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Antarvasnasex Aunty ke Sath Mastiya
आंटी के साथ मस्तियाँ-1
मैं आप लोगों के लिए अपनी ज़िंदगी का और खूबसूरत लम्हा एक कहानी के माध्यम से साझा कर रहा हूँ। बात उस समय की है जब मैं ग्रेजुयेशन कर रहा था। मेरे घर के पास एक फैमिली रहती थी।
पति और पत्नी, जो रिश्ते में मेरे अंकल और आंटी लगते हैं।
चूंकि.. आंटी भी कॉमर्स ग्रेजुयेट थीं, तो वो मुझे मेरी पढ़ाई में मदद करती रहती थीं। इसीलिए मेरा भी ज़्यादातर वक्त उनके घर पर ही व्यतीत होता था। मैं उन्हीं के यहाँ खाना ख़ाता और सो भी जाता था। कोई इसको बुरा या ग़लत भी नहीं कहता, क्योंकि वो मेरे अंकल और आंटी थे। यहाँ तक की उनके घर में भी मेरा एक कमरा हो गया था जिसे सिर्फ़ मैं पढ़ने और सोने के लिए इस्तेमाल करता था।
आंटी का नाम डॉली है। वो बहुत ही खूबसूरत और कमनीय काया की महिला हैं। उस वक़्त उनकी उम्र 22 साल और मेरी 19 साल थी। उनकी देहयष्टि का नाप उस समय 34-26-40 थी। पहले उनके लिए मेरे दिल में कुछ भी नहीं था, लेकिन एक घटना ने मेरा नज़रिया बदल दिया। मैं जब भी उनकी उभरी हुई ठोस चूचियाँ और गोल-गोल उभरे हुए चूतड़ों को देखता तो मेरे अन्दर बेचैनी सी होने लगती थी।
क्या मादक जिस्म था उनका। बिल्कुल किसी परी की तरह।
एक दिन की बात है, आंटी मुझे पढ़ा रही थीं और अंकल अपने कमरे में लेटे हुए थे। रात के दस बजे थे, इतने में अंकल की आवाज़ आई- सुम्मी और कितनी देर है जल्दी आओ ना..।
आंटी आधे में से उठते हुए बोलीं- राज बाकी कल करेंगे, तुम्हारे अंकल आज कुछ ज्यादा ही उतावले हो रहे हैं।
यह कह कर वो जल्दी से अपने कमरे में चली गईं।
मुझे आंटी की बात कुछ ठीक से समझ नहीं आई, काफ़ी देर तक सोचता रहा, फिर अचानक ही दिमाग़ की ‘ट्यूब-लाइट’ जली और मेरी समझ में आ गया कि अंकल किस बात के लिए उतावले हो रहे थे।
मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गई। आज तक मेरे दिल में आंटी को ले कर बुरे विचार नहीं आए थे, लेकिन आंटी के मुँह से उतावले होने वाली बात सुन कर कुछ अजीब सा लग रहा था।
मुझे लगा कि आंटी के मुँह से अनायास ही यह निकल गया होगा। जैसे ही आंटी के कमरे की लाइट बन्द हुई, मेरे दिल की धड़कन और तेज़ हो गई।
मैंने जल्दी से अपने कमरे की लाइट भी बन्द कर दी और चुपके से आंटी के कमरे के दरवाज़े से कान लगा कर खड़ा हो गया।
अन्दर से फुसफुसाने की आवाज़ आ रही थी पर कुछ-कुछ ही साफ़ सुनाई दे रहा था।
‘क्यों जी.. आज इतने उतावले क्यों हो रहे हो?’
‘मेरी जान, कितने दिन से तुमने दी नहीं… इतना ज़ुल्म तो ना किया करो मेरी रानी…!’
‘चलिए भी, मैंने कब रोका है, आप ही को फ़ुर्सत नहीं मिलती। राज का कल इम्तिहान है, उसे पढ़ाना ज़रूरी था।’
‘अब श्रीमती जी की इज़ाज़त हो तो आपकी बुर का उद्घाटन करूँ?’
‘हाय राम.. कैसी बातें बोलते हो, शरम नहीं आती?’
‘शर्म की क्या बात है, अब तो शादी को दो साल हो चुके हैं, फिर अपनी ही बीवी की बुर को चोदने में शर्म कैसी?’
‘बड़े खराब हो… आह..अई..आह हाय राम… धीरे करो राजा.. अभी तो सारी रात बाकी है।’
मैं दरवाज़े पर और ना खड़ा रह सका। पसीने से मेरे कपड़े भीग चुके थे, मेरा लंड अंडरवियर फाड़ कर बाहर आने को तैयार था। मैं जल्दी से अपने बिस्तर पर लेट गया, पर सारी रात आंटी के बारे में ही सोचता रहा। मैं एक पल भी ना सो सका, ज़िंदगी में पहली बार आंटी के बारे में सोच कर मेरा लंड खड़ा हुआ था।
सुबह अंकल ऑफिस चले गए। मैं आंटी से नज़रें नहीं मिला पा रहा था, जबकि आंटी मेरी कल रात की करतूत से बेख़बर थीं।
आंटी रसोई में काम कर रही थीं, मैं भी रसोई में खड़ा हो गया, ज़िंदगी में पहली बार मैंने आंटी के जिस्म को गौर से देखा।
उनका गोरा भरा हुआ गदराया सा बदन, लम्बे घने काले बाल जो आंटी के कमर तक लटकते थे, बड़ी-बड़ी आँखें, गोल-गोल बड़े संतरे के आकार की चूचियाँ जिनका साइज़ 34 से कम ना होगा। पतली कमर और उसके नीचे फैलते हुए चौड़े, भारी चूतड़, एक बार फिर मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई।
इस बार मैंने हिम्मत करके आंटी से पूछ ही लिया- आंटी, मेरा आज इम्तिहान है और आपको तो कोई चिंता ही नहीं थी, बिना पढ़ाए ही आप कल रात सोने चल दीं..!
‘कैसी बातें करता है राज, तेरी चिंता नहीं करूँगी तो किसकी करूँगी?’
‘झूठ, मेरी चिंता थी तो गई क्यों?’
‘तेरे अंकल ने जो शोर मचा रखा था।’
‘आंटी, अंकल ने क्यों शोर मचा रखा था?’ मैंने बड़े ही भोले स्वर में पूछा।
आंटी शायद मेरी चालाकी समझ गईं और तिरछी नज़र से देखते हुए बोलीं- धत्त बदमाश, सब समझता है और फिर भी पूछ रहा है। मेरे ख्याल से तेरी अब शादी कर देनी चाहिए। बोल है कोई लड़की पसंद?
‘आंटी सच कहूँ मुझे तो आप ही बहुत अच्छी लगती हो।’
‘चल नालायक भाग यहाँ से और जा कर अपना इम्तिहान दे।’
मैं इम्तिहान तो क्या देता, सारा दिन आंटी के ही बारे में सोचता रहा। पहली बार आंटी से ऐसी बातें की थीं और आंटी बिल्कुल नाराज़ नहीं हुईं, इससे मेरी हिम्मत और बढ़ने लगी।
मैं आंटी का दीवाना होता जा रहा था। आंटी रोज़ रात को देर तक पढ़ाती थीं। मुझे महसूस हुआ शायद अंकल आंटी को महीने में दो तीन बार ही चोदते थे। मैं अक्सर सोचता, अगर आंटी जैसी खूबसूरत औरत मुझे मिल जाए तो दिन में चार दफे चोदूँ।
दीवाली के लिए आंटी को मायके जाना था। अंकल ने उन्हें मायके ले जाने का काम मुझे सौंपा, क्योंकि अंकल को छुट्टी नहीं मिल सकी।
टिकट खिड़की पर बहुत भीड़ थी, मैं आंटी के पीछे रेलवे स्टेशन पर रिज़र्वेशन की लाइन में खड़ा था। धक्का-मुक्की के कारण आदमी-आदमी से सटा जा रहा था। मेरा लंड बार-बार आंटी के मोटे-मोटे चूतड़ों से रगड़ रहा था।
मेरे दिल की धड़कन तेज़ होने लगी, हालांकि मुझे कोई धक्का भी नहीं दे रहा था, फिर भी मैं आंटी के पीछे चिपक कर खड़ा था। मेरा लंड फनफना कर अंडरवियर से बाहर निकल कर आंटी के चूतड़ों के बीच में घुसने की कोशिश कर रहा था।
आंटी ने हल्के से अपने चूतड़ों को पीछे की तरफ धक्का दिया, जिससे मेरा लंड और ज़ोर से उनके चूतड़ों से रगड़ने लगा। लगता है आंटी को मेरे लंड की गर्माहट महसूस हो गई थी और उसका हाल पता था लेकिन उन्होंने दूर होने की कोशिश नहीं की।
भीड़ के कारण सिर्फ़ आंटी को ही रिज़र्वेशन मिला, ट्रेन में हम दोनों एक ही सीट पर थे।
रात को आंटी के कहने पर मैंने अपनी टाँगें आंटी की तरफ और उन्होंने अपनी टाँगें मेरी तरफ कर लीं और इस प्रकार हम दोनों आसानी से लेट गए। रात को मेरी आँख खुली तो ट्रेन के नाइट-लैंप की हल्की-हल्की रोशनी में मैंने देखा, आंटी गहरी नींद में सो रही थीं और उनकी साड़ी जांघों तक सरक गई थी।
आंटी की गोरी-गोरी नंगी टाँगें और मोटी मांसल जांघें देख कर मैं अपना संयम खोने लगा। उनकी साड़ी का पल्लू भी एक तरफ गिरा हुआ था और बड़ी-बड़ी चूचियाँ ब्लाउज में से बाहर गिरने को हो रही थीं।
मैं मन ही मन मानने लगा कि साड़ी थोड़ी और ऊपर उठ जाए ताकि आंटी की चूत के दर्शन कर सकूँ। मैंने हिम्मत करके बहुत ही धीरे से साड़ी को ऊपर सरकाना शुरू किया। साड़ी अब आंटी की चूत से सिर्फ़ 2 इंच ही नीचे थी, पर कम रोशनी होने के कारण मुझे यह नहीं समझ आ रहा था की 2 इंच ऊपर जो कालिमा नज़र आ रही थी वो काले रंग की पैन्टी थी या आंटी की बुर के बाल।
मैंने साड़ी को थोड़ा और ऊपर उठाने की जैसे ही कोशिश की, आंटी ने करवट बदली और साड़ी को नीचे खींच लिया।
मैंने गहरी सांस ली और फिर से सोने की कोशिश करने लगा।
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RE: Antarvasnasex आंटी के साथ मस्तियाँ
मायके में आंटी ने मेरी बहुत खातिरदारी की, दस दिन के बाद हम वापस लौट आए।
वापसी में मुझे आंटी के साथ लेटने का मौका नहीं लगा। अंकल आंटी को देख कर बहुत खुश हुए और मैं समझ गया कि आज रात आंटी की चुदाई निश्चित है।
उस रात को मैं पहले की तरह आंटी के दरवाज़े से कान लगा कर खड़ा हो गया। अंकल कुछ ज़्यादा ही जोश में थे। अन्दर से आवाजें साफ़ सुनाई दे रही थीं।
‘सुम्मी मेरी जान, तुमने तो हमें बहुत सताया… देखो ना हमारा लंड तुम्हारी चूत के लिए कैसे तड़प रहा है.. अब तो इनका मिलन करवा दो..!’
