bahan sex kahani भैया का ख़याल मैं रखूँगी
02-01-2019, 05:57 PM,
#60
RE: bahan sex kahani भैया का ख़याल मैं रखूँगी
आशना: चल छोड़ और तू स्कूल जा, लेट हो रहा है ना तू. 

मोनू: दीदी उन्होने ने सामने वाले होटेल मे ही ग्राउंड फ्लोर पर एक कमरा लिया है बिल्कुल आपके फ्लॅट के सामने और यह कह कर मोनू वहाँ से चल दिया. 

आशना ने उसकी बात पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया और चाइ पीती रही. अचानक उसे ध्यान आया कि उसे काफ़ी ज़ोरों से भूख लगी है. उसने फ्रीज़र मे देखा तो वहाँ उसे खाने को कुछ भी नही दिखा. आशना ने मोनू के होटेल मे ही नाश्ता करने की सोची. उसने झट से स्लीपर पहने और होटेल की तरफ चल दी. होटेल उसके फ्लॅट से बस दो मिनिट की ही दूरी पर था. वो होटेल पहुँची तो वहाँ काफ़ी भीड़ थी. 

तकरीबन सारे टेबल्स फुल थे. मोनू के पिता जी ने आशना को देखा तो हाथ जोड़ कर नमस्ते किया और उन्होने एक कोने मे रखी दो चेयर्स और एक मेज़ की तरफ इशारा किया. आशना ने भी उनकी नमस्ते का जवाब मुस्कुरा कर दिया और फिर वो उस टेबल के पास रखी कुर्सी पर बैठ गई. आशना पहले भी कई बार यहाँ नाश्ता कर चुकी है. उसने मेनू की तरफ देखा तो वहाँ लिखे "आलू के परान्ठे" पर नज़र पड़ते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई और मन मे सोचने लगी "मिस्टर. वीरेंदर आपके लिए आलू के परान्ठे बनाने वाली का पर्मानेन्ट समाधान हो गया है". पता नहीं क्यूँ लेकिन आशना ने आज आलू के परान्ठे ऑर्डर में दिए. 

थोड़ी देर बाद उसे काउंटर पर खड़े एक इंसान की आवाज़ आई " चाचा आलू की परान्ठे मिलेंगे क्या"? यह आवाज़ सुनते ही आशना का दिल धक धक कर उठा. यह आवाज़ तो उसने पहले भी सुनी है, उसने दिमाग़ पर ज़ोर दिया तो उसे याद आया कि यह आवाज़ तो वीरेंदर की है. आशना ने तेज़ी से उस आदमी की तरफ देखा तो वहाँ कोई और ही खड़ा था. आशना को काफ़ी मायूषी हुई और फिर अपने पर हँसी भी आई कि वीरेंदर यहाँ कैसे आ सकते हैं और अगर यहाँ आ भी गये तो वो यहाँ इस छोटे से होटेल मे खाना खाने थोड़े ही आएँगे. आशना ने नाश्ता किया और अपने फ्लॅट की तरफ चल दी. अपने फ्लॅट की तरफ जाते हुए उसे मोनू की बात याद आ गई कि जो आदमी कल शाम को पीछा कर रहा था वो सामने वाले होटेल मे ही ठहरा है. एक पल के लिए तो आशना के कदम उस होटेल की तरफ मूड गये लेकिन फिर कुछ सोच कर सड़क पार करके अपने फ्लॅट मे आ गई.

जब तक आशना जाने की तैयारी करती है, तब तक आइए आपको फिर से एक दिन पहले देल्ही वापिस लेकर चलती हूँ. 




प्लेस: देल्ही (बीना'स हॉस्पिटल)

दिन: जिस दिन आशना और वीरेंदर बॅंगलॉर के लिए रवाना होने वाले थे.

सुबह होते ही बीना ने हॉस्पिटल का एक राउंड लगाया और पेशेंट्स को दवाइयाँ वागेहरा लिख कर उनसे फ्री हुई. करीब 11:30 बजे बीना ने इंटरकम पर रागिनी को अपने कॅबिन मे आने को कहा. रागिनी धड़कते दिल से बीना के कॅबिन मे आई. 

