Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 01:51 AM,
#71
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
रति मेरे हाथ को अपने हाथों में लेकर बोली – ये आपका बड़प्पन है अरुण, वरना लोग तो देख कर भी अनदेखा कर के निकल जाते हैं, कोई आम इंसान क्यों अपनी जान-जोखिम में डालेगा किसी और के लिए, आपने तो उन चार-चार हथियारों से लेस गुण्डों से मुझे बचाया और उन्हें मार डाला. क्या ये साधारण सी बात है..?

आलोक- हमें पोलीस को इनफॉर्म कर देना चाहिए..!

मे- भूल कर भी इस घटना का जिकर किसी से मत करना यहाँ तक कि अपने परिवार में भी, बैठे बिठाए मुशिबत मोल लेने वाली बात होगी ये.

रति- मे भी इन्हें वही समझा रही थी. लेकिन ये रट लगाए हुए थे.

इतने में उनका घर आगया, आलोक और रति ने मुझे सर आँखों पे बिठा लिया था, उन्हें लग रहा था जैसे भगवान उनके घर आए हों और वो उनको नाराज़ नही करना चाहते.

मैने उन्हें कई बार बोला, कि इतना फॉर्मल होने की ज़रूरत नही है, मुझे आप अपना छोटा भाई समझिए तो ये सुनकर उनकी आँखें छलक आईं और आलोक मेरे गले लगकर फफक-2 कर रो पड़ा..! तुम मेरे लिए भगवान का रूप हो मेरे भाई..!

मैने उसे जैसे तैसे समझा-बुझा कर शांत किया, आँखें रति की भी भरी हुई थी जिनमें आँसुओं के साथ-2 चाहत सॉफ-सॉफ झलक रही थी, जिससे मे बचना चाहता था.

रति ने अच्छे से होटेल से खाना मंगवा रखा था, तो हम तीनों ने मिलकर खाना खाया, और फिर थोड़ी देर बात-चीत करने के बाद आलोक बोला- तुम लोग बैठो बात-चीत करो, मुझे थोड़ा अर्जेंट काम है तो मे चलता हूँ. 

मे बोला मे भी अब चलता हूँ, लंच के लिए शुक्रिया, तो रति आलोक की तरफ देखने लगी..! 

आलोक नही अरुण आज का डिन्नर भी हमारे साथ ही करोगे, देखो भाई थोड़ा हमें भी सेवा का मौका दो प्लीज़..! तुम्हें अपने यहाँ देख कर हमें ऐसा लगा कि कोई हमारा अपना हमारे साथ है.

मे- ऐसी कोई बात नही है भाई साब, आप लोग जब भी बुलाएँगे मे हाज़िर हो जवँगा, अभी चलने दो थोड़ा आज के लेक्चर का रिविषन भी करना है.

रति अपनी आँखों में आँसू लाते हुए रुँधे स्वर में बोली- जाने दो आलोक इन्हें, शायद हम ही इतने बदनसीब हैं कि किसी को अपना कह सकें.

आँसू एक औरत का आख़िरी और अचूक अस्त्र होता है किसी भी मर्द को हथियार डालने पर मजबूर करने के लिए.. “एमोशनल अत्याचार”.

मैने भी हथियार डाल दिए- आप ऐसा ना कहिए भाभी जी, ठीक है मे आज शाम तक रुकता हूँ, और डिन्नर करके ही जाउन्गा, अब तो खुश.

वो दोनो खुश हो गये ये सुन कर, आलोक अपने काम पर चला गया, रह गये हम दोनो अकेले घर में, 

मे जिस बात को टालना चाहता था, वो टल नही पाई, अब पता नही क्या क्या महाभारत होना था मेरे साथ..? मैने अपने मन में सोचा. 

क्योंकि सामने कोई आम योद्धा नही था, जिससे लड़ा जा सके, एक हस्तिनी वर्न की यौवन से भरपूर औरत थी जो ना जाने कब्से प्यासी कुए का इंतज़ार कर रही थी. 

और आज जब वो कुआँ उसके पास खुद चल कर आ गया है, तो कुछ बाल्टी पानी तो लेकर ही मानेगी.

वो अपने नाम के अनुरूप सच में रति का ही स्वरूप थी जो किसी भी मर्द के सोए हुए कामदेव को जगाने में सक्षम थी. और उपर से ना जाने कबे से प्यासी थी, जिसका पति सिर्फ़ आग लगा पाता था, बुझा कभी शायद ही पाया हो…!

आलोक के जाने के बाद रति बोली चलो अरुण अभी-2 खाना खाया है तो थोड़ी देर आराम कर्लो और मुझे लेकर वो अपने बेडरूम में आ गई.

मे अभी बेड के पास खड़ा ही हुआ था कि वो मेरी पीठ से चिपक गयी और मुझे अपनी मांसल बाहों में कस लिया..!

मे- अरे भाभी जी क्या कर रही हो ? देखो ये ठीक नही है, मैने आपकी इज़्ज़त बचाई है, तो इसका मतलब ये नही है कि मुझे आपसे उसके बदले में कुछ चाहिए, प्लीज़ छोड़िए मुझे और आराम करने दीजिए वरना मे चला अपने हॉस्टिल.

रति- अरुण प्लीज़ ! मे ये कोई अहसान चुकाने के लिए नही कर रही, मुझे तो तुम्हारा एक और अहसान चाहिए.. प्लीज़ करोगे मुझ पर एक और अहसान..?

मे- बोलिए क्या चाहिए मुझसे आपको..? 

रति- मे माँ बनना चाहती हूँ..! क्या दोगे मुझे माँ बनने का सुख..?

मे- उसके लिए तो आपके पति हैं ना.. मे कैसे..ये..सब..?

रति- मेरे पति इस काबिल नही हैं कि वो मुझे ये सुख दे सकें..!

मे- क्या..? क्या उनमें सेक्स क्षमता नही है..?

रति- नही ऐसी बात नही है, शुरू-2 में वो सेक्स को बहुत एंजाय करते थे, कुछ सालों तक हमने काफ़ी एंजाय किया लेकिन कुछ सालों के बाद भी मे माँ नही बन सकी तो इनके पेरेंट्स इसके लिए मुझे दोषी समझने लगे और मेरे उपर दबाब डालने लगे.

लेकिन ना जाने कैसे आलोक को अपनी कमी का पता चल गया और वो दुखी रहने लगे, माँ-बाप के तानों से बचने के लिए ही हमने ये घर लिया और अलग रहने आगये.

अब तो उन्होने अपने आपको बिज़्नेस में इतना डूबा लिया है कि मेरी इच्छाओ को भी नज़र अंदाज करने लगे हैं.

मे- तो फिर मे ही क्यों..? उनका अपना भाई भी तो है या और कोई…!

रति – तुम नही समझोगे अरुण ! एक औरत अपना शरीर जो उसकी पूंजी होता है, यूँ ही हर किसी को नही सौंप देती, जो उसके दिल में बस जाए वो उसी को देती है ये सौगात.

मैने आज तक आलोक के सिवाय किसी के लिए भी वो भावनाएँ अपने दिल में महसूस नही की थी.

लेकिन कल जब तुमने ना मेरी इज़्ज़त बचाई बल्कि एक अंजान औरत के लिए अपनी जान जोखिम में डाल कर उन बदमाशों को उनके अंजाम तक पहुँचा दिया. 

तबसे मेरे दिल में तुम्हारे लिए जो इज़्ज़त, जो भावना पैदा हुई है वो अभी तक मेरे अपने पति के प्रति भी कभी नही हुई.

तुम्हारे द्वारा कल मुझे यूँ ठुकरा के चले जाने के बाद तो और भी जयदा इज़्ज़त बढ़ गयी तुम्हारे लिए मेरे दिल में. 

मैने सच्चे दिल से आलोक को अपनी भावनाओं के बारे में सब सच-2 बताया तो उसने भी मेरी भावनाओं को उचित ठहराते हुए तुमसे रीलेशन बनाने को कहा, इसलिए तो हम दोनो तुम्हें लेने तुम्हारे हॉस्टिल गये, क्योंकि मुझे पता था कि अगर मे अकेली तुम्हें लेने जाती तो शायद तुम नही आते.
Reply
12-19-2018, 01:51 AM,
#72
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मेरा मुँह खुला का खुला रह गया उसकी बातें सुन कर, मुझे विस्वास नही हो रहा था कि कोई पति अपनी पत्नी को किसी और की बाहों में जाने के लिए कह सकता है.

मे ये भी नही चाहूँगी कि तुम मुझसे अपनी मर्ज़ी के खिलाफ जाकर समबंध बनाओ, बस मेरी ये इलतज़ा है कि मे तुम्हारे जैसे सच्चे और नेक दिल इंसान के बच्चे को जन्म दूं. अगर तुम्हारा दिल इस बात के लिए राज़ी नही है तो कोई बात नही मे तुम्हारी यादों के सहारे जिंदगी बसर कर लूँगी, 

जैसे अबतक जीती आ रही हूँ आगे भी जी लूँगी और ये बोलते-2 उसकी रुलाई फुट पड़ी.

मैने पलट के उसके रसीले होठों को चूम लिया और उसकी बड़ी-2 काली आँखों से छल्के आँसुओं को अपने लवो में जप्त कर लिया.

उसकी झील सी गहरी आँखों में मैने अपने लिए एक श्रद्धा का भाव देखा, जो एक भक्त का अपने भगवान के प्रति होता है.