‘हाय राम, आज तो यह कुछ ज़्यादा ही बड़ा दिख रहा है… ओह हो.. ठहरिए भी.. साड़ी तो उतारने दीजिए।’
‘ब्रा क्यों नहीं उतारी मेरी जान, पूरी तरह नंगी करके ही तो चोदने में मज़ा आता है। तुम्हारे जैसी खूबसूरत औरत को चोदना हर आदमी की किस्मत में नहीं होता।’
‘झूठ.. ऐसी बात है तो आप तो महीने में सिर्फ़ दो-तीन बार ही!’
‘दो-तीन बार ही क्या?’
‘ओह हो.. मेरे मुँह से गंदी बात बुलवाना चाहते हैं..!’
‘बोलो ना मेरी जान, दो-तीन बार क्या?’
‘अच्छा बाबा, बोलती हूँ; महीने में दो-तीन बार ही तो चोदते हो… बस..!’
‘सुम्मी, तुम्हारे मुँह से चुदाई की बात सुन कर मेरा लंड अब और इंतज़ार नहीं कर सकता… थोड़ा अपनी टाँगें और चौड़ी करो। मुझे तुम्हारी चूत बहुत अच्छी लगती है… मेरी जान।’
‘मुझे भी आपका बहुत… उई.. मर गई… उई… आ…ऊफ़.. बहुत अच्छा लग रहा है….थोड़ा धीरे… हाँ ठीक है….थोड़ा ज़ोर से…आ..आह..आह…!’
अन्दर से आंटी के कराहने की आवाज़ के साथ साथ ‘फच..फच’ जैसी आवाज़ भी आ रही थीं जो मैं समझ नहीं सका।
बाहर खड़े हुए मैं अपने आप पर संयम नहीं कर सका और मेरा लंड झड़ गया। मैं जल्दी से वापस आ कर अपने बिस्तर पर लेट गया। अब तो मैं रात-दिन आंटी को चोदने के सपने देखने लगा। मैं पहले भी अपने आस-पास की 3-4 लड़कियों को चोद चुका था इसलिए चुदाई की कला से भली-भाँति परिचित था।
मैंने इंग्लिश की बहुत सी कामुक ब्लू-फिल्म्स देख रखी थीं और हिन्दी और इंग्लिश के कई कामुक उपन्यास भी पढ़े थे।
मैं अक्सर कल्पना करने लगा कि आंटी बिल्कुल नंगी होकर कैसी लगती होंगी।
जितने लम्बे और घने बाल उनके सिर पर थे ज़रूर उतने ही घने बाल उनकी चूत पर भी होंगे। अंकल आंटी को कौन-कौन सी मुद्राओं में चोदते होंगे। एकदम नंगी आंटी टाँगें फैलाई हुए चुदवाने की मुद्रा में बहुत ही सेक्सी लगती होंगी। यह सब सोच कर मेरी आंटी के लिए काम-वासना दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थी।
मैं भी 5’7′ लंबा हूँ, अपने कॉलेज का बॉडी-बिल्डिंग का चैम्पियन था। रोज़ दो घंटे कसरत और मालिश करता हूँ। लेकिन सबसे खास चीज़ है मेरा लंड। ढीली अवस्था में भी 4 इंच लम्बा और 2 इंच मोटा किसी हथौड़े के माफिक लटकता रहता है। यदि मैं अंडरवियर ना पहनू तो पैन्ट के ऊपर से भी उसका आकार साफ़ दिखाई देता है। खड़ा हो कर तो उसकी लम्बाई करीब 7-8 इंच और मोटाई 3.5 इंच हो जाती है।
एक डॉक्टर ने मुझे बताया था कि इतना लम्बा और मोटा लंड बहुत कम लोगों का होता है। मैं अक्सर बरामदे में तौलिया लपेट कर बैठ जाता था और अखबार पढ़ने का नाटक करता था। जब भी कोई लड़की घर के सामने से निकलती, मैं अपनी टाँगों को थोड़ा सा इस प्रकार से चौड़ा करता कि उस लड़की को तौलिए के अन्दर से झाँकता हुआ लंड नज़र आ जाए।
मैंने अखबार में छोटा सा छेद कर रखा था। अखबार से अपना चेहरा छुपा कर उस छेद में से लड़की की प्रतिक्रिया देखने में बहुत मज़ा आता था। लड़कियों को लगता था कि मैं अपने लंड की नुमाइश से बेख़बर हूँ। एक भी लड़की ऐसी ना थी जिसने मेरे लंड को देख कर मुँह फेर लिया हो।
धीरे-धीरे मैं शादीशुदा औरतों को भी लंड दिखाने लगा, क्योंकि उन्हें ही लम्बे, मोटे लंड का महत्व पता था।
एक दिन मैं अपने कमरे में पढ़ रहा था कि आंटी ने आवाज़ लगाई- राज, ज़रा बाहर जो कपड़े सूख रहे हैं, उन्हें अन्दर ले आओ… बारिश आने वाली है।’
‘अच्छा आंटी..।’ मैं कपड़े लेने बाहर चला गया। घने बदल छाए हुए थे, आंटी भी जल्दी से मेरी मदद करने आ गईं।
डोरी पर से कपड़े उतारते समय मैंने देखा की आंटी की ब्रा और पैन्टी भी टंगी हुई थी। मैंने आंटी की ब्रा को उतार कर साइज़ पढ़ लिया; साइज़ था 34बी, उसके बाद मैंने आंटी की पैन्टी को हाथ में लिया। गुलाबी रंग की वो पैन्टी करीब-करीब पारदर्शी थी और इतनी छोटी सी थी जैसे किसी दस साल की बच्ची की हो।
आंटी की पैन्टी का स्पर्श मुझे बहुत आनन्द दे रहा था और मैं मन ही मन सोचने लगा कि इतनी छोटी सी पैन्टी आंटी के इतने बड़े चूतड़ों और चूत को कैसे ढकती होगी। शायद यह कच्छी आंटी अंकल को रिझाने के लिए पहनती होंगी। मैंने उस छोटी सी पैन्टी को सूंघना शुरू कर दिया ताकि आंटी की चूत की कुछ खुश्बू पा सकूँ।
आंटी ने मुझे ऐसा करते हुए देख लिया और बोलीं- क्या सूंघ रहे हो राज ? तुम्हारे हाथ में क्या है?
मेरी चोरी पकड़ी गई थी। बहाना बनाते हुए बोला- देखो ना आंटी ये छोटी सी कच्छी पता नहीं किसकी है? यहाँ कैसे आ गई।
आंटी मेरे हाथ में अपनी पैन्टी देख कर झेंप गईं और चीखती हुई बोलीं- लाओ इधर दो।
‘किसकी है आंटी ?’ मैंने अंजान बनते हुए पूछा।
‘तुमसे क्या मतलब, तुम अपना काम करो।’ आंटी बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोलीं।
‘बता दो ना… अगर पड़ोस वाली बच्ची की है तो लौटा दूँ।’
‘जी नहीं, लेकिन तुम सूंघ क्या रहे थे?’
‘अरे आंटी, मैं तो इसको पहनने वाली की खुशबू सूंघ रहा था, बड़ी मादक खुश्बू थी। बता दो ना किसकी है?’
आंटी का चेहरा यह सुन कर शर्म से लाल हो गया और वो जल्दी से अन्दर भाग गईं।
उस रात जब वो मुझे पढ़ाने आईं तो मैंने देखा कि उन्होंने एक सेक्सी सी नाइटी पहन रखी थी। नाइटी थोड़ी सी पारदर्शी थी। आंटी जब कुछ उठाने के लिए नीचे झुकीं तो मुझे साफ़ नज़र आ रहा था कि आंटी ने नाइटी के नीचे वो ही गुलाबी रंग की पैन्टी पहन रखी थी। झुकने की वजह से पैन्टी की रूप-रेखा साफ़ नज़र आ रही थी। मेरा अंदाज़ा सही था। पैन्टी इतनी छोटी थी कि आंटी के भारी चूतड़ों के बीच की दरार में घुसी जा रही थी।
मेरे लंड ने हरकत करनी शुरू कर दी, मुझसे ना रहा गया और मैं बोल ही पड़ा- आंटी अपने तो बताया नहीं, लेकिन मुझे पता चल गया कि वो छोटी सी पैन्टी किसकी थी।
‘तुझे कैसे पता चल गया?’ आंटी ने शरमाते हुए पूछा।
‘क्योंकि वो पैन्टी आपने इस वक़्त नाइटी के नीचे पहन रखी है।’
‘हट बदमाश..! तू ये सब देखता रहता है?’
‘आंटी एक बात पूछूँ? इतनी छोटी सी पैन्टी में आप फिट कैसे होती हैं?’ मैंने हिम्मत जुटा कर पूछ ही लिया।
‘क्यों मैं क्या तुझे मोटी लगती हूँ?’
‘नहीं आंटी, आप तो बहुत ही सुन्दर हैं, लेकिन आपका बदन इतना सुडौल और गठा हुआ है, आपके चूतड़ इतने भारी और फैले हुए हैं कि इस छोटी सी पैन्टी में समा ही नहीं सकते। आप इसे क्यों पहनती हैं? यह तो आपकी जायदाद को छुपा ही नहीं सकती और फिर यह तो पारदर्शी है, इसमें से तो आपका सब कुछ दिखता होगा।’
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RE: Antarvasnasex आंटी के साथ मस्तियाँ
‘चुप नालायक, तू कुछ ज़्यादा ही समझदार हो गया है, जब तेरी शादी होगी ना तो सब अपने आप पता लग जाएगा। लगता है तेरी शादी जल्दी ही करनी होगी, शैतान होता जा रहा है।’
‘जिसकी इतनी सुन्दर आंटी हो वो किसी दूसरी लड़की के बारे में क्यों सोचने लगा?’
