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RE: Antarvasna kahani प्यासी जिंदगी
बाजी थोड़ी देर ऐसे ही रुकी रहीं और फिर थोड़ा झुकीं और एक ही झटके में सलवार को अपने पाँव तक पहुँचा कर दोबारा सीधी खड़ी होते हुए अपने चेहरे को हाथों से छुपा लिया और पाँव की मदद से सलवार को अपने जिस्म से अलग करने लगीं।
हम भाइयों की जिद पर बाजी ने आखिर अपनी सलवार उतार ही दी।
मैं और ज़ुबैर दोनों बाजी के चूतड़ों पर नजरें जमाए अपने-अपने लण्ड को अपने हाथों से रगड़ रहे थे।
बाजी हमारी तरफ पीठ किए हुए ही दो क़दम सोफे की तरफ बढ़ीं और अपना स्कार्फ उठा कर सीधी खड़ी होते हुए अपने सिर पर स्कार्फ बाँधने लगीं।
मैं पीछे बैठा बाजी की एक-एक हरकत को देख रहा था जब उन्होंने स्कार्फ बाँधने के लिए अपने दोनों बाज़ू अपने जिस्म से ऊपर उठाए तो उनकी बगलों के नीचे से सीने के उभारों की हल्की सी झलक नज़र आने लगी और बाजी को इस पोजीशन में देखते ही मुझे कोका कोला की बोतल याद आ गई।
बाजी का जिस्म बिल्कुल ऐसा ही था.. हर चीज़ बहुत तहजीब में थी.. कमर से थोड़ा नीचे से साइड्स से उनकी कूल्हे बाहर की तरफ निकलना शुरू हो जाते थे और एक खूबसूरत गोलाई बनाते हुए रानों की शुरुआत पर वो गोलाई खत्म हो जाती थी।
उनके दोनों कूल्हे मुकम्मल गोलाई लिए हुए और बेदाग और शफ़फ़ थे, उनकी रानें भी बहुत खूबसूरत और उनके बाक़ी जिस्म की तरह गुलाबी रंगत लिए हुए थीं.. मुतनसीब पिंडलियाँ और खूबसूरत पाँव.. बहुत हसीन नज़र आते थे।
उनको हरकत ना करते देख कर मैंने कहा- बाजी प्लीज़ हमारी तरफ घूमो ना.. प्लीज़..
बाजी ने मेरी बात सुनी और दोनों हाथों से अपनी टाँगों के बीच वाली जगह को छुपाते हुए सामने सोफे पर बैठ गईं।
उन्होंने अपनी आँखें बंद कर रखी थीं बाजी का चेहरा वासनाऔर शर्म के अहसास से लाल हो रहा था।
कमरे में सिर्फ़ हम तीनों की तेज साँसों और हमारे ज़ोर-ज़ोर से धड़कते दिल की आवाजें गूँज रही थीं।
ज़ुबैर और मेरे हाथ अपने अपने लंड को सहला रहे थे और नजरों ने बाजी के जिस्म को गिरफ्त में ले रखा था।
हम बाजी के सामने चंद गज़ के फ़ासले पर ही बैठे थे।
बाजी के बैठते ही ज़ुबैर ने कहा- बाजी असल चीज़ तो अभी भी छुपी हुई है हाथ हटाओ ना..
‘नहीं..!! मुझे बहुत शर्म आ रही है..!’ बाजी ने अपनी आँखों को भींचते हुए हल्की आवाज़ में जवाब दिया।
मैंने कहा- चलो ना सोहनी बहना जी.. हम दोनों भी तो नंगे बैठे हैं ना आपके सामने..
मेरी बात खत्म होते ही बाजी ने अपने दोनों हाथों को टाँगों के बीच से उठाया और अपने चेहरे को हाथों से छुपा लिया। उनकी टाँगें आपस में जुड़ी हुई थीं जिसकी वजह से सिर्फ़ उनकी टाँगों के बीच वाली जगह के ऊपरी बाल.. जो एक दिन की शेव जैसे थे.. दिख रहे थे।
‘बाजी टाँगें खोलो ना..’ ज़ुबैर बहुत उत्तेजित हो रहा था।
बाजी ने अपने सिर को पीछे झुकाते हुए गर्दन को सोफे की पुश्त पर टिकाया और अपनी टाँगों को खोलने लगीं।
वॉवववव.. मेरे लिए जैसे दुनिया रुक सी गई थी.. मुझे दूसरी बार ऐसा महसूस हुआ कि मैं अपनी ज़िंदगी का हसीन तरीन मंज़र देख रहा हूँ।
मैं अपनी ज़िंदगी में पहली बार असली चूत देख रहा था और चूत भी अपनी सग़ी बहन की..
