RE: Antarvasnasex आंटी के साथ मस्तियाँ
उस दिन कॉलेज से मैं जल्दी वापस आ गया, घर का दरवाज़ा अन्दर से बन्द था। मैं चुपके से अपनी खिड़की के रास्ते अपने कमरे में दाखिल हो गया।
आंटी रसोई में काम कर रही थीं। काफ़ी देर इंतज़ार करने के बाद आख़िर मेरी तपस्या रंग लाई, आंटी अपने कमरे में आईं। वो मस्ती में कुछ गुनगुना रही थीं। देखते ही देखते उन्होंने अपनी नाइटी उतार दी। अब वो सिर्फ़ आसमानी रंग की ब्रा और पैन्टी में थीं।
मेरा लंड हुंकार भरने लगा।
क्या बला की सुन्दर थीं। गोरा बदन, पतली कमर और उसके नीचे फैलते हुए भारी चूतड़ और मोटी जांघें किसी नामर्द का भी लंड खड़ा कर दें।
आंटी की बड़ी-बड़ी चूचियाँ तो ब्रा में समा नहीं पा रही थीं।
फिर वही छोटी सी पैन्टी, जिसने मेरी रातों की नींद उड़ा रखी थी, आंटी के भारी चूतड़ उनकी पैन्टी से बाहर निकल रहे थे, दोनों चूतड़ों का एक चौथाई से भी कम भाग पैन्टी में था। बेचारी पैन्टी आंटी के चूतड़ों के बीच की दरार में घुसने की कोशिश कर रही थी।
उनकी जांघों के बीच में पैन्टी से ढकी फूली हुई चूत का उभार तो मेरे दिल-ओ-दिमाग़ को पागल बना रहा था।
मैं साँस थामे इंतज़ार कर रहा था कि कब आंटी पैन्टी उतारें और मैं उनकी चूत के दर्शन करूँ। आंटी शीशे के सामने खड़ी होकर अपने को निहार रही थीं, उनकी पीठ मेरी तरफ थी।
अचानक आंटी ने अपनी ब्रा और फिर पैन्टी उतार कर वहीं ज़मीन पर फेंक दी।
अब तो उनके नंगे चौड़े और गोल-गोल चूतड़ देख कर मेरा लंड बिल्कुल झड़ने वाला हो गया।
मैंने मन में सोचा कि अंकल ज़रूर आंटी की चूत पीछे से भी लेते होंगे और क्या कभी अंकल ने आंटी की गाण्ड मारी होगी?
मुझे ऐसी लाजवाब औरत की गाण्ड मिल जाए तो मैं स्वर्ग जाने से भी इन्कार कर दूँ।
लेकिन मेरी आज की योजना पर तब पानी फिर गया, जब आंटी बिना मेरी तरफ़ घूमे गुसलखाने में नहाने चली गईं।
उनकी ब्रा और पैन्टी वहीं ज़मीन पर पड़ी थी।
मैं जल्दी से आंटी के कमरे में गया और उनकी पैन्टी उठा लाया।
मैंने उनकी पैन्टी को सूँघा।
आंटी की चूत की महक इतनी मादक थी कि मेरा लंड और ना सहन कर सका और झड़ गया।
मैंने उस पैन्टी को अपने पास ही रख लिया और आंटी के बाथरूम से बाहर निकलने का इंतज़ार करने लगा।
सोचा जब आंटी नहा कर नंगी बाहर निकलेगीं तो उनकी चूत के दर्शन हो ही जाएँगे।
लेकिन किस्मत ने फिर साथ नहीं दिया, आंटी जब नहा कर बाहर निकलीं तो उन्होंने काले रंग की पैन्टी और ब्रा पहन रखी थी।
आंटी कमरे में अपनी पैन्टी गायब पाकर सोच में पड़ गईं।
अचानक उन्होंने जल्दी से नाइटी पहन ली और मेरे कमरे की तरफ आईं, शायद उन्हें शक हो गया कि यह काम मेरे अलावा और कोई नहीं कर सकता।
मैं झट से अपने बिस्तर पर ऐसे लेट गया जैसे नींद में हूँ।
आंटी मुझे कमरे में देखकर सकपका गईं।
मुझे हिलाते हुए बोलीं- राज उठ… तू अन्दर कैसे आया?
