RE: Antarvasnasex ट्यूशन का मजा
मुझे पूरा वीर्य पिलाकर सर ने मुझे आलिंगन में लिया और मेरे निपल मसलते हुए बोले "भई मान गये आज अनिल, चेला गुरू से आगे निकल गया, तुझमें तो कला है कला लंड चूसने की. अपने सर का प्रसाद अच्छा लगा?"
"हां सर, बहुत मस्त है, इतना सुंदर लंड है सर आपका, दीदी भी कल गुन गा रही थी ...... और स्वाद भी उतना ही अच्छा है सर सर ..... आपकी ....मेरा मतलब है कि आप के .... याने" और सकुचा कर चुप हो गया.
"बोलो बेटे ... मेरे क्या" सर ने मुझे पुचकारा.
"सर आपके चूतड़ भी कितने अच्छे हैं" मैं बोला.
"ऐसी बात है? अरे तो शरमाते क्यों हो? ये तो मेरे लिये बड़े हौसले की बात है कि तेरे जैसे चिकने लड़के को मेरे चूतड़ .... या मेरी गांड कहो ... ठीक है ना? .... गांड अच्छी लगी. ठीक से देखना चाहोगे?"
"हां सर" मैं धीरे से बोला.
"लो बेटे, कर लो मुराद पूरी. वैसे ये तेरा आज का दूसरा लेसन है. बड़ी जल्दी जल्दी लेसन ले रहा है आज तू अनिल, आज ही पढ़ाई खतम करनी है क्या?" कहते हुए सर ओंधे लेट गये. उनके चूतड़ दिख रहे थे. मैं उनके पास बैठा और उनको हाथ से सहलाने लगा. फ़िर एक उंगली सर की गांड में डालने की कोशिश करने लगा, कनखियों से देखा कि बुरा तो नहीं मान गये पर सर तो आंखें बंद करके मजा ले रहे थे. उंगली ठीक से गयी नहीं, सर ने छल्ला सिकोड़ कर छेद काफ़ी टाइट कर लिया था.
"गीली कर ले अनिल मुंह में ले के, फ़िर डाल" सर आंखें बंद किये ही बोले. मैंने अपनी उंगली मुंह में ले के चूसी और फ़िर सर की गांड में डाल दी. आराम से चली गयी. "अंदर बाहर कर अनिल. ऐसे ही ... हां ... अब इधर उधर घुमा.... जैसे टटोल रहा हो... हां ऐसे ही ... बहुत अच्छे बेटे ... कैसा लग रहा है अनिल .... मेरी गांड अंदर से कैसी है .... मैडम की चूत जैसी है?..."
मैंने कहा "बहुत मुलायम है सर ... एकदम मखमली .....मैडम की चूत से ज्यादा टाइट भी है"
"तूने कभी खुद की गांड में उंगली नहीं की?" चौधरी सर ने पूछा.
"सर .... एक बार की थी पर दर्द होता है"
"मूरख.... सूखी की होगी .... वैसे तेरी तो मैडम या लीना की चूत से ज्यादा मुलायम होगी. ये लेसन समझ ले ... गांड भी चूत जैसी ही कोमल होती है और उससे भी चूत जैसा ही .... चूत से ज्यादा आनंद लिया जा सकता है ... ये मैं तुझे अगले लेसन में और बताऊंगा."
फ़िर वे उठ कर बैठ गये. उनका लंड आधा खड़ा हो गया था. "अब आ मेरे पास, तुझे जरा मजा दूं अलग किस्म का. देख तेरा कैसा खड़ा है मस्त"
मुझे गोद में लेकर सर बैठ गये और मेरे लंड को तरह तरह से रगड़ने लगे. कभी हथेलियों में लेकर बेलन सा रगड़ते, कभी एक हाथ से ऊपर से नीचे तक सहलाते तो कभी उसे मुठ्ठी में भरके दूसरे हाथ की हथेली मेरे सुपाड़े पर रगड़ते. मैं परेशान होकर मचलने लगा. बहुत मजा आ रहा था, रहा नहीं जा रहा था "सर ... प्लीज़ ... प्लीज़ सर .... रहा नहीं जाता सर"
चौधरी सर मेरा कान प्यार से पकड़कर बोले "ये मैं क्या सिखा रहा हूं मालूम है?"