मेरा लण्ड कुछ-कुछ देर बाद एक झटका लेता और पानी का एक क़तरा बाहर फेंक देता।
मैं अपनी बहन की चूत पर नज़र जमाए-जमाए मदहोश सा होता जा रहा था।
बाजी की चूत के ऊपरी हिस्से में बिल्कुल छोटे-छोटे बाल थे, बाल जहाँ खत्म होते थे.. वहाँ से ही चूत शुरू होती थी.. पूरी चूत गेहूँ के दाने सी मुशबाह थी।
बाजी की चूत का रंग बिल्कुल गुलाबी था और ज़रा उभरी हुई थी। चूत के लब फैले-फैले से थे और अन्दर का हिस्सा नज़र नहीं आ रहा था।
बाजी की चूत के शुरू में हल्का सा गोश्त बाहर था.. जिसमें छुपा दाना (क्लिटोरिस) नज़र नहीं आता था। उनकी चूत के लिप्स के अंदरूनी हिस्सों से दोनों साइड्स से निकलते गोश्त के दो पर्दे से थे.. जो बहुत मस्त लग रहे थे।
‘बाजी आप इस दुनिया की हसीनतरीन लड़की हुए.. आपके जिस्म का हरेक हिस्सा ही इतना दिलकश है.. कि मदहोशी कर देता है.. मैंने अपनी ज़िंदगी में इतना मुकम्मल जिस्म किसी का नहीं देखा.. आपका चेहरा.. आपके सीने के उभार.. खूबसूरत पेट और कमर.. जज़्ब ए नज़र.. लंबी-लंबी टाँगें और हसीन तरीन चू..’
मैंने खोई-खोई सी आवाज़ में ये जुमले अदा किया।
ज़ुबैर मुँह खोले और अपने लण्ड को हाथ में पकड़े.. बस बाजी की चूत पर नजरें जमाए हुए गुमसुम सा बैठा था। उसके मुँह से कोई आवाज़ तक नहीं निकली थी।
बाजी ने मेरी बात सुन कर अपनी आँखें खोलीं.. उनका चेहरा शर्म और उत्तेजना से भरा हुआ था, उनकी आँखें बहुत नशीली हो रही थीं और जिस्म की गर्मी की वजह से आँखों में नमी आ गई थी।
बाजी ने अपनी हालत पर ज़रा क़ाबू पाते हुए मेरी तरफ देखा।
कुछ देर तक मैं और बाजी एक-दूसरे की आँखों में देखते रहे.. फिर उन्होंने मेरी नजरों से नज़र मिलाए हुए एक ‘आहह..’ खारिज की और सिसकते हुए अंदाज़ में कहा- वसीम उठो.. और अपने नए खिलौने को लेकर दोनों बिस्तर पर जाओ।
मैं हिप्नॉटाइज़्ड की सी कैफियत में उठा और ज़ुबैर के हाथ को पकड़ कर उसे उठने का इशारा किया.. और हम दोनों बिस्तर की तरफ चल दिए।
बिस्तर पर बैठ कर मैंने सिरहाने के नीचे से डिल्डो निकाला।
यह डिल्डो भूरे रंग का था.. जिसकी दोनों तरफ की शक्ल लण्ड जैसी थी.. दोनों साइड्स तकरीबन 8-8 इंच लंबा और उसकी मोटाई दो इंच के डायामीटर की थी और सेंटर में एक इंच की चौकोर बेस था.. जो दोनों साइड्स को जुदा करती था।
यह डिल्डो हम दोनों के ही लण्ड से लंबा और थोड़ा मोटा भी था।
ज़ुबैर और मैंने डिल्डो की एक-एक साइड्स को मुँह में लिया और चूसने लगे।
जब वो गीला हो गया.. तो मैंने ज़ुबैर से डॉगी स्टाइल में झुकने को कहा और मैं उठ कर उसकी गाण्ड के पास आ गया।
मैंने डिल्डो को थोड़ा चिकना किया और फिर ज़ुबैर की गाण्ड में डालना शुरू कर दिया।
डिल्डो मेरे लण्ड से थोड़ा मोटा था और बड़ा भी था, तकरीबन 5-6 मिनट अन्दर-बाहर करने से ज़ुबैर की गाण्ड थोड़ी नर्म पड़ गई और डिल्डो आराम से अन्दर-बाहर होने लगा.. तो मैं भी डॉगी स्टाइल में हुआ और बाजी की तरफ नज़र उठा कर शरारती अंदाज़ में मुस्कुरा दिया।
बाजी भी मुझे देख कर मुस्कुराने लगीं उनके चेहरे से अब शर्म खत्म हो गई थी और सेक्स की हिद्दत.. लाली की सूरत में उनके गालों से ज़ाहिर हो रही थी, बाजी बहुत दिलचस्पी से हम दोनों के एक्शन को देख रही थीं।