बीना: सारी तैयारी हो गई. 

रागिनी: जी मॅम. आप बताइए कब चलना है. 

बीना: लंच के बाद मुझे जूनियर डॉक्टर्स के साथ एक ज़रूरी मीटिंग करनी है. तुम करीब 5:00 बजे मुझे कान्फरेन्स रूम के बाहर तैयार ही मिलना, वहीं से चले जाएँगे.

रागिनी: ओके मॅम.

रागिनी हॉस्पिटल के कॉंपाउंड के अंदर ही एक छोटे से रूम मे रहती थी. रागिनी अपनी रुटीन के बाद अपने रूम मे चली गई. आज रागिनी काफ़ी खुश भी थी और काफ़ी डरी हुई भी थी. उसका हमेशा से सपना रहा था कि वो किसी बड़े घर मे ब्याही जाए ताकि वो ज़िंदगी के सारे ऐश- ओ- आराम का मज़ा ले सके. ऐसा नहीं था कि रागिनी खुद एक ग़रीब परिवार से थी, उसका परिवार भी सुख सुविधाओं से संपन्न था पर एक राजपूताना लड़की होकर उसपर काफ़ी पाबंदियाँ थी और जैसे जैसे वो जवान होने लगी उसपर पाबंदियाँ बढ़ने लगी. देर रात तक टीवी मत देखो, उँची आवाज़ मे मत बोलो, ढंग के कपड़े पहनो. 18 बरस के होते ही उसे सिर्फ़ सलवार-सूट पहनने का आदेश सुना दिया गया था. उसके भैया और पिता जी ने सख़्त हिदायत दी थी कि रागिनी जब तक मैके मे है वो यही पहनेगी और किसी भी कमरे मे रात 9:00 बजे के बाद टीवी नहीं चलेगा. और भी ना जाने कितनी पाबंदियों के बीच रागिनी अपने घर मे रह रही थी. रागिनी हमेशा मन मे सोचती कि भगवान मुझे आगे जिस भी घर मे भेजोगे काश वहाँ यह सब ना करना पड़े. लंच करने के बाद रागिनी ने तैयार होना शुरू किया. करीब 5:00 बजे तक वो लाइट येल्लो कलर का ढीला सा सलवार सूट पहनकर और हल्का सा मेकप करके तैयार हो गई थी. कच्चा पीला रंग उसके गोरे रंग पर काफ़ी जच रहा था. वो शीशे में अपने आप को देख कर ही शरमा उठी थी.

करीब 5:15 बजे तक वो हॉस्पिटल के कान्फरेन्स रूम के बाहर पहुँच चुकी थी. डॉक्टर. बीना कोई 5:45 तक कान्फरेन्स रूम से बाहर निकली और रागिनी को देखते ही रागिनी को अपने पीछे आने का इशारा किया. रागिनी सर झुकाए बीना के पीछे चल दी और बाहर निकलते ही दोनो गाड़ी मे बैठ गई. बीना ने गाड़ी स्टार्ट की और "शर्मा निवास" की ओर चल दी. करीब 6:10 मिनिट तक वो दोनो शर्मा निवास के मेन गेट के सामने पहुँची. बीना ने गाड़ी से उतरते हुए मेन गेट खोला और गाड़ी अंदर घुसा दी. गाड़ी को एक साइड पर पार्क करके वो दोनो गाड़ी से उतरी और रागिनी ने उतरते ही चारो तरफ नज़र दौड़ाई तो इतनी भव्यता देख कर उसकी आँखें फटी की फटी रह गई. रागिनी ने अपने लिए जैसा ससुराल सोचा था यह तो उस से भी कई गुना ज़्यादा था. बीना ने रागिनी की हालत ताड़ ली थी और बोली. 

बीना: रागिनी देखो तुम पर कोई ज़बरदस्ती नहीं है. अगर तुम्हे विराट अपने पति के रूप मे ठीक नहीं लगेगा तो तुम इनकार कर सकती हो. 

रागिनी: मॅम, मुझे पता है कि आपने मेरे लिए जिसे भी चुना होगा काफ़ी सोच समझ कर ही चुना होगा. 
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