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Chodan Kahani इंतकाम की आग
इंतकाम की आग --1
दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी लेकर हाजिर हूँ . अब ये तो आप ही बताएँगे कि कहानी कैसी लगी . चलिए अब देर ना करते हुए कहानी पर चलते हैं .
घना अंधेरा और उपर से उसमे जौरो से बरसाती बारिश. सारा आसमान झींगुरों की ‘कीरर्र’ आवाज़ से गूँज रहा था. एक बंगले के बगल मे खड़े एक विशालकाय पेड़ पर एक बारिश से भीगा हुआ उल्लू बैठा हुआ था. उसकी इधर उधर दौड़ती नज़र आख़िर सामने बंगले की एक खिड़की पर जाकर रुकी. वह बंगले की एकलौती ऐसी खिड़की थी कि जिस से अंदर से बाहर रोशनी आ रही थी.
घर मे उस खिड़की से दिख रही वह जलती हुई लाइट छोड़ कर सारे लाइट्स बंद थे. अचानक वहाँ उस खिड़की के पास आसरे के लिए बैठा कबूतरों का एक झुंड वहाँ से फड़फड़ाता हुआ उड़ गया. शायद वहाँ उन कबूतरों को कोई अद्रिश्य शक्ति का अस्तित्व महसूस हुआ होगा, खिड़की के काँच सफेद रंग की होने से बाहर से अंदर का कुछ नही दिख रहा था. सचमुच वहाँ कोई अद्रिश्य शक्ति पहुच गयी थी?... और अगर पहुचि थी तो क्या उसे अंदर जाना था….? लेकिन खिड़की तो अंदर से बंद थी.
बेडरूम मे बेड पर कोई सोया हुआ था. उस बेड पर सोए साए ने अपनी करवट बदली और उसका चेहरा उस तरफ हो गया. इसलिए वह कौन था यह पहचान ना मुश्किल था. बेड के बगल मे एक चश्मा रखा हुया था. शायद जो भी कोई सोया हुआ था उसने सोने से पहले अपना चश्मा निकाल कर बगल मे रख दिया था. बेडरूम मे सब तरफ दारू की बॉटल, दारू के ग्लास, न्यूज़ पेपर्स, मॅगज़ीन्स एट्सेटरा समान इधर उधर फैला हुआ था.
बेडरूम का दरवाजा अंदर से बंद था और उसे अंदर से कुण्डी लगाई हुई थी. बेडरूम मे सिर्फ़ एक ही खिड़की थी और वह भी अंदर से बंद थी – क्यों कि वह एक एसी रूम था. जो साया बेड पर सोया था उसने फिरसे एकबार अपनी करवट बदली और अब उस सोए हुए साए का चेहरा दिखने लगा.
चंदन, उम्र लगभग 25-26, पतला शरीर, चेहरे पर कहीं कहीं छोटे छोटे दाढ़ी के बाल उगे हुए, आँखों के आस पास चश्मे की वजह से बने काले गोल गोल धब्बे बने हुए थे.
चंदन एक सपना देख रहा था और सपने मे वो अपने प्यार को मतलब शालिनी को देख रहा था…. शालिनी उसकी कॉलेज की फ्रेंड थी... वो तो कब का उसके प्यार मे पड़ गया था... वो दोनो उसके बेडरूम मे बैठे थे…. और शालिनी उसको बार बार बात बात पर किस कर रही थी… चंदन तो जैसे इसी मौके के इंतज़ार मैं था. उसने शालिनी को जैसे लपक लिया. नीचे बेड पर गिरा लिया और उसे कपड़ों के उपर से ही चूमने लगा. शालिनी बदहवास हो चुकी थी. उसने चंदन का चेहरा अपने हाथों में लिया और उसके होंठो को अपने होठों में दबा लिया. चंदन के हाथ उसकी चूंचियों पर कहर ढा रहे थे. एक एक करके वह दोनो चूंचियों को बुरी तरह मसल रहे थे. शालिनी अब उसकी छाती सहलाते हुए बड़बड़ाने लगी थी..ओह फक मी प्लीज़ फक मी... आइ कॅंट वेट. आइ कॅंट लिव विदाउट यू जान.
एक एक करके जब चंदन ने शालिनी का हर कपड़ा उसके शरीर से अलग कर दिया तो वो देखता ही रह गया. स्वर्ग से उतरी मेनका जैसा जिस्म... सुडौल चुचियाँ... एक दम तनी हुई. सुरहिदार चिकना पेट और मांसल जांघें... चूत पर एक भी बाल नही था. उसकी चूत एक छोटी सी मछली जैसी सुंदर लग रही थी. उसने दोनों चूंचियों को दोनों हाथों से पकड़ कर उसकी चूत पर मुँह लगा दिया. शालिनी कराही… और साँसे इतनी तेज़ चल रही थी जैसे अभी उखड़ जाएँगी. पहले पहल तो उसे अजीब सा लगा अपनी चूत चत्वाते हुए पर बाद में वह खुद अपनी गांद उछाल उछाल कर उसकी जीभ को अपने योनि रस का स्वाद देने लगी.
चंदन ने अपनी पॅंट उतार फेंकी और अपना 8.5 इंचस लंबा और करीब 2 इंचस मोटा लंड उसके मुँह में देने लगा. पर शालिनी तो किसी जल्दबाज़ी में थी. बोली,"प्लीज़ घुसा दो ना मेरी चूत में प्लीज़. चंदन कहाँ मान ने वाला था उसको भी यही चाहिए था.और उसने शालिनी की टाँगों को अपने कंधे पर रखा और अपने लंड का सूपड़ा शालिनी की चूत पर रखकर दबाव डाला. पर वो तो बिल्कुल टाइट थी. चंदन ने उसकी योनि रस के साथ ही अपना थूक लगाया और दोबारा ट्राइ किया. शालिनी चिहुनक उठी. सूपड़ा योनि के अंदर था और शालिनी की हालत आ बैल मुझे मार वाली हो रही थी.
