Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
07-03-2019, 03:47 PM,
#17
RE: Antarvasna kahani वक्त का तमाशा
इतना जल्दी जवाब देख के स्नेहा के दिल को एक अजीब सा सुकून मिला... शायद आज की रात कुछ चीज़ें बदल जाने वाली थी इसलिए

शाम के 6 बज रहे थे, राइचंदस के कुछ रूम ऐसे थे जहाँ से समंदर की लहरों के नज़ारे के साथ साथ डूबते हुए सूरज को भी देखा जा सकता था... स्नेहा के साथ शॉपिंग करके शीना सब से पहले रिकी से मिलने गयी,... रिकी के लिए भी उसने शॉपिंग की थी और वो उसे वो सब दिखाने लगी.. शॉपिंग के सारे वक़्त शीना बेताब थी रिकी से मिलने के लिए इसलिए अभी उसके साथ वहाँ थी तो बहुत खुश थी वो, वहीं दूसरी तरफ रिकी के दिल में भी बेताबी सी बढ़ने लगी थी शीना से बातें करने की, उसे देखने की, उसके करीब रहने की.. जहाँ शीना का प्यार दिल और जिस्म वाला था, वहीं रिकी अभी तक समझ नहीं पाया था कि इतने कम वक़्त में उसे क्या हो गया है... जिस्मानी ज़रूरत से दूर, रिकी बस दिल से शीना के बारे में सोचता रहता जब से वो महाबालेश्वर से आया था. शायद यह उन साथ बिताए पलों का जादू था जिसकी वजह से आज रिकी जैसा सुलझा हुआ आदमी भी एक तरह से उलझ सा गया था.. शॉपिंग की हुई चीज़े दूर, रिकी बस शीना को ही देखे जा रहा था, डूबते सूरज की हल्की किरणें जैसे शीना के चेहरे पे पड़ती , उसकी चमक बढ़ती जाती.. हल्की समुद्रि हवा से शीना की ज़ूलफें उड़ती उसका एक अलग ही नशा था रिकी को.. शॉपिंग की हुई चीज़े देख के रिकी और शीना
बाल्कनी में ज़मीन पे बैठ के बातें कर रहे थे... स्नेहा जब अपने काम से फ़ुर्सत निकल के शीना के पास गयी तब उसे वहाँ ना पाकर वो समझ गयी कि शीना इस वक़्त कहाँ होगी. इसलिए उसने सोचा उन्हे डिस्टर्ब नहीं करते, आख़िर यही तो था जो स्नेहा चाह रही थी.. इसलिए दबे पावं ही शीना के कमरे से उल्टी लौट गयी...




"शीना.... एक बात कहूँ, बुरा नहीं मानोगी.." रिकी ने शीना के हाथ हल्के से पकड़ के उसकी आँखों में देख कि कहा... रिकी के हाथों को महसूस करते ही शीना गद गद हो गयी, उसकी दिल की धड़कन तेज़ हो गयी और वो बस रिकी को चेहरे को देख के ही कहीं खो सी गयी.. कुछ देर तक जब दोनो भाई बहेन एक दूसरे की आँखों में खोते से चले गये, उस वक़्त शीना ने हल्की सी आवाज़ में कहा



"बोलिए ना भाई..."



"शीना... थॅंक यू वेरी मच.." रिकी ने शीना के हाथों को अब तक नहीं छोड़ा था..



"थॅंक्स क्यूँ भाई..." शीना भी रिकी के हाथों को उतने ही प्यार से थामे हुए थी



"पता नही शीना.. बस ऐसे ही, आइ मीन तुम ने मुझे वहाँ जाने से रोका शायद इसलिए मैं अपने जीवन के कुछ कीमती लम्हे तुम्हारे साथ बिता रहा हूँ, अगर तुम मुझे नहीं रोकती तो मैं फिर से अकेला हो जाता और शायद इस बार उस अकेलेपन में इतना दूर निकल जाता के कभी लौट के नहीं आता.. तुम्हारे साथ बिताया हुआ हर पल मुझे एक सुकून सा
देने लगा है, तुम्हारे साथ होता हूँ तो मुझे कोई डर, कोई फ़िक्र नहीं सताती.. तुम्हारे साथ ज़िंदगी मिलती है मुझे...तुम्हारे साथ यूँ लगता है जैसे...जैसे....."