‘ओह हो..! अब तुझे कैसे समझाऊँ? देख राज, जिन बातों के बारे में तुझे अपनी बीवी से पता लग सकता है और जो चीज़ तेरी बीवी तुझे दे सकती है, वो आंटी तो नहीं दे सकती ना? इसी लिए कह रही हूँ शादी कर ले।’
‘आंटी ऐसी क्या चीज़ है जो सिर्फ़ बीवी दे सकती है और आप नहीं दे सकती?’ मैंने बहुत अंजान बनते हुए पूछा। अब तो मेरा लंड फनफनाने लगा था।
‘मैं सब समझती हूँ… चालाक कहीं का..! तुझे सब मालूम है फिर भी अंजान बनता है।’ आंटी लजाते हुए बोलीं।
‘लगता है तुझे पढ़ना-लिखना नहीं है, मैं सोने जा रही हूँ।’
‘लेकिन अंकल ने तो आपको नहीं बुलाया।’ मैंने शरारत भरे स्वर में पूछा।
आंटी जबाब में सिर्फ़ मुस्कुराते हुए अपने कमरे की ओर चल दीं।
उनकी मस्तानी चाल, मटकते हुए भारी चूतड़ और दोनों चूतड़ों के बीच में पिस रही बेचारी पैन्टी को देख कर मेरे लंड का बुरा हाल था।
अगले दिन अंकल के ऑफिस जाने के बाद आंटी और मैं बाल्कनी में बैठे चाय पी रहे थे। इतने में सामने सड़क पर एक गाय गुज़री, उसके पीछे-पीछे एक भारी-भरकम साण्ड हुंकार भरता हुआ आ रहा था। साण्ड का लम्बा मोटा लंड नीचे झूल रहा था।
साण्ड के लंड को देख कर आंटी के माथे पर पसीना छलक आया। वो उसके लम्बे-तगड़े लंड से नज़रें ना हटा सकीं।
इतने में साण्ड ने ज़ोर से हुंकार भरी और गाय पर चढ़ कर उसकी बुर में पूरा का पूरा लंड घुसेड़ दिया।
यह देख कर आंटी के मुँह से सिसकारी निकल गई।
वो साण्ड की रास-लीला और ना देख सकीं और शर्म के मारे अन्दर भाग गईं।
मैं भी पीछे-पीछे अन्दर गया। आंटी रसोई में थीं।
मैंने बहुत ही भोले स्वर में पूछा- आंटी वो साण्ड क्या कर रहा था?
‘तुझे नहीं मालूम?’ आंटी ने झूटा गुस्सा दिखाते हुए कहा।
‘तुम्हारी कसम आंटी मुझे कैसे मालूम होगा? बताइए ना..!’
हालाँकि आंटी को अच्छी तरह पता था कि मैं जानबूझ कर अंजान बन रहा हूँ लेकिन अब उनको भी मेरे साथ ऐसी बातें करने में मज़ा आने लगा था।
वो मुझे समझाते हुए बोलीं- देख राज, सांड़ वही काम कर रहा था जो एक मर्द अपनी बीवी के साथ शादी के बाद करता है।
‘आपका मतलब है कि मर्द भी अपनी बीवी पर ऐसे ही चढ़ता है?’
‘हाय राम..! कैसे-कैसे सवाल पूछता है। हाँ… और क्या ऐसे ही चढ़ता है।’
‘ओह.. अब समझा, अंकल आपको रात में क्यों बुलाते हैं।’
‘चुप नालायक, ऐसा तो सभी शादीशुदा लोग करते हैं।’
‘जिनकी शादी नहीं हुई वो नहीं कर सकते?’
‘क्यों नहीं कर सकते? वो भी कर सकते हैं, लेकिन…!’
मैं तपाक से बीच में ही बोल पड़ा- वाह आंटी, तब तो मैं भी आप पर चढ़…’
आंटी ने एकदम मेरे मुँह पर हाथ रख दिया और बोलीं- चुप.. जा यहाँ से.. और मुझे काम करने दे।
और यह कह कर उन्होंने मुझे रसोई से बाहर धकेल दिया।
इस घटना के दो दिन के बाद की बात आई।
मैं छत पर पढ़ने जा रहा था, आंटी के कमरे के सामने से गुज़रते समय मैंने उनके कमरे में झाँका।
आंटी अपने बिस्तर पर लेटी हुई कोई उपन्यास पढ़ रही थीं, उनकी नाइटी घुटनों तक ऊपर चढ़ी हुई थी। नाइटी इस प्रकार से उठी हुई थी कि आंटी की गोरी-गोरी टाँगें, मोटी मांसल जांघें और जांघों के बीच में सफेद रंग की पैन्टी साफ़ नज़र आ रही थी।
मेरे कदम एकदम रुक गए और इस खूबसूरत नज़ारे को देखने के लिए मैं छुप कर खिड़की से झाँकने लगा।
यह पैन्टी भी उतनी ही छोटी थी और बड़ी मुश्किल से आंटी की चूत को ढक रही थी।
आंटी की घनी काली झांटें दोनों तरफ से कच्छी के बाहर निकल रही थीं। वो बेचारी छोटी सी पैन्टी आंटी की फूली हुई बुर के उभार से बस किसी तरह चिपकी हुई थी।
बुर की दोनों फांकों के बीच में दबी हुई पैन्टी ऐसे लग रही थी जैसे हँसते वक़्त आंटी के गालों में डिंपल पड़ जाते हैं।
अचानक आंटी की नज़र मुझ पर पड़ गई, उन्होंने झट से टाँगें नीचे करते हुए पूछा- क्या देख रहा है राज?
चोरी पकड़े जाने के कारण मैं सकपका गया और ‘कुछ नहीं आंटी’ कहता हुआ छत पर भाग गया।
अब तो रात-दिन आंटी की सफेद पैन्टी में छिपी हुई बुर की याद सताने लगी।
मेरे दिल में विचार आया, क्यों ना आंटी को अपने विशाल लंड के दर्शन कराऊँ।
आंटी रोज़ सवेरे मुझे दूध का गिलास देने मेरे कमरे में आती थीं।
एक दिन सवेरे मैं तौलिया लपेट कर अखबार पढ़ने का नाटक करते हुए इस प्रकार बैठ गया कि सामने से आती हुई आंटी को मेरा लटकता हुआ लंड नज़र आ जाए।
जैसे ही मुझे आंटी के आने की आहट सुनाई दी, मैंने अखबार अपने चेहरे के सामने कर लिया। टाँगों को थोड़ा और चौड़ा कर लिया ताकि आंटी को पूरे लंड के आसानी से दर्शन हो सकें और अखबार के बीच के छेद से आंटी की प्रतिक्रिया देखने के लिए तैयार हो गया।
जैसे ही आंटी दूध का गिलास लेकर मेरे कमरे में दाखिल हुईं, उनकी नज़र तौलिए के नीचे से झाँकते मेरे 7-8 इंच लम्बे मोटे हथौड़े की तरह लटकते हुए लंड पर पड़ गई।
वो सकपका कर रुक गईं, आँखें आश्चर्य से बड़ी हो गईं और उन्होंने अपना निचला होंठ दाँतों से दबा लिया। एक मिनट बाद उन्होंने होश संभाला और जल्दी से गिलास रख कर भाग गईं।
करीब 5 मिनट के बाद फिर आंटी के कदमों की आहट सुनाई दी।
मैंने झट से पहले वाला आसन धारण कर लिया और सोचने लगा, आंटी अब क्या करने आ रही हैं।
अखबार के छेद में से मैंने देखा आंटी हाथ में पोंछे का कपड़ा लेकर अन्दर आईं और मुझसे करीब 5 फुट दूर ज़मीन पर बैठ कर कुछ साफ़ करने का नाटक करने लगीं।
वो नीचे बैठ कर तौलिए के नीचे लटकता हुआ लंड ठीक से देखना चाहती थीं।
मैंने भी अपनी टाँगों को थोड़ा और चौड़ा कर दिया, जिससे आंटी को मेरे विशाल लंड के साथ मेरे अन्डकोषों के भी दर्शन अच्छी तरह से हो जाएँ।
आंटी की आँखें एकटक मेरे लंड पर लगी हुई थीं, उन्होंने अपने होंठ दाँतों से इतनी ज़ोर से काट लिए कि उनमें थोड़ा सा खून निकल आया, उनके माथे पर पसीने की बूँदें उभर आईं।
आंटी की यह हालत देख कर मेरे लंड ने फिर से हरकत शुरू कर दी।
मैंने बिना अखबार चेहरे से हटाए आंटी से पूछा- क्या बात है आंटी.. क्या कर रही हो?
आंटी हड़बड़ा कर बोलीं- कुछ नहीं, थोड़ा दूध गिर गया था.. उसे साफ़ कर रही हूँ।’
यह कह कर वो जल्दी से उठ कर चली गईं।
मैं मन ही मन मुस्काया। अब तो जैसे मुझे आंटी की चूत के सपने आते हैं, वैसे ही आंटी को भी मेरे मस्ताने लंड के सपने आएँगे।
लेकिन अब आंटी एक कदम आगे थीं। उसने तो मेरे लंड के दर्शन कर लिए थे, पर मैंने अभी तक उनकी चूत को नहीं देखा था।
मुझे मालूम था कि आंटी रोज़ हमारे जाने के बाद घर का सारा काम निपटा कर नहाने जाती थीं। मैंने आंटी की चूत देखने की योजना बनाई।
एक दिन मैं कॉलेज जाते समय अपने कमरे की खिड़की खुली छोड़ गया।
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RE: Antarvasnasex आंटी के साथ मस्तियाँ
उस दिन कॉलेज से मैं जल्दी वापस आ गया, घर का दरवाज़ा अन्दर से बन्द था। मैं चुपके से अपनी खिड़की के रास्ते अपने कमरे में दाखिल हो गया।
आंटी रसोई में काम कर रही थीं। काफ़ी देर इंतज़ार करने के बाद आख़िर मेरी तपस्या रंग लाई, आंटी अपने कमरे में आईं। वो मस्ती में कुछ गुनगुना रही थीं। देखते ही देखते उन्होंने अपनी नाइटी उतार दी। अब वो सिर्फ़ आसमानी रंग की ब्रा और पैन्टी में थीं।
मेरा लंड हुंकार भरने लगा।
क्या बला की सुन्दर थीं। गोरा बदन, पतली कमर और उसके नीचे फैलते हुए भारी चूतड़ और मोटी जांघें किसी नामर्द का भी लंड खड़ा कर दें।
आंटी की बड़ी-बड़ी चूचियाँ तो ब्रा में समा नहीं पा रही थीं।
फिर वही छोटी सी पैन्टी, जिसने मेरी रातों की नींद उड़ा रखी थी, आंटी के भारी चूतड़ उनकी पैन्टी से बाहर निकल रहे थे, दोनों चूतड़ों का एक चौथाई से भी कम भाग पैन्टी में था। बेचारी पैन्टी आंटी के चूतड़ों के बीच की दरार में घुसने की कोशिश कर रही थी।
उनकी जांघों के बीच में पैन्टी से ढकी फूली हुई चूत का उभार तो मेरे दिल-ओ-दिमाग़ को पागल बना रहा था।
मैं साँस थामे इंतज़ार कर रहा था कि कब आंटी पैन्टी उतारें और मैं उनकी चूत के दर्शन करूँ। आंटी शीशे के सामने खड़ी होकर अपने को निहार रही थीं, उनकी पीठ मेरी तरफ थी।
अचानक आंटी ने अपनी ब्रा और फिर पैन्टी उतार कर वहीं ज़मीन पर फेंक दी।
अब तो उनके नंगे चौड़े और गोल-गोल चूतड़ देख कर मेरा लंड बिल्कुल झड़ने वाला हो गया।
मैंने मन में सोचा कि अंकल ज़रूर आंटी की चूत पीछे से भी लेते होंगे और क्या कभी अंकल ने आंटी की गाण्ड मारी होगी?
