Antarvasnax मेरी कामुकता का सफ़र
12-27-2021, 02:03 PM,
RE: Antarvasnax मेरी कामुकता का सफ़र
अशोक: “क्या! अभी फ़ोन लगता हूँ उस हरामी को.”

मैं: “नहीं, कोई जरुरत नहीं झगड़ा करने की.”

अशोक: “तुम झूठ तो नहीं नहीं बोल रही, बताओ फटे कपड़े.”

मैं: “कपड़े नहीं फाड़े, छीना झपटी में ब्लाउज का हुक टूट गया था. उसने मेरे साथ कुछ कर लिया होता तो?”

अशोक: “ऐसे कैसे कर लेता, बाप का माल हैं क्या. तुम बताओ क्या किया उसने, मैं उसको देख लूंगा.”

मैं: “मैं उसको कुछ करने थोड़े ही देती, उस दिन हिल स्टेशन पर डीपू को भी नहीं करने दिया था याद हैं?”

अशोक: “मैं फिर भी उससे बात करूँगा. अगली बार से वो यहाँ नहीं आएगा.”

उस वक्त तो बात आयी गयी हो गयी. कभी कभी मौन ही सबसे अच्छा उपाय होता हैं. मैंने इस होली के दिन को भुला आगे बढ़ने में ही भलाई समझी, हो सकता हैं ऐसा कुछ ना हो जो मैं समझ रही थी.

मगर अब अशोक पर भरोसा करना मुश्किल होता जा रहा था. मैं इस दुनिया से बाहर आना चाहती थी और अपने जीवन की एक नयी शुरुआत चाहती थी. मैंने शपथ ले ली कि अब मै किसी गैर मर्द के चक्कर में बिलकुल नहीं फँसूँगी.

जब एक पत्नी का भरोसा अपने पति से उठ जाता है तो एक बहुत बड़े बदलाव की जरुरत महसूस होती हैं। मैंने भी फैसला कर लिया कि मुझे अपनी ज़िन्दगी खुद जीना सीखना होगा इसके बजाय कि पति पर निर्भर रहु।
कल का क्या भरोसा, मुझे मेरा पति छोड़ कर किसी और के साथ शादी कर ले या मेरा इस्तेमाल कर अपना मतलब निकाले। मुझे अपनी ज़िन्दगी की एक नयी पारी शुरू करनी थी और मैंने अपने लिए नौकरी ढूढ़ना शुरू कर दिया।
मेरे पति अशोक ने मेरी नौकरी ढूंढने में मदद देने की कोशिश की पर मैंने मना कर दिया, मुझे अपनी योग्यता से बिना सिफारिश की नौकरी चाहिए थी।
मुझे ऐसी जगह नौकरी चाहिए थी जहा मुझे मेरी खूबसूरती को देख कर काम नहीं दिया जाये, कोई भी ठरकी बॉस मेरे सेक्सी फिगर को देख कर मुझे काम दे सकता था पर मुझे अब किसी का शिकार नहीं बनना था।
सेक्रेटरी के जॉब के लिए मेरी शैक्षिक योग्यता देखे बिना सिर्फ मेरे शरीर को देखते ही दो तीन जगह नौकरी मिल भी गयी, पर उन ठरकी बॉस और मैनेजर की नीयत उनकी आँखों में ही दिख गयी और मैंने वहा काम ना करना ही ठीक समझा।
छोटे शहर में महिला बॉस मिलना बहुत मुश्किल था। मैंने कुछ बड़े ऑफिस में काम ढूंढना भी जारी रखा, थोड़ा समय और लग गया और मुझे वो जगह शायद मिल गयी जो मेरे मुताबिक थी।
मेरे साथ कुछ और उम्मीदवारो को भी लिखित परीक्षा से होकर गुजरना था, जिसके बाद साक्षात्कार का राउंड होने वाला था। जगह सिर्फ एक खाली थी और उम्मीदवारी थे कई।
मैंने अपनी मेहनत में कोई कमी नहीं छोड़ी थी और दो लोग़ जिनको साक्षात्कार राउंड के लिए चुन लिया गया उनमे मैं भी थी। साक्षात्कार कंपनी का बॉस राहुल खुद लेने वाला था जिसके लिए सेक्रेटरी चाहिए थी।
मेरे साथ जो लड़की चुनी गयी थी वो एक कुंवारी लड़की थी जो दिखने में अच्छी खासी थी और छोटे कपड़े पहन कर आयी थी। मुझे लग गया कि अगर ये भी दूसरे ठरकी बॉस जैसा होगा तो मेरा चुना जाना मुश्किल हैं।
हम दोनों को एक साथ इंटरव्यू के लिए अंदर बुलाया गया।
राहुल एक पच्चीस तीस की उम्र का नौजवान था, मुझे उम्मीद नहीं थी कि इतनी कम उम्र का बॉस भी हो सकता हैं। बॉस शब्द सुनते ही मुझे एक अधेड़ उम्र का ठरकी मर्द ही दिमाग में आता हैं।
राहुल की पिछली सेक्रटरी अचानक काम छोड़ कर चली गयी थी और उसको तुरंत किसी की जरुरत थी। पुरे साक्षात्कार के दौरान उसने एक नजर भी हम दोनों नारियो पर नहीं डाली बस हमारे दस्तावेज़ देखता रहा और सवाल पूछता रहा।
मेरे लिए ये बहुत अलग अनुभव था जब कोई मर्द खूबसूरत औरत को नहीं देख रहा था। मुझे भी ऐसी ही जगह पर काम की तलाश थी पर बीच का रौड़ा वो लड़की थी जो मेरी प्रतियोगी थी।
राहुल को हम दोनों की शैक्षिक योग्यता पर कोई शक नहीं था उसने हमसे सिर्फ हमारी महत्वकांक्षा पूछी और हम ये जॉब क्यों करना चाहते हैं। मेरा लक्ष्य साफ़ था कि मुझे अपने पैरो पर खड़ा होना हैं और बहुत आगे जाना हैं क्यों कि ज़िंदगी में बाकी सब तो वैसे भी पा लिया हैं।
मेरे साथ वाली उम्मीदवार के साथ ये समस्या था कि वो एक दो साल से ज्यादा प्रतिबद्धता नहीं दे सकती थी क्यों कि उसकी शादी होने वाली थी और फिर अपने होने वाले पति के साथ उसे काम छोड़ कर दूसरे शहर जाना था।
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12-27-2021, 02:04 PM,
RE: Antarvasnax मेरी कामुकता का सफ़र
ये बात मेरे पक्ष में आ गयी और मुझे वो नौकरी दे दी गयी। मैं बहुत खुश हो कर घर आयी, अशोक को इतना फर्क नहीं पड़ा। मुझे खुश देख उसने मुझे बधाई जरूर दी। उसके लिए तो अच्छा ही था, दिन भर मेरे घर पर नहीं होने से उसको मौका मिल जायेगा अपनी किसी महिलामित्र को घर ला अपने अरमान पुरे करने का।
मुझे इस सब से अब जैसे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था, ये उसकी ज़िन्दगी हैं वो कैसे भी जीए पर मुझे अपनी ज़िन्दगी अपनी शर्तो पर जीनी थी।
मैंने ऑफिस में पहनने के हिसाब से कपड़ो की शॉपिंग कर ली और जल्द ही ऑफिस ज्वाइन कर लिया। वहा के महिला स्टाफ से मेरी पहले ही दिन अच्छी खासी बात हो गयी और मैंने अपना काम भी समझ लिया था।
