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Antarvasna Sex Kahani फार्म हाउस पर मस्ती
फार्म हाउस पर मस्ती
मेरा नाम कल्याणी है, शादी के बाद से अब मै गोरखपुर में अपने पति के साथ रहती हूँ. अब तो मै ३६ साल की, २ बच्चो की माँ हूँ और जीवन में सैक्स का मैंने शादी से पहले और शादी के बाद भरपूर आनंद लिया है. राजेश्वर सिंह जो मेरे पति है उनसे जब मेरी शादी हुयी तब शुरू की रातो में ही पता चल गया था कि मेरे पति में वो जबांजी नही है जो शादी से पहले मैंने अपने प्रेमी से चुदवाने में महसूस की थी. मैं तो सोचती थी कि वो हर दिन मुझे कम से कम 3-4 बार तो छोड़ेगा ही और अपनी जोरदार चुदाई से मेरी सारी नसे ढीली कर देगा. लेकिन जो जल्दीबाजी करते थे और जल्दी ही अपना पानी मेरी चूत में छोड़ देते थे. मैं शर्म से कुछ कह नही पाती थी, बस मौका मिलने पर ऊँगली से ही अपनी चूत की चोद के झड़ लेती थी
हमारी शादी को करीब ८ माह हो गए थे, लेकिन मै अपनी पहली चुदाई की ही याद में कैद होकर रह गयी थी. क्यों की मै अंदर से खुश नही थी, इसलिए मै गुमसुम रहने लगी, किसी भी काम में मन नही लग रहा था. मुझे उखड़ा हुआ देख कर राजेश्वर ने मुझसे कहा, "कल्याणी चलो शोहरतगढ़ चलते है, नेपाल की सीमा पर है वहां चचेरे भाई का बड़ा फार्म हाउस है , वहां कुछ दिन बिता कर आते है और तुमहरा दिल भी भल जायेगा." मैंने फ़ौरन हाँ कर दी मै भी गोरखपुर की उस वातावरण से अलग जाकर कुछ दिन रहना चाहती थी और सोचा, की हो सकता है राजेश्वर घर से बाहर आकर कुछ अपने अंदर मर्दानगी भरेगा और मै खुल के वहां के खुले मैदानों में खूब चुदुंगी.
हम लोग जब फार्म हाउस पहुंचे तो वहां हम लोगो का स्वागत गजेन्द्र नाम के आदमी ने किया , जो वहां की खेती और जानवरो की देखभाल करता था . वो करीब ३७/३८ साल का सँवला सा, भरे बदन का आदमी था. वहां वह अपनी पत्नी मुनिया जो करीब ३५ साल की थी और दो बच्चो के साथ रहता था.
उन दोनों ने हमारा जी खोल कर स्वागत किया और खाने पीने का प्रबंध किया. हम लोगो को पहुँचते पहुंचते काफी शाम होगयी थी तो हम लोगो ने जल्दी ही खाना खा लिया और जो कमरा हम लोगो के लिए तैयार था उसमे जाकर लेट गए. शहर से दूर बिलकुल अलग वातावरण था और मै आस लगाये हुए थी की राजेश्वर यहां खुल के मुझे प्यार करेंगे लेकिन वो तो थके हुए थे और यही कह कर मुँह मोड़ कर बिस्तर पर लेट गए.मैंने इतने सपने संजोये हुए थे की मुझे तो झल्लाहट के मारे नींद ही नही आरही थी. रात के सन्नाटे में मुझे बगल वाले कमरे में जिस में गजेन्द्र और उसकी पत्नी सोते थे से आवाजे आने लगी. पहले तो पलंग के हिलाने की आहत हुयी और फिर दबी दबी सीत्कारें आने लगी. मै समझ गयी थी की बगल के कमरे में गजेन्द्र अपनी पत्नी मुनिया को चोद रहा है और यह जानकर मेरी चूत भी भड़क गयी मैंने अपनी टैंगो को फैला दिया और उँगलियों से खुद को ही चोदने लगी. अनायास मुझे गजेन्द्र और उसकी बीवी का ही ख्याल आने लगा..कितना मोटा होगा उसका? किस तरह से वो उससे मस्त होकर चुदवा रही होगी? और यही सोचते सोचते मेरी चूत ने पानी फेंक दिया. झड़ने के बाद बड़ी रहत मिली और मै वैसे ही सो गयी.
