Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
12-17-2018, 02:08 AM,
#16
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
आज का कार्यक्रम अब समाप्त हो गया था, खाना-पीना करने के बाद अब मेरे पास कुछ भी करने को नहीं था। मुझे रश्मि का साथ चाहिए था, लेकिन यहाँ पर लोगों का जमावड़ा था। जो भी अंतरंगता और एकांत मुझे उसके साथ मिला था, वह सिर्फ रात को सोते समय ही था। मैं उसके साथ कहीं खुले में या अकेले बिताना चाहता था। मैं अपनी कुर्सी से उठ कर अन्दर के कमरे में गया, जहाँ रश्मि थी। मैंने देखा की अनगिनत औरतें और लड़कियां उसको घेर कर बैठी हुई थी। मुझे उनको देख कर चिढ़ हो गयी। मुझे वहां दरवाज़े पर सभी ने खड़ा हुआ देखा … रश्मि ने भी। मैंने उसको इशारे से मेरी ओर आने को कहा। रश्मि उठी, और अपना पल्लू ठीक करती हुई मेरी तरफ आई। 

"जी?"

"रश्मि … कहीं बाहर चलते हैं।"

"कहाँ?" 

"मुझे क्या मालूम? आपका शहर है …. आपको जो ठीक लगे, मुझे दिखाइए …."

"लेकिन, यहाँ पर इतने सारे लोग हैं …"

"अरे! इनसे तो आप रोज़ मिलती होंगी। मुझे आपके साथ कुछ अकेले में समय चाहिए …"

रश्मि के गाल यह सुन कर सुर्ख लाल हो गए। संभवतः, उसको रात और सुबह की याद हो आई हो। 

"जी, ठीक है।"

"और एक बात, यह साड़ी उतार दीजिये।"

"जी???" 

"अरे! मेरा मतलब है की शलवार कुरता पहन कर आओ। चलने फिरने में आसानी रहेगी। हाँ, मुझे आप शलवार कुर्ते में ज्यादा पसंद हैं …." मैंने उसको आँख मारते हुए कहा। 

"जी, ठीक है। मैं थोड़ी देर में बाहर आ जाऊंगी।"

मुझे नहीं पता की उसने शलवार कुर्ता पहन कर बाहर आने के लिए अपने घर में क्या क्या झिक झिक करी होगी, लेकिन क्योंकि यह आदेश मेरी तरफ से आया था, कोई उसका विरोध नहीं कर सका। रश्मि ने हलके हरे रंग का बूटेदार शलवार कुर्ता और उससे मिलान किया हुआ दुपट्टा पहना हुआ था। उसके ऊपर उसने लगभग मिलते रंग का स्वेटर पहना हुआ था। इस पहनावे और लाल रंग की चूड़ियों में वह बला की खूबसूरत लग रही थी। इस समय दोपहर के डेढ़ बज रहे थे। ठंडक और दोपहर होने के कारण आस पास कोई लोग भी नहीं दिखाई दे रहे थे। अच्छी बात यह थी की ठंडी हवा नहीं चल रही थी, नहीं तो यूँ बाहर घूमने से तबियत भी बिगड़ सकती थी। रश्मि मुझे मुख्या सड़क से पृथक, पहाड़ी रास्तों से प्रकृति के सुन्दर दृश्यों के दर्शन करने को ले गयी। कुछ देर तक पैदल चढ़ाई करनी पड़ी, लेकिन एक समय पर समतल मैदान जैसा भी आ गया। रश्मि ने बताया की इसको बुग्याल बोलते हैं। इन चौरस घास के मैदानों में हरी घास और मौसमी फूलों की मानो एक कालीन सी बिछी हुई रहती है। यहाँ से चारों तरफ दूर-दूर तक ऊंचे-ऊंचे देवदार और चीड के पेड़ देखे जा सकते थे। 

"क्या मस्त जगह है …" कहते हुए मैंने रश्मि का हाथ थाम लिया, और उसने भी मेरा हाथ दृढ़ता से पकड़ लिया। 

"मैं आपको अपनी सबसे फेवरिट जगह ले चलूँ?" रश्मि ने उत्साह के साथ पूछा।

"बिलकुल! इसीलिए तो आपके साथ बाहर आया हूँ।"

इस समय अचानक ही किसी तरफ से करारी ठंडी हवा चली। 

"अगर ऐसे ही हवा चलती रही तो ठंडक बढ़ जायेगी" मैंने कहा। रश्मि ने सहमती में सर हिलाया।

