RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
अपनी परी को मैंने पहली बार पूर्णतया नग्न, खड़ा हुआ देखा। मैंने उसके नग्न शरीर की अपर्याप्त परिपूर्णता की मन ही मन प्रशंशा की। उसके शरीर पर वसा की अनावश्यक मात्रा बिलकुल भी नहीं थी। उसके जांघे और टाँगे दृढ़ मांस-पेशियों की बनी हुई थीं। एक बात तो तय थी की आने वाले समय में यह लड़की, अपनी सुन्दरता से कहर ढा देगी। मेरे लिंग में पुनः उत्थान आने लगा। रश्मि की दृष्टि पुनः लज्जा के कारण नीची हो गयी। लेकिन उसने दूसरे दरवाज़े का रुख कर लिया।
मैंने उसको दरवाज़ा खोलने से रोका और स्वयं उसको खोल कर बाहर निकल आया, सब तरफ देख कर सुनिश्चित किया की कोई वहां न हो और फिर उसको इशारा देकर बाहर आने को कहा। वह दबे पाँव बाहर निकल आई, किन्तु इतनी सावधानी रखने के बाद भी उसकी पायल और चूड़ियों की आवाजें आती रही। बगीचा कमरे से बाहर कोई आठ-दस कदम पर था। रात में यह तो नहीं समझ आ रहा था की वहां पर किस तरह के पेड़ पौधे थे, लेकिन यह अवश्य समझ आ रहा था की किस जगह पर मूत्र किया जा सकता है। रश्मि किसी झाड़ी से कोई दो फुट दूरी पर जा कर बैठ गयी। अँधेरे में कुछ दिखाई तो नहीं दिया, लेकिन मूत्र विसर्जन करने की सुसकारती हुई आवाज़ आने लगी। मेरा यह दृश्य देखने का मन हो रहा था, लेकिन कुछ दिख नहीं पाया।
मैंने रश्मि के उठने का कुछ देर इंतज़ार किया। उसने कम से कम एक मिनट तक मूत्र किया होगा, और फिर कुछ देर तक ऐसे ही बैठी रही। मैंने फिर उसको उठ कर मेरी तरफ आते देखा। यह सब होते होते मेरा लिंग कड़क स्तम्भन प्राप्त कर चुका था। इस दशा में मेरे लिए मूत्र करना संभव ही नहीं था।
"आप भी कर लीजिये .."
"चाहता तो मैं भी हूँ, लेकिन मुझसे हो नहीं पा रहा है ..."
"क्यों .. क्या हुआ?" रश्मि की आवाज़ में अचानक ही चिंता के सुर मिल गए। अब तक वह मेरे एकदम पास आ गयी थी।
"आप खुद ही देख लीजिये ..." कहते हुए मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपने लिंग पर रख दिया। उसके हाथ ने मेरे लिंग के पूरे दंड का माप लिया - अँधेरे में लज्जा कम हो जाती है। उसको समझ आ रहा था की लिंगोत्थान के कारण ही मैं मूत्र नहीं कर पा रहा था।
"आप कोशिश कीजिये ... मैं इसको पकड़ लेती हूँ?" उसने एक मासूम सी पेशकश की।
"ठीक है ..." कह कर मैंने अपने जघन क्षेत्र की मांस-पेशियों को ढीला करने की कोशिश की। रश्मि के कोमल और गर्म स्पर्श से यह काम होने में समय लगा। खैर, बहुत कोशिश करने के बाद मैंने महसूस किया की मूत्र ने मेरे लिंग के गलियारे को भर दिया है ... तत्क्षण ही मैंने मूत्र को बाहर निकलता महसूस किया।
"इसकी स्किन को पीछे की तरफ सरका लो ..." मैंने रश्मि को निर्देश दिया।
रश्मि ने वैसे ही किया, लेकिन बहुत कोमलता से। मैंने भी लगभग एक मिनट तक मूत्र विसर्जन किया। मुझे लगता है की, संभवतः रश्मि ने छोटे लड़कों को मूत्र करवाया होगा, इसीलिए जब मैंने मूत्र कर लिया, तब उसने बहुत ही स्वाभाविक रूप से मेरे लिंग को तीन-चार बार झटका दिया, जिससे मूत्र की बची हुई बूँदें भी निकल जाएँ। मैंने उसकी इस हरकत पर बहुत मुश्किल से अपनी मुस्कराहट दबाई। इसके बाद हम दोनों वापस अपने कमरे में आ गए।
