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RE: Antervasna कविता भार्गव की अजीब दास्ताँ
कविता निकल ही रही थी की हरबारी में उसकी विअहाल स्तन किसी और औरत के मोटे मोटे स्तनों से टकरा जाती हैं l वह और कोई नहीं बल्कि उसकी बहू मनीषा थी l ३२ साल की मदमस्त बदन और वैसे ही खिला हुआ एक एक अंग और शरारत में तो बस पूछिए मत l
मनीषा : अरे मुम्मीजी, यूँ लेहरके कहाँ चल दिए? मममम लगता हैं कोई बेसब्री से इंतज़ार कर रही है
कविता : चुप कर बेशरम! कुछ भी कहती हैं, सहेली के वहा जा रही हूँ
मनीषा : (रास्ता छोड़ देती हैं) मममम ठीक हैं (थोड़ी अजीब ढंग से चल देती हैं)
कविता : अरे ऐसे क्या चल रही है?
मनीषा : अरे मम्मीजी, आपके बेटे से पूछिये जाके! (चल लेती हैं)
कविता कुछ पल तक सांस रोकके फिर रेखा के घर की ओर चल पड़ती हैं l
......
रेखा के घर पर
रेखा और कविता गले मिलते हैं। दोनों औरतें हमउम्र थे और ४० साल की दोस्ती थी उन दोनों की। रेखा कविता सामान सुडोल तो नहीं थी लेकिन कहीं कहीं भर ज़रूर गयी थी उम्र के रफ़्तार के साथ। आज वोह एक हरी रंग की साड़ी और सफ़ेद ब्लाउज पहनी थी।
कविता : अब बता! फ़ोन पे क्या बकवास कर रही थी तू????
रेखा : (गहरी आहें भरती हुई) हीी मत पुछ कवी! यह सब राहुल का किया धरा ह उफ्फ्फ मुझसे और सहन नहीं होता l मैं किसी दिन नंगी घुस जाऊंगी उसके कमरे में!
कविता अपनी सहेली की बातों से सिसक उठी "नंगी घुस जाऊंगी" यह कहना क्या एक माँ के लिए आसान थी?
कविता : रेखा यह सबब कक्काइसे मतलब कब? और ज्योति (राहुल की बीवी) को मालूम ????
रेखा : वोह तो मैके गयी हुई हैं आज २ हफ्ते हो गए!
कविता : समझ गयी कलमुही! और राहुल का अकेलापन तुझसे देखि नहीं गयी है न?????
रेखा बस आहें भरती हैं और कामुक अंदाज़ से बैठ जाती हैं l
रेखा : तू नहीं जानती कवी, इस उम्र में प्यास कितनी बढ़ती हैं और ममम यह जिस्म जितनी चौड़ी होती जाती हैं उतनी इसे रगड़ाई और समंहोग चाहिए होता हैं!!! तू तो पत्थर दिल औरत है! तुझे क्या मालुम भला! चल जा यहाँ से! बात नहीं करती मैं तुझसे!
कविता : अरे मेरी बिन्नो!!! इसमें नाराज होने वाली कोनसी बात हैं (पास बैठ के गाल दबाती हैं)
रेखा : हम्म्म्म मस्का एक्सपर्ट कहीं की! कॉलेज में भी तू ऐसी ही करती थी!
कविता और रेखा बात ही कर रहे थे के रेखा की सेल बजने लगी और उसपर राहुल का नाम देखके रेखा की साँस ही चढ़ गयी वोह फ़ोन तो उठै नहीं बल्कि लम्बे लम्बे हे भरने लगी मानो किसी कमसिन लड़की को अपने प्रीतम का पहला ख़त मिला हो l
उसकी यह चाल देखके कविता हैरान रह जाती हैं और धीरे से कहती हैं "बेटे का फ़ोन है!"
हरबारी में रेखा फ़ोन उठा के बात करने लगती हैं l कविता बस रेखा की बातों पर गौर कर रही थी l
रेखा :
"हाँ बेटा, हाँ मैं हूँ न!
"हाँ हाँ सारे ले लूंगी! सब के सब!
"तू मुझे एक मौका तो दे बेटा!"
"ठीक है बेटा, जैसा तू चाहे, बाई!"
रेखा के फ़ोन रखते ही कविता उसे हैरानी से बस देखती रहती हैं
रेखा : ऐसी क्या देख रही है कवी?
कविता : मुँह पर हाथ लहराती हुई! तू क्या इस हद तक जा चुकी है बेटे के साथ???? चीई रेखु! तुझे रेखा नहीं रखेल बुलाना चाहिए मुझे!!! छी
रेखा हंस पड़ती हैं सहेली की बातों से। कविता सोचने लगी कि कितनी बेशर्म हो गयी उसकी सहेली "अरे बिन्नो! हंस क्यों रही है बेशरम!"
रेखा : अरे मेरी प्यारी प्यारी कवी! वोह तो राहुल अपने एक डिलीवरी पार्सल के बारे में बात कर रहा था!!!
कविता : क्या????