मे- क्या सचमुच तुम मुझे चाहने लगी हो..? या सिर्फ़ एक बच्चे की चाह मेरी ओर ले आई है तुम्हें..

रति- मेरी आँखों में देख कर पता लगा लो की मेरे दिल में क्या है ? शायद तुम्हें सच दिखाई दे जाए..? मेरी बातों का विस्वास क्यों करते हो? 

दिल की बातें तो आँखों के ज़रिए ही पढ़ी जा सकती हैं. है ना अरुण..! वो भावुकता में बहती चली गयी.

मे तो कल से ही उसकी तरफ आकर्षित हो चुका था, लेकिन नही चाहता था कि कल को कोई मुझ पर या उसके चरित्र पर उंगली उठाए इसलिए ये करना भी ज़रूरी था.

मे कितनी देर तक उसकी हिरनी जैसी आँखों की गहराई में डूबा रहा.. क्या दिखा तुम्हें इन में…? उसने पुछा तो मुझे होश आया..!

आय्ीन्न.. हां ! मुझे बहुत कुछ दिखा तुम्हारे इन मद भरे प्यालों में, एक बार तो डूब ही गया था, बड़ी मुश्किल से बाहर आ पाया हूँ. मुस्कराते हुए जबाब दिया मैने. 

रति- तो फिर बताओ ना क्या दिखा..? अरुण तुम्हें मेरी बताओं पर विस्वास हो या ना हो पर मे तुम्हें अपने दिल ही दिल में पूजने लगी हूँ, एक देवता की तरह. मुझे स्वीकार कर्लो मेरे देव.. प्लीज़..! इस पुजारन की पूजा कबूल कर लो.. और कहते-2 छलक पड़ी उसकी आँखें.

मैने अपनी हथेलियों से उसकी आँखों से छल्के पानी को सॉफ किया और बोला… अब बस करो रति, मत रो प्रिय, मे भी कल से ही तुम्हें पसंद करने लगा था,… हां मे सच कह रहा हूँ जान, लेकिन डरता था कि कहीं तुम रुसबा ना हो जाओ मेरी वजह से, इसलिए दूर भागने की कोशिश कर रहा था.. लेकिन भाग ना सका.

रति- सच..! तुम सच कह रहे हो..? 

और बुरी तरह लिपट गयी मेरे सीने से वो..! उसके 36 साइज़ के बूब्स और उनके नुकीले निपल मेरी छाती में चुभने लगे, मानो सज़ा देना चाहते हों मुझे कि साले बहुत तरसाया है हमें अब देख तेरी खैर नही.

मैने रति के मासूम भोले भले चेहरे को अपने हाथों में भरके उपर किया और अपने सूखे और भूखे होंठ उसके रसीले होठों पर जमा दिए, वो तो जैसे इसी बात का इंतजार कर रही थी कि टूट ही पड़ी मेरे होठों पर, 

वो मेरे नीचे के होठ को चूसने लगी, मैने भी उसके उपर के होंठ पर कब्जा कर लिया, फिर ना जाने कब हमारी जीभ एक दूसरे से कबड्डी खेलने लगी.

जो भी हो रहा था वो जैसे स्वचालित था, हमरे शरीर की स्टारिंग अब हमारे दिलों के हाथ में थी हम तो सिर्फ़ एक माध्यम बन कर रह गये थे.

मेरे हाथ उसके खरबूजों का जायज़ा ले रहे थे और देख रहे थे कि ये पके हैं या अभी समय है. ना जाने कब उसका ब्लाउस उतर गया पता ही नही चला.

उसकी कसी हुई ब्रा में क़ैद कबूतर फड़फड़ाने को व्याकुल हो रहे थे, चोंच उठा कर उसे फाड़ डालने की कोशिश कर रहे थे, जब मुझसे उनकी ये दशा देखी नही गयी तो मैने रति के कान में फुसफुसा कर कहा.

जान.. ! इन कबूतरों पर अब और ज़ुल्म ना करो प्रिय.. ! तो वो मेरे कंधे पर दाँत गढ़ाते हुए बोली… तो आज़ाद क्यों नही कर देते बेचारों को…दुआएँ देंगे आपको.

उसकी गर्दन चूमते हुए मैने हाथ पीछे ले जाकर उसकी ब्रा के हुक खोल दिए, सच में उन कबूतरों ने उस ब्रा को दूर उछाल दिया मानो उनमें स्प्रिंग लगे हों.

उसकी एवरेस्ट की चोटियों को देख कर मेरी आँखें चुन्धिया गयी… क्या बूब्स थे..? आज से पहले मैने कभी इतने सुडौल चुचियाँ नही देखी थी, एक दम सतर, उपर से उत्तेजना के मारे उसके निपल एकदम कड़े हो गये थे..

अब मुझसे सब्र नही हुआ इतने सुडौल वक्ष देख कर, मसल ही डाला पूरे जोश के साथ हाथों में भरके…!

आआययययीीईई…. मारररर… गाइिईई… धीररीए.. सीईयाअहह… उखाड़ ही डालॉगीए.. इनकूओ… आअहह….प्लस्सस्स.... आर्रामम्म सी… तुमहरे लिईए…ही हैन्न… प्याररर..सीए…कार्र्रूऊ….ऊऊओउउच…म्माआ… ससिईई….इतने जालिम्म… नाअ.. बानू..रजाअ…!

उसके निपल को मसल के एक चुचि को मुँह में भर पूरा दम लगाके वॅक्यूम पंप की तरह सक कर दिया…!
Reply
12-19-2018, 01:51 AM,
#73
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
रति अपना सर पीछे की तरफ झुकती चली गयी, जिसकी वजह से उसके पर्वत शिखर और ज़्यादा उँचे दिखने लगे… मे उसकी चुचियाँ देख-देख कर ही बाबला हुआ जारहा था और बुरी तरह मसल रहा था दूसरी को.

मैने जैसे ही अपना मुँह उसकी चुचि से हटाया, रति ने झपट के मेरे मुँह को भर लिया अपने मुँह में. और मेरे होठों को चबाने लगी. मेरे हाथ उसकी साड़ी उतरने में लग गये और उसके हाथ मेरी शर्ट.

जाने कब हम दोनो एकदम नितन्ग नंगे खड़े एक दूसरे में सामने की कोशिश में लगे थे, मेरे हाथ उसकी नंगी पीठ से होते हुए जैसे ही रति की कमर के नीचे कटाव पर पहुँचे… आअहह… क्या उठान था उसके चुतड़ों का, ऐसा लगा मानो दो कलशे उल्टे करके रख दिए हों.

जैसे ही हाथ उन कलषों के शिखर पर पहुँचे, अनायास ही कस गये, और पूरी ताक़त से दबा दिया उन्हें. रति आहह भरती हुई और ज़ोर से चिपक गयी मुझसे.

मे जिग्यासावश बैठता चला गया नीचे की ओर, उसकी नाभि… ऑश.. मेरे मौला… क्या ऐसी भी नाभि हो सकती है किसी की, एकदम गुदाज सपाट पेट में 1 सेनटीमीटर दिया का जैसे ड्रिल मार दिया हो किसी सर्फेस में. 1 इंच गहरी नाभि थोड़ी सी नीचे को झुकी हुई सी.

मेरी जीभ बिना चाटे रह ना सकी उसके अतुल्यनीय नाभि स्थल को.

जैसे ही मे अपनी मंज़िल पर आगे बढ़ा नीचे की ओर.. तो बस…! देखता ही रह गया…!! कुदरत की उस अनमोल कारीगरी को जहाँ से इस सृष्टि का उदगम होता है….!

मे अपने घुटनो पर बैठा हुआ था, उसका मध्यस्थल ठीक मेरी आँखों के सामने था जो किसी अजंता-एलोरा की कला कृति से कम नही लग रहा था.

जंपिंग बाइक के रास्ते जैसा उसकी कमर का कटाव जो उपर से आने पर हल्का ढलान लिए, तुरंत बाद एक परफेक्ट कुर्बे लिए उसके नितंबों का उठान, जैसे जियामेट्री के स्टूडेंट ने कोई आर्क ड्रॉ किया हो.

और नीचे आते ही थोड़े से टेपर के साथ दो खंबे मानो केले के दो तने खड़े कर दिए हों, ऐसी उसकी मांसल एकदम मक्खन जैसी चिकनी जंघें जिनके बीच में जगत का उत्पत्ति स्थल जो अभी तक निष्काम साबित हुआ था किन्ही कारणों से.

बाल विहीन उसकी योनि जो किसी महयोगी की साधना भंग करने में पूर्ण समर्थ हो, दो-ढाई इंच की लंबाई लिए मानो दो रेत के डेल्टा ऑपोसिट में ढलान लिए, जो एक छोटी सी दरार पड़ने से दो भागों में विभक्त हो गये हों मानो ऐसी उसकी योनि.

मैने उसकी टाँगों को हल्का सा एक दूसरे से अलग किया तो वो दरार अब एक संकरे से दर्रे में तब्दील हो गयी, अपनी जीभ को उस दर्रे में उतार दिया… आअहह… खाई में हल्का-2 गीलापन था, जो कुछ खट्टे-मीठे स्वाद जैसा लगा.

जैसे ही मेरी जिभ्या उसकी खाई में उतरके थोड़ा उपर नीचे हुई, रति की आँखें अपने आप बंद हो गयीं, और उसके हाथ की उंगलिया मेरे बालों में खेलने लगी. एक लंब्ब्ब्बबबीइई सी मादक सिसकी उसके मुँह से फुट पड़ी.