मेरी सुन्दरता देख जरूर पुरुष कर्मचारी मुझसे बात करना चाह रहे थे पर मैंने शुरू से ही ऐसी अपेक्षा बना दी थी कि मैं किसी के झांसे में फंसने वाली नहीं हु।
एक दो बार राहुल के केबिन में जाने को भी मिला पर वो सिर्फ एक पल के लिए अपना सर उठा कर देखता कि कौन हैं और फिर नीचे टेबल पर अपना काम करता हुआ बात करता था जैसे सामने वाले की तो कोई औकात नहीं हैं।
या तो वो अपना बॉस होने का रौब दिखा रहा था या काम में सचमुच बिजी था या मुझे नया आया देख मुझे इम्प्रेस करने की कोशिश कर रहा था।
पर मेरे लिए तो अच्छा ही था, मैंने जो अपने लिए नयी ज़िन्दगी चुनी थी मुझे ऐसा ही बॉस चाहिए था। उसके जो भी इरादे हो मैं उससे पटने वाली नहीं थी।
दूसरे सहकर्मियों से पता चला कि पहले कंपनी का बॉस राहुल के पिता थे, उनकी तबियत ख़राब रहने लगी तो राहुल ने कम उम्र में ही उनका सारा कारोबार संभाल लिया था। उसके आने के बाद बिज़नेस और अच्छा चलने लगा था।
मुझे भी गर्व हुआ कि मैं ऐसे बॉस की सेक्रटरी हु, हम दोनों ही बहुत महत्वाकांक्षी थे। धीरे धीरे समय गुजरते हुए दो महीने हो गए पर राहुल के बर्ताव में कोई फर्क नहीं आया।
वो अब भी नज़रे उठा कर बात नहीं करता था। जब कोई बात समझानी होती थी तब भी सिर्फ मेरी आँखों में देखता था जरा भी नीचे की तरफ मेरा फिगर देखने की कोशिश नहीं की।
मुझे वो एक सामान्य मर्द नहीं लगा, वरना मुझ जैसी अच्छे फिगर वाली नारी को एक बार देख कर उसको निहारता ना रहे ये मुमकिन नहीं था। मुझे लगा जरूर इसकी बीवी बहुत खूबसूरत होगी इसलिए दूसरो की तरफ नजर नहीं डालता।
मेरी गलतफ़हमी जल्द ही दूर हो गयी जब पता चला उसकी अभी शादी नहीं हुई हैं। मुझे लगा फिर जरूर कोई खूबसूरत गर्लफ्रेंड होगी उसकी जो उसे किसी ओर की तरफ देखने से मना करती होगी।
वहा काफी सालो से काम करने वाली एक अधेड़ महिला सुधा आंटी ने बताया कि राहुल एक लड़की को चाहता था पर उस पर अपने पिता के बिज़नेस का भार आ पड़ा और धीरे धीरे दोनों अपनी महत्वाकांक्षा के साथ धीरे धीरे दूर हो गए।
अब थोड़ा समझ में आया कि राहुल के लिए उसका बिज़नेस और महत्वकांक्षाए उसकी ज़िन्दगी में लड़कियों से कही ज्यादा महत्त्व रखती हैं। इसलिए लड़कियों के प्रति उसका आकर्षण ही ख़त्म हो गया हैं।
समय इसी तरह गुजरता रहा और मैंने अपने आप को ऑफिस में स्थापित कर लिया था। राहुल का भरोसा मैंने जीत लिया था और वो ज्यादा जिम्मेदारी के काम सौपने लगा। शिकायत थी तो बस ये एक कि जब भी वो बात करे पुरे समय मेरी तरफ देख कर तो बात करे।
कही ना कही उसकी ये मुझे ना देखने की आदत मेरे अहम को चोट पंहुचा रही थी। एक खूबसूरत महिला जो अच्छे फिगर की मल्लिका हैं वो कम से कम अपनी ख़ूबसूरती की तारीफ़ की हकदार तो बनती हैं।
मुँह से ना सही कम से कम आँखों के इशारे से तो तारीफ़ कर दे पर वो भी नहीं। मुझे जब ढंग से देखता ही नहीं तो तारीफ़ क्या करेगा। जब भी मैं उसके केबिन में जाती एक आशा के साथ जाती कि आज तो वो मुझे देखेगा या मेरी तारीफ़ करेगा पर हमेशा खिसियाते हुए निराश हो कर ही बाहर आती।
ऐसी बात नहीं थी कि वो मेरी तारीफ़ नहीं करता था पर सिर्फ काम की तारीफ़ करता था। जिसकी मैं हकदार भी थी पर मेरी खूबसूरती की तारीफ़ कर देगा तो कौनसा उसकी इज्जत कम हो जाएगी या उसके उसूल टूट जायेंगे।
इसी तरह छह महीने बीत चुके थे और दिन पर दिन मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। मैं कोई भी कसर नहीं छोड़ती कि मैं अपने आप को उसके सामने प्रस्तुत करू पर वो हमेशा मुझे इग्नोर करता ही रहा।
अपनी जिंदगी में हमेशा ऐसे मर्दो से पाला पड़ा था जिन्होंने हमेशा मेरे शरीर को पाने की कोशिश की थी, मुझे घूरते हुए मेरे कपड़ो के अंदर झाँकने की कोशिश पर ये बिलकुल अलग था। मेरे लिए ये अब एक मिशन बन चूका था, ये मिशन था अपने बॉस के अंदर के मर्द को बाहर निकालने का या अपनी खूबसूरती की सत्ता राहुल के दिल पर जमाने का।
ऐसा नहीं था कि मैं उसके साथ सोना चाहती थी, बस मेरे ईगो को चोट पहुंची कि मुझे मेरे हिस्से की तारीफ़ राहुल से मिलनी ही चाहिए। ये मेरी अब जिद बन चुकी थी।
मैं अब क्या कर सकती थी, जिससे उसका ध्यान बात करते वक़्त मेरी आँखों के सिवाय मेरे शरीर पर भी जाये और तारीफ़ के बोल तो फूटे। क्या मुझे अपना पहनावा बदलना था!
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12-27-2021, 02:04 PM,
RE: Antarvasnax मेरी कामुकता का सफ़र
अब तक मैं पूरा बदन ढक कर रखती थी, पैंट और पूरी बांह के शर्ट, या कभी कभी लंबी स्कर्ट के साथ। बिच में कभी कभी पूरा ढका हुआ कुर्ता। हमेशा सीने के उभार को ढकता हुआ एक स्कार्फ़।
शायद मैं ऐसा कुछ दिखाती ही नहीं जिससे राहुल मेरी तरफ देखे। पर इन्ही कपड़ो के बावजूद बाकी के पुरुष कर्मचारी तो मुझे घूरते रहते हैं। दोष कपड़ो का नहीं शायद नीयत का हो। पर फिर भी मुझे कोशिश तो करनी ही थी।
अगले ही वीकेंड पर मैंने नयी शॉपिंग की और ऑफिस वियर के ऐसे कपडे चुने जो तंग हो और थोड़ा शरीर भी दिखाए। पता नहीं मुझे पर कैसा भूत चढ़ गया था, जिन चीजों से मैं बचने का प्रयास करना चाहती थी वो ही मैं कर रही थी।
फिर अपने आप को समझाया कि एक बार की ही तो बात हैं। बस एक बार अपनी तारीफ़ सुन लू, राहुल का व्रत तोड़ दू तो मेरा काम हो जायेगा और फिर मैं अपने उसूलो पर लौट आउंगी।

