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RE: Antervasna कविता भार्गव की अजीब दास्ताँ
खांने के टेबल पर कविता, उसकी बहू और अजय बेथ पड़ते हैं l
अजय : माँ! खुशबु तो बढ़िया आया हैं! क्या बनाया ?
कविता : अरे पगले! पालक पनीर है और क्या! तू भी न!
मनीषा कुछ मनसूबे बनाती हुई अपने में ही खोयी थी कि तभी उसकी लबों पर एक शैतानी मुस्कान आयी l
मनीषा : अरे हाँ! यह मम्मीजी ने ख़ास आप के लिए बनाया हैं!
अजय : ममममम! बहुत बढ़िया हुआ हैं! उफ़! माँ तुस्सी छा गए!
मनीषा : अरे अरे ऐसे थोड़ी न शुक्रियादा करते हैं! ज़रा प्यार से कीजिये न!
अजय और कविता दोनों मनीषा की तरफ देखने लगते हैं l दोनों के चेहरे पे अस्चर्य का भाव था मनीषा मैं ही मैं उत्साहित हो उठी l
अजय : मान्य! मैं समझा नहीं
मनीषा : तुम्हारी माँ ने बड़े प्यार और अदब के साथ तुम्हारे लिए कुछ बनाया! मैं तो इतना ही कहूँगी के कम से कम उन ममता से भरी और प्यार भरे हाथों को ही थोड़ा सा (थोड़ी रुक के) चुम लो!
यह कथन से कविता और अजय दोनों हक्काबक्का रह जाते हैं l
कविता : (थोड़ी शर्माके) ारे! इसकी क्या ज़रूरत है बहु! मेरा अपना लाल है! जब चाहे कुछ भी खिला सकती हूँ!
मनीषा : (अजय के तरफ) देखिये! अगर आपने यह नहीं किया, तो मैं समझूंगी के अपने माँ के प्रति आपका बस कर्त्तव्य है, कोई प्यार नहीं! (मुँह बनाती हुई)
अजय भी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ और माँ के तरफ बढ़ने लगा, न जाने क्यों कविता थोड़ी तेज़ सांसें लेने लगी l परिस्थिति तो स्वाभाविक था, न जाने क्यों फिर यह सब उसे अनुभव हो रही थी। आख़िरकार उसके हथेलियों को अजय प्यार से थाम लेते हैं l
अजय : माँ! सच में इन हाथों में बहुत जादू हैं (एक हाथ को चूमते हैं), आपका प्यार इन हाथों में झलकता हैं (दूसरे को भी चूम लेते हैं)
कविता ममता से ज़्यादा कामुकता महसूस कर रही थी, उससे रहा नहीं गयी l
कविता : बीटा! और बोल! बोलता जा। खोल्दे अपने दिल की भण्डार आज! बोल और क्या क्या सोचते हैं मेरे बारे में!!
अजय : (हाथों को बारी बारी चूमता हुआ) माँ! इन हाथों में स्वर्ग का प्रतिभिम्ब नज़र आता हैं मुझे!
कविता : (ममता और वासना का मिश्रण भरे स्वर में) अजेय!! मेरा बेटा! मेरा लाडला!
अजय : माँ!
कविता ( मनन में) अजय! हाथों को चोर! मुझे एक बार गले लगा ले! उफ्फ्फ्फ़ अज्जु! कुछ कर मुझे!
अजय (मनन में) आज माँ को कुछ ज़्यादा ही नज़दीक पा रहा हूँ मैं! उफ्फ्फ यह साले राहुल के वजह से! खुद आपने माँ के पीछे पड़ा हुआ हैं और मेरा भी दिमाग ख़राब कर दिया!
कविता : बीटा! क्या सोचने लगा?
अजय झट से उठ खड़ा हो जाता हैं और कमरे की और चल परता हैं। जाते जाते मनीषा ने उसके ट्रॉउज़र में उभार का जायज़ा कर ली थी। वोह भी मटकती हुई अपने पति के पीछे पीछे चल पड़ती हैं!
