Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
12-17-2018, 02:05 AM,
#4
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
अगले दिन की सुबह इतनी मनोरम थी की आपको क्या बताऊँ। ठंडी ठंडी हवा, और उस हवा में पानी की अति-सूछ्म बूंदे (जिसको मेरी तरफ "झींसी पड़ना" भी कहते हैं) मिल कर बरस रही थी। वही दूर कहीं से - शायद किसी मंदिर से - हरीओम शरण के गाये हुए भजनों का रिकॉर्ड बज रहा था। मैं बाहर निकल आया, एक फ़ोल्डिंग कुर्सी पर बैठा और चाय पीते हुए ऐसे आनंददायक माहौल का रसास्वादन करने लगा। मेरे मन में रश्मि को पुनः देखने की इच्छा प्रबल होने लगी। अनायास ही मुझे ध्यान आया की उस लड़की के स्कूल का समय हो गया होगा। मैंने झटपट अपने कपडे बदले और उस स्थान पर पहुच गया जहाँ से मुझे स्कूल जाते हुए उस लड़की के दर्शन फिर से हो सकेंगे। 

मैंने मानो घंटो तक इंतज़ार किया ... अंततः वह समय भी आया जब यूनिफार्म पहने लड़कियां आने लगी। कोई पांच मिनट बाद मुझे अपनी परी के दर्शन हो ही गए। वह इस समय ओस में भीगी नाज़ुक पंखुड़ी वाले गुलाबी फूल के जैसे लग रही थी! उसके रूप का सबसे आकर्षक भाग उसका भोलापन था। उसके चेहरे में वह आकर्षण था की मेरी दृष्टि उसके शरीर के किसी और हिस्से पर गयी ही नहीं। कोई और होती तो अब तक उसकी पूरी नाप तौल बता चुका होता। लेकिन यह लड़की अलग है! मेरा इसके लिए मोह सिर्फ मोह नहीं है - संभवतः प्रेम है। आज मुझे अपने जीवन में पहली बार एक किशोर वाली भावनाएँ आ रही थीं। जब तक मुझे रश्मि दिखी, तब तक उसको मैंने मन भर के देखा। दिल धाड़ धाड़ करके धड़कता रहा। उसके जाने के बाद मैं दिन भर यूँ ही बैठा उसकी तस्वीरें देखता रहा और उसके प्रति अपनी भावनाओं का तोल-मोल करता रहा। 

मैं यह सुनिश्चित कर लेना चाहता था, की रश्मि के लिए मेरे मन में जो भी कुछ था वह लिप्सा अथवा विमोह नहीं था, अपितु शुद्ध प्रेम था। उसको देखते ही ठंडी बयार वाला एहसास, मन में शान्ति और जीवन में ठहर कर घर बसाने वाली भावना लिप्सा तो नहीं हो सकती! ऐसे ही घंटो तक तर्क वितर्क करते रहने के बाद, अंततः मैंने ठान लिया की मैं इससे या इसके घरवालों से बात अवश्य करूंगा। दोपहर बाद जब उसके स्कूल की छुट्टी हुई तो मैंने उसका पीछा करते हुए उसके घर का पता करने की ठानी। आज भी मेरे साथ कल के ही जैसा हुआ। उसको तब तक देखता रहा जब तक आगे की सड़क से वह मुड़ कर ओझल न हो गयी और फिर मैंने उसका सावधानीपूर्वक पीछा करना शुरू कर दिया। मुख्य सड़क से कोई डेढ़ किलोमीटर चलने के बाद एक विस्तृत क्षेत्र आया, जिसमे काफी दूर तक फैला हुआ खेत था और उसमे ही बीच में एक छोटा सा घर बना हुआ था। वह लड़की उसी घर के अन्दर चली गयी।

'तो यह है इसका घर!'