अगले दिन हम लोग खेतो मै घूमे और पास के एक बड़े से तालाब में मछली भी पकड़ी. राजेश्वर का बीच में ही मन उखड गया और वापस चलने को कहने लगे, लेकिन मेरा तो घूमने को मन था, सो अनमने मन से मै उनके साथ वापस चली आई. मेरा मूड खराब होगया था और वो मेरे चहरे से साफ़ दिख भी रहा था की मुझे बीच से आना अच्छा नही लगा है. फार्म हाउस बड़ा था और अगल बगल काफी बहुत कुछ सुन्दर था. मेरे लौटने पर राजेश्वर ने कहा, 'कल्याणी हम यहाँ आये है तो कम से कम अपने स्टॉकिस्ट लोगो से भी मिल लूँ, तुम चाहो तो चले चलते है सब अगल बगल ही है, रात को लौट आएंगे.' मैंने तुनक के जवाब दिया,' मै यहाँ इस लिए तो नही आई थी!! मै नही जाउंगी आप अपना काम कर आइये.' राजेश्वर मेरी बात सुन कर मुझसे फिर कोई आग्रह नही किया और स्टॉकिस्ट से मिलने का इरादा छोड़ दिया. रात को खाना खाने के लिए बैठ रहे थे की मेरे ससुर जी का फोन गया. उनसे बात कर के पता चला की मार्च की क्लोजिंग से पहले पिछले हिसाब पुरे होने है इस लिए मेरे पति को वाकई स्टाकिस्टों से मिलाना जरुरी है. बेचारे राजेश्वर ने अपने पिता से यह नही बताया की मेरे कारण वो नही जा पाये थे . मुझे भी अफ़सोस हुआ की नाहक बिना पूरी बात जाने मैंने राजेश्वर का साथ देने से मना कर दिया. रात को जब वो बिस्तर पर ए तो मैंने बेशर्म होकर उनको बाँहों में ले लिया और कहा ,'सॉरी , माफ़ कर दो, कल हम लोग चलेंगे.' मेरे पति ने मुझे कस के चुम लिया और कहा 'नही कल्याणी तुम नही जाऊगी. मै खुद चला जाऊंगा तुम यहां आराम करो. गोरखपुर में तो तुमको कहा आराम मिलता है.' यह सुनकर मै वही रुकने को तैयार हो गयी और उस रात मेरे पति ने मुझे चोदा , लेकिन जैसे ज्यादातर होता था वो शराफत से मुझे चोद कर सो गए और मै बदन के झझकोरे जाने के एहसास की कमी लिए हुयी, अतृप्त सो गयी.
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RE: Antarvasna Sex Kahani फार्म हाउस पर मस्ती
अगले दिन वो सुबह का नाश्ता करके अपने स्टाकिस्टों से मिलने चले गए और मै वही रह गयी. उनके जाने के बाद मुनिया मेरे पास आई और कहा ,' बहु रानी हमने गजेंदर से कह दिया है की आपको खेत घुमा लाये .मै तब तक यहाँ का काम संभालती हूँ.' उसकी बात सुन कर मै तो खुश होगयी. सोचा अब राजेश्वर भी नही है मै अब बिना मालिकन वाले रौब के आराम से घूमूंगी. मैंने अपने साडी पहनने का इरादा छोड दिया और सलवार और कुरता पहन लिया. मैंने चहरे पर गॉगल्स लगाया और एक शाल अपने ऊपर डाल ली. तभी गजेन्द्र गाडी लेकर गया और मै उस में बैठ गयी. करीब ३०/३५ मिनिट बाद हम लोग उस खेत पर पहुंचे जहां सरसो लगी हुयी थी. हर तरफ सरसो और चने के खेत थे. गजेन्द्रे ने गाड़ी खेत से सटे एक झोपड़ी के पास रोक दी उस के बगल में एक खालिस ईटो के ३ कमरो की पुरानी सी ईमारत भी थी.आस पास गाय और भैसी बढ़ी थी और मुर्गे मुर्गी दाने चुग रहे थे. गाड़ी की आवाज सुनकर उस झोपड़ी से ३ बच्चे और एक २७/२८ साल की औरत निकल कर आई. उसने सर पर पल्ला डाले हुआ था. दूर से ही उसने गजेन्द्र को देख कर कहा,' पाये लागी बाबू'.