अगले सोमवार को मैंने नयी खरीदी पेंसिल स्कर्ट पहन ली। उस तंग काली घुटनो से थोड़ा ऊपर तक की शार्ट स्कर्ट के पीछे से मेरे नितंबो का उभार और उस पर मेरी पतली कमर बहुत ही सेक्सी लग रही था।
सोचा ऊपर भी कोई स्किन दिखाऊ टॉप पहन लेती हु पर अपने आप को रोका कि एक साथ दो झटके ठीक नहीं होंगे। मैंने अपना बटन डाउन सफ़ेद तंग शर्ट पहना। उसमे से मेरे सीने का उभार जैसे फट कर बाहर आ रहा था तो मैंने गले में स्कार्फ़ डाल कर उससे सपना सीना ढक लिया।
ऑफिस में पहुंचने के बाद तो क़यामत ही आ गयी, पुरुष तो पुरुष महिलाये भी तारीफ़ करने लगी कि मुझे कभी ऐसे छोटे कपड़ो में नहीं देखा। पुरुष कर्मचारी में कोई नहीं बचा जो आकर मेरी तारीफ़ ना कर गया हो।
मुझे लगा कि इन लोगो पर असर तो पड़ा हैं मतलब राहुल भी मुझ पर ध्यान जरूर देगा।
मैं इंतज़ार करने लगी कि कब राहुल अपने केबिन में आएगा और मैं वहा जाकर उसको आश्चर्यचकित कर पाऊँगी। हमेशा की तरह बिना दाए बाए देखे राहुल अपने केबिन में चला गया। उसके कुछ मिनट के बाद मैंने ही कोई बहाना बना उसके केबिन में जाने का मन बनाया।
मैं पहले वाशरूम में हो आयी अपना मेकअप टच अप कर लिया और कपड़े देख लिए कि सब ठीक लग रहा हैं। सोचा सीने पर पड़ा स्कार्फ़ भी हटा लू और अपने सीने का उभार भी दिखा दू फिर सोचा ठीक नहीं रहेगा।
वाशरूम से जाने लगी फिर कुछ सोच स्कार्फ़ हटा लिया और मेरे टाइट शर्ट से मेरे मम्मो का उभार बहुत ही उत्तेजित लग रहा था। फिर कुछ मन में आया और ऊपर का एक बटन भी खोल दिया। बहुत हल्का सा मम्मो का नंगा उभार दिखने लगा।
मैंने दूसरा बटन भी खोल कर देखा और मेरा क्लिवेज दिखने लगा। ये ज्यादा हो जायेगा सोच दूसरा बटन फिर बंद कर दिया। एकदम से जो कुछ दिख रहा था बंद हो गया। अपने शर्ट के दोनों खुले हिस्सों को पकड़ थोड़ा चौड़ा कर अपना सीना दिखाया।
अब बाहर जाने की बारी थी, पर राहुल के केबिन के बाहर अपनी सीट तक जाते जाते मुझे दूसरे लोगो के सामने से जाना होगा। मैंने अपना स्कार्फ़ फिर से कंधे पर डाल अपना खुला सीना ढक लिया।
मैं अपनी सीट पर पहुंची। आस पास देखा, सब अपने क्यूबिकल में बैठे थे तो कोई नजर नहीं आया, मैंने अपना स्कार्फ़ रख दिया और अपने सीने को देखा और शर्ट को फिर इस तरह एडजस्ट कर लिया कि मेरा सीना दिखने लगे।
मैं फाइल उठा राहुल के केबिन की तरफ मुड़ी और एक दस्तक दी। राहुल ने अंदर आने को बोला और मैंने एक गहरी सांस भरी और अंदर घुसी। राहुल ने एक नजर देखा कौन आया हैं और फिर नीचे टेबल पर पड़े अपने लैपटॉप में देख अपना काम करने हुए पूछा कि मैं किस काम से आयी हूँ।
मुझे उस वक्त इतना गुस्सा आया कि मैं बता नहीं सकती। खैर मैं जिस बहाने से गयी वो बताया और उसने मुझे देखे बिना उसका समाधान कर दिया और मुझे एक हारे हुए खिलाडी की तरह वापिस वहा से जाना था।
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12-27-2021, 02:04 PM,
RE: Antarvasnax मेरी कामुकता का सफ़र
दरवाजा खोलने से पहले एक हाथ से फिर अपने शर्ट के खुले हिस्से को पकड़ बंद किया और बाहर आकर अपनी कुर्सी की सीट में धंस गयी।
मेरी उस वक्त रोने की हालत हो गयी थी। इतनी तैयारी कर के मैं अंदर गयी और उस निष्ठुर ने एक झलक तक ध्यान से नहीं देखी। कम से कम दो तीन पलो के लिए ही देख लेता।
मैं अपने दोनों हाथ टेबल पर मोड़ कर अपने चेहरे को उस पर रख छुपा दिया। बिन कहे इतना अपमान तो मेरा कभी नहीं हुआ था। फिर सोचा मुझे कोई ऐसे देख ना ले।
मैंने फिर से अपना बटन बंद कर दिया और वो स्कार्फ़ फिर से लगा लिया। कुछ समय बाद राहुल ने मुझे एक क्लाइंट की फाइल ले मुझे किसी काम से केबिन में बुलाया। मैं सोचने लगी क्या ये मेरे लिए दूसरा अवसर हैं।
कही वो मुझे दुबारा तो देखना नहीं चाहता। मैंने फटाफट से अपना स्कार्फ़ हटाया और शर्ट का एक बटन फिर से खोल कर शर्ट को थोड़ा ऊपर से खोल चौड़ा कर दिया और वो फाइल लिए एक बार फिर अंदर पहुंची।
इस बार तो मेरे अंदर पहुंचने पर उसने देखा तक नहीं क्यों कि उसको पहले ही पता था कि मैं आने वाली थी। मैंने वो फाइल उसके सामने रख कर खड़ी हो गयी। उसने फाइल में नजरे गड़ाए मुझसे उस बारे में कुछ पूछा।
मैं उसके टेबल से घूमते हुए उसकी तरफ आयी और कुर्सी के करीब आ खड़ी हुई। फिर आगे झुक फाइल में ऊँगली लगा उसकी शंका का समाधान करने लगी। इस बीच मैं जितना हो सके उसके करीब गयी ताकि उसे मेरी परफ्यूम या बदन की खुशबु तो आये।
वो मेरी बातों से संतुष्ट हो गया और बोला ठीक हैं और आगे का काम बता दिया पर मेरी तरफ फिर भी नहीं देखा। मुझे इसी में संतोष मिल गया कि उसने कम से कम मेरी खुशबु तो महसूस की होगी।
फिलहाल मेरे लिए ये छोटी ख़ुशी ही मेरी जीत थी। वापिस आते वक्त मैंने फिर अपना शर्ट ऊपर से हाथ से बंद कर दिया ताकि बाहर बैठे लोग ना देखे।
अपनी कुर्सी पर बैठ अपना खुला बटन बंद कर और स्कार्फ़ वापिस लगाते मैं यही सोच रही थी कि आज की मेरी योजना कामयाब हुई भी या नहीं। मैंने सोच लिया कि अगली बार जब मैं अंदर जाउंगी तो राहुल से पूछ ही लू कि मेरे ऐसे कपड़े पहनने पर उसे कोई आपत्ति तो नहीं।
दोपहर के बाद मुझे एक बार फिर उसने किसी काम से अपने केबिन में बुलाया और अपनी आदत के अनुसार मेरी तरफ देखना भी गवारा नहीं समझा। उसने जो पूछा मैंने उसका जवाब दिया और मैं बाहर जाने के लिए फिर मुड़ी।
फिर मैं ठिठक कर रुकी और हिम्मत कर उसकी तरफ पीछे मुड़ी और अपना सोच कर रखा सवाल दाग दिया। मैं इस बार भी बिना स्कार्फ़ से अपना सीना ढके और ऊपर का बटन खोल अपना सीना थोड़ा दिखाए आयी थी।
मैं: “राहुल एक बात पूछनी थी।”
राहुल ने मेरी तरफ देख बिना पूछा : “बोलो”
मैं: “मेरे ऐसे कपड़े पहनने पर आपको कोई ऑब्जेक्शन तो नहीं हैं?”
राहुल ने एक नजर मुझ पर डाली, शायद पहली बार वो मेरे कपड़े देखने के लिए अपनी नजरे मुझ पर डाल रहा था। उसके मेरी तरफ देखते ही मैं शरमाते हुए धक्क से रह गयी।
उसने मेरी नजरो से नजरे मिलाई और बोला “हमारे ऑफिस में कोई ड्रेस कोड नहीं हैं, जब तक कि कोई क्लाइंट नहीं आने वाला हो। कोई भी कुछ भी पहन सकता हैं जब तक कि किसी की भावनाओ को ठेस ना पहुंचे।”
उसने एक बार फिर अपनी नज़रे अपने लैपटॉप पर डाली और अपना काम करते हुए पूछा “और कोई सवाल?”
मैंने हँसते हुए ना कहा और अपनी जीत जा जश्न मनाते हुए जैसे बाहर निकली। मैंने उसको अपनी तरफ देखने को मजबूर जो कर दिया था।
वापिस सीट पर आकर मैंने अपने शर्ट का बटन बंद कर स्कार्फ़ फिर लगा सीना ढक दिया। मैं सोचने लगी क्या राहुल ने थोड़े खुले शर्ट से मेरे मम्मो का उभार देखा होगा। शायद मुझे थोड़ा तिरछा खड़ा होना चाहिए था ताकि वो मेरे नितंबो और सीने के वक्र को और अच्छे से देख पाए।
राहुल ने हालाँकि मेरी तरफ देखा था पर अगले ही क्षण मेरी आँखों में देख बात कर रहा था। मतलब उसपर कोई असर नहीं पड़ा मेरे इस फिगर और छोटे कपड़ो का! शायद मुझे शर्ट का दूसरा बटन भी खोल देना चाहिए था, इससे तो राहुल पर जरूर फर्क पड़ता। शाम होने तक मैं इसी उधेड़बुन में रही।
रात को बिस्तर में सोते वक़्त भी यही ख्याल आ रहे थे कि मुझे आज और क्या क्या करना चाहिए था। साथ ही अगले दिन मैं क्या कर सकती हु ये सोचने लगी। इन्ही सारे ख्यालो के साथ मैं सो गयी।
अगली सुबह मैंने वो स्लीवलेस टॉप पहना जिसमे मेरी नाभी और पतली कमर दिख रही थी। कल के मुकाबले आज और भी छोटी स्कर्ट पहन ली। अपने आप को आईने में देखा और मुझे ये सब करना कुछ ठीक नहीं लगा और फिर से वो कपडे उतार कर हमेशा वाले पुरे ढके कपडे पहन लिए।
फिर मुझे लगा ये तो कदम पीछे खींचने वाली बात हुई, क्या मुझे इतनी आसानी से हार मान लेनी चाहिए या कोशिश करते रहना चाहिए, एक दिन तो राहुल खुल कर सामने आएगा। मैंने फिर से वैसे कपड़े पहने जैसे कल पहने थे, घुटनो तक स्कर्ट और टाइट टॉप।
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12-27-2021, 02:04 PM,
RE: Antarvasnax मेरी कामुकता का सफ़र
फिर मुझे लगा ये तो कदम पीछे खींचने वाली बात हुई, क्या मुझे इतनी आसानी से हार मान लेनी चाहिए या कोशिश करते रहना चाहिए, एक दिन तो राहुल खुल कर सामने आएगा। मैंने फिर से वैसे कपड़े पहने जैसे कल पहने थे, घुटनो तक स्कर्ट और टाइट टॉप।
उसके केबिन में जाते ही मैंने साइड पॉज में खड़े हो एक हाथ अपनी कमर पर रखा और अपने आगे और पीछे के कर्व दिखाने की कोशिश की। पर इन सब का भी उस पर कोई फर्क नहीं पड़ा। पता नहीं किस मिट्टी का बना हुआ था राहुल।
अगले कई दिनों तक मैंने प्रयत्न किया कि कभी तो राहुल मेरी तरफ देख कर अपनी नजरे रोक देगा और मेरी खूबसूरती या बदन की तारीफ़ करेगा। पर वो दिन तो आ ही नहीं रहा था।