बाजी ने अपने लेफ्ट हैण्ड से अपने एक उभार को दबोच रखा था और राईट हैण्ड की इंडेक्स फिंगर और अंगूठे की चुटकी में अपनी चूत के ऊपर वाले हिस्से में पेवस्त दाने यानि क्लिट को मसल रही थीं।
मैंने ज़ुबैर की गाण्ड से गाण्ड मिला कर अपना हाथ पीछे की तरफ ले जाकर डिल्डो को थामा और उसका दूसरा सिरा अपनी गाण्ड में डालने की कोशिश करने लगा।
मेरे जेहन में यह था कि डिल्डो पूरा अन्दर करके में अपनी गाण्ड ज़ुबैर की गाण्ड से मिला दूँ.. लेकिन इस मुश्किल पोजीशन में मुझसे डिल्डो अपनी गाण्ड में नहीं डाला जा रहा था।
हमने ये पोजीशन मूवीज में देखी थीं और बाजी ने खासतौर पर इस पोजीशन को पसन्द किया था.. इसलिए मैं उनको रियल शो दिखाना चाहता था।
लेकिन 2-3 मिनट कोशिश करने के बावजूद में कामयाब नहीं हुआ.. तो मैंने बेचारजी की नज़र से बाजी को देखा और कहा- बाजी ये पोजीशन आसान नहीं है.. कसम से मैं जानबूझ के ऐसा नहीं कर रहा.. यक़ीन करो.. मैं पूरी कोशिश कर रहा हूँ।
बाजी ने अपने सीने के उभार और चूत को मसलते हुए धीरे से कहा- कोई बात नहीं.. तुम आराम से डालने की कोशिश करो।
मैंने कुछ देर दोबारा कोशिश की.. लेकिन कामयाब नहीं हुआ। मैंने फिर बाजी की तरफ देखा और मायूसी से ‘नहीं’ के अंदाज़ में अपने सिर को हिलाया।
बाजी कुछ देर हम दोनों को देखती रहीं।
फिर पता नहीं.. उन्हें क्या हुआ कि वो अपनी जगह से उठ कर हमारे पास आईं और अपने एक हाथ से डिल्डो को पकड़ा और दूसरा हाथ से मेरे कूल्हों को खोलते हुए डिल्डो का सिरा मेरी गाण्ड के सुराख पर रख कर अन्दर दबाने लगीं।
बाजी का हाथ छूते ही मेरे मुँह से एक ‘आहह..’ निकली और मैंने बेसाख्ता ही कहा- आआहह.. बाजी.. आपके हाथ का अहसास बहुत मज़ा दे रहा है।
बाजी ने एक हाथ से डिल्डो को मेरी गाण्ड में अन्दर-बाहर करते हुए कहा- अच्छा चलो ऐसी बात है तो और मज़ा ले लो।
बाजी ने यह कहा और दूसरे हाथ को मेरी गाण्ड पर फेरते हुए नीचे ले गईं और मेरी बॉल्स (टट्टों) को अपने हाथ में ले लिया और नर्मी से मसलने लगीं।
‘चलो, अब दोनों एक साथ पीछे की तरफ झटका मारो.. और फिर एक साथ ही आगे जाना.. ताकि रिदम ना खराब हो..’ यह कहते हुए बाजी ने अपने हाथ से डिल्डो को छोड़ दिया।
अचानक मुझे ज़ुबैर की तेज सिसकारी की आवाज़ सुनाई दी- आअहह बाजी जी.. उफफफ्फ़..
मैंने सिर घुमा कर देखा तो बाजी ने दूसरे हाथ में ज़ुबैर के बॉल्स पकड़े हुए थे और उन्हें भी मसल रही थीं।
हम दोनों को बाजी के हाथों की नर्मी पागल किए दे रही थी और हम बहुत तेज-तेज अपने जिस्मों को आगे-पीछे करने लगे।
जब हमारा रिदम बन गया तो बाजी ने हमारे बॉल्स को छोड़ा और सोफे की तरफ जाते हुए बोलीं- अब अपनी मदद खुद करो.. मैं तुम लोगों को मज़ा देने नहीं.. अपना मज़ा लेने के लिए आई हूँ।
बाजी ने अपने हाथ से डिल्डो को मेरी गांड में घुसाने में मदद की और साथ ही हम दोनों भाइयों के टट्टे भी सहलाये।
फ़िर बाजी हम दोनों की डिल्डो से गांड चुदाई का मज़ा लेने के लिए सोफे पर जाकर बैठ गईं।
हम दोनों की स्पीड अब कम हो गई थी और हम दोनों ने बाजी के बैठते ही अपनी नजरें उनकी टाँगों के बीच जमा लीं।
उनकी चूत बहुत गीली होने की वजह से चमक रही थी।
बाजी ने हमारी तरफ देखा और हमको अपनी चूत की तरफ देखता पाकर मुस्कुरा दीं और अपनी टाँगें थोड़ी और खोल लीं।
‘वसीम.. ज़ुबैर..!’