गजेन्द्र ने उसका अभिवादन स्वीकार करते हुए कहा ,' अरी धन्नी कइसन है? देख आज बहूजी आई है खेत देखन.'
'पाये लागी बहूजी, आवैं !' धन्नी ने हँसते हुए हमारा स्वागत किया.
'वो दुलारे कहाँ है ?' गजेन्द्र ने धन्नी से पूछा.
'जी बगलिया वाले गाँव गवा है.'
'क्यूँ ?'
"कल रतिया भूरिया गरम होके बोलन लागी तो बगलिया से उसके वास्ते भूरा लाये गए है.'
'ओह अच्छा ठीक है.' गजेन्द्र ने मुस्कुराते हुए मेरी ओर देखा और फिर धन्नी से बोला,'तू बहूजी को अंदर लेजा और हाँ,इनकी अच्छे से देख भाल करियो. हमारे यहाँ पहली बार आई हैं खातिर में कोई कमी ना रहे !' कहते हुए गजेन्द्र पेड़ के नीचे बंधे पशुओं की ओर चला गया.
भूरिया और भूरे का क्या चक्कर था मुझे समझ नहीं आया. मैं और धन्नी कमरे में आ गए. बच्चे झोपड़े में चले गए. कमरे में एक तख्त पड़ा था. दो कुर्सियाँ, एक मेज, कुछ बर्तन और कपड़े भी पड़े थे.
मैं कुर्सी पर बैठ गई तो धन्नी मेरे पास नीचे फर्श पर बैठ गई. तब मैंने पूछा,'ये भूरिया कौन है?'
'भूरिया! 'उसने हँसते हुए पेड़ के नीचे खड़ी एक छोटी सी भैंस की ओर इशारा करते हुए कहा.
'क्यों ? क्या हुआ है उसे ? कहीं बीमार तो नहीं ?', मैंने हैरान होते हुए पूछा.
'आप भी बहुरानी! एकै जवानी चढ़ल बा! पिया मिलन के वास्ते बावली हुई है." कह कर धन्नी खिलखिला कर हँसने लगी, तो मेरी भी हंसी निकल गई.
मैंने उसको झेड़ते हुआ पूछा, 'अच्छा यह पिया-मिलन कैसे करेगी ?'
'बहुरानी सब्र रहे. अभी थोड़ी देर बाद भूरा ओपर चढ़ कर जब अपनी गाज़र इसकी फुदकनी में डलिहिये तब ओके गर्मिया सारी निकल जाई.'
उसकी बात सुनकर मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा था और मेरी चूत यह सोंच कर धरधरा गयी कि आज मुझे जबरदस्त चुदाई देखने को मिलने वाली है. मैंने कई बार सड़क चलते कुत्ते कुत्तियों को आपस में जुड़े हुए जरुर देखा था पर कभी बड़े जानवर को चोदते हुए नही देखा था.
उधर वो भैंस बार बार अपनी पूंछ ऊपर करके मूत रही थी और जोर जोर से रम्भा रही थी.
