Antarvasnax काला साया – रात का सूपर हीरो
09-17-2021, 01:07 PM,
#57
RE: Antarvasnax काला साया – रात का सूपर हीरो
(UPDATE-61)

खलनायक सिगरेट सुलगते हुए…अपने नक़ाब को थोड़ा ऊपर उठाकर होठों के बीच सिगरेट सुलगाए काश ले रहा था…इतने में ऊस्की निगाह निशानेबाज़ पे पड़ी जिसका मुँह चोटों से सूज गया था…और अकेले खड़ा था….”हां हां हां एक पुलिसवाला तुमसब् पर भारी कानून कब से तुम्हारी मां चोदने लगा”……खलनायक ने उठके माधुरी डिक्सिट का गाना चोली के पीछे क्या है ? सुनते हुए मुस्कुराकर निशनीबाज़ की ओर देखा…जो चुपचाप आँखें झुकाए खड़ा था

“क्या? यही काम के लिए भेजा था”………खलनायक ने सिगरेट को पाओ के नीचे दबाते हुए कहा

“आपने आर्डर दिया था वरना ऊस साले को तो मैंने तीर से चली कर देता”……खलनायक ने आगे आकर उसके चेहरे पे एक थप्पड़ रसीद दिया ऐसा पहली बार हुआ था..चट्टकक के इयवाज़ सुन पास खड़े गुंडे सहम गये…निशनीबाज़ के आंखों से आँसू का कटरा निकल गया

“हरंखोर मां छुड़ाने के लिए अपना बॉडीगार्ड बनाया है तुझे”…..खलनायक गुस्से में उसके माथे पे उंगली मारते हुए बोला..”भेजे में कुछ समझ नहीं आता मादरचोद गान्डू”…..खलनायक का गुस्सा उबाल सा गया था

खलनायक : पहले तो ऊस लौंडिया रोज़ को नहीं मर पाए वो हरामी का बीज बीच में आ गया फिर उसके पकड़ने भेजा तो बेटीचोड़ अपनी गान्ड मरवके आ गये तो अकेला तुम सब पे भारी उसका इतना मोटा लंड था जो तुम लोग ऊस्की लेने के लिए अपनी टाँगें खोल के लाइट गये…बोल्लो हरामजादो

खलनायक पहले कभी इतना गुस्सा नहीं हुआ था..ब्ड से यहां आने के बाद आज पहल इबार उसे अपने शिकार से नाकामयाबी हासिल हो रही थी…”अफ मैं भी कितना पागल हूँ काश ये काम काला लंड को देता…तुझे बस तीर चलाने ही आता है…”………खलान्यक कमर पे हाथ रखकर सोच ही रहा था

निशानेबाज़ : भैईई मैंने उसके गर्दन और बदन पे तीर चला दी थी वो साला घाया लज़रूर हुआ है..अगर उसे इलाज़ ना मिला तो मरने की गारंटी पक्की एक बार और चान्स दो भैईई

खलनायक : हम नानचाकू चलता है अकेले ही फुरती से हुनर से तुझे हरा दिया मामूली आदमी नहीं होगा वो जो रोज़ जैसी सुपेरहेरोइने का साथ दे रहा है पक्का कुछ गड़बड़ है एक पुलिस इंस्पेक्टर इतना तेज इतना फुर्तीला इतना हुनरबाज़ ना हो ही नहीं सकता जो निशनीबाज़ का निशाना रोक दे…आज तक जिसके भी ऊपर तूने तीर छोडा गर्दन से आर पार हुई है उसके और तू एक मामूली इंस्पेक्टर हम

खलनायक सोचते हुए मुस्कुराता है…”चल ठीक है आज तेरी इस गुस्तकी को मांफ की पर तुझे नेक्स्ट चान्स नहीं मिलेगा”…..निशानेबाज़ जैसे बच्चों की तरह मिन्नटें करने लगा “पार भैईई प्लीज़ सिर्फ़ एककक”……खलनायक ने उसे गुस्से भारी निगाह दिखाई “बार बार नाकामयाबी हमें काटतायी पसंद नहीं जा मां छुड़ा अब”………खलनायक की बातों को सुनकर निशानेबाज़ हॉल से बाहर चला गया

खलनायक : आए ऊस इंस्पेक्टओए पे नज़र रखना और हाँ वॉ नयी मीटिंग कब की है वृंदमुनई मात में नेक्स्ट मीटिंग होनी चाहिए रात 12 बजे सुना है वो गर्दन 2 सालों से बंद पड़ा है अरेंज करो और अपने डीलर को कॉल करो (अपने आदमियों को कहते हुए सबने ठीक है भाई बोला)