मैंने आँखें मलते हुए उठने का नाटक करते हुए कहा- क्या करूँ आंटी आज कॉलेज जल्दी बन्द हो गया, घर का दरवाज़ा बन्द था बहुत खटखटाने पर जब आपने नहीं खोला तो मैं अपनी खिड़की के रास्ते अन्दर आ गया।
‘तू कितनी देर से अन्दर है?’
‘यही कोई एक घंटे से।’
अब तो आंटी को शक हो गया कि शायद मैंने उन्हें नंगी देख लिया था और फिर उनकी पैन्टी भी तो गायब थी।
आंटी ने शरमाते हुए पूछा- कहीं तूने मेरे कमरे से कोई चीज़ तो नहीं उठाई?
‘अरे हाँ आंटी.. जब मैं आया तो मैंने देखा कि कुछ कपड़े ज़मीन पर पड़े हैं। मैंने उन्हें उठा लिया।’
आंटी का चेहरा सुर्ख हो गया, हिचकिचाते हुए बोलीं- वापस कर मेरे कपड़े।
मैं तकिये के नीचे से आंटी की पैन्टी निकालते हुए बोला- आंटी, यह तो अब मैं वापस नहीं दूँगा।
‘क्यों अब तू औरतों की पैन्टी पहनना चाहता है?’
‘नहीं आंटी…’ मैं पैन्टी को सूंघता हुआ बोला- इसकी मादक खुश्बू ने तो मुझे दीवाना बना दिया है।
‘अरे पगला है? यह तो मैंने कल से पहनी हुई थी… धोने तो दे।’
‘नहीं आंटी धोने से तो इसमें से आपकी महक निकल जाएगी… मैं इसे ऐसे ही रखना चाहता हूँ।’
‘धत्त पागल… अच्छा तू कब से घर में है?’ आंटी शायद जानना चाहती थीं कि कहीं मैंने उनको नंगी तो नहीं देख लिया।
मैंने कहा- आंटी मैं जानता हूँ कि आप क्या जानना चाहती हैं… मेरी ग़लती क्या है, जब मैं घर आया तो आप बिल्कुल नंगी शीशे के सामने खड़ी थीं लेकिन आपको सामने से नहीं देख सका। सच कहूँ आंटी, आप बिल्कुल नंगी होकर बहुत ही सुन्दर लग रही थीं। पतली कमर, भारी और गोल-गोल मस्त चूतड़ और गदराई हुई जांघें देख कर तो बड़े से बड़े ब्रह्मचारी की नियत भी खराब हो जाए।
आंटी शर्म से लाल हो उठीं।
‘हाय राम तुझे शर्म नहीं आती… कहीं तेरी भी नियत तो नहीं खराब हो गई है?’
‘आपको नंगी देख कर किसकी नियत खराब नहीं होगी?’
‘हे भगवान, आज तेरे अंकल से तेरी शादी की बात करनी ही पड़ेगी।’
इससे पहले मैं कुछ और कहता वो अपने कमरे में भाग गईं।
अंकल को 6 महीने के लिए किसी ट्रेनिंग के लिए मुंबई जाना था, आज उनका आखिरी दिन था, आज रात को तो आंटी की चुदाई निश्चित ही होनी थी।
रात को आंटी नींद आने का बहाना बना कर जल्दी ही अपने कमरे में चली गईं।
उनके कमरे में जाते ही लाइट बंद हो गई, मैं समझ गया कि चुदाई शुरू होने में अब देर नहीं।
मैं एक बार फिर चुपके से आंटी के दरवाज़े पर कान लगा कर खड़ा हो गया, अन्दर से मुझे अंकल-आंटी की बातें साफ सुनाई दे रही थीं।
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