RE: Antarvasna Sex kahani जीवन एक संघर्ष है
सूरज तान्या और संध्या जैसे ही कंपनी पहुंचे तो सभी कर्मचारी तान्या को देखने के लिए जमा हो जाते हैं, कंपनी का हर कर्मचारी तान्या के जल्द स्वस्थ होने की कामना कर रहा था,तान्या को पहली बार कंपनी के कर्मचारीयों के प्रति हमदर्दी महसूस हुई,कर्मचारियों से कभी उसने ठीक से बात भी नहीं की आज उन्ही कर्मचारियों के मुह से अपने लिए दुआ करते देख तान्या को बड़ी प्रशन्नता हुई। तान्या समझ गई यह सब सूर्या के कारण ही हो पाया है, सूरज तान्या को कंधे के साहरे पूरी कंपनी का दौरा करवा रहा था,तभी गीता सूरज और तान्या को घुलमिल होते देख बड़ी ख़ुशी महसूस करती है,
गीता-" अरे तान्या मेम अब आप कैसी हो, सूर्या सर को आपके साथ देखकर बहुत ख़ुशी हुई" गीता प्रसन्नत के साथ बोली ।
तान्या-" मेरा प्यारा भाई है ये,इसी के कारण तो मुझे यह जीवन मिला है,में तुम्हे भी थेंक्स बोलना चाहती हूँ गीता,आपने मेरी और कंपनी की बहुत मदद की है" गीता बहुत खुश होती है,संध्या खुश होती है ।
तान्या-"अरे हाँ गीता टेंडर का काम कितना पूरा हो गया"
गीता-" सूर्या की दिन रात की लग्न और मेहनत से टेंडर का कार्य पूरा हो गया"गीता खुश होकर बताती है,तान्या को विस्वास नहीं हो रहा था,एक महीने का कार्य 15 दिन में पूरा हो गया, ये कंपनी के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि थी,कंपनी का नाम रोशन हो गया था ।
तान्या-"क्या टेंडर 15 दिन में पूरा हो गया, woww सूर्या तूने बताया नहीं मुझे,ये ही ख़ुशी की बात है,मुझे आज गर्व हो रहा है अपने भाई पर" तान्या सूरज को गले लगा कर किस्स करती है" संध्या भी सूर्या के इस कार्य की सराहना करती है,
हालाँकि संध्या सुबह बाली घटना को लेकर अभी भी सूर्या से नज़ारे नहीं मिला पा रही थी, सूरज भी बीच बीच में संध्या को निहार लेता,दोनों की आँखे एकदूसरे से टकराती तो सूरज शर्मा जाता और संध्या भी ।
कंपनी के सभी लोग खुश थे। तान्या कंपनी के सभी कर्मचारियों को ख़ुशी में बोनस देने का आदेश देती है । काफी देर कंपनी में घूमने के बाद संध्या 'सूरज और तान्या' को रेस्टुरेन्ट में चलने के लिए बोलती है, आज सुबह सिर्फ नास्ता करके ही सभी लोग आए थे । तान्या तुरंत सूर्या से रेस्टुरेन्ट चलने के लिए बोलती है।तीनो लोग रेस्टुरेंट जाकर पिज़्ज़ा बर्गर खाते है । रेस्टुरेंट में तान्या महसूस करती है की संध्या और सूरज आपस में बात नहीं कर रहें हैं।
तान्या-"माँ क्या हुआ,आप आज इतनी शांत क्यूँ हो, और सूर्या भी शांत है" यह सुनकर संध्या चोंक जाती है और सूरज भी,
संध्या-' अरे नहीं बेटा में शांत कहाँ हूँ, में तो आज तुझे प्रसन्न देख कर खुश हूँ,इतना खुश मैंने तुझे आज तक नहीं देखा, ऐसे ही खुश रहा कर मेरी बच्ची"
तान्या-"थेंक्स माँ, सूर्या तुम आज क्यूँ उदास हो,कोई बात हो तो बोलो" संध्या जानती थी सूर्या क्यूँ नहीं बोल रहा है,मेरे कारण शर्मा रहा है,आज उसने अपनी जन्मभूमि के दर्शन जो कर लिए हैं ।
सूरज-" नहीं दीदी ऐसा कुछ नहीं है, आपको ऐसा लगा होगा"
तान्या-" चलो कोई नहीं,अब जल्दी से घर चलो"