"हाँ, इस समय तक पहाडो पर बर्फ गिरनी शुरू हो जाती है…. लेकिन अभी ठीक है… चार बजे से पहले लौट चलेंगे लेकिन, नहीं तो बहुत ठंडक हो जायेगी।" उसने कहा, और बुग्याल में एक तरफ को चलती रही। कोई पांच-छः मिनट चलने पर मुझे सामने की तरफ एक झील दिखने लगी। उसके बगल में ही एक झोपड़ा भी बना हुआ था। रश्मि वहां जा कर रुक गयी। पास से देखने पर यह झोपड़ा नहीं, एक घर जैसा लग रहा था। कहने को तो एकदम वीरान जगह थी, लेकिन कितनी रोमांटिक! एक भी आदमी नहीं था आस पास। 

"यहाँ मैं बचपन में कई बार आती थी …. यह घर मेरे दादाजी ने बनवाया था, लेकिन दादाजी के बाद पिताजी नीचे कस्बे में रहने लगे - वहां हमारी खेती है। पिछले दस साल से हम लोग यहाँ नहीं रहते हैं। लेकिन मैं यहाँ अक्सर आती हूँ। मुझे यह जगह बहुत पसंद है।" 

"क्या बात है!" मैंने एक बाल-सुलभ उत्साह से कहा, "मैंने इससे सुन्दर जगह नहीं देखी …" मैंने रुकते हुए कहा, "और मैंने आपसे सुन्दर लड़की आज तक नहीं देखी।"

रश्मि उत्तर में हलके से मुस्कुरा दी। घर के सामने, झील के लगा हुआ पत्थर का बैठने का स्थान बना हुआ था। हम दोनों उसी पर बैठ गए। इसी समय बदल का एक छोटा सा टुकड़ा सूरज के सामने आ गया और एक ताज़ी बयार भी चली। मौसम एकदम से रोमांटिक हो चला। ऐसे में एक सुन्दर सी झील के सामने, अपनी प्रेमिका के साथ बैठ कर आनंद उठाना अत्यंत सुखद था।

“रश्मि, आई ऍम कम्प्लीटली इन लव विद यू! जब मैंने आपको पहली बार स्कूल जाते हुए देखा, तभी से।” मुझे लगा की आज यह पहला मौका है जब हम दोनों पहली बार एक दूसरे से खुल कर बात चीत कर सकते हैं। तो इस अवसर को मैं गंवाना नहीं चाहता था। “मुझे कभी कभी शक भी हुआ की कहीं यह ऐसे ही लालसा तो नहीं – लेकिन मेरे मन ने मुझे हर बार बस यही कहा की ऐसा नहीं हो सकता। और यह की मुझे आपसे वाकई बेहद बेहद मोहब्बत है।“

रश्मि मेरी हर बात को अपनी मनमोहक भोली मुस्कान के साथ सुन रही थी। मैंने उसके हाथ को अपने हाथ में ले लिया और कहना जारी रखा,

“और मैं आपसे वादा करता हूँ की मैं आपको बहुत खुश रखूंगा, और आपके हर सपने को पूरा करूंगा।”

“मेरा सपना तो आप हैं! आप जिस दिन हमारे घर आये, उस दिन से आज तक मैं हर दिन यही सोचती हूँ की ये कोई सपना तो नहीं! वो दिन, वो पल इतना अद्भुत था, की मेरी बोलती ही बंद हो गयी थी।”

“मेरा भी यही हाल था, जब मैंने आपको पहली बार देखा। मैंने उसी क्षण में प्यार महसूस किया।”

हम दोनों कुछ पल यूँ ही चुप-चाप बैठे रहे, फिर मैंने पूछा,

“रश्मि, आपसे एक बात पूछूं? व्हाट डू वांट इन लाइफ?”

मेरे इस प्रश्न पर रश्मि ने पहली बार मेरी आँखों में आँखे डाल कर देखा। वह कुछ देर सोचती रही, और फिर बोली,

“हैप्पीनेस!”

“और आप हैप्पी कैसे होंगी?”

“मेरी ख़ुशी आपसे है – आप मेरे जीवन में आ गए, और मैं खुश हो गयी। आपका प्यार और आपको प्यार करना मुझे ख़ुश रखेगा। आप मेरे सब कुछ है – आपके साथ मैं बहुत सेफ हूँ! ये बात मुझे बहुत ख़ुश करती है। और यह भी की मेरा परिवार साथ में हो और सुरक्षित, स्वस्थ हो।”

रश्मि की भोली बातें सुन कर मैं भाव-विभोर हो गया। 

“मैं आपको बहुत प्यार करूंगा! आई विल कीप यू एंड योर फॅमिली सेफ! एंड आई विल बी एवरीथिंग एंड मोर फॉर यू!”

“यू आलरेडी आर द होल वर्ल्ड फॉर मी!”