"नहीं सर"
"मुठ्ठ मारने की याने हस्तमैथुन की अलग अलग तरह की तरकीब सिखा रहा हूं. समझा? और भी बहुत सी हैं, धीरे धीरे सब सिखा दूंगा. और एक बात .... ये सीख ले कि ऐसे मचलना नहीं चाहिये .... असली आनंद लेना हो तो खुद पर कंट्रोल रखकर मजा लेना चाहिये ... जैसे मैंने तुझसे आधे घंटे तक लंड चुसवाया, झड़ने के लिये दो मिनिट में काम तमाम नहीं किया .... समझा ना"
"हां सर ... सॉरी सर अब नहीं मचलूंगा." कहकर मैं चुपचाप बैठ गया और मजा लेने लगा. बस कभी कभी अत्याधिक आनंद से मेरी हिचकी निकल जाती. सामने देखा तो अब मैडम दीदी की टांगों में मुंह डाले बैठी थीं. दीदी उनके सिर को पकड़कर आगे पीछे हो रही थी और मेरी ओर पथरायी आंखों से देख रही थी. बहुत मस्ती में थी.
सर ने दस मिनिट और हर तरह से मेरी मुठ्ठ मारी. फ़िर पूछा "सबसे अच्छा क्या लगा बता ... कौनसा तरीका पसंद आया?"
"सर सब अच्छे हैं सर ... पर जब आप मुठ्ठी में लेकर अंगूठे को सुपाड़े के नीचे से दबाते हैं तो ... हां सर ... ओह ... ओह .. ऐसे ही .... तो झड़ने को आ जाता हूं सर ... हां... ओह ... ओह" मैं सिसक उठा.
सर ने मेरी उंगली मूंह में ली और चूसी. फ़िर बोले "अब तू ये अपनी गांड में कर. अच्छा ठहर, पहले जरा ..."उन्होंने वहां पड़ी नारियल की तेल की शीशी में से तेल मेरी उंगली पर लगाया और बोले "इसे धीरे धीरे अपने छेद पर लगा और उंगली डाल अंदर" शीशी के पास एक छोटी कुप्पी भी रखी थी. मुझे समझ में नहीं आया कि ये कुप्पी यहां क्यों है.
मैंने अपने गुदा में उंगली डाली. शुरू में जरा सा दर्द हुआ पर फ़िर मजा आ गया. क्या मखमली थी मेरी गांड अंदर से. मेरा लंड और तन्ना गया. सर मुसकराये "मजा आया ना? अब उंगली करता रह, मैं तुझे झड़ाता हूं, बहुत देर हो गयी है. यह सच है कि कंट्रोल करना चाहिये पर लंड को बहुत ज्यादा भी तड़पाना नहीं चाहिये" और मेरी मुठ्ठ मारने लगे. मैंने अपनी गांड में जोर से उंगली की और एक मिनिट में तड़प के झड़ गया "ओह ... ओह ... हाय सर ... मर गया सर ... उई मां ऽ "
सर ने मेरे उछलते सुपाड़े के सामने अपनी हथेली रखी और मेरा सारा वीर्य उसमें इकठ्ठा कर लिया. लंड शांत होने पर मुझे हथेली दिखाई. मेरे सफ़ेद गाढ़े वीर्य से वो भर गयी थी.
"ये देख अनिल ... ये प्रसाद है काम देव का ... खास कर तेरे जैसे सुंदर नौजवान का वीर्य याने तो ये मेवा है मेवा. समझा ना? जो ये मेवा खायेगा वो बड़ा भाग्यशाली होगा. अब मैं ही इसे पा लेता हूं, आखिर मेरी मेहनत है ... ठीक है ना... वो देख तेरी मैडम इधर आ रही है"
क्रमशः। ...........................
|