रात को बिस्तर के स्प्रिंग फिर हिके मिया बीवी के कमरे में। ज़ोरों की चुदाई के बाद अजय और मनीषा फिर झाड़ गए और सो गए। राहुल के बातें अभी भी गूंज रहा था अजय के मन्न में l
है, दूसरे और कविता अपने हाथों को बार बार देखके बेटे के मीठे चुम्बनों को दिल की तिजोरी में समाये एक प्यारी सी नींद लेलेती हैं l
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RE: Antervasna कविता भार्गव की अजीब दास्ताँ
यूँही ४ से ५ दिन बीत गए और राहुल और अजय की बेचैनी अपने अपने माँ के प्रति बार जाते हैं l मनीषा हर रात को अपने पति को उकसाने लगी और उनके सम्भोग में चार चांद लग जाते हैं l
एक दिन यूँ हुआ कि रविवार का दिन था और राहुल वोह कर बैठा जो उसने कुछ दिन पहले सोचा भी नहीं था l रेखा की एक तस्वीर लिए जोरों से मुठ मारने लगा l 'छह पछह' की आवाज़ कमरे में गूंज उठा और यह नौजवान अपने माँ के नाम पर अपने लंड को मसलता गया l
मसलते मसलते वोह भूल ही गया के पीछे फ़ोन की घंटी बजी जा रही थी, वह बेचैन हो ही रहा था के कमरे में एक औरत प्रवेश करती हैं और एक पोज़ दिए खड़ी रहती हैं l वोह खासने के नाटक करती हैं तो घबराके राहुल पीछे देखता हैं तो खुद ब खुद लुंड में से हाथ हत जाता हैं l
जी हाँ! सामने खड़ी थी उसकी धर्मपत्नी ज्योति, जो मइके में से वापस आगयी थी l
राहुल : तट तुम कब आयी???
ज्योति : हम्म्म पतिदेव प्यारे! शायद आप भूल गए थे के घर पे रेनू हैं! और उसने जाके दरवाज़ा खोला हैं!
राहुल अपने पजामा ऊपर कर लेते हैं और बड़े प्यार से ज्योति को गले लगाके उसे चूमने ही वाला था के उसके चेहरे पर ज्योति की हाथ थम जाती हैं l
ज्योति : वैसे आप को ज़रा सी भी शर्म और हया है या नहीं???
राहुल : मैं समझा नहीं!
ज्योति : ज़रा अपने पैजामे में थोड़ा काबू करो! क्या होता अगर मेरी जगह माजी या रेनू आजाते तो!!
बीवी के इस कथन से राहुल का लुंड मुर्झा के पाजामे में आराम करने लगता हैं l उसकी यह हालत देख के ज्योति खिलखिला उठी और एक प्यारी सी चुम्बन अपने पति के गालों पर देती हैं l
ज्योति : उफ्फ्फ्फ़ (हास् के) आप इतने भावुक हो जाते हैं कभी कभी के! खैर मैं फ्रेश हो जाती हूँ (कहके नहाने चली गयी)
राहुल थोड़ा रहत लिया हुआ अपने लंड के न झरने के क्रोध को काबू कर लिया और फ़ौरन माँ के तस्वीर को छुपा लेते हैं ड्रावर के अंदर l
.......
शाम के वक़्त आगया और ज्योति और रेणुका बाहर बालकनी पे बैठ जाते हैं अपने ननद भाभी गपशप लिए l
रेणुका : वाओ! भाभी आज मौसम कितनी मस्त है!
ज्योति : वोह सब तो ठीक है! पर बाप रे तेरी पिछवाडा और जाँघे कितनी फूल गयी हैं!
रेणुका : (शर्माके) क्या भाभी! अब इतनी भी मोटी नहीं हुई हूँ
ज्योति : चुप कर! २ महीने क्या गयी मैं, तेरी तो साइज ही बढ़ गयी हैं!
रेणुका ; भाभी,चुप भी कीजिये आप! बस थोड़ी सी आलसी हो गयी हूँ और कुछ नहीं! (थोड़ी सोच के( और हाँ थोड़ी चिप्स विप्स भी बार गयी
ज्योति : क्या बात बस इतनी सी हैं?
तभी वहा पे आजाती हैं रेखा। हाथ में कुछ पकोड़े और मिठाई लिए हुए l
रेखा : अरे क्या बातें हो रही है रेनू?
ज्योति : (पकोड़ो को देखती हुई) माजी! खुशबु तो बढ़िया आयी है! हम्म्म्म !!
लेकिन रेखा केवल रेनू से बातें किये जा रही थी l ज्योति को थोड़ी बुरा लगी, पर बोली कुछ नहीं l
रेखा : और हाँ बहु! (ज्योति की तरफ बिना देखे) याद से सारे कपडे वाशिंग मशीन में डाल देना! और हाँ रात के खाना अभी से तैर करलो! राहुल क्लब से आता ही होगा कभी भी l
इतना कहना था और रेखा उठ के चल पड़ती हैंà, रेनू और ज्योति वापस अपने गप्शप पे लग जाते हैं l धीरे धीरे रात हो जाता हैं और खाना खाने के बाद राहुल बस चुदाई का सिलसिला शुरू करने ही वाला था के ज्योति उसे नकद देती हैं l
राहुल : डार्लिंग अब क्या हुआ???