सभी लोग खाना खा कर घर पहुंचे,8 बजे चुके थे । सूरज अपने कमरे में फ्रेस होकर तनु से बात कर रहा था, सूरज का रौज का नियम था,तनु और पूनम से बात करके हालचाल पूछता, सूरज ज्यादा समय नहीं दे पाता था अपने बहन और माँ को इस बात की शिकायत हमेसा उनको रहती थी ।
लेकिन सूरज सबको समझाता था,तनु सूरज से अकेले में ऐसे बात करती जैसे अपने पति से बात करती हो, दो बार सूरज से चुदने के बाद तनु की प्यास बहुत ही भड़क चुकी थी, लेकिन रोजाना अपनी प्यास ऊँगली से बुझा लिया करती थी, इधर पूनम सूरज के सभी राज जानने के बाद हर रोज सूरज से हालचाल पूछती थी, सूरज अपनी हर बात कंपनी और घर की पूनम को बता देता था, पूनम सूरज को लेकर बहुत चिंतित रहती थी,अकेला होकर पूरी जिम्मेदारी संभालना सूरज की बहुत बड़ी उपलब्धि मानती थी, पूनम को जब भी समय मिलता था वह सूरज से बात कर लेती थी ।
सूरज अपने कमरे में लेटा हुआ था, तनु और पूनम से बात ही कर रहा था तभी संध्या सूरज के कमरे में आती है, संध्या सूरज से बात करने के लिए उत्सुक रहती थी, संध्या सुबह वाली घटना के लिए भी सूरज से बात करना चाहती थी,एक ही घर में रहकर दोनों लोग आज शर्म और हया के कारण बात तक नहीं कर पा रहे थे,ये बात संध्या को मन ही मन खाए जा रही थी, संध्या सूरज से दोस्ताना व्यवहार चाहती थी,ताकि आपस में अपनी बात कहने में किसी को कठिनाई न हो, और कहीं न कहीं संध्या सूरज के प्रति आकर्षित भी थी, आखिर 22 साल तक किसी पुरुष के संपर्क में नहीं रही है,संध्या ने न ही कभी कोई बॉय फ्रेंड बनाया और न ही कोई मित्र, अकेले रहकर ही बिजनेस और घर को संभाला है लेकिन आज उसे पुरुष मित्र की आवश्यकता महसूस हो रही थी, बहारी पुरुष को मित्र न बनाकर सूरज के अंदर एक मित्र को देखने का प्रयास कर रही थी संध्या, एक ऐसा मित्र जिससे अपनी हर बात कह सके,संध्या कभी अपनी मन की सुनती तो कभी अपनी पनियाती गीली चूत की सुनती, चूत चुदने के लिए फड़कती और मन रिस्तो की मर्यादा का संकेत करता, लेकिन आज मन मस्तिक से ज्यादा चूर की हवस हावी थी संध्या पर, संध्या चाहती थी को सूरज हमेसा उसके साथ रहे,उससे बात करे, उसकी बात माने,सूरज को अपने बस में करके उसे दो फायदे दिखाई दे रहे थे एक तो खुद की चुदाई की चाहत और एक बहारी लड़कियों से छुटकारा,इसी उद्देश्य के साथ संध्या जैसे ही सूरज के कमरे में पहुंची तो देखा सूरज किसी से बात कर रहा था, संध्या को लगता है की जरूर शैली से बात कर रहा होगा,
इधर सूरज जैसे ही संध्या माँ को देखता है एक दम चोंक जाता है उसे लगता है कहीं माँ सुबह बाली बात को लेकर नाराज़ तो नहीं है,में उनके कमरे में चला गया था और उनको नग्न देख लिया था,सूरज फोन काटकर तुरंत बिस्तर से खड़ा हो जाता है, संध्या कमरे में आकर बेड पर बैठ जाती है,संध्या रात बाली ही मेक्सी पहनी थी जिसमे उसका बदन बहुत ही कामुक लग रहा था, संध्या और सूरज दोनों ही बैचेन थे, और खामोश थे,तभी संध्या बोलती है ।
संध्या-" मैंने डिस्टर्व तो नहीं किया तुझे"
सूरज-"नहीं माँ,डिस्टर्व कैसा, आप कभी भी आ सकती हो"
