Bhabhi ki Chudai भाभी का बदला
03-31-2019, 03:09 PM,
#67
RE: Bhabhi ki Chudai भाभी का बदला
मैं दीदी की चूत और उसके दाने के साथ अब ज़ोर ज़ोर से खेलने लगा और दीदी भी मेरे लंड के साथ वैसा ही कर रही थी, दोनो के मूँह से आनंद भरी कराहें और सिसकियाँ निकल रही थी. मुझे ये देख के विश्वास ही नही हुआ कि दीदी की चूत के लिप्स अब अब और ज़्यादा फूल गये हैं, और नीचे दोनो अब अलग अलग होकर, उन्होने चूत के मूँह को और ज़्यादा खोल दिया है. मानो किसी गुलाब के फूल की पंखुड़ियों पर जमी ओवेयर (ड्यू) की बूँदों की तरह, चूत से निकल रहा चिकना पानी चूत के दोनो होंठों पर जम रहा था, तभी एक बूँद चूत के होंठ पर बहती हुई, फिर जांघों पर से होती हुई बेड पर टपक गयी. 

दीदी के हिप्स और टाँगें अब उपर नीचे होना शुरू हो गयी थी, दीदी की कराहने और सिसकियों की आवाज़ें मैं सुन रहा था. तभी दीदी के कराहने की आवाज़ बंद हो गयी, और मैने अपने लंड को गीला और गरम जगह महसूस किया, दीदी ने मेरे लंड को अपने मूँह मे ले लिया था और उसे प्यार से चूस और चाट रही थी. कुछ ही पलों बाद मुझे लगा कि मैं झड़ने वाला हूँ. दीदी भी बस झड ही रही थी, और काँप कर ज़ोर ज़ोर से हिल रही थी, और मेरे लंड के सुपाडे को मूँह में भरकर अपने सिर को आगे पीछे कर रही थी. मैने गुर्राने की आवाज़ के साथ, इस से पहले कि मैं संभलता, अपने वीर्य की जोरदार धार दीदी के मूँह के अंदर छोड़ दी. दीदी अब भी मेरे लंड को मूँह में भर के आगे पीछे कर रही थी, और मैं अपना वीर्य उसमें उंड़ेले जा रहा था. दीदी अब होश में थी, और उसका अपनी बॉडी पर कंट्रोल था, दीदी पूरी जान लगा के मेरे लंड से पानी की आख़िरी बूँद को निचोड़ रही थी. 

जब पानी की आख़िरी बूँद तक निकल गयी, तब दीदी ने हल्के से मेरे लंड को अपने मूँह में से निकाला. 

थोड़ी देर हम वैसे ही पस्त होकर वहीं लेटे रहे. दीदी मेरे वीर्य को जब एक भी बार थूकने के लिए नही हिली, तो मैं शरमा गया कि दीदी आज फिर मेरे वीर्य को पी गयी है. आख़िर में मैं उठा और सीधा होकर दीदी के फेस टू फेस होकर लेट गया. दीदी अपनी पीठ के बल सीधी लेट गयी, और मैं साइड से दीदी के पास, दीदी को सहलाता हुआ लेट गया.

हम वैसे ही बहुत देर तक बिना कुछ बोले शांत लेटे रहे.

दीदी: क्या हम ये ठीक कर रहे हैं?

मैं कुछ देर चुप रहने के बाद बोला, दीदी आप कहना क्या चाहती हो?

दीदी (अपनी दोनो आइब्रोज को पास लाकर छत की तरफ देखते हुए): भाई बेहन को ये सब नही करना चाहिए. हम को एक दूसरे के इतने ज़्यादा करीब नही आना चाहिए.

मैने दीदी के पेट पर उंगली फिराते हुए कुछ सोचते हुए कहा, मैने इस बारे में बहुत सोचा है. 

दीदी ने अपना चेहरा मेरे तरफ घुमा लिया, जब मैं ये सब समझा रहा था.