ज्योति : माजी न जाने क्यों मुझे अजीब निगाहों से देखती रहती हैं! पहले तो ऐसा न थी! बात तो दूर!
राहुल : अरे ऐसा क्यों भला?
ज्योति : वोह सब तो चोरी! यह रेनू भी बहुत चालाक हो गयी हैं आजकल!
राहुल : अरे ऐसा क्यों भला?
ज्योति : वोह सब तो चोरी! यह रेनू भी बहुत चालाक हो गयी हैं आजकल!
ज्योति अपनी निगाहें राहुल की और करके और काफी चिरके बोल पारी "कमबख्त मेरी सबसे अछि
नाइटी लेली! और ऐसी भाव दिखाती हैं जैसे उसने कुछ किया ही न हो!"
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RE: Antervasna कविता भार्गव की अजीब दास्ताँ
आख़िरकार खंडाला का दिन ाही गया और दोनों परिवारें काफी खुश थे और उत्साहित भी l रेणुका, मनीषा और ज्योति मस्त जीन्स के ऊपर टॉप समेत जैकेट पहने तैयार हो जाते हैं, तो दूसरे और दोनों सुडोल औरतें भी आज सलवार कमीज में तैयार हुए थे l अजय और राहुल के आँखें तो जैसे कविता की मोटी मोटी जांघों पर ही चिपक गयी हो, लेकिन फिर टक्कर देने के लिए रेखा भी कम नहीं थी l
आख़िरकार सूमो चल पड़ा अपनी मंजिल की और l
आगे की तरफ राहुल बैठ गया ड्राइवर के साथ और पीछे के तरफ बैठ गयी रेखा, कविता और बीच में अजय l पीछे डिक्की के तरफ बैठ गयी रेणुका, मनीषा और ज्योति l
सब खिड़की से मंज़िल का आनंद लेने लगे l रेणुका अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से ज्योति और मनीषा को पकने लगी, लेकिन फिर यह बीवियाँ भी कम नहीं थी l
रेणुका : मनीषा भाभी आप कितनी हॉट लग रही हो जीन्स में! ओह गॉड! मैं क्या कहूँ!
मनीषा : (हास् के) अरे रेनू! तुम भी कम सेक्सी नहीं हो! यह गद्देदार जाँघे तो बिजली गिरायेगी लोगों पर
ज्योति ; हाँ! बस कहती रहती हैं! और पूछो तो कहती हैं के कोई दीवाना नहीं हैं इसकी!
मनीषा हसने लगी l
रेणुका : चुप भी करो भाभी! मनीषा भाभी क्या सोचती होगी! अरे मैं तो एक मासूम सी नन्ही सी परी हूँ (मासूम बर्ताव करने लगी)
ज्योति : (ननद की सुडौल पेट पे चिंटी काटके) मासूम और तू? नन्ही सी जान और तू? अरे गौर से चला कर रस्ते पे देखले कहीं कोई आवारा सांड न तेरे पीछे पड़ जाये दम हिलाते हुए!!
रेणुका : क्या भाभी! छेड़ो मत ऐसे!
ज्योति : अरे जानेमन! यह खिलती जवानी अब रुकेगी नहीं! अरे मुझे और मनीषा को ही देखले! शादी से पहले तम्बू जैसे थे और अब हमारे साइआ पतियो के कारन जवानी और भारी होती गयी l
मनीषा : उफ्फ्फ ज्योति! अब बस भी कर! बेचारी अभी अभी कॉलेज में आई हैं!
ज्योति : अरे तो क्या मस्ती नहीं कर सकती? अपनी भैया की तरह क्या अनार्य ही रहेगी?
तीनो ऐसे ही हां खेले बातें करने लगे l
वह सामने बैठे अजय दो सुडौल गदराये औरतों के बीच बैठे जन्नत का साइड में लगा हुआ था। रेखा और कविता, दोनों के मोटे मोटे जांघ अजय के इर्द किरद कस गए थे और सच पूछिए तो तीनो को इसमें मजा आने लगी l
रेखा : अजय बीटा! तू आराम से बैठा तो हैं न?