मुझे ऐसी लाजवाब औरत की गाण्ड मिल जाए तो मैं स्वर्ग जाने से भी इन्कार कर दूँ।
लेकिन मेरी आज की योजना पर तब पानी फिर गया, जब आंटी बिना मेरी तरफ़ घूमे गुसलखाने में नहाने चली गईं।
उनकी ब्रा और पैन्टी वहीं ज़मीन पर पड़ी थी।
मैं जल्दी से आंटी के कमरे में गया और उनकी पैन्टी उठा लाया।
मैंने उनकी पैन्टी को सूँघा।
आंटी की चूत की महक इतनी मादक थी कि मेरा लंड और ना सहन कर सका और झड़ गया।
मैंने उस पैन्टी को अपने पास ही रख लिया और आंटी के बाथरूम से बाहर निकलने का इंतज़ार करने लगा।
सोचा जब आंटी नहा कर नंगी बाहर निकलेगीं तो उनकी चूत के दर्शन हो ही जाएँगे।
लेकिन किस्मत ने फिर साथ नहीं दिया, आंटी जब नहा कर बाहर निकलीं तो उन्होंने काले रंग की पैन्टी और ब्रा पहन रखी थी।
आंटी कमरे में अपनी पैन्टी गायब पाकर सोच में पड़ गईं।
अचानक उन्होंने जल्दी से नाइटी पहन ली और मेरे कमरे की तरफ आईं, शायद उन्हें शक हो गया कि यह काम मेरे अलावा और कोई नहीं कर सकता।
मैं झट से अपने बिस्तर पर ऐसे लेट गया जैसे नींद में हूँ।
आंटी मुझे कमरे में देखकर सकपका गईं।
मुझे हिलाते हुए बोलीं- राज उठ… तू अन्दर कैसे आया?
मैंने आँखें मलते हुए उठने का नाटक करते हुए कहा- क्या करूँ आंटी आज कॉलेज जल्दी बन्द हो गया, घर का दरवाज़ा बन्द था बहुत खटखटाने पर जब आपने नहीं खोला तो मैं अपनी खिड़की के रास्ते अन्दर आ गया।
‘तू कितनी देर से अन्दर है?’
‘यही कोई एक घंटे से।’
अब तो आंटी को शक हो गया कि शायद मैंने उन्हें नंगी देख लिया था और फिर उनकी पैन्टी भी तो गायब थी।
आंटी ने शरमाते हुए पूछा- कहीं तूने मेरे कमरे से कोई चीज़ तो नहीं उठाई?
‘अरे हाँ आंटी.. जब मैं आया तो मैंने देखा कि कुछ कपड़े ज़मीन पर पड़े हैं। मैंने उन्हें उठा लिया।’
आंटी का चेहरा सुर्ख हो गया, हिचकिचाते हुए बोलीं- वापस कर मेरे कपड़े।
मैं तकिये के नीचे से आंटी की पैन्टी निकालते हुए बोला- आंटी, यह तो अब मैं वापस नहीं दूँगा।
‘क्यों अब तू औरतों की पैन्टी पहनना चाहता है?’
‘नहीं आंटी…’ मैं पैन्टी को सूंघता हुआ बोला- इसकी मादक खुश्बू ने तो मुझे दीवाना बना दिया है।
‘अरे पगला है? यह तो मैंने कल से पहनी हुई थी… धोने तो दे।’
‘नहीं आंटी धोने से तो इसमें से आपकी महक निकल जाएगी… मैं इसे ऐसे ही रखना चाहता हूँ।’
‘धत्त पागल… अच्छा तू कब से घर में है?’ आंटी शायद जानना चाहती थीं कि कहीं मैंने उनको नंगी तो नहीं देख लिया।
मैंने कहा- आंटी मैं जानता हूँ कि आप क्या जानना चाहती हैं… मेरी ग़लती क्या है, जब मैं घर आया तो आप बिल्कुल नंगी शीशे के सामने खड़ी थीं लेकिन आपको सामने से नहीं देख सका। सच कहूँ आंटी, आप बिल्कुल नंगी होकर बहुत ही सुन्दर लग रही थीं। पतली कमर, भारी और गोल-गोल मस्त चूतड़ और गदराई हुई जांघें देख कर तो बड़े से बड़े ब्रह्मचारी की नियत भी खराब हो जाए।
आंटी शर्म से लाल हो उठीं।
‘हाय राम तुझे शर्म नहीं आती… कहीं तेरी भी नियत तो नहीं खराब हो गई है?’
‘आपको नंगी देख कर किसकी नियत खराब नहीं होगी?’
‘हे भगवान, आज तेरे अंकल से तेरी शादी की बात करनी ही पड़ेगी।’
इससे पहले मैं कुछ और कहता वो अपने कमरे में भाग गईं।
अंकल को 6 महीने के लिए किसी ट्रेनिंग के लिए मुंबई जाना था, आज उनका आखिरी दिन था, आज रात को तो आंटी की चुदाई निश्चित ही होनी थी।
रात को आंटी नींद आने का बहाना बना कर जल्दी ही अपने कमरे में चली गईं।
उनके कमरे में जाते ही लाइट बंद हो गई, मैं समझ गया कि चुदाई शुरू होने में अब देर नहीं।
मैं एक बार फिर चुपके से आंटी के दरवाज़े पर कान लगा कर खड़ा हो गया, अन्दर से मुझे अंकल-आंटी की बातें साफ सुनाई दे रही थीं।
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06-25-2017, 12:13 PM,
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RE: Antarvasnasex आंटी के साथ मस्तियाँ
अंकल कह रहे थे- डॉली… 6 महीने का समय तो बहुत होता है। इतने दिन मैं तुम्हारे बिना कैसे जी सकूँगा। जरा सोचो 6 महीने तक तुम्हें नहीं चोद सकूँगा।
‘आप तो ऐसे बोल रहे हैं जैसे यहाँ रोज…!’
‘क्या मेरी जान बोलो ना.. शरमाती क्यों हो..? कल तो मैं जा ही रहा हूँ, आज रात तो खुल कर बात करो। तुम्हारे मुँह से ऐसी बातें सुन कर दिल खुश हो जाता है।’
‘मैं तो आपको खुश देखने के लिए कुछ भी कर सकती हूँ। मैं तो यह कह रही थी, यहाँ आप कौन सा मुझे रोज चोदते हैं।’ आंटी के मुँह से चुदाई की बात सुन मेरा लंड फनफनाने लगा।
‘डॉली यहाँ तो बहुत काम रहता है इसलिए थक जाता था। वापस आने के बाद मेरा प्रमोशन हो जाएगा और उतना काम नहीं होगा। फिर तो मैं तुम्हें रोज चोदूँगा… बोलो मेरी जान रोज चुदवाओगी ना..।’
‘मेरे राजा.. सच बताऊँ मेरा दिल तो रोज ही चुदवाने को करता है, पर आपको तो चोदने की फ़ुर्सत ही नहीं… क्या कोई अपनी जवान बीवी को महीने में सिर्फ़ दो-तीन बार ही चोद कर रह जाता है?’
‘तो तुम मुझसे कह नहीं सकती थी?’
‘कैसी बातें करते हैं? औरत जात हूँ.. चोदने में पहल करना तो मर्द का काम होता है। मैं आपसे क्या कहती? चोदो मुझे? रोज रात को आपके लंड के लिए तरसती रहती हूँ।’
‘डॉली तुम जानती हो मैं ऐसा नहीं हूँ। याद है अपना हनीमून… जब दस दिन तक लगातार दिन में तीन-चार बार तुम्हें चोदता था? बल्कि उस वक़्त तो तुम मेरे लंड से घबरा कर भागती फिरती थीं।’
‘याद है मेरे राजा… लेकिन उस वक़्त तक सुहागरात की चुदाई के कारण मेरी चूत का दर्द दूर नहीं हुआ था। आपने भी तो सुहागरात को मुझे बड़ी बेरहमी से चोदा था।’
‘उस वक़्त मैं अनाड़ी था मेरी जान…’
‘अनाड़ी की क्या बात थी… किसी लड़की की कुंवारी चूत को इतने मोटे, लम्बे लंड से इतनी ज़ोर से चोदा जाता है क्या? कितना खून निकाल दिया था आपने मेरी चूत में से, पूरी चादर खराब हो गई थी। अब जब मेरी चूत आपके लंड को झेलने के लायक हो गई है तो आपने चोदना ही कम कर दिया है।’
‘अब चोदने भी दोगी या सारी रात बातों में ही गुजार दोगी?’ यह कह कर अंकल आंटी के कपड़े उतार कर नंगी करने लगे।
‘डॉली, मैं तुम्हारी यह कच्छी साथ ले जाऊँगा।’
‘क्यों? आप इसका क्या करेंगे?’
‘जब भी चोदने का दिल करेगा तो इसे अपने लंड से लगा लूँगा।’
कच्छी उतार कर शायद अंकल ने लंड आंटी की चूत में पेल दिया, क्योंकि आंटी के मुँह से आवाजें आने लगीं- अया… ऊवू… अघ.. आह.. आह.. आह.. आह !
‘डॉली आज तो सारी रात फ़ुद्दी लूँगा तुम्हारी…’
‘लीजिए ना.. आआहह… कौन… आ रोक रहा है? आपकी चीज है.. जी भर के चोदिए… उई माआ…’
‘थोड़ी टाँगें और चौड़ी करो.. हाँ अब ठीक है.. आह.. पूरा लंड जड़ तक घुस गया है..’
‘आआआ…ह.. ऊ…’
‘डॉली, चुदाई में मज़ा आ रहा है मेरी जान?’
‘हूँ…आआआह..’
‘डॉली..’
‘जी..’
‘अब 6 महीने तक इस खूबसूरत चूत की प्यास कैसे बुझाओगी?’
‘आपके इस मोटे लंड के सपने ले कर ही रातें गुजारूँगी।’
‘मेरी जान, तुम्हें चुदवाने में सचमुच बहुत मज़ा आता है?’
‘हाँ.. मेरे राजा बहुत मज़ा आता है क्योंकि आपका ये मोटा लम्बा लंड मेरी चूत को तृप्त कर देता है।’
‘डॉली मैं वादा करता हूँ, वापस आकर तुम्हारी इस टाइट चूत को चोद-चोद कर फाड़ डालूँगा।’
‘फाड़ डालिए ना, उई…ह मैं भी तो यही चाहती हूँ।’
‘सच.. अगर फट गई तो फिर क्या चुदवाओगी?’