अब तक के सारे प्रयास विफल हो चुके थे। मैं अपने बॉस को मेरी तारीफ़ करने के लिए मजबूर नहीं कर पा रही थी।
धीरे धीरे मुझे कोफ़्त होने लगी थी। एक दिन सुबह तैयार होते वक़्त सोचा आज तो वो मिनी स्कर्ट पहन ही लेती हु। पर मन में कही एक डर भी था अगर इससे भी राहुल नहीं पिघला तो ख़ामखा दूसरे मर्दो को जरूर मजा मिल जायेगा।
इतने समय में मेरा राहुल से अच्छा सामंझस्य हो गया था और उसका मेरे पर भरोसा भी बढ़ गया था। ये सोचते हुए एक दूसरा धांसू प्लान मेरे दिमाग में आया।
मैं अपना सफ़ेद पतला टाइट शर्ट पहना मगर अंदर अपना ब्रा नहीं पहना। उस शर्ट का एक बटन खोला और फिर दो बटन खोल कर देखे, दो में कुछ ज्यादा ही क्लीवेज दिखने लगा था तो मैंने एक बटन ही खुला रखा और प्लान के मुताबिक एक चेन से लगा पेंडेंट पहन लिया।
मैंने वो स्कार्फ़ पहन अपना सीना ढक दिया और ऑफिस पहुंच गयी। राहुल के ऑफिस पहुंचते ही इंतजार करने लगी कब वो काम से मुझे बुलाये। उसका बुलावा आया भी। मैंने अपना स्कार्फ़ निकाला और शर्ट का ऊपर का एक बटन खोल दिया। शर्ट को वहा से थोड़ा हटा कर अपना थोड़ा सा क्लिवेज दिखाया और थोड़ा कांपते हुए उसके केबिन में दाखिल हुई .
पता था हमेशा की तरह वो मेरी तरफ ध्यान नहीं देगा। मैं फाइल समझने के लिए उसकी कुर्सी के पास गयी और काम ख़त्म होते ही मैंने अपना प्लान शुरू किया।
मैं: “राहुल, आपको कुछ दिखाना हैं। ”
वो मेरी तरफ बिना घूमे ही फाइल में देखते हुए बोला “क्या?”
मैं: “फाइल में नहीं इधर देखो।”
वो कुर्सी पर बैठा था और मैं खड़ी थी तो उसकी तरफ झुकते हुए मैंने अपनी दो उंगलियों में अपना पेंडेंट पकड़ा। वो मेरी तरफ घुमा और मेरे हाथ के इशारे के अनुसार मेरे सीने पर नजर गयी।
मैं: “मेरे हस्बैंड ने मुझे ये पेंडेंट गिफ्ट दिया हैं, कैसा लगा?”
पहली बार उसकी नजर मेरी आँखों के अलावा मेरे शरीर के किसी और हिस्से पर दो सेकण्ड्स से ज्यादा रही थी। उसकी आँखें थोड़ी बड़ी हुई। शायद मेरे झुकने से मेरे शर्ट के खुले हिस्से से उसको मेरे बिना ब्रा के मम्मे की हलकी सी झलक मिल चुकी थी। पुरे पांच सेकण्ड्स के बाद उसकी नजरे वहा से हटी।
राहुल: “नाइस, अच्छा हैं। कल की मीटिंग की तैयारी कर लेना। ”
ये बोल कर वो फिर अपने लैपटॉप लगा। मैं वापिस अपने क्यूबिकल में लौट आयी।
मुझे नहीं पता मैंने अपना जो अंगप्रर्दशन किया वो ठीक था या नहीं, मेरे ऊपर बस ये भूत सवार था कि मैं राहुल की उस तपस्या को भंग करना चाहती थी। इतने दिनों के प्रयास के बाद आखिर मैंने उसको विचलित कर ही दिया था । इसके लिए मुझे भले ही अनुचित तरीके का उपयोग करना पड़ा।
मैं अपनी जीत पर बहुत खुश हुई। पर कही ना कही मेरे दिमाग में दो विरोधी बातें चल रही थी। एक ये कि मैंने जो भी किया वो गलत तरीका था, एक छल था। दूसरा ये कि उसने अभी भी मेरी खूबसूरती या कपड़ो की तारीफ़ नहीं की थी पर मेरे पेंडेंट की तारीफ की थी। वो तो उसको अच्छा नहीं लगा होता तो भी करता क्यों कि मैंने ही तो उसको पूछा था। तारीफ़ तो वो होती हैं जो सामने वाले से बिना पूछे मिल जाये।
कही राहुल को पता तो नहीं चल गया होगा कि मैं ऐसी हरकत क्यों कर रही हु। अगर पता चला होगा तो मेरे लिए बहुत बुरा होगा। मेरी अच्छी बनी बनाई इमेज ख़राब हो जाएगी।
मैंने ठरकी बॉस से बचने के लिए ये वाली नौकरी चुनी थी मगर अब मैं खुद राहुल जैसे सीधे इंसान को भ्रष्ट बनाने में लगी थी। मैंने फैसला कर लिया कि मैं अब और ऐसे प्रयोग नहीं करुँगी।
मैंने जो कपड़े ख़रीदे थे उनको पहनना जारी रखा पर बटन हमेशा बंद और स्कार्फ़ हमेशा सीने को ढके रहता था। जो चल रहा था मैंने उसी में सब्र कर लिए था। इस तरह कुछ समय और निकल गया गया और राहुल पहले की तरह जितनी बात करनी होती उतनी ही करता, उस पैंडेंट वाली घटना से उस पर कोई असर नहीं हुआ लगता था जो मेरे लिए भी ठीक था।
दो महीने बाद ऑफिस में एक हलचल होनी शुरू हो गयी थी। पता चला कंपनी का सालाना उत्सव होने वाला हैं। मेरे लिए तो ये पहली बार था पर बाकी के सहकर्मी काफी उत्साहित थे। बार बार इस चीज का जिक्र निकल ही आता था। हर बार की तरह इस बार भी ये उत्सव राहुल के फार्महाउस पर होनेवाला था।
मुझे बाकी लोगो की उत्सुकता देख थोड़ी हैरानी हुई, शायद काम के बाद एक मुफ्त की पार्टी और मजे करने को मिले तो लोग खुश ही होते हैं। हालांकि मुझे इस उत्सव से कोई लेना देना नहीं था और न ही कोई उत्साह था, शायद राहुल के साथ काम कर कर के मैं भी उसके जैसी वर्कहोलिक बन गयी थी।
उस पार्टी में अभी भी कुछ दिन बचे थे और बाकी लोग ये जानने में व्यस्त थे कि कौन कौन अपनी फॅमिली ला रहा हैं क्यों कि फॅमिली को भी ला सकते थे। पार्टी के दो दिन पहले रात को मेरे मन में एक और ख्याल आया और मेरा पुराना शरारती दिमाग फिर दौड़ने लगा। मैं जब भी राहुल से मिली हु तो ऑफिस में या फिर किसी क्लाइंट मीटिंग में जाते हैं तो भी ऑफिस के काम से। ये पहला मौका होगा जब राहुल बिना ऑफिस के काम के हमसे मिलेगा ।
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12-27-2021, 02:04 PM,
RE: Antarvasnax मेरी कामुकता का सफ़र
मैंने सोचा शायद यही सबसे अच्छा मौका हो, जब राहुल काम के बारे में ना सोच थोड़े हलके मूड में होगा और उसके मुँह से मेरी तारीफ़ निकल जाए। मेरे मन में एक आशा की लहर जागी, जिस चीज की उम्मीद खो कर मैंने कोशिशे बंद कर दी थी उसका शायद सही वक्त आ गया था।
मैंने सोच लिया कि मैं अपने पति अशोक को पार्टी में साथ लेकर नहीं जाउंगी। मुझे क्या पहनना हैं और क्या बात करनी योजना बनाने लगी। ये मेरे लिए आखिरी मौका हो सकता हैं, वरना अगली सालाना पार्टी के लिए फिर एक साल इंतज़ार करना होगा।
आखिर वो शुक्रवार की पार्टी की रात भी आयी। अशोक को पहले ही बोल दिया था कि आज रात घर में खाना नहीं बनेगा तो वो बच्चे को लेकर अपनी मम्मी के यहाँ चला गया। मैं सब मनचाहे कपडे पहन सकती थी, हालाँकि अशोक की तरफ से कोई पाबंदी नहीं थी मेरे कोई भी कपड़े पहनने को लेकर।
मैंने गुलाबी साड़ी निकाली और नूडल स्ट्रैप वाला ब्लाउज निकाला जिसका वी शेप का गला बहुत गहरा था और मेरे मोटे मम्मो का क्लिवेज दिख रहा था। ब्लाउज आगे और पीछे काफी खुला था तो उसमे ब्रा भी नहीं पहन सकते थे। साड़ी को नाभी से चार इंच नीचे बांधा।
आज मैं कोई भी कसर नहीं छोड़ना चाहती थी, मुझे आज वो तारीफ़ लेनी ही थी उस इंसान से जिसने मुझे इतने महीनो से तड़पाया था एक तारीफ़ सुनने के लिए। मैंने दसियो बार अभ्यास किया कि मुझे कितनी साड़ी पेट और सीने से हटानी हैं कि सामने वाला कुछ देख कर मेरी तारीफ़ कर पाए।
राहुल के साथ साथ मुझे दूसरे पुरुषो का भी सामना करना था तो थोड़ा ध्यान भी रखना था। दिखाने की चीज सिर्फ राहुल के लिए थी बाकी समय मुझे पूरा ढक कर रहना था। मैंने साडी दोनों कंधो पर डाल अपने दिखाऊ सीने और नंगी पीठ को ढक लिया था और साड़ी को पेट पर खिंच कर ढक लिया था।
कितना भी ढक लू पर मेरे साड़ी में लिपटे पतले सेक्सी फिगर को कोई अनदेखा कैसे कर सकता था। पार्टी में पहुंचते ही जैसे सारे मर्द मेरी ओर ही देख रहे थे। जो सामने आया मेरी साड़ी और खूबसूरती की तारीफ़ कर रहा था। पर मुझे ऐसी सौ तारीफों की परवाह नहीं थी, इसके बदले मुझे बस वो एक तारीफ़ मिल जाये राहुल के मुँह से।
इतनी भीड़ में राहुल शुरुआत में कही दिखाई नहीं दिया। तेज संगीत बज रहा था और सभी लोग खाने पीने और नाचने के मजे ले रहे थे। मेरी नजरे लगातार भीड़ में राहुल को खोज रही थी।
जो पुरुष सहकर्मी शादीशुदा थे और बीवियों के साथ आये थे वो दूर से ही मुझे देख तरस रहे थे पर जो कुंवारे थे या बीवियों को घर रख आये थे वो आ आकर मेरे साथ नाचने का प्रस्ताव बड़ी उम्मीद से रख रहे थे। पर मैंने उन सब को मना कर दिया।
थोड़ी देर में संगीत अचानक बंद हो गया और राहुल की आवाज माइक पर सुनाई दी। सब लोगो की नज़रे राहुल की तरफ गयी। उसने टीशर्ट और जीन्स पहना था और बहुत रिलैक्स लग रहा था।
पहली बार उसको केजुअल कपड़ो में देख एक सुखद अहसास हुआ। हमेशा उसको ऑफिस में सुटेड बूटेड देखने की आदत थी तो आज अलग ही आकर्षक लग रहा था।