बाजी की आवाज़ पर हम दोनों ने एक साथ ही नज़र उठाईं.. तो बाजी ने शरीर सी मुस्कुराहट के साथ अपने सीधे हाथ की बीच वाली बड़ी ऊँगली को अपने होंठों में फँसा कर चूसा और हवा में लहरा कर अपनी चूत की तरफ हाथ ले जाने लगीं।
हमारी नजरें बाजी की हाथ के साथ ही परवाज़ कर रही थीं।
बाजी ने अपने हाथ को चूत पर रखा और इंडेक्स और तीसरी फिंगर की मदद से चूत के लिप्स को खोला.. तो उनकी चूत का दाना साफ नज़र आने लगा। बाजी ने बीच वाली ऊँगली को अपनी चूत के दाने पर रखा और आहिस्ता-आहिस्ता मसलने लगीं।
इस नज़ारे ने मुझ पर और ज़ुबैर पर जादू सा किया और हम तेजी से हरकत करने लगे और 8 इंच का डिल्डो पूरा ही अन्दर जाने लगा।
जब हम पीछे को झटका मारते.. तो हम दोनों की गाण्ड आपस में टकराने से ‘थपथाप्प..’ की आवाज़ निकालती।
बाजी ने हमारी हालत से अंदाज़ा लगा लिया कि उनकी इस हरकत ने हमें बहुत मज़ा दिया है।
बाजी ने दोबारा अपना हाथ फिर हटाया और बीच वाली ऊँगली को मुँह में डाल कर चूसने लगीं।
फिर वो उसी तरह हवा में हाथ को लहराते हुए नीचे लाईं और इस बार भी अपनी चूत के पर्दों को अपनी ऊँगलियों की मदद से साइड्स पर करते हुए बीच वाली बड़ी ऊँगली को 2-3 बार क्लिट पर रगड़ कर नीचे की तरफ दबा दिया।
इसी हरकत के साथ उनके मुँह से ‘अहह..’ की आवाज़ निकली और उन्होंने ऊँगली का सिरा अपनी चूत के अन्दर दाखिल कर दिया।
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RE: Antarvasna kahani प्यासी जिंदगी
मैं और ज़ुबैर तो यह देखते ही पागल से हो गए और ज़ोर-ज़ोर से अपनी गाण्ड को आपस में टकराने लगे। मैंने अपने लण्ड को हाथ में पकड़ा और उससे दबोचने लगा और हाथ तेजी से आगे-पीछे करने लगा।
हमारा पागलपन बाजी के मज़े को भी बहुत बढ़ा गया था।
उन्होंने अपनी सीधे हाथ की मिडल ऊँगली का एक इंची हिस्सा बहुत तेजी से अपनी चूत में अन्दर-बाहर करना शुरू कर दिया और बायें हाथ से कभी अपनी निप्पल्स को चुटकी में मसलने लगतीं.. तो कभी अपनी चूत के दाने को चुटकी पर पकड़ के मसलने और खींचने लगतीं।
वो बिना झिझके और पलकें झपकाए.. हमारी तरफ ही देख रही थीं।
चंद मिनट बाद ही ज़ुबैर के लण्ड ने पानी छोड़ दिया और उसने एक झटके से आगे होते हुए डिल्डो को अपनी गाण्ड से बाहर निकाल दिया। अब आधा डिल्डो मेरी गाण्ड के अन्दर था और आधा बाहर लटक रहा था जैसे कि वो मेरी दुम हो।
बाजी ने ज़ुबैर के लण्ड से जूस निकलते देखा और मेरी गाण्ड में आधे घुसे और आधे लटके डिल्डो को देखा तो लज्जत की एक और सिहरअंगेज़ लहर की वजह से उनके मुँह से एक तेज ‘अहह..’ निकली, इसी के साथ उनका हाथ भी चूत पर तेज-तेज चलने लगा।
बाजी ने अपनी गर्दन को सोफे की पुश्त से टिका कर अपनी आँखें बंद कर लीं।
उनके दोनों पाँव ज़मीन पर टिके थे और वो अपनी ऊँगली को अपनी चूत में अन्दर-बाहर करने के रिदम के साथ ही अपनी गाण्ड को आगे करते हुए सोफे से थोड़ा सा उठ जाती थीं।
मैंने बाजी की आँखें बंद होती देखीं.. तो डिल्डो को अपनी गाण्ड से बाहर निकाले बगैर ही बिस्तर से उठ कर बाजी की टाँगों के बीच आ बैठा।
मेरी देखा-देखी ज़ुबैर भी क़रीब आ गया।
बाजी की गुलाबी चूत में उनकी खूबसूरत गुलाबी ऊँगली बहुत तेजी से अन्दर-बाहर हो रही थी।
जब बाजी अपनी ऊँगली अन्दर दबाती थीं.. तो चूत के लब भी बंद हो जाते और उनकी ऊँगली को अपने अन्दर दबोच लेते।
जब ऊँगली बाहर आती तो लब खुल जाते और लबों के अन्दर से ऊँगली के दोनों साइड्स पर चूत के पर्दे नज़र आने लगते।
बाजी जब अपनी उंगली को चूत में दबाती थीं.. तो चूतड़ों को सोफे से हल्का सा उठा लेतीं और उसी रिदम में आगे झटका देतीं।
बाजी का पूरा हाथ उनकी चूत से निकलते जूस से गीला हो गया था जिससे चूत के आस-पास का हिस्सा और उनका हाथ दोनों ही चमक रहे थे।
बाजी की चूत से बहुत माशूरकन महक निकल रही थी।
वो ऐसी महक थी.. जो लफ्जों में बयान नहीं की जा सकती.. बस महसूस की जा सकती है।