‘हटिए भी आप तो, आपको सचमुच ये इतनी अच्छी लगती है?’
‘तुम्हारी कसम मेरी जान… इतनी फूली हुई चूत को छोड़ कर तो मैं धन्य हो गया हूँ और फिर इसकी मालकिन चुदवाती भी तो कितने प्यार से है।’
‘जब चोदने वाले का लंड इतना मोटा तगड़ा हो तो चुदवाने वाली तो प्यार से चुदवाएगी ही.. मैं तो आपके लंड के लिए उई…ह.. ऊ.. बहुत तड़फूंगी.. आख़िर मेरी प्यास तो…आआ… यही बुझाता है।’
अंकल ने सारी रात जम कर आंटी की चुदाई की… सवेरे आंटी की आँखें सारी रात ना सोने के कारण लाल थीं।
अंकल सुबह 6 महीने के लिए मुंबई चले गए। मैं बहुत खुश था, मुझे पूरा विश्वास था कि इन 6 महीनों में तो मैं आंटी को अवश्य ही चोद पाऊँगा।
हालाँकि अब आंटी मुझसे खुल कर बातें करती थीं लेकिन फिर भी मेरी आंटी के साथ कुछ कर पाने की हिम्मत नहीं हो पा रही थी।
मैं मौके की तलाश में था।
अंकल को गए हुए एक महीना बीत चुका था। जो औरत रोज चुदवाने को तरसती हो उसके लिए एक महीना बिना चुदाई गुजारना मुश्किल था।
आंटी को वीडियो पर पिक्चर देखने का बहुत शौक था। एक दिन मैं इंग्लिश की बहुत सेक्सी सी ब्लू-फिल्म ले आया और ऐसी जगह रख दी, जहाँ आंटी को नजर आ जाए।
उस पिक्चर में 7 इन्च लम्बे लौड़े वाला तगड़ा काला आदमी एक किशोरी गोरी लड़की को कई मुद्राओं में चोदता है और उसकी गाण्ड भी मारता है।
जब तक मैं कॉलेज से वापस आया तब तक आंटी वो पिक्चर देख चुकी थीं।
मेरे आते ही बोलीं- यह तू कैसी गंदी-गंदी फ़िल्में देखता है?
‘अरे आंटी आपने वो पिक्चर देख ली? वो आपके देखने की नहीं थी।’
‘तू उल्टा बोल रहा है.. वो मेरे ही देखने की थी.. शादीशुदा लोगों को तो ऐसी पिक्चर देखनी चाहिए.. हे राम… क्या-क्या कर रहा था वो लम्बा-तगड़ा कालू.. उस छोटी सी लड़की के साथ.. बाप रे…!’
‘क्यों आंटी, अंकल आपके साथ ये सब नहीं करते हैं?’
‘तुझे क्या मतलब…? और तुझे शादी से पहले ऐसी फ़िल्में नहीं देखनी चाहिए।’
‘लेकिन आंटी अगर शादी से पहले नहीं देखूँगा तो अनाड़ी न रह जाऊँगा। पता कैसे लगेगा कि शादी के बाद क्या किया जाता है।’
‘तेरी बात तो सही है.. बिल्कुल अनाड़ी होना भी ठीक नहीं.. वरना सुहागरात को लड़की को बहुत तकलीफ़ होती है। तेरे अंकल तो बिल्कुल अनाड़ी थे।’
‘आंटी, अंकल अनाड़ी थे क्योंकि उन्हें बताने वाला कोई नहीं था। मुझे तो आप समझा सकती हैं लेकिन आपके रहते हुए भी मैं अब तक अनाड़ी हूँ। तभी तो ऐसी फिल्म देखनी पड़ती हैं और उसके बाद भी बहुत सी बातें समझ नहीं आती। खैर.. आपको मेरी फिकर कहाँ होती है?’
‘राज, मैं जितनी तेरी फिकर करती हूँ उतनी शायद ही कोई करता हो। आगे से तुझे शिकायत का मौका नहीं दूँगी। तुझे कुछ भी पूछना हो, बे-झिझक पूछ लिया कर। मैं बुरा नहीं मानूँगी। चल अब खाना खा ले।’
‘तुम कितनी अच्छी हो आंटी।’ मैंने खुश हो कर कहा।
अब तो आंटी ने खुली छूट दे दी थी, मैं किसी तरह की भी बात आंटी से कर सकता था लेकिन कुछ कर पाने की अब भी हिम्मत नहीं थी।
मैं आंटी के दिल में अपने लिए चुदाई की भावना जागृत करना चाहता था।
अंकल को गए अब करीब दो महीने हो चले थे, आंटी के चेहरे पर लंड की प्यास साफ ज़ाहिर होती थी।
एक बार रविवार को मैं घर पर था, आंटी कपड़े धो रही थीं, मुझे पता था कि आंटी छत पर कपड़े सूखने डालने जाएगीं।
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06-25-2017, 12:21 PM,
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RE: Antarvasnasex आंटी के साथ मस्तियाँ
मैंने सोचा क्यों ना आज फिर आंटी को अपने लंड के दर्शन कराए जाएँ, पिछले दर्शन तीन महीने पहले हुए थे।
मैं छत पर कुर्सी डाल कर उसी प्रकार लुंगी घुटनों तक उठा कर बैठ गया।
जैसे ही आंटी के छत पर आने की आहट सुनाई दी, मैंने अपनी टाँगें फैला दीं और अख़बार चेहरे के सामने कर लिया।
अख़बार के छेद में से मैंने देखा की छत पर आते ही आंटी की नजर मेरे मोटे, लम्बे साँप के माफिक लटकते हुए लंड पर गई।
आंटी की सांस तो गले में ही अटक गई, उनको तो जैसे साँप सूंघ गया, एक मिनट तक तो वो अपनी जगह से हिल नहीं सकीं, फिर जल्दी कपड़े सूखने डाल कर नीचे चल दीं।
‘आंटी कहाँ जा रही हो, आओ थोड़ी देर बैठो।’ मैंने कुर्सी से उठते हुए कहा।
आंटी बोली- अच्छा आती हूँ… तुम बैठो मैं तो नीचे चटाई डाल कर बैठ जाऊँगी।
अब तो मैं समझ गया कि आंटी मेरे लंड के दर्शन जी भर के करना चाहती हैं, मैं फिर कुर्सी पर उसी मुद्रा में बैठ गया।
थोड़ी देर में आंटी छत पर आईं और ऐसी जगह चटाई बिछाई जहाँ से लुंगी के अन्दर से पूरा लंड साफ दिखाई दे।
उनके हाथ में एक उपन्यास था जिसे पढ़ने का बहाना करने लगीं लेकिन नज़रें मेरे लंड पर ही टिकी हुई थीं।
मेरा 8′ लम्बा और 4′ मोटा लंड और उसके पीछे अमरूद के आकार के अंडकोष लटकते देख उनका तो पसीना ही छूट गया।
अनायास ही उनका हाथ अपनी चूत पर गया और वो उसे अपनी सलवार के ऊपर से रगड़ने लगीं। जी भर के मैंने आंटी को अपने लंड के दर्शन कराए।
जब मैं कुर्सी से उठा तो आंटी ने जल्दी से उपन्यास अपने चेहरे के आगे कर लिया, जैसे वो उपन्यास पढ़ने में बड़ी मग्न हों।
मैंने कई दिन से आंटी की गुलाबी कच्छी नहीं देखी थी। आज भी वो नहीं सूख रही थी।
मैंने आंटी से पूछा- आंटी बहुत दिनों से आपने गुलाबी कच्छी नहीं पहनी?
‘तुझे क्या?’
‘मुझे वो बहुत अच्छी लगती है। उसे पहना करिए ना।’
‘मैं कौन सा तेरे सामने पहनती हूँ?’
‘बताईए ना आंटी कहाँ गई, कभी सूखती हुई भी नहीं नजर आती।’
‘तेरे अंकल ले गए हैं.. कहते थे कि वो उन्हें मेरी याद दिलाएगी।’ आंटी ने शरमाते हुए कहा।
‘आपकी याद दिलाएगी या आपके टांगों के बीच में जो चीज़ है उसकी?’
‘हट मक्कार.. तूने भी तो मेरी एक कच्छी मार रखी है, उसे पहनता है क्या? पहनना नहीं, कहीं फट ना जाए।’ आंटी मुझे चिढ़ाते हुए बोलीं।
‘फटेगी क्यों? मेरे कूल्हे आपके जितने भारी और चौड़े तो नहीं हैं।’
‘अरे बुद्धू, कूल्हे तो बड़े नहीं हैं लेकिन सामने से तो फट सकती है। तुझे तो वो सामने से फिट भी नहीं होगी।’
‘फिट क्यों नहीं होगी आंटी?’ मैंने अंजान बनते हुए कहा।
‘अरे बाबा, मर्दों की टांगों के बीच में जो ‘वो’ होता है ना, वो उस छोटी सी कच्छी में कैसे समा सकता है और वो तगड़ा भी तो होता है, कच्छी के महीन कपड़े को फाड़ सकता है।’
‘वो’.. क्या आंटी?’ मैंने शरारत भरे अंदाज में पूछा।
आंटी जान गईं कि मैं उनके मुँह से क्या कहलवाना चाहता हूँ।
‘मेरे मुँह से कहलवाने में मज़ा आता है?’
‘एक तरफ तो आप कहती हैं कि आप मुझे सब कुछ बताएँगी और फिर साफ-साफ बात भी नहीं करती। आप मुझसे और मैं आपसे शरमाता रहूँगा तो मुझे कभी कुछ नहीं पता लगेगा और मैं भी अंकल की तरह अनाड़ी रह जाऊँगा। बताइए ना..!’
‘तू और तेरे अंकल दोनों एक से हैं। मेरे मुँह से सब कुछ सुन कर तुझे ख़ुशी मिलेगी?’
‘हाँ.. आंटी बहुत ख़ुशी मिलेगी और फिर मैं कोई पराया हूँ।’
‘ऐसा मत बोल राज… तेरी ख़ुशी के लिए मैं वही करूँगी जो तू कहेगा।’
‘तो फिर साफ-साफ बताईए आपका क्या मतलब था।’
‘मेरे बुद्धू भतीजे जी, मेरा मतलब यह था कि मर्द का वो बहुत तगड़ा होता है औरत की नाज़ुक कच्छी उसे कैसे झेल पाएगी? और अगर वो खड़ा हो गया तब तो फट ही जाएगी ना।’
‘आंटी आपने ‘वो… वो’ क्या लगा रखी है, मुझे तो कुछ नहीं समझ आ रहा।’
‘अच्छा अगर तू बता दे उसे क्या कहते है तो मैं भी बोल दूँगी।’ आंटी ने लजाते हुए कहा।
‘आंटी मर्द के उसको लंड कहते हैं।’
‘हाँ… मेरा भी मतलब यही था।’
‘क्या मतलब था आपका?’