रेखा : अरे हाँ रीए! वोह तो पिछली बार मैं नहा रही थी जब वोह सौरीवाला घंटी बजा बजा के चला गया था l
कविता अपनी सर पर हाथ पटक देती हैं और खुद भी हंस पड़ती हैं l
रेखा : हैई राम तुझे क्या लगा??? मैं इतनी जल्दी टूट पड़ूँगी अपनी बेटी पर! ???
कविता एक राहत की सांस लेती हैं और दोनों एक एक कप चाय की चुस्की लिए हुए बैठ जाते हैं।
कविता : क्या राहुल को इसकक....
रेखा : नही!! भले में माँ होक उसे कैसे केहड़ू??? है रम्म नाहीइ मुझसे नहीं होगा यह सब!
कविता को रेखा की कही गयी हर एक बात बहुत उकसाने लगी। फिर उसे ऐसा कुछ सुझा जो उसकी कल्पना से अब तक परे थी l
कविता बस सुनती गयी l
रेखा : वैसे कवी! क्या तुझे कभी किसी जवान आदमी के प्रति कोई भावनाये नहीं आयी?? क्या (थूक घोंट के) क्या तुझे कभी अजय के प्रति कुछःह मतलबब समझ रही है न???
रेखा की कही गयी हर हर एक शब्द कविता के दिल में कामदेव की तीर फ़ेंक रही थी पर थी वोह एक सुलझी हुई औरत, घुसा तो आने ही थी l
कविता : क्क्क्य बकवास कर रही है तू????
रेखा : अरे बाबा ऐसे ही पूछ रही थी
"क्या मेरा और मेरे बेटे के बीच में भी ऐसा" यह ज़रा सी सोच से वह चौंक उठी और स्तन थे कि ऊपर नीचे होने लगे। माथे से पसीने के एक एक बूँद टपकती हुई उसकी गैल से होके स्तन के दरार में घुस गयी हो मनो l
रेखा अपनी सहेली की तरफ चुप चाप देखती गयी l
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RE: Antervasna कविता भार्गव की अजीब दास्ताँ
कविता : नहीं नहीं रेखा तुझे अपने आप पर काबू करनी ही होगी (एक लम्बी आह भरती हुई) तू माँ हैं राहुल की!
यह बात सुनते ही एक लम्बी सी आह निकल पड़ती हैं रेखा की मूह से, एक अजीब सी आवाज़ जैसे कोई अपने दिल में छिपे कामुकता का बयां कर रही हो l
रेखा की पपीते जैसे स्तन ऊपर नीचे होने लगे और अपनी सेल पर राहुल की एक तस्वीर लेके जी भर के स्क्रीन पर चूमने लगी यह दृश्य देखके कविता भी गरम होने लगी l
रेखा : (चूमती हुई) हाआआ माँ हूँ उसका! (चुम चुम) हां मालूम हीई (चूम चूम) पर अगर मैं (फ़ोन हाथों से पटकती हुई) ममाशूका बनना चहु तो??? उफ्फफ्फ्फ़ कविई कुछ होने लगा मुझे l
कविता जो खुद गरम हो रही थी बिना सोचे अपनी एक तरबूज़ जैसे एक स्तन को हल्का दबोच लेती हैं "ओह्ह्ह मम दरअसल एक कीड़ा काट रही थी" अपनी हाथ को फिर नीचे लाती हैं l
रेखा : कविई तू तो एक थेरेपिस्ट हैं मनुष्य विज्ञानं में कुछ सलाह दे मुझे आगे कैसे बढ़ना चाहिए, अगर राहुल नहीं मिला तो मैं कुछ भी कर जाऊंगी l
कविता : मम मैं क्या कहूँ रेखु! मैं नार्मल परिस्थितियों पे सलाह देती हूँ! एक माँ और एक बेटे में कैसे??? नहीं नहीं l
रेखा : देख मैं माँ बाद में और पहले एक औरत हूँ! भाई साहब से डाइवोर्स के बाद मैं पागल सी होने लगी हूँ! तू तो जानती हैं न आज ५ साल बीत गए मैं कितनी अकेली हूँ!
कविता : लेकिन ज्योति की तो सोच! तू क्या दोनों की रिश्ता तोडना चाहती हैं अपनी हवस के लिए??? क्या तू ऐसा कर पायेगी???
रेखा इस बार बहुत शर्मिंदा हो गयी और नीचे की और देखने लगी, कविता उसकी पीठ पर हाथ मलने लगी l
रेखा : कवी तेरे लिए यह कहना आसान है क्योंकि तेरी इस जिस्म पे अब तक कोई प्यास की चेतावनी नहीं मिली, पर देख तू भी मेरी ही तरह एक औरत हैं! जब तेरी इस मदमस्त जिस्म पर आग फड़केगी एक जवान मर्द के लिए तब तुझे समझ में आएगी l
कविता की साँसें फिर से चढ़ गयी और "मम मैं अब चलती हूँ, बहुत देर हो गयी" तुझसे फ़ोन पर कुछ सलाह दे दूँगी!"
रेखा : फ़ोन पर नहीं!!!! कविई!!! तू मुझे बता मैं आगे कैसे बरु
कविता : (कुछ सोचती हुई) देख! पहले तो तू कोशिश कर राहुल की दिल की बात जान्ने के लिए क्या वोह भी तुझे उफ्फफ्फ्फ़ यह मैं क्या बोले जा रही हूँ!