उसने अपने को पीछे हटाने की कोशिश की लेकिन उसका सिर बेड के उपरी सिरे से जा लगा था. शालिनी बोली,"प्लीज़ जान एक बार निकाल लो. फिर कभी करेंगे. पर चंदन ने अभी नही तो कभी नही वाले अंदाज में एक धक्का लगाया और आधा लंड उसकी चूत में घुस गया.
शालिनी की चीख को उसने अपने होटो से दबा दिया. कुच्छ देर इसी हालत में रहने के बाद जब शालिनी पर मस्ती सवार हुई तो पूच्छो मत. उसने बेहयाई की सारी हदें पार कर दी. वा सिसकारी लेते हुए बड़बड़ा रही थी. "हाई रे, मेरी चूत...मज़ा दे दिया... कब से तेरे लंड... की .. प .. प्यासी थी. चोद दे जान मुझे... आअह. आअह कभी मत निकालना इसको ... मेरी चू...त आह उधर चंदन का भी यही हाल था.
उसकी तो जैसे भगवान ने सुन ली. जन्नत सी मिल गयी थी उसको.. उच्छल उच्छल कर वो उसकी चूत में लंड पेले जा रहा था कि अचानक शालिनी ने ज़ोर से अपनी टांगे भींच ली. उसका सारा बदन अकड़ सा गया था. उसने उपर उठकर चंदन को ज़ोर से पकड़ लिया. उसकी चूत पानी छ्चोड़ती ही जा रही थी. उससे चंदन का काम आसान हो गया. अब वो और तेज़ी से धक्के लगा रहा था.
पर अब शालिनी गिडगिडाने लगी. प्लीज़ अब निकाल लो. सहन नही होता. थोड़ी देर के लिए चंदन रुक गया और शालिनी के होंठों और चूंचियों को चूसने लगा. वो एक बार फिर अपने चूतड़ उछाल्ने लगी. इस बार उसने शालिनी को उल्टा लिटा लिया. शालिनी की गांद बेड के किनारे थी और उसकी मनमोहक चूत बड़ी प्यारी लग रही थी.
शालिनी के घुटने ज़मीन पर थे और मुँह बेड की और. इस पोज़ में जब चंदन ने अपना लंड शालिनी की चूत में डाला तो एक अलग ही आनंद प्राप्त हुआ. अब शालिनी को हिलने का अवसर नही मिल रहा था. क्यूंकी चंदन ने उसको कस के पकड़ रखा था. पर मुँह से मादक सिसकारियाँ निकल रही थी. हर पल उसे जन्नत तक लेकर जा रहा था. इस बार करीब 20 मिनिट बाद वो दोनों एक साथ झाडे और चंदन उसके उपर ढेर हो गया…..
वह कुछ तो था जो धीरे धीरे चंदन के पास जाने लगा.
अचानक नींद मे भी चंदन को आहट हुई और वह हड़बड़ाकर जाग गया. उसके सामने जो भी था वह उसपर हमला करने के लिए तैय्यार होने से उसके चेहरे पर डर झलक रहा था, पूरा बदन पसीना पसीना हुआ था. वह अपना बचाव करने के लिए उठने लगा. लेकिन वह कुछ करे इसके पहले ही उसने उसपर, अपने शिकार पर हमला बोल दिया था.
पूरे आसमान मे चंदन की एक बड़ी, दर्दनाक, असहाय चीख गूँजी और फिर सब तरफ फिर से सन्नाटा छा गया… ठीक पहले जैसा….
सुबह सुबह रास्ते पर लोगों की अपने अपने काम पर जाने की जल्दी चल रही थी. इसलिए रास्ते पर काफ़ी चहल-पहल थी. ऐसे मे अचानक एक पोलीस की गाड़ी उस भीड़ से दौड़ने लगी. आस-पास का मौहाल पोलीस के गाड़ी के साइरन की वजह से गंभीर हो गया. रास्ते पर चल रहे लोग तुरंत उस गाड़ी को रास्ता दे रहे थे. जो पैदल चल रहे थे वे उत्सुकता से और अपने डरे हुए चेहरे से उस जाती हुई गाड़ी की तरफ मूड मूड कर देख रहे थे. वह गाड़ी निकल जाने के बाद थोड़ी देर मौहाल तंग रहा और फिर फिर से पहले जैसा नौरमल हो गया.
एक पोलीस की फ़ौरेंसिक टीम मेंबर बेडरूम के खुले दरवाजे के पास कुछ इन्वेस्टिगेशन कर रहा था. वह उसके पास जो बड़ा लेंस था. उसमे से ज़मीन पर कुछ मिलता है क्या यह ढूँढ रहा था. उतने मे एक अनुशाशन मे चल रहे जूतों का ‘टक टक’ ऐसा आवाज़ आ गया. वह इन्वेस्टिगेशन करने वाला पलट कर देखने के पहले ही उसे कड़े स्वर मे पूछा हुआ सवाल सुनाई दिया “बॉडी किधर है….?”
“सर इधर अंदर…” वह टीम मेंबर अदब के साथ खड़ा होता हुआ बोला.
इंस्पेक्टर राज शर्मा, उम्र साधारण 39 के आस पास, कड़ा अनुशाशण, लंबा कद, कसा हुआ शरीर, उस टीम मेंबर के दिखाए रास्ते से अंदर गया.
इंस्पेक्टर राज शर्मा जब बेडरूम मे घुस गया तब उसे चंदन का शव बेड पर पड़ा हुआ मिल गया. उसकी आँखें बाहर आई हुई और गर्दन एक तरफ ढूलक गयी हुई थी. बेड पर सब तरफ खून ही खून फैला हुआ था.
उसका गला कटा हुआ था. बेड की स्थिति से ऐसा लग रहा था कि मरने के पहले चंदन काफ़ी तडपा होगा. इंस्पेक्टर राज शर्मा ने बेडरूम मे चारो तरफ अपनी नज़र दौड़ाई.