मैं करीब एक घंटे तक वहीँ निरुद्देश्य खड़ा रहा, फिर भारी पैरों के साथ वापस अपने होटल आ गया। अब मुझे इस लड़की के बारे में और पता करने की इच्छा होने लगी। अपने बुद्धि और विवेक के प्रतिकूल होकर मैंने अपने होटल वाले से इस लड़की के बारे में जानने का निश्चय किया। यह बहुत ही जोखिम भरा काम था - शायद यह होटल वाला ही इस लड़की का कोई सम्बन्धी हो? न जाने क्या सोचेगा, न जाने क्या करेगा। कहीं पीटना पड़ गया तो? खैर, मेरी जिज्ञासा इतनी बलवती थी, की मैंने हर जोखिम को नज़रंदाज़ करके उस लड़की के बारे में अपने होटल वाले से पूछ ही लिया।

"साहब! यह तो अपने भंवर सिंह की बेटी है।" उसने तस्वीर को देखते ही कहा। फिर थोडा रुक कर, "साहब! माज़रा क्या है? ऐसे राह चलते लड़कियों की तस्वीरें निकालना कोई अच्छी बात नहीं।" उसका स्वर मित्रतापूर्ण नहीं था।

"माज़रा? मुझे यह लड़की पसंद आ गयी है! इससे मैं शादी करना चाहता हूँ।" मैंने उसके बदले हुए स्वर को अनसुना किया। 

"क्या! सचमुच?" उसका स्वर फिर से बदल गया – इस बार वह अचरज से बोला।

"हाँ! क्या भंवर सिंह जी इसकी शादी मुझसे करना पसंद करेंगे?"

"साहब, आप सच में इससे शादी करना चाहते है? कोई मजाक तो नहीं है?"

"यार, मैं मजाक क्यों करूंगा ऐसी बातो में? अब तक कुंवारा हूँ – अच्छी खासी नौकरी है। बस अब एक साथी की ज़रुरत है। तो मैं इस लड़की से शादी क्यों नहीं कर सकता? क्या गलत है?"

"मेरा वो मतलब नहीं था! साहब, ये बहुत भले लोग हैं - सीधे सादे। भंवर सिंह खेती करते हैं - कुल मिला कर चार जने हैं: भंवर सिंह खुद, उनकी पत्नी और दो बेटियां। इस लड़की का नाम रश्मि है। आप बस एक बात ध्यान में रखें, की ये लोग बहुत सीधे और भले लोग हैं। इनको दुःख न देना। आपके मुकाबले बहुत गरीब हैं, लेकिन गैरतमंद हैं। ऐसे लोगो की हाय नहीं लेना। अगर इनको धोखा दिया तो बहुत पछताओगे।"

"नहीं दोस्त! मेरी खुद की जिंदगी दुःख भरी रही है, और मुझे मालूम है की दूसरों को दुःख नही पहुचना चाहिए। और शादी ब्याह की बातें कोई मजाक नहीं होती। मुझे यह लड़की वाकई बहुत पसंद है।"

"अच्छी बात है। आप कहें तो मैं आपकी बात उनसे करवा दूं? ये तो वैसे भी अब शादी के लायक हो चली है।"

"नहीं! मैं अपनी बात खुद करना जानता हूँ। वैसे ज़रुरत पड़ी, तो आपसे ज़रूर कहूँगा।"

रात का खाना खाकर मैंने बहुत सोचा की क्या मैं वाकई इस लड़की, रश्मि से प्रेम करता हूँ और उससे शादी करना चाहता हूँ! कहीं यह विमोह मात्र ही नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं की मेरी बढती उम्र के कारण मुझे किसी प्रकार का मानसिक विकार हो गया है और मैं पीडोफाइल (ऐसे लोग जो बच्चो की तरफ कामुक रुझान रखते हैं) तो नहीं बन गया हूँ? काफी समय सोच विचार करने के बाद मुझे यह सब आशंकाएं बे-सरपैर की लगीं। मैंने एक बार फिर अपने मन से पूछा, की क्या मुझे रश्मि से शादी करनी चाहिए, तो मुझे मेरे मन से सिर्फ एक ही जवाब मिला, "हाँ"!