रेखा : (कामुक आवाज़ में) गीली हो रही है क्या तू???? ममम?
कविता बड़ी शर्मीली सी सूरत लेके अपनी साड़ी से ढके जांगों के बीच देखने लगी और दाँत दबे होंट लिए यहाँ वह देखने लगी, रेखा समझ गयी कि उसकी सहेली उत्तेजित हो रही थी l
रेखा : हम्म्म तो हाँ! तू क्या बोल रही थी मुझे?
कविता : एहि के तू राहुल के मनन को जानने की कोशिश कर पहले और धीरे धीरे करीब जा!
रेखा : मममम और?
कविता : देख तू एक काम कर सबसे पहले तो उसे अपनी अकेलपन का इज़हार कर! उसे समझ ने दे तेरी प्यास क्या हैं, तू किस कदर एक मर्द के साये के लिए तड़प रही हैं l
रेखा बस लंबी लंबी साँसें लेती हुई सुनती गयी l
कविता : और फिर धीरे से उसे अपनी आगोश में करले l(खुद भी जैसे बेचैन हो रही थी)
रेखा और कविता बस एक दूसरे को देखते गए। दोनों महिलाएं लम्बे लम्बे आहें भर रही थी जैसे वक़्त वाही का वही रुक गया हो l
रेखा : वाह कवी! तेरी बातों ने मेरे सोये हुए ार्मन और भरका दिए और तू तो मानो कोई मैट्रीमॉनियल संगस्था से आई हैं, ऐसे मेरा चक्कर चला रही है, सच कवी! तू किसी भी माँ को कामुक बना सकती हैं अपनी इन मीठी बातों से!
कविता फिर से अपनी एक स्तन मसल देती हैं, यूँही अनजाने में l
रेखा समझ गयी उसकी दोस्त गरम होने लगी थी "क्या फिर से कोई कीड़ा काट रही है??"
कविता बस दांतो तले होंट दबा गयी और एक मासूम सी मुस्कान देने लगी l
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RE: Antervasna कविता भार्गव की अजीब दास्ताँ
रात को ९ बजे करीब अजय घर लौट आता हैं और तभी गले पड़ती हैं मनीषा, हरे रंग की स्लीवलेस निघती पहनी हुई थी और बाल थे खुले खुले मानो किसी भी आशिक को अपनी चँगुल पे फ़साने का साधन हो l
अजय : अरे मैडम! कपडे तो बदल लेने दो, वैसे भी रात को मेरा कटल तो होने ही वाला हैं
मनीषा : जानू! इन्ही बातों ने तो मुझे तुम्हारे करीब लायी हैं
अजय और मनीषा के होंठ आपस में मिल जाते हैं और फिर शुरू होती हैं होंटों के दरमियान रास की युद्ध दोनों के दोनों चुम ही रहे थे एक दूसरे को के तभी कुछ ही दूर खड़ी कविता खासने की नाटक करती हैं l
दोनों मिया बीवी चौंकते हुए सीधे खड़े होते हैं l
कविता : बहु! खाना लगा दो अजय के लिए
मनीषा : जी! (पल्लू ठीक करती हुई रसोई में भाग जाती है)
अजय जाके माँ के गले लग जाता हैं, पर इस बार कविता को कुछ होने लगा अचानक से, वोह और कस्स के अजय को बाहों में लेती हैं कि तभी अजय अलग होता हैं और अपने कमरे में चल पड़ते हैं l
कविता को न जाने क्यों लगी कि उसे और थोड़ी देर तक उसका बीटा पजडे रखे, बड़ी अजीब लगी उसे l मनीषा खाना लेके तभी डाइनिंग रूम में आती हैं l तीनो खाना खा लेते हैं और अजय अपने प्रमोशन के खबर देके रात को और खुशनमा बना लेते हैं l
कविता : वाह बेटा! अब तो एक ही कसर बाकी रह गया हैं!
अजय : वोह क्या माँ?
कविता : बस मैं दादी बन जाओ! एक चिराग देदे जल्दी
मनीषा : (शर्माके) माजी!
अजय : ह्म्म्मम्म माँ! वोह तो मणि पर हैं! मैं अकेला क्या कारु!
कविता : अरे नहीं बेटा, चाँद अकेला क्या करेगा जब तक सूरज खुद रौशनी देने का फैसला न ले! तुझ जैसे जवान मर्द न जाने कितने सम्भोग के लायक हैं और तू हैं के एक चिराग देने से हिचक रहा हैं, अरे देसी घी और दूध क्या मैंने तुझे ऐसे ही खिलाया पिलाया??? बस अब तो इस खानदान को आगे बढ़ाओ तुम दोनों!
पूरा डाइनिंग रूम ख़ामोशी से गूंज उठा और अजय को महसूस हुआ के माँ के बातों से उसके पाजामे में उभार बन चूका था, उसे बहुत बुरी तरह शर्म आ रहा था l और तो और यह नज़ारा मनीषा देख चुकी थी l अपनी लाल लाल गालों पर हाथ लगाए चुप चाप खाना कहने लगी l
खाने के बाद तीनो सोने चले गए l
..........