फ़ौरेंसिक टीम बेडरूम मे भी तफ़तीश कर रही थी. उनमे से एक कोने मे ब्रश से कुछ सॉफ कर ने जैसा कुछ कर रहा था तो दूसरा कमरे मे अपने कॅमरा से तस्वीरे लेने मे व्यस्त था.
एक फ़ौरेंसिक टीम मेंबर ने इंस्पेक्टर राज शर्मा को जानकारी दी –
“सर मरनेवाले का नाम चंदन है”
“फिंगर प्रिंट्स वाईगेरह कुछ मिला क्या…?”
“नही कम से कम अब तक तो कुछ नही मिला…”
इंस्पेक्टर राज शर्मा ने फोटोग्राफर की तरफ देखते हुए कहा, “कुछ छूटना नही चाहिए इसका ख़याल रखो…”
“यस सर…” फोटोग्राफेर अदब के साथ बोला.
अचानक राज शर्मा का ध्यान एक अजीब अप्रत्याशित बात की तरफ आकर्षित हुआ.
वह बेडरूम के दरवाजे के पास गया. दरवाजे का लॅच और आस-पास की जगह टूटी हुई थी.
“इसका मतलब खूनी शायद यह दरवाजा तोड़ कर अंदर आया है..” राज शर्मा ने कहा.
उसका एक टीम मेंबर आगे आया, “नही सर, असल मे यह दरवाज़ा मैने तोड़ा… क्यों कि हम जब यहाँ पहुचे तब दरवाज़ा अंदर से बंद था….” पवन, लगभग 28 के आस पास, छोटा कद, मोटा शरीर.
“तुमने तोड़ा….?” राज शर्मा ने आस्चर्य से कहा.
“यस सर….” पवन ने कहा.
“क्या फिर से अपने पहले के धन्दे शुरू तो नही किए ….?” राज शर्मा ने मज़ाक मे लेकिन चेहरे पर वैसा कुछ ना दिखाते हुए कहा. (क्योंकि पवन तो अपना दया (सीआइडी वाला) जैसा ही था जो दरवाज़ा ना खुले उसे वो तोड़ कर ही अंदर दाखिल हो जाता था) .
“हाँ सर… मतलब नही सर….” पवन हड़बड़ाते हुए बोला.
राज शर्मा ने पलट कर एकबार फिर से कमरे मे अपनी पैनी नज़र दौड़ाई, खास कर खिड़कियों की तरफ देखा. बेडरूम मे एक ही खिड़की थी और वह भी अंदर से बंद थी. वह बंद रहना लाजमी था क्यों कि रूम एसी था.
“अगर दरवाज़ा अंदर से बंद था…. और खिड़की भी अंदर से बंद थी….तो फिर क़ातिल कमरे मे कैसे आया….”
सब लोग आस्चर्य से एक दूसरे की तरफ देखने लगे.
“और सब से महत्वपूर्ण बात कि वह अंदर आने के बाद बाहर कैसे गया….?” पवन ने कहा.
इंस्पेक्टर राज शर्मा ने उसकी तरफ सिर्फ़ घूर कर देखा.
अचानक सब का ख़याल एक इन्वेस्टिगेटिंग ऑफीसर ने अपनी तरफ खींचा. उसको बेड के आस पास कुछ बालों के टुकड़े मिले थे.
“बाल…? उनको ठीक से सील कर आगे के इन्वेस्टिगेशन के लिए लॅब मे भेजो…” राज शर्मा ने आदेश दिया.
सुबह 10 बजे इंस्पेक्टर राज शर्मा अपने ऑफीस मे बैठा था. उतने मे एक ऑफीसर वहाँ आ गया. उसने पोस्टमोर्टिम के काग़ज़ात राज शर्मा के हाथ मे थमा दिए. जब राज शर्मा वह काग़ज़ात उलट पुलट कर देख रहा था वह ऑफीसर उसके बगल मे बैठकर राज शर्मा को इन्वेस्टिगेशन के बारे मे और पोस्टमोर्टिम के बारे मे जानकारी देने लगा.
क्रमशः…………………..
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RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--2
गतान्क से आगे………………………
“मौत गला काट ने से हुई है.. और गला जब काटा गया तब चंदन शायद नींद मे होगा ऐसा इसमे लिखा है लेकिन क़ातिल ने कौन सा हथियार इस्तेमाल किया गया होगा इसका कोई पता नही चल रहा है…” वह ऑफीसर जानकारी देने लगा.
“अमेज़िंग…?” इंस्पेक्टर राज शर्मा मानो खुद से ही बोला.
“और वहाँ मिले बालो का क्या….?”
“सर हमने उसकी झांच की… लेकिन वे बाल आदमी के नही है…”
“क्या आदमी के नही….?”
“फिर शायद किसी भूत के होंगे…” वहाँ आकर उनके बात चीत मे घुसते हुए एक ऑफीसर ने मज़ाक मे कहा.
भले ही उसने वह बात मज़ाक मे कही हो लेकिन वे एक दूसरे के मुँह को ताकते हुए दो तीन पल कुछ भी नही बोले. कमरे मे एक अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था.
“मतलब वह क़ातिल के कोट के या जर्किन के हो सकते है….” राज शर्मा के बगल मे बैठा ऑफीसर बात को संभालते हुए बोला.
“और उसके मोटिव के बारे मे कुछ जानकारी…?”
“घर की सारी चीज़े तो अपनी जगह पर थी… कुछ भी कीमती सामान चोरी नही गया है… और घर मे कही भी चंदन के हाथ के और उंगलियों के निशान के अलावा और किसी के भी हाथ के और उंगलियों के निशान नही मिले….” ऑफीसर ने जानकारी दी.
“अगर क़ातिल भूत हो तो उसे किसी मोटिव की क्या ज़रूरत….?” फिर से वहाँ खड़े ऑफीसर ने मज़ाक मे कहा.
फिर दो तीन पल सन्नाटे मे गये.