अजय : हाँ आंटी! फ़िक्र मत कीजिये
कविता खिड़की के बाहर देख रही थी और पुरानी यादों में खो गयी जब वह और उसके पति लंबे ड्राइव पव पे इसी रास्ते से गए थे शादी के बाद l
वोह खोई हुई थी कि उसकी कन्धों को कोई हाथ मसल देता हैं, एक सिसकी मुंह से निकालती हुई वोह नैनो को पीछे ले गयी तो देखि अजय मुस्कुराके उसे ही देखे जा रहा था, लेकिन वोह नज़रें केवल एक पुत्र का नहीं था , बल्कि उसमे काफी हवास भरा हुआ था, कहीं कुछ तो खोज करने में जुटा हुआ था। एक बेचैनिट भर गयी दोनों माँ बेटे के आँखों में। एक दूसरे में जैसे खो जाना चाहता हो l
अजय : माँ क्या सोचने लगी?
कविता : कुछ नहीं बेटा! तेरे पप्पा की याद आगयी!
अजय (कन्धों को और कस के मसलता ) माँ! मैं बहुत खुश हूँ! सच कहूं! खुले ज़ुल्फ़ों में तुम बहुत आकर्षित लगती हो! और (माँ के मस्त बदन को देखता हुआ) यह सलवार कमीज जैसे ......... क़यामत लग रही हो! (थोड़ा रुक के) माँ!
कविता इस ठैराव से थोड़ी सिसक उठी, कुछ बोली नहीं, बस खिड़की के बाहर देखने लगी l अजय अपने माँ के बारे में सोचता गया और वह पास बैठी रेखा सामने बैठे राहुल की और देख रही थी काश वोह भी ऐसे ही राहुल से चिपकी बैठी होती, तो कितना मज़ा आता l
वक़्त बिताने के लिए वोह अजय से बातें करने लगी
रेखा : अच्छा अजय यह बताओं! अपने माँ पे क्या अच्छा लगता हैं तुम्हे, साड़ी या सलवार?
अजय :हम्म्म्म मुश्किल सवाल है आंटी! मेरी माँ तो हर किसी में अच्छी लगती हैं!
रेखा : मुझे तो लगता हैं वोह सलवार में काफी हॉट लगती हैं (आँख मारती हुई)
कविता अपने में ही खोयी हुई थी, उसे कुछ अंदाज़ा नहीं था अपनी सहेली और बेटे के बातों का l
हॉट शब्द के प्रयोग से अजय के लुंड में हलचल होने लगी, उसने सोचा क्यों न रेखा से थोड़ी फ़्लर्ट की जाये l
अजय : वैसे हॉट तो आप भी आज लग रही हैं सलवार पहने (आँख मारके)
रेखा इस बार बुरी तरह शर्मा के 'नॉटी!' अलफ़ाज़ बिरबिरायी और खिड़की के बाहर देखने लगी l अजय तो बस दोनों गद्देदार जांघो से अपनी जाँघ चिपकाये मस्त होके बैठा था l धीरे धीरे गाडी मंज़िल की नज़दीक आने लगी l
सब के सब पहारी दृश्य देखके रोमांचित हो उठे l
रेणुका :वाह! क्या मस्त पहारें है !
ज्योति : (ननद की स्तन देखके) अरे कोनसे वाले, मेरे या तेरे?
रेणुका और मनिषा दोनों हास् पड़ते हैं और गाडी आगे बढ़ता गया l
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दोस्तों, विलम्भ के लिए माफ़ी चाहता हूँ! साथ रहने के लिए दिल से शुक्रिया!
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RE: Antervasna कविता भार्गव की अजीब दास्ताँ
खंडाला पहुँचते ही सारे परिवार गाड़ी में से निकल परे और रिसोर्ट का मोइना करने लग गए l मौसम तो बढ़िया था ही लेकिन आस पास का वातावरण बड़ी ही रूमानी थी l पंछियों के आवाज़ से भरपूर और चारो तरफ मानो प्रकृति का भंडार पेश किया गया हो l
रेणुका तो इर्द गिर्द घूमने लगी और फिर सब रिसेप्शन पहुँच जाते हैं l रिसेप्शनिस्ट एक मस्त दिखनेवाली लड़की थी, शायद रेणुका जितनी उम्र थी, गोल गोल गोल, थोड़ी सुडोल जिस्म और सांवले रंग में भी निखार के आयी थी l
रिसेप्शनिस्ट : नमस्ते, मेरा नाम अवनि हैं, खंडाला के ये रिसोर्ट में आप सब का स्वागत है!
