04-09-2020, 03:39 PM,
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hotaks
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RE: Antarvasna Sex चमत्कारी
अजीत—क्या तुम हमे उस आदमी…ख़तरा का पता बता सकते हो….?
गणपत राई—उसका पता तो मुझे भी नही मालूम….लेकिन उसने कहा था कि वो मेरी बेटी की शादी मे ज़रूर आएगा.
मेघा—तब तो तुम्हे ये भी पता होगा कि आदी अब इस दुनिया मे नही रहा.
गणपत—हाँ, मैने सुना है मेडम, लेकिन मुझे इस बात पर यकीन नही है…क्यों कि वो तो लंडन मे थे जबकि ये हादसा यहाँ इंडिया मे हुआ था…ये कैसे संभव है…? एक आदमी दो दो जगह कैसे हो सकता है जब की दूरी इतनी ज़्यादा हो….?
अजीत—तुम्हारी बात मे दम है.
गणपत—अच्छा साहब मैं अब चलता हूँ....ये कुछ पैसे हैं रख लीजिए...बाकी के भी मैं कैसे भी करके चुका दूँगा....और हो सके तो मेरी बेटी को आशीर्वाद ज़रूर आईएगा.
आनंद—ये पैसे मेरी तरफ से अपनी बेटी को दे देना....अगर कोई भी और ज़रूरत पड़े तो बेहिचक माँग लेना...मैं ज़रूर आउन्गा शादी मे.
गणपत—बहुत बहुत शुक्रिया साहब.
गणपत वहाँ से चला गया लेकिन उसने सब के दिल मे एक नयी ऊर्जा और विश्वास का संचार कर दिया था….सब को एक बार फिर से आदी के जीवित होने की उम्मीद लगने लगी थी.
मेघा—भगवान करे कि हमारा आदी सही सलामत हो.
अजीत—भाई साहब..मुझे लगता है कि हमे एक बार फिर नये सिरे से तहक़ीक़त शुरू करनी चाहिए.
आनंद—शायद तुम ठीक कहते हो……मैं आज ही लंडन बात कर के किसी डीटेक्टिव एजेन्सी को हाइयर करता हूँ इस काम के लिए.
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वही दूसरी तरफ आदी घपा घप माधवी की चूत को पेल पेल कर उसका योनि छिद्र चौड़ा कर रहा था…आख़िर कार हर शुरुआत का एक
अंत भी निश्चित होता है….ज़ोर ज़ोर धक्के लगाते हुए वो लंबी लंबी पिचकारिया माधवी की चूत मे छोड़ने लगा.
उसी समय मुनीश अपने महल मे प्रवेश किया….आदी ने माधवी को पूरी तरह से एक नये अनिवर्चनिय आनंदमयी संभोग सुख की अनुभूति
करवा दी थी…माधवी भी आदी के साथ ही एक बार पुनः स्खलित हो गयी.
तभी दोनो के कानो मे किसी के आने की पद्चाप सुनाई पड़ी….दोनो तुरंत एक दूसरे के जिस्म से अलग होकर अपने अपने वस्त्र शीघ्रता से पहनने लगे.
आदी ने माधवी के कक्ष से बाहर निकलने के लिए तेज़ी से जैसे दरवाजे के बाहर कदम बढ़ाया वैसे ही उधर से आ रहे मुनीश से टकरा गया.
आदी को इतनी रात मे अपने कक्ष मे देख कर मुनीश चौंक गया…..आदी और माधवी का पूरा शरीर पसीने से लथपथ हो रहा था…..लेकिन
उसके मंन मे किसी भी प्रकार का संदेहास्पद विचार नही आया.
मुनीश (मज़ाक मे)—वाह दोस्त….हमारे आते ही भाग रहे हो…क्या कर रहे थे अंदर हमारी धरम पत्नी के साथ…?
आदी (मन मे)—कहीं इस चूतिए ने सब देख तो नही लिया….? नही…नही…उसने अगर देखा होता तो ऐसे बात नही करता, फिर भी सावधानी ज़रूरी है.
आदी—बस दोस्त तुमसे ही मिलने आया था…तुम मिले नही तो भाभी जी से ही थोड़ी बाते करने लगा.
मुनीश—ऐसी क्या बात हो गयी कि हमारी याद इतनी रात को आ गयी मेरे यार को…..? और मेरे आते ही भाग रहे हो, क्या माजरा है भाई…?