“देखो ऑफीसर…. यहाँ सीरीयस मॅटर चल रहा है… आप कृपा करके ऐसी फालतू बाते मत करो…” राज शर्मा ने उस ऑफीसर को ताक़ीद दी.
“मैने चंदन की फाइल देखी है… उसका पहले का रकौर्ड़ कुछ उतना अच्छा नही… उसके खिलाफ पहले से ही बहुत सारे गुनाहों के लिए मुक़दमे दर्ज है… कुछ गुनाह साबित भी हुए है और कुछ पर अब भी केसस जारी है.. इससे ऐसा लगता है कि हम जो केस हॅंडल कर रहे है वह कोई आपसी दुश्मनी या रंजिश हो सकती है…” राज शर्मा फिर से असली बात पर आकर बोला.
“क़ातिल ने अगर किसी गुनहगार को ही मारा हो तो….” बगल मे खड़े उस ऑफीसर ने फिर से मज़ाक करने के लिए अपना मुँह खोला तो राज शर्मा ने उसके तरफ एक गुस्से से भरा कटाक्ष डाला.
“नही मतलब अगर वैसा है तो….अच्छा ही है ना… एक तरह से वह अपना ही काम कर रहा है… शायद जो काम हम भी नही कर पाते वह काम वह कर रहा है…” वह मज़ाक करनेवाला ऑफीसर अपने शब्द तोल्मोल कर बोला.
“देखो ऑफीसर…. हमारा काम लोगों की सेवा करना और उनकी हिफ़ाज़त करना है…”
“गुनहगारों की भी….?” उस ऑफीसर ने व्यंगात्मक ढंग से कड़वे शब्दो मे पूछा.
इस पर राज शर्मा कुछ नही बोला. या फिर उसपर बोलने के लिए उसके पास कुछ लब्ज नही थे. लेकिन राज शर्मा ने मन ही मन मे कहा "जहाँ चाह वहाँ रह" ज़रूर मिलेगी.
सुबह 10 बज रहे थे, वहाँ राज शर्मा अपनी मीटिंग मे बिज़ी था और यहाँ सुनील, सांवला रंग, उम्र 25 के आस पास, लंबाई 5 ½ फुट, घुँगराले बाल, अपने बेडरूम मे सोया था. उसकी बेडरूम मतलब एक कबाड़ खाना था जिस मे इधर उधर फैला हुआ सामान, न्यूज़ पेपर्स, मॅगज़ीन्स, व्हिस्की की खाली बॉटल वह भी इधर उधर फैली हुई. मॅगज़ीन के कवर पर ज़्यादा तर लड़कियों की नग्न तस्वीरे दिख रही थी और बेडरूम की सारी दीवारें उसके फॅवुरेट हेरोयिन्स की नग्न, अर्ध नगञा तस्वीरों से भरी हुई थी. चंदन के और सुनील के बेडरूम मे काफ़ी समानता थी.
फ़र्क सिर्फ़ इतना ही था कि सुनील के बेडरूम को दो खिड़कियाँ थी और वह भी अंदर से बंद और बंद रूम एसी थी इसलिए नही तो शायद सावधानी के तौर पे बंद थी. वो नींद से जागा और उसने अपना मोबाइल निकाला और एक नंबर डाइयल किया.. फोन एक लड़की ने उठाया…वो उसको बोला में अभी 10-15 मिनिट मे तुम्हारे घर आ रहा हूँ…
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RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
सुनील जब उसके घर के पास पहुचा और उसने दरवाजा खटखटाया.... ललिता ने दरवाजा खोलने में एक सेकेंड की भी देर ना लगाई. बिना कुच्छ सोचे समझे, बिना किसी हिचक और बिना दरवाज़ा बंद किया वो उसकी छाती से लिपट गयी.
" अरे, रूको तो सही, सुनील ने उसके गालों को चूम कर उसको अपने से अलग किया और दरवाजा बंद करते हुए बोला, मैने पहले नही बोला था"
ललिता जल बिन मछली की तरह तड़प रही तही. वो फिर सुनील की बाहों में आने के लिए बढ़ी तो सुनील ने उसको अपनी बाहों में उठा लिया. और प्यार से बोला, मेडम जी, खुद तो तैयार होके बैठी हो, ज़रा मैं भी तो फ्रेश हो लूँ".
ललिता ने प्यार से उसकी छाती पर घूँसा जमाया और उसके गालों पर किस किया. सुनील ने उसको बेड पर लिटाया और अपने बॅग से टवल निकाल कर बाथरूम में चला आया.
नाहकार जब वा बाहर आया तो उसने कमर पर टवल के अलावा कुच्छ नही पहन रखा था. पानी उसके शानदार शरीर और बालो से चू रहा था.
ललिता उसके मर्दाने शरीर को देखती ही रह गयी और बोली," तुम्हारी बॉडी तो एक दम मस्त है"... तो सुनील बोला “ह्म्म्म ये सिर्फ़ तुम्हारे लिए ही तो है.."
“अच्छा तो चलो प्यार करते है ना…” ललिता इतना बोली ही थी कि तब सुनील का फोन बज उठा… तो ललिता ने गुस्से से उसके हाथ से फोन उठाया और बंद कर दिया और बहुत प्यार से बोली " प्लीज़ अब प्यार कर लो जल्दी"
"अरे कर तो रहा हूँ प्यार" सुनील ने उसके होंठो को चूमते हुए कहा.
" कहाँ कर रहे हो. इसमें घुसाओ ना जल्दी…" ललिता बहुत मादक आवाज़ मे बोली.
सुनील हँसने लगा" अरे क्या इसमें घुसाने को ही प्यार बोलते हैं"
"तो" ललिता ने उल्टा स्वाल किया!
देखती जाओ मैं दिखाता हूँ प्यार क्या होता है. कहते हुए सुनील ने ललिता को अपनी गोद में बैठा लिया. सुनील ने उसके होंठो को चूमना शुरू कर दिया और बड़ी शिद्दत से चूमते हुए उसे उसके बेड पर लिटा दिया. उसका नाइट सूट नीचे से हटाया और एक एक करके उसके बटन खोलने लगा.
