Antarvasna kahani हवस की प्यासी दो कलियाँ
09-17-2018, 01:12 PM,
#11
RE: Antarvasna kahani हवस की प्यासी दो कलियाँ
खैर यही सोचते-2 मुझे कब नींद आ गयी मुझे पता नही चला…अगली सुबह जब मैं उठी, तो बाहर निकल कर देखा तो कुछ बच्चे रेडी थी…और कुछ अभी तैयार हो रहे थे….वेटर रूम मे आकर चाइ दे गया था…मेने ब्रश किया और फिर चाइ पीते हुए, रूम के बाहर बनी हुई गॅलरी मे जाकर खड़ी हो गयी…जो बाहर पार्क की तरफ़ खुलती थी….क्योंकि जो रूम मुझे मिला था…..वो फर्स्ट फ्लोर पर था…और पार्क के आगे बड़े-2 पहाड़ जो कि बरफ से ढके हुए बहुत सुंदर नज़ारा पेश कर रहे थे…

मैं अभी कुदरत के इस नज़ारे को देख ही रही थी कि, मुझे नीचे पार्क के चारो और बनी रेलिंग के साथ खड़ी हुई ललिता दिखाई दी….उसने अपनी पीठ रेलिंग से टिका रखी थी. और उसके साथ राज खड़ा था….जो रेलिंग पर हाथ रख कर खड़ा था…दोनो आपस मे कुछ बात कर रहे थे….फिर थोड़ी देर बाद ललिता वहाँ से हट कर रूम मे आ गयी…पहले तो राज की पीठ मेरी तरफ थी…फिर वो मेरी साइड पलटा और रेलिंग के साथ अपनी पीठ लगा कर खड़ा हो गया….

अचानक से जैसे ही उसका ध्यान मुझ पर पड़ा तो, वो मुझे देख कर मुस्कुराने लगा. मैं उसकी इस हरकत से एक दम से चिड गयी….और उसने फिर तो हद ही कर दी. उसने मेरे सामने अपने बाबूराव को पेंट के ऊपेर से पकड़ कर दो तीन बार हिलाया. और फिर से मेरी तरफ पीठ करके खड़ा हो गया….

मैं एक गुस्से से लाल हो गयी थी…अब मेरी बर्दस्त से बाहर हो गया था…मैने चाइ कप का रखा और अपने ऊपेर शॉल ओढ़ कर नीचे गयी….और फिर बाहर पार्क मे चली गयी…राज ने मुझे अपने पास आता हुआ देखा तो वो थोड़ा सा घबरा गया… “ ये क्या बदतमीज़ी है…तुम्हे शरम नही आती…” मेने गुस्से से उसकी ओर देखते हुए कहा..

राज: क्यों क्या कर दिया मेने….

मैं: तुम अच्छी तरह जानते हो कि तुमने कैसे घटिया हरकत की है…और इसका ख़ामियाजा तुम्हे भुगतना ही पड़ेगा….

राज: ओह्ह अच्छा अब समझा तुम किस की बात कर रही हो…अर्रे यार अब बंदे को अगर अपने प्राइवेट पार्ट्स पर खुजली हो रही हो, तो वो बेचारा खुजाएगा तो ना… हां ये अलग बात है कि आप ग़लत टाइम पर ग़लत जगह पर खड़ी थी….इसमे मेरे कोई ग़लती नही.

मैं: देखो मैं तुम्हे अच्छे से समझती हूँ…..ये आज मैं तुम्हे लास्ट वॉर्निंग दे रही हूँ…सुधार जाओ नही तो मुझसे बुरा नही होगा….और हां ललिता से दूर रहना… नही तो मैं तुम्हारी शीकायत जय सर से कर दूँगी….





राज: ओह्ह तो तुम ही हो…जो ललिता के कान मेरे खिलाफ भर रही हो….रही मेरी बात ललिता से दूर रहने की, तो चलो मैं ललिता से दूर ही रहूँगा….पर ललिता मुझसे दूर रह सकती है या नही तुम खुद देख लेना….

मैं: तुम एक घटिया इंसान हो…तुम्हे तो ये भी नही पता कि, अपने टीचर से कैसे बात करते है…तुम-2 कह कर बुला रहे हो ना तुम मुझे…देखना एक दिन सब के सामने तुम्हारी सच्चाई ना ला दी तो मेरा नाम भी डॉली नही…

राज: जा जा मेरी सच्चाई तू क्या सामने लाएगी….

मैं गुस्से से पैर पटकती अपने रूम की तरफ जाने लगी….

राज: अपनी ललिता को संभाल कर रखना….और उससे कह देना कि मेरे पीछे ना आए..

मेने मूड कर गुस्से से राज की तरफ देखा…पर वो मुझसे अब ज़रा सा भी नही डर रहा था…उसके चेहरे पर फेली हुई कमीनी मुस्कान देख कर मैं अंदर तक सुलग गयी. और अपने रूम मे गयी….पीछे से एक स्टूडेंट मेरे रूम मे आई, और बोली, कि जय सर जल्दी तैयार होकर मुझे नीचे आने को कह रहे थे….