सस्सिईईई…..उउउऊओह… म्माआ.. ऊहह..अरुण … आअहह… मट्त्त… कारूव…. ईए.. सुउउ.. हेययय.. भगवान्न्न…ह.

मैने उसकी माल पुए जैसी योनि को अपने मुँह में भर लिया और हल्के से दाँत गढ़ा दिए…!

रति की टांगे काँपने लगी.. और उसका मध्यस्थल स्वतः ही थिरकने लगा.. मुँह से अजीब-2 आवाज़ें निकल रही थी उसके, मे अपनी जीभ की नोक से उसकी योनि को कुरेद रहा था.

एक इंच के करीब उसकी क्लोरिटूस एक कंचे जैसी बाहर निकल आई थी, मैने उसे दाँतों से उसे कुरेद दिया, अपनी एक उंगली उसकी योनि में घुसादी और अंदर बाहर करने लगा.

वो बुरी तरह अपनी कमर हिला-हिला कर मेरे मुँह पर मार रही, दो मिनट के लिए उसने मेरे मुँह को अपनी योनि पर बुरी तरह दबा दिया और एक हाथ से अपने बड़े-2 चुचों को मसल्ते हुए झड़ने लगी.

जब उसका ओरगिस्म ख़तम हो गया तो उसकी टाँगें काँपने लगी, अब उससे खड़ा नही हुआ जा रहा था.

अरुण बेड पर चलो ना, मुझसे अब खड़ा होना मुश्किल हो रहा है बोली वो..

एक मिनट… थोड़ा घूम जाओ, मैने कहा तो वो घूम गयी… ओह माइ गॉड… उसके नितंब… ! मेरे पास शब्द नही थे उसके नितंबों की बनावट बया करने को…!

क्या भरे-2 दो कलशो जैसे पूर्ण पुष्ट नितंब एकदम गोलाई लिए, बिल्कुल झुकने को तैयार नही. रूई के माफिक एकदम सॉफ्ट. जब मैने उन्हें जोरे से दबा कर फिर से छोड़ा तो वो थिरक उठे.

मे अपना धैर्य खो बैठा और मुँह मार दिया एक चूतड़ में, बुरी तरह से दाँत गढ़ा दिए, उसकी चीख पूरे बंगले में गूँज गयी…

आआययययीीई…. मररर गाययययीीई… मत कतो प्लस्ससस्स… और हाँफने लाफ़ी.. शिकायती लहजे में बोली वो… ऐसे भी कोई काटता है भला..

उस नितंब पर प्यार से सहलाया मैने दाँतों के निशान उसके हल्के लालमी लिए गोरे नितंब पर छप गये थे.

सहलाते-2 मन नही माना तो दूसरे को भी काट लिया.. वो बनावटी गुस्से से मूड कर देखने लगी मुझे..! मानोगे नही..! हां..!!

दोनो हाथों से उसके कलशो को सहला कर में उसके पीछे खड़ा हो गया, बिल्कुल सटके. मेरा मूसल उसकी गान्ड की दरार में लोट रहा था मानो कोई घोड़ा ठंडे रेत में अपनी थकान मिटाने के लिए लोट रहा हो…!

उसके कंधों को सहलाते हुए, उसकी गरदन को चूमा और फिर उसके कान की लौ को होठों में दबा के उसके कान में फुसफुसाया…!

तुम इतनी सुंदर क्यों हो रति…? तुम्हारे इस बदन को देख कर मेरा दिल बार-2 देखते रहने का हो रहा है…!

रति- ये दासी पसंद आई मेरे मालिक को, मेरे लिए यही बहुत है. 

क्या बिदम्बना थी मेरे जीवन की, एक 10 साल बड़ी यौवन से लदी फदि हस्थिनि वर्न की औरत अपने आप को मेरी दासी कह रही थी, वाह रे उपर वाले तेरी महिमा अपरंपार है.

मे- नही जान तुम मेरी दासी नही, मेरे दिल की धड़कन बन चुकी हो अब.

फिर मैने उसे पलंग पर लिटा दिया और टांगे चौड़ा के उसके योनि प्रदेश में एक बार फिर डूब गया..! एक बार बड़े प्यार से हाथ रख कर सहलाया उसकी रस से सराबोर योनि को और फिर उसके बीच में बैठ कर अपने शेर को दुलारते हुए उसकी गुफा पर रख दिया…!

अब और सब्र नही हो रहा है अरुण…! प्लीज़ डाल दो इसे मेरे अंदर तक, मेरी योनि कब्से इंतजार में है इसे पाने के लिए…! मानो रिक्वेस्ट की उसने.

इंतजार की घड़ियाँ ख़तम हुई रानी, ये लो..! और एक भरपूर धक्का लगा दिया अपनी कमर में. 

3/4 लंड एक झटके में चला गया उसकी चिकनी चूत में. उसके मुँह से आहह.. निकल गयी…!

आअररामम से ….! तुम्हारा हथियार थोड़ा मोटा है… आराम से जगह बनाने दो उसे…!

एक और झटका मारा तो उसकी चीख निकल गयी.. पर मेरा शेर पूरा मांद में घुस गया…!

आआययईीीई…म्माआ.. मर्गयि… धीरे… रजाअ… दर्द होता है..!

मे- रानी.. इतने सालों से लंड ले रही हो फिर ये नाटक क्यों..?

रति- आलोक का बहुत छोटा और पतला भी है इसके मुकाबले… तो दर्द तो होगा ही ना..! और तुम इसे नाटक समझ रहे.. हो.. ? 

मे- सॉरी भाभी..! और मैने अपनी कमर को मूव्मेंट देना शुरू कर दिया.. थोड़ी ही देर में उसकी राम प्यारी मेरे पप्पू के हिसाब से सेट हो गयी और वो भी कमर चलाने लगी.

एक हस्थिनि वर्न की औरत जब मज़े में आ जाती है तो वो मर्द का क्या हाल करती है, ये आज मुझे पता लगने वाला था…!

एक लय बद्ध तरीके से मेरे धक्के और उसकी कमर चलने लगे, मे जब अपनी कमर को उपर की ओर लाता तभी वो अपनी गान्ड को पलंग पर रख लेती, और जैसे ही मेरी कमर धक्का मारने को होती वो अपनी कमर को उचका कर मेरे लंड का स्वागत करती.
Reply
12-19-2018, 01:51 AM,
#74
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
ठप-ठप दोनो की जांघे एक दूसरे से टकरा कर एक संगीत जैसा पैदा कर रही थी.

10 मिनट में ही उसकी रस गागर से रस की फुहार फूटने लगी, उसके दोनो पैरों की एडीया मेरी गान्ड पर कस गयी और कमर हवा में लहराने लगी.

फिर मैने उसको पलंग के नीचे खड़ा करके घोड़ी बना दिया और रस टपकाती उसकी गागर के मुँह पर अपना मूसल टीकाया और एक ही धक्के में पूरा लंड सर्र्ररर… से अंदर.

मैने उसके दोनो बाजुओं को पकड़ कर अपनी ओर खीच लिया अब उसकी कठोर कड़क बड़ी-2 चुचियाँ और आगे को तन गयी, कड़क हो चुके निपाल आगे को और निकल आए, बड़े -2 कुल्हों का उभार और ज़्यादा पीछे को हो गया.

धक्का लगते ही मेरे जांघों के पाट जब उसके भरे हुए चुतड़ों पर पड़ते, अहह…. मत पुछो कैसा फील हो रहा था ?

मैने उस घोड़ी को जो सरपट दौड़ाया, हाए-2 करती हुई वो फुल मस्त होकर चुदाई का लुफ्त लेने लगी.

आअहह….उफफफ्फ़…मेरीए…मालिक… बहुत मज़ा आ रहाआ..हाइईइ…और जोरे से….चोदूओ…मुझीए…फाड़ डलूऊ… भोसड़ाअ..बनाअ..दो इसस्स..निगोड़ीईइ…चुट्त्त… का..

उसकी बड़ी-2 चुचियाँ हवा में झूलती हुई कहर बरपा रही थी. 

उसके बाजुओं को छोड़ अब मैने उसके पपीतों को जकड लिया और सटा-सॅट अपना लंड उसकी रस से सराबोर चूत में पेलने लगा, मुझे इतना मज़ा आज तक नही आया था.

करीब आधे घंटे की धक्का-पेल चुदाई के बाद में उसकी ओखली में अपना मूसल उडेल कर उसकी पीठ पर लद गया,

वो मेरे वजन को सहन नही कर पाई और औंधे मुँह पलंग पर गिर पड़ी. 

साँसों के इकट्ठा होते ही, हम दोनो एक दूसरे को चूमने चाटने लगे, हाथ फिर से बदमाशी पर उतर आए, और जहाँ नही पहुँचना चाहिए वहाँ भी पहुँचने लगे.

एक बार फिरसे माहौल गरमा गया, और वो मेरे उपर आकर मेरे लंड पर अपनी भारी गान्ड लेकर बैठ गयी.

एक बार जब फिर से चुदाई का दौर शुरू हुआ तो बंद होने का नाम ही नही ले रहा था, अलग-अलग आसनों से अलग-अलग तरीकों से हमारी चुदाई रात तक चलती रही थोड़े-थोड़े रेस्ट इंटर्वल के साथ. 

ना जाने कितनी बार बदल उमड़-घमाड़ कर आए और बरस कर चले गये..!