रेखा : अवनि बेटी, रिसोर्ट तो बढ़िया हैं! और तुम भी काफी खूबसूरत हो
अवनि : (शर्माके) ओह! शुक्रिया माँ'ऍम, क्यों शर्मिंदा कर रही है आप मुझे! इस उम्र में आप भी कुछ कम नहीं हैं!
अजय : अवनि मैडम! क्या आप हमारे कमरा भी दिखाएंगी? (हलके से आँख मारके)
अवनि : अरे हाँ! आईये आप लोग मेरे साथ!
सब के सब अवनि के साथ जाने लगे और राहुल अजय को रोक लेते हैं l उसके दोस्त और अवनि के वार्तालाब में राहुल को कुछ शक सा हुआ था l
राहुल : क्यों बे साले! उसे आँख मार रहा था! मैंने देख लिया सब, अबे चक्कर क्या हैं?
अजय राहुल के कंधे को पटकता हुआ हँस देता हैं l राहुल हैरानी से अपने दोस्त को देखने लगा l अजय के चुप रहने से राहुल ग़ुस्सा हो रहा था और तभी लहराती बलखाती हुई आती हैं अवनि l अवनि और अजय गले मिले, कुछ ऐसे के मानो एक दूसरे को बहुत अच्छी तरह जानते हो l
राहुल को कुछ समझ में नहीं आ रहा था l
अजय : अबे राहुल! यह मेरी बहुत अच्छी दोस्त हैं! अवनि को मैं कहीं महीनो से जानता हूँ! यह सारा प्लान मेरा ही हैं यहां आने का और रहने का भी! तुझे पता हैं यह रिसोर्ट किस लिए जाना जाता हैं ?
राहुल बस निःशब्द खड़ा रहा और अवनी दांतो तले होंट दबाये कभी अजय को, तो कभी राहुल को देखने लगी l
अजय : अबे 'हनीमून कपल्स' के लिए!
राहुल हक्काबक्का रह गया और दोनों अवनि और अजय एक दूसरे को ताली देते हैं l अजय फिर राहुल को समझने लगता हैं के अपने अपने माओ को पाटने में अवनि उनके मदत करेगी l प्लान का एहसास होते ही दोनों राहुल और अजय के लुंड ट्रॉउज़र में हलचल पैदा करते हैं अवनि दोनों के हालात देखके हास् देती हैं l
वह दूसरे और रेखा, कविता और रेणुका कमरे में से फ्रेश होक रिसोर्ट के कैफेटेरिया में जाके एक एक कप कॉफ़ी पीने लगे l साथ में मनीषा और ज्योति भी आए गयी l कविता सोचने लगी कि आखिर अजय और राहुल कहा रह गया l
.........
'छोंककक चूक छूककक'आवाज़ें आने लगी रिसेप्शन के रूम के अंदर एक छोटे कॉरिडोर से l उस छोटे से कमरे में तीन लोगों की सिसकियां की आवाज़ हवा में गूँज उठी और यह तीन कोई और नहीं बल्कि राहुल, अजय और अवनि की आवाज़ें थी l दोनों के ट्रॉउज़र घुटनो तक गए हुए थे और बड़ी प्यार से दो दो लुंड की चूसै कर रही थी ज़मीन पर घुटनों के बल बैठी अवनि l
अजय : उफ्फ्फफ्फ्फ़ क्या चुस्ती हैं यह लड़की! है न राहुल ????
राहुल :ओह्ह्ह्हह मेरा निकल जायेगा ओह्ह्ह अबे इसे बोल और जान न ले मेरा!!
छेछक्कक पछाक्क की आवाजें गूंज रही थी, हसीं लबों का दो दो सुपडे पे घिसै हो रही थी l कुछ ही पलों में दोनों झड़ गए और अवनि सारा माल बड़े प्यार से पी ली l दिनों मर्द ख़ुशी से फुले नहीं समां पाये l
उनके माल के जायज़ा करती हुई अवनि : बाप रे! तुम दोनों कब से नहीं झड़े हुए थे! अपने अपने माओ को लेके क्या इतने उत्तेजित हो गए थे???
जवाब में दोनों बस अपने लंड को थोड़ा मसलते हुए आखरी के कुछ कतरे भी उड़ेल देते हैं उसकी लबों पर I अवनि उठी और रुमाल से अपनी मूह को पोछने लगी, तीनो एक एक गिलास बियर पी के अपने अपने रास्ते समेत लेते हैं l राहुल और अजय बाकी के सदस्यों के साथ शामिल हो जाते हैं l
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RE: Antervasna कविता भार्गव की अजीब दास्ताँ
शाम का वक़्त हो चूका था और सारे के सारे सदस्य घूमने गए l खंडाला की हसीं वादियों में रूमानी हवाएं कुछ अलग ही एहसास ला रही थी वातावरण में l
रेखा : वाह क्या मस्त समां है ! क्यों कवी!