संध्या-"तू अभी फोन से बात कर रहा था, तेरी बात अधूरी रह गई होगी, गर्ल फ्रेंड से बात कर रहा था अभी' सूरज कैसे बताता असली सच की वो अपनी सगी बहनो से बात कर रहा था,इसलिए झूठ ही बोल देता है की गर्ल फ्रेंड से बात कर रहा था ।
संध्या-" ओह्ह्हो फिर तो बाकई मैंने तुझे डिस्टर्व किया है, शैली से ही बात कर रहा था या और भी गर्ल फ्रेंड है तेरी"
सूरज-" एक ही गर्ल फ्रेंड है माँ"सूरज सर झुकाए ही अपनी बात बोल रहा था,संध्या सूरज को बैठने के लिए इशारा करती है ।
संध्या-" झूठ बोलता है तू मधु भी तो है तेरी गर्ल फ्रेंड" संध्या मुस्कराते हुए बोली ।
सूरज-"मधु मौसी से में संपर्क तोड़ चूका हूँ माँ,इस समय एक ही है" संध्या खुश होती है क्यूंकि मधु से संपर्क तोड़ दिया था सूरज ने।
संध्या-" चल ये ठीक किया तूने, अच्छा ये बता सूर्या लड़के और लड़कियां आपस में मित्र क्यूँ बनते हैं?, संध्या के इस सवाल को सुनकर सूरज सोचने लगता है ।
सूरज-" माँ वैसे तो मित्रता मनुष्य के हृदय की एक स्वाभाविक रचना है। प्रत्येक व्यक्ति ऐसे साथी की खोज में रहता है जिसके समक्ष वह अपने हृदय को खोल कर रख सके। अपने अंतर में छिपे हुए भावों को निःशंक हो कर व्यक्त कर सके। जो कष्ट मुसीबत के समय सहयोग दे सके। मित्र से आप आपनी दिल की हर बात कह सके, उससे सलाह ले सके और जीवन के हर पहलु में उसका एक अहसास हो की कोई अपना है,जिससे हर प्रकार की समस्या का निस्तारण हो" संध्या सूरज की यह बात सुनकर मित्रता की कमी को महसूस करती है।
संध्या-" सही कहा सूरज, लेकिन एक बात और में पूछना चाहती हूँ क्या मित्र बहार का इंसान ही हो सकता है,घर परिवार में एक बहन भाई मित्र नहीं हो सकते,एक माँ और बेटा मित्र नहीं हो सकते, मित्रता का मतलब सिर्फ लड़का लड़की के प्रेम और शारीरिक प्रेम को ही मित्रता कहते हैं" सूरज इस सवाल का जवाब ढूंढते हुए बोला,
सूरज-" शारीरिक प्रेम मित्रता की निशानी नहीं है माँ, लेकिन समयनुसार जरुरत हो सकती है,माँ-बेटा,भाई बहन मित्र हो सकते है, प्रेम और मित्रता अलग विषय हैं, प्रेम में शारीरिक अपेक्षाएं होती हैं माँ" सूरज बडे ही कठिन सवालो के जवाब के घेरे में फस चूका था ।
संध्या-' सूर्या में चाहती हूँ तू बहारी लड़कियों का साथ छोड़ दे,उनसे मित्रता तोड़ दे, बहारी लड़कियां मित्रता का झूठा झांसा देकर तुझसे शारीरिक प्रेम सुख की अपेक्षा रखती हैं और तुझसे कई बार वो शारीरिक सुख भोग भी चुकी हैं, बाहरी लड़कियों के चक्कर में रहा तो किसी दिन तू लंबी या भयंकर बीमारी से ग्रस्त हो जाएगा" संध्या चिंता करते हुए बोली, सूरज बड़ी दुबिधा में फस चूका था ।
सूरज-" ठीक है माँ,जैसा आप चाहती हो वैसा ही होगा"
संध्या-" ओह्ह्ह थेंक्स सूर्या, तूझे कोई परेसानी है तो मुझसे बोल सकता है,में तुझे ठीक सलाह देने का प्रयास करुँगी,तू मुझे ही अपना मित्र समझ, कोई भी समस्या हो में सॉल्व करुँगी, क्या हम दोनों मित्र नहीं बन सकते, बेटे के लिए एक माँ से बेहतर कोई मित्र नहीं हो सकता है, में इसलिए दोस्त बनने के लिए इस लिए कह रही हूँ ताकि तू कोई बात कहने में मुझसे शर्माए नहीं, में अभी अकेली पड़ी पड़ी सोचती रहती हूँ अपने दिल की बातें किसी से कह नहीं पाती हूँ,इस लिए बोल! बनेगा मेरा दोस्त" कहीं न कहीं सूरज भी चाहता था की संध्या के करीब जा कर उसके दिल में क्या है यह पता करू,इसलिए सूरज तुरंत हाँ बोल देता है।
