Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
12-17-2018, 02:16 AM,
#55
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मज़ा क्या आएगा? मुझे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा है। एक तो जिस तरह से रूद्र ने रोज़ रोज़ मेरे अंग-प्रत्यंग की जाँच करी है, और जिस तरह का परिचय उनका मेरे गुप्तांगों से है, वैसा तो मुझे भी नहीं है। उन पर विश्वास करने के अतिरिक्त मेरे पास कोई चारा नहीं था। उनके ही निर्देशों पर मैंने अपनी टाँगे और चौड़ी खोल दीं...

‘क्या देखना चाहते हैं ये? भला ‘वो’ भी कोई देखने की चीज़ है?!’

रूद्र इस समय मेरे नितम्बों पर क्रीम लगा रहे थे.. कभी हथेली से, तो कभी उंगली से। मुझे कुछ कुछ संशय हो रहा था, उनके इरादों पर। लेकिन फिर भी मैंने सोचा की साथ देती हूँ, जब तक हो पाता है तब तक! जल्दी ही उनकी क्रीम से भरी उंगली मेरी गुदा-द्वार पर फिरने लगी और फिर अन्दर जाने लगी। हर बार जैसे ही उंगली अन्दर आती, स्वप्रतिक्रिया में मेरी गुदा का द्वार बंद हो जाता।

‘मेरी गुदा को भी भंग करना चाहते हैं क्या?’ मेरे दिमाग में एक विचार कौंधा।

“क्या करना चाहते हो?” मैंने याचना भरी आवाज़ में कहा, और साथ ही साथ पीछे की तरफ मुड़ी। उनका तना हुआ प्रबल लिंग इस तरह से उठा हुआ था की मानो मेरी गुदा को ही देख रहा हो। 

“जानू, थोड़ा वेट तो करो!”

उन्होंने कुछ और क्रीम उंगली पर लेकर मेरी गुदा में प्रविष्ट कराया और देर तक भीतर ही चलाते रहे। कुछ देर में मुझे गुदा पर अभूतपूर्व फैलाव महसूस हुआ... तुरंत समझ में आ गया की इस बार उंगली नहीं, उनका लिंग अन्दर जाने की कोशिश कर रहा है!

“न न नहीं..! प्लीज! वहां पर नहीं! प्लीज! मैं मर जाऊंगी!”

“जानू! एक बार ट्राई तो करते हैं?”

“नहीं! आगे से आपका मन भर गया क्या, जो आप पीछे डालना चाहते हैं? प्लीज प्लीज! मैं आपकी हर बात मानूंगी, लेकिन ये नहीं! मैं मर जाऊंगी सच में! आप उंगली ही डाल रहे हैं और उसी में मेरी जान निकल रही है।“ मैं बुरी तरह गिड़गिड़ा रही थी। इनका जो भी प्लान था, मैं उसमे भाग नहीं लेना चाहती थी।

“अच्छा ठीक है... ठीक है! मैं कुछ नहीं करूंगा! भरोसा रखो। सॉरी! तुमको दर्द देकर मुझे कोई मज़ा थोड़े ही मिलेगा!” उन्होंने मेरे नितंब सहलाते हुए भरोसा दिलाया। लेकिन मन में डर बैठ गया... 

इतना सब होते हुए भी मैंने जो मेंढकी वाला आसन लगाया था, वह अभी तक लगा हुआ था। रूद्र मेरे पीछे आकर मुझ्ह्से चिपक गए और पीछे से ही मेरे स्तनों को पकड़ कर भींचने लगे। साथ ही साथ वह अपने कमर को कुछ इस तरह से चक्कर में घुमा रहे थे जिससे उनके लिंग का अग्रिम भाग मेरी योनि और कभी कभी गुदा पर छू जाता। जैसे ही मेरी योनि को उनका लिंग छूता, मेरा मन होता की एक झटके से उनके लिंग को अन्दर ले लूं.. लेकिन स्त्रियोचित संकोच और लज्जा मुझे रोक लेती। इसी पूर्वानुमान में मेरी योनि से रस निकलने लगा।
उन्होंने बहुत देर तक मुझे ऐसे ही सताया... और इस पूरे घटनाक्रम में मैं सोच रही थी और उम्मीद लगाए बैठी थी की कभी तो इनका धैर्य छूटेगा, और कभी तो वो मेरे अन्दर प्रविष्ट होंगे। यही सब सोचते हुए मैंने इतने में ही एक बार और चरमोत्कर्ष प्राप्त कर लिया। 

‘क्या स्टैमिना है इनमें! लगता है एक जबरदस्त सम्भोग होने वाला है! एक तगड़ी चुदाई..!’ मन में कैसे कामुक विचार! अजीब सी मस्ती छाने लगी... इस समय मेरा अंग-अंग थरथरा रहा था, घुटनों में सम्हलने की ताकत ही नहीं बची थी.. इन्होने पीछे से मुझको थाम रखा था, इसलिए मैं अभी भी उसी अवस्था में टिकी थी.. नहीं तो अब तक गिर चुकी होती।

