RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
शिकेन्दर ने भी मानो पूर्वनियोजन की तहत उसका चाकू निकाल कर शरद के गर्दन पर रखा और उसका मुँह दबाकर उसे दबोच लिया. मानो अब पूरी स्थिति उनके कब्ज़े मे आई हो इस तरह से वे एकदुसरे की तरफ देख कर अजीब तरह से मुस्कुराए.
"चंदन इसका मुँह बाँध..." शिकेन्दर ने चंदन को आदेश दिया.
जैसे ही मीनू ने चिल्लाने की कोशिश की अशोक ने उसका मुँह ज़ोर से दबाते हुए और मजबूती से उसे दबोच लिया.
"सुनील इसका भी बाँध.."
चंदन ने शरद के मुँह, हाथ और पैर टेप से बाँध दिया. सुनील ने मीनू के मुँह और हाथ बाँध दिए.
उन्होने जिस फुर्ती से यह सब हरकतें की उससे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वे ऐसे कामो मे बड़े तरबेज़ हो.
अब शिकेन्दर के चेहरे पर एक वहशी मुस्कुराहट छुपाए नही छुप रही थी.
"आए... इसके आखोंपर कुछ बाँध रे... बेचारे से देखा नही जाएगा..." शिकेन्दर ने कहा.
चंदन ने उनके ही सामने से एक कपड़ा निकाल कर शरद की आँखों पर बाँध दिया. अब शरद को सिर्फ़ अंधेरे के सिवा कुछ दिखाई नही दे रहा था और सिर्फ़ सुनाई दे रहा था वह उन गिदडो की वहशी और राक्षशी हँसी और मीनू का दब-दबाया हुआ चीत्कार...
शरद को एकदम सबकुछ शांत और स्तब्ध होने का एहसास हुआ.
"आए उसके आखोंपर बँधा कपड़ा छोड़ रे...." शिकेन्दर चिढ़ा हुआ स्वर गूंजा.
शरद को उसके आखोंपर से कोई कपड़ा निकाल रहा है इसका एहसास हुआ. उसका आक्रोश आँसुओं के द्वारा बाहर निकलकर वह कपड़ा पूरी तरफ गीला हुआ था.
जैसे ही उन्होने उसके आँखों से वह कपड़ा निकाला, उसने सामने का द्रिश्य देखा. उसके जबड़े कसने लगे, आँखें अँगारे बरसाने लगी, सारा शरीर गुस्से से काँपने लगा था. वह खुद को छुड़ाने के लिए छटपटाने लगा. उसके सामने उसकी मीनू निर्वस्त्र पड़ी हुई थी. उसकी गर्दन एक तरफ लटक रही थी. उसकी आखें खुली थी और सफेद हो गयी थे. उसका शरीर निश्चल हो चुका था. उसके प्राण कब के जा चुके थे.
अचानक उसे एहसास हुआ कि उसके सरपार किसी भारी वास्तुका प्रहार हुआ और वह धीरे धीरे होश खोने लगा.
जब शरद होश मे आया, उसे एहसास हुआ कि अब वह बँधा हुआ नही था. उसके हाथ पैर बंधन से मुक्त थे. लेकिन जहाँ कुछ देर पहले मीनू की बॉडी पड़ी हुई थी वहाँ अब कुछ भी नही था. वह तुरंत उठकर खड़ा हो गया, उसने चारो और अपनी नज़र घुमाई.
वह मुझे गिरा हुआ कोई भयानक सपना तो नही था....
हे भगवान वह सपना ही हो...
वह मन ही मन प्रार्थना करने लगा....
लेकिन वह सपना कैसे होगा...
"मीनू..." उसने एक आवाज़ दिया.
उसे मालूम था कि उसे कोई प्रतिसाद आनेवाला नही है...
लेकिन एक झुटि आस....
उसके सर मे पीछे की तरफ से बहुत दर्द हो रहा था. इसलिए उसने सर को पीछे हाथ लगाकर देखा. उसका हाथ लाल लाल खून से सन गया.
उन लोगों ने प्रहार कर उसे बेसुद्ध किया था उसका वह जख्म और निशानी थी. अब उसे पक्का विश्वास हुआ था कि वह कोई सपना नही था.
वह तेजिसे रूम के बाहर दौड़ पड़ा. बाहर इधर उधर ढूँढते हुए वह गलियारे से दौड़ रहा था. वह लिफ्ट के पास गया और लिफ्ट का बटन दबाया. लिफ्ट मे घुसने से पहले फिर से उसने एक बार चारों तरफ अपनी ढूँढती नज़र दौड़ाई...
कहाँ गये वे लोग...?
और मीनू की बॉडी किधर है...?
कि उन्होने लगा दिया उसे ठिकाने...
वह होटेल के बाहर आकर अंधेरे मे पागलों की तरह इधर उधर दौड़ रहा था. सब तरफ अंधेरा था. आधी रात होकर गयी थी. रास्ते पर भी आने जानेवाले बहुत ही कम दिखाई दे रहे थे. एक कोने पर खड़ा एक टॅक्सिवाला उसे दिखाई दिया.
उसे शायद पता हो...
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