पति के देहांत के बाद कविता अकेली ही सोती थी लेकिन रेखा से मिलने के बाद शाम से ही बेचैन थी, पर न जाने की चीज़ के लिए न जाने उसे ऐसा क्यों लगा की जैसे कोई आये और उसे अपनी बाहों में भर ले शायद उस तरह से चूमे जैसे अजय मनीषा को कर रहा था
चूमे, स्तन को दबोचे और पूरी जिस्म को ही मसल दे, हाँ यह सब ख्याल आ रहे थे कविता भार्गव के मन्न में एक सुलझी हुई ५४ साल की पड़ी लिखी औरत एक अद्बुध मायाजाल में फस रही थी l कम्बख्त रेखा! उसे अपनी सहेली पे आज बहुत गुस्सा आए रही थी l
वोह जैसे तैसे सो जाती हैं l फिर कुछ ही पलों में उसे एक सपना आती हैं राहुल और रेखा को लेके तरह तरह के विचित्र तस्वीरें आ रही थी l सपने में केवल कविता सिसक रही थी और दांतों तले होंट दबा रही थी l
वह दूसरे और मनीषा और अजय सम्भोग में व्यस्त थे के तभी मनीषा को कुछ शरारत सूझी l
मनीषा : हहहहह! उम्म्म जानु!! एक खेल खेलते हैं चालूऊह उफ़ धीरे करो न!
अजय : मॉनीई तेरी यह जिस्म मुझे ! पागल बना देगा! उफ्फ्फ लगता हैं थोड़ी भर गयी हो!
मनीषा : ममममम वैसे मैं मेरी सास के मुकाबले कुछ नहीं हूँ! (मुँह बनाती हुई)
अजय का लुंड नजाने क्यों और तन गया और वोह और गांड हिलने लगा, मनीषा समझ गयी कि माजी के ज़िकर से अजय थोड़ा उत्तेजित हो चूका था l वह चुप चाप सम्भोग का आनन्द लेती रह l बिस्तर हिल रहा था और स्प्रिंग की आवाज़ कमरे में गूंज उठा l
कुछ पलों में अजय ने अपना सारा वासना और प्यार मनीषा के अंदर उड़ेल दिया मिया बीवी पसीने में लटपट सो गए चैन की नींद में l जहां एक तरफ यह मिया बीवी तृप्त होके सो रहे थे वह दूसरे और कविता की नींद बेचैनी से भरी हुई थी l
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RE: Antervasna कविता भार्गव की अजीब दास्ताँ
मनीषा अपनी कमरे में यहाँ से वहा तेहै ने लगती हैं और सोचने लगी की आखिर किस चीज़ से उसकी सास इतनी अकारहित थी, कहीं वह पोर्न या ब्लू फिल्मों के चक्कर में तो नहीं थी! अब मनीषा को किसी भी कीमत पे जननि थी कि कविता की ब्राउज़र हिस्ट्री में क्या क्या थी, पर क्या वोह फ़ोन लॉक पे रखती हैं! अब तो उत्सुकता इतनी बढ़ गयी थी के मनिषा से बिलकुल रह नहीं गयी और एक प्लान बनाने में जुट गयी l
शाम को जब कविता टीवी देखती हैं तब मनिषा आ जाती हैं उसके पास और बड़ी प्यार से उसकी और देखने लगी l कविता अपनी बहू की और मुड़ जाती हैंà l
कविता : अरे बहू! बड़ी प्यार आ रही है मुझपे आज! ऐसे क्या देख रही है?
मनीषा : वोह दरअसल..... मम्मीजी! आपकी फ़ोन चाहिए थी! दरअसल मेरा बैलेंस खत्म हो गया हैं!
कविता : हम्म्म्म कॉल या कुछ और करने की ईरादा है? (थोड़ी बनावटी अंदाज़ के साथ)
मनीषा : (थोड़ी बिन्दास होक) हाँ मुम्मीजी! आपके आषिक़ के फोटोज देखनी हैं!
कविता (फ़ोन देती हुई) ले बात कर! तू नहीं सुधरेगी!
मनीषा फ़ोन लेती हुई मटक मटक के अपनी कमरे में चली जाती हैं और फ़ौरन फ़ोन को चालू किया तो सुकून मिला कि कोई पासवर्ड का झंझट ही नहीं थी। बिना विलम्भ किये ब्राउज़र की हिस्ट्री पे जाके वोह सबसे नए नए लगाई साइट्स को परखने लगी तो हैरान रह गयी l
"हईए मेरे प्रभु! यह क्या है ! माँ बेटे की सेक्सी कहानियां! वाह मुम्मीजी वाह!" मनीषा की आँखें बड़ी की बड़ी रह गयी, उसकी सास किस बात से उत्तेजित हो रही थी आज उसे पता चली l
मनीषा को यकीन ही नहीं हुई कि उसकी सुलझी हुई सास ऐसी सोच विचार में फस सकती है l उसे मालूम करनी ही थी कि आगे आगे क्या हो सकता हैं l
......
शाम के वक़्त...
कविता और मनीषा रसोई के काम में रात को जुट जाते हैं कि तभी मनीषा एक चिकोटी काट देती हैं अपनी सास के कमर पर l कविता सिसक उठी अपनी बहू की इस हरकत से l
कविता : शरारत करने की भी हद होती हैं बहु!
