Antarvasnax मेरी कामुकता का सफ़र
12-27-2021, 01:48 PM,
RE: Antarvasnax मेरी कामुकता का सफ़र
मैंने मोतीया रंग की काम वाली साडी और उस पर सफ़ेद रंग का ब्लाउज पहन लिया और अच्छे से मेकअप कर देखने लगी, आने वाले सामाजिक कार्यक्रम में ये साड़ी कैसी लगेगी. थोड़ी देर के लिए ही पहननी थी तो मैंने ब्रा भी नहीं पहना.

अभी पूरा तैयार भी नहीं हुई थी कि डोर बेल बज उठी. कौन आया होगा ये विचार करने लगी, कही अशोक कुछ भूल तो नहीं गए जो वापिस आ गए. पीप-होल से झाँका तो देखा हमारे पुराने घर का पडोसी नितिन जो अशोक का ख़ास दोस्त भी हैं, वो खड़ा हैं.

हर साल वो और अशोक साथ में होली की मस्ती करते हैं. इस साल हम नए घर पर हैं तो शायद नितिन यहाँ अशोक के साथ होली खेलने की चाहत में आया था. पर अशोक तो खुद उसके घर के उधर ही गया हुआ हैं.

मैं सोचने लगी, दरवाजा खोलू या नहीं, कही वो मुझे रंग से ना भर दे, मेरी नयी साड़ी ख़राब हो जाएगी. ना खोलू तो उसको बुरा लगेगा की वो घर आया और दरवाजा भी नहीं खोला. कोई और रास्ता नहीं था तो मैंने अब दरवाजा खोला.

नितिन: “हैप्पी होली”

मैं: “हैप्पी होली.”

नितिन: “अरे ये क्या तुमने तो होली खेली ही नहीं, हर साल तो खेलती हो.”

मैं: “मैंने तो होली खेल भी ली और फिर मैं नहा भी ली.”

नितिन: “अशोक को बाहर बुलाओ, उसको मैं लेने आया हूँ, उसके बिना होली खेलने का मजा ही नहीं आता हैं.”

मैं: “अशोक तो तुम्हारे वही गया हैं. अभी थोड़ी देर पहले ही निकला हैं.”

नितिन: “अच्छा ठीक हैं, मैं उसे वही मिलता हूँ. अब आया हूँ तो होली मना कर ही जाऊंगा. रंग तो लगवाना पड़ेगा.”

मैं: “होली का मतलब सिर्फ रंग लगान ही तो नहीं, मुँह मीठा करके भी होली मना सकते हैं. आज मुँह मीठा कर होली मना लो, अगले साल रंग लगा देना. अंदर आ जाओ, कुछ नाश्ता कर लो होली का.”

नितिन अब दरवाजे से अंदर आ गया और मैंने टेबल पर पड़े नाश्ते से कुछ खाने को कहा.

नितिन: “क्या प्रतिमा, थोड़ी बहुत होली तो मेरे साथ भी खेलनी ही पड़ेगी. वरना होली का कैसा नाश्ता!”

मैं: “अरे मैं नहा चुकी हूँ, वरना मैं मना नहीं करती होली खेलने से. तुम नाश्ता लो.”

नितिन: “अच्छा एक काम करो एक रंग से तिलक ही लगवा लो माथे पर, वो तो चलेगा?”

मैं: “अच्छा ठीक हैं, पर संभल कर, थोड़ा सा ही रंग लेना, साड़ी पर ना गिर जाये.”

नितिन: “अरे तुम चिंता मत करो.”

नितिन ने अपने साथ लाये गुलाल की थैली को अपने एक हाथ में पकड़े दूसरे हाथ को उसमे डाला. मैंने आँखों में गुलाल ना जाये इसलिये आँखें बंद कर दी और चेहरा आगे कर दिया ताकि रंग साड़ी पर ना गिरे.

वो मेरे ललाट पर एक तिलक लगाने लगा और तेजी से मेरे पुरे चेहरे पर रंग लगा दिया. मैं एक दम से दूर हटी.

मैं: “अरे ये क्या किया? सिर्फ तिलक लगाने को बोला था.”

नितिन: “अरे सूखा रंग हैं, कुछ नहीं होगा साड़ी को, धो लेना. होली बार बार थोड़े ही आएगी.”

मैं अपनी साड़ी पर गिरा थोड़ा गुलाल झटकते हुए बोली “अच्छा अब तो नाश्ता कर लो.”

नितिन: “हर साल मैं तुम्हे पक्का कलर लगाता हूँ, इसके बिना होली पूरी कैसी होगी.”

ये कहते हुए उसने जेब से एक पक्के कलर की छोटी डिबिया निकाल ली.

मैं: “नितिन, इसको अंदर रखो. पक्का रंग नहीं चलेगा.”

नितिन: “बस थोड़ा सा मुँह पर लगवा लो, जल्दी रंग उतर जाए तो कैसी होली.”
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RE: Antarvasnax मेरी कामुकता का सफ़र - by desiaks - 12-27-2021, 01:48 PM

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