अब ललिता के बदन पर एक पैंटी के अलावा कुच्छ नही था. सुनील ने अपना टवल उतार दिया और झुक कर उसकी नाभि को चूमने लगा. ललिता के बदन में चीटियाँ सी दौड़ रही थी. उसका मंन हो रहा था कि बिना देर किए सुनील उसकी चूत का मुँह अपने लंड से भरकर बंद कर दे. वो तड़पति रही पर कुच्छ ना बोली; उसको प्यार सीखना जो था.
धीरे धीरे सुनील अपने हाथो को उसकी चूचियों पर लाया और अंगुलियों से उसके निप्पल्स को छेड़ने लगा. सुनील का लंड उसकी चूत पर पैंटी के उपर से दस्तक दे रहा था. ललिता को लग रहा था जैसे उसकी चूत को किसी ने जलते तेल के कढाहे में डाल दिया हो. वो फूल कर पकौड़े की तरह होती जा रही थी.
अचानक सुनील पीछे लेट गया और ललिता को बिठा लिया. और अपने लंड की और इशारा करते हुए बोला," इसे मुँह में लो." ललिता तन्नाई हुई थी,बोली," ज़रूरी है क्या.... पर ये मेरे मुँह में आएगा कैसे?
सुनील: बचपन में कुलफी खाई है ना, बस ऐसे ही ललिता ने सुनील के लंड के सुपादे पर जीभ लगाई तो उसको करेंट सा लगा. धीरे धीरे उसने सूपदे को मुँह में भर लिया और चूसने सी लगी.
उसको बहुत मज़ा आ रहा था. सुनील ज़्यादा के लिए कहना चाहता था पर उसको पता था ले नही पाएगी. " मज़ा आ रहा है ना!"
"ह्म्म्म्म" ललिता ने सूपड़ा मुँह से निकालते हुए कहा"पर इसमें खुजली हो रही है" अपनी चूत को मसल्ते हुए उसने कहा." कुच्छ करो ना....
ये सुनकर सुनील ने उसको अपनी पीठ पर टाँगों की तरफ मुँह करके बैठने को कहा. उसने ऐसा ही किया. सुनील ने उसको आगे अपने लंड की ओर झुका दिया जिससे ललिता की चूत और गांद सुनील के मुँह के पास आ गयी.
एकदम तननाया हुआ सुनील का लंड ललिता की आँखों के सामने सलामी दे रहा था. सुनील ने जब अपने होंठ ललिता की चूत की फांको पर टिकाए तो वह सीत्कार कर उठी. इतना अधिक आनंद उससे सहन नही हो रहा था.
उसने अपने होंठ लंड के सूपदे पर जमा दिए. सुनील उसकी चूत को नीचे से उपर तक चाट रहा था. उसकी एक उंगली ललिता की गांद के छेद को हल्के से कुरेद रही तही. इससे ललिता का मज़ा दोगुना हो रहा था.
अब वह ज़ोर ज़ोर से लंड पर अपने होंठों और जीभ का जादू दिखाने लगी. लेकिन ज़्यादा देर तक वह इतना आनंद सहन ना कर पाई और उसकी चूत ने पानी छ्चोड़ दिया जो सुनील की मांसल छाती पर टपकने लगा. ललिता ने सुनील की टाँगो को जाकड़ लिया और हाँफने लगी.
सुनील का शेर हमले को तैयार था. उसने ज़्यादा देर ना करते हुए कंबल की सीट बना कर बेड पर रखा और ललिता को उस पर उल्टा लिटा दिया. ललिता की गांद अब उपर की और उठी हुई थी. और चुचियाँ बेड से टकरा रही थी.
सुनील ने अपना लंड उसकी चूत के द्वार पर रखा और पेल दिया. चूत रस की वजह से चूत गीली होने से 8.5 इंची लंड 'प्यूच' की आवाज़ के साथ पूरा उसमें उतर गया. ललिता की तो जान ही निकल गयी. इतना मीठा दर्द! उसको लगा लंड उसकी आंतडियों से जा टकराया है.
सुनील ने ललिता की गंद को एक हाथ से पकड़ कर धक्के लगाने शुरू कर दिए. एक एक धक्के के साथ जैसे ललिता जन्नत तक जाकर आ रही थी. जब उसको बहुत मज़े आने लगे तो उसने अपनी गांद को थोड़ा और चौड़ा करके पीछे की ओर कर लिया.
सुनील के टेस्टेस उसकी चूत के पास जैसे थप्पड़ से मार रहे थे. सुनील की नज़र ललिता की गंद के छेद पर पड़ी. कितना सुंदर छेद था. उसने उस छेद पर थूक गिराया और उंगली से उसको कुरेदने लगा. ललिता आनंद से करती जा रही थी.
सुनील धीरे धीरे अपनी उंगली को ललिता की गांद में घुसाने लगा."उहह, सीसी...क्या....क्कार... रहे हो.. ज..ज्ज़ान!" ललिता कसमसा उठी. देखती रहो! और सुनील ने पूरी उंगली धक्के लगाते लगाते उसकी गंद में उतार दी. ललिता पागल सी हो गयी थी. वह नीचे की ओर मुँह करके अपनी चूत में जाते लंड को देखने की कोशिश कर रही थी. पर कंबल की वजह से ऐसा नही हो पाया.
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RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--4
गतान्क से आगे………………………
उधर राज का संभोग चल रहा था तो इधर सुनील अपने दूसरे राउंड के लिए रेडी हो रहा था… वो लोग टीवी देख रहे थे…. उसने ललिता को वापस अपनी बाहों में उठा लिया और बेड पर ले जाकर पटक दिया.