उनको मेरे चरमोत्कर्ष का पता अवश्य चला होगा, क्योंकि अब वो मेरी योनी को चाट रहे थे। उत्तेजना के वशीभूत होकर मैं अपने नितम्ब जोर जोर से हिलाने लगी। मेरी हालत बहुत बुरी थी। एकदम छंछा जैसी हरकतें! इस समय रूद्र मेरी योनि के भगोष्ठों को खोलकर जीभ से अन्दर तक कुरेद और चाट रहे थे। न चाहते हुए भी मेरे गले से कामुक सिस्कारियां छूट गईं। उधर उन्होंने चूसना जारी रखा। कुछ ही देर में मैं दूसरी बार चरम आनंद को प्राप्त कर कांपने, और आहें भरने लगी। मेरे होशो-हवास सब गायब हो गए - उनका इस तरह चाटना मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। इस बार रूद्र ने मुझे छोड़ दिया, तो मैं निढाल होकर बिस्तर पर गिर गई – इतनी भी ताकत नहीं बची की ठीक से लेट जाऊं.. बस उसी अवस्था में लेटी रही। 

मैंने देखा की रूद्र बैग में से कुछ और भी निकाल रहे थे... कोई शीशी! वापस आकर उन्होंने मुझे बिस्तर पर चित्त लेटा दिया और मेरी जांघे थोड़ा और फैला दीं। मैं तो निढाल पड़ी थी, उन्ही के रहमो करम पर! ऐसे नीचे से देखने पर रूद्र का तना हुआ लिंग दिख पड़ रहा था। ऐसा भयावह वह पहले दीं भी नहीं दिखा। निःसंदेह उसकी लम्बाई और मोटाई कुछ ज्यादा ही लग रही थी। उसकी नसें भी फूल कर मोटी हो रही थी, और उसका आगे का चमकदार गुलाबी भाग भी दिख रहा था। अपनी ताकत बटोर कर मैंने उस माँसल अस्त्र को पकड़ लिया। इतना गर्म! बहुत अद्भुत सी बात थी – नहाने के बाद संभवतः कमरे के वातानुकूलन के कारण उनके वृषण सिकुड़ कर उनके जघन क्षेत्र के काफी अन्दर छुप गए से मालूम हो रहे थे, लेकिन लिंग की अलग ही बात थी! इतना गर्म, और सामान्य उत्तेजना से भी अधिक उत्तेजित!

उन्होंने मुझे कुछ देर अपना लिंग पकड़ने दिया और फिर अलग होकर अपने काम के अगले हिस्से को अंजाम देने लगे। शीशी खोलकर उन्होंने मेरी योनी पर उड़ेल दिया।

“क्या ... है.. यह?” मैंने टूटी फूटी कामुक आवाज़ में पूछा!

“हनी... यह हनी है!”

एक और प्रयोग! योनि एक स्वादिष्ट भोज्य भी बनायीं जा सकती है! उन्होंने उंगली से शहद को मेरी पूरी योनी पर फैलाया और फिर जीभ की नोक से धीरे धीरे चाटने लगे। 

“आहह…!” अभी अगर मैं इस समय मर भी जाऊं, तो कोई दुःख न होगा! ऐसा सुखद एहसास! “हम्*म्*म्*म*” उनका मेरी योनि का यूँ भोग लगाना मुझे पागल किए जा रहा था। मन में इच्छा जागी की वो लगातार ऐसे ही चाटते रहें। अनायास ही मैं अपनी बची खुची ताकत लगा कर अपने नितम्बो को उठा उठा कर योनि को उनके मुंह में और पहुँचाने की कोशिश कर रही थी। इसी बीच मैंने देखा की वो अपने लिंग पर भी शहद लगा रहे थे। शहद लगाने के बाद वह मेरे ऊपर उल्टा होकर लेट गए.. लेट नहीं गए... लेकिन कुछ ऐसे की उनका लिंग मेरे मुँह की तरफ रहे, और उनका मुँह मेरी योनि के ऊपर! मैंने भी बिना किसी पूर्वाग्रह के उनका लिंग अपने मुँह में भर लिया। 

‘स्वादिष्ट!’ मैं उनके शहद से चिपुड़े लिंग पर जीभ फेर फेर कर स्वाद ले रही थी, और रूद्र मेरी योनि का! 

इतना मजा जीवन में कभी नहीं आया – मानों मैं स्वर्ग की सैर कर रही हूँ! मुझे तो किसी भी चीज़ का आभास नहीं था – बस यह की योनि के रास्ते से आनंद का उन्माद मेरे पूरे शरीर में फ़ैल रहा था। तीसरी बार मेरी योनि में जबरदस्त चिंगारी पनपी – इस बार मुझे वहां से द्रव छलकता महसूस हुआ... मेरा पूरा शरीर अकड़ने लगा। मैंने दोनों हाथों को बिस्तर पर पटक रही थी, और हांफ रही थी! बेबस... लाचार! लेकिन संतुष्ट!