‘कि तेरा लंड मेरी कच्छी को फाड़ देगा। अब तो तू खुश है ना?’
‘हाँ आंटी बहुत खुश हूँ। अब ये भी बता दीजिए कि आपकी टांगों के बीच में जो है, उसे क्या कहते हैं।’
‘उसे..! मुझे तो नहीं पता.. ऐसी चीज़ें तो तुझे ही पता होती हैं, तू ही बता दे।’
‘आंटी उसे चूत कहते हैं।’
‘हाय.. तुझे तो शर्म भी नहीं आती… वही कहते होंगे।’
‘वही क्या आंटी?’
‘ओह हो.. बाबा, चूत और क्या।’ आंटी के मुँह से लंड और चूत जैसे शब्द सुन कर मेरा लंड फनफनाने लगा। अब तो मेरी हिम्मत और बढ़ गई।
मैंने आंटी से कहा- आंटी, इसी चूत की तो दुनिया इतनी दीवानी है।
‘अच्छा जी तो भतीजे जी भी इसके दीवाने हैं।’
‘हाँ मेरी प्यारी आंटी किसी की भी चूत का नहीं सिर्फ़ आपकी चूत का दीवाना हूँ।’
‘तुझे तो बिल्कुल भी शर्म नहीं है। मैं तेरी आंटी हूँ।’ आंटी झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोलीं।
‘अगर मैं आपको एक बात बताऊँ तो आप बुरा तो नहीं मानेंगी?’
‘नहीं राज… भतीजे-आंटी के बीच तो कोई झिझक नहीं होनी चाहिए और अब तो तूने मेरे मुँह से सब कुछ कहलवा दिया है, लेकिन मेरी कच्छी तो वापस कर दे।’
‘सच कहूँ आंटी, रोज रात को उसे सूंघता हूँ तो आपकी चूत की महक मुझे मदहोश कर डालती है। जब मैं अपना लंड आपकी कच्छी से रगड़ता हूँ तो ऐसा लगता है जैसे लंड आपकी चूत से रगड़ रहा हो।’
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06-25-2017, 12:21 PM,
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RE: Antarvasnasex आंटी के साथ मस्तियाँ
‘ओह.. अब समझी भतीजे जी मेरी कच्छी के पीछे क्यों पागल हैं.. इसीलिए तो कहती हूँ तुझे एक सुन्दर सी बीवी की जरूरत है।’
‘लेकिन मैं तो अनाड़ी हूँ। आपने तो वादा करके भी कुछ नहीं बताया। उस दिन आप कह रही थीं कि मर्द अनाड़ी हो तो लड़की को सुहागरात में बहुत तकलीफ़ होती है। आपका क्या मतलब था? आपको भी तकलीफ़ हुई थी?’
‘हा राज, तेरे अंकल अनाड़ी थे। सुहागरात को मेरी साड़ी उठा कर बिना मुझे गर्म किए चोदना शुरू कर दिया। अपने 8′ लम्बे और 3′ मोटे लंड से मेरी कुँवारी चूत को बहुत ही बेरहमी से चोदा। बहुत खून निकला मेरी चूत से। अगले एक महीने तक दर्द होता रहा।’
मेरा लंड देखने के बाद से आंटी काफ़ी उत्तेजित हो गई थी और बिल्कुल ही शरमाना छोड़ दिया था।
‘लड़की को गर्म कैसे करते हैं आंटी?’
‘पहले प्यार से उससे बातें करते हैं। फिर धीरे-धीरे उस के कपड़े उतारते हैं। उसके बदन को सहलाते हैं। उसकी होंठों को और चूचियों को चूमते हैं, फिर प्यार से उसकी चूचियों और चूत को मसलते हैं। फिर हल्के से एक ऊँगली उसकी चूत में सरका कर देखते हैं कि लड़की की चूत पूरी तरह गीली है। अगर चूत गीली है, इसका मतलब लड़की चुदने के लिए तैयार है। इसके बाद प्यार से उसकी टाँगें उठा कर धीरे-धीरे लंड अन्दर डाल देते हैं। पहली रात ज़ोर-ज़ोर से धक्के नहीं मारते।’
‘आंटी उस फिल्म में तो वो कालू उस लड़की की चूत चाटता है, लड़की भी लंड चूसती है। कालू उस लड़की को कई तरह से चोदता है। यहाँ तक की उसकी गाण्ड भी मारता है।’
‘अरे बुद्धू, ये सब पहली रात को नहीं किया जाता, धीरे-धीरे किया जाता है।’
‘आंटी, अंकल भी वो सब आपके साथ करते हैं?’
‘नहीं रे.. तेरे अंकल अनाड़ी थे और अब भी अनाड़ी हैं। उनको तो सिर्फ़ टाँगें उठा कर पेलना आता है। अक्सर तो पूरी तरह नंगी किए बिना ही चोदते हैं। औरत को मज़ा तो पूरी तरह नंगी हो कर ही चुदवाने में आता है।’
‘आंटी आपको नंगी हो कर चुदवाने मे बहुत मज़ा आता है?’
‘क्यों मैं औरत नहीं हूँ? अगर मोटा तगड़ा लंड हो और चोदने वाला नंगी करके प्यार से चोदे तो बहुत ही मज़ा आता है।’
‘लेकिन अंकल का लंड तो मोटा-तगड़ा होगा। पर.. हाँ मेरे लंड की बराबरी नहीं कर सकता है।’
‘तुझे कैसे पता?’
‘मुझे तो नहीं पता, लेकिन आप तो बता सकती हैं।’
‘मैं कैसे बता सकती हूँ? मैंने तेरा लंड तो नहीं देखा है।’ आंटी ने बनते हुए कहा।
मैं मन ही मन मुस्कराया और बोला- तो क्या हुआ आंटी.. कहो तो अभी आपको अपने लंड के दर्शन करा देता हूँ, आप नाप लो किसका बड़ा है।’
‘हट बदमाश..!’
‘अगर आप दर्शन नहीं करना चाहती तो कम से कम मुझे तो अपनी चूत के दर्शन एक बार करवा दीजिए। सच आंटी मैंने आज तक किसी की चूत नहीं देखी।’
‘चल नालायक.. तेरी शादी जल्दी करवा दूँगी… इतना उतावला क्यों हो रहा है।’
‘उतावला क्यों ना होऊँ? मेरी प्यारी आंटी को अंकल सारी-सारी रात खूब जम कर चोदें और मेरी किस्मत में उनकी चूत के दर्शन तक ना हो। इतनी खूबसूरत आंटी की चूत तो और भी लाजवाब होगी। एक बार दिखा दोगी तो घिस तो नहीं जाओगी। अच्छा, इतना तो बता दो कि आपकी चूत भी उतनी ही चिकनी है जितनी फिल्म में उस लड़की की थी?’
‘नहीं रे, जैसे मर्दों के लंड के चारों तरफ बाल होते हैं वैसे ही औरतों की चूत पर भी बाल होते हैं। उस लड़की ने तो अपने बाल शेव कर रखे थे।’
‘आंटी तब तो जितने घने और सुन्दर बाल आपके सिर पर है उतने ही घने बाल आपकी चूत पर भी होंगे? आप अपनी चूत के बाल शेव नहीं करती?’
‘तेरे अंकल को मेरी झांटें बहुत पसंद हैं इसलिए शेव नहीं करती।’
‘हाय आंटी.. आपकी चूत की एक झलक पाने के लिए कब से पागल हो रहा हूँ और कितना तड़पाओगी?’
‘सबर कर, सबर कर… सबर का फल हमेशा मीठा होता है।’ यह कह कर बारे ही कातिलाना अंदाज में मुस्कराती हुई नीचे चली गईं।
मेरे लंड के दुबारा दर्शन करने के बाद से तो आंटी का काफ़ी बुरा हाल था।
एक दिन मैंने उनके कमरे में मोटा सा खीरा देखा। मैंने उसे सूंघ कर देखा तो खीरे में से भी वैसी ही महक आ रही थी जैसी आंटी की कच्छी में से आती थी। लगता था आंटी खीरे से ही चूत की भूख मिटाने की कोशिश कर रही थीं।
मुझे मालूम था की गंदी पिक्चर भी वो कई बार देख चुकी थीं। अंकल को गए हुए तीन महीने बीत गए थे।
घर में मोटा-ताज़ा लंड मौज़ूद होने के बावज़ूद भी आंटी लंड की प्यास में तड़प रही थीं।
मैंने एक और प्लान बनाया। बाज़ार से एक हिन्दी का बहुत ही कामुक उपन्यास लाया जिसमें भतीजे-आंटी की चुदाई के किस्से थे। उस उपन्यास में आंटी अपने भतीजे को रिझाती है। वो जानबूझ कर कपड़े धोने इस प्रकार बैठती है कि उसके पेटीकोट के नीचे से भतीजे को उसकी चूत के दर्शन हो जाते हैं। ये उपन्यास मैंने ऐसी जगह रखा, जहाँ आंटी के हाथ लग जाए।
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06-25-2017, 12:21 PM,
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RE: Antarvasnasex आंटी के साथ मस्तियाँ
एक दिन जब मैं कॉलेज से वापस आया तो मैंने पाया कि वो उपन्यास अपनी जगह पर नहीं था। मैं जान गया कि आंटी वो उपन्यास पढ़ चुकी हैं।
अगले इतवार को मैंने देखा कि आंटी कपड़े गुसलखाने में धोने के बजाय बरामदे के नलके पर धो रही थीं। उन्होंने सिर्फ़ ब्लाउस और पेटीकोट पहन रखा था।
मुझे देख कर बोलीं- आ राज बैठ… तेरे कोई कपड़े धोने है तो देदे।
मैंने कहा- मेरे कोई कपड़े नहीं धोने हैं।
मैं आंटी के सामने बैठ गया। आंटी इधर-उधर की गप्पें मारती रहीं। अचानक आंटी के पेटीकोट का पिछला हिस्सा नीचे सरक गया।
सामने का नज़ारा देख कर तो मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई।
आंटी की गोरी-गोरी माँसल जाँघों के बीच में से सफेद रंग की कच्छी झाँक रही थी। आंटी जिस अंदाज में बैठी हुई थीं उसके कारण कच्छी आंटी की चूत पर बुरी तरह कसी हुई थी।
फूली हुई चूत का उभार मानो कच्छी को फाड़ कर आज़ाद होने की कोशिश कर रहा हो। कच्छी चूत के कटाव में धँसी हुई थी। कच्छी के दोनों तरफ से काली-काली झांटें बाहर निकली हुई थीं।
मेरे लंड ने हरकत करनी शुरू कर दी। आंटी मानो बेख़बर हो कर कपड़े धोती जा रही थीं और मुझसे गप्पें मार रही थीं।
अभी मैं आंटी की टांगों के बीच के नज़ारे का मज़ा ले ही रहा था कि वो अचानक उठ कर अन्दर जाने लगीं।
मैंने उदास होकर पूछा- आंटी कहाँ जा रही हो?’