आदी—कुछ नही तुम्हारा इंतज़ार करते करते थक गया था…इसलिए अब सोने जा रहा था.
मुनीश—इतना पसीना क्यो आ रहा है तुम दोनो को…? वो भी देव लोक मे….? बड़े विश्मय की बात है.
आदी—दरअसल मैने बुरा ख्वाब देखा था जिसकी वजह से पसीना आ गया और फिर वही ख्वाब भाभी को सुनाया तो उनको भी पसीना आने लगा.
मुनीश—खैर छोड़ो…आओ बैठो, बाते करते हैं.
आदी—अब सुबह बाते करेंगे…रात ज़्यादा हो गयी है, मुझे जोरो की भी नीद आ रही है….
मुनीश—ठीक है भाई…शुभ रात्रि
आदी वहाँ से जल्दी से निकल कर अपने कक्ष मे आ कर राहत की साँस ली.......वही मुनीश माधवी से बाते करने मे लग गया.
मुनीश—क्या बात है, देवर भाभी मे बड़ी गहरी दोस्ती हो गयी है…..?
माधवी—क्यो आपको जलन होने लगी है….?
मुनीश—मुझे क्यो जलन होगी भला….ये तो अच्छी बात है, आदी का भी मन लग जाएगा यहाँ…उसको यहाँ कुछ दिन तक रोकना आसान हो जाएगा.
माधवी—हाँ ये तो है….चलो अब विश्राम करते हैं.
मुनीश—अभी विश्राम कहाँ, मेरी जान….अभी तो कुछ और करने का दिल हो रहा है.
माधवी—आज मेरी इच्छा बिल्कुल भी नही है….जो भी करना है कल कर लेना.
लेकिन माधवी के लाख मना करने के बाद भी मुनीश नही माना और लगातार मिन्नतें करता रहा…आख़िर मजबूर हो कर माधवी ने भी हाँ कर दी.
दोनो पूर्ण रूप से निर्वस्त्र हो कर काम क्रीड़ा मे लिप्त हो गये…किंतु मुनीश को आज संभोग करने मे बिल्कुल भी आनंद नही आ रहा
था….उसे कल की तुलना मे माधवी की चूत आज बहुत ज़्यादा ढीली लग रही थी.
मुनीश (सोचते हुए)—माधवी की चूत आज इतनी ज़्यादा ढीली क्यो लग रही है….? रोज तो ज़ोर से ताक़त लगाने पर मेरा लंड अंदर जाता था उसकी चूत मे, जबकि आज चूत मे लंड रखते ही कब घुस गया पता ही नही चला बिना कोई मेहनत किए ही….ऐसा लग रहा है जैसे कि मैं
किसी बहुत बड़े खोखले बेलन मे अपना हथियार अंदर बाहर कर रहा हूँ….एक ही दिन मे माधवी की चूत इतनी चौड़ी कैसे हो गयी…..?
कहीं ऐसा तो नही की मेरे आने से पहले…………………….
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04-09-2020, 03:41 PM,
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RE: Antarvasna Sex चमत्कारी
अपडेट—83
राजनंदिनी एक पेड़ के नीचे बैठ कर उस पेड़ को बड़े ध्यान से देखे जा रही थी….ये पेड़ ऋषि और राजनंदिनी के प्रथम मिलन का यादगार
था, जहाँ दोनो अक्सर घंटो एक दूसरे की बाहों मे समाए हुए बाते करते रहते थे.
उनका दोनो का अधिकतर समय इस पेड़ की पनाह मे ही गुजर जाता था….उस पेड़ पर दोनो ने एक दूसरे का नाम लिख रखा था…आज भी राजनंदिनी उस पेड़ मे ऋषि के हाथो से लिखा हुआ अपना नाम देख कर उसकी याद मे तड़प उठती थी….यहाँ आने के बाद उसके दिल को बहुत सुकून मिलता था.
कुछ पल के लिए ही सही वो अपने सभी दुख दर्द भूलकर ऋषि की यादो मे खो जाती थी…आज भी वो इस समय ऋषि के ही ख्यालो मे पूरी तरह से समर्पित हो चुकी थी.