शायद आज के दिन उसका मूड सचमुच अलग होगा। मेरा काम हो ही जायेगा। राहुल ने सबका पार्टी में आने का धन्यवाद दे स्वागत किया और अपनी दो मिनट के भाषण के बाद सबको पार्टी एन्जॉय करने को बोल दिया। तेज संगीत एक बार फिर से चलने लगा और लोग एक बार फिर अपने अपने मजे लेने में लग गए।
मैं एक मौके की तलाश में लग गयी कि मैं राहुल के सामने आउ और उसे मेरी तारीफ़ करने का अवसर दे पाऊ। कुछ सहकर्मी उसे अपनी फॅमिली से मिलवा रहे थे और मैं दूर से उसे देख इंतज़ार करती रही। थोड़ी देर में शायद उसका मोबाइल बजा और वो पार्टी हॉल के दरवाजे से बाहर निकल गया।
शायद मेरे लिए ये ही मौका था उसको भीड़ से दूर अकेले मिलने का। मैं भी उसी दरवाजे से हो बाहर निकली। वो गलियारे से होता हुआ बालकनी में चला गया और फ़ोन पर बात कर रहा था। मैं उसके फ़ोन बंद होने का इंतज़ार करने लगी अपनी साड़ी एडजस्ट करती रही जैसा कि मैंने प्लान किया था।
मैंने देखा उसने फ़ोन जेब में रख दिया था पर अभी भी बालकनी में खड़ा हो बाहर की ही तरफ देख रहा था। मैंने जल्दी से साड़ी का पल्लू दूसरे कंधे से हटाया और सीने पर इस तरह सेट किया कि मेरा आधा ब्लाउज साड़ी के बाहर रहे और मेरा थोड़ा सा क्लिवेज दीखता रहे। साड़ी को पेट से दूर हटाते हुए अपनी नाभी सहित पतले पेट की नुमाइश होती रहे इस तरह सेट किया ।
मैं अब धीरे धीरे चलते हुए उसकी तरफ बढ़ी। जब मैं उसके पीछे नजदीक पहुंची तो मेरी आहट से वो एकदम पीछे मुड़ा और मुझे वहा देख उसे थोड़ा आश्चर्य हुआ।
राहुल: “अरे प्रतिमा तुम पार्टी छोड़ कर यहाँ! ”
मैं “अंदर बहुत शोर हो रहा था तो मैं थोड़ा शांती के लिए बाहर आ गयी, आपको देखा तो यहाँ चली आयी।”
राहुल: “हां, मुझे भी शांति ज्यादा पसंद हैं। तुम मुझे ‘आप’ कह कर मत पुकारो , ‘तुम’ कहना ठीक रहेगा। ”
मैं: “आप…तुम इन कपड़ो में बहुत रिलैक्स और अच्छे लग रहे हो ”
राहुल “थैंक यू, वैसे तुम साड़ी में बहुत अच्छी लग रही हो।”
मैं: “थैंक यू, कही आप ऐसे ही तो नहीं कह रहे। क्यों कि मैंने आपकी तारीफ़ की हैं।”
राहुल: “मैं कभी झूठी तारीफ़ नहीं करता, मुझे अगर अच्छा नहीं लगता हैं तो मैं मुँह पर बोल देता हूँ।”
मैं: “ठीक हैं, फिर आपकी तारीफ़ मैं रख लेती हूँ।”
राहुल : “तुम्हारे घर से कोई नहीं आया?”
मैं: “नहीं, मेरे हस्बैंड को कुछ काम था तो नहीं आ पाए। ”
राहुल: “ओह, ओके , कोई बात नहीं। ”
मैं: “आपके घर से कोई आया हैं?”
राहुल: “नहीं, पापा को चलने में दिक्कत होती हैं तो मम्मी पापा ज्यादा बाहर नहीं जाते। ”
मैं: “ओह, आई ऍम सॉरी”
राहुल:”तुम्हारे हस्बैंड से याद आया, तुम्हारा वो पेंडेंट कहा हैं, मुझे पसंद आया, अपनी मम्मी को गिफ्ट करने की सोच रहा हूँ कोई पेंडेंट।”
आज मैंने पेंडेंट नहीं पहना था, क्यों कि पेंडंट तो सिर्फ मेरी उस दिन की योजना का ही हिस्सा था आज का नहीं। मैंने अपनी साड़ी अपने सीने से पूरी हटा ली और उसको दिखाया ।
मैं: “नहीं, आज नहीं पहना मैंने। ये दूसरा पहना हैं।”
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12-27-2021, 02:04 PM,
RE: Antarvasnax मेरी कामुकता का सफ़र
मेरे खुले सीने पर ब्लाउज के बीच से झांकते मम्मो के उभारो को देख उसकी आँखों में एक चमक सी आ गयी थी और उसकी मुस्कान और चौड़ी हो गयी। मैंने अपनी साड़ी फिर ढक ली। मेरा काम हो चूका था। सिर्फ एक तारीफ़ सुननी थी वो मिल चुकी थी। हालांकि मेरी साड़ी की तारीफ़ हुई थी पर पहनी तो मैंने थी तो देखा जाये तो मेरी खूबसूरती की भी तारीफ़ हो चुकी थी।
राहुल: “चलो अंदर चलते हैं, पार्टी हैं तो पार्टी की तरह एन्जॉय करते हैं। ”
हम दोनों फिर पार्टी वाले हॉल की तरफ बढ़ने लगे और मैंने रास्ते में फिर अपना पल्लू दूसरे कंधे पर डाल अपना सीना और पीठ फिर ढक ली दूसरे लोगो के लिए। साथ ही साड़ी खिंच पकड़ अपनी पतली कमर को भी ढक लिया।
अंदर तेज संगीत में सब लोग नाचने और पीने में लगे थे। राहुल को भीड़ में फिर किसी ने पकड़ लिया और हम बिछड़ गए। मुझे वैसे भी सब कुछ मिल गया था जिसके लिए यहाँ आयी थी। वहा काफी कपल्स नाच रहे थे और मैं सोच रही थी काश मेरा पति अशोक यहाँ होता तो मैं भी उसके साथ नाच पाती।
मैं थोड़ा दूर खड़े ही उन लोगो को नाचते हुए देख रही थी कि पीछे से राहुल आकर मेरे पास खड़ा हो गया। मैं उसकी तरफ देख मुस्कराते हुए उसके लिए थोड़ी जगह बनाई। उसने कुछ कहा पर संगीत के तेज शोर में कुछ सुनाई नहीं दिया तो मैंने उसको इशारे में बोल दिया कुछ सुनाई नहीं दे रहा।
उसने अपना मुँह मेरे कान के पास ला बोलना शरू किया। पहली बार राहुल मेरे इतना करीब आया था। उसके मुँह से निकलती गर्म साँसे मेरे कान और गले को छू रही थी और मैं जैसे एक नशे में जा रही थी। वो मुझ अपने साथ नाचने के लिए कह रहा था। मैं हँसते हुए मुँह खोल उसकी तरफ देखती ही रह गयी।
क्या ये वही राहुल हैं जो ऑफिस में मेरी तरफ देखता भी नहीं और यहाँ मेरे साथ नाचना चाह रहा हैं। कही मेरा जादू इस पर चल तो नहीं गया। उसकी तरफ अचम्भे से देखते हुए मेरे मुँह से शब्द भी नहीं निकले और सिर्फ मेरी आँखों और चेहरे के हाव भाव ने हां बोला।