‘बस एक मिनट में आई…’
थोड़ी देर में वो बाहर आईं। उनके हाथ में वही सफेद कच्छी थी जो उन्होंने अभी-अभी पहनी हुई थी।
आंटी फिर से वैसे ही बैठ कर अपनी कच्छी धोने लगी। लेकिन बैठते समय उन्होंने पेटीकोट ठीक से टांगों के बीच दबा लिया।
यह सोच कर कि पेटीकोट के नीचे अब आंटी की चूत बिल्कुल नंगी होगी मेरा मन डोलने लगा। मैं मन ही मन दुआ करने लगा कि आंटी का पेटीकोट फिर से नीचे गिर जाए। शायद ऊपर वाले ने मेरी दुआ जल्दी ही सुन ली।
आंटी का पेटीकोट का पिछला हिस्सा फिर से नीचे गिर गया। अब तो मेरे होश ही उड़ गए। उनकी गोरी-गोरी मांसल टाँगें साफ नजर आने लगीं।
तभी आंटी ने अपनी टांगों को फैला दिया और अब तो मेरा कलेजा ही मुँह में आ गया।
आंटी की चूत बिल्कुल नंगी थी।
गोरी-गोरी सुडौल जाँघों के बीच में उनकी चूत साफ नजर आ रही थी। पूरी चूत घने काले बालों से ढकी हुई थी, लेकिन चूत की दोनों फांकों और बीच का कटाव घनी झांटों के पीछे से नजर आ रहा था।
चूत इतनी फूली हुई थी और उसका मुँह इस प्रकार से खुला हुआ था, मानो अभी-अभी किसी मोटे लंड से चुदी हो।
आंटी कपड़े धोने में ऐसे लगी हुई थीं मानो उन्हें कुछ पता ही ना हो।
मेरे चेहरे की ओर देख कर बोलीं- क्या बात है रामू, तेरा चेहरा तो ऐसे लग रहा है जैसे तूने साँप देख लिया हो?
मैं बोला- आंटी साँप तो नहीं… लेकिन साँप जिस बिल में रहता है उसे जरूर देख लिया।
‘क्या मतलब? कौन से बिल की बात कर रहा है?’
मेरी आँखें आंटी की चूत पर ही जमी हुई थीं।
‘आंटी आपकी टांगों के बीच में जो साँप का बिल है ना.. मैं उसी की बात कर रहा हूँ।’
‘हाय..उई दैया.. बदमाश.. इतनी देर से तू ये देख रहा था? तुझे शर्म नहीं आई अपनी आंटी की टांगों के बीच में झाँकते हुए?’
यह कह कर आंटी ने झट से टाँगें नीचे कर लीं।
‘आपकी कसम आंटी इतनी लाजवाब चूत तो मैंने किसी फिल्म में भी नहीं देखी। अंकल कितनी किस्मत वाले हैं। लेकिन आंटी इस बिल को तो एक लम्बे मोटे साँप की जरूरत है।’
आंटी मुस्कुराते हुए बोलीं- कहाँ से लाऊँ उस लम्बे मोटे साँप को
‘मेरे पास है ना एक लम्बा मोटा साँप। एक इशारा करो, सदा ही आपके बिल में रहेगा।’
‘हट नालायक…’ ये कह कर आंटी कपड़े सुखाने छत पर चली गईं।
ज़ाहिर था कि ये करने का विचार आंटी के मन में उपन्यास पढ़ने के बाद ही आया था।
अब तो मुझे पूरा विश्वास हो गया कि आंटी मुझसे चुदवाना चाहती हैं।
मैं मौके की तलाश में था जो जल्दी ही हाथ आ गया।
तीन दिन बाद कॉलेज में बॉडी-बिल्डिंग की प्रतियोगिता थी। मैंने खूब कसरत और मालिश करनी शुरू कर दी थी।
आंटी भी मुझे अच्छी खुराक खिला रही थीं।
एक दिन आंटी नहा रही थीं और मैं अपने कमरे में मालिश कर रहा था। मैंने सिर्फ़ अंडरवियर पहन रखा था, इतने में आंटी नहा कर कमरे में आ गईं।
वो पेटीकोट और ब्लाउज में थीं।
मैंने आंटी से कहा- आंटी ज़रा पीठ की मालिश कर दोगी?
आंटी बोलीं- हाँ… हाँ.. क्यों नहीं, चल लेट जा।
मैं चटाई पर पेट के बल लेट गया। आंटी ने हाथ में तेल ले कर मेरी पीठ पर लगाना शुरू कर दिया।
आंटी के मुलायम हाथों का स्पर्श बहुत अच्छा लग रहा था।
पीठ पर मालिश करने के बाद चलने को हुई तो मैं बोला- कर ही रही हो तो पूरे बदन की मालिश कर दो ना… आपके हाथ की मालिश होने पर मैं ज़रूर बॉडी-बिल्डिंग प्रतियोगिता में जीत जाऊँगा।
‘ठीक है कर देती हूँ, चल उल्टा हो कर लेट जा।’
मैं पीठ के बल लेट गया। आंटी ने पहले मेरे हाथों की मालिश की और फिर टाँगों की शुरू कर दी।
जैसे-जैसे मेरी जांघों के पास पहुँची, मेरी दिल की धड़कन तेज़ होने लगी।
मेरा लंड धीरे-धीरे हरकत करने लगा।
अब आंटी पीठ पर और लंड के चारों तरफ जांघों पर मालिश करने लगीं।
मेरा लंड बुरी तरह से फनफनाने लगा। ढीले लंड से भी अंडरवियर का ख़ासा उभार होता था। अब तो यह उभार फूल कर दुगना हो गया।
आंटी से यह छुपा नहीं था और उनका चेहरा उत्तेजना से लाल हो गया था।
कनखियों से उभार को देखते हुए बोलीं- राज, लगता है तेरा अंडरवियर फट जाएगा.. क्यों क़ैद कर रखा है बेचारे पंछी को.. आज़ाद कर दे…! और यह कह कर खिलखिला कर हँस पड़ीं।
‘आप ही आज़ाद कर दो ना आंटी इस पंछी को… आपको दुआएँ देगा।’
‘ठीक है मैं इसे आज़ादी देती हूँ।’ ये कहते हुए आंटी ने मेरा अंडरवियर नीचे खींच दिया।
अंडरवियर से आज़ाद होते ही मेरा 8 इंच लम्बा और 3 इंच मोटा लंड किसी काले कोबरा की तरह फनफना कर खड़ा हो गया।
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06-25-2017, 12:21 PM,
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RE: Antarvasnasex आंटी के साथ मस्तियाँ
आंटी के तो होश ही उड़ गए। चेहरे की हँसी एकदम गायब हो गई, उनकी आँखें फटी की फटी रह गईं। मैंने पूछा- क्या हुआ आंटी? घबराई हुई सी लगती हो।’
‘बाप रे… ये लंड है या मूसल..! किसी घोड़े का लंड तो नहीं लगा लिया..? और ये अमरूद..! उस साण्ड के भी इतने बड़े नहीं थे।’
‘आंटी इसकी भी मालिश कर दो ना।’ आंटी ने ढेर सा तेल हाथ में लेकर खड़े हुए लंड पर लगाना शुरू कर दिया, बड़े ही प्यार से लंड की मालिश करने लगीं।
‘राज तेरा लंड तो तेरे अंकल से कहीं ज़्यादा बड़ा है… सच तेरी बीवी बहुत ही किस्मत वाली होगी… एक लम्बा-मोटा लंड औरत को तृप्त कर देता है। तेरा तो…!’
‘आंटी आप किस बीवी की बात कर रही हैं? इस लंड पर सबसे पहला अधिकार आपका है।’
‘सच.. देख राज, मोटे-तगड़े लंड की कीमत एक औरत ही जानती है। इसको मोटा-तगड़ा बनाए रखना। जब तक तेरी शादी नहीं होती मैं इसकी रोज़ मालिश कर दूँगी।’
‘आप कितनी अच्छी हैं आंटी, वैसे आंटी इतने बड़े लंड को लवड़ा कहते हैं।’
‘अच्छा बाबा, लवड़ा.. सुहागरात को बहुत ध्यान रखना। तेरी बीवी की कुँवारी चूत का पता नहीं क्या हाल हो जाएगा। इतना मोटा और लम्बा लौड़ा तो मेरे जैसों की चूत भी फाड़ देगा।’
‘यह आप कैसे कह सकती हैं? एक बार इसे अपनी चूत में डलवा के तो देखिए।’
‘हट नालायक।’ आंटी बड़े प्यार से बहुत देर तक लंड की मालिश करती रहीं। जब मुझसे ना रहा गया तो बोला- आंटी आओ मैं भी आपकी मालिश कर दूँ।’
‘मैं तो नहा चुकी हूँ।’
‘तो क्या हुआ आंटी मालिश कर दूँगा तो सारी थकावट दूर हो जाएगी, चलिए लेट जाइए।’
आंटी को मर्द का स्पर्श हुए तीन महीने हो चुके थे, वो थोड़े नखरे करने के बाद मान गईं और पेट के बल चटाई पर लेट गईं।
‘आंटी ब्लाउज तो उतार दो.. तेल लगाने की जगह कहाँ है, अब शरमाओ मत.. याद है ना.. मैं आपको नंगी भी देख चुका हूँ।’
आंटी ने अपना ब्लाउज उतार दिया। अब वो काले रंग के ब्रा और पेटीकोट में थीं।
मैं आंटी की टाँगों के बीच में बैठ कर उनकी पीठ पर तेल लगाने लगा। चूचियों के आस-पास मालिश करने से वो उत्तेजित हो जाती थीं।
फिर मैंने ब्रा का हुक खोल दिया और बड़ी-बड़ी चूचियों को मसलने लगा। आंटी के मुँह से सिसकारी निकलने लगीं। वो आँखें मूंद कर लेटी रहीं।
खूब अच्छी तरह चूचियों को मसलने के बाद मैंने उनकी टाँगों पर तेल लगाना शुरू कर दिया।
जैसे-जैसे तेल लगाता जा रहा था, पेटीकोट को ऊपर की ओर खिसकाता जा रहा था। मेरा अंडरवियर मेरी टाँगों में फंसा हुआ था, मैंने उसे उतार फेंका।
आंटी की गोरी-गोरी मोटी जांघों के बीच में बैठ कर बड़े प्यार से मालिश की।
धीरे-धीरे मैंने पेटीकोट आंटी के नितंबों के ऊपर सरका दिया। अब मेरे सामने आंटी के विशाल चूतड़ थे।
आंटी ने छोटी सी जालीदार नाइलॉन की पारदर्शी काली कच्छी पहन रखी थी जो कुछ भी छुपा पाने में असमर्थ थी।
ऊपर से आंटी के चूतड़ों की आधी दरार कच्छी के बाहर थी, फैले हुए मोटे चूतड़ करीब पूरे ही बाहर थे।
चूतड़ों के बीच में कच्छी के दोनों तरफ से बाहर निकली हुई आंटी की लम्बी काली झाँटें दिखाई दे रही थीं।
आंटी की फूली हुई चूत के उभार को बड़ी मुश्किल से कच्छी में क़ैद कर रखा था। मैंने उन मोटे-मोटे चूतड़ों की जी भर के मालिश की, जिससे कच्छी चूतड़ों से सिमट कर बीच की दरार में फँस गई।
अब तो पूरे चूतड़ ही नंगे थे। मालिश करते-करते मैं उनकी चूत के आस-पास हाथ फेरने लगा और फिर फूली हुई चूत को मुट्ठी में भर लिया।
आंटी की कच्छी बिल्कुल गीली हो गई थी।
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RE: Antarvasnasex आंटी के साथ मस्तियाँ
‘इसस्स… आआ… क्या कर रहा है.. छोड़ दे उसे, मैं मर जाऊँगी… तू पीठ पर ही मालिश कर.. नहीं तो मैं चली जाऊँगी।’
‘ठीक है आंटी पीठ पर ही मालिश कर देता हूँ।’ मैं आंटी की टाँगों के बीच में थोड़ा आगे खिसक कर उनकी पीठ पर मालिश करने लगा।
ऐसा करने से मेरा तना हुआ लवड़ा आंटी की चूत से जा टकराया। अब मेरे तने हुए लंड और आंटी की चूत के बीच छोटी सी कच्छी थी।
आंटी की चूत का रस जालीदार कच्छी से निकल कर मेरे लंड के सुपारे को गीला कर रहा था।
मैं आंटी की चूचियों को दबाने लगा और अपने लंड से आंटी की चूत पर ज़ोर डालने लगा। लंड के दबाव के कारण कच्छी आंटी की चूत में घुसने लगी। बड़े-बड़े नितंबों से सिमट कर अब वो बेचारी कच्छी उनके बीच की दरार में धँस गई थी।
आंटी के मुँह से उत्तेजना भरी सिसकारियाँ निकलने लगीं।
मुझसे ना रहा गया और मैंने एक ज़ोरदार धक्का लगाया, मेरे लंड का सुपारा आंटी की जालीदार कच्छी को फाड़ता हुआ उनकी चूत में समा गया।
‘आआहह…ऊई… उई माँ… ऊऊफ़.. यह क्या कर दिया राज… तुझे ऐसा नहीं करना चाहिए.. छोड़ मुझे, मैं तेरी आंटी हूँ… मुझे नहीं मालिश करवानी।’
लेकिन आंटी ने हटने की कोई कोशिश नहीं की। मैंने थोड़ा सा दबाव डाल कर आधा इंच लंड और आंटी की चूत में सरका दिया।
‘अई…ऊई तेरे लवड़े ने मेरी कच्छी तो फाड़ ही दी, अब मेरी चूत भी फाड़ डालेगा।’ मेरे मोटे लवड़े ने आंटी की चूत के छेद को बुरी तरह फैला दिया था।
‘आंटी आप तो कुँवारी नहीं हैं.. आपको तो लंड की आदत है..!’