राजनंदिनी (पेड़ मे लिखे ऋषि के नाम को चूमते हुए)—ऋषि आख़िर तुम कब आओगे….? ये जुदाई अब मुझसे सहन नही होती है….कैसे समझोउ इस पागल दिल को, तुम ही आ कर इसको कुछ समझाओ ना…..? ये दिल मेरी कोई भी बात नही मानता है…..इसको आज भी
अपने उसी ऋषि का इंतज़ार है जिसकी आगोश मे इसे तीनो लोको का सुख मिलता था.
फिर उसकी याद, फिर उसकी आस, फिर उसकी बातें,
आए दिल लगता है तुझे तड़पने का बहुत शौक है
तुझे भूलने की कोशिशें कभी कामयाब ना हो सकी,
तेरी याद शाख-ए-गुलाब है, जो हवा चली तो महक गयी.
राजनंदिनी की आँखो मे कब नमी उतर आई उसको खुद भी इसका आभास नही हुआ….वो तो बस अपने ऋषि की बाहों मे यादो के ज़रिए समाई हुई उससे बाते किए जा रही थी.
अगर वहाँ से गुजरने वाला कोई राहगीर उसको इस अवस्था मे देख लेता तो निश्चित ही उससे पागल समझ लेता जो ऐसे वीरान जगह मे खुद से ही बाते किए जा रही है.
तभी वहाँ से आकाश मार्ग से देवर्षी नारद गुज़रते हुए उनकी नज़र राजनंदिनी पर चली गयी…वो कौतूहल वश कुछ देर वही रुक कर उसका प्रेमलाप देखने लगे.
अंततः उनसे जब रहा नही गया तो वो राजनंदिनी के पास पहुच गये…किंतु उसको पता नही चला…वो तो अपने प्रियतम के प्रेम धुन मे
बावरी होकर यू ही बड़बड़ाये जा रही थी.
नारद—नारायण….नारायण..! क्या हुआ पुत्री, किस की यादो मे खोई हुई हो….?
राजनंदिनी (चौंक कर)—ह्म्म्म्म…ककककक…कौन…..? प्रणाम महत्मन.
नारद—कल्यणमस्तु..! इस सुनसान जगह पर क्या कर रही हो पुत्री…?
राजनंदिनी—आप तो महात्मा हैं..आप सब जानते हैं कि मेरा दुख क्या है…?
नारद (कुछ देर आँखे बंद कर के देखने के बाद)—हमम्म….इस समय तुम्हारे गाओं को तुम्हारी नितांत आवश्यकता है…तुम्हे यथा शीघ्र वहाँ जाना चाहिए…..
राजनंदिनी—मुनिवर…मेरा ऋषि कब मिलेगा मुझे….?
नारद—सभी लोको का भ्रमण करो .मुसीबत मे फँसे .लोगो की सहयता करो….शायद कहीं तुम्हारी मुलाक़ात हो जाए
राजनंदिनी—आपका कोटि कोटि धन्यवाद मुनिवर..प्रणाम
नारद—तुम्हारा कल्याण हो..‼
राजनंदिनी देवर्षी नारद के वहाँ से जाते ही तुरंत एक बार फिर से उस पेड़ पर ऋषि के नाम के उपर अपने होंठो की मोहर लगा कर गाओं के लिए निकल गयी.
गाओं मे इस समय हर तरफ हाहाकार मचा हुआ था….अजगर के खूनी दरिंदे आज मुखिया की एकलौती लड़की को जबरन घसीट कर ले जा रहे थे.
मुखिया—मेरी लड़की को छोड़ दो…भगवान से डरो…अरे पापीओ उस मासूम ने तुम लोगो का क्या बिगाड़ा है.
एक पिशाच—हाहहाहा…..हमारा कोई कुछ नही बिगाड़ सकता….यहाँ का भगवान अजगर है…शैतान ज़िंदाबाद
2न्ड पिशाच—इसकी लड़की को भी नग्न कर के रात मे नाथ दो…तब पता चलेगा अजगर से बग़ावत का अंज़ाम
वो अभी मुखिया की लड़की के कपने फाड़ने के लिए हाथ आगे बढ़ाए ही थे कि वहाँ अचानक तेज़ हवाएँ चलने लगी और इन हवाओं ने कुछ ही पल मे भयानक चक्रवात का रूप धारण कर लिया जिसने अजगर के आधे से अधिक पिशाच सैनिको को अपने तूफ़ानी भंवर जाल मे लपेट लिया…..,किसी को भी कुछ देखने समझने का मौका ही नही मिला.
