा..?

मेसी कॉलेज तो मेरे साथ है ही, इन लड़कियों का कॉलेज भी सड़क पे उतर आएगा और देखते-2 शहर के सभी स्कूल, कॉलेजस सड़कों पे होंगे, फिर एमएलए तो क्या, आपको और कमिशनर साब को भी जबाब देना भारी पड़ेगा.

आँखों देखे मे तो मक्खी नही निगल सकता, शहर में खुले आम गुंडागर्दी नही होने दूँगा मे..! चाहे इससे मेरा मशबिरा समझिए, या धमकी.

और आपको भी पता है, मे कोरी धमकी नही देता..! अब आप सोचिए क्या करना है..!

एसपी- ठीक है उस इनस्पेक्टर को फोन दो..! मैने फोन उसे पकड़ा दिया..

एसपी- यादव ! मामला इतना सीधा नही है, अरुण जो कहता है वो करो, एक एमएलए के लौन्डे को बचाने के लिए हम पूरे शहर की शांति को भंग नही कर सकते..! और जो वो कह रहा है, अगर ऐसी नौबत आ गयी, तो ये एमएलए भी रातों रात अपनी कुर्सी नही बचा पाएगा, फिर कॉन बचाएगा तुम्हें.

इंस्पेक्टर- ठीक है सर… जय हिंद सर…..!

आए हवलदार ! इन गुण्डों को हवालात में डालो जल्दी, क्या साला मुशिबत है, नेता की मानो तो पब्लिक भड़कती है, और पब्लिक की सुनो तो साले नेता हमारी बजाते हैं.
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12-19-2018, 01:50 AM,
#67
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
फिर हमारे देखते-2 उन सभी गुण्डों को हवालात में डाल दिया गया, उसके बाद फिर मैने इनस्पेक्टर से कहा..

मे- थॅंक यू इनस्पेक्टर साब..! वैसे आपको नही लगता इतना सब करने की नौबत नही आनी चाहिए थी, 

इंस्पेक्टर- अरुण साब…! अब वो रेस्पेक्ट देने लगा था, आप नही जानते ये लोकल लीडर हमें कैसे-2 नचाते हैं साले..!

मे- आप जनता के नौकर हैं या इन नेताओं के ? सीधा-2 क्राइम किया है इन लोगों ने, और उसपे आप लोग लीपा पोती करदेने वाले थे..? 

जानते हैं, पोलीस की इन्ही नाकामियों की वजह से जनता का भरोसा आप लोगों से उठता जा रहा है. और इसी वजह से इन नेताओं की हिम्मत और बढ़ जाती है, 

ज़रा सोचिए, ये क्या उखाड़ पाएँगे आपका..? ज्यदा से ज़्यादा ट्रान्स्फर ही करा सकते हैं ना..! उससे ज़्यादा क्या है इनके पास..? 

वो इनस्पेक्टर चुप रह गया, उसने हमारा और लड़कियों का स्टेट्मेंट लिया और रिपोर्ट दर्ज करली उन लड़कों के खिलाफ..

हम अभी निकलने ही वाले थे कि एमएलए अपने कुछ चमचो के साथ थाने में घुसा.. और घुसते ही हाथ जोड़ के हमारे सामने खड़ा हो गया..लग रहा था एसपी ने पूरी तरह समझा बुझा के भेजा होगा..!

एमएलए लड़कियों की ओर मुखातिब होकर- आप सभी मेरी बेटी जैसी हो, मैने जैसे ही सुना कि मेरे बेटे और उसके कुछ आवारा साथियों ने आप लोगो के साथ बदतमीज़ी की है, तो मे फ़ौरन यहाँ चला आया..

मे आप सबको आश्वस्त करता हूँ कि भविष्य में कभी-भी इन लोगों ने आप लोगों के साथ कोई भी बदतमीज़ी करने की कोशिश की तो में इन्हें अपने हाथों से गोली मार दूँगा..! अब आप मेहरबानी करके अपनी कंप्लेंट वापस ले लीजिए..!