दोपहर 2 बजे से शाम 8 बजे तक, थक कर चूर हम दोनो पलंग पर उसी हालत में पड़े रह गये और नींद में चले गये…!

देर रात करीब दस बजे जब डोर बेल चीख रही थी, पता नही कब से..? तब हमारी नींद खुली.. 

रति ने मुझे उठने नही दिया और मेरे उपर एक चादर डाल दी, अपनी नाइटी पहन कर गेट खोलने चली गयी..!

थोड़ी देर में ही वो लौट आई और फिर से चिपक कर लेट गयी मेरे साथ..
कॉन था ? पुछा मैने, तो वो बोली कि आलोक थे, 

मे- अरे बाप रे… चलो उठने दो मुझे.. 

वो हंसते हुए बोली- अरे डरो नही, मैने उन्हें वापस भेज दिया है खाना लाने, भूखे थोड़े ही मरना है..!

फिर मैने उसके होठों को चूमते हुए उसकी आँखो में झाँकते हुए पूछा- 
भाभी… ! खुश तो हो ना अब..!

वो- बहुत…! जैसे मेरे सपनों का संसार अब जाके बसा हो…! अधूरी सी थी मे अब तक, अब जाके पूरी औरत होने का एहसास हुआ है मुझे...!

औरत का सुख धन दौलत में नही होता है अरुण, उपर वाले ने जो उसे नवाजा है, अगर उसका वो सही से स्तेमाल ना कर पाए तो वोही यौवन उसके लिए अभिशाप बन जाता है.

और ऐसे ही थोड़ी देर एकदुसरे को चूमने चाटने के बाद हम उठे, अपने-2 कपड़े पहने, और हॉल में आकर सोफे पर बैठ आलोक का इंतजार करने लगे.

खाना खाने के बाद, मे अपने हॉस्टिल चला आया. 

अब ये मेरा रोज़ का रुटीन हो गया था, क्लासस के बाद मे सीधा रति के साथ ही लंच लेता, और फिर एक-दो राउंड रति-युद्ध होता, और लौट लेता हॉस्टिल. 

एक दिन जब हम तीनों लंच ले रहे थे, कि रति का जी मिचालाने लगा, और वो उठकर वॉश-बेसिन पर चली गयी और उल्टियाँ करने लगी, आलोक घबरा गया, गाड़ी उठाई, हॉस्पिटल ले गये, मे भी साथ ही था.

डॉक्टर. ने चेक-अप किया और आलोक से बोली- कंग्रॅजुलेशन्स मिस्टर. वर्मा, आप बाप बनने वाले हैं..!

आलोक झेन्प्ते हुए अपनी खुशी का इज़हार करने लगा – हे हे हे… थॅंक यू डॉक्टर. 

मैने रति की ओर देखा, तो वो शरमा का सर झुकाए मुस्करा रही थी, 

डॉक्टर ने कुछ हिदायतें दी, शुरू के दिनो के लिए, और घर आ गये.

आलोक ने रति को पूरी तरह आराम देने के लिए, जो नौकरानी आधे दिन तक काम निपटा के चली जाती थी, उसी को 24 घंटों के लिए रखने का बोल दिया.

आलोक के चले जाने के बाद मैने रति को बाहों में भर लिया और उसके होंठ चूमते हुए.. कहा..!

क्यों जानेमन अब तो पूरी हो गयी या अभी कुछ और कमी है..?

वो हंसते हुए बोली - ये सब तुम्हारी मेहनत का फल है, मुझे तो कभी आशा ही नही थी कि मे इस जीवन में कभी माँ बनने का सुख ले पाउन्गि.

मे - एक सुझाव है, अगर मानो तो..!

वो- हुकुम करो मालिक, सुझाव नही..! बोलो क्या चाहिए तुम्हें..? मेरी जिंदगी भी अब तुम्हारे लिए है..!

मे- देखो ! नौकरानी तो ठीक है वो तो काम ही करेगी, लेकिन कोई अपना, समझदार वो भी फीमेल, अब यहाँ कुछ दिन होना चाहिए, पता नही कब क्या ज़रूरत आन पड़े… ? समझ रही हो ना ! मे क्या कहना चाहता हूँ.

रति- बात तो सही है, लेकिन अब कॉन आ सकता है मेरे पास, सासू जी हैं तो वो उस घर को छोड़ के आने वाली नही है, वो भी हमेशा के लिए… तो..

मे- देखो अगर तुम मानो तो कुछ पहचान की लड़कियाँ हैं, कॉलेज में पढ़ती हैं, और हॉस्टिल में ही रहती हैं, मेरे दोस्तों की वो फ्रेंड्स हैं, तो अगर तुम चाहो तो एक दो से बात कर सकते हैं यहाँ रहने के लिए कुछ दिनो तक..

वो- मे समझ गयी, तुम्हें अपने दोस्तो की भी चिंता है, है ना..! तुम्हारी तो नही हैं ना कोई…एँ..एँ.. और मेरी बगल को गुदगुदा दिया उसने..

मैने हँसते हुए कहा- मेरी भी हैं ना… ! पर वो अभी मेरी बाहों में है, और मैने कस लिया उसे अपने सीने में.

वो खुशी से झूम उठी, शुक्रिया मेरे मालिक.. मुझे अपनी गर्लफ्रेंड कहने के लिए…! बोल दो उनको, दो-चार तो आराम से रह सकती है, जगह की तो कोई कमी नही है घर में….!

हॉस्टिल आके मैने अपने तीनो यारों को बिताया अपने पास और पुछा कि और बताओ कैसा चल रहा है सब, तो वो पहले तो भड़क गये और बोले-

तुझे क्या हमसे..? तेरा तो आजकल कुछ पता ही नही रहता ? कहाँ जाता है ? क्या करता है..? नये भैया भाभी क्या मिल गये, हैं तो भूल ही गया है हमें..!

मे- अरे शांत मेरे प्यारे मित्रो..! शांत ! और बताओ तुम लोगों की प्रेम कहानी कहाँ तक पहुँची..?

धनंजय- इनकी तो पता नही लेकिन मेरी प्रेम कहानी का तो दा एंड ही समझो..?

मे- क्यों ? ऐसा क्या हुआ भाई ? हसीना रूठ गयी क्या..?

धनंजय- रूठ ही जाएगी जब कोई मौका उसे नही मिलेगा आगे बढ़ने का तो..! अब मे कहाँ से उससे 5स्टार होटेल ले जाउ यार..?

मे- हमम्म.. .और तुम लोगों का..मैने जगेश और ऋषभ से पुछा..

ऋषभ- मेरा भी ऐसा ही कुछ है, जब भी मिलता हूँ.. यही सवाल कि कुछ करो.. कब तक ऐसे ही होंठो से प्यास बुझाते रहेंगे..?

जगेश- मुझे तो एक मौका लग गया जंगल में, पर साला तसल्ली नही हुई यार…!

मे- क्या बात है मेरे शेर..! तूने कुछ तो किया, ये दोनो तो साले चूतिया ही निकले..!

वो दोनो- ऐसे खुले में डर लगता है भाई..! हमारी हिम्मत नही होती..
Reply
12-19-2018, 01:51 AM,
#75
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मे- हमम्म..! मेरे पास एक आइडिया है.. अगर वो तुम्हारी महबूबाएँ मान जाएँ तो..

तीनो एक साथ - क्या..?

मे- उनको पुछो वो तीनो किसी के घर में रह सकती हैं कुछ दिन..? रहने खाने की कोई प्राब्लम नही है बस मिलजुल कर रहना है. सबको अलग-2 कमरे मिलेंगे, दिन में कभी भी जाके तुम लोग उनसे मिल सकते हो और एंजाय कर सकते हो..!

वो – कॉन है..? किसका घर है..? 

मे- मेरे नये भैया भाभी का..! सुनो- भाभी अभी-2 प्रेगेनेंट हुई हैं, अकेली रहती हैं, बड़ा सा बांग्ला है, तो मैने उन्हें सजेस्ट किया कि कोई समझदार लेडी उनके साथ होनी चाहिए ऐसे टाइम पर तो वो मान गयी..!

वो- पर यार ..!! हम लोगों के वहाँ जाने पर उनको एतराज़ भी तो हो सकता है..

मे- उसकी तुम टेन्षन ना लो.. मे सब क्लियर कर दूँगा, तुम बस उन हसिनाओं से बात करके राज़ी कर लो वहाँ रहने के लिए कुछ दिनो तक.

वो तीनो उसी शाम उनसे मिले और थोड़ा बहुत समझाने के बाद वो मान गयी.. मैने आलोक को भी बता दिया, तो उसने भी हां बोल दी.

दूसरे दिन ही वो लड़किया अपने बॅग उठाए पहुँच गयी बंगले में..

फिर क्या था, मेरे दोस्त भी खुश, मे तो था ही खुश इस तरह से सबकी मौज हो रही थी, समय मज़े से कट रहा था.. कि एक दिन…

मेरे घर से टेलीग्राम आया कि चाचा की बीमारी की वजह से मौत हो गयी..

मैने आनन फानन में अपना समान पॅक किया और उसी शाम ट्रेन पकड़ कर घर आगया.. !

मुझे बड़ा दुख पहुँचा, क्योंकि मेरे घर में चाचा ही मेरे लिए स्पेशल थे.

पर होनी को कॉन टाल सकता है, घर में दुख का माहौल था.. नाते-रिश्तेदारों का आना-जाना लगा रहता था..