जिन्होंने उस खुश्बू को अपनी बहन की चूत से निकलते हुए महसूस किया है या आपमें से जो लोग अपनी बहनों की ब्रा या पैन्टी को सूँघते रहे हैं.. वो जान सकते हैं कि चूत से उठती महक में कैसा जादू होता है।
अचानक बाजी ने अपनी गर्दन को सोफे की पुश्त पर दबाया और टाँगें खुली रखते हुए ही पैर ज़मीन पर टिका कर अपने चूतड़ों को सोफे से उठा लिया, उनका जिस्म कमान की सूरत में अकड़ गया, हाथ चूत से और उभारों से हट गए और पेट के क़रीब अकड़ गए थे.. बाजी ने अपनी आँखों को बहुत ज़ोर से भींच लिया था और उनके चेहरे पर बहुत तक़लीफ़ का अहसास था।
यह पता नहीं बाजी के डिसचार्ज होने का ख़याल था.. उनके हसीन.. खूबसूरत जिस्म का नज़ारा था.. सेक्सी माहौल का असर.. या फिर मेरी सग़ी बहन की चूत से उठती मदहोशकन खुश्बूओं का जादू था कि मैं बुत की सी कैफियत में आगे बढ़ा
और
अपनी बहन के सीने के दोनों उभारों को अपने दोनों हाथों में दबोचा और बाजी की चूत पर अपना मुँह रखते हुए उनकी चूत के दाने को पूरी ताक़त से अपने होंठों में दबा लिया और चूस लिया।
बाजी के मुँह से एक तेज ‘अहाआआआआ..’ निकली और उन्होंने बेसाख्ता ही अपने दोनों हाथों को मेरे सिर पर रखते हुए अपनी चूत को मेरे मुँह पर दबा दिया। ज़ुबैर मेरी इस हरकत पर शॉक की हालत में रह गया और ना उसने हरकत की और ना ही उसकी ज़ुबान से कोई बात निकली।
बाजी के जिस्म ने एक ज़ोरदार झटका खाया और उनके मुँह से निकला- वसीम.. अहह.. रुकओ.. ऊऊ मैं गइई.. उफ फफ्फ़..
और इसी के साथ ही बाजी के जिस्म को मज़ीद झटके लगने लगे और उनका जिस्म अकड़ने लगा, वो मेरे मुँह को अपनी चूत पर दबाती जा रही थीं और उनके हलक़ से ‘आआखह.. अहह..’ की आवाजें निकल रही थीं।
मुझे अपने मुँह में बाजी चूत फड़कती हुई सी महसूस हो रही थी।
मैंने ज़िंदगी में पहली बार किसी चूत का ज़ायक़ा चखा था और मुझे उस वक़्त ही पता चला के चूत के पानी का कोई ज़ायक़ा नहीं होता.. हमें जो नमकीनपन महसूस होता है.. वो असल में जमे हुए यूरिन के क़तरे या खुश्क हुआ पसीना होता है।
कुछ लम्हों बाद ही जब बाजी को अपनी हालत का इल्हाम हुआ कि उनका सगा भाई अपने हाथों से उनके सीने के उभारों को दबा रहा है और उनकी शर्मगाह को अपने मुँह में दबाए हुए है.. तो उन्होंने तकरीबन चिल्लाते हुए कहा- नहीं.. वसीम.. हटोअओ.. छोड़ो मुझे.. उफफ्फ़.. ये.. ये क्या कर रहे हो.. मैं तुम्हारी सग़ी बहन हूँ.. प्लीज़..
मैंने बाजी की चूत के दाने को अपने दाँतों में पकड़ कर ज़रा ज़ोर से दबा दिया।
‘अहह.. ऊऊओफ्फ़.. साअ..गर्र छोड़ो मुझे हटोऊऊ.. नाआ आआ..’
बाजी ने ये कह कर एकदम अपने कूल्हों को सोफे पर गिराया और अपने दोनों हाथों से मेरे हाथों को पकड़ते हुए एक झटके से अपने उभारों से दूर कर दिया और मेरे सीने पर अपने पाँव रखते हुए मुझे धक्का दिया।
मैं बाजी के धक्का देने से तकरीबन 2 फीट पीछे की तरफ गिरा और अपना सिर ज़मीन पर टकराने से बहुत मुश्किल से बचाया।
मुझे धक्का देते ही बाजी ने देखा कि मेरा सिर ज़मीन पर लगने लगा है.. तो वो मुझे बचाने के लिए एकदम सोफे से उठीं और बोलीं- वसीम..
उन्होंने मुझे देखा कि मेरा सिर नहीं टकराया है.. तो फ़ौरन ही वापस सोफे पर बैठ गईं और अपने जिस्म को समेटते हुए दोनों हाथों में चेहरा छुपा लिया और रोने लगीं।
मैंने ज़ुबैर की तरफ देखा तो वो बहुत डरा हुआ और कुछ परेशान सा था।
मैंने उसको इशारे से कहा कि कुछ नहीं होगा यार.. मैं हूँ ना.. जाओ तुम बिस्तर पर जाओ।
ज़ुबैर को समझा कर मैं बाजी की तरफ गया.. वो सोफे पर ऐसे बैठी थीं कि उन्होंने अपनी दोनों टाँगों को आपस में मज़बूती से मिला रखा था और अपनी रानों पर कोहनियाँ रखे बाजुओं से अपने सीने के उभारों को छुपाने की कोशिश की हुई थी।
‘कोशिश..’ मैंने इसलिए कहा कि मेरी बहन के बड़े-बड़े मम्मे नर्मोनाज़ुक से बाजुओं में छुप ही नहीं सकते थे।
मैं बाजी के पास जाकर खड़ा हुआ और कहा- बाजी प्लीज़ रोओ तो नहीं यार..