कविता: हम्म्म बस तुंहरे भाई साहब की कमी महसूस हो राइ है!
मनीषा : अरे मुम्मीजी, अब आप पुरानी बातों को भूल जाईये! देखिये इधर आस पास शायद कोई नया मजनू मिल जाये
सब के सब यहाँ तक के रेनुका भी हँस देती हैं l कविता शर्मा जाती हैं l
कविता : धत्त! एक मारूँगी तुझे! बहुत बोलती है आजकल! अजय से केहने परेगा तेरे इलाज के लिए
मनीषा : अरे मुम्मीजी! मेरा इलाज तो हर दिन वोह करते रहते हैं!
इस बात पे सारे महिलाये फिर हँस देते हैं और माहौल मस्त हो जाता हैं l वह दूसरे और राहुल और अजय एक एक फूल ख़रीदे दौड़ता हुआ उन औरतों के पास पहुँच जाते हैं, मनीषा और ज्योति की तो चेहरे पे मुस्कान की कोई कमी नहीं रही अपने अपने होंठ दबाये वह फूल लेने ही वाले थे के कुछ अजीब सा मामला हो गया l
राहुल अपने माँ का हाथ थाम लेते हैं और अजय अपना माँ का, और दूसरे हाथ से फूल देते हुए अपने अपने माओ को एक कस्स के झप्पी देने लगते हैं l रेखा और कविता दोनों हैरान रह गए के अपने अपने बीवियाँ को चोरके यह सब के सब उनके लिए किया जा रहा था, बात यह था के इस झप्पी में कोई माँ बेटे वाली बात नहीं लग रही थी। कामुकता में दोनों औरतें निर्लज्य से वापस कस्स के हामी भर लेते हैं l
लेकिन फिर कविता की आँखें मनीषा से मिल जाती हैं और रेखा की ज्योति से l दोनों औरतें अपने कामुकता पे नियंत्रण करती हुई अलग हो जाते हैं और कविता अपने बेटे के गाल पर एक थपकी लगाती हैं l
कविता : तू भी न! पागल कहीं का !
रेखा भी सहेली का साथ देती हुई बेटे को उसके कंधे पर मारने लगी प्यार से "बदमाश कहीं का!" उसकी दिल गुलाब को पकड़ते ही ज़ोरों की धड़कने लगी थी l
मनीषा : (ज्योति की और देखके) देखा ज्योति! यह औरतें इतनी सेक्सी सेक्सी सलवार कुर्ती पहनी है के इनके बेटे अपने अपने बीवियाँ को चोरके इन पर लाइन मार रहे हैं !
ज्योति मूह पे हाथ दिए बस शर्मा जाती हैं l रेणुका भी हैरान रह गयी इस कथन से, उसकी दिल थोड़ी सी ज़ोरों का धड़क उठी l
ज्योति : दीदी आप भी न! कुछ भी कह लेती हैं!
रेणुका : मनीषा भाभी, लगता हैं आपको अपने सास से जलन जो गयी हैं! (आँख मारके)
मनीषा : अरे पागल लड़की! मैं क्यों जलूँगी भला अपने सास से! कहाँ मैं और कहाँ इनकी मदहोश करदेने वाली, बलकाठी, मटकती चाल!