मैं जलदी से तैयार हुई, और नीचे आ गयी….नीचे सब रेडी थे…उसके बाद हम दलहौजी देखने के लिए होटेल से निकल पड़े….पैदल चलते हुए घूमते हुए हम सब ने बहुत एंजाय किया….हम मेन सिटी से घूमते हुए काफ़ी बाहर आ चुके थे. सुबह 11 बजे थे….इसलिए हमें कोई जलदी नही थी….सब लोग इधर उधर बिखरे हुए चल रहे थे…पहले तो ललिता मेरे साथ चल रही थी…पर मैं अपने स्कूल की हिन्दी की टीचर के साथ बातों मे उलझ गयी….

अचानक से मेरा ध्यान ललिता की तरफ गया तो वो मुझे कही दिखाई नही दी…सब लोग थोड़ा थक चुके थी….और इधर उधर बैठ गये थे….चारो तरफ काफ़ी बड़े-2 पैड थी….कुछ स्टूडेंट इधर जा रहे थे कुछ उधर….पर ललिता मुझे दिखाई नही दी. तभी मेरी नज़र राज पर पड़ी…जो कि पहाड़ी की ढलान पर खड़ा मेरी ओर देख रहा था…जैसे ही मेने उसकी तरफ देखा तो उसने दूसरी तरफ मूह घुमा लिया. और पहाड़ी के ऊपेर की तरफ चलाने लगा…

मेरे दिल की धड़कने एक दम से बढ़ गयी….मैने मॅम से कहा कि, मैं अभी आई, और मैं राज के पीछे जाने लगी….वो बेहद तेज़ी से चल रहा था….मैं उससे से थोड़ा पिछड़ गयी…जब मैं ऊपेर पहुँची तो वो मुझे नज़र नही आया…मैं थोड़ा और आगे बढ़ी तो मुझे राज नज़र आ गया….पर आगे जो मेने देखा…वो देख कर तो मेरे पैरो तले से ज़मीन ही खिसक गयी…उससे 15-20 कदमो के आगे ललिता खड़ी थी….

उसने ब्लू कलर के जीन्स और ब्लॅक कलर के टीशर्ट पहनी हुई थी…राज ललिता की तरफ बढ़ा और ललिता के पास जाकर रुक गया…तभी ललिता की नज़र मुझ पर पड़ी तो वो एक दम से घबरा गयी….उसने अपने फेस को झुका लिया…और राज को धीरे से कुछ कहा. मुझे वहाँ से ललिता के होन्ट हिलते हुए नज़र आए….पर मैं उन दोनो से 30 कदमो के फाँसले पर खड़ी थी…इसलिए मुझे कुछ सुनाई नही दिया…राज अब भी मेरी ओर पीठ किए हुए खड़ा था…उसने ललिता का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खेंचा तो, ललिता के बूब्स राज की चेस्ट मे दब गये…ललिता घबराई हुए सी मेरी तरफ देख रही थी..

फिर राज ने ललिता के फेस को नीचे से पकड़ा और ऊपेर उठाते हुए, उसके होंटो को अपने होंटो मे भर लिया…और उसके होंटो को चूसने लगा…मुझे तो ऐसा लग रहा था कि, जैसे ज़मीन अभी फॅट जाएगी…और मैं उसमे समा जाउन्गी…पर अगले ही पल मुझे उससे भी बढ़ा शॉक तब लगा..जब ललिता ने अपनी बाहों को राज के गले मे डाल दिया…और राज के बालो मे अपनी उंगलियों को घूमाते हुए अपने होंटो को चुसवाना शुरू कर दिया. ललिता अपने पंजो के बल खड़ी थी….

उसकी एडियाँ ऊपेर उठी हुई थी….जो कुछ मेरे सामने हो रहा था…मैं उसे देख कर भी यकीन नही कर पा रही थी….तभी राज ने ललिता की पीठ घुमा कर मेरी तरफ कर दी…और ललिता के चुतड़ों को उसकी जीन्स के ऊपेर से जो कि उसके चुतड़ों पर एक दम कसी हुई थी….ऊपेर से दबाना और मसलाना शुरू कर दिया…ये देख कर मेरा मूह हैरानी से और खुल गया….मैं वहाँ से हटना चाहती थी….पर पता नही जैसे ज़मीन ने मेरे पैरो को वहाँ जाकड़ लिया था…मैं हिल भी नही पा रही थी…

फिर राज ललिता की गान्ड को मसलते हुए थोड़ा सा घुमा अब दोनो की साइड मेरी तरफ थी…और राज ने ललिता के होंटो से अपने होन्ट अलग कर दिए….ललिता थोड़ा सा पीछे होकर खड़ी हो गयी….वो सर झुकाए चोर नज़रों से मेरी ओर देख रही थी…फिर राज ने ललिता से कुछ कहा…जिसे सुन कर ललिता थोड़ा सा घबरा गयी…पर अगले ही पल ललिता ने वो किया..जिसकी उम्मीद मुझे उससे बिल्कुल भी नाही थी….
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