Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी
07-26-2019, 02:10 PM,
#69
RE: Bahu ki Chudai बहुरानी की प्रेम कहानी
लड़की की क्लिट को छेड़ो और वो चुदने को न मचल जाए ऐसा तो हो ही नहीं सकता. कम्मो ने भी अपना जिस्म ढीला छोड़ दिया और आनन्द से आंखें मूंद लीं और और अपने पैर और चौड़े कर दिए इससे उसकी चूत और खुल गयी और मुझे उससे खेलने के लिए ज्यादा स्थान मिलने लगा.

ऐसा कोई एक डेढ़ मिनट ही चला होगा कि वो मेरा हाथ अपनी चूत पर से हटाने का प्रयास करने लगी. वो मेरा हाथ अपनी चूत से हटाने का भरपूर प्रयास करती लग रही थी. लेकिन उसके हाथ में शक्ति नहीं बस एक तरह की रस्म अदायगी सी लगी मुझे. कि कहीं मैं उसे इतना बेशर्म, इतनी चीप न समझ लूं कि मैं उसकी चूत को छेड़ रहा था और वो चुपचाप बिना कोई प्रतिवाद किये अपनी चूत में उंगली करवाते हुए चुपचाप मजा लेती रही थी.

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“बस भी करो अंकल जी, कोई देख लेगा. वो नौकर खाना लेकर भी आता होगा!” कम्मो ने मुझे अपने से दूर हटाया और खुद दूर खिसक कर बैठ गयी.
मैं भी जैसे होश में आ गया; कुछ समय के लिए मैं भूल ही बैठा था कि हम लोग किसी होटल के फॅमिली केबिन में बैठे हैं. मैंने कम्मो की ओर देखा तो ऐसा लगा जैसे वो मीलों दौड़ के आई हो. मेरा भी यही हाल था.

मैंने जो कभी बिल्कुल भी नहीं सोचा था, न प्लान किया था कम्मो के संग वही कर बैठा था मैं. मेरी कनपटियां तप रहीं थीं और लंड भी तनाव में आ चुका था; पैंट के नीचे दबे होने से लंड बुरी तरह अकड़ गया था और उसमें हल्का हल्का दर्द सा भी होने लगा था.

मैंने कम्मो का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींचा तो उसने इन्कार में सिर हिलाया फिर मैंने जोर से खींचा तो वो मुझसे आ लगी और मैंने उसे फिर से चूम लिया.
“कम्मो, मेरी बात का बुरा तो नहीं लगा न?” पता नहीं अचानक मुझे वो क्या हो गया था. मैंने उसकी बगल में हाथ ले जा कर उसका दायां वाला स्तन सहलाते हुए पूछा.
वो चुप रही, कुछ नहीं बोली और न ही कोई प्रतिवाद किया.
“बता न कम्मो” मैंने थोड़ा जोर देकर पूछा और उसका बूब कस के मसल दिया.
“अंकल जी, यहां कुछ मत करो कोई देख लेगा तो गड़बड़ हो जायेगी.” वो धीमे से बोली.

उसके कहने का मतलब साफ़ था कि उसे इस छेड़छाड़ से कोई आपत्ति नहीं थी. बस किसी के देखे जाने का डर था. मतलब मेरे लिए ग्रीन सिग्नल था कि कम्मो चुदने के लिए पूरी तरह से तैयार थी.

“हाथ हटा लो अपना प्लीज!” वो बोली.
मैंने उसका बूब छोड़ दिया. वो भी थोड़ा हट के बैठ गयी. इतने में वेटर भी खाना ले आया और उसने मेज पर सजा दिया.

इडली, मसाला डोसा, सांभर, नारियल की चटनी, वड़ा सब कुछ सामने मेज पर सजा था और साथ में छुरी और कांटे भी. कम्मो ने छुरी कांटो को असमंजस से देखा तो मैं उसका मतलब समझ गया.

“कम्मो, चल हाथ से खाते हैं. ये कांटे वांटे हटा दे एक तरफ!” मैंने कहा और खाना शुरू किया.
“अंकल जी, हाथ तो धो लेते कम से कम!” कम्मो ने मुझे टोका.
“क्यों हाथ में क्या हुआ?” मैंने पूछा.
“अच्छा! अभी मेरे वहां हाथ नहीं लगाया आपने उस गन्दी जगह में!” वो सिर झुका कर बोली.
“अरे जाने दे यार. वो कोई गन्दी नहीं होती. चूत का रस तो बहुत हेल्दी होता है, अभी तो तेरी चूत चाटनी भी है मुझे!” मैंने खाते खाते कहा.
“छीः कितने गंदे हो न अंकल आप!” वो मुझे झिड़कते हुए बोली.

मैं हंस के रह गया और खाने पर ध्यान लगाया. वो भी कुछ नहीं बोली और मजे से खाना खाती रही. खाने के बाद मैंने रसगुल्ले और आइसक्रीम भी आर्डर कर दिया.
इस तरह खा पी कर हम लोग तृप्त हो गये. कम्मो भी खूब खुश लग रही थी.

रेस्टोरेंट से निकल कर हम लोग चांदनी चौक का बाज़ार घूमने लगे. अब मैं और कम्मो एक दूसरे का हाथ पकड़े चल रहे थे; किसी भी तरह की शर्म झिझक हमारे बीच नहीं रह गयी थी. वो रिश्तेदारी वाला रिश्ता हम भूल चुके थे और स्त्री पुरुष वाले रिश्ते में हम बंध चुके थे. सो कम्मो भी अब किसी बिंदास प्रेमिका की तरह मेरे साथ निभा रही थी.

इस मस्त छोरी की अल्हड़ जवानी और जिस्म का मालिक बन मैं भी ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था. बस बेचैनी और इन्तजार इस बात का था कि कैसे भी जगह का जुगाड़ हो जाये तो मेरा लंड भी इस कामिनी की कुंवारी चूत का भोग लगा के तृप्त हो ले और मैं भी इसकी चूत के रस का पान करके धन्य हो जाऊं. पर ऐसा हो पाने की कोई संभावना दूर दूर तक नजर नहीं आती थी.

यूं ही घूमते घूमते एक मॉल दिखा तो हम लोग उसमें चले गये. ऐसे सजे धजे बाजार देख कर कम्मो तो देखती ही रह गयी. क़रीब एक सवा घंटा हमलोग मॉल में घूमते रहे.
वहीं से मैंने कम्मो को दो सलवार सूट भी दिलवा दिए. उसने थोड़ी ना नुकुर तो की पर ले लिए.

वैसे भी मुझे अपनी बहूरानी को दिखाने के लिए कम्मो को कपड़े दिलवाने ही थे नहीं तो वो जरूर टोकती कि अपनी नातिन को फोन दिलाने ले गये थे तो उसे अपने पैसे से कपड़े तो दिला ही देते कम से कम. रिश्तेदारी के इस तरह के फर्ज निभाना भी जरूरी था मैंने वो भी पूरा कर दिया था.
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