ये सब इतना आकस्मात हुआ कि सब हैरान रह गये…किंतु मुखिया और बाकी गाओं वालो के चेहरो मे जैसे रौनक लौट आई थी.
एक पिशाच—कककक…कौन है…? किसे अपने प्राणो का भय नही है….?
राजनंदिनी का नाम सुन कर बचे कुचे सैनिक उस तरफ देखने लगे…..सामने राजनंदिनी बेहद क्रोध मे आँखे किसी डूबते सूरज के जैसी एकदम लाल किए खड़ी थी…उसके मुख के अंदर से निकल रही फुफ्कार की वजह से वहाँ चक्रवात का निर्माण हो रहा था…उसके खुले हुए केश और गुस्से से भरा हुआ ये रूप देख कर सभी को वो बिल्कुल रणचंडी लग रही थी.
“राआज्जजज्ज…नंदिनिईीईई” सभी गाओं वाले एक स्वर मे खुशी से चिल्ला उठे.
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04-09-2020, 03:42 PM,
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hotaks
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RE: Antarvasna Sex चमत्कारी
ख़तरा—तुमने सही कहा...हमे श्री की मदद लेनी होगी.
चित्रा—वो यहाँ तुमसे ही मिलने आई है शायद
ख़तरा—क्या तुम मुझे उस शख्स का कुछ पता बता सकती हो जिसने उनके उपर हमला किया था….?
चित्रा—शैतानो का शैतान….महा शैतान अजगर…यही नाम तो सुना था मैने उन लोगो के मूह से
ख़तरा—क्य्ाआअ…अजगर…? तब तो श्री की जान को भी ख़तरा हो सकता है…हमे सावधान रहना होगा.
चित्रा—ये चारो श्री का पीछा कर रहे थे…इसलिए तो मैं इन्हे पटक रही थी..देखो ये सब फिर से कही भाग गये…तुमसे बात करने के चक्कर मे मौका मिल गया उन्हे भागने का.
ख़तरा—लेकिन मुझे लगता है कि उस आश्रम मे जाने के लिए श्री की बजाए अग्नि की मदद लेना अधिक उप्युक्त होगा, एक तो वो खुद भी इस समय साध्वी बन कर तपस्या मे लीन हैं उन्हे आश्रम मे जाने से कोई नही रोकेगा दूसरा श्री ने भी तो वही किया जो तुम सबने मालिक के साथ
किया था…और ये भी तो हो सकता है कि श्री को वहाँ के साधु सही और पूरी जानकारी ना दे..जबकि अग्नि को इन सब मे कोई दिक्कत नही होगी.
चित्रा—ठीक है…तुम अग्नि के पास जाओ और मैं यहाँ श्री की सुरक्षा करती हूँ…अगर ज़रूरत पड़ी तो हम श्री की भी मदद ले सकते हैं.
ख़तरा—ठीक है…मैं आज ही अग्नि के पास जाउन्गा…लेकिन पहले मालिक से किया हुआ वादा तो पूरा कर लूँ…गणपत राई की बेटी की शादी मे शामिल होने के बाद.
चित्रा—ठीक है चलो अंदर
दोनो वहाँ से बाते करते हुए अंदर चले हुए….चित्रा ने भी एक सुंदर लड़की का रूप ले लिया था…अंदर श्री के साथ साथ बाकी सब की निगाहे भी ख़तरा को तलाश कर रही थी.
तभी उनके पास गणपत राई तेज़ी से आया और धीरे से कुछ कहा जिसे सुन कर सभी तुरंत उसके साथ चल दिए.
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जबकि उधर देव लोक मे आदी को मुनीश ने बाहर छोड़ कर कही निकल गया तो जैसे ही आदी अंदर आया उसने माधवी के कमरे का
दरवाजा खुला देख वहाँ चला गया.
माधवी के कमरे मे किसी के अंतर्वस्त्र बिखरे पड़े हुए थे और स्नान घर से किसी के नहाने की आवाज़ आ रही थी ये देख आदी खुश हो गया.