"जैसे यह वक़्त बस यूँ ही थम जाए, जैसे यह सूरज कभी डूबे नहीं , जैसे यह हवा यूँ ही बहती रहे, जैसे हम हमेशा ऐसे ही बैठे रहें, जैसे हमे कोई भी तंग करने वाला ना हो.. जैसे आप हमेशा मेरा हाथ यूँ ही थामे रहें, जैसे आप हमेशा बोलते रहें और मैं सुनती रहूं.." शीना ने रिकी के खोए हुए शब्दों को ढूँढ के उसकी बात पूरी की... शीना की बात सुन के रिकी बस यूँ ही उसका हाथ थामे बैठा रहा और दोनो एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे.. दोनो के बीच अगर कोई आवाज़ें थी तो
वो उनकी धड़कन की और पत्थरों से टकराती हुई समादर की लहरों की.. सूरज भी कुछ वक़्त में बस उन्हे अलविदा कहके जाने ही वाला था, ऐसे माहॉल में भला कोई कैसे बहेक नही सकता, शीना ने रिकी के हाथों को और ज़्यादा मज़बूती से पकड़ लिया था जैसे कि प्रेमिका अपने प्रेमी से कहना चाहती हो "अभी ना जाओ छोड़ कर... कि दिल अभी भरा नहीं.."

रिकी ने शीना को अपने करीब ले लिया और शीना भी जैसे हवा में कटी हुई पतंग की तरह उसके पास लहराती हुई चली गयी... शीना ने मौका पाकर अपना सर रिकी के कंधों पे रखा और दोनो भाई बहेन सामने के नज़ारे को देखने लगे, बिना किसी शब्द के, इस वक़्त दोनो की दिल की धड़कने एक दूसरे से बातें कर रही थी..











दूसरी तरफ, विक्रम अपने फार्म हाउस पहुँचा और सेक्यूरिटी गार्ड से कहके जितने भी कमरे थे उन सब को खुलवाया, और फार्म हाउस की एक एक बत्ती को जलाने के लिए कहा.. फार्म हाउस के बाहर खड़े रहके विक्रम धीरे धीरे जल रही बत्तियों को देखने लगा और कुछ ही देर में पूरा फार्म हाउस ऐसे जल उठा जैसे की कोई दीवाली माना रहा हो.. इतने में

विक्रम ने फोन करके अपने कुछ दोस्तों को भी बुला लिया यह कहके के आज की रात पार्टी करते हैं.. विक्रम ने सेक्यूरिटी गार्ड को इसके बंदोबस्त पे लगाया और खुद अंदर जाके हर एक रूम में जाके एक एक कोने का मुआईना करने लगा.. धीरे धीरे कर के विक्रम ने सब रूम देखे और आख़िर में लॉबी के एंड में बनी स्टडी की तरफ रुख़ करने लगा..

पिछली बार जो विक्रम को महसूस हुआ था, वही भाव अभी भी उसके दिल में थे, लेकिन डर बिल्कुल नहीं था.. तेज़ कदमो के साथ विक्रम स्टडी की तरफ बढ़ा.. दरवाज़ा तो खुला हुआ था, इसलिए अंदर जाते ही उसने स्टडी के हर एक कोने को छान मारा और सब कुछ अपने दिमाग़ में नक्शे की तरह फिट करने लगा.. स्टडी की एक खिड़की बाहर की तरफ खुलती
थी, जहाँ से लोनवाला के पहाड़ों के दर्शन होते थे.. अभी अंधेरा हो चुका था पर विक्रम ने फिर भी खिड़की खोली और कुछ देर आस पास झाँकता रहा.. जैसे ही विक्रम ने खिड़की बंद की, उसका ध्यान खिड़की के काँच पे पड़ा... तभी उसका फोन बजा और अपने दोस्त का नंबर देख के उसने जल्दी से खिड़की बंद की और उनसे मिलने चला गया..