वो लड़कियाँ हमारी तरफ देखने लगी..! मे आगे बढ़के बोला- एक मिनट एमएलए साब, अगर आप इतने ही उसूलों के पक्के हैं, तो ये नौबत आई कैसे ? 

अगर आप इतना बड़ा कदम अभी उठा सकते हैं, तो पहले इसके गाल पे दो तमाचे रसीद क्यों नही किए? जिससे ये आवारगार्दी, दारू पीके सरेआम लड़कियों की इज़्ज़त पे हाथ डालने का सोचता ही नही.. 

हमें आप इतना बेवकूफ़ भी मत समझिए, कि आपकी बातों पर आँख बंद करके विस्वास कर लें..!

एमएलए- देखो बेटा हमारी बात समझने की कोशिश करो, हम ये कतई नही चाहेंगे कि हमारा बेटा किसी की इज़्ज़त के साथ खिलवाड़ करे, वो तो बस थोड़ा हमारी पत्नी के लाड-प्यार की वजह से बिगड़ गया है, 

लेकिन अब मे उसे आगे कोई ऐसी छूट नही दूँगा, ये मेरा वादा है आप सब से. एक बार मेरी बात मान लो.

मे- ठीक है, हम आपकी बात मान लेते हैं, लेकिन क्या जो आपने अभी कहा है गोली मारने वाली बात उसे लिख कर दे सकते हैं ?

मेरी बात पर एमएलए हड़बड़ा गया…! मुँह फाडे मेरी ओर देखने लगा..! मे फिर बोला क्या सोचने लगे..सर ? मे जानता हूँ, कहने और करने में ज़मीन आसमान का फ़र्क होता है..! 

अगर आप लिखके देने को तैयार हैं तो हम अपनी कंप्लेंट इस शर्त पर वापस ले लेंगे कि ये सब इन लड़कियों के पैरों मे पड़के बहन बोलें और माफी माँग लें.

एमएलए कुछ देर सोच में डूबा रहा.. फिर एक फ़ैसला करके बोला- ठीक है, मुझे मंजूर है तुम्हारी शर्त…!

तुरंत हमने एक कोरे काग़ज़ पर उसका लिखित स्टेट्मेंट लिया, सील साइन कराए.
उन सभी लड़कों ने, लड़कियों के पैरों मे पड़के बहन हमें माफ़ करदो बोलके माफी माँगी.

एमएलए अपने लड़के को गुस्से से घूर रहा था,..! फिर उसने हम लोगों के सामने हाथ जोड़कर हमें धन्याबाद करके उन्हें अपने साथ लेकर चला गया.

वो लड़कियाँ बड़ी खुश दिखाई दे रहीं थी, उनकी नज़रों में हमारे प्रति कृीतग्यता और प्रेम के भाव नज़र आ रहे थे.

फिर हम इनस्पेक्टर को भी धन्याबाद करके थाने से बाहर निकल आए..

धनंजय और रोहन तो अपनी सेट्टिंग रास्ते में ही कर चुके थे उनमें से दो के साथ, वाकी की दो कपिल और जगेश को बड़े प्यार से घूर रही थी, वो दोनो भी उन्हें देखे जा रहे थे.

मैने सोचा चलो ये चारों तो लग गये काम पर.. !

थाने से बाहर आकर, मैने उन लड़कियों से पहली बार इंट्रोडक्षन किया, तो पता चला कि वो गर्ल्स कॉलेज मे पढ़ती हैं और वहीं हॉस्टिल में ही रहती हैं, उन्होने अपने-2 नाम बताए और एक दूसरे से हाथ मिलाया, सेट्टिंग वालों ने तो गले मिलके एक दूसरे को विश किया.

लड़कियों से फिर मिलने का वादा करके हमने उन्हें विदा किया और अपने रास्ते हो लिए…..!

दूसरे दिन सुबह-2 शहर के बहू चर्चित अख़बार में मुख्य खबर के रूप में एमएलए के आवारा लौन्डे की करतूत, और साथ में एमएलए द्वारा लिखा गया राज़ीनामा सील साइन वाला लेटर छपा था. 

