RE: Chodan Kahani इंतकाम की आग
इंतकाम की आग--19
गतान्क से आगे………………………
उन चारों मे चंदन और सुनील सबसे ज़्यादा डरे हुए दिख रहे थे.
“और अगर पोलीस ने हमे पकड़ लिया तो…?” सुनील ने अपनी चिंता व्यक्त की.
“देखो कुछ भी हुआ नही है ऐसा व्यवहार करो… किसी ने कुछ पूछा भी तो ध्यान रहे कि हम कल रात से यहाँ ताश खेल रहे है… फिर भी अगर कोई गड़बड़ हुई तो हम उसमे से भी कुछ रास्ता निकालेंगे… और यह मत समझो कि यह मेरी पहली बारी है.. कि मैने किसी को मारा है..” सिकेन्दर झूठमूठ का धाँढस बाँधने की चेष्टा करते हुए बोला.
“लेकिन वह तुमने मारा था… और तब तुम्हे उन्हे मारना ही था…” अशोक ने कहा.
“उससे क्या फ़र्क पड़ता है… मरना और हादसे मे मारना… मारना मारना होता है..” शिकेन्दर ने कहा.
उतने मे दरवाज़े पर किसी की आहट सुनाई दी… और किसी ने दरवाज़े पर हल्के से नॉक किया.
कमरे के सब लोगों का बोलना और पीना बंद होकर वे एकदम स्तब्ध होगये.
उन्होने एकदुसरे की तरफ देखा.
कौन होगा…?
पोलीस तो नही होंगी…?
कमरे मे एकदम सन्नाटा छा गया.
शिकेन्दर ने चंदन को कौन है यह देखने के लिए इशारा किया.
चंदन धीरे से चलते हुए आवाज़ ना हो इसका ख़याल रखते हुए दरवाज़े के पास गया. बाहर कौन होगा इसका अंदाज़ा लिया और धीरे से दरवाज़ा खोलकर तिरछा करते हुए उसमे से बाहर झाँकने लगा… सामने सुधीर था… चंदन ने उसे अंदर आने के लिए इशारा कर अंदर लिया… जैसे ही सुधीर अंदर आया उसने फिर से दरवाज़ा बंद कर लिया.
अशोक ने और एक व्हिस्की का जाम भरते हुए कहा, “अरे…. आओ.. जाय्न अवर कंपनी…”
सुधीर अशोक ने ऑफर किया हुआ व्हिस्की का जाम लेते हुए उनके साथ उनके सामने बैठ गया.
“चियर्स…” अशोक ने उसका जाम सुधीर के जाम से टकराते हुए कहा.
“चियर्स…” सुधीर ने वह जाम अपने मुँह को लगाया और वह भी उनकी कंपनी मे शामिल हो गया.
शिकेन्दर, अशोक, सुनील, चंदन और सुधीर टेबल के इर्द गिर्द बैठकर व्हिस्की के जाम पर जाम खालीकर रहे थे. शिकेन्दर और उसके तीन दोस्त पीकर टून होगये थे… सुधीर अपनी हद मे रह कर ही पी रहा था.
“फिर सुधीर… इतनी रात गये इधर किधर घूम रहे हो…?” चंदन ने सुधीर के पीठ पर हल्के से मारते हुए पूछा.
“सच कहूँ तो में तुम्हारे यहाँ उस ट्रीट के बारे मे बात करने के लिए आया था…” सुधीर ने मौके का फ़ायदा उठाते हुए असली बात पर आते हुए कहा.
“कौन से ट्रीट…?” सुनील ने पूछा.
“अबे पगले… वह उस लड़की के बारे मे बोल रहा है…” सुधीर बात स्पष्ट करने के पहले ही अशोक बीच मे बोला.
“बाइ दा वे… तुम्हे ट्रीट का माजा आया कि नही…” सुधीर ने पूछा.
सबलॉग एकदम स्तब्ध, शांत और सीरीयस हो गये.
“देखो… तुम्हारी ट्रीट शुरू शुरू मे अच्छी लगी… लेकिन आख़िर मे…”
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