उधर रोज़ अपने बिस्तर पे आँख मंडी पड़ी थी…उसके ज़ुल्फो से उसका चेहरा धक्का था पर ऊस्की निगाहें साफ सोच में दुबई थी….उसका एक तरफ मुखहोटा पड़ा हुआ था…आज देवश की बात ने उसे कही न्ना कहीं तोड़ डाला था…तो क्या इसलिए ऊसने चोरी चाकरी छोढ़के ईमान का रास्ता अपनाया ताकि ज़ुल्मो से पीछे हटे…ना अब वो इस लाइन में आ चुकी थी…उसे ही कुछ अकेले अब करना था..शातिर तो हत इचोरी के टाइम भी ऊसने अकेले ही सबकुछ हैंडिल किया तो अब क्यों नहीं

रोज़ : हम आज रात को नींद तो नहीं आनेवाली मुझे देवश को शर्मिंदगी उठानी पड़ी उसका बदला मैं ऊस कमीने खलनायक से लेकर रहूंगीइ और इसका सिस्टम मुझे पता है कैसे करना है पुरानी रोज़ का दिमाग चलना होगा…(सोच की कस्माकश में दुबई रोज़ एकदम से मुस्कान भरने लगी)

रोज़ : एस्स पहले ये आइडिया कायु नहीं आया? पार मैं अब अकेली थोड़ी ना हूँ उसके साथ दगाबाजी नहीं कर सकतीी क्या सोचा देवश मेरे बार्िएन में ? नहीं ये सब उसके लिए ही तो है अब बेटा खलनायक तू बचेगा नहीं

रोज़ उठके अपने मुखहोते को पहन लेती है…और पास रखी पनचिंग बैग पे पूंछ मार्ण एलगती है…

उधर नींद की आगोश से जब टूटा…तो देखता हूँ कंचन कार्रहते भर रही इहा इसाली का चर्विदार बदन आंखों में जैसे घूम रहा है….”काश एक बार रगड़ सकता छी छी देवश ये क्या सोच रहा है? जिसने तेरे लिए इतना किया उसके साथ पर तूने कर भी तो रखा है नहीं भाई रिस्क नहीं ले विधवा बन चुकी है क्या पता गलत सोचे”………देवश अपने लंड से लड़ने कहा पर ऊस्की औकवाद बैठने का नाम नहीं ले रही थी

ऊसने एक बार उठके देखा तो कंचन की नीली सारी का पल्लू हाथ गया था और ऊस्की सपाट नंगी पेंट और गोल गहरी नाभी ऊपर नीचे हो रही थी उसके ब्लाउज के भीतर छुपी मोटे मोटे खरबूजे भी ऊपर नीचे साँसों की वजाहो से हो रहे थे…कथिए पे किसी तरह करवट बदले देवश अपनी आंखों से सोई कंचन के बदन को सैक रहा था

मैं धीरे धीरे बैठ से जब नीचे झाँका तो देखा की कंचन का सपाट पेंट और उसके ब्लाउज में ढकी अधखुली छातियो का दीदार हो रहा है…मैंने फौरन जैसे तैसे उठके एक बार अंगड़ाई ली पूरे बदन पे पट्टी थी…दवाई का हल्का हल्का नशा था…पर चड्डी से लंड एकदम मिसाइल की तरह खड़ा होकर सलामी दे रहा था…

तरकपन की आग में जलते हुए धीरे धीरे कथिए से नीचे उतरा…और कंचन के पास जाकर लाइत्न्े लगा….मैंने देखा कंचन गहरी साँसें ले रही है…उसी पल उसके पेंट पे हाथ फेरने लगा अफ कितना मुलायम गुदाज़ पेंट था…अगर वो जान जाए की मैं काला साया हूँ और उसे चोद भी रखा हूँ तो शायद वो मुझसे सहएमे ना और शायद चुदाया भी ले पर शायद वो मैंने तब ना पर उसके क़िस्सो से पक्का था की वो भी काला साया के साथ राजी ही थी

मैंने धीरे उसके पल्लू को एकदम दूसरी ओर फ़ेक दिया…अब वो पेटीकोट और ब्लाउज में मेरे सामने लेटी हुई थी….मैं उसके पेंट की नाभी पे उंगली घुमाने लगा…उसका सीना ज़ोर ज़ोर से ढक ढक कर रहा था ऊस्की कसमसाहट और ऊस्की ऊपर नीचे हो रही छातियो को देखकर समझ आ रहा था…मैंने फिर उसके पेंट पे ही हाथ घुमाएं रखा इतने में ऊस्की नींद टूट गयी और मुझे देखकर हड़बड़ाकर उठ बैठीी “से..अहेब आ..पे ये क्या?”…….मेरा हाथ अब भी उसके पेंट पे था