कविता : अब तू सचमुच मार खायेगी मुझसे!! (बनावटी गुस्सा दिखाती हुई)
सच तो यह थी की ऐसे सीधे मुँह से तारीफ़ कविता के दिल को तेज़ धड़कनदायक कर चुकी थी और उसे मैं ही मैं अच्छी लगी l मनीषा ने ठान ली के अब तो कविता पर खुल्लम खुल्ला वार करेगी जब तक वह अपने असली गुप्त इरादों को उसके सामने न लाए l
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RE: Antervasna कविता भार्गव की अजीब दास्ताँ
कुछ ऐसा हुआ कि रातों को दोनों औरतों की आँखों से नींद ही गायब हुई थी और वह दोनों लड़कों का भी वही हाल था, अपने अपने बीवीयों से भी प्रेम करके सुख प्राप्त नहीं हुआ था किसी को भी l कविता को एक अजीब सपना आई थी उस रात, के वोह और अजय हाथ पकड़े यहाँ से वहा सुनि रास्ते पर टहल रहा था और दोनों के दोनों अधनँगान अवस्था में थे l
सपने में दोनों माँ बेटे बस नंगे भवरे सामान घूम रहे थे, बस थोड़ी सी छेडख़ानी, थोड़ी मासूमियत, न कोई आडम्बर, या पाप या दुनिया का कोई डर, यूँ समझिये जैसे दुनियावालो से कोई लेना देना ही न हो l दोनों के दोनों खुश थे, आज़ाद थे और मुक्त थे बंधनो से, बगीचे में टहलते टहलते दोनों एक ऐसे मोड़ पे आजाते हैं जहाँ और भी कुछ अधनँगान कपल्स मौजूद थे, और मज़े की बात यह था के सब के सब माँ बेटो की जोडिया थी l
यह देखके कविता बहुत कामुक हो जाती हैं और उसकी कामुकता की आग में घी डालने का काम कर गयी एक जोड़ी जो उसके और अजय के तरफ बड़ी मादक अंदाज़ से आ रहे थे l
जी हाँ ! वह जोड़ी थी रेखा और राहुल का, वह दोनों भी वैसे ही नग्न अवस्था में थे और राहुल का हाथ अपने माँ की सुदोल गदराये गये पीठ को सहला रहा था, उसे देख अजय भी अपने माँ के पीठ को सहलाने लगा l दोनों औरतें एक दूसरे को देखके बस आहें भर रहे थे, के तभी अजय अपना हाथ झट से अपने माँ के गुदाज गांड को पंजे से मसल लेते हैं, इस हरकत से कविता सिसक उठी और उसे देख राहुल भी वही कर बैठा रेखा के साथ l
राहुल अपने माँ और अजय अपने माँ को फिर कस्स के बाहों में लेलेते हैं और फिर शुरू हो जाता हैं एक अजब प्रेम मिलाप दोनों कपल्स में l चिड़ियों की चेहेकने से सारे के सारे माहौल खिल उठा, चारो और केवल और केवल हरियाली और इन सब के दरमियान थी यह दोनों माँ बेटे की जोड़ी जो मस्तमगन थे अपने में l
दो प्यासे होंठों की जोड़ी आपस में मिलने ही वाले थे के अचानक एक ज़ोरों की बादल की गरगराहट गूंज उठी और कविता अपने नींद में से जाग उठी l आंखें अपने हुलिया देखने में व्यस्त होगयी और उसे एहसास हुई के माथे और जिस्म पे पसीना और नीचे जाँघों से लेके पैरों तक केवल योनि के मीठे रस से भीगी हुए थे l
सपने को याद करती हुई कविता बड़ी ही कामुक ख्यालों से भर उठी और बस होंठों को दाँतों तले दबाये हर एक लम्हे को याद करती रही l नाश्ते के वक़्त सब अलग अलग बैठे रिसोर्ट के डाइनिंग हॉल में और रेखा और कविता हमेशा की तरह एक कोने की टेबल लेलेते हैं ताकि कुछ गुप्त बातें कर सके बिना झिझक के l
कविता इस बात से अंजान थी के वोही सपना रेखा को भी आई थी पिछले रात को l
रेखा : कवी!
कविता : (खोई हुई) हम्म ?
रेखा : दरअसल तुझसे बात करनी थी!
कविता : मुझे भी (उत्सुकः होक)
रेखा : बोलते हुए थोड़ी अजीब लग रही हैं मुझे! पररर
कविता : हाँ रे! ममुझे भी अजीब लग रे रही हैं
रेखा और कविता अचानक एक ही साथ में "दरसल एक सपना..." और दोनों शरमा गए किसी कमसिन कली की तरह, मानो यह दोनों कॉलेज की युवती लड़कियां हैं जो पहला प्रेमी की खत को आपस में बात रही हो, दोनों अभी भी इसी सोच में थे के ऐसी अजीब ओ गरीब सपना एक दूसरे को बताये भी तो कैसे l
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RE: Antervasna कविता भार्गव की अजीब दास्ताँ
अब सब्र का बाण टूट रहा था, अजय और राहुल अपने भावनाओं पर नियंत्रण नहीं कर पा रहे थे और दूसरे और कविता और रेखा भी नहीं ख़ामोश रह पा रहे थे
रात को कविता रूम से बाहर गैलरी पे जाके रुकी तो अचानक पीछे से एक ज़ोरदार हमले के साथयह तो बिलकुल उसके सपने जैसा माहौल बन रहा था साथ अजय चिपक गया और उसके पीठ से लेके उसकी कमर को सहलाने लगा, कविता को एहसास हुई के यह तो बिलकुल उसके सपने जैसा माहौल हो रहा था, उसने झट से अजय को अपने गले लगा लिए और दोनों माँ बेटे के पहली बार होंट मिल गए एक दूसरे से l
अजय बेतहाशा अपने माँ को चूमे जा रहा था और अजय के हाथ अपने माँ के कंधो को सहलाता गया पागलों की तरह l
कविता : (सिसकियों के बीच में से) उफ्फ्फ्फ़ चुम मुझे बीटा! और चूम!!! हैं!!! ले जा मुझे अपने कमरे में!