एमएलए ने ये सपने में भी नही सोचा होगा कि कल के लौन्डे ये भी कर सकते हैं, ये करना हमारे इसलिए ज़रूरी था कि नेताओं की बात का कोई भरोसा नही होता है.

वो कभी भी किसी भी तरह से लेटर गायब करवा सकता था, और हमें भी कोई नुकसान पहुँचाने की कोशिश कर सकता था. 

इस खबर के सार्वजनिक हो जाने से उसके हाथ बँध चुके थे, अब वो सीधे तौर पर हमारा कुछ नही उखाड़ सकता था, दूसरा वो जनता की नज़र में भी आ चुका था, अब वो कोई भी ग़लत काम चाह कर भी भविष्य में नही कर पाएगा.

हम लोग फिर अपनी सामान्य दिन चर्या में बिज़ी हो गये, वोही क्लासेस, किताबें, वर्कशॉप साथ-2 में दोस्तों के गर्ल्स हॉस्टिल के चक्कर लगने लगे, अपनी-2 महबूबाओं से मिलना जुलना, डेटिंग.. !

वाकी के दोस्तों ने भी सेट्टिंग कर ली थी, जिसमें उन चार लड़कियों ने उनकी हेल्प की, और वैसे भी हमारे द्वारा की गयी उन लड़कियों की हेल्प की वजह से उस कॉलेज में हमारी एक अच्छी इमेज बन गयी थी. 

उस घटना के बाद गर्ल्स कॉलेज की प्रिन्सिपल ने हमें इन्वाइट किया था, तो हम सभी दोस्त अपने प्रिन्सिपल के साथ उनके कॉलेज गये जहाँ उन्होने हमें सभी स्टूडेंट्स की मौजूदगी में सम्मानित किया.

इसी सम्मान समारोह में हमारे प्रिन्सिपल की भी गर्ल्स कॉलेज की हॉट, अधेड़ प्रिन्सिपल से सेट्टिंग हो गयी.

लाइफ अच्छी गुजर रही थी, दिन निकलते जा रहे थे, कोई ज़यादा पंगा अब कम-से-कम हमारे कॉलेज से लेने की सोचता भी नही था, चाहे वो गुंडे हों, प्रशासन हो या नेता, कोई भी हमारे कॉलेज से विना-वजह उलझने की कोशिश नही कर करते थे और दूर ही रहते थे.
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12-19-2018, 01:50 AM,
#68
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
यहाँ मे एक बात क्लियर करना ज़रूरी समझता हूँ, कि मैने उस कॉलेज की किसी भी लड़की को अपनी तरफ आकर्षित नही होने दिया, एक नही कइयों ने कोशिश भी की लेकिन मैने बड़े प्यार से नो वेकेन्सी वाला बोर्ड अपने उपर लगा लिया था.

एक शाम मेरे दोस्त डेट पर गये थे, में अपने रूम में अकेला था, थोड़ी देर बुक्स पढ़ता रहा, फिर उठके मेस में खाना खाया, और करीब 8- साडे 8 बजे कॅंपस से बाहर रोड पर टहलने निकल पड़ा.

मेरे दिमाग़ में विचारों का आना-जाना लगा हुआ था, काफ़ी दिनों से रिंकी का कोई लेटर नही मिला था, तो मे थोड़ा उदास भी था, मन को कई तरह के विचारों ने घेरा हुआ था.

पता नही क्या हुआ होगा उसके साथ ? लेटर क्यों नही लिखा ? कहीं बीमार तो नही पड़ गयी होगी, जिसकी वजह से लेटर नही लिख पाई हो. ऐसे ही विचारों की आँधी सी चल रही थी मेरे मन में. 

टहलते-2 सोच में डूबा हुआ मे कॉलेज से काफ़ी दूर शहर से बाहर की ओर करीब दो किमी निकल आया था, रात का अंधेरा गहराता जा रहा था. रोड के दोनो तरफ घनी झाड़ियाँ थीं, झींगुरों की झींझीनाहट रात के सन्नाटे को चीरती हुई सुनाई दे रही थी बस...!

