Chodan Kahani इंतकाम की आग
09-02-2018, 12:14 PM,
#27
RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--12

गतान्क से आगे………………………

आधी रात होकर उपर काफ़ी समय गुजर चुक्का था. बाहर रास्ते पर कोई भी दिख नही रहा था. अंकित धीरे से अपने घर से बाहर आया, चारो और एक नज़र घुमाई. उसके हाथ मे एक थैल्ली थी जिसमे उसने वह गुड्डा ठूंस दिया और दरवाज़े को ताला लगा कर वह बाहर निकल गया. कॉंपाउंड के बाहर आते हुए उसने फिर से अपनी पैनी नज़र चारो और दौड़ाई. सामने रास्ते पर जिधर देखो उधर अंधेरा ही अंधेरा छाया हुआ दिख रहा था. अब रास्ते से वह तेज़ी से अपने कदम बढ़ाते हुए चलने लगा. उस पड़ोस के आदमी ने अपने खिड़की से छुपकर अंकित को बाहर जाते हुए देख लिया. जैसे ही अंकित रास्ते पर आगे चलने लगा वह आदमी अपने घर से बाहर आ गया वह आदमी उसे कुछ आहट ना हो या वह उसे दिखाई ना दे इसका ख़याल रख रहा था. अंकित तेज़ी से अपने कदम आगे बढ़ाते हुए चल रहा था. अंकित काफ़ी आगे निकल जाने के बाद वह आदमी उसके पीछा करते हुए उसके पीछे पीछे जाने लगा.

वह आदमी अंकित का पीछा करते हुए कब्रिस्तान तक पहुँच गया, कब्रिस्तान के आसपास घने पेड थे. शायद उसे पेड़ो मे छुपकर उल्लू मुर्दों की राह देखते होंगे.. काफ़ी दूर कुत्तों के रोने जैसे अजीब सी आवाज़े आ रही थी. उस आदमी को इस सारे माहौल मे डर लग रहा था. लेकिन उसे अंकित यहाँ किस लिए आया है यह जानना था. अंकित कब्रिस्तान मे घुस गया और वह आदमी बाहर ही कॉंपाउंड वॉल के पीछे छुपकर अंकित क्या कर रहा है यह देखने लगा. चाँद के रोशनी मे उस आदमी को अंकित का साया दिखा रहा था. अंकित ने एक जगह तय की और वह वहाँ खोदने लगा. एक गड्ढा खोदने के बाद उसने उसके थैल्ली से वह गुड्डा निकाला. उस गुड्डे को अंकित ने ऐसा दफ़न किया कि मानो वह गुड्डा ना होकर कोई शव हो. वह उपर से मट्टी डालने लगा और मट्टी डालते वक्त भी उसका कुछ मन्त्र तन्त्र जैसे बड़बड़ाना अब भी जारी था. उस गुड्डे के उपर मट्टी डालने के बाद जब वह गड्ढा मट्टी से भर गया तो अंकित उस मट्टी पर खड़ा होकर उसे अपने पैरों से दबाने लगा…

…. वह आदमी कथन कर रहा था और राज ध्यान देकर सुन रहा था, उस आदमी ने आगे कहा –

“दूसरे दिन जब मुझे पता चला कि चंदन का कत्ल हो चुका है तब मुझे विश्वास नही हुआ…”

काफ़ी देर तक कोई कुछ नही बोला. अब इन सारी बातों ने एक नया ही मोड़ लिया था.

राज सोच ने लगा.

“तुम्हे क्या लगता है अंकित खूनी होगा…?” राज ने अपने इनवेस्टिगेटर की भूमिका मे प्रवेश करते हुए पूछा.

“नही… मुझे लगता है कि वह उसका काला जादू इन सारे कत्ल करने के लिए इस्तेमाल करता होगा.. क्योंकि जिस दिन सुनील का कत्ल हुआ उसके पहले दिन रात को अंकित ने वैसा ही एक गुड्डा बनाकर उसे कब्रिस्तान मे दफ़न किया था…” उस आदमी ने कहा.

“तुम इन सारी चीज़ों मे विश्वास रखते हो..?” राज ने थोड़ा व्यंगात्मक ढंग से ही पूछा.