बाजी ने रोते-रोते ही जवाब दिया- नहीं वसीम तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था.. ये बहुत गलत है.. बहुत गलत हुआ है ये.. तुमने मेरी हालत का नाजायज़ फ़ायदा उठाया है.. तुम जानते ही हो कि मैं जब डिसचार्ज होने लगती हूँ.. तो मैं होश में नहीं रहती। तुम तो होश में थे.. इतना तो सोचते कि मैं तुम्हारी सग़ी बहन हूँ वसीम..
‘बाजी प्लीज़ जो कुछ हुआ उससे हम मिटा नहीं सकते, आपको अपने सीने के उभारों को मसलते.. निप्पल्स को झंझोड़ते और अपनी टाँगों के बीच वाली जगह में ऊँगली अन्दर-बाहर करते देख कर मेरी भी सोचने-समझने की सलाहियत खत्म हो गई थी। आपकी टाँगों के बीच से उठती माशूरकन खुश्बू ने मेरे होश भी गुम कर दिए थे और मैंने जो किया उसकी आपको उस वक़्त शदीद जरूरत थी.. लाज़मी था कि आपको संतुष्टि मिले.. वरना आप का नर्वस ब्रेक डाउन भी हो सकता था।’
मैं यह कह कर बाजी के साथ ही सोफे पर बैठ गया।
मैं वाकयी ही बहुत दुखी हो गया था, मैं अपनी प्यारी बहन को रोता नहीं देख सकता था।
मैंने अपने एक हाथ से उनके सिर को नर्मी से थामते हुए अपने सीने से लगा लिया और अपना दूसरा बाज़ू बाजी के पीछे से उनकी नंगी कमर से लगते हुए हाथ बाजी के कंधों पर रख दिया।
मैं बाजी को चुप कराने लगा- बाजी प्लीज़.. अब बस करो.. मैं आपको रोता नहीं देख सकता.. मेरा दिल फट जाएगा.. चुप हो जाओ।
बाजी ने अभी भी अपने चेहरे को दोनों हाथों में छुपा रखा था और उनकी आँखों से मुसलसल आँसू निकल रहे थे। मैंने बाजी के कंधे से हाथ हटाया और बिला इरादा ही उनकी नंगी कमर को सहलाने लगा।
बाजी के गाल मेरे सीने और कंधे के दरमियानी हिस्से के साथ चिपके और उनके सीने के खूबसूरत और बड़े-बड़े उभार मेरे सीने में दबे हुए थे।
बाजी के निप्पल्स बहुत सख्ती से अकड़े हुए मेरे सीने के बालों में उलझे पड़े थे और मेरे खड़े लण्ड की नोक..! बाजी की नफ़ से ज़रा नीचे.. साइड पर उभरे खूबसूरत तिल को चूम रही थी।
बाजी ने रोना अब बंद कर दिया था लेकिन उनके मुँह से सिसकियाँ अभी भी निकल रही थीं। मैंने बाजी के दोनों हाथों को अपने हाथ में लिया और उनके चेहरे से हटा कर बाजी की गोद में रख दिया।
मैंने बाजी का चेहरा अपने हाथ से ऊपर किया.. उन्होंने आँखें बंद कर रखी थीं।
मैंने अपने हाथ से बाजी के आँसू साफ करने शुरू किए.. तो बाजी ने आँखें खोल दीं। मैं उनके आँसुओं को साफ कर रहा था और बाजी बिना पलक झपकाए मेरी आँखों में देख रही थीं, उनकी आँखों में बहुत तेज चमक थी। उस वक़्त पता नहीं क्या था बाजी की आँखों में..
मुझे ऐसा महसूस हुआ कि मैं अब हमेशा के लिए इन आँखों का गुलाम हो गया हूँ।
उनकी आँखों में देखते-देखते मेरी आँख में भी आँसू आ गए।
बाजी ने वैसे ही मेरे सीने से लगे-लगे अपना एक हाथ उठाया और मेरे आँसू साफ करने लगीं।
मैंने उस वक़्त अपनी बहन के लिए अपने दिल-ओ-दिमाग में शदीद मुहब्बत महसूस की और बेसख्तगी में अपना चेहरा नीचे किया.. तो पता नहीं किस अहसास के तहत बाजी ने भी अपनी आँखें बंद कर लीं और मैंने अपने होंठ बाजी के होंठों से मिला दिए।
बाजी के होंठ बहुत नर्म थे, मैंने बाजी के ऊपर वाले होंठ को चूसना शुरू किया तो मुझे ऐसे लगा जैसे मैं गुलाब की पंखुड़ी को चूम रहा हूँ..