थोड़ी ही देर में दो आदमी एक भैंसे को रस्सी से पकड़े ले आये, उसी को धन्नी भूरे कह रही थी. गजेन्द्र उस पेड़ के नीचे उस भैंस के पास ही खड़ा था. भैसा उस भैंस की ओर देखकर अपनी नाक ऊपर करके हवा में पता नहीं क्या सूंघने की कोशिश करने लगा.
तभी एक आदमी हमारे कमरे की ओर आ गया, उसकी उम्र कोई ४० की लग रही थी. वो मुझे बाद में समझ आया कि यही तो धन्नी का पति दुलारे है.
उसने धन्नी को आवाज लगाई,'धन्नी! चने री दाल भिगो दी थी ना?'
'हाँ जी सबेरे ही भिगो दी थी'
'ठीक है', कह कर वो वापस चला गया.
अब दुलारे उस भैंस के पास गया और उसके गले में बंधी रस्सी पकड़ कर खड़ा हो गया. दूसरा आदमी उस भैंसे को खूंटे से खोल कर भैंस की ओर ले आया. भिसा दौड़ते हुए भैंस के पास पहुँच गया और पहले तो उसने भैंस को पीछे से सूंघा और फिर उसे जीभ से चाटने लगा. अब भैंस ने अपनी पूछ थोड़ी सी ऊपर उठा ली और थोड़ी नीचे होकर फिर मूतने लगी. भैंसे ने उसका सारा मूत चाट लिया और फिर उसने एक जोर की हूँकार की.
अब धन्नी दरवाजा बंद करने लागी. उसने बच्चों को पहले ही झोपड़े के अंदर भेज दिया था. इतना अच्छा मौका मैं भला कैसे छोड़ सकती थी. मैंने एक दो बार डिस्कवरी चेनल पर पशुओं का समागम देखा था पर आज तो लाइव शो था, मैंने उसे दरवाज़ा बंद करने से मना कर दिया तो वो हँसने लगी.
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RE: Antarvasna Sex Kahani फार्म हाउस पर मस्ती
अब मेरा ध्यान भैसे के लंड की ओर गया,वो कोई 10-12 इंच की लाल रंग की गाज़र की तरह लंबा और मोटा लंड उसके पेट से ही लगा हुआ था और उसमें से थोड़ा थोड़ा सफ़ेद तरल पदार्थ सा भी निकल रहा था. मैंने साँसें रोके उसे देख रही थी. अचानक मेरे मुँह से निकल गया,'हाय राम इतना लंबा ?'
मुझे हैरान होते देख धन्नी हंसने लगी और बोली,'गजेन बाबू का भी ऐसा ही लंबा और मोटा है.'
उसकी इस बात पर मै हैरान होगयी और मैं धन्नी से पूछना चाहती थी कि उसे कैसे पता कि गजेन्द्र का इतना मोटा और लंबा है, पर इतने में ही वो भैसा अपने आगे के दोनों पैर ऊपर करके उछला और भैंस की पीठ पर चढ़ गया. उसका पूरा लंड एक झटके में भैंस की चूत में समां गया. मेरी आँखें तो फटी की फटी रह गई थी. मुझे तो लग रहा था कि वह उस भैंसे का वजन सहन नहीं कर पाएगी पर वो तो आराम से पैर जमाये खड़ी रही.
अब भैंसे ने हूँ, हूँ.करते हुए 4-5 झटके लगाए. और फिर धीरे धीरे नीचे उतरने लगा. होले होले उसका लंड बाहर निकलने लगा. अब मैंने ध्यान से देखा भैंसे का लंड एक फुट के आस पास रहा होगा. नीचे झूलता लंड आगे से पतला था पर पीछे से बहुत मोटा था जैसे कोई मोटी लंबी लाल रंग की गाज़र लटकी हो. लंड के अगले भाग से अभी भी थोड़ा सफ़ेद पानी सा निकल रहा था. भैंस ने अपना सर पीछे मोड़ कर भैसे की ओर देखा और दुलारे भैंसे को रस्सी से पकड़ कर फिर खूंटे से बाँध आया.