मनीषा : अरे मुम्मीजी! आप से तो काम ही हूँ! आप तो मुझसे भी आगे निकल जाएगी एक दिन!
कविता : क्या बकवास कर रही हैं तू??? (काम थाम लेती है)
मनीषा अपनी सास की मुलायम गालों को मसल देती है और एक प्यारी सी चुम्मी देती हैं एक गाल पर। कविता थोड़ी सकपका जाती हैं, हैरानी से उसके तरफ देखने लगती हैं
मनीषा : (नटखट अंदाज़ में) "अरे बेटा आज मुझे तंग मत कर!!!! उफ्फफ्फ्फ़ कब से तरस रही हु तेरी लिए!!!"
कविता घबरा गयी, यह तो उसकी कहानी के कुछ अलफ़ाज़ थे जो वोह उस गन्दी साइट से पढ़ रही थी l भल मनीषा को कैसे मालूम इसके बारे में???? उसकी खुद की सांसें तेज़ हो गयी और बदन और माथा पसीने पसीना होने लगी
मनीषा : क्यों मुम्मीजी! कुछः सुने सुने अलफ़ाज़ लग रही है न???
कविता बड़ी सोच में पड़ गयी और बस चुप रही, अनजाने में उसकी पल्लू सरक जाती हैं और मोटे मोटे स्तान ब्लाउज में कैद अवस्था में दिखाई देने लग गयी मनीषा को। अपनी सास की स्तन का मानसिक जायज़ा लेती हुई वोह खुद हैरान रह गयी और एक लम्बी सांस छोड़ने लगी
मनीषा : सच बताईये! यह ऐसी ही कहानियां क्यों पढ़ने लगी आप अचानक???? क्या सुख मिलता हैं आपकी??? बताईये मम्मीजी!! खामोश मत रहिये ऐसे!
कविता शर्म से पानी पानी हो रही थी। भला यह नौबद कैसे आगयी उसकी ज़िन्दगी में, उसे खुद समझ में नहीं आ रही थी l सब शायद उसकी सहेली रेखा की किया धरा हैं! न वह उसकी बातों का यकीन करती और नहीं यह नौबद आती l
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RE: Antervasna कविता भार्गव की अजीब दास्ताँ
कविता ठान लेती हैं के वोह मनीषा को सब बता देगी अपनी सहेली की समस्या के बारे में, क्योंकि मनीषा खुले विचार वाली औरत थी, वोह सब कुछ सुन लेती है और खुद बा खुद हाथ मुँह को धक् लेती हैं l कविता एक ही सांस में सब कह देती है न और रुकते ही एक लम्बी सांस छोड़ने लगी l
मनीषा : मम्मीजी! यह आपने अच्छा नहीं किया! एक माँ को एक बेटे के प्रति उकसाके आयी हैं आप! बाप रे!!!!!!! घोर अनर्थ कर लिया आपने तो!
कविता सिसक उठी बहू के बातों से!
मनीषा : मम्मीजी!!!!! अब क्या आप अपने बेटे के साथ कहीं?????
कविता फिर से सिसक उठी। दिल की धड़कन मानो जैसे धक् धक् से कुछ ज़्यादा कर रहे थे। सच तो यह था के वोह खुद उन कहानियों को परके और अपनी सहेली की बातों को सुनके काफी गरम हो चुकी थी अंदर ही अंदर l
मनीषा भी सास को उकसाने में व्यस्त हो गयी। "अब मुम्मीजी! वैसे अगर आपकी यह ख़यालात हैं! तो मैं कुछ मदत कर सकती हूँ आपकी!" इतनी कहके एक मस्त मुस्कान देने लगी l
कविता हैरान थी "कक्क ककैसी मदत बहु????"
मनीषा : हम्म्म्म एहि! अगर आप चाहो तो रेखा आंटी की तरह आपका भी चक्कर चल सकता हैं (थोड़ी शर्माके) अपने बेटे से!
कविता की सास फूल गयी और जिस्म काँप उठी!
मनीषा : मम्मीजी! सच कहूँ! तो आप यकीं ही नहीं करेंगे मेरे!
कविता : कक्क कैसा सच?
मनीषा : आपका अपना लाड़ला खुद बड़ी उम्र की औरतों पर फ़िदा हैं!! मैं कोई बनावटी किस्सा नहीं सुना रही हूँ आपको! यह सच हैं क्योंकि उनकी हिस्ट्री पे बहुत से ऐसे ४० प्लस और ५० प्लस महिलाओ के अधनँगान तस्वीरें देखि हैं मैंने
मम्मीजी! आपका एक जवान मर्द के प्रति आकर्षित होना उतना ही लाज़मी हैं!
कविता आज मनीषा की सुलझी हुई स्वाभाव से हैरान रह गयी। उसकी जिस्म तो पसीने में लटपट थी लेकिन छूट की होंटों पर बूँदें छलकने लग चुकी थी, काश! काश कोई एक बार उसकी जांघों के बीच में एक कीड़ा ही चोर दे!
कविता : ककीड़ा कोई कीड़ा चोरडो न अंदर!
मनीषा : क्या???