कुछ देर ऊपर वाले होंठ को चूसने के बाद मैंने बाजी के नीचे वाले होंठ को अपने मुँह में दबाया तो मेरा ऊपरी होंठ बाजी ने अपने मुँह में ले लिया और मदहोश सी मेरे ऊपरी होंठ को चूसने लगीं।
चुम्बन एक ऐसी चीज़ है कि आप अगर पहली मर्तबा भी करें तो आपको सीखने की जरूरत नहीं पड़ती.. नेचर हमें खुद ही समझा देती है कि हमने क्या करना है।
बाजी ने अपने जिस्म को मेरे हाथों में बिल्कुल ढीला छोड़ दिया था।
मैंने बाजी के दोनों होंठों के बीच अपने होंठ रख कर उनके मुँह को थोड़ा सा खोला और बाजी की ज़ुबान को अपने होंठों में खींचने की कोशिश करने लगा।
बाजी ने मेरे इरादे को समझते हुए अपनी ज़ुबान को मेरे मुँह में दाखिल कर दिया।
बाजी की ज़ुबान का रस चूसते-चूसते ही मैंने अपना हाथ उठाया और बाजी के सीने के उभार को नर्मी से थाम लिया और आहिस्ता-आहिस्ता दबाने और मसलने लगा..
मैंने बाजी के निप्पल को अपनी चुटकी में मसला तो बाजी के मुँह से ‘सस्स्स्सीईईईई..’ की आवाज़ निकली और मेरे मुँह में गुम हो गई।
मैं अपना हाथ बाजी के दोनों उभारों पर फिराता हुआ नीचे की तरफ जाने लगा।
बाजी के पेट पर हाथ फेरते हुए मैंने अपने हाथ को थोड़ा और नीचे किया और जैसे ही मेरा हाथ अपनी बहन की टाँगों के बीच पहुँचा और मैंने उनकी चूत के दाने को छुआ ही था कि उन्होंने एकदम से मचल कर आँखें खोल दीं और एक झटके से अपने जिस्म को मेरे जिस्म से अलग करते हुए कहा- नहीं वसीम.. नहींईई.. ये नहीं होना चाहिए नहीं.. नहीं..
‘नहीं.. नहीं..’ की गर्दन करते हुए बाजी उठीं और अपनी क़मीज़ पहनने लगीं। मैंने बाजी की कैफियत को समझते हुए उनको कुछ कहना मुनासिब नहीं समझा कि उनको अपनी इस हरकत पर बहुत गिल्टी फील हो रहा था और मेरा कुछ कहना हमारे इस नए ताल्लुक के लिए अच्छा नहीं साबित होना था।
मैं और ज़ुबैर चुपचाप बाजी को कपड़े पहनते देखते रहे.. बाजी ने अपने कपड़े पहने और तेज क़दमों से चलती हुई कमरे से बाहर निकल गईं।
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RE: Antarvasna kahani प्यासी जिंदगी
मैं अपने ऊपर छाए नशे को तोड़ना नहीं चाहता था, बाजी के जिस्म की खुश्बू अभी भी मेरी साँसों में बसी थी और मैं उससे खोना नहीं चाहता था.. इसलिए ज़ुबैर से कुछ बोले बिना उससे सोने का इशारा करते हुए बिस्तर पर लेट गया और अपने लण्ड को हाथ में पकड़े.. आँखें बंद करके बाजी के साथ हुए खेल को सोचते हुए लण्ड सहलाने लगा।
जल्दी ही मेरे लण्ड ने पानी छोड़ दिया और अब मुझमें इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि मैं अपनी सफाई कर सकता।
उसी तरह लेटे-लेटे ही मैं नींद की वादियों मैं खो गया।
सुबह जब मेरी आँख खुली तो 9 बज रहे थे, मैं फ्रेश हो कर नीचे पहुँचा तो अम्मी टीवी लाऊँज में ही बैठी थीं।
मैंने उन्हें सलाम किया और बाजी का पूछा.. तो अम्मी बोलीं- बेटा रूही यूनिवर्सिटी गई है.. और तुम्हारे छोटे भाई बहन अपने स्कूल गए हैं। तुम आज कॉलेज क्यों नहीं गए हो.. अपनी पढ़ाई का भी कुछ ख़याल किया करो..
ज़ुबैर और हनी के स्कूल शुरू हो चुके थे।
अम्मी ने हमेशा की तरह सबका ही बता दिया और मुझे भी लेक्चर पिलाने लगीं।
वो ज़रा सांस लेने को रुकीं.. तो मैं फ़ौरन बोला- अम्मी नाश्ता तो दें दें ना.. मुझे आज कॉलेज लेट जाना था.. इसलिए देर से ही उठा हूँ।
अम्मी बोलते-बोलते ही किचन में गईं और पहले से तैयार रखी नाश्ते की ट्रे उठाए हुए बाहर आ गईं।
मैंने भी नाश्ता किया और कॉलेज चला गया।
दिन में जब मैं कॉलेज से वापस आया तो ज़ुबैर और हनी नानी के घर जाने को तैयार खड़े थे और अम्मी उनको कुछ सामान देते हो नसीहतें दे रही थीं।
‘सीधा नानी के घर ही जाना.. कोई आइसक्रीम-वाइसक्रीम के चक्कर में मत पड़ जाना.. सुन रहे हो ना.. मैं क्या कह रही हूँ..’