उसने अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाया। आजतक उसने मुझसे हाथ तक नहीं मिलाया था और आज मैं उसे पहली बार छूने जा रही थी। उस वक्त मेरे दिल में घंटिया बजने लगी थी। मेरा हाथ उसके हाथ में छूते ही तो जैसे बिजली सी गिर गयी थी मुझ पर।
वो मेरा हाथ पकड़ मुझे थोड़ा आगे ले आया और मेरा हाथ अपने कंधे पर रख दिया और खुद का हाथ मेरी कमर पर लपेट दिया। मेरी पतली कमर पर उसके हाथ छूते ही तो मेरी आँखें कुछ क्षणों के लिए बंद हो गयी। एक बिजली का झटका सा लगा और मैं पूरा हिल गयी। आँखें खुली तो मेरे मन में एक अलग ही संगीत बजने लगा।
उसने मुझे कमर से पकड़ अपनी तरफ खिंचा और हमने मुस्कारते हुए एक दूसरे की आँखों में देखा। हम दोनों में से किसी ने भी बहुत देर तक पलकें तक नहीं झपकाई। जैसे एक दूसरे की आँखों में ही खो गए थे। कुछ समय के लिए हम सब कुछ भूल चुके थे।
आज ऊपर वाले ने मेरी इतनी मेहनत का क़र्ज़ जैसे ब्याज सहित चूका दिया था, न सिर्फ तारीफ़ मिली पर वो मुझे छू कर मेरे साथ डांस भी कर रहा था। उसका कमर पर रखा हाथ रह रह कर थोड़ा ऊपर खिसक कर मेरी पीठ पर ब्लाउज को बांधे डोरी को छू रहा था।
डांस करते करते पता ही नहीं चला कब मेरा आँचल मेरे दूसरे से कंधे से निकल गया और आगे से मेरा आधा ब्लाउज साड़ी से बाहर आ थोड़ा मम्मे का उभार नजर आने लगा। उस वक्त मुझे इस चीज की परवाह नहीं थी ।
मुझे पीछे की ओर थोड़ा झुकाते वक्त उसका एक हाथ मेरी कमर और दूसरा मेरी नंगी पीठ पर था और वो अपने दोनों हाथों से मेरे कोमल बदन को महसूस कर सकता था।
हम दोनों के चेहरे सिर्फ कुछ इंच की दुरी पर थे और मेरे मम्मे उसके सीने से काफी करीब थे। उसने जानबूझ कर अपना सीना मेरे सीने से छुआने की कोशिश नहीं की, हालांकि वो कर भी देता तो आज उसको माफ़ कर देती।
हम दोनों एक दूसरे में इतना खो गए कि याद ही नहीं रहा हम कहा हैं और किस हालत में हैं। जब अचानक संगीत रुका तो पता चला क्या हालत हैं। राहुल ने अचानक अपना हाथ मेरे शरीर से हटा मुझे छोड़ दिया। वो थोड़ा इस बात पर सकपकाया कि वो क्या हैं और क्या कर रहा था।
वो वहा से चला गया उसी दरवाजे से जहा से पहले फ़ोन के लिए गया था। मुझे लगा उसने जो किया उसके लिए थोड़ा शर्मिंदा हैं, क्यों कि ये उसकी आदत में शुमार नहीं था। उसने जो किया उसमे कोई बुरा नहीं था ये बताने के लिए मैं भी उसके पीछे गयी।
वो उसी बालकनी में खड़ा था जहा पहले था। मेरे अहम की इच्छापूर्ति तो हो चुकी थी, पर इस चक्कर में उसके अहम् को शायद चोट पहुंची थी। मेरा काम तो हो चूका तो इस बार मैं अपनी साड़ी अच्छे से ढक कर ही गयी थी। जैसे ही मैं उसके पीछे पहुंची मेरी आहट से वो एक बार फिर मेरी तरफ मुड़ा।
राहुल : “आई एम सॉरी, शायद डांस करते वक़्त मैंने कुछ ज्यादा ही लिमिट क्रॉस कर दी ! ”
मैं: “नहीं, ये तो एकदम नार्मल था। अजीब तो तुम्हारा वहा से एकदम से जाना लगा।”
उसने अपना एक हाथ अपनी आँखों पर फेरा जैसे अपनी भावनाये छुपाना चाहता हो। उसकी आँखें थोड़ी नम सी हो गयी थी
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12-27-2021, 02:04 PM,
RE: Antarvasnax मेरी कामुकता का सफ़र
उसने अपना एक हाथ अपनी आँखों पर फेरा जैसे अपनी भावनाये छुपाना चाहता हो। उसकी आँखें थोड़ी नम सी हो गयी थी
जाने अनजाने मैंने राहुल के व्यक्तित्व को ठेस पंहुचा दी और उसके दिल के तार बजा दिए थे। उसका असर अब हम दोनों की ज़िन्दगियों पर पड़ गया। मेरे सारे प्रयास अब मुझ पर भारी पड़ गए।
राहुल बालकनी में खड़ा मुझ से बात करते हुए भावुक सा हो गया था।
राहुल: “डांस करते वक़्त कुछ समय के लिए मुझे ऐसा लगा जैसे सामने रूही आ गयी हो।”
मैं : “रूही?”
राहुल: “छोड़ो, मैं भी क्या लेकर बैठ गया।”
मै: “नहीं तुम बता सकते हो, तुम्हे थोड़ा अच्छा लगेगा।”
राहुल: “रूही मेरी गर्ल फ्रेंड थी, मैं बिज़नेस में क्या बिजी हुआ वो मुझे छोड़ कर चली गयी।”
मुझे याद आया सुधा आंटी जिस राहुल की जिस गर्ल फ्रेंड की बात कर रही थी उसी का नाम रूही था।
मैं: “चली गयी मतलब?”
राहुल: “उसके घर वाले उसकी शादी करवाना चाहते थे, और मैं उस वक्त अपने पापा के बिज़नेस को बचाने काम में डूबा हुआ था। उसने मेरी भावनाओ को समझा ही नहीं। ”
मैं: “वो तो अब भी मिल सकती हैं, तुमने बाद में उससे बात करने की कोशिश नहीं की। ”
राहुल: “थोड़े दिन बाद ही मुझे उसका शादी का कार्ड मिल गया था। मेरे लिए उसका अध्याय बंद हो गया हैं पर दिमाग से निकालना आसान नहीं हैं।”
मैं भी समझ गयी ये राहुल की एक अधूरी प्रेम कहानी हैं, जिसके गम में उसने ब्रह्मचर्य अपना लिया था, जिसे मैं अपने अहम के लिए तोड़ने की कोशिश कर रही थी।
राहुल: “डांस करते वक्त मुझे तुममे रूही की झलक दिखी और मैं थोड़ा बहक सा गया, पता नहीं तुमने मेरे बारे क्या सोचा होगा। ”
मैं: “नहीं, मुझे उल्टा अच्छा लगा तुम्हे इतना एन्जॉय करते देखते हुए।”
राहुल: “थैंक यू ”
हम दोनों एक दूसरे की आँखों में झांक रहे थे और वो धीरे धीरे मेरे करीब आता जा रहा था । नजदीक आकर उसने अपना एक हाथ मेरी कमर में डाला, मुझे लगा फिर से डांस करना चाहता हैं। मैं मुस्कुरा दी, और उसने अपना दूसरा हाथ मेरी पीठ पर लगा कर अपनी तरफ खिंचा। हम दोनों एकदम करीब आ गए थे।