मेरी पढ़ाई छूट रही थी..! लेकिन फिर भी उनकी तेरवी तक तो रहना ही था, सो करता रहा तेरवी का इंतजार.

तेरवी निपट जाने के बाद दूसरे दिन मैने सोचा कि चलो आज रिंकी की खैर खबर ले लेते हैं क्योंकि काफ़ी दिनो से उसके लेटर मिलना भी बंद हो गये थे सो चल दिया कस्बे की तरफ, और जाके अपने पुराने दोस्त राजू त्यागी की शॉप पर पहुँचा.

मुझे देखते ही वो खुशी से मिला..! इधर उधर की बातों के बाद जब मैने रिंकी के बारे पुछा, वो कुछ देर गुम सूम सा बैठा रहा, जब मैने दुबारा उससे कहा कि क्या हुआ बताता कुछ क्यों नही..?

फिर उसने मुझे रिंकी के बारे में जो बताया उसे सुन कर मेरी ज़ुबान तालू से चिपक गयी, मुँह सुख गया, आँखें झपकाना ही भूल गया, मे कुछ देर लकवे जैसी स्थिति में बैठा रह गया…..!!

राजू – लास्ट टाइम तू जब उससे मिलके गया था, उसके कुछ महीने बाद ही पता नही उसकी माँ को तेरी दी हुई कोई गिफ्ट मिल गयी, जब उसने रिंकी से पुछा कि ये इतनी कीमती चीज़ कहाँ से आई तेरे पास हमने तो कभी दी नही.. 

पहले तो वो बहाने बनाती रही, अंत में उसने सच्चाई बता दी, उसकी माँ ने उसके बाप को बता दिया.. वो आया तो उसे बहुत बुरा भला कहा और उसकी शादी की बात शुरू कर दी..

रिंकी बार-2 मना करती रही की अभी उसे पढ़ाई करनी है, ग्रॅजुयेशन के बाद ही शादी करेगी, लेकिन वो नही माने.

अपनी ही कंपनी के किसी मुलाज़िम से उसका रिस्ता तय कर दिया. रिंकी दिन-2 भर रोती रहती थी, उसका घर से निकलना भी बंद कर दिया था.

एक महीने के अंदर ही उसकी शादी हो गयी, और वो रोती बिलखती रही, ज़बरदस्ती से विदा करके गाड़ी में बिठा दिया उसको. 

जब उसको गाड़ी में बिठाया था, उसी समय वो बेहोश हो चुकी थी, ज़्यादा किसी ने ध्यान नही दिया, कि विदा होते समय लड़कियाँ दुखी तो होती ही हैं, ये कुछ ज़्यादा है..

लेकिन जब उसको उसके पति के घर पहुँच कर गाड़ी से नीचे उतारा तो वो इस दुनिया से जा चुकी थी, इतना बोलते-2 राजू की आँखों में भी पानी आ गया.
Reply
12-19-2018, 01:52 AM,
#76
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मुझे तो जैसे पूरे शरीर को लकवा मार गया हो, कितनी ही देर तक यूही सकते की हालत में बैठा रहा…! फिर राजू ने मेरे कंधे पर हाथ रख के हिलाया.. तब मेरी तंद्रा टूटी.. मेरी आँखें झरने की तरह बरस रहीं थी, गम और गुस्से में मेरे मुँह से निकला…

मे उस हरामजादे बानिए को जान से मार दूँगा… मेरी रिंकी को मार डाला उस कुत्ते ने…!

राजू- किसे मारेगा..? उसके बाप को..?

मे- हां राजू, मे उस हरामजादे को छोड़ूँगा नही..

राजू- चल आजा मेरे साथ..! और वो मेरा हाथ पकड़ कर ले गया उसके घर के अंदर.. !

रिंकी का बाप एक टूटी फूटी चारपाई पर लेटा अपनी मौत के दिन गिन रहा था.. पूरे शरीर को लकवा मार चुका था, अब वो अपनी मर्ज़ी से हिल भी नही सकता था.

राजू – ले मार दे इसे, और दिला दे मुक्ति इसके दुखों से इसको.

रिंकी की माँ मुझे देखते ही मेरे सीने से लग कर फुट-फुट कर रोने लगी और रोते-2 ही बोली-

बेटा हम तुम दोनो के गुनहगार हैं, अपनी झूठी मान-मर्यादा की भेंट चढ़ा दिया हमने अपनी बेटी को..! हमें सज़ा दो बेटा.. हमें मार डालो..

मे- कम से कम एक बार मुझे खबर करके पुछ तो लेते, क्या हमें चिंता नही अपने माता-पिता के मान सम्मान की, लेकिन आप लोगों की ज़िद ने मार डाला उससे..! काश में समझ पाता कि उसके लेटर मिलना क्यों बंद हो गये हैं, तो शायद वो आज जिंदा होती.

रिंकी के बाप को अपनी बेटी की मौत का गहरा सदमा पहुँचा था, जिससे उसके आधे शरीर को लकवा मार गया.

अब वो हमें बस देख, सुन सकता था, और आँसू बहा सकता था. शायद उसे दो प्रेमियों को जुदा करने की सज़ा मिल गयी थी, जो ना जाने और कितनी लंबी होने वाली थी.

रिंकी के पिता की दयनीय हालत देख कर मेरा गुस्सा ना जाने कहाँ गायब हो गया, और अपना आँसुओं से भरा चेहरा लेकर मे वहाँ से चला आया.

मेरे पूरे शरीर में जैसे जान ही ना बची हो, कुछ भी करके मे अपने घर पहुँचा और एकांत में जाके लेट गया…! 

पूरे दिन किसी घरवाले को भी पता नही चला कि मे कहाँ हूँ, ना कुछ खाया ना पिया बस पड़ा रहा, आँसू मेरी आँखों से रुकने का नाम ही नही ले रहे थे.

मेरे घर में किसी को भी मेरी प्रेम कहानी के बारे में पता नही था अब तक, तो अब पता चलना भी नही चाहिए क्योंकि जिस सामाजिक प्रतिष्ठा की खातिर मेरी प्रेयसी को अपना जीवन त्यागना पड़ा, अब उसकी मौत को रुसवा नही कर सकता था मे.

लेकिन एक धृड निस्चय लिया मैने की अब मे जिंदगी भर शादी नही करूँगा. जितना हो सकेगा समाज कल्याण में अपना जीवन अर्पित कर दूँगा, शायद यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी रिंकी को मेरी ओर से.

दूसरे दिन अपने कॉलेज वापस लौट गया, दुखी था, पर अपने दुखों की छाया दूसरों पर नही पड़ने देना चाहता था, इसलिए सबके साथ हसना मुसकराना भी पड़ता.

लेकिन जब भी अकेला होता, अनायास ही वो याद आ जाती और ना चाहते हुए मेरी आँखों से आँसू झरने लगते.

एक दिन ऐसे ही गुम्सुम रति के घर में सोफे पर अकेला बैठा था लड़कियाँ अभी कॉलेज से लौटी नही थी. रति मेरे लिए किचेन में कुछ बना रही थी स्पेशल.

मुझे रिंकी की यादों ने घेर लिया और मेरे आसू निकल पड़े, जो बाहर आती रति ने देख लिए, जैसे ही उसका हाथ मेरे कंधे पर पड़ा.. झट से मैने अपनी आँखों को सॉफ किया, लेकिन वो ये सब देख चुकी थी.

रति- मुझे अपने दुख में शरीक नही करोगे ..? जबसे लौटे हो गुम-सूम से रहने लगे हो.. बताओ ना मुझे क्या बात है.. ?

मे- कुछ नही मे ठीक हूँ, ऐसी कोई बात नही है..!

रति- तो फिर इन हीरे जैसी आँखों में चमक की जगह आँसू क्यों हैं..? या मुझे ये जानने का हक़ नही है..?

तुम बहुत चालाक हो भाभी..! कोई भी मेरा सीक्रेट नही छोड़ॉगी ..? मैने उससे अपने पास खींचते हुए बोला..

रति- सीक्रेट…? रोने का भी कोई सीक्रेट होता है भला..? उसके लिए तो एक कंधे की ज़रूरत होती है..! अब बता भी दो…!!

मे- वादा करो, ये बात किसी को पता नही चलेगी, और जब उसने वादा कर दिया तो मैने उसे पूरी बात बता दी. जैसे-2 वो मेरी दास्तान सुनती गयी, स्वतः ही उसकी आँखों से आँसू बहने लगे और मेरी आखें फिर से भर आईं.

उसने मेरा सर अपने कंधे पर रख लिया और मे कितनी ही देर तक उसके कंधे को अपने आँसुओं से भिगोता रहा.

रति - कितना दर्द समेटे हुए हो अपने अंदर..? मेरी आँखों में झाँकते हुए बोली. बाहर निकाल दो इसे, और अपनी जिंदगी की एक नयी शुरुआत करो. 

माना कि उसकी कमी तुम्हारे जीवन में पूरी कोई नही कर पाएगी लेकिन किसी की याद में जीवन यूँही तो नही गुज़ारा जा सकता.

मे - नही..! मे फ़ैसला कर चुका हूँ, जीवन भर मे अब किसी और से शादी नही करूँगा, किसी और का जीवन बर्बाद करने का मुझे कोई हक़ नही. 

क्योंकि सच्चा प्यार सिर्फ़ मेरा उसके लिए था, जो उसके साथ ही चला गया. अब इस टूटे दिल से और किसी का घर आबाद नही होगा मुझसे.