मेरी बहुत जोर से इच्छा हो रही थी कि अपनी चूत में अंगुली या गाजर डाल कर जोर जोर से अंदर बाहर करूँ. कोई और समय होता तो मैं अभी शुरू हो जाती पर इस समय मेरी मजबूरी थी. मैंने अपनी दोनों जांघें जोर से भींच लीं. मुझे धन्नी से बहुत कुछ पूछना था पर इस से पहले कि मैं पूछती वो उठ कर बाहर चली गई और चने की दाल वाली बाल्टी दुलारे को पकड़ा आई. फिर गजेन्द्र ने साथ आये उस आदमी को ५०० रुपये दिए और वो दोनों भैंसे को दाल खिला कर उसे लेकर चले गए. इसके बाद गजेन्द्र भी खेत में घूमने चला गया.
'बहूजी आप के लिए खाना बनाई ?' धन्नी ने उठते हुए कहा।
'तुम मुझे बहूजी नहीं, बस कल्याणी बुलाओ और खाने की तकलीफ रहने दो. बस मेरे साथ बातें करो !'
'जे ना हो सकत! आप मालिकन हुए और मेहमान भी. आप बैठो, आभिया आवत हाई.'
'चलो, मैं भी साथ चलती हूँ'
मैं उसके साथ झोपड़े में आ गई.बच्चे बाहर खेलने चले गए. उसने खाना बनाना चालू कर दिया. अब मैंने धन्नी से पूछा,'ये दुलारे तो उम्र में तुमसे बहुत बड़ा लगता है?'
'हमारे नसीबय खोट रहल.' धन्नी कुछ उदास सी हो गई.
वो थोड़ी देर चुप रही फिर उसने बताया कि दरअसल दुलारे के साथ उसकी बड़ी बहन की शादी हुई थी. कोई 10-11 साल पहले उसकी बहन की मौत हो गई तो घर वालों ने बच्चों का हवाला देकर उसे दुलारे के साथ ब्याह दिया. उस समय उसकी उम्र लगभग १६/१७ साल ही थी. उसने बताया कि सुहागरात में धन्नी ने उसे इतनी बुरी तरह चोदा था कि सारी रात उसकी कमसिन चूत से खून निकलता रहा.और 5-६ साल तक ठीक चलता रहा लेकिन अब जब वो पूरी तरह जवान हुई है तो दुलारे ढल चूका है .अब तो कभी कभार ही उसको हाथ लगता है और वो भी जल्दी धक जाता है.
'तो तुम फिर कैसे गुज़ारा करती हो ?' मैंने पूछा तो वो हँसने लगी.
फिर उसने थोड़ा शर्माते हुए सच बता दिया,'शादी का 3-4 साल बाद हम यहाँ आये रहे. हम लोगन पर गजेन बाउ के ढेरो अहसान रहल . गजेन बाउ पहेलियाँ हसी मजाक करे चालू कियन. ख़ास ख्याल रखे रहे हमार. दुनो के जरूरत रहल. हमार आदमी तो कुछ करे काबिल रहए नही गयो रहे और और मुनिया भौजाई के गांड मरवाये का कौनो शौक नाही रहल. . अब का बताई गजेन बाउ के गांड मारे का शौक बा.'
उसकी बातें सुनकर मेरी चूत इतनी गीली हो गई थी कि उसका रस अब मेरी जांघो में बह निकला और पेंटी पूरी गीली हो गई . मै अपने को रोक नही पायी और अपनी चूत को सलवार के ऊपर से ही मसलना चालू कर दिया.