अचानक एक औरत की चीख मेरे कानों में पड़ी, पहले तो अपनी सोचों के दायरे से बाहर आकर इधर-उधर नज़र डाली लेकिन गहन अंधेरे के अलावा और कुछ नही दिखाई दिया..

1 मिनट के बाद फिर से एक चीख सुनाई दी, अब मे चौकन्ना हो चुका था, और चीख की दिशा में स्वतः ही मेरे कदम मूड गये.

करीब 20-25 कदम झाड़ियों के अंदर जाकर जो नज़ारा मेरी आखों ने देखा वो मेरी आँखों मे खून उतरने के लिए काफ़ी था. जिस बात से मुझे सख़्त नफ़रत थी वोही मेरी आँखों के सामने था.

एक औरत जिसे 4 गुंडे पकड़े हुए थे, एक ने उसका मुँह दबाया हुआ था, दो उसको आजू-बाजू से उसके हाथों को पकड़े थे, और चौथा उसके कपड़े निकालने की कोशिश कर रहा था, वो अबला नारी अपनी पूरी शक्ति से अपने कपड़े उतारने से रोकने की भरसक कोशिश में लगी थी, 

बीच-2 में जब उसके मुँह पर उस गुंडे की पकड़ ढीली पड़ती तो चीख पड़ती मदद की आशा में.

मे उनसे 5-6 कदम पहले ही खड़ा हो गया और गुर्राते हुए बोला - आए..! छोड़ो उसे, 

जो गुंडा उसकी साड़ी को पकड़े हुए था, घूम कर मुझे खा जाने वाली नज़रों से घूरते हुए बोला… आए कोन है तू..? भाग जा यहाँ से.. क्यों मरने आया है यहाँ..?

मे- चला जाउन्गा.. पहले तुम लोग उस औरत को छोड़ो..

गुंडा- तू कॉन होता है हमें ऑर्डर देने वाला.. जा यहाँ से वरना खम्खा मारा जाएगा, और उसने एक रामपुरी चाकू निकाल लिया.

मे अपनी आँखें उसके चाकू वाले हाथ पे जमाए हुए एक कदम बढ़ाते हुए बोला- अब ये तो आनेवाला वक़्त ही बताएगा प्यारे, कॉन मरता है और कॉन नही.

उनकी हालत बता रही थी वो चारों नशे में हैं, मुझे आगे बढ़ते हुए देख वो हड़वाड़ाया और हाथ उठा कर एक चाकू का वार मुझ पे किया,

उसका हाथ मैने हवा में ही पकड़ के उसकी कलाई को मरोड़ दिया, जिससे उसका चाकू हाथ से छूट गया जिसे मैने दूसरे हाथ में ले लिया.

पता नही क्यों आज मेरी आँखों में कुछ ज़्यादा ही गुस्सा था, मैने उस गुंडे का उल्टे हाथ से गला पकड़ा और दाँत भीचते हुए पूरा का पूरा चाकू उसकी आंतडियों में उतार दिया, और एक राउंड चाकू को उसके पेट में घुमाके पीछे को धक्का देदिया, चाकू बाहर निकलते ही उसके पेट से भल्भला कर खून बाहर आने लगा. वो वहीं पड़ा-2 तड़पने लगा और थोड़ी देर में शांत पड़ गया.

उसके साथियों ने जैसे ही ये सीन देखा, उनकी आँखें गुस्से में जलने लगी, नशा हिरण हो गया उन तीनों का.

जो उस औरत का मुँह पकड़े था उसने पिस्टल निकाली और दूसरे दोनो ने उसे छोड़के अपने-2 छुरे निकाल लिए, अब वो तीन तरफ से मुझ पर हमला करने वाले थे.

पिस्टल वाला दाँत पीसते हुए- हरामज़ादे कुत्ते, तूने इसे मार डाला..? साले अब तू जिंदा नही बचेगा.. और उसने फाइयर कर दिया, मेरी नज़र उसकी उंगली पर ही थी 

जैसे ही उसने फाइयर किया, मे साइड में हट गया और साथ ही एक कराट दूसरे चाकू वाले की गर्दन पर मारी..