ललिता क़ातिल निगाहों से उसको देखने लगी. सुनील भी कुछ सोचकर ही आया था," मेरी तुम्हारे साथ नहाने की बड़ी इच्छा है. चलें वो तो सुनील की दीवानी थी; कैसे मना करती," एक शर्त है?" "बोलो!" "तुम मुझे नहलाओगे!"
उसकी शर्त में सुनील का भी भला था. "चलो! यहीं से शुरुआत कर देता हूँ" कहकर सुनील ललिता के शरीर का एक एक कपड़ा उतार कर अनावृत करने लगा. ललिता गरम हो गयी थी.
नंगी होते ही उसने सुनील को बेड पर नीचे गिरा लिया और तुरंत ही उसको भी नंगा कर दिया. वह उसके उपर जैसे गिर पड़ी और उसके होंठों पर अपनी मोहर लगाने लगी.
सुनील पलट कर उसके उपर आ गया, उसने उसकी छाती को दबा दिया.... ललिता की सिसकी निकल गयी. उसने सुनील का सिर अपनी चुचियों पर दबा दिया.
सुनील उस पर भूखे शेर की तरह टूट पड़ा, और जिस्म को नोचने लगा, वह सच में ही बहुत सेक्सी थी. सुनील उठा और अपना लंड उसको चखने के लिए पेश किया. ललिता भी इस कुलफी को खाने को तरस रही थी.
उसने झट से मुँह खोलकर अपनी चूत के यार को अपने गरम होंठों में क़ैद कर लिया. कमरे का टेम्परेचर बढ़ता जा रहा था. रह रह कर ललिता के मुँह से जब उसका लंड बाहर लिकलता तो 'पंप' की आवाज़ होती.
ललिता ने चूस चूस कर सुनील के लंड को एकदम चिकना कर दिया था; अपनी कसी चूत के लिए तैयार! सुनील ने ललिता को पलट दिया. और उसके 40" की गान्ड को मसल्ने लगा.
उसने ललिता को बीच से उपर किया और एक तकिये को वहाँ सेट कर दिया. ललिता की गान्ड उपर उठ गयी.....उसकी दरार और खुल सी गयी.
ललिता को जल्द ही समझ आ गया कि आज सुनील का इरादा ख़तरनाक है; वह गान्ड के टाइट छेद पर अपना थूक लगा रहा था.... "प्लीज़ यहाँ नही!" ललिता को डर लग रहा था... फिर कभी कर लेना...!" अभी नही तो कभी नही वाले अंदाज में सुनील ने अपनी उंगली उसकी गान्ड में फँसा दी, ऐसा तो वो पहले भी उसको चोद्ते हुए कर चुका था!
पर आज तो उसका इरादा असली औजार वहाँ यूज़ करने का लग रहा था. ललिता को उंगली अंदर बाहर लेने में परेशानी हो रही थी. उसने अपनी गान्ड को और चौड़ा दिया ताकि कुछ राहत मिल सके. कुछ देर ऐसे ही करने के बाद सुनील ने ड्रेसिंग टेबल के ड्रॉयर से कोल्ड क्रीम निकाल ली," इससे आसान हो हो जाएगा"
जैसे ही कोल्ड क्रीम लगी हुई उसकी उंगली ललिता की गान्ड की दरारों से गुज़री, ललिता को चिकनाई और ठंडक का अहसास हुआ, ये अपेक्षाकृत अधिक सुखदायी था. करीब 2 मिनिट तक सुनील उंगली से ही उसके 'दूसरे छेद' में ड्रिलिंग करता रहा, अब ललिता को मज़ा आने लगा था.
उसने अपनी गान्ड को थोड़ा और उँचा उठा लिया और रास्ते और आसान होते गये; फिर थोड़ा और....फिर थोड़ा और..... थोड़ी देर बाद वह कुतिया बन गयी.....! इस पोज़िशन में उसकी गंद की आँख सीधे छत को देख रही थी, उंगली निकालने पर भी वह थोड़ी देर खुली रहती थी.
सुनील ने ड्रिलर का साइज़ बढ़ा दिया; अब अंगूठा अपने काम पर लगा था. सुनील झुका और ललिता की चूत का दाना अपने होंठों में दबा लिया, वह तो 'हाइ मर गयी' कह बैठी मरी तो वह नही थी लेकिन सुनील को पता था वह मरने ही वाली है.
सुनील घुटने मोड़ कर उसकी गान्ड पर झुक गया, टारगेट सेट किया और 'फाइयर!'.....
ललिता चिहुनक पड़ी, पहले ही वार में निशाना सटीक बैठा था..... लंड आधा इधर.... आधा उधर.... ललिता मुँह के बल गिर पड़ी, लंड अब भी फँसा हुआ था.... करीब 3 इंच "ब्स्स्स.... प्लीज़.... रुक... जाओ! और नही"
ललिता का ये कहना यूँही नही था... उसकी गान्ड फैल कर 4 इंच खुल चुकी थी...... 4 इंच!
सुनील ने सैयम से काम लिया; उसकी छातीया दबाने लगा..... कमर पर किस करने लगा.... वग़ैरा वग़ैरा!
ललिता कुछ शांत हुई, पर वह बार बार कह रही थी," हिलना मत....हिलना मत!"
सुनील ने उसको धीरे से उपर उठाया.... धीरे.... धीरे और उसको वापस चार पैरों वाली बना दिया......कुतिया!
सुनील ने अपना लंड थोड़ा सा बाहर खींचा.... उसकी गान्ड के अन्द्रुनि हिस्से को थोड़ी राहत बक्शी और फिर जुलम ढा दिया... पूरा जुलम उसकी गान्ड में ही ढा दिया.
ललिता को काटो तो खून नही.... बदहवास सी होकर कुछ कुछ बोलने लगी, शायद बताना ज़रूरी नही!
सुनील ने काम चालू कर दिया.... कमरे का वातावरण अजीबोगरीब हो गया था. ललिता कभी कुछ बोलती.... कभी कुछ. कभी सुनील को कुत्ता कहती.... कभी कमीना कहती.... और फिर उसी को कहती.....आइ लोवे यू जान.... जैसे मज़ा देने वाला कोई और हो और सज़ा देने वाला कोई और आख़िरकार ललिता ने राहत की साँस ली....