वगैरह वगैरह..
ज़ुबैर, हनी को भेजने के बाद अम्मी वहीं सोफे पर बैठ गईं और टीवी पर मसाला चैनल (कुकरी शो) देखने लगीं।
मैंने अम्मी को कहा- अम्मी बहुत भूख लगी है.. खाना तो दे दें।
अम्मी ने टीवी पर ही नज़र जमाए हुए कहा- रूही किचन में ही है.. उससे कहो.. दे देगी।
बाजी का जिक्र सुनते ही लण्ड ने सलामी के तौर पर झटका खाया और मैं किचन की तरफ बढ़ ही रहा था कि किचन के दरवाज़े पर बाजी खड़ी नज़र आ गईं, वो बाहर ही आ रही थीं.. लेकिन अम्मी की बात सुन कर वहाँ ही रुक गईं और मेरी तरफ देख कर कुछ शर्म और कुछ झिझक के अंदाज़ में मुस्कुरा दीं।
उन्होंने हमेशा की तरह सिर पर स्कार्फ बाँधा हुआ था और चादर के बजाए बड़ा सा कॉटन का दुपट्टा सीने पर फैला रखा था।
मैंने बाजी को देख कर सलाम किया और नॉर्मल अंदाज़ में कहा- बाजी खाना दे दें.. बहुत सख़्त भूख लगी है।
‘तुम हाथ-मुँह धो कर टेबल पर बैठो.. मैं खाना लेकर आती हूँ।’ बाजी ने किचन में वापस घुसते हुए जवाब दिया।
मैं हाथ-मुँह धोते हुए यही सोच रहा था कि कल रात जो बाजी को बहुत गिल्टी फीलिंग हो रही थीं.. शायद अब वो धीमी पड़ गई है।
वाकयी ही ये लण्ड और चूत की भूख ऐसी ही है कि जब जागती है.. तो गलत-सही.. झूठ-सच कुछ नहीं देखती.. बस अपना आपा दिखाती है।
मैं ज़रा फ्रेश होकर टेबल पर बैठ ही रहा था कि बाजी ट्रे उठाए किचन से निकलीं और मेरे सामने खाना रख कर सोफे पर अम्मी के पास ही बैठ गईं।
मैं खाना खाने लगा और अम्मी और बाजी आपस मैं बातें करने लगीं। मैं खाना खाते-खाते नज़र उठा कर बाजी के सीने के उभारों और पूरे जिस्म को भी देख लेता था।
बाजी ने मेरी नजरों को महसूस कर लिया था, लड़कियों की सिक्स सेंस्थ इस मामले में बहुत तेज होती है, वो अपनी पीठ पर भी नजरों की ताड़ को महसूस कर लेती हैं।
अब जब मैंने नज़र उठाई.. तो बाजी ने भी उसी वक़्त मेरी तरफ देखा और गुस्सैल सी शकल बना कर आँखों से अम्मी की तरफ इशारा किया.. जैसे कह रही हों कि दिमाग ठिकाने पर नहीं है क्या..?? अम्मी देख लेंगी..
बाजी के इशारे को समझते हुए मैंने एक नज़र अम्मी पर डाली, वे टीवी देखने में ही मस्त थीं और फिर बाजी को देखते हुए अपने हाथ पर किस किया और किस को बाजी की तरफ फेंक दिया।
बाजी के चेहरे पर बेसाख्ता ही मुस्कुराहट आ गई और उन्होंने अम्मी से नज़र बचा कर मेरी किस को कैच किया और अपने हाथ को अपने होंठों से लगा लिया।
मेरे चेहरे पर भी मुस्कुराहट फैल गई।
बाजी ने फिर आँखों से खाने की तरफ इशारा किया और दोबारा अम्मी से बातें करने लगीं।
मैंने खाना खत्म किया ही था कि अम्मी ने बाजी को हुकुम दिया- रूही जाओ, भाई ने खाना खा लिया है.. बर्तन अभी ही धो देना.. ऐसे ही ना रख देना.. बू आने लगती है।
‘अम्मी मैंने पहले कभी छोड़े हैं.. जो आज ऐसे ही रखूँगी.. आप भी ना..’ बाजी ने नाराज़गी दिखाते हुए अम्मी को कहा और मेरे पास आकर बर्तन उठाने लगीं।
मैंने अम्मी की तरफ देखा.. वो टीवी में ही मग्न थीं, मैंने उनसे नज़र बचाते हुए बाजी के सीने के उभार की तरफ हाथ बढ़ाया और उनकी निप्पल पर चुटकी काट ली।
बाजी के मुँह से तेज ‘आआयइईई ईईईईईई..’ की आवाज़ निकली।
‘क्या हुआ..?’ अम्मी ने हमारी तरफ रुख़ मोड़ते हुए कहा।
मुझे अंदाज़ा था कि बाजी इस सिचुयेशन से घबरा जाएंगी.. इसलिए मैंने फ़ौरन ही बोल दिया- अम्मी बाजी के फैशन भी तो नहीं खत्म होते ना.. इतने बड़े नाख़ून रखती ही क्यों हैं कि बर्तन में उलझ कर तक़लीफ़ देने लगें।
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