किसी और के साथ जब तक की आप उसको ठीक से जान ना लो, तब तक हम अपना असली चेहरा उसको नही दिखाते. क्योंकि आप उस को अभी ठीक से जानते नही हो, आप वो सब करने का प्रयत्न करते हो, जो उसको अच्छा लगता हो, और उसकी तरह ही आक्टिंग करने लगते हो, जिस से वो आपको पसंद करने लगे. हमेशा नही, लेकिन ज़्यादातर ऐसा ही होता है.

दीदी ने हां में सिर हिलाया, मानो उसके सब समझ में आ गया हो.

मैने आगे बोलते हुए कहा, हम दोनो एक दूसरे को बचपन से जानते हैं. हम एक दूसरे के बारे में सब कुछ जानते हैं, और एक दूसरे को स्वीकार भी करते हैं. हमारे बीच किसी तरह का कोई ढोंग नही है, हम एक दूसरे से कुछ नही छुपाते, जो कुछ असलियत है वो एक दूसरे के सामने है. हद है कि अगर हम दोनो एक दूसरे के करीब आते हैं, तो ये ग़लत समझा जाता है. दुनिया में बाकी लोग अपनी असलियत छुपा कर जब किसी के साथ संबंध बनाते हैं, जब कि दूसरा भी अपनी असलियत छुपा रहा है, उसको जायज़ समझा जाता है. 


दीदी: मेरी क्लास में बहुत सी लड़कियाँ अमीर लड़कों के साथ सब कुछ करवाती हैं, जिनको वो पसंद भी नही करती, बस इसलिए कि उनको कॉलेज में अटेन्षन मिलती रहे और उनको अकेलापन ना महसूस हो.


राज: हां दीदी... चाहे जो भी कारण हो, हम दोनो एक दूसरे के साथ कंफर्टबल हैं, और इस करीबी को पसंद करते हैं. हमारा दिल एक दम सॉफ है. हम दोनो में से कोई भी किसी तरह का ढोंग नही कर रहा. मेरा मतलब है, हम दोनो को मालूम है की एक दिन हमारी शादी हो जाएगी और शादी के बाद हम किसी और के साथ प्यार और ये सब करेंगे, जैसा हम दोनो अभी एक दूसरे के साथ करते हैं.

अब हम दो जिस्म और एक जान हो चुके हैं, जो हमको करीब ला रहा है, एक भाई बेहन की तरह नही, बल्कि एक लड़का और लड़की की तरह. जितना मैं तुम्हे पाना चाहता हूँ, उतना ही तुम भी मुझे पाना चाहती हो, दीदी मैं आपको गहराई तक जानना चाहता हूँ.

कुछ देर हम दोनो शांत रहे, और फिर चाँदनी रात में एक दूसरे को गले लगा लिया.

दीदी का हाथ मेरी छाती से होता हुआ मेरे कंधे पर आ गया, दीदी थोड़ा झुकी और फिर मुझे किस कर लिया.

मैने भी दीदी को बाहों में भरकर किस किया.

दीदी अपनी बाहें मेरे गले में से निकाल के मेरी छाती पर ले आई, और मुझे अपने उपर खींच लिया. संकोच में दीदी अपने दोनो पैरो को कुछ देर जोड़ के लेटे रही, फिर अपनी टाँगें अलग अलग कर के चौड़ा दी, अब मैं पूरी तरह दीदी की उपर आकर, दीदी को पकड़ के किस करने लगा.


हम एक दूसरे के साथ इस अवस्था में पूरी तरह खो चुके थे. हमारे नंगे शरीर एक दूसरे से चिपके हुए थे, हमारे होंठों से होंठ मिले हुए थे, और एक दूसरे के शरीर को हम सहला सहला के फील कर रहे थे. मुझे पता ही नही चला कि इतना समय बीत चुका है जो कि मेरे लंड को दोबारा खड़ा होने के लिए पर्याप्त था, मुझे बिना बताए लंड पूरी तरह खड़ा हो चुका था. जिस तरह से मैं दीदी के उपर था, दीदी के शरीर मेरे नीचे उत्तेजक रूप में हिल डुल रहा था, वो मेरे लंड को खड़ा करने के लिए बहुत था, मेरा लंड खड़ा होकर दीदी की कोमल जगह को छू रहा था. दीदी अपनी गान्ड उठा उठा के लंड को अपनी चूत में घुसाने की कोशिश कर रही थी, मैं भी गान्ड को हिला के, आगे की तरफ दीदी के उपर दबा रहा था. 