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09-02-2018, 12:05 PM,
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RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
उसका दर्द लगभग बंद हो गया.... अब तो लंड उसकी गंद में सटाक से जा रहा था और फटाक से आ रहा था.... फिर तो दोनों जैसे दूध में नहा रहे हो.... सारा वातावरण असभ्य हो गया था.... लगता ही नही था वो पढ़े लिखे हैं.... आज तो उन्होने मज़े लेने की हद तक मज़ा लिया..... मज़े देने की हद तक मज़ा दिया.... और आख़िर आते आते दोनों टूट चुके थे....... हाई राम!
फिर ललिता उठी और उसको बोली… सुनील शाम हो गयी है… प्लीज़ उठो जल्दी जल्दी तैय्यार हो जाओ और घर पर भागो… मेरे मम्मी डॅडी आते ही होंगे… सुनील उठ गया और फ्रेश होकर चला गया… वो मन ही मन बोला मेरा काम तो हो गया है... अब में फिर कभी नही आउन्गा इधर ऐसा मन ही मन सोचता वो घर की तरफ निकल पड़ा...
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रात को जब सुनील वहाँ से निकला अपने घर के लिए तब उसे याद आया कि अरे मेरा फोन तो स्विच ऑफ…. तब उसे याद आया कि हाँ चुदाई के दरमियाँ किसी का तो फोन आया था और ललिता ने उसे काट के फोन स्विच ऑफ कर दिया था.
सुनील ने फोन स्विच ऑन किया और नंबर देखा… नंबर उसके एक फ्रेंड का था… उसने वो फोन मिलाया और उससे बाते करने लगा… बाते करते करते उसके चेहरे का मानो जैसे रंग ही उड़ गया था… उसने फिर इधर उधर की बाते की और फोन काट दिया…
वह अपने जड़े, मुलायम, रेशमी गद्दी पर वैसा ही जड़ा, मुलायम, रेशमी तकिया सीने से लिपटा कर बराबर करवट बदल रहा था. शायद वह डिस्टर्ब होगा… उसे रह रह कर यही ख़याल आ रहे थे कि किसने चंदन को मारा होगा… काफ़ी समय तक उसने सोने का प्रयास किया लेकिन उसे नींद नही आ रही थी. आख़िर करवट बदल बदल कर भी नींद नही आ रही थी इसलिए वह बेड के नीचे उतर गया. पैर मे स्लिपर चढ़ाई.
क्या किया जाय…?
ऐसा सोच कर सुनील किचेन की तरफ चला गया. किचन मे जाकर किचन का लाइट जलाया. फ्रिड्ज से पानी की बॉटल निकाली. बड़े बड़े घूँट लेकर उसने एक ही झटके मे पूरी बॉटल खाली कर दी. फिर वह बॉटल वैसी ही हाथ मे लेकर वह किचन से सीधा हॉल मे आया. हॉल मे पूरा अंधेरा छाया हुआ था. सुनील अंधेरे मे ही एक कुर्सी पर बैठ गया.
चलो थोड़ी देर टीवी देखते है…
ऐसा सोच कर उसने बगल मे रखा हुआ रिमोट लेकर टीवी शुरू किया. जैसे ही उसने टीवी शुरू किया डर के मारे उसके चेहरे का रंग उड़ गया, सारे बदन मे पसीने छूटने लगे और उसके हाथ पैर काँपने लगे…. डर के मारे उसका दिल मुँह को आगेया था… उसके सामने अभी अभी शुरू हुए टीवी की स्क्रीन पर एक खून की लकीर बहते हुए उपर से नीचे तक आई थी. हड़बड़ा कर वो एक दम खड़ा ही हुआ, और वैसे ही घबराई हुए हालत मे उसने कमरे का बल्ब जलाया.
कमरे मे तो कोई नही है….
उसने टीवी की तरफ देखा. टीवी के उपर एक माँस का टूटा हुआ टुकड़ा था और उसमे से अभी भी खून बह रहा था.
चलते, लड़खड़ाते हुए वह टेलिफोन के पास गया और अपने कपकपाते हाथ से उसने एक फोन नंबर डाइयल किया.
सुबह का वक्त राज अपने घर मे चाइ पी रहा था, तभी उसके सेल पर पवन का फोन आया. पवन की बातें सुन कर एक पल को तो राज के चेहरे पर गुस्सा आ गया. लेकिन खुद को संभाल कर राज ने कहा 10 मिनट. मे मुझे पिक अप करने आओ.
बाहर एक कॉलोनी के प्ले ग्राउंड पर छोटे बच्चे खेल रहे थे. इतने मे ज़ोर ज़ोर से साइरन की आवाज़ बजाती हुई एक पोलीस की गाड़ी वहाँ से, बगल के रास्ते से तेज़ी से गुजरने लगी. साइरन का आवाज़ सुनते ही कुछ खेल रहे छोटे बच्चे घबरा कर अपने अपने मा-बाप की तरफ दौड़ पड़े. पोलीस की गाड़ी आई उसी गति मे वहाँ से गुजर गयी और सामने एक मोड़ पर दाई तरफ मूड गयी.
पोलीस की गाड़ी साइरन बजाती हुई एक मकान मे सामने आकर रुक गयी. गाड़ी रुकी बराबर इंस्पेक्टर राज के नेत्रत्व मे एक पोलीस का दल गाड़ी से उतर कर मकान की तरफ दौड़ पड़ा.
“तुम लोग ज़रा मकान मे आसपास देखो…” राज ने उनमे से अपने दो साथियों को हिदायत दी. वे दोनो बाकी साथियों को वहीं छोड़ कर एक दाई तरफ से और दूसरा बाई तरफ से इधर उधर देखते हुए मकान के पिछवाड़े दौड़ने लगे. बाकी के पोलीस पवन और राज दौड़ कर आकर मकान के मुख्य द्वार के सामने इकट्ठा हो गये.