एक साथ दो काम हुए, एक तो फाइयर की आवाज़ से उस औरत की चीख निकली, दूसरी उस आदमी की गर्दन की हड्डी टूटी और वो मरने वाले भैंसे की तरह डकार मारता हुआ, गिर पड़ा.

पिस्टल वाला भौचक्का रह गया, एक तो उसका वार खाली गया दूसरा उसका एक और साथी घायल हो गया, उन दोनो का गुस्से में मानसिक संतुलन खो गया और वो मेरी ओर झपट पड़े.. मैने फुर्ती दिखाते हुए अपनी टाँग चलाई और एक किक उस पिस्टल वाले के हाथ में लगी, उसकी पिस्टल हाथ से छूट कर कहीं अंधेरे में खो गयी, 
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12-19-2018, 01:50 AM,
#69
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
उधर चाकू वाले ने जैसे ही मुझे चाकू मारने की कोशिश की मैने उसका चाकू फल से पकड़ के झटका दिया, अब चाकू मेरे हाथ में था, लेकिन इस दौरान मेरा हाथ घायल हो गया और उसमें से खून बहने लगा.

किसको परवाह थी इस घाव की, मैने देर ना करते हुए बिजली की तेज़ी से घूमते हुए उन दोनो की गर्दन पर चाकू का वार किया, दोनो की गले की नसें कट गयी और वो धडाम से ज़मीन पर गिर पड़े…

जिसकी गर्दन की हड्डी टूटी थी, वो अपनी पूरी चेतना समेट कर झाड़ियों की तरफ भागा और उनमें गायब हो गया, मैने भी उसे ढूँढने की कोई कोशिश नही की.

मेरे हाथ से लगातार खून बह रहा था, वो औरत तो मुँह बाए हमारी लड़ाई में खोई थी, जब वो बचा हुआ गुंडा भी भाग गया, तब उसे होश आया और 

मेरे हाथ से खून बहता देख कर मेरी तरफ लपकी, आनन-फानन में उसने अपनी साड़ी की किनारी फाडी और मेरे हाथ पर बांधने लगी.

जब वो साड़ी का टुकड़ा मेरे हाथ पर बाँध रही थी तब मेरी नज़र उस पर पड़ी और मैने उसे गौर से देखा, अंधेरे के कारण सही से तो नही देख पाया पर फिर भी मुझे साड़ी में सुंदर सी लगी.

हम दोनो झाड़ियों से निकल कर बाहर सड़क पर आ गये और शहर की ओर बढ़ने लगे, चलते-2 मैने उससे सवाल किया…!
मे- कॉन थे ये लोग..? और आप यहाँ कैसे पहुँची..?

वो- मे बाज़ार से लौट रही थी, इनमें से एक ऑटो रिक्शे वाला था उसके रिक्शे में बैठी थी, जैसे ही बाज़ार की भीड़ भाड़ कम हुई, उसने रिक्शे की स्पीड तेज कर दी, मैने बोला भी कि भैया इतना तेज क्यों चला रहे हो, आराम से चलो, तो वो बोला- मेम साब मुझे कहीं जल्दी पहुँचना है सो मे जल्दी से आपको पहुँचा कर चला जाउन्गा.

पर जैसे ही मेरे घर जाने वाला मोड निकला, ये नही मुड़ा और सीधा इधर तेज़ी से रिक्शा भगा लाया, और यहाँ अपने साथियों के पास ले आया मुझे, जो शायद इनका पहले से प्लान रहा होगा...!


चलते-2 हम शहर के नज़दीक आ गये और स्ट्रीट लाइट की रोशनी हम पर पड़ना शुरू हो गयी..

हम दोनो एक दूसरे के साथ-2 ही चल रहे थे, रोशनी में आकर मैने उसपर गौर किया..! वो एक लगभग 30 साल की भरे हुए मांसल बदन की गोरी-चिट्टी 5’6” लंबी एक सुंदर सी औरत थी जो देखने में ही किसी अच्छे घर से लग रही थी, 

36” का आगे को उभरा हुआ सीना, पतला पेट, 38 की उसकी गोल-2 गान्ड जो सलीके से पहनी हुई साड़ी में थिरक रही ही, मेने थोड़ा सा पीछे रह कर उसके मटकते कुल्हों को देखा तो लगा जैसे वो दोनो एक तरह से कॉंपिटेशन कर रहे हों, कि मे बड़ा कि तू.