दोस्तों से मिल के विक्रम ने स्टडी के बगल वाले कमरे में प्रोग्राम जमाया और अपने साथ सेक्यूरिटी गार्ड को भी बोल दिया के वो भी उन्हे जाय्न करे... विक्रम और उसके दोस्त पीने में लगे हुए थे और खूब मस्ती और शोर कर रहे थे.. विक्रम धीरे धीरे अपने स्टाइल में दारू पीता, ऐसा नहीं था कि वो दारू पीक बहेक जाता, बल्कि उसकी केपॅसिटी बहुत अच्छी थी,

पर वो दूध हो या दारू, सब का लुत्फ़ लेना जानता था... धीरे धीरे रात बढ़ती गयी, अंधेरा बढ़ता गया और अंधेरे के साथ हल्का कोहरा भी छाने लगा.. विक्रम के सभी दोस्त पीते पीते होश खोने लगे और एक एक कर सब वहीं लूड़क गये.. लूड़कने से पहले सब ने यह सही किया कि जगह ढूँढ के फिर वहाँ गिरने लगे, सेक्यूरिटी गार्ड को भी होश
नहीं था पर लूड़कने से पहले वो अपने कमरे में पहुँचा और सब बतियां बुझा के सो गया.. सब को चेक कर विक्रम को जब आश्वासन हुआ के कोई भी होश में नहीं है तब विक्रम वॉशरूम गया और फ्रेश होके बाहर आया.. करीब आधे घंटे तक रुकने के बाद विक्रम ने घड़ी देखी तो रात के 3 बज चुके थे.. विक्रम ने जल्दी से स्टडी की लाइट्स बंद की और धीरे से कमरे से बाहर निकला.




राइचंदस में रिकी और शीना का होश तब टूटा जब शीना के मोबाइल पे उसकी दोस्त का कॉल आया था.. मोबाइल रिंग सुनते ही जैसे शीना एक लंबी नींद से जागी हो ऐसा महसूस हुआ उसे.. बिना वक़्त गँवाए उसने कॉल कट किया और फिर रिकी के कंधों पे सर रख के आँखें बंद कर ली... रिकी और शीना भाई बहेन हैं, लेकिन इस बात से उन्हे कोई फरक
नही पड़ रहा था या यूँ कहा जाए कम से कम उस वक़्त उनके हाव भाव देख के तो बिल्कुल ऐसा नही लग रहा था कि यह लोग ग़लत हैं.. प्रेम रस में डूबे हुए दोनो एक दूसरे की भावनाओ से अंजान बस उस तन्हाई का मज़ा ले रहे थे..




"शीना, मेरी वजह से दोस्त नहीं खो दो तुम.." रिकी ने शीना के बाल सहला के कहा और उसे हल्के से चूम लिया..



"कोई बात नहीं भाई, अगर सब दोस्त खोके आप के साथ यूँ ही वक़्त गुज़ारने को मिलेगा तो मुझे इस बात का कोई गम नहीं है के मेरे दोस्त मेरे साथ हैं या नहीं.." शीना ने अपनी आँखें रिकी से मिलाई और धीरे धीरे आगे बढ़ के रिकी के माथे को चूम लिया.. शीना को खुद नहीं पता था कि वो ऐसा करने की हिम्मत कहाँ से लाई पर उसे बिल्कुल
भी डर नहीं था कि रिकी क्या सोचेगा या क्या नहीं.... कोई हरकत ना देख, शीना ने फिर रिकी के गालों को हल्के से चूमा और कहा



"थॅंक्स फॉर स्टेयिंग बॅक भाई.." कहके जैसे ही शीना जाने के लिए उठी रिकी ने उसका हाथ खींच फिर उसे अपने पास बिठाया और उसने भी अपने होंठ शीना के गालों पे रख दिए और फिर धीरे धीरे उसे हग करने लगा, हग करके रिकी ने फिर अपने होंठ शीना की नेक पे रखे और अपनी गरम साँसें शीना को महसूस करवाने लगा.. आलम यह था कि
इन दोनो की साँसें इतनी तेज़ चल रही थी कि कोई भी उन्हे सुन सकता था, उनकी भावनाओं पर उनका खुद का काबू नहीं रहा था.. दोनो के पास अगर बरफ भी होती तो उनकी साँसों की गर्मी से वो भी पिघल जाती.. करीब 2 मिनिट तक दोनो एक दूसरे की बाहों में रहे और फिर एक दूसरे से अलग हुए



"चलिए भाई.. काफ़ी देर हो गयी है, और आप कल से अपने डिस्टेन्स कोर्स का बंदोबस्त कीजिए, नहीं तो मुझे हमेशा यह गिल्ट रहेगा के मेरी वजह से आपकी पढ़ाई पूरी नहीं हुई.." शीना ने खड़े होके कहा और रिकी ने सिर्फ़ हां में अपनी गर्दन हिलाई... शीना वहाँ से जाने लगी और रिकी अभी भी समंदर की लहरों की आवाज़ सुन रहा था..
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