उसमे के एक ने, पवन ने बेल का बटन दबाया. बेल तो बज रही थी लेकिन अंदर कुछ भी आहट नही सुनाई दे रही थी. थोड़ी देर राह देख कर पवन ने फिर से बेल दबाई, इसबार दरवाजा भी खटखटाया.
“हेलो…. दरवाजा खोलो…” उन्ही मे से किसी ने दरवाजा खटखटा ते हुए अंदर आवाज़ दी.
क्रमशः…………………..
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RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--5
गतान्क से आगे………………………
लेकिन अंदर कोई हलचल या आहट नही थी. आख़िर चिढ़कर राज ने आदेश दिया, “दरवाजा तोडो…”
पवन और और एक दो साथी मिल कर दरवाजा ज़ोर ज़ोर से ठोंक रहे थे.
“अरे इधर धक्का मारो…”
“नही अंदर की कुण्डी यहाँ होनी चाहिए… यहाँ ज़ोर से धक्का मारो…”
“और ज़ोर से….”
“सब लोग सिर्फ़ दरवाजा तोड़ने मे मत लगे रहो… कुछ लोग हमे गार्ड भी करो..”
सब गड़बड़ मे आख़िर दरवाजा धक्के मार मार कर उन्होने दरवाजा तोड़ दिया.
दरवाजा तोड़ कर दल के सब लोग घर मे घुस गये. इंस्पेक्टर राज हाथ मे बंदूक लेकर सावधानी से अंदर जाने लगा. उसके पीछे पीछे हाथ मे बंदूक लेकर बाकी लोग एक दूसरे को गार्ड करते हुए अंदर घुसने लगे. अपनी अपनी बंदूक तान कर वे सब लोग तुरंत घर मे फैल ने लगे. लेकिन हॉल मे ही एक विदारक द्रिश्य उनका इंतेज़ार कर रहा था. जैसे ही उन्होने वह द्रिश्य देखा, उनके चेहरे का रंग उड़ गया था.
उनके सामने सोफे पर सुनील गिरा हुआ था, गर्दन कटी हुई, सब चीज़े इधर उधर फैली हुई, उसकी आँखें बाहर आई हुई थी और सर एक तरफ धूलका हुआ था. बहुत की दर्दनाक मंज़र था. वहाँ पर खड़े सभी लोगो के रोंगटे खड़े हो गये थे ये द्रिश्य देख कर. राज ने तो अपने पूरे पोलीस और इंस्पेक्टर कॅरियर मे भी ऐसा खून नही देखा था. ऐसा दिल दहला देनेवाला मंज़र था. उसका भी खून उसी तरह से हुआ था जिस तरह से चंदन का. सारी चीज़े इधर उधर फैली हुई थी इससे ये प्रतीत हो रहा था कि यह भी मरने के पहले बहुत तडपा होगा.
“घर मे बाकी जगह ढुंढ़ो…” राज ने आदेश दिया.
टीम के तीन चार मेंबर्ज़ मकान मे कातिल को ढूँढ ने के लिए इधर फैल गये.
“बेडरूम मे भी ढुंढ़ो…” राज ने जाने वालों को हिदायद दी.
इंस्पेक्टर राज ने कमरे मे चारो तरफ एक नज़र दौड़ाई. राज को टीवी के स्क्रीन पर बहकर नीचे की और गयी खून की लकीर और उपर रखा हुआ माँस का टुकड़ा दिख गया. राज ने इन्वेस्टिगेशन टीम के एक मेंबर को इशारा किया. वह तुरंत टीवी के पास जाकर वह सबूत इकट्ठा करने मे जुट गया. बाद मे राज ने हॉल की खिड़कियों की तरफ देखा. इसबार भी सारी खिड़कियाँ अंदर से बंद थी. अचानक सोफे पर गिरी किसी चीज़ ने राज का ध्यान खींच लिया. वह वहाँ चला गया.
जो था वह उठाकर देखा. वह एक बालों का गुच्छा था, सोफे पर बॉडी के बगल मे पड़ा हुआ. वे सब लोग आस्चर्य से कभी उस बालों के गुच्छे की तरफ देखते तो कभी एक दूसरे की तरफ देखते. इन्वेस्टिगेशन टीम के एक मेंबर ने वह बालों का गुच्छा लेकर प्लास्टिक के बॅग मे आगे की तफ़तीश के लिए सील बंद किया.
पवन गड़बड़ाया हुआ कभी उस बालों के गुच्छे को देखता तो कभी टीवी पर रखे उस माँस के टुकड़े की तरफ. उसके दिमाग़ मे… उसके ही क्यों बाकी लोगों के दिमाग़ मे भी एक ही समय काफ़ी सारे सवाल मंडरा रहे थे. लेकिन पूछे तो किस को पूछे?
इंस्पेक्टर राज और पवन केफे मे बैठे थे. उनमे कुछ तो गहन चर्चा चल रही थी. उनके हावभाव से लग रहा था कि शायद वे हाल ही मे हुए दो खून के बारे मे चर्चा कर रहे होंगे. बीच बीच मे दोनो भी कॉफी के छोटे छोटे घूँट ले रहे थे. अचानक केफे मे रखे टीवी पर चल रही खबरों ने उनका ध्यान आकर्षित किया.
इंस्पेक्टर राज ने जी तोड़ कोशिश की थी कि प्रेस हाल ही मे चल रहे खून को ज़्यादा ना उछाले. लेकिन उनके लाख कोशिश के बाद भी मीडीया ने जानकारी हासिल की थी. आख़िर इंस्पेक्टर राज की भी कुछ मर्यादाए थी. वे एक हद तक ही बाते मीडीया से छुपा सकते है और कभी कभी जिस बात को हम छुपाना चाहते है उसी को ही ज़्यादा उछाला जाता है.
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