आदी—मैना तुम कुछ देर रूको मैं अभी नहा कर आता हूँ…..(मन मे)—लगता है कि माधवी भाभी अकेली हैं अंदर…बढ़िया मौका है, वो मुनीश चूतिया भी नही है…मैं भी भाभी के साथ लगे हाथ नहा लेता हू.
ये सोच कर उसने आनन फानन मे अपने कपड़े उतारे और निर्वस्त्र हो कर अंदर स्नान घर मे घुस गया जबकि मैना उसको अंदर जाने से
मना करती गयी लेकिन उसने सुना ही नही.
आदी जैसे ही अंदर गया ….जहाँ मुनीश की माँ शोभना पूरी तरह से नग्न अवस्था मे स्नान कर रही थी…दरवाजा खुलने की आहट से वो तुरंत पलट गयी और अपने सामने किसी अंजान शख्स को इश्स हालत मे देख कर चिल्लाने ही वाली थी कि उनकी नज़र आदी के हथियार पर चली गयी.
आदी के हथियार पर नज़र पड़ते ही उनकी ज़ुबान हलक मे ही अटक गयी…उनकी चिल्लाने की आवाज़ गले मे ही दब कर रह गयी…वो
बस आँखे फाडे आश्चर्य से आदी के हथियार को ही देखती रह गयी.
जबकि आदी ने जैसे ही उनका चेहरा देखा तो वो भी शॉक्ड रह गया..वो खड़े खड़े कभी शोभना के सुडौल स्तनों को देखता तो कभी हरित
क्रांति से फलीभूत चूत को.
आदी (मंन मे)—ये कौन है..? मुझे क्या…एक बार ट्राइ करने मे क्या हर्ज़ है…इसका ही कल्याण कर देता हूँ.
ये सोच कर आदी जैसे ही शोभना के नज़दीक पहुचा जो कि किसी सदमे की हालत मे थी…ठीक उसी समय आदी की याद दस्त चली
गयी….अब चौंकने की बारी ऋषि की थी.
ऋषि (मन मे)—ये क्याअ…मैं यहाँ कैसे…? मेरे कपड़े किसने उतार दिए…मुझे नंगा किसने कर दिया…..? और ये नंगी पुँगी कौन मेरे सामने बेशर्मो की तरह खड़ी है…? मैं इतना नीचे कैसे गिर सकता हूँ….राजनंदिनी को क्या जवाब दूँगा मैं…उसको पता चला तो वो मुझे कच्चा ही खा जाएगी.
ये सोच कर ऋषि तुरंत वहाँ से बाहर भाग आया और सीधे अपने कमरे मे जाकर कपड़े पहन लिए…उसके पीछे पीछे मैना भी आ गयी.
मैना—मैने मना किया था तुम्हे ऐसा मत करो..मगर तुमने सुना ही नही.
ऋषि (चौक कर)—तुउंम्म कौन हो.... ? और तुम हमारी ज़ुबान कैसे बोलती हो…?
मैना (शॉक्ड होकर मन मे)—अरे इसको क्या हुआ अब…? ऐसे क्यो बात कर रहा है…कुछ तो लोचा है…मुझे पता करना पड़ेगा.
ऋषि—तुमने बताया नही.
मैना ने ऋषि को भी वही सब बता दिया जो आदी को बताया था…जिसे सुन कर ऋषि को दुख हुआ…उसने उसकी मदद करने का वचन दे दिया.
जबकि शोभना अभी भी कही खोई हुई थी….मुनीश के आने के दोनो का आपस मे परिचय हुआ…लेकिन दोनो मे से किसी ने भी नज़रें नही मिलाई पर हैरान दोनो हुए.
मुनीश (खुश होते हुए मन मे)—आज मैं मस्त नीद सोउँगा…..अब रात भर ऋषि रहेगा…और अगर ना भी रहता तब भी कोई दिक्कत नही
थी…क्यों की माधवी तो है ही नही घर मे…हाहहाहा…जा आदी बेटा तेरा तो कल्याण हो गया..मेरी माधवी बच गयी…हिहिहीही
शोभना की नीद गायब हो चुकी थी…..ना जाने उसको क्या हो गया था….बहुत सोच विचार के बाद उसने मन ही मन कुछ निर्णय लिया और अपने कक्ष से निकल कर एक कमरे की तरफ बढ़ गयी.
सुबह जब मुनीश की नीद खुली तो एक बार फिर से उसके चेहरे का रंग उड़ गया …
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