सूरज-" ठीक है माँ"
संध्या खुश हो जाती है ।
संध्या-" कहीं ऐसा तो नहीं है तू मेरा मन रखने के लिए हाँ बोल रहा हो, सोच कर बता मुझे" सूरज पुनः सोचने लगता है और फिर से हाँ बोलता है ।
सूरज दोस्ती के लिए अपनी सहमति प्रदान करता है,परंतु उसके मन में संदेह रहता है की क्या ये दोस्ती संभव है,मित्र से प्रत्येक विषय पर चर्चा कर सकते हैं,क्या माँ से हर प्रकार की चर्चा करना संभव है, हालाँकि सूरज का नाज़रिया संध्या के प्रति बदल सा गया था, संध्या को एक माँ के रूप में न देख कर उसे एक कामदेवी नज़र आती थी,और ये वास्तविकता भी है,संध्या का गदराया जिस्म लम्बा कद काठी, गांड बहार की ओर निकली हुई,बूब्स आगे की ओर तने हुए और उसकी नशीली आँखे किसी कामदेवी से कम नहीं थी, फ़िल्मी अभिनेत्री रेखा भी संध्या के सामने शर्मा जाए, ऐसी मनमोहक सुंदरता,चेहरे पर हमेसा कातिल मुस्कान बनी रहती है,
काफी देर सूरज संध्या के बारे में सोचता है फिर बोलता है।
सूरज-"माँ दोस्त का मतलब आप जानती हो न, दोस्त हर विषय पर सलाह मांग सकता है, दोस्त और रिश्ते एक जगह नहीं रह सकते, में जो बात एक दोस्त से कह सकता हूँ वो बात एक माँ से नहीं, में चाहता हूँ घर में माँ का रिश्ता और बहार दोस्त का रिश्ता होना चाहिए, या समय के अनुसार रिश्ता बदलना चाहिए,में तैयार हूँ दोस्ती के लिए'
संध्या मन ही मन खुश थी,क्यूंकि वो खुद चाहती थी सूर्या से खुल कर बात करे।
संध्या-' सूरज में भी यही चाहती हूँ तू बिलकुल खुल कर मुझसे बात करे, और में तो चाहती हूँ तू भूल जा की सामने तेरी माँ है ऐसा महसूस कर की तेरा दोस्त तेरे सामने है, मेरी हमेसा से एक चाहत थी की जीवन में एक ऐसा मित्र होता जिसके साथ खूब घूमती,डिनर पर जाती, जिसके साथ पब में जाती,पार्क में घूमती, दुनिया के हर आनंद लेती लेकिन मेरी किस्मत में शायद घूमना फिरना मौज मस्ती करना लिखा ही नहीं था, पूरा जीवन बच्चे और बिजनेस में ही निकल गया" संध्या पहले खुश होती है लेकिन जब अपनी पीड़ा और इच्छाएं बताती है तो उदास हो जाती है ।सूरज तुरंत संध्या के सामने फर्स पर बैठकर उसका हाँथ पकड़ लेता है और आस्वासन देता है ।
सूरज-" माँ अब चिंता मत करो, में आपको वो खुशियाँ दूंगा,जिनका आपने सपना देखा है, में वादा करता हूँ माँ एक दोस्त बनकर आपको कभी निराश नहीं करूँगा" संध्या यह सुनकर खुश हो जाती है ।
संध्या-"सच में सूरज,क्या तू बाकई में डिनर और पब(डांसबार) लेकर जाएगा, पर लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे,एक जवान लड़के के साथ बूढी कौन है, और इसको बुढ़ापे में कैसा शौक चढ़ा है ऐसा लोग बोलेंगे" संध्या जानबूझ कर यह बात बोलती है ताकि सूरज के मन की बात जान सके।
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