रति मेरे चेहरे की ओर देखे ही जा रही थी, मैने कहा- ऐसे क्या देख रही हो तो वो बोली---

मे तुम्हें आज तक नही समझ पाई, इतने दिनों में भी तुम्हारे दिल की गहराई नही जान पाई.. या शायद मेरी इतनी समर्थ्य नही होगी.
Reply
12-19-2018, 01:52 AM,
#77
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मे- मेरा जीवन तो एक खुली किताब है, जो चाहे इसे खोल कर पढ़ सकता है, हाँ कुछ पन्ने ज़रूर विधाता ने लाल स्याही से लिख दिए हैं, जिनका तोड़ तो अब शायद उसके पास भी नही है.

फिर मैने टॉपिक चेंज करते हुए कहा – खैर छोड़ो इन बातों को, और बताओ अब आपका तबीयत पानी कैसा है..?

रति- मे एकदम फिट हूँ, नौकरानी काम निपटा लेती है, लड़कियाँ मिलजुल कर खाना बना लेती हैं और बोलते-बातें करते समय कैसे निकल जाता है पता ही नही चलता. हम चारो सहेलियों की तरह रहती हैं घर में, आती ही होंगी खुद पुच्छ लेना.

हम ये बातें कर ही र्हे थे कि वो आ गईं, मुझे वहाँ बैठे देख कर वो चहक्ती हुई सोफे पर बैठ गयी और बोली- ओह हो! आज तो अपने हीरो के दर्शन हो गये, भाभी-देवर की अकेले-2 क्या बातें हो रही थी ? हमें भी तो बताओ कुछ.

मे - कुछ खास नही बस हाल-चाल जानने आया था, भाभी बता रही थी, तुम लोग आजकल बहुत मस्तियाँ करने लगी हो, और इनकी एक नही सुनती.

वो तीनों रति के चेहरे की ओर देखने लगी, जिसमें उन्हें केवल शरारती मुस्कान ही दिखी.

धनंजय की गर्लफ्रेंड- हमम्म… तो ये बात है, भाभी की नही ये कहो कि तुम्हारी नही सुनती.. है ना..!

मे – मैने कब कुछ कहा तुम लोगों से..?

ऋषभ की गर्लफ्रेंड- सच बताना भाभी.. हम लोगों ने आज तक आपकी कोई बात टाली है..?

मे- हसते हुए.. अरे मे तो मज़ाक कर रहा था, तुम लोग दिल पर मत लेना प्लीज़..! उल्टा भाभी तो तुम लोगों की तारीफ़ ही कर रही थी.

ये सुन कर वो तीनों मेरे से चिपट गयी, और गुदगुदाते-2 मुझे सोफे से खड़ा कर दिया, और मुझे वहाँ से भागना पड़ा.

हॉस्टिल आ कर पढ़ने में जुट गया…….!

समय फिर से अपनी मंतर गति से आगे बढ़ने लगा था..! साल का अंतिम कोर्स चल रहा था, मात्र 3 महीने ही बचे थे एग्ज़ॅम को.

एक दिन धनंजय को टेलिग्रॅम मिला कि उसकी भाभी के लड़का पैदा हुआ है, और हम दोनो को उसके नामकरण पर आना है ज़रूर.

मैने धनंजय को बोला- यार मेरा कोर्स पिछड़ गया है घर जाने की वजह से, तो मे कैसे चल सकता हूँ..?

धनंजय- तो ठीक है मे भी नही जा रहा.. !

मे - अरे ! ये क्या बात हुई यार..? तुझे तो जाना ही चाहिए, तू चाचा है भाई..!

धनंजय - तो तू नही है..? देख ! अगर मे अकेला पहुचा ना ! तो तू जानता है क्या हाल होगा मेरा वहाँ, सब जान खा जाएँगे मेरी पुच्छ-2 के.

मे कुछ सोचते हुए बोला - तो फिर ठीक है हम चारो चलेंगे.. वो भी सिर्फ़ एक रात के लिए.. ओके.

धनंजय - डन ! लेकिन जाएँगे कैसे ट्रेन से एक दिन में तो पासिबल नही होगा.

ऋषभ&जगेश – लेकिन हम क्या करेंगे वहाँ जाकर…?

मे - क्यों ? तुम लोग हमारे भाई नही हो..? 

दोनो - ये भी कोई कहने की बात है यार..?

मे - तो फिर तुम भी तो चाचा हुए ना कमिनो…! और चलने का टेन्षन मत लो. आलोक भाई की गाड़ी ले लेंगे.. 3-4 घंटे में पहुँच जाएँगे.

सभी- तो फिर पक्का…..

और बच्चे के नामकरण से एक दिन पहले क्लास ख़तम होते ही गाड़ी लेके निकल लिए, दिन ढलते-2 धनंजय के घर पहुँच गये.

हम चारों को देख कर उसके घर वाले बेहद खुश हुए.

मे मौका देख कर भाभी के कमरे में चला गया, वो अपने बच्चे के साथ खेल रही थी..

क्यों भाभी जान क्या हाल है..? मुबारक हो अब आप माँ बन गयी.

वो- ये सब आप ही की मेहरबानी है देवर्जी..

मे- क्यों मज़ाक करती हो भाभी इसमें मैने क्या किया है..? 

वो- लो खुद ही देख लो..! इसकी शक्ल देख कर ही पता चल जाएगा आपको..!

मैने बच्चे को गोद में उठाया, सच मे वो मेरे जैसा ही था.. मन ही मन सोचने लगा… हे मालिक ! ये क्या कर रहा है तू मेरे साथ, 20 साल की उमर में दो-दो बच्चो का बाप बना दिया तूने..!

वो- क्या सोचने लगे…?

मे- हड़बड़ाते हुए…! कुछ नही बस यूही इसकी सुंदरता में खो गया था, बहुत प्यारा है ना ये…!! और मैने माँ-बेटे दोनो का माथा चूम लिया.

हमम्म.. वो बस इतना ही बोली.. उसकी आँखों में खुशी के आँसू छलक आए.

मे- क्या हुआ भाभी..? ये आँसू क्यो..?

वो- खुशी बर्दास्त नही हुई इनसे और निगोडे बाहर आ गये.

मैने अपने गले से चैन उतार कर अपने बच्चे के गले में डाल दी और माथे को चूम कर आशीर्वाद दिया उसको.

मे - वादा करो भाभी कि इसको मेरी तरह निडर बनाओगी, डर से इसका वास्ता नही होना चाहिए..!

वो - वादा… पक्का वाला वादा… चाहे मुझे इसके लिए किसी से लड़ना ही क्यों ना पड़े.

मे - अच्छा इसका नाम सोचा है कुछ..?

वो - वो तो बुआ ही रखेगी ना… ! वैसे आप क्या चाहते हैं इसका नाम रखना..?

मे - वो मे रेखा दीदी को ही बता दूँगा फिर..!

और इतना बोलके फिर एक बार दोनो को चूमा और बाहर निकल ही रहा था, कि धनंजय के साथ वो दोनो भी वहाँ आ गये, उन्होने बच्चे को प्यार किया और भाभी को विश करके हम सब बाहर चले गये. 
Reply
12-19-2018, 01:52 AM,
#78
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
देर रात तक सभी बैठके बातें करते रहे और फिर सोने चले गये.

जगेश और ऋषभ भी कुछ ही घंटों में घुल मिल गये थे, धनंजय ने उन दोनो के बारे में भी सब कुछ सबको बता दिया था, सभी ने उन्हें अपने बेटे-भाई जैसा ही स्नेह दिया.

दूसरे दिन सुबह से ही नामकरण की तैयारियाँ चल रही थी, मौका पा-कर मैने रेखा को पकड़ा और एक मस्त किस लेके उसको बच्चे का नाम बता दिया कि वो यही रखे.

पंडित जी आए, मंत्रोचारण के साथ उसका नामकरण हुआ, भाग्यवश जन्मअक्षर के हिसाब से भी वही अक्षर निकला जो मैने बताया था रेखा को.

रेखा ने मेरे बताए नाम को रख दिया कि इसका नाम “अमर” होगा.

सब बड़े खुश थे, 3-4 बजे शाम को हम वापस निकल पड़े, सब ने कोशिश की रोकने की परंतु समय नही था हमारे पास.

देर शाम तक हम केम्पस वापस आ गये. और आते ही आनेवाले एग्ज़ॅम की तैयारियों में जुट गये…..

रति की प्रेग्नेन्सी को तीसरा महीना चल रहा था, इसलिए अब ज़्यादा फिकर करने की बात नही थी. गर्ल्स कॉलेज के एग्ज़ॅम हो चुके थे तो लड़किया सम्मर वाकेशन में अपने-2 घर जा चुकी थी.

हमारे एग्ज़ॅम बस अगले हफ्ते से शुरू होने वाले थे, मे एकदिन पढ़ते-2 बोर हो गया था, सुबह से ही लगा पड़ा था पढ़ाई में, सोचा थोड़ा रति के हाल-चाल पुच्छ कर आते हैं, सो पहुँच गया उसके घर.

उसकी नौकरानी घर के काम-काज निपटा कर अपने घर जा चुकी थी और अब वो शाम को ही आनी थी.

रति वहीं सोफे पर बैठ कर टीवी देख रही थी, दूरदर्शन के ही चेनल आते थे उन दीनो टीवी पर.

मुझे देखते ही वो खिल उठी, और हाथ पकड़ कर अपने पास बिठा लिया..