मैने दीदी के होंठों पर से अपने होंठ हटाए और नीचे दीदी की गर्दन पर किस करने लगा, और कुछ इंच नीचे आ गया. दीदी मस्ती में कराही जैसे ही मैने दीदी के उपरी कंधों पर होंठ रखे, और अपने हाथों को दीदी के पीछे ले गया. मैने अपनी गान्ड को कयि बार आगे पीछे किया, फिर मुझे लगा कि लंड का सुपाड़ा दीदी की चूत की फांकों के बीच घुस रहा है. 

मेरे लंड के दीदी की चूत पर दस्तक देने के साथ ही दीदी का शरीर अकड़ने लगा, लंड के सुपाडे को दीदी की गरम चूत ने अपने आगोश में लेना शुरू कर दिया था. 

दीदी: राज, तुम अंदर घुसा रहे हो...

दीदी की गर्दन से अपने होंठों को दूर करते हुए मैं फुसफुसाया, हां मुझे मालूम है दीदी...

दीदी थोड़ा परेशान थी, लेकिन उनका शरीर अब सॉफ्ट हो रहा था

दीदी: मेरी जान.... राज.... क्या कर रहे हो...

मैने एक और ज़ोर से धक्का मारा, दीदी की चूत की झिल्ली मेरे लंड को आगे बढ़ने से रोक रही थी, लेकिन धीरे धीरे चूत खुलती जा रही थी. दीदी फिर से अकड़ने लगी.

मैने फुसफुसा कर कहा, हां दीदी... मुझे मालूम है... दीदी को और टाइट पकड़ते हुए, मैं अपने हिप्स को आगे की तरफ बढ़ाते हुए धकेलने लगा.

दीदी ने हान्फ्ते हुए कहा... राज ये ग़लत है... तभी चूत की झिल्ली फट गयी.

मेरी दीदी की चूत का द्वार अब खुल चुका था, और मेरा लंड उसमे प्रवेश कर चुका था. चूत का गीलापन और दीदी के दिल से निकलती आवाज़ सुन कर मैं आगे बढ़ रहा था. दीदी ने फिर से एक ज़ोर की साँस ली, और मूँह से एक चीख सी निकल गयी, जैसे ही लगा कि दोनो शरीर अब एक हो चुके हैं. मेरा लंड दीदी की चुदने को तय्यार चूत में गोते लगाने लगा, हम एक साथ हिल रहे थे, काँप रहे थे, एक दूसरे को जकड़े हुए थे, किस कर रहे थे और रो रहे थे....

दो शरीर अब एक हो चुके थे, हमारे दिल एक हो चुके थे, एक दम पूरी तरह से.

हम बिल्कुल मन्त्र मुग्ध थे. कभी ना टूटने वाली गाँठ की तरह हमारे शरीर जुड़े हुए थे. चाँदनी में हमारे नंगे शरीर चमक रहे थे, दोनो के मूँह से दबी हुई मीठी कराहने की आवाज़ें निकल रही थी. मैने अपने हाथों में दीदी की चूंचियों को भर लिया. फिर मूँह पास ले जाकर उनको चाट चाट कर मूँह में भरने लगा, फिर दीदी की गर्दन, दीदी के होंठ सब को चूमने और चाटने लगा. दीदी ने अपनी कमर उपर उठा दी, मैं हाथो से दीदी की सारी पंसलियों को महसूस कर रहा था जैसे जैसे दीदी अकड़ रही थी. दीदी अपने नाखूनों को मेरी पीठ में जोरों से दबा रही थी, फिर नीचे लाकर मेरे हिप्स को पकड़ के, अपने और ज़्यादा अंदर घुसाने के लिए अपनी तरफ खींचने लगी.
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