खड़े खड़े ही उसने अपने होंठ मेरे होंठो के पास लाना शुरू कर दिया था। उसके होंठ मेरे होंठो से सिर्फ एक इंच की दुरी पर थे और मेरे मम्मे उसके सीने से टकरा गए । मेरे नाजुक मम्मे स्प्रिंग की तरह थोड़ा दब गए और उसके होंठ मेरे होंठो को चूमने ही वाले थे कि मुझे मेरी शपथ याद आ गयी।
मुझे अब इन सब एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की चीजों में नहीं पड़ना था। मैंने उसको दूर किया और मुड़ कर भागते हुए फिर पार्टी हॉल में आ गयी। सब लोग अभी खाना खाने की तैयारी कर रहे थे । वहा जाने के बाद सुधा आंटी मेरे पास आये।
सुधा आंटी: “तुम्हे पता हैं आज बरसो बाद राहुल ने सालाना पार्टी में डांस किया हैं। पिछली बार उसने अपनी गर्ल फ्रेंड रूही के साथ किया था जब उसके पापा बिज़नेस सँभालते थे,और उसके बाद जाकर आज तुम्हारे साथ। ”
मैं सोचने लगी शायद इस कारण से राहुल को मुझ में रूही की झलक मिली थी।
सुधा आंटी: “मैंने इस कंपनी में बरसो से काम किया हैं। काफी समय बाद उसको इस तरह खुश देखा मैंने। ”
उन्होंने मेरे सर पर हाथ फेरा और कहा : “काश तुम शादी शुदा ना होती। ”
ये कहते हुए वो वहा से चली गयी । मैं सोच मैं पड़ गयी, जाने अनजाने में मैंने राहुल की दुखती रग छेड़ दी थी। मेरा ऐसा कोई मकसद तो नहीं था पर मैंने आग तो लगा ही दी थी जिसे बुझाना मेरे बस में भी नहीं था। मुझे अब बहुत संभल कर चलना था।
इसके बाद मैं पूरी पार्टी में राहुल से दूर दूर ही रही। उसने जरूरतमंद कर्मचारियों के लिए घर छोड़ने के लिए कैब की व्यवस्था भी कर रखी थी। मैं घर तो आ गयी पर गहरी सोच में डूबी थी। मैंने क्या अनर्थ कर दिया था।
पार्टी शुक्रवार को थी तो अच्छा था, अगले दो दिन छुट्टी थी और मुझे राहुल का सामना नहीं करना था। उन दो दिनों में भी मैं सोचती रही कि राहुल का व्यवहार कैसा होगा, कही वो फिर से मुझे पकड़ कर चूमने की कोशिश तो नहीं करेगा। अब आगे मुझे क्या करना चाहिए था इसकी रुपरेखा बनाने लगी।
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12-27-2021, 02:05 PM,
RE: Antarvasnax मेरी कामुकता का सफ़र
सोमवार को भी आना ही था। मैंने अपने सारे छोटे कपड़े एक बेग में भर स्टोर रूम में छुपा दिए। मुझे अब इनकी कोई जरुरत नहीं थी और भूल कर भी उन्हें नहीं पहनना था। मैंने अपने पुराने वाले कपड़े जो बदन को पुरे ढकने वाले ऑफिस वियर थे निकाल लिए और गले में सीने को ढकता स्कार्फ़ पहन लिया।
अपनी कुर्सी पर बैठ मेरा दिल धक् धक् कर रहा था। राहुल आया और सीधा अपने केबिन में चला गया, अपनी आदत के अनुसार बिना दाएं बाएं देखे। मुझे डर था कि कही वो मुझे अंदर बुला ना ले। जल्द ही उसका बुलावा भी आया। मैंने अपना स्कार्फ़ थोड़ा और नीचे खिंच कर अपना पूरा सीना ढकने की कोशिश की और डरते हुए उसके केबिन में प्रवेश किया।
वो अपने लैपटॉप में डूबे हुए ही मुझे कुछ काम के निर्देश देने लगा। मेरी तरफ देखा तक नहीं। शायद ऑफिस वाला राहुल, पार्टी वाले राहुल से एकदम अलग था, जैसे दो जुड़वाँ भाई अलग अलग व्यवहार के साथ। मैं अब बाहर जाने लगी और उसकी आवाज सुन रुक गयी।
राहुल: “प्रतिमा, हो सके तो कल रात के लिए माफ़ कर देना। माफ़ी लायक तो नहीं हूँ, पर पता नहीं मुझे कल
रात क्या हो गया था।”
मैंने बिना पीछे मुड़े उसकी पूरी बात सुनी और केबिन के दरवाजे से बाहर आ गयी। अपनी सीट पर बैठे ये सोचने लगी मैंने जो प्रतिक्रिया दी वो सही थी या नहीं। मुझे कुछ जवाब तो देना चाहिए था, कही मैंने अशिष्ट व्यवहार तो नहीं किया था राहुल के साथ। क्या मुझे वापिस अंदर जाकर उसको माफ़ कर देना चाहिए या थोड़ा और इंतजार करना चाहिए।
तभी मुझे राहुल का एक ईमेल मिला, उसने मुझे उसके आज के सारे अपॉइंटमेंट कैंसिल करने को बोला। ईमेल पूरा पढ़ा ही था कि राहुल अपने केबिन से निकला और चला गया। शायद वो मुझसे नाराज था और गुस्से में घर चला गया।
अगले दिन भी वो ऑफिस नहीं आया और घर से ही ऑफिस का काम करता रहा। उसके फेस तो फेस मीटिंग्स सारे कैंसिल करने का ईमेल आया था। उसके जैसे चरित्रवान पुरुष से अगर कोई छोटी सी गलती हो जाये तो उसके लिए ये बहुत बड़ी बात थी। हालांकि उसने गलत कुछ किया नहीं था, बल्कि करने वाला था।
मैं अब क्या करू, उसने जो किया उसके लिए माफ़ करू या खुद माफ़ी मांगू अपने किये की। सोचा फ़ोन करू, पर शायद शब्द ही मुँह से ना निकले। अंत में मैंने उसको मैसेज किया कि उसने जो भी किया वो नेचुरल था, मैंने बुरा नहीं माना हैं और हम उस घटना से आगे बढ़ सकते हैं। उसका थैंक यू का मैसेज आया।
अगले दिन राहुल ऑफिस आया और फिर से पहले वाला राहुल बन चूका था। हमने सब कुछ भुला दिया था।
दो महीने बाद ऑफिस में काफी हलचल थी, कंपनी के एक पुराने क्लाइंट के साथ बहुत बड़ी डील होने वाली थी। ये डील कंपनी को बहुत फायदा पहुंचाने वाली थी वरना काफी नुकसान की उम्मीद थी क्यों कि इस डील को पाने के लिए काफी तैयारियां कर ली गयी थी ।
मुझे इस कंपनी में अब काफी महीने हो गए थे और मेरी मेहनत और राहुल के भरोसे के बल मैं अब सिर्फ एक सेक्रटरी नहीं रही थी पर राहुल का दायां हाथ बन चुकी थी। मेरी भी इस डील में काफी बड़ी भूमिका थी । ये एक विदेशी क्लाइंट था, नाम था बॉब।
अगले महीने वो यहाँ डील साइन करने आने वाला था। इस बीच हमारा काम काफी बढ़ गया था। फिर पता चला कि बॉब किसी और काम से नहीं आ पायेगा और इसके बदले उसकी बीवी सैंड्रा आने वाली थी, जो कंपनी की वीपी भी थी।
आखिर सैंड्रा हमारे शहर आयी और एक होटल में रुकी। अगले दिन हमारी मीटिंग होनी थी पर राहुल ने शिष्टाचार के नाते सुबह उसके होटल में जाकर उसको फूलो का गुलदस्ता दे स्वागत करने का निर्णय किया। राहुल चाहता था कि मैं भी उसके साथ जाऊ, ताकि वो मुझे उनसे मिलवा सके क्यों कि मैं पहली बार मिलूंगी उनसे।
सुबह नौ बजे के करीब उस होटल में पहुंचे। दरवाजे पर दस्तक दी पर कुछ देर तक किसी ने दरवाजा नहीं खोला। मैं चाहती थी कि फिर से दस्तक दी जाये पर राहुल ने मना कर दिया और हमने थोड़ा और इंतजार किया। राहुल सही था, एक महिला ने दरवाजा खोला।
सामने सैंड्रा खड़ी थी, एक पेंतीस के लगभग उम्र की एक बेहद खूबसूरत सी महिला थी। घुंघराले भूरे खुले बाल और भूरी आँखें, पूरा गौरा रंग बहुत ही आकर्षक थी । उसने एक छोटा सा गाउन पहन रखा था जो घुटनो के ऊपर ही ख़त्म हो गया था और ऊपर नूडल स्ट्रैप थे। गाउन का गला इतना गहरा था कि बीच से उसके दोनों मम्मो की घाटियां साफ़ दिखाई दे रही थी।
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12-27-2021, 02:06 PM,
RE: Antarvasnax मेरी कामुकता का सफ़र
सामने सैंड्रा खड़ी थी, एक पेंतीस के लगभग उम्र की एक बेहद खूबसूरत सी महिला थी। घुंघराले भूरे खुले बाल और भूरी आँखें, पूरा गौरा रंग बहुत ही आकर्षक थी । उसने एक छोटा सा गाउन पहन रखा था जो घुटनो के ऊपर ही ख़त्म हो गया था और ऊपर नूडल स्ट्रैप थे। गाउन का गला इतना गहरा था कि बीच से उसके दोनों मम्मो की घाटियां साफ़ दिखाई दे रही थी।