रश्मि की इस बात पर मैंने उसको जोर से भींच कर अपने गले से लगा लिया। हम लोग काफी देर तक ऐसे ही एक दूसरे को पकडे हुए बातें करते रहे – कोई भी विशेष बात नहीं। बस मैंने उसको अपने रोज़मर्रा के काम, बैंगलोर शहर, और उत्तराँचल में जो भी जगहें देखीं, उसके बारे में देर तक बताता रहा। रश्मि ने भी मुझे अपने परिवार, बचपन, और अन्य विषयों के बारे में बताया। मेरे बचपन में कोई भी ऐसी बात नहीं हुई जिसको मैं वहाँ बताता, और ऐसे अच्छे मौसम में बने मूड का सत्यानाश करता। 

रश्मि बहुत ख़ुश थी। वह अभी खुल कर मेरे साथ बात कर रही थी, और लगातार मुस्कुरा रही थी। मैं निश्चित रूप से कह सकता था की वह हमारी इस नयी अंतरंगता को पसंद कर रही थी। जब हम एक रिश्ते में शुरूआती नाज़ुक दौर – जिसमें एक दूसरे को जानने की प्रक्रिया चल रही होती है – को पार कर लेते हैं, तो हममें एक प्रकार की शान्ति और ताजगी आ जाती है। इस समय हम दोनों अपने सम्बन्ध के दूसरे चरण में थे, जिसमें हम हमारे मासूम प्रेम का कोमल एहसास था।

मेरे मन में एक कल्पना थी - और वह यह की खुले में - संभवतः किसी खेत में या किसी एकांत, निर्जन जगह में - सम्भोग करना। यह स्थान कुछ वैसा ही था। वैसे यह बहुत संभव था की गाँव और कसबे का कोई व्यक्ति यहाँ आ सकता, लेकिन मेरे हिसाब से इस समय और इस मौसम में यह होने की सम्भावना थोड़ी कम थी। यह देख कर मेरे दिमाग में अपनी कल्पना को मूर्त रूप देने की संभावना जाग उठी। ताज़ी, सुगन्धित हवा ने मेरे अन्दर एक नया जोश भर दिया था। कुछ तो बात होती है नए विवाहित जोड़ों में – उनमें उत्साह और जोश भरा हुआ रहता है। हमने अभी कुछ ही घंटों पहले ही सेक्स किया था, लेकिन अभी पुनः करने की तगड़ी इच्छा जाग गयी। 

मैंने रश्मि की छरहरी कमर में अपनी बाँह डाल कर उसको अपने से चिपटा लिया। रश्मि भी बहुत ही मुश्किल से मिले इस एकांत का आनंद उठाना चाहती थी - वह भी मुझसे सिमट सी गयी। मैंने अपना गाल, रश्मि के गाल से सटा दिया और सामने के सुन्दर दृश्य का आनंद लेने लगा। ऐसे सुन्दर पर्वतों की गोद में, दुनिया के भीड़-भाड़ से दूर …. यह एक ऐसी दुनिया थी, जहाँ जीवन पर्यन्त रहा जा सकता था। 

"आई लव यू" मैंने कहा और रश्मि के गाल को चूम लिया। रश्मि ने फिर से मुझे अपनी भोली मुस्कान दिखाई। उसके ऐसा करते ही मैंने उसके मुखड़े को अपनी बाँहों में भरा और उसके सुन्दर कोमल होंठों को चूम लिया। मैंने उसको विशुद्ध प्रेम और अभिलाषा के साथ चूम रहा था। रश्मि मेरे लिए पूरी तरह से "परफेक्ट" थी। हाँलाकि वह अभी नव-तरुणी ही थी, और उसके शरीर के विकास की बहुत संभावनाएं थी। मुझे उसके शरीर से बहुत लगाव था - लेकिन मेरे मन में उसके लिए प्रेम सिर्फ शारीरिक बंधन से नहीं बंधा हुआ था, बल्कि उससे काफी ऊपर था। लेकिन यह सब कहने का यह अर्थ नहीं है की मुझे उसके शरीर के भोग करने में कोई एतराज़ था। मैं उससे जब भी मौका मिले, प्रेम-योग करने की इच्छा रखता था। रश्मि मेरे चुम्बन से पहले तो एकदम से पिघल गयी - उसका शरीर ढीला पड़ गया। उसकी इस निष्क्रियता ने असाधारण रूप से मेरे अन्दर की लालसा को जगा दिया। 

मैंने उसके होंठो को चूमना जारी रखा - मेरे मन में उम्मीद थी की वह भी मेरे चुम्बन पर कोई प्रतिक्रिया दिखाएगी। मुझे बहुत इंतज़ार नहीं करना पड़ा। उसने बहुत नरमी से मेरे होंठो को चूमना शुरू कर दिया, और मुझे अपनी बांहों में बाँध लिया। मैंने उसको अपनी बांहों में वैसे ही पकड़े रखा हुआ था, बस उसको अपनी तरफ और समेट लिया। हम दोनों के अन्दर से अपने इस चुम्बन के आनंद की कराहें निकलने लगीं। पहाड़ की ताज़ी, सुगन्धित हवा ने हम दोनों के अन्दर स्फूर्ति भर दी।
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