‘अई… मुझे आदमी के लंड की आदत है घोड़े के लंड की नहीं… चल निकाल उसे बाहर…।’ लेकिन आंटी को दर्द के साथ मज़ा आ रहा था।
उसने अपने चूतड़ों को हल्का सा उचकाया तो मेरा लंड आधा इंच और आंटी की चूत में सरक गया।
अब मैंने आंटी की कमर पकड़ कर एक और धक्का लगाया। मेरा लंड कच्छी के छेद में से आंटी की चूत को दो भागों में चीरता होता हुआ 5 इंच अन्दर घुस गया।
‘आआआआहह… आ….आ. मर गई… छोड़ दे राज फट जाएगी… उई…धीरे राजा… अभी और कितना बाकी है? निकाल ले राज, अपनी ही आंटी को चोद रहा है।’
मैं आंटी की चूचियों को मसलते हुए बोला- अभी तो आधा ही गया है आंटी, एक बार पूरा डालने दो, फिर निकाल लूँगा।’
‘हे राम.. तू घोड़ा था क्या पिछले जनम में… मेरी चूत तेरे मूसल के लिए बहुत छोटी है।’
मैंने धीरे-धीरे दबाव डाल कर तीन इंच और अन्दर पेल दिया।
‘आंटी, मेरी जान थोड़े से चूतड़ और ऊँचे करो ना…!’
आंटी ने अपने भारी नितंब और ऊँचे कर दिए। अब उनकी छाती चटाई पर टिकी हुई थी। इस मुद्रा में आंटी की चूत मेरा लंड पूरा निगलने के लिए तैयार थी।
अब मैंने आंटी के चूतड़ों को पकड़ कर बहुत ज़बरदस्त धक्का लगाया। पूरा 10 इन्च का लवड़ा आंटी की चूत में जड़ तक समा गया।
‘आआहह… मार डाला.. उई… अया… अ..उई… सी..आ… अया…. ओईइ.. मा…कितना जालिम है रे..आह….ऐसे चोदा जाता है अपनी आंटी को.. पूरा 10 इंच का मूसल घुसेड़ दिया..!’
आंटी की चूत में से थोड़ा सा खून भी निकल आया। अब मैं धीरे-धीरे लंड को थोड़ा सा अन्दर-बाहर करने लगा। आंटी का दर्द कम हो गया था और वो भी चूतड़ों को पीछे की ओर उचका कर लंड को अन्दर ले रही थीं।
अब मैंने भी लंड को सुपारे तक बाहर निकाल कर जड़ तक अन्दर पेलना शुरू कर दिया। आंटी की चूत इतनी गीली थी कि उसमें से ‘फ़च-फ़च’ की आवाज़ पूरे कमरे में गूंजने लगी।
‘तू तो उस साण्ड की तरह चढ़ कर चोद रहा है रे.. अपनी आंटी को… ज़िंदगी में पहली बार किसी ने ऐसे चोदा है… अया…आ..अई. ह…उई.. ओह…’
अब मैंने लंड को बिना बाहर निकाले आंटी की फटी हुई कच्छी को पूरी तरह फाड़ कर उनके जिस्म से अलग कर दिया और छल्ले की तरह कमर से लटकते हुए पेटीकोट को उतार दिया।
आंटी अब बिल्कुल नंगी थी। चूतड़ उठाए उनके चौड़े नितंब और बीच में से मुँह खोले निमंत्रण देती, काली लम्बी झाँटों से भरी चूत बहुत ही सुन्दर लग रही थी।
भारी-भारी चूतड़ों के बीच गुलाबी गाण्ड के छेद को देख कर तो मैंने निश्चय कर लिया कि एक दिन आंटी की गाण्ड ज़रूर मारूँगा।
बिल्कुल नंगी करने के बाद मैंने फिर अपना 10 इंच का लवड़ा आंटी की चूत में जड़ तक पेलना शुरू कर दिया। आंटी की चूत के रस से मेरा लंड सना हुआ था। मैंने चूत के रस में ऊँगली गीली करके आंटी की गाण्ड में सरका दी।
‘उई मा… आह …क्या कर रहा है राज?’
‘कुछ नहीं आंटी आपका यह वाला छेद दुखी था कि उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा, मैंने सोचा इसकी भी सेवा कर दूँ।’
यह कह कर मैंने पूरी ऊँगली आंटी की गाण्ड में घुसा दी।
‘आआहह…उई…अघ… धीरे भतीजे जी, एक छेद से तेरा दिल नहीं भरा जो दूसरे के पीछे पड़ा है।’ आंटी को गाण्ड में ऊँगली डलवाने में मज़ा आ रहा था।
मैंने ज़ोर-ज़ोर से धक्के मारने शुरू कर दिए।
आंटी शायद दो-तीन बार झड़ चुकी थीं क्योंकि उनकी चूत का रस बह कर मेरे अमरूदों को भी गीला कर रहा था।
15-20 धक्कों के बाद मैं भी झड़ गया और ढेर सारा माल आंटी की चूत में उड़ेल दिया।
आंटी भी इस भयंकर चुदाई के बाद पसीने से तर हो गई थीं। वीर्य उनकी चूत में से बाहर निकल कर टाँगों पर बहने लगा, आंटी निढाल होकर चटाई पर लेट गईं।
‘राज आज तीन महीने तड़पाने के बाद तूने मेरी चूत की आग को ठंडा किया है। एक दिन मैं ग़लती से तेरा ये मूसल देख बैठी थी बस उसी दिन से तेरे लंड के लिए तड़प रही थी… काश मुझे पता होता कि खड़ा होकर तो ये 10 इंच लम्बा हो जाता है।’
‘तो आंटी आपने पहले क्यों नहीं कहा। आपको तो अच्छी तरह मालूम था कि मैं आपकी चूत का दीवाना हूँ। औरत तो ऐसी बातें बहुत जल्दी भाँप जाती हैं।’
‘लेकिन मेरे राजा.. औरत ये तो नहीं कह सकती कि आओ मुझे चोदो। पहल तो मर्द को ही करनी पड़ती है और फिर मैं तो तेरी आंटी हूँ।’
‘ठीक है आंटी अब तो मैं आपको रोज़ चोदूँगा।’
‘मैं कब मना कर रही हूँ? एक बार तो तूने चोद ही दिया है, अब क्या शरमाना? इतना मोटा लम्बा लंड तो बहुत ही किस्मत से नसीब होता है। जब तक तेरी शादी नहीं हो जाती तेरे लंड का मैं ख्याल करूँगी। इसको मोटा-ताज़ा बनाए रखने के लिए मैं तेरे लंड की रोज़ मालिश कर दूँगी। अच्छा अब मुझे जाने दे मेरे राजा, तूने तो मेरी चूत का बाजा ही बजा दिया है।’
उसके बाद आंटी उठ कर नंगी ही अपने कमरे में चली गईं।
जाते समय उनके चौड़े भारी नितंब मस्ती में बल खा रहे थे। उनके मटकते हुए चूतड़ देख कर दिल किया कि आंटी को वहीं लिटा कर उनकी गाण्ड में अपना लवड़ा पेल दूँ।
अगले दिन बॉडी-बिल्डिंग की प्रतियोगिता थी। मैंने ये प्रतियोगिता इस साल फिर से जीत ली, अब मैं दूसरी बार कॉलेज का बॉडी-बिल्डिंग चैम्पियन हो गया।
मैं बहुत खुश था, घर आ कर मैंने जब आंटी को यह खबर सुनाई तो उसकी खुशी का ठिकाना ना रहा।
‘आज तो जश्न मनाने का दिन है, आज मैं तेरे लिए बहुत अच्छी-अच्छी चीज़ें बनाऊँगी। बोल तुझे क्या इनाम चाहिए?’
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