अब वो भी बिना शर्माए सारी बात बताने लगी थी. उसने आगे बताया कि गजेन्द्र का लंड मोटा और बड़ा है. रंग काला है और उसका सुपारा मशरूम की तरह है. वह चुदाई करते समय इतना रगड़ता है कि हड्डियाँ चटका देता है. चुदाई के साथ साथ वो गन्दी गन्दी गालियाँ भी निकलता रहता है. वो कहता है इससे लुगाई को भी जोश आ जाता है. मेरी तो एक बार चुदने के बाद पूरे एक हफ्ते की तसल्ली हो जाती है. मैं तो आधे घंटे की चुदाई में मस्त हो जाती हूँ उस दौरान 2-3 बार झड़ जाती हूँ.
'क्या उसने तुम्हारी कभी ग... गां... मेरा मतलब है...!' मैं कहते कहते थोड़ा रुक गई।
'हाँ जी ! कई बार मारो .'
'क्या तुम्हें दर्द नहीं होता ?'
'पहेलियाँ बहुत होत रहल अब्बे बड़ा नीक लागे.'
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RE: Antarvasna Sex Kahani फार्म हाउस पर मस्ती
अचानक मुनिया की एक जोर की कामुक सीत्कार निकली और वो जोर जोर से चिल्लाने लगी,'ओह... जगन... अबे साले...जोर जोर से कर ना.. ओ....आह मेरी माँ उईई...माँ..... और जोर से मेरे राजा....या.....उईईईईई....'
अब गजेन्द्र ने जोर जोर से धक्के लगाने शुरू कर दिए. मुनिया ने अपने पैरों की कैंची सी बना कर उसकी कमर पर लपेट ली. जैसे ही गजेन्द्र धक्के लगाने के लिए ऊपर उठता,मुनिया के चूतड़ भी उसके साथ ही ऊपर उठ जाते और फिर एक धक्के के साथ उसके चूतड़ नीचे तकिये से टकराते और धच्च के आवाज निकलती और साथ ही उसके पैरों में पहनी पायल के रुनझुन बज उठती।
'गज्जू मेरे सांड...मेरे...राज़ा......अब निकाल दो....आह्ह्ह........'
लगता था मुनिया फिर झड़ गई है।
'ले मेरी रानी.... आह्ह.... अब मैं भी जाने वाला हूँ.... आह...यह्ह्ह्ह.'
'ओ म्हारी माँ .... मैं … मर गई री ईईईइ.'
और उसके साथ ही उसने 5-6 धक्के जोर जोर से लगा दिए. मुनिया के पैर धड़ाम से नीचे गिर गए और वह जोर जोर से हांफने लगी गजेन्द्र का भी यही हाल था. दोनों ने एक दूसरे को अपनी बाहों में जकड़ लिया और दोनों की किलकारी एक साथ गूँज गई और फिर दोनों के होंठ एक दूसरे से चिपक गए.
कोई 10 मिनट तक वो दोनों इसी अवस्था में पड़े रहे फिर धीरे धीरे एक दूसरे को चूमते हुए उठ कर कपड़े पहनने लगे. मुझे लगा वो जरुर अब बाथरूम की ओर आयेंगे. मेरा मन तो नहीं कर रहा था पर बाथरूम से बाहर आकर कमरे में जाने की मजबूरी थी. मैं मन मसोस कर कमरे में आ गई.
कमरे में राजेश्वर के खर्राटे सुन कर तो मेरी झांटे ही सुलग गई. मेरी आँखों में नींद कहाँ थी मेरी आँखों में तो बसगजेन्द्र का मूसल लण्ड ही बसा था। मैं तो रात के दो बजे तक करवटें ही बदलती रही और जब आँख लगी तो फिर सारी रात वो काला मोटा लण्ड ही सपने में घूमता रहा.
अगले दिन मुझे सुबह उठने में देरी हो गई .। राजेश्वर नहा धो कर फिर किसी काम से जा चूका था. जब मैं उठी तो मुनिया ने बताया कि धन्नी ने संदेश भिजवाया है कि वो मेरे लिए आज विशेष रूप से दाल बाटी और चोखा बनाएगी सो मैं आज फिर फ़ार्म हाउस के उस हिस्से में जाऊं.मैं भी तो इसी ताक में थी.