“नही.. में विश्वास नही रखता… लेकिन जो अपनी खुली आँखों से सामने दिख रहा हो उन चीज़ों पर विश्वास रखना ही पड़ता है…” उस आदमी ने कहा.

राज का पार्ट्नर जो इतनी देर से दूर से सब उनकी बातें सुन रहा था, चलते हुए उनके पास आकर बोला –

“मुझे पहले ही शक था कि क़ातिल कोई आदमी ना होकर कोई रूहानी ताक़त है…”

सारे कमरे मे एक सन्नाटा फैल गया.

“अब उसने और एक नया गुड्डा बनाया हुआ है…” उस आदमी ने कहा.

अंकित के मकान के खिड़की से अंदर का सबकुछ दिख रहा था. आज भी वह फाइयर्प्लेस के सामने बैठा हुआ था. उसने अपने हाथ से वह गुड्डा बगल मे ज़मीन पर रख दिया और झुककर आग के सामने फर्शपर अपना मस्तक रगड़ने लगा. यह सब करते हुए उसका कुछ बड़बड़ाना जारी ही था. थोड़ी देर से वह खड़ा हो गया और अजीब ढंग से ज़ोर से किसी पागल की तरह चीखा. इतना अचानक और ज़ोर से चीखा कि बाहर खिड़की से झाँक रहे राज , पवन और उनको साथ मे जो लेकर आया था वह आदमी, सब्लोग चौंक कर सहम से गये. उस चीख के बाद वातावरण मे एक अजीब भयानक सन्नाटा छा गया.

"मिस्टर. अशोक अब तुम्हारी बारी है..." अंकित वह नीचे रखा हुआ गुड्डा अपने हाथ मे लेते हुए बोला.

लेकिन इतने मे दरवाज़े के बेल बजी. अंकित ने पलटकर दरवाज़े की तरफ देखा. गुड्डो को फिर से नीचे ज़मीन पर रख दिया और उठकर दरवाज़ा खोलने के लिए सामने आ गया.

दरवाज़ा खोला, सामने राज और पवन था, वह तीसरा आदमी शायद वहाँ से पहले ही खिसक गया था.

"मिस्टर. अंकित हम आपको चंदन और सुनील के कत्ल के एक सस्पेक्ट के तौर पर गिरफ्तार करने आए है... आपको चुप रहने का पूरी तरह हक है.. और कुछ बोलने के पहले आप अपने वकील के साथ संपर्क कर सकते है.. और ख़याल रहे कि आप जो भी बोलेगे वह कोर्ट मे आपके खिलाफ इस्तेमाल किया जाएगा..." राज ने दरवाज़ा खोलते ही बराबर एलान कर दिया.

अंकित का चेहरा एकदम भावशून्य था, वह बड़े इम्तिनान के साथ उनके सामने आ गया.

उसे अरेस्ट करने के पहले राज ने कुछ सवाल पूछने की ठान ली.

"यहाँ आपके साथ कौन-कौन रहता है...?"राज ने पहला सवाल पूछा.

"में अकेला ही रहता हूँ..." उसने जवाब दिया.

"लेकिन हमारी जानकारी के अनुसार आपके साथ आपके पिताजी भी रहते थे..."

"हाँ रहते थे... लेकिन... अब वे इस दुनिया मे नही रहे..."

"ओह्ह... सॉरी.. यह कब हुआ...? मतलब वे कब गुजर गये..?"

"मीनू की मौत की खबर सुनने के बाद कुछ दिन मे ही वे चल बसे..."

"अच्छा आप चंदन और सुनील को पहचानते थे क्या...?"

"हाँ उन हैवानो को में अच्छी तरह से पहचानता हूँ..."

चंदन और सुनील का नाम लेने के बाद राज ने एक बात गौर की कि उनके उपर का गुस्सा और द्वेष उसके चेहरे पर सॉफ झलक रहा था. या फिर उसने वह छिपाने की कोशिश भी नही की थी..

अब राज ने सीधे असली मुद्दे पर उससे बात करने की ठान ली...

"आपने चंदन और सुनील का खून किया क्या...?"

"हाँ..." उसने ठंडे स्वर मे कहा.
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