मे- हॅम.. ! इफ़ यू डॉन’त माइंड, मे आपको भाभी कह कर बुला सकता हूँ..? 

वो- हां..हां क्यों नही..? मुझे अच्छा लगेगा. आप यही बोलिए मुझे..

मे- भाभी ! आपका घर और कितनी दूर है..?

वो- अभी यहाँ से 2 किमी और होगा, 

मे- थोड़ा चुटकी लेते हुए..! वैसे भाभी जी उन बेचारे गुण्डों की कोई ग़लती नही थी, आप हो ही इतनी सुंदर की कोई भला मानुस भी अपना ईमान खो दे.

वो- शरमाते हुए तिर्छि नज़र से देखती हुई…! तो आपका भी ईमान डोल रहा है क्या..? मुझे देखकर..!

मे- मेरा डोलता तो मे आपको आपके घर तक छोड़ने क्यों आता..? मैने तो जो सच है वो कहा है बस.

वो- सच ! तो क्या आपको भी मे सुंदर लगी..?

मे कोई साधु सन्यासी तो नही, जो सुंदरता को सुंदर ना कहूँ, सच कहूँ तो आप सुंदर ही नही, काफ़ी सेक्सी और हॉट दिखती हो..मैने कहा.

वो खिल-खिलाकर हंस पड़ी, और हंसते हुए और भी ज़यादा सुंदर दिख रही थी. और फिर बोली.. हॉट..! और में..?

मे- हां काफ़ी हॉट..! वैसे अभी तक आपने बताया नही अपने बारे में.

वो- मेरा नाम रति है, मेरे पति आलोक वर्मा, मैं मार्केट में गारमेंट का शोरुम चलाते हैं, हमारी शादी 6 साल पहले हुई थी.

शुरू-2 में तो हम अपने सास-ससुर और देवर के साथ ही रहते थे, फिर आलोक ने यहाँ नयी कॉलोने में बांग्ला ले लिया और एक साल पहले ही शिफ्ट हुए हैं. फिर कुछ रुक कर बोली- आप भी तो बताओ अपने बारे में कुछ..

मे- मेरा कोई लंबा चौड़ा इंट्रो नही है, मेरा नाम अरुण शर्मा है, मेसी में थर्ड एअर का स्टूडेंट हूँ, हॉस्टिल में ही रहता हूँ बस इतनी सी पहचान है मेरी फिलहाल.

वो- घर ! घर कहाँ है आपका और कॉन-2 हैं वहाँ..?

मे- घर मेरा **** डिस्ट्रीक में पड़ता है, एक छोटा सा गाँव है, सब हैं माँ-पिता जी, बेहन भाई सब हैं, मे सबसे छोटा हूँ अपने घर में.

बातों-2 में पता ही नही चला और उसका घर आ गया. साडे 9 बज चुके थे, मे उसके दरवाजे तक उससे छोड़ के लौटने लगा तो वो ज़िद करके अपने घर के अंदर ले गयी..

आते ही उसने सबसे पहले मेरे हाथ से साड़ी का टुकड़ा खोल कर डेटोल से घाव को सॉफ किया और फिर उसकी ड्रेसिंग कर दी.

घर क्या था..पूरा एक खूबसूरत बड़ा सा बांग्ला था जिसके आगे एक छोटा सा गार्डन और एक कार पार्किंग सब कुछ, अंदर गये तो एक बड़ा सा हॉल उसे एक साइड में बड़ा सा किचेन दिख रहा था, उसके बाजू में वॉशरूम, फिर दो बड़े-2 से कमरे दोनो में अटॅच्ड बाथ रूम...

हॉल से ही गोलाई लेती हुई सीडीयाँ फर्स्ट फ्लोर को, उपर भी शायद तीन तो कमरे होने चाहिए. कुल मिलाकर, एक मीडियम फॅमिली लायक पूरी सुख सुखसुविधाओ युक्त, एक खूबसूरत घर था उसका.