जब हम पहुंचे तो झोपड़ी से धन्नी निकल आई और मुस्कराते हुए 'पाये लागी' कहा.
मुझे धन्नी के पास चोद कर गजेन्द्र खेत में बने ट्यूब वेल की ओर चला गया और मैं धन्नी के साथ कमरे में आ गई.आज दुलारे और बच्चे नहीं दिखाई दे रहे थे. मैंने जब इस बाबत पूछा तो धन्नी ने बताया कि बच्चे तो स्कूल गये हैं और दुलारे किसी काम से फिर शहर चला गया है शाम तक लौटेगा.
फिर वो बोली, 'बहूजी, आप बइठल जाये , खनवा बनाये कर आवत हाई.'
मुझे बड़ी जोर से सु सु आ रहा था,साथ ही मेरी चूत भी कुलबुला रही थी, मैंने पूछा'.बाथरूम किधर है?'
मेरी बात सुन कर धन्नी हँसते हुए बोली,"पूरा खेतवा ही बाथरूम बा!'
"ओह.'
'सरसों और चना के खेतवा मा हुयी ले कौनो न लौकयी.'
मजबूरी थी मैं सरसों के खेत में आ गई, मेरे कन्धों तक सरसों के बूटे खड़े थे. आस पास कोई नहीं था. मैंने अपनी साड़ी ऊपर की और फिर काले रंग की पेंटी को जल्दी से नीचे करते हुए मैं मूतने बैठ गई.
फिच्च सीईईई.... के मधुर संगीत के साथ पतली धार दूर तक चली गई. जैसे ही मैं उठने को हुई तो सुबह की ठंडी हवा का झोंका मेरी चूत पर लगी तो मैं रोमांच से भर उठी और मैंने उसकी फांकों को मसलना चालू कर दिया. मेरे ख्यालों में तो बस कल रात वाली चुदाई का दृश्य ही घूम रहा था. मेरी आँखें अपने आप बंद हो गई और मैंने अपनी चूत में अंगुली करनी शुरू कर दी. मेरे मुँह से अब सीत्कार भी निकलने लगी थी।
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RE: Antarvasna Sex Kahani फार्म हाउस पर मस्ती
कोई 5-7 मिनट की अंगुलबाजी के बाद अचानक मेरी आँखें खुली तो देखा सामने गजेन्द्र खड़ा अपने पजामे में बने उभार को सहलाता हुआ मेरी ओर एकटक देखे जा रहा था और मंद मंद मुस्कुरा रहा था.
मैं तो हक्की बक्की ही रह गई. मैं तो इतनी सकपका गई थी कि उठ भी नहीं पाई.
गजेन्द्र मेरे पास आ गया और मुस्कुराते हुए बोला,'भौजी आप घबराएं नहीं ! मैंने कुछ नहीं देखा.'
अब मुझे होश आया. मैं झटके से उठ खड़ी हुई. मैं तो शर्म के मारे धरती में ही गड़ी जा रही थी. पता नहीं गजेन्द्र कब से मुझे देख रहा होगा. और अब तो वो मुझे बहूजी के स्थान पर भौजी (भाभी) कह रहा था.
'वो, वो.' मै सकपकाते हुए बोली.
'अरे! कोई बात नहीं, वैसे एक बात बताऊँ?'
'क... क्या.?'
'आपकी छमिया बहुत खूबसूरत है!'
वो मेरे इतना करीब आ गया था कि उसकी गर्म साँसें मुझे अपने चेहरे पर महसूस होने लगी थी.उसकी बात सुनकर मुझे थोड़ी शर्म भी आई और फिर मैं रोमांच में भी डूब गई.। अचानक उसने अपने हाथ मेरे कन्धों पर रख दिए और फिर मुझे अपनी और खींचते हुए अपनी बाहों में भर लिया. मेरे लिए यह अप्रत्याशित था. मैं नारी सुलभ लज्जा के मारे कुछ बोलने की स्थिति में नहीं थी, और वो इस बात को बहुत अच्छी तरह जानता था.