उसने गाउन में ब्रा नहीं पहना था ये साफ़ पता चल रहा था क्यों कि उसके तीखे तीखे निप्पल उसके गाउन से झांक रहे थे। मैंने उसका पहनावा देख थोड़ा असहज महसूस किया, शायद इन विदेशियों को इन सब चीजों से फर्क नहीं पड़ता हैं।

राहुल ने उसको बूके देकर स्वागत किया और मेरी और सैंड्रा की पहचान कराई।

सैंड्रा ने अब अंग्रेजी में हमसे बोला : “अंदर आओ, तुम्हे किसी से मिलवाती हु ”

वो हमें अंदर लेकर गयी। कमरे के अंदर दो बेड लगे थे, पहले बेड पर रजाई जो की त्यों सिमटी पड़ी थी, शायद किसी ने वो बेड इस्तेमाल ही नहीं किया था। दूसरे बेड पर एक बीस बाइस साल का लड़का आँख खोले लेटा था। उसने रजाई से अपने आप को ढका था और सिर्फ मुँह बाहर था।

सैंड्रा ने हमे आपस में मिलवाया, उसने बताया कि वो उसका बेटा जैक हैं। जैक के सुनहरे लम्बे बाल थे, नीली नीली आँखें और गुलाब की पंखुड़ियों की तरह पतले पतले हलके गुलाबी होंठ थे। उसने अपना एक हाथ रजाई से निकाल हमें देख अपना हाथ हिला कर हेलो बोला।

उसने हाथ बाहर निकाला तो उसका नंगा कंधा देख मैं समझ गयी कि उसने ऊपर कोई कपडे नहीं पहने थे। एक अजीब सी पहेली थी, सैंड्रा की उम्र के हिसाब से उसका इतना बड़ा लड़का तो नहीं हो सकता था। दूसरा ऐसा लग रहा था कि वो दोनों रात भर एक ही बेड पर सोये थे क्यों कि जैक के बगल में बेड पर चादर पर सिलवटे थी जैसे कोई वहा सोया था।

अभी सारे सवाल मेरे मन में ही थे कि एक और बड़ा सवाल सामने आ गया। वाशरूम से एक राक्षस से आकार का काला पहलवान आदमी बाहर निकला। उसने नीचे एक बॉक्सर के अलावा शरीर पर कुछ नहीं पहना था। उसकी भुजाए लगभग मेरी जांघो के बराबर थी और पुरे शरीर पर मसल्स बने थे।

मैं तो उसको देखते ही डर गयी, जब वो चलता हुआ आ रहा था तो उसके बॉक्सर के अंदर उसका लंबा मोटा लटकता हुआ लंड साफ़ महसूस हो रहा था जो एक पेंडुलम की तरह हिल रहा था। अगर नरम होकर लटकने पर ये छह इंच का हैं तो कड़क होने पर तो आठ नौ इंच का हो ही जायेगा। मैंने तो इतना बड़ा कभी नहीं देखा था।

सैंड्रा ने उससे हमारा परिचय कराया, वो जोसफ था, उसका साथी। उसने आगे बढ़ राहुल से हाथ मिलाया और मुझे देख अंग्रेजी में बोलने लगा “व्हाट ए फकिंग ब्यूटी” और मेरी तरफ बढ़ने लगा। मैं दो कदम पीछे हट गयी।

राहुल ने उसका हाथ पकड़ उसे रोका और अंग्रेजी में ही बोला : “ये भारत हैं, यहाँ ये सब नहीं चलता।”

जोसफ एकदम से रुक गया। उसने मेरी तरफ हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाया। उसका विशालकाय हाथ देख मैंने अपने हाथ जोड़ लिए और नमस्ते किया। वो समझ गया और मुझसे भी नमस्ते बोला।

क्या जोसफ भी इनके साथ उसी कमरे में ठहरा था, पर दूसरा बिस्तर तो लग नहीं रहा था कि इस्तेमाल किया था, फिर ये तीनो क्या एक साथ सो रहे थे। एक माँ अपने जवान बेटे और अपने ऑफिस के कर्मचारी के साथ एक साथ सोई थी।

सैंड्रा जैसी नजाकत वाली महिला ने जोसफ का इतना बड़ा लंड कैसे लिया होगा और सहन किया होगा, वो भी अपने बेटे के सामने। मेरे सामने की पहेलियाँ बढ़ती ही जा रही थी। फिलहाल राहुल ने कल मीटिंग में मिलने का बोल वहा से विदा लिया।

सैंड्रा, जैक और जोसफ से विदा ले हम होटल से बाहर आये। हम पार्किंग तक आये और राहुल ने जोसफ के बर्ताव के लिए मुझसे माफ़ी मांगी कि वो मुझे यहाँ लेकर आया और मुझे ये सुनना पड़ा। मैंने भी सोचा नहीं था कि ऐसे किसी व्यक्ति से पाला पड़ेगा। मैं अब भी डर के मारे कांप रही थी।

मैंने कार में बैठने के बाद अपनी अनसुलझी पहेलियों को राहुल के सामने रख दिया।
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