अच्छा, हमारी तरफ शादी की पहली रात को एक रस्म होती है, जिसको ‘मुँह-दिखाई’ कहा जाता है। इसमें दुल्हन का घूंघट उठाने पर उसको एक विशेष स्मरणार्थक वस्तु (निशानी) दी जाती है। मुझे इसके बारे में याद आया, तो मैंने अपने बैग में से रश्मि के लिए खास मेड-टू-आर्डर करधनी निकाली। यह एक 18 कैरट सोने की करधनी थी, जिसमें रश्मि के रंग को ध्यान में रखते हुए इसमें लाल-भूरे, नीले और हरे रंग के मध्यम मूल्यवान जड़ाऊ पत्थर लगे हुए थे। वह उत्सुकतावश मुझे देख रही थी की मैं क्या कर रहा हूँ, और यूँ ही नग्नावस्था में बिस्तर के बगल खड़ी हुई थी। मैं वापस आकर बिस्तर पर बैठ गया और रश्मि को अपने एकदम पास बुलाकर उसकी कमर में यह करधनी बाँध दी, और थोड़ा पीछे हटकर उसके सौंदर्य का अवलोकन करने लगा।
रश्मि के नग्न शरीर पर यह करधनी ही सबसे बड़ी वस्तु बची हुई थी – उसकी बेंदी और नथ तो कब की उतर चुकी थीं, और बिंदी हमारे सम्भोग क्रिया के समय न जाने कब खो गयी। उसका सिन्दूर और काजल अपने अपने स्थान पर फ़ैल गया, और लिपस्टिक का रंग मिट गया था। किन्तु न जाने कैसे यह होने के बावजूद, वह इस समय बिलकुल रति का अवतार लग रही थी। थोड़ी ऊर्जा होती तो एक बार पुनः सम्भोग करता। लेकिन अभी नहीं।
“आपको यह उपहार अच्छा लगा?”
रश्मि ने लज्जा भरी मुस्कान के साथ सर हिला कर मेरा उपहार स्वीकार किया। मैंने उसकी कमर को आलिंगन में लेकर उसकी नाभि, और फिर उसकी कमर को करधनी के ऊपर से चूमा।
“आई लव यू!” कह कर मैंने उसको अपने पास बिठा लिया और फिर हम दोनों बिस्तर पर लेट कर एक दूसरे की बाहों में समां कर गहरी नींद में सो गए।
मेरी नींद खिड़की से आती चिड़ियों की चहचहाने के आवाज़ से खुली। मैं बहुत गहरी नींद सोया हूँगा, क्योंकि मुझे नींद में किसी भी सपने की याद नहीं थी। मैंने एक आलस्य भरी अंगड़ाई ली, तो मेरा हाथ रश्मि के शरीर पर लगा, और उसके साथ साथ रात की सारी घटनाएं ही याद आ गयीं। मैंने अपनी अंगड़ाई बीच में ही रोक दी, जिससे रश्मि की नींद न टूटे। मैं वापस बिस्तर में रश्मि से सट कर लेट गया - आपको मालूम है "स्पून पोजीशन"? बस ठीक वैसे ही। रश्मि के शरीर की नर्मी और गर्माहट ने मेरे अन्दर की वासना पुनः जगा दी। कम्बल के अन्दर मेरा हाथ अपने आप ही रश्मि के एक स्तन पर आकर लिपट गया। अगले कुछ ही क्षणों में मैं उसके शरीर के विभिन्न हिस्सों का जायज़ा लेने लगा। साथ ही साथ यह भी सोचता रहा की क्या रश्मि को भी रात की बातें याद होंगी?
मुझे अपनी सुहागरात की एक एक बात याद आ रही थी, और उसी आवेश में मेरा हाथ रश्मि की आकर्षक योनि पर पर चला गया, और मेरी उंगलियाँ उसके स्पंजी होंठों को दबाने सहलाने लगी। प्रतिक्रिया स्वरुप रश्मि के कोमल और मांसल नितम्ब मेरे लिंग पर जोर लगाने लगे। सोचो! ऐसी सुन्दर लड़की को सेक्स के बारे में सिखाना भी एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। कुछ ही देर की मालिश ने रश्मि के मुंह से कूजन की आवाज़ आने लग गयी - लड़की को नींद में भी मज़ा आ रहा था। मेरे लिंग में कड़ापन पैदा होने लगा। विरोधाभास यह की आज के दिन हमको कुछ पूजायें करनी थी - ये भारतीय शादियों में सबसे बड़ा जंजाल है - खैर, वह सब करने में अभी देर थी। फिलहाल मुझे इस सौंदर्य और प्रेम की देवी की पूजा करनी थी।
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