अजय अपने माँ को अपने बाज़ुओ से चिपका के अपने कमरे तक ले जाता हैं l कमरे में पहुँचके कविता हैरान थी कि मनीषा का कहीं अता पता नहीं थी और कमरा भी सिंगल बेड वाला ही था l अजय और कविता अब एक दूसरे के साथ सम्भोग करने के लिए तड़प रहे थे और बिना किसी झिझक के दोनों के दोनों निर्वस्त्र हो जाते हैं, अजय अपने कच्चे पे था और यहाँ कविता केवल एक ब्रा और पैंटी पहनी हुई और गाल थे जैसे टमाटर सामान लाल l
अजय : उफ्फ्फ्फ़ माँ! बड़ी हसीन लग रही हो आज तुम
कविता : षह बीटा! मुझे शर्म आ रही है
अजय : अब यह शर्म और हया किसी काम का नहीं हैं माँ! (पास आता हुआ)
कविता : बब्बेता! तू ही मुझे कुछ कर! ममुझे कुछ हो नहीं पा ररही है ...
अजय : मुझे अच्छी तरह मालूम हैं माँ के आप मुझसे कहीं बार अपने वासना और प्रेम का इज़हार करना चाहती थी लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाई (माँ के चेहरे को सहलाता हुआ) लेकिन अब रुके भी तो कब तक! ठहरे भी तो कब तक! नहीं माँ नहीं! एक विधवा होने का इतनी बड़ी सज़ा खुद को मत दो!
कविता की आँख नमी हो गयी, यह अजय बड़ा कब हो गया भाला l अब अजय से रहा नहीं गया और माँ को जी भर के प्यार करने लगा, कभी उसकी गर्दन तो कभी पलकें, कभी होंट तो कभी कान के लौ को चूमने लग गया l कविता मानो जैसे पागल सी हो रही थी, उसने कस्स के अपने बेटे को जकड लिया और दोनों बिस्तर के चादर से खेलने लगे l अजय और कविता अब सम्भोग में जुड़ गए और जैसे ही अजय का लंड का पहला वार कविता की योनि को प्राप्त हुई तो वह सिसक उठी बुरी तरह "ओह्ह्ह्हह आजआयीयीयी मेरा लाड़लाआ!" उसकी सिसकियाँ गूँज उठी और नज़रों के सामने मानो जैसे सब कुछ धुंदला सो हो गया l
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कविता को कुछ देर तक कुछ नज़र नहीं आई और जब अचानक से होश आई, तो खुद को हॉस्पिटल के एक बिस्तर पर लेटी हुई मिली, हैरानी थी कि उसे जैसे कहीं लम्बे अरसे के बाद होश ायी हो सारे के सारे पल उसके मनन के कोने में जैसे दब गयी हो, उसकी यह दशा देखके बाजु में बैठी नर्स की आँखें बड़ी हो गयी और वह कमरे में से निकल पड़ी l
अंदर आ गया डॉक्टर साहब, अजय और मनीषा lकविता को फिर बताया गया कि वह पिछले २ हफ्तों से कोमा में थी और यह सुनके कविता हैरानी में आगयी, उसकी नज़रों में सारा पिक्चर साफ हो गया था l उसे यक़ीन हो चुकी थी के यह सारे के सारे लम्हे केवल एक हसीन सपना था, पर जिसमे शायद थोड़ी हकीकत थी, उसने फिर अपने आप ही हसि आगयी और सोचने लगा कि क्या सपना इतनी लम्बी और इतनी कामुक हो सकती हैं l
सच में अजीब सी दास्ताँ थी कविता की l
******** समाप्त ********
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दोस्तों, उम्मीद करता हूँ के कहानी आप सब को पसंद आया हैं, जल्द लौटूंगा एक नयी कहानी लेके, तब तक मैं अंकुर कुमार आप सबका इजाज़त लेना चाहूंगा, फिर मिलेंगे l
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