सवेरे उठने पर मन के सभी मकड़-जाल खुद-ब-खुद ही नष्ट हो गए। मैंने निश्चय कर लिया की मैं भंवर सिंह से मिलूंगा और अपनी बात कहूँगा। आज रविवार था - तो आज रश्मि का स्कूल नहीं लगना था। आज अच्छा दिन है सभी से मिलने का। नहा-धोकर मैंने अपने सबसे अच्छे अनौपचारिक कपडे पहने, नाश्ता किया और फिर उनके घर की ओर चल पड़ा। न जाने किस उधेड़बुन में था की वहां तक पहुचने में मुझे कम से कम एक घंटा लग गया। आज के जितना बेचैन मैंने अपने आपको कभी नहीं पाया। खैर, रश्मि के घर पहुच कर मैंने तीन-चार बार गहरी साँसे ली और फिर दरवाज़ा खटखटाया। 

दरवाज़ा रश्मि ने ही खोला। 

'हे भगवान्!' मेरा दिल धक् से हो गया। रश्मि पौ फटने से समय सूरज जैसी लग रही थी। उसने अभी अभी नहाया हुआ था - उसके बाल गीले थे, और उनकी नमी उसके हलके लाल रंग के कुर्ते को कंधे के आस पास भिगोए जा रही थी। 

'कितनी सुन्दर! जिसके भी घर जाएगी, वह धन्य हो जायेगा।'

"जी?" मुझे एक बेहद मीठी और शालीन सी आवाज़ सुनाई दी। कानो में जैसे मिश्री घुल गयी हो।

"अ..अ आपके पिताजी हैं?" मैंने जैसे-तैसे अपने आपको संयत किया।

"आप अन्दर आइए ... मैं उनको अभी भेजती हूँ।"

"जी, ठीक है"

रश्मि ने मुझे बैठक में एक बेंत की कुर्सी पर बैठाया और अन्दर अपने पिता को बुलाने चली गयी। आने वाले कुछ मिनट मेरे जीवन के सबसे कठिन मिनट होने वाले थे, ऐसा मुझे अनुमान हो चुका था। करीब दो मिनट बाद भंवर सिंह बैठक में आये। भंवर सिंह साधारण कद-काठी के पुरुष थे, उम्र करीब बयालीस के आस-पास रही होगी। खेत में काम करने से सर के बाल असमय सफ़ेद हो चले थे। लेकिन उनके चेहरे पर संतोष और गर्व का अद्भुत तेज था। 'एक आत्मसम्मानी पुरुष!' मैंने मन ही मन आँकलन किया, 'बहुत सोच समझ कर बात करनी होगी।'

"नमस्कार! आप मुझसे मिलना चाहते हैं?" भंवर सिंह ने बहुत ही शालीनता के साथ कहा।

"नमस्ते जी। जी हाँ। मैं आपसे एक ज़रूरी बात करना चाहता हूँ ..... लेकिन मेरी एक विनती है, की आप मेरी पूरी बात सुन लीजिये। फिर आप जो भी कहेंगे, मुझे स्वीकार है।"

"अरे! ऐसा क्या हो गया? बैठिए बैठिए। हम लोग बस नाश्ता करने ही वाले थे, आप आ गए हैं - तो मेहमान के साथ नाश्ता करने से अच्छा क्या हो सकता है? आप पहले मेरे साथ नाश्ता करिए, फिर अपनी बात कहिये।"

"नहीं नहीं! प्लीज! आप पहले मेरी बात सुन लीजिए। भगवान् ने चाहा तो हम लोग नाश्ता भी कर लेंगे।"

"अच्छा बताइए! क्या बात हो गई? आप इतना घबराए हुए से क्यों लग रहे हैं? सब खैरियत तो है न?"

"ह्ह्ह्हाँ! सब ठीक है... जी वो मैं आपसे यह कहने आया था की ...." बोलते बोलते मैं रुक गया। गला ख़ुश्क हो गया।

"बोलिए न?"
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RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प ) - by sexstories - 12-17-2018, 02:05 AM

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