मे- काफ़ी बड़ा और सुंदर घर है आपका, कितने लोग रहते हैं यहाँ..?

वो- मे और मेरे पति.. बस हम दो ही लोग हैं अभीतक..

मे- बच्चे नही हैं आपके..?

वो थोड़ी मायूस सी दिखी, मैने बात संभालते हुए कहा.. ओह्ह्ह मतलब फॅमिली प्लॅनिंग चल रही है अभी..

वो- नही ऐसी हमने अभी तक कोई प्लानिंग नही की, बस हुए ही नही अभी तक.

वो मुझे हॉल में पड़े एक बड़े से सोफे पर बिठा कर मेरे लिए किचेन से कुछ लाने चली गयी, मे इधर-उधर नज़र दौड़कर हॉल की भव्यता को देखने लगा.
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12-19-2018, 01:50 AM,
#70
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
थोड़ी ही देर में वो दो ग्लास में आपल जूस और कुछ स्नेक्क्स ले आई, और मेरे सामने झुक कर सेंटर टेबल पर रखा, झुकने के कारण उसका आँचल धलक गया तो उसके गोल-2 सुडौल खरबूजे और उनके बीच की गहरी खाई नुमाया हो गयी, 



वाह ! क्या खजाना छुपा रखा था उसने टाइट ब्लाउस के अंदर ? मेरी नज़र वहीं जम गयी.

जब उसने मेरी नज़रों का पीछा किया तो शरमा कर अपना पल्लू संभाल कर खड़ी हो गयी और फिर मेरे बाजू में सोफे पर बैठ कर हम दोनो जूस शिप करने लगे.

उसने स्नेक्क्स की प्लेट उठा कर ऑफर की, तो मैने एक दो पीस उसमें से उठा लिए..

थोड़ी देर इधर उधर की बातें की, उसने मुझे डिन्नर के लिए पुछा, मैने मना कर दिया कि मे मेस में ख़ाके आया था.

जब मे चलने के लिए सोफे से उठा, तो पीछे से उसने मुझे अपनी बाहों में जाकड़ लिया, और मेरी पीठ पर अपना गाल रगड़ते हुए भर्राइ हुई से आवाज़ में बोली..

मुझे ऐसे अकेले छोड़ कर ना जाओ अरुण, मुझे तुम्हारी ज़रूरत है….!

मैने बड़े प्यार से उसके दोनो हाथों को पकड़ के अपने सीने से अलग किया और उसको सामने लाकर उसकी आँखों में झाँकते हुए बोला…

अपने आपको संभालिए रतीजी… जो आप चाहती हैं वो संभव नही है..

वो- लर्जति हुई आवाज़ में- पर्रर…क्क्यों..? तुम्हें तो मे अच्छी लगी हूँ ना..!

मे- हर अच्छी चीज़ पर हर एक का हक़ नही होता…! मुझे अब चलना चाहिए रात बहुत हो गयी है, आप भी सो जाइए.. और तेज-2 कदमों से मे उसके बंगले से बाहर निकल आया…

अभी तक मेरे दोस्त डेटिंग से लौटे नही थे, मे कमरे में आकर अपने बिस्तर पर लेट गया, शाम को हुई सारी घटनाओ पर गौर करता रहा, सोचता रहा, कि साला पता नही मेरे साथ ही अक्सर ये सब क्यों होता है ?

एक तो साला आदत इतनी खराब, कि किसी के साथ ज़्याददती होते सहन नही होती, उपर से मुझे ही क्यों मिलता है ये सब होते हुए ? क्या मेरी नियती ही है ये..?

सोचते-2 पता नही कब नींद लग गयी, कब वो लोग लौटे. सुबह जब जिम से लौट रहा था तब वो लोग जिम जा रहे थे, मैने कहा क्यों भाई लोग कल तो खूब मस्ती की..क्यों ? कहाँ तक पहुँचा मामला ? किसी का गेम-वेम बजाया की नही..?