रति- और सूनाओ एग्ज़ॅम की तैयारी कैसी चल रही है ?

मे – अरे यार वोही तो..! साला सुबह से लगा पड़ा हूँ किताबों में, बोर होगया पढ़ते-2, सोचा, भाभी के दीदार करलें एक बार चलके, मूड फ्रेश हो जाएगा.

रति खिलखिला पड़ी और बोली-…आ.ह.च्छा जी तो अब जनाब का मूड मुझे देख कर बनता है..? ऐसा क्या है मुझ में जो आपका मूड फ्रेश हो जाता है..?

मे - हीरे को खुद की परख कहाँ होती है मेरी जान ! वो तो जौहरी ही परख पाता है कि हीरे की कीमत क्या है..?

रति- ये सब बातें छोड़ो, और बताओ खाना हुआ या नही..?

मे- कहाँ यार भाभी ! सुबह से पढ़ ही रहे हैं, खाना कहाँ से खा लिया..?

वो तुरंत बिना एक सेकेंड गवाए किचेन में गयी और दो मिनट के अंदर टेबल पर लज़ीज़ से लज़ीज़ खाने की चीज़ें लाके रख दी, और हाथ पकड़ कर मुझे डाइनिंग टेबल पर बिठा दिया, और खुद बगल वाली चेयर पर बैठ कर बोली- लो पहले खाना खाओ बातें बाद में.

मे- आपने खा लिया..? जबाब में उसने सिर्फ़ ना में अपनी गर्दन हिलाई और बोली- पहले तुम खलो मे बाद में खा लूँगी..!

मे- तो फिर साथ में खाते हैं, और एक निबाला तोड़के उसके मुँह की तरफ बढ़ाया, बिना कुछ कहे उसने अपना मुँह खोल दिया, मैने निबाला उसके मुँह में रख दिया..! खाने को चबाते हुए उसकी आँखों से दो बूँद आँसू की टपक पड़ी.

मैने पुच्छ - क्या हुआ..? मिर्ची तेज है खाने में..?

रति- नही..! ऐसी बात नही है..!

मे- तो फिर आपकी आँखों में पानी क्यों..?

रति- बस ऐसे ही...! इतने प्यार से मेरी केर आज तक किसी ने नही की, यही सोच कर आँखें भर आई..!

मे- ओह्ह्ह.. भाभी..! औरतों में बस यही एक कमी होती है.. ज़रा सा गम या खुशी हुई नही की लगी आँसू बहाने..!

मुस्कराहट आ गयी उसके चेहरे पर.., और फिर उसने मुझे अपने हाथ से निबाला खिलाया, इसी तरह एक दूसरे को खाना खिलाते हुए हमने खाना ख़तम किया.
Reply
12-19-2018, 01:52 AM,
#79
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
खाना ख़ाके तुरंत बैठने के लिए मना किया था डॉक्टर ने, सो हम बेड रूम में आ गये, वो बेड पर लेट गयी और मे उसके बगल में अढ़लेटा सा बैठ गया, मेरा एक हाथ उसके सर के उपर से उसके गाल को सहला रहा था..और दूसरे हाथ से उसका पेट सहला रहा था, जो कि तोड़ा सा बाहर को उभर आया था.

कैसा फील होता है आजकल आपको..? मैने सवाल किया.

रति- बस बहुत अच्छी-2 फीलिंग्स आती हैं मन में..!

मे- अच्छी-2 फीलिंग्स मतलब, किस तरह की..?

रति- कभी आने वाले मेहमान के बारे में सोचने लगती हूँ…कि कैसा होगा, कैसे हम रखेंगे उसे.. ऐसी ही कुछ…! फिर कभी-2 तुम्हारे साथ बिताए पलों की सुखद यादें…! दिल को बड़ा सुकून मिलता है उन पलों को याद करके.

मे- आलोक भैया ख्याल रखते हैं या नही..?

रति- घर पे होते हैं तो रखते हैं.., वैसे वो रहते ही कितने हैं घर पर..? बोलते-2 उसने मेरी शर्ट के उपर के बटन खोल दिए और मेरे सीने पर हाथ फेरने लगी.

मेरी छाती पर हल्के-2 रोएँ जैसे बाल आते जा रहे थे, तो उसकी उंगलिया जब बालों में फिरती तो बड़ा रोमांच जैसा फील होता मुझे.

रति ने अपना सर अब मेरी छाती पर टिका लिया था और पाजामे के उपर से मेरे लंड को सहलाने लगी. उसका कोमल हाथ लगते ही मेरा बाबूराव अकडने लगा.

मैने भी अपने दोनो हाथ उसकी बगल से निकाल कर उसके दोनो खरबूजों पर कस दिए. आहह… ये तो पहले से भी ज़्यादा रसीले हो गये हैं भाभी..! हाथ लगते ही मेरे मुँह से निकल गया..

रति- इनमें अब आनेवाले मेहमान के लिए खुराक नही आएगी क्या..? रसीले तो होंगे ही.

मे- तो उस खुराक में से हमें भी कुछ हिस्सा मिलेगा या सब उसी के लिए ही होगा..? 

रति- उसके आने तक ये तुम्हारे लिए ही हैं, जो मर्ज़ी हो करो.. उसके बाद तुम इन्हें हाथ भी नही लगा सकते समझे बच्चू..!

मे- तब तो जल्दी अपना कोटा पूरा करना पड़ेगा, और फिर उसके ब्लाउस के बटन खोल दिए, उसने आजकल घर पर ब्रा पहनना छोड़ दिया था, फिर भी उसके खरबूजे सर उठाए ही खड़े थे.

मेरे पूरे हाथों में तो वो आते नही थे लेकिन जितने आरहे थे उतने लेकेर उन्हें मसल्ने लगा.. साथ-2 उसके होठों से रस भी निचोड़ लेता था कभी-2.

रति अब आँखें बंद करके सिसक रही थी, हम दोनो बुरी तरह गरम हो चुके थे. कपड़े अब बोझ लगने लगे थे सो स्वतः ही उतरते चले गये.

मैने उसे करवट से कर दिया और उसके बराबर में लेट कर पीछे से ही उसकी एक टाँग उठा कर अपने लंड को उसकी रसीली चूत पर घिसने लगा..

अरुण थोड़ा आराम से ही करना अब, ज़्यादा ज़ोर की चोट बच्चे को भी लग सकती है.

मैने कहा- ठीक है, और धीरे-2 से लंड उसकी चूत में सरकने लगा.. पता नही प्रेग्नेन्सी की वजह से या और कुछ, उसकी चूत आज मेरे लंड को कुछ ज़्यादा ही पकड़ सी रही थी बड़ा ही मज़ा आरहा था..

इस पॉज़ में मेरा लंड पूरा जड़ तक उसकी चूत में जा रहा था, उसकी उभरी हुई गान्ड जो अब और ज़्यादा मांसल हो गयी थी मुझे और ज़्यादा मज़ा दे रही थी.

मेरी जांघे जब उसकी बड़े-2 तरबूजों जैसी मुलायम गान्ड पर पड़ती, तो मुझे जन्नत का एहसास दे रही थी.

इसी तरह धक्के मारते हुए मुझे 15 मिनट हो चुके थे कि तभी वो अपनी गान्ड को और पीछे धकेल्ति हुई झड़ने लगी.

मेरा भी जल्दी ही छूटने वाला था, कुछ ही धक्कों में हम दोनो फारिग होकर बिस्तर पर पड़े अपनी साँसों को संयत करने की कोशिश कर रहे थे. 

आज कुछ अलग ही मज़ा आया भाभी मुझे, लगता था जैसे आपकी राम प्यारी आज कुछ ज़्यादा ही लाड़िया रही थी मेरे बाबूराव को.

मेरी ऐसी बातें सुनकर वो हसने लगी और बोली - शायद प्रेग्नेन्सी में ऐसा होता होगा, मुझे भी अलग ही मज़ा आया आज.

मेरे हाथ उसके नितंबों के उपर चलने लगे. आज मेरा मन उसकी गद्देदार गान्ड मारने का हो रहा था.

भाभी कभी इसमें लिया है..? मैने उसके गाल को हल्के से काटते हुए उसकी गान्ड की दरार में उंगली फिराते हुए कहा..

रति – नही अभी तक तो नही.., ऐसा क्यों पुच्छ रहे हो..?

मे- मन कर रहा है इसमें डालने का..!

रति- आपके लिए तो मेरी जान भी हाज़िर है मेरे हुज़ूर.., ये निगोडी गान्ड क्या चीज़ है..? वैसे कभी ट्राइ तो नही किया है, पर सुना है बहुत तकलीफ़ होती है वहाँ करवाने में..!

मे- नही ऐसी कोई ख़ास तो नही, और फिर पहली-2 बार तो आगे भी होती ही है ना!

रति- ठीक है, अगर मेरे बच्चे के पापा को ये इतनी पसंद है तो मे कॉन होती हूँ रोकने वाली..? लेकिन थोड़ा क्रीम वग़ैरह लगा लेना जिससे मुझे तकलीफ़ कम हो, और उठ के वो एक कोल्ड क्रीम का ट्यूब ले आई…

मैने उससे उल्टा लेटने के लिए कहा, वो जैसे ही पलटी, बाइ गोद…! क्या सीन था याअररर…? लगता था जैसे चिकने रोड पर अचानक से दो टीले आ गये हों और उन दोनो के बीच पतली सी एक दरार पड़ गयी हो.