कविता लाल हो गयी शर्म से, पर पल्लू को उठाया भी नहीं अब तक।
मनीषा : मम्मीजी! पल्लू के साथ साथ अब आपकी पोल भी खुल गयी हैं। अब आप मेरी बात को सुनिये और समझिए! अपनी भावनाओ का इस तरह गला घोंटने की गलती न करे! अगर रेखा चची कर सकती हैं तो आप क्यों नहीं!
कविता हैरान रह गयी बहू की बातों से l
कविता बड़ी उत्सुक थी जानने के लिए के मनीषा के मनसूबे क्या क्या थे l मनीषा की मन्न में कुछ अपने ही लट्टू फूट रहे थे l
मनीषा : मम्मीजी! आप को शायद नै मालुम के आप के पास क्या हैं!
कविता : क्या मतलब?
मनीषा : (सास की कमर पर चिकोटी मारती हुई) यह गद्देदार कमर आपकी उफ्फ्फफ्फ्फ़! हीी!
कविता की धड़कन बार गयी अचानक से
मनीषा : और यह गुलाबी फुले हुए गाल आपके!
कविता सिसक उठी
मनीषा : आपको क्या मालूम मुम्मीजी! आपके बेटे को ऐसी औरतों की तस्वीरें देखना ज़्यादा पसंद है! जी! मैंने खुद उनके ब्राउज़र हिस्ट्री को कहीं बार देखि हैं! अरे वोह शकीला से लेके न जाने किन किन महिलाओं को सर्च करते बैठते हैं l
कविता की धड़कन इतनी तेज़ हो गयी कि उसे लगी जैसे कोई उसकी प्राण शरीर से निकाल रही हो, कुछ अध्बुध सी कशिश छाने लगी उसकी मन्न में आज मनीषा ने वोह चिंगारी जला दी जो अब जंगल को जलने वाली थी। बिना झिझक या संकोच के वोह आगे सुनने लगी।
मनीषा : मम्मीजी???? आप है न? (उत्तेजित होक)
कविता : बबबहहहु! ममैं तो रेखा को ही पागल समझ रही थी, तू तो मुझे भी पागल बना रही हैं अब! ककया आ अजय सचमुच ऐसी तस्वीरें???? है भगवन!
मनीषा : (सास के गले लगती हुई) अब सुनिए मेरी बात! मैं चाहती हूँ आप रेखा चची से पहले तीर मार दे! ताकि आप उन्हें कल्पना से नहीं बल्कि तजुर्बे से सलाह देंगी! (कायदे से आँख मारती हैं)
कविता को लगा किसी ने एक कतरा उसकी जांघों के बीच में से टपका दी हो! वोह अब मदहोश हो रही थी बहू के बातों से। यूँ तो वोह एक सुलझी हुई औरत थी लेकिन आज वोह कुछ ज़्यादा ही कामुक हो उठी अपनीत बहु की बातों से, हाँ! बात तो सही की हैं मनीषा ने के अगर तजुरबा होजाये तो सलाह देने में आसानी तो ज़रूर होगी l
कविता की चिंतन देखके मनीषा उसकी गाल सहला देती हैं अपनी हाथों से, जैसे मानो बहुत प्यार हो अपनी सास पे l
कविता बड़ी उत्सुकः थी जानने के लिए के मनीषा के मनसूबे क्या क्या थे l मनीषा की मन्न में कुछ अपने ही लट्टू फूट रहे थे l
मनीषा : मम्मीजी! आप को शायद नै मालुम के आप के पास क्या हैं!
कविता : क्या मतलब?
मनीषा : (सास की कमर पर चिकोटी मारती हुई) यह गद्देदार कमर आपकी उफ्फ्फफ्फ्फ़! हीी!
कविता की धड़कन बार गयी अचानक से
मनीषा : और यह गुलाबी फुले हुए गाल आपके!
कविता सिसक उठी
मनीषा : आपको क्या मालूम मुम्मीजी! आपके बेटे को ऐसी औरतों की तस्वीरें देखना ज़्यादा पसंद है!
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RE: Antervasna कविता भार्गव की अजीब दास्ताँ
मनीषा : आपको क्या मालूम मुम्मीजी! आपके बेटे को ऐसी औरतों की तस्वीरें देखना ज़्यादा पसंद है! जी! मैंने खुद उनके ब्राउज़र हिस्ट्री को कहीं बार देखि हैं! अरे वोह शकीला से लेके न जाने किन किन महिलाओं को सर्च करते बैठते हैं l
कविता की धड़कन इतनी तेज़ हो गयी कि उसे लगी जैसे कोई उसकी प्राण शरीर से निकाल रही हो, कुछ अध्बुध सी कशिश छाने लगी उसकी मन्न में, आज मनीषा ने वोह चिंगारी जला दी जो अब पूरे जंगल को जलने वाली थी। बिना झिझक या संकोच के वोह आगे सुनने लगी l
मनीषा : मम्मीजी???? आप है न? (उत्तेजित होक)
कविता : बबबहहहु! ममैं तो रेखा को ही पागल समझ रही थी, तू तो मुझे भी पागल बना रही हैं अब! ककया आ अजय सचमुच ऐसी तस्वीरें???? है भगवन!