कपिल हंसते हुए.. हां यार मस्ती तो की, सिर्फ़ प्रॅक्टीस ही हो पा रही है, अभी फाइनल मॅच नही हो पा रहा..

मे- क्यों..? कोई दिक्कत है क्या..?

रोहन – अरे यार मॅच तो तब हो ना जब कोई ग्राउंड मिले खेलने लायक.. सब नये खिलाड़ी हैं, फाउल वाउल हो गया तो परेशानी में पड़ जाएँगे.. और सब ठहाका मार कर हँसने लगे..!

फिर वो सब जिम चले गये और मे रूम पर आकर कॉलेज के लिए तैयार होने लगा.

लेक्चर अटेंड करने के बाद हम चारों अपने रूम में पहुँचे ही थे, मे एक शॉर्ट और स्पोर्ट्स बनियान में बैठा था, वाकी भी ऐसे ही उन फॉर्मल कपड़ों में ही थे. मेस में लंच के लिए जाने ही वाले थे की गेट पर दस्तक हुई…!

मेरी नज़र खुले गेट पर गयी.. देखा तो एक छोटे से कद का व्यक्ति कोई 5’3” की हाइट का थोड़ा भारी शरीर का आवरेज स्किन कलर, गोल भारी चेहरा, 3/4 ही खोपड़ी पर बाल बचे होंगे खड़ा था. 

मैने सवालिया नज़रों से उससे देखा, वाकी दोस्तों की नज़र भी उसपर पड़ चुकी थी. 

वो- अरुण शर्मा इसी रूम में रहते हैं…?

मे- हां ! मे ही अरुण हूँ..! कहिए क्या सहायता कर सकता हूँ आपकी..?

तब तक एक लेडी सिल्क की साड़ी पहने नुमाया हुई दरवाजे में उसके पीछे से निकल कर..! मे चोंक गया, और बोला.. अरे रीति जी आप..? और यहाँ..?

आइए… आइए… कैसे आना हुआ…? वो एक टक मेरे कसरती शरीर पर नज़र गढ़ाए देखे ही जा रही थी…! जब मैने दुबारा उससे पुकारा.. अरे भाभिजी कहाँ खो गयीं.. तब वो हड़बड़ा गई और बोली.. व वो.. हम तुमें लेने आए हैं.

मे- मुझे लेने आए है..? कहाँ जाने के लिए..? 

वो- अरे.. चलिए तो सही..! अब कोई सवाल नही, उठिए बस..

मे- अच्छा ठीक है, आप दो मिनट रुकिये मे कपड़े पहन कर आता हूँ.

वो- ठीक हम बाहर गाड़ी में बैठे हैं, आप जल्दी से तैयार होकर आइए.

मैने अपने कपड़े पहने, मेरे दोस्त कुछ समझ ही नही पा रहे थे कि आख़िर माजरा क्या है, आख़िर ऋषभ बोल ही पड़ा.. 

अरे भाई, कॉन है ये मेनका..? और कहाँ ले जाना चाहती है तुझे..? क्या-2 गुल खिला रखे हैं तूने..? कुछ हमें भी तो बता दिया कर भाई..?

मे- अरे कुछ नही यार, अभी देर हो रही है, आके सब बताता हूँ, बाइ.. और मे निकल गया रूम से.

मे और रति पीछे की सीट पर थे, आलोक गाड़ी ड्राइव कर रहा था.

रास्ते में आलोक बॅक मिरर से मेरी ओर देखकर बोला- रति ने कल शाम की घटना मुझे बता दी है, सच में अरुण तुमने हम लोगों को बिन मोल खरीद लिया है भाई.. ! हम तुम्हारा ये अहसान कैसे चुका पाएँगे..?

तुमने मेरी पत्नी की इज़्ज़त बचा कर बहुत बड़ा उपकार किया है हम पर.

मे- अरे भाई साब ! थम्बा ! और कितना छोटा बनाएँगे मुझे..? 

मैने आपके उपर कोई अहसान नही किया है..? जिसे आप चुकाने की बात कर रहे हैं, ये सब परिस्थियाँ बन जाया करती हैं. मैने तो बस वही किया जो उस समय मुझे उचित लगा.
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