सच कहूँ तो एक पराये मर्द के स्पर्श में कितना रोमांच होता है मैंने आज दूसरी बार महसूस किया था. मैं तो कब से चाह रही थी कि वो मुझे अपनी बाहों में भर कर मसल डाले. यह अनैतिक काम मुझे रोमांचित कर रही थी. उसने अपने होंठ मेरे अधरों पर रख दिए और उन्हें चूमने लगा. मैं अपने आप को छुड़ाने की नाकामयाब कोशिश कर रही थी पर अंदर से तो मैं चाह रही थी कि इस सुनहरे मौके को हाथ से ना जाने दूँ. मेरा मन कर रहा था कि गजेन्द्र मुझे कस कर अपनी बाहों में जकड़ कर ले और मेरा अंग अंग मसल कर कुचल डाले. उसकी कंटीली मूंछें मेरे गुलाबी गालों और अधरों पर फिर रही थी. उसके मुँह से आती मधुर सी सुगंध मेरे साँसों में जैसे घुल सी गई।
'न.. नहीं..गजेन्द्र यह तुम क्या कर रहे हो ? क.. कोई देख लेगा..? छोड़ो मुझे ?' मैंने अपने आप को छुड़ाने की फिर थोड़ी सी कोशिश की.
'अरे भौजी क्यों अपनी इस जालिम जवानी को तरसा रही हो ?'
'नहीं...नहीं...मुझे शर्म आती है..!'
अब वो इतना फुद्दू और अनाड़ी तो नहीं था कि मेरी इस ना और शर्म का असली मतलब भी ना समझ सके.
'अरे इसमें शर्म की क्या बात है. मैं जानता हूँ तुम भी प्यासी हो और मैं भी.' कह कर उसने मुझे जोर से अपनी बाहों में कस लिया और मेरे होंठों को जोर जोर से चूमने लगा.
मेरे सारे शरीर में एक बिजली सी दौड़ गई और एक मीठा सा ज़हर जैसे मेरे सारे बदन में भर गया और आँखों में लालिमा उभर आई. मेरे दिल की धड़कने बहुत तेज हो गई और साँसें बेकाबू होने लगी. अब उसने अपना एक हाथ मेरे चूतडो पर कस कर मुझे अपनी ओर दबाया तो उसके पायजामे में खूंटे जैसे खड़े लण्ड का अहसास मुझे अपनी नाभि पर महसूस हुआ तो मेरी एक कामुक सीत्कार निकल गई.।
'भौजी,.चलो कमरे में चलते हैं !'
'वो..वो...ध..धन्नी ?' मैं तो कुछ बोल ही नहीं पा रही थी.
'ओह तुम उसकी चिंता मत करो उसे दाल बाटी ठीक से पकाने में पूरे दो घंटे लगते हैं।'
'क्या मतलब.?'
'वो' सब जानती है ! बहुत समझदार है खाना बहुत प्रेम से बनाती और खिलाती है।' जगन हौले-हौले मुस्कुरा रहा था.
अब मुझे सारी बात समझ आ रही थी. कल वापस लौटते हुए ये दोनों जो खुसर फुसर कर रहे थे और फिर रात को गजेन्द्र ने मुनिया के साथ जो तूफानी पारी खेली थी लगता था वो सब इस योजना का ही हिस्सा थी. खैर गजेन्द्र ने मुझे अपनी गोद में उठा लिया तो मैंने भी अपनी बाहें उसके गले में डाल दी. मेरी तंग चोली में कसे उरोज उसके सीने से लगे थे, मैंने भी अपनी नुकीली चूचियाँ उसकी छाती से गड़ा दी.
हम दोनों एक दूसरे से लिपटे कमरे में आ गए.
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