चौड़ी पीठ जो उपर से नीचे की ओर एक कटाव लिए कमर के हिस्से का, उसके तुरंत बाद एकदम सेमी सर्कल जैसे वो दो टीले खड़े हों. 

टीलों की उतराई के बाद खूब मोटी-2 मांसल जंघें मानो केले के दो मोटे-2 ताने उन टीलों में से ही निकले हों.

उसके बदन की सुंदरता मेरी आँखों के ज़रिए दिल में उतर गयी, दिल ने दिमाग़ से कहा, अबबे घोनचू…! क्या देखता ही रहेगा..? टूट पड़ इन तरबूजों पर खा जा सालों को.

दिमाग़ ने झट से मेरे दाँतों को इन्स्ट्रक्षन दे डाली, और उन्होने अटॅक कर दिया !! 
Reply
12-19-2018, 01:52 AM,
#80
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
आआययईीीई…. क्या करते हो….प्लससस्स.. काटो मत.. दुख़्ता है..!

उसकी दर्द भरी कराह का कोई असर नही हुआ मुझ पर, और दूसरे पर भी अटॅक कर दिया…!

नहियिइ…. मत कतो प्लस्सस्स… कुछ तो रहम करो..और अपनी गान्ड को इधर से उधर हिलाने लगी…! उसकी हिलती हुई मोटी गान्ड क्या ग़ज़ब लग रही थी.

मैने देखा उसके दोनो पर्वत शिखर लाल पड़ गये थे, और दाँतों के निशान छप गये थे… मैने फिर थोड़ी देर उनको हल्के हाथों से सहलाया और फिर जैसे टेबल पर थाप मारते हैं ऐसे थपकाने लगा.. ! मेरा मान ही नही भर रहा था उसकी उस मनोहारी गान्ड देखने से.

फिर मैने उसे थोड़ा घुटनो के उपर होके झुकने को कहा तो वो ऐसे ही झुक गयी, जिससे उसकी गान्ड के पाट थोड़ा खुल गये और दरार और चौड़ा हो गया, पर अभी गुफा का द्वार फिर भी नही दिखा..

मैने अपनी दोनो हथेलिया जमा कर उसके पाटों को अलग-2 दिशा में फैलाया, तब जाकर उसका चबन्नी के साइज़ का छोटा सा छेद दिखा जिसके के चारों ओर एक परफेक्ट सर्कल में ब्राउन कलर की किरणें सी फैली हुई थी.

क्या मनोहारी गान्ड थी उसकी..! मेरी आँखों में चमक आ गई और मेरा बाबूराव झटके खाने लगा, जैसे कोई पट्टे से बँधा पालतू कुत्ता किसी कुतिया को देखकर अपने मालिक के हाथों से छूटने के लिए ज़ोर लगाता है.

मैने जीभ से उसकी फूली हुई चूत को चाटा, चाटते हुए ही उसके गान्ड के छेद तक आ गया, अब मेरी जीभ उसके कत्थई चबन्नी साइज़ के छेद को कुरेद रही थी.
रति आँखें बंद किए सिसक रही थी..

सस्सिईइ.. आअहह…. हाईए..ऐसे ही करते रहो मेरे रजाअ..बड़ा मज़ा आ रहा है…ऊूुउउ…ऊऊहह…सस्सिईई.. हहाआहह..!

चूत पर हाथ फेरते हुए उसकी गान्ड के छेद पर ढेर सारा थूक दिया मैने और अपनी बीच वाली उंगली को उसमें डाल दिया, शुरू-2 में तो उसकी गान्ड का छेद सिकुड कर उंगली को रोकने लगा, लेकिन थोड़ा कोशिश करने के बाद अंदर चली गयी.

उसकी चौड़ी पीठ को चूमते हुए अपनी उंगली अंदर और अंदर डाल दी, वो लगातार गान्ड मटका कर कामुक सिसकियाँ ले रही थी.

फिर मैने क्रीम के ट्यूब का ढक्कन खोल कर ट्यूब के मुँह को छेद में डाल के दबा दिया, ढेर सारी क्रीम उसकी गान्ड में भर गयी.

अब मैने दो उंगलिया एक साथ सरका दी उसकी गान्ड में, वो थोड़ा सा सिसकी और मेरी दोनो उंगिलियों को अंदर ले लिया.

1-2 मिनट तक दोनो उंगलियों से खोदने के बाद में उसके मुँह की तरफ कूद गया और अपना बाबूराव उसके मुँह में पेल दिया..

वो पूरे मन लगा कर उसे चुस्ती चाटती रही, जब वो लोहे की रोड की तरह एक दम सख़्त हो गया, फ़ौरन मे उसकी गान्ड के सामने आया और अपना मूसल हाथ में लेके थूक से गीला किया और उसके गान्ड के सुराख पर रख के दबा दिया.. !

क्रीम से चिकनी गान्ड और थूक में लिथड़ा लंड का सुपाडा गडप्प से उस छोटे से छेद में समा गया.

आअहह.. अरुण प्लस्सस..आराम से डलूऊ..ना… दर्द हो रहा है..

मे- अरे मेरी जान ! चिंता मत करो.. मे तुम्हें दर्द नही होने दूँगा.. थोड़ा सा सहन कर लेना बस..! हां..!!

उसने सर हिलाके हामी भरी, और मैने अपनी कमर को और एक बार जुम्बिश दी जिससे आधा लंड गान्ड में समा गया.

वो-- ऊहह…उउफ़फ्फ़…ऊुउउच.. करने लगी.. आहह… जानुउऊ… बस इतने से ही काम चला लो प्लस्सस..और मत डालना.. मर् जाउन्गी नही तो..

मे- अरे मेरी जान वैसे भी तुम्हारी गान्ड इतनी मोटी है कि लंड की एक चौथाई लंबाई तो छेद तक पहुँचने में ही लग जाएगी. 

थोड़ी देर तक मे आधे लंड को ही अंदर बाहर काके उसकी गान्ड चोदने लगा, अब उसको भी थोड़ा मज़ा आना शुरू हो गया था और उसकी चूत में सुरसूराहट बढ़ने लगी, तो उसकी गान्ड स्वतः ही आगे पीछे होने लगी..

सही मौका देख कर मैने एक लास्ट हेलिकॉप्टर स्ट्रोक जमा दिया और ये लगा सिक्सर.. जड़ तक लंड उसकी गान्ड में फिट हो गया..

उसके मुँह से दर्द भरी चीख निकल पड़ी.. मैने उसकी कोई परवाह नही की क्योंकि अब मेरा लंड उत्तेजना के मारे फटने की स्थिति में आ गया था, उपर से उसकी कसी हुई गान्ड उसको बुरी तरह दबाने लगी.

बड़ी मेहनत करनी पड़ रही थी मुझे अंदर बाहर करने में, लेकिन मज़ा भी दुगना हो चुका था.

फिर कुछ देर में उसकी गान्ड ढीली पड़ने लगी और लंड को चलने में आसानी होने लगी..

निरंतर मेरे धक्कों की रफ़्तार बढ़ती ही जा रही थी, रति मज़े से सिस्क रही थी, और अपनी गद्देदार गान्ड मेरे लंड पर पटक-2 कर चुद रही थी.

करीब 10-15 मिनट में ही मेरे आंडों से वीर्य उठना शुरू हो गया और किसी प्लंजर पंप की तरह लंड के रास्ते उसकी गान्ड में पिचकारी मारने लगा.

वीर्य की गर्मी को रति की गान्ड की सॉफ्ट दीवारें सहन नही कर पाई, और उसके सेन्सेशन से चूत पानी छोड़ने लगी..

उसकी चूत से उसका चूत रस टॅप-2 बेड पर टपकने लगा और बेड शीट को गीला करने लगा.
Reply


Possibly Related Threads…
Thread Author Replies Views Last Post
  Raj sharma stories चूतो का मेला sexstories 201 3,528,624 02-09-2024, 12:46 PM
Last Post: lovelylover
  Mera Nikah Meri Kajin Ke Saath desiaks 61 547,475 12-09-2023, 01:46 PM
Last Post: aamirhydkhan
Thumbs Up Desi Porn Stories नेहा और उसका शैतान दिमाग desiaks 94 1,243,816 11-29-2023, 07:42 AM
Last Post: Ranu
Star Antarvasna xi - झूठी शादी और सच्ची हवस desiaks 54 940,233 11-13-2023, 03:20 PM
Last Post: Harish68
Thumbs Up Hindi Antarvasna - एक कायर भाई desiaks 134 1,669,760 11-12-2023, 02:58 PM
Last Post: Harish68
Star Maa Sex Kahani मॉम की परीक्षा में पास desiaks 133 2,094,750 10-16-2023, 02:05 AM
Last Post: Gandkadeewana
Thumbs Up Maa Sex Story आग्याकारी माँ desiaks 156 2,974,536 10-15-2023, 05:39 PM
Last Post: Gandkadeewana
Star Hindi Porn Stories हाय रे ज़ालिम sexstories 932 14,132,816 10-14-2023, 04:20 PM
Last Post: Gandkadeewana
Lightbulb Vasna Sex Kahani घरेलू चुते और मोटे लंड desiaks 112 4,060,745 10-14-2023, 04:03 PM
Last Post: Gandkadeewana
  पड़ोस वाले अंकल ने मेरे सामने मेरी कुवारी desiaks 7 287,567 10-14-2023, 03:59 PM
Last Post: Gandkadeewana



Users browsing this thread: 1 Guest(s)