मनीषा : (सास के गले लगती हुई) अब सुनिए मेरी बात! मैं चाहती हूँ आप रेखा चची से पहले तीर मार दे! ताकि आप उन्हें कल्पना से नहीं बल्कि तजुर्बे से सलाह देंगी! (कायदे से आँख मारती हैं)
कविता को लगा किसी ने एक कतरा उसकी जांघों के बीच में से टपका दी हो! वोह अब मदहोश हो रही थी बहू के बातों से l यूँ तो वोह एक सुलझी हुई औरत थी लेकिन आज वोह कुछ ज़्यादा ही कामुक हो उठी अपनीत बहु की बातों से, हाँ! बात तो सही की हैं मनीषा ने के अगर तजुरबा होजाये तो सलाह देने में आसानी तो ज़रूर होगी l
कविता की चिंतन देखके मनीषा उसकी गाल सहला देती हैं अपनी हाथों से, जैसे मानो बहुत प्यार हो अपनी सास पे l
कविता बड़ी उत्सुकः थी जानने के लिए के मनीषा के मनसूबे क्या क्या थे l मनीषा की मन्न में कुछ अपने ही लट्टू फूट रहे थे l
मनीषा : मम्मीजी! आप को शायद नै मालुम के आप के पास क्या हैं!
कविता : क्या मतलब?
मनीषा : (सास की कमर पर चिकोटी मारती हुई) यह गद्देदार कमर आपकी उफ्फ्फफ्फ्फ़! हीी!
कविता की धड़कन बार गयी अचानक से
मनीषा : और यह गुलाबी फुले हुए गाल आपके!
कविता सिसक उठी
मनीषा : आपको क्या मालूम मुम्मीजी! आपके बेटे को ऐसी औरतों की तस्वीरें देखना ज़्यादा पसंद है! जी! मैंने खुद उनके ब्राउज़र हिस्ट्री को कहीं बार देखि हैं! अरे वोह शकीला से लेके न जाने किन किन महिलाओं को सर्च करते बैठते हैं l
कविता की धड़कन इतनी तेज़ हो गयी कि उसे लगी जैसे कोई उसकी प्राण शरीर से निकाल रही हो, कुछ अध्बुध सी कशिश छाने लगी उसकी मन्न में l आज मनीषा ने वोह चिंगारी जला दी जो अब पूरे जंगल को जलने वाली थी l बिना झिझक या संकोच के वोह आगे सुनने लगी l
कविता की चिंतन देखके मनीषा उसकी गाल सहला देती हैं अपनी हाथों से, जैसे मानो बहुत प्यार ायी हो अपनी सास पे l
मनीषा : मम्मी जी! आप इसे अपनी मनोविज्ञान की प्रैक्टिस ही समझ के आनंद लीजिये, क्या पता अजय और मेरे रिश्ते में आपके वजह से और रस आजाये!
कविता : (हैरान होके) ययएह टटू कह रही हैं बहु??? क्या ऐसे करने से तेरे और अजय के रिश्ते में फरक नहीं आएगा???
मनीषा : (मुस्कुराती हुई) अरे मुम्मीजी! रिलैक्स!!!! अब वोह बेचारे मुझसे सम्भोग करके भी शकीला जैसी गरदायी जवानी की तस्वीरो पर मूठ मारते हैं! अरे उन्हें क्या पता के एक गदरायी औरत खुद उनके घर पर ही हैं! (फिर से कमर की चिकोटी लेती हैं)
कविता शर्म और उत्तेजना से पानी पानी हो गयी, न जाने वह क्या सिद्धांत लेगी l
.......
वह रेखा अपने घर पे चुपके से ज्योति की कमरे में जाके कुछ निघती वगेरा देख रही थी l कविता की बातें उसे उत्तेजित करने लगी, ख़ास जब उसने अपनी बेटी को उकसाने वाली सलाह मिली थी, तब
रेखा अपनी बहू की एक एक पारदर्शी कपड़ो को देख ही रही थी कि तभी पीछे से एक लड़की कस्स के उसे पकड़ लेती l लड़की कम उम्र की थी, कुछ २० से २१ साल तक, खुले बाल, रसीले होंठ और एक मदमस्त बदन , वोह कोई और नहीं बल्कि राहुल की बहन रेनुका थी l
रेणुका : क्या माँ! भाभी ौत भइआ की कमरे में क्या कर रही हो???
रेखा : अरे कुछ नहीं रेनू! बस ऐसे ही l एक ब्रा खो गयी थी बहुत हफ्तों पहले, सोचा कि शायद यही कहीं होगी l
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रेणुका : (खिलखिला के) क्या माँ! यह सारे के सारे ब्रा तो भाभी के ही लायक हैं! आप की तो साइज (शर्माके)
रेखा : एक मारूंगी! बहुत बकवास करने लगी है आजकल तू! आने दे भइआ को! फिर देखना!
रेणुका : (नखरे दिखाती हुई) उफ्फ्फ! माफ़ करना प्रिय माते! हमें क्षमा कर दीजिये! परररर माँ!
रेखा : क्या ???