देवश : सस्सह अरे पगली बस तूने मेरी इतनी सेवा की उसी लिए तुझसे प्यार करने का दिल किया

कंचन : पर साहेब मैं आपकी नौकर हूँ आप मेरे साथ ये सब क्यों कर रहे है? आपकी हालत ठीक नहीं लाइट जाए साहेब बाहर हल्ला हुआ तो गज़ब हो जाएगा

देवश : तुम बनाएगी की मैं (मैंने हाथ उसके ब्लाउज के ऊपर रखते हुए उसके छाती पे रख दिया कंचन ने हाथ धकेलने की कोशिश की और ऊसने मेरा हाथ क़ास्सके पकड़ लिया जो उसके छातियो पे चल रहे थे)

देवश : कंचन आज तुझे एक सक्चई बताना चाहता हूँ अगर तुझमें हिम्मत है तो सुनकर घबराएगी तो नहीं

कंचन : आप कहना क्या चाहते हो?

देवश : काला साया मैं ही हूँ (कंचन एकदम से चौंके उठ बैठिी पूरी तरीके से मेरा हाथ उसके पेंट से हाथ चुका था वो मेरी ओर एकटक देखने लगी और फिर मैंने मुस्कुराकर उसे सारी दास्तान सुना दी)

कंचन मुँह पे हाथ रखकर मेरी ओर देखकर एकदम से मुस्कराने लगी..”साहेब आप तो देवता हो देवता यकीन नहीं हो रहा की आप जैसे आदमी जिसको मैं निकँमा और बुज़दिल समंझती थी आप इतने नायक दिल दिलेर निकोल्गे”………मैंने कंचन का हाथ पकड़ा और उसे शांत होने कहा

देवश : पर कंचन मैंने तो तेरे साथ किया है वो रात तो मज़बूरी में थी पर हम दोनों को मजा आय था ना

कंचन : आप भी ना

देवश : अरे तू शर्मा क्यों रही है? तेरी झांतों भारी चुत तेरे टांगों के बीच जो थी आज भी मेरे दिमाग में घूम रही है और तेरे ये ब्राउन निपल्स जो दूधु निकलते है ऊन्हें तो देखकर लगता है जैसे रस पी जाओ काश मैं तुझसे शादी कर पता

कंचन : आप तो बारे छिछोरे निकले साहेब अगर ऐसा था तो पहले आपने खुद के पहचान क्यों नहीं बताई हमें हम कौन सा शहर में ढिंढोरा पीटते

देवश : अरे पगली ऊस वक्त हालत सही नहीं थे चल कंचन अब मुझे वो करने दे जो मैं करना चाहता हूँ

कंचन पर वॉर करने लगी…पर मैंने ऊस्की एक ना सुनी और उसके ब्लाउज का हुक खोलने लगा…कंचन झेंप सी गयी थी..पर उसे यकीन नहीं हो रहा था की मैं काला साया ही हूँ..ऊसने अपनी ब्लाउज का स्तनों खोल डाला…मेरे अश्लील बातों ने उसे गरमा दिया था….फिर मैंने ऊस्की ब्रा से ही ऊस्की छातियो को दबाते हुए उसका ब्रा का हुक भी खोल डाला…फिर धीरे से ऊस्की पेटीकोट का नारा भी खिच के उतार दिया…कंचन एकदम मूर्ति की तरह अपने बदन को छूने दे रही थी उसके चेहरे शर्म से लाल हो चुके थे

मैंने जैसे ही ऊस्की पेटीकोट के नारे खोल के उसे नीचे खिसकाया..ऊस्की मांसल मोटी जांघों के बीच पैंटी के इर्द सीन इकाल्ती झांतों के गुकचे बाहर निकल आए….मैंने ऊस्की पैंटी पे मुँह रगड़ा तो कंचन वपयस लाइट गयी…मैंने ऊस्की पसीने डर महेकदर चड्डी भी खिसकाके उतार दी

“अब चल कंचन आज फिर मजे ले ले”…..कहते हुए मैंने उसके ब्रा को खोल के फ़ेक दिया…और ऊस्की सूजी झाँटो भारी चुत की फहाँको में एक उंगली डाला दी…”उईईई”…..कंचन के मुँह से सिसकने की आवाज़ निकल उठी…मैंने कंचन की चुत में उंगली कर दिया…और उसके छातियो को भरपूर तरीके से दबाने लगा…..”आहह अफ आप तो सच में वॉ हो”………कंचन कसमसाने लगी ऊसने मुझे अपने ऊपर खींच लिया और मैं उसके छातियो को चुस्सने लगा अफ कितने मोटे निपल्स थे उसे ही चूसने में पूरा टाइम लग गया था
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