रेणुका : कुछ नहीं! (भाग जाती हैं कमरे में से)
रेखा : ये लड़की पागल करके रहेगी मुझे! लेकिन, इसकी चाल तो ज़रा देखो! ऐसी मोटी मोटी जांगों पे सिर्फ घुटनो तक पंत पहनती हैं! बेशरम कहीं की! यहाँ में अपने छिपे हुए हवस में जल रही हूँ और इसे केवल अपनी सुख सुविधा की पारी है!!
रेखा फिर अपनी काम काज में जुट जाती हैं, बहु की अलमारी में से कुछ यहाँ वहाँ मोइना करती हुई उसे एक बहुत ही सेक्सी किसम की नाइटी नज़र आती हैं l नाइटी की हुलिया तो कुछ ऐसी थी कि मानो मर्दो का मैं भने के लिए जैसे सिलाई की गयी l
देखके ही रेखा की तन बदन में एक आग फड़कने लगी l
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08-21-2020, 02:15 PM,
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desiaks
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RE: Antervasna कविता भार्गव की अजीब दास्ताँ
उस नाइटी को छूते ही जैसी करंट सा लग जाती हैं रेखा की बदन में वह झट से उठके उसे अपने कमरे में लेके चल पड़ती हैं l वह अपने कमरे में रेणुका , माँ के इरादो से बिलकुल अंजान अपनी फ़ोन पे मस्त मगन थी l वह दूसरे और रेखा लेटी लेटी उस नाइटी की तरफ देखने लगती हैं गौर से, शायद अब उसे कविता को एक कॉल तो करनी चाहिए, वह झट से उस नाइटी की तस्वीर अपनी सहेली को व्हात्सप्प कर देती हैं और कैप्शन में लिखती हैं 'मेरा पहला कदम' l
उस तस्वीर को देखते ही कविता की तो जैसे होश ही उड़ गयी, बेचारी अभी अभी एक मनोविज्ञान के किताब लेके बैठी थी कि अभी ऐसी अश्लील किस्से होने थे l उससे रहा नहीं गयी, फ़ौरन रेखा को कॉल लगाती हैं l
रेखा : हाँ बोल!
कविता : मैडम! क्या है यह सब???
रेखा : हां रे!! कैप्शन बिलकुल सच हैं!
कविता : उफ्फ्फ क्या तू सचमुच....
रेखा : हाँ! क्यों नहीं
कविता : वैसे नाइटी है बहुत ही सेक्सी किसम की
रेखा : अरे मैं भी तो सेक्सी हूँ!
कविता : (हैरानी से) रेखु! चुप कर!!
रेखा : सच कह रही हो कवी! आज सचमुच जी कर रहा हैं के मैं ज्योति की सौतन बन जाओ!
यह दोनों सहेलियां अपनी गपशप में व्यस्त थे के दूसरे और एक बियर बार में राहुल का मुलाक़ात अजय से हो जाता हैं l बात दरअसल यह थी कि रेखा और कविता के तरह यह दोनों भी अच्छे दोस्त थे, वोह भी कॉलेज के वक़्त से l
राहुल : अरे यार कैसा हैं तू?
अजय : अबे साले! तू बता
राहुल : चल रहा हैं यार, बस क्लाइंट्स के नखरे और लफरे!
अजय : क्यों, सिर्फ क्लाइंट्स के या फिर कोई लौंडियो के भी लफरे!
राहुल : क्या यार! तू भी ! कुछ भी बोल देता हैं!
अजय : अबे क्यों न बोलो! कॉलेज में तो तेरे काफी लफरे थे! यहाँ तक तो लौंडे भी तेरे पीछे पड़ते थे! (जांघ पे थपकि लगा के)
राहुल : अबे साले! वोह तो कॉलेज के मुस्टण्डे थे! बाप रे बाप साले सब से सब आवारा सांड कहीं के, याद हैं तुझे वोह परुल मेहता का केस?
अजय : अबे हाँ रे! उसे कौन भूल सकता हैं, साली क्या आइटम थी यार! उफ्फफ्फ्फ़ मस्त कसी हुई माल!
राहुल : अबे उसकी कैंटीन में ऐसी बलत्कार हुई कि पूछो मत! फिर आयी ही नहीं कॉलेज में वापस!
अजय : अबे वोह भी कम नहीं थी! बस ऐसे ही छोटे छोटे स्कर्ट पहनेगी तो क्या लोग आरती करेंगे!
राहुल : खैर, जाने दे यह सब, और बता कविता आंटी कैसी हैं??? और भाभी?
अजय : हाँ ठीक हैं! तू बता आंटी और रेनू कैसी है?
राहुल : सब ठीक! अरे यार उस दिन एक अजीब सा किस्सा हो गया था! तू तो जानता हैं न के ज्योति मइके गयी हुई हैं और मैं यहाँ तनहा मर रहा हूँ!
अजय : क्या! भाभी मइके में हैं?? तो तेरा रात कैसे कट रहा हैं बे??
राहुल : अबे सुन तो पूरी बात! तो उस दिन रसोईघर में नजाने क्यों माँ को मैंने ज्योति समझ कर पीछे से ही हामी भर दी!
अजय बियर लेटे लेटे जैसे झटका खा गया हो "क्या??"
अजय इस वाकया से काफी हैरान रह गया l
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