रूद्र खुद भी न जाने कब से मुझे भोगने को तैयार थे, लेकिन सिर्फ मेरी ख़ुशी के लिए अभी तक खुद को जब्त किए हुए थे। लेकिन अब बस! वो मेरे ऊपर से उतरकर, मेरी दोनो टांगों को चौड़ा करके, और एक तकिये को उठाकर मेरे नितम्बों के नीचे लगा कर उनके बीच में बैठ गए। अपने लिंग को उन्होंने मेरी योनि पर सटाया, और दोनों हाथों से मेरी कमर थाम कर अपने लिंग को अनादर की तरफ धकेला। 

“आहहह...” अन्दर इतनी चिकनाई हो गई थी की पहले ही वार में उनका ज्यादातर लिंग मेरी योनि में समां गया। उन्होंने फिर मेरे होंठों को चूमते हुए, पहले तो धीरे धीरे, और बाद में तेज़ गति से मुझे भोगना आरम्भ कर दिया। एक के बाद एक तीव्र रति-निष्पत्ति के बाद मेरी दशा निर्जीव जैसी हो गई थी। लेकिन उनके सम्भोग के तरीके में कुछ ख़ास बात थी, की कुछ ही देर में मैं भी अब कुछ होश में आकर अपने नितम्बों को उन्ही की गति से, धीरे धीरे ही सही, गति मिलाने लगी। कोई तीन मिनट के बाद अचानक ही उन्होंने सम्भोग की गति बढ़ा दी। मुझे भी अपने अन्दर एक और लावा बनता हुआ महसूस होने लगा! घोर आश्चर्य! ये चौथा होगा.. और इनका पहला! 

मुझे एक और बार चरम सुख मिल गया। लेकिन ये नहीं रुके। निष्पत्ति के सुख के बाद मेरी सांसे अभी तक सम्भल भी नहीं पाई थी कि इन्होने मुझे अपने आलिंगन में भर लिया और बहुत तेज गति से धक्के चलाने लगे। ऐसे तो उन्होंने कभी नहीं किया। तीन चार बार तो मुझे चोट भी लग गई! फिर अचानक ही ये भी स्खलित हो गए – मुझे मेरे अन्दर बेहद गरम द्रव गिरता हुआ महसूस हुआ! गहरी साँसे भरते हुए रूद्र निढाल हो कर मेरे ही ऊपर गिर गए। हम दोनों देर तक अपनी साँसे नियंत्रित करते रहे। मुझे मूत्र की तीव्र इच्छा हो रही थी, लेकिन थकावट इतनी ज्यादा थी की हिलने का भी मन नहीं कर रहा था।

लेकिन रूकती भी तो कितनी देर! कुछ तो बात है – यौन संसर्ग के बाद न जाने क्यों मुझे मूत्र की तीव्र इच्छा होने लगती है। मैं कुनमुनाई। इनको जैसे तुरंत समझ आ गया।

“टॉयलेट जाना है?” इन्होने पूछा।

“हाँ.. जल्दी!” कहते हुए मैं मुस्कुराई। कितना कुछ बदल गया इतने ही दिनों में! अब कोई संकोच नहीं लगता!

“आओ मेरे साथ..” कह कर ये उठे और मुझे भी हाथ पकड़ कर बिस्तर से उठा लिया। 

‘फिर कोई नया खेल क्या? बाप रे!’

मैं ठीक से चल नहीं पा रही थी – एक तो मेरे पाँव अभी तक कांप रहे थे, और ऊपर से बहुत ज्यादा थकावट! इसलिए रूद्र ने मुझे सहारा देकर बाथरूम तक पहुँचाया। बाथरूम तक, लेकिन कमोड तक नहीं। वो मुझे नहाने वाले स्थान पर लेकर गए... मुझे कुछ समझ नहीं आया। मैंने उनकी तरफ देखा, लेकिन जब उन्होंने कुछ नहीं कहा तो मैं बैठने लगी।

“रुको..” इनकी आँखों में एक बार फिर से एक शैतानी चमक जाग गई। मैं समझ गई की अब मैं फिर से मरने वाली हूँ!

रूद्र वहीँ बाथरूम की फ़र्श पर लेट गए, और मुझे इशारे से अपने ऊपर बैठने को कहने लगे। 

“छी! आप भी न! न जाने क्या क्या करवाते हैं मुझसे!”

"अरे यार! क्या छी? एक बार मेरा कहा मानो.. मज़ा न आये तो फिर शिकायत करना!" उनकी बात सुन कर मुझे हंसी आ गए! बच्चों जैसी जिज्ञासा, उन्ही के जैसी शैतानी, उन्ही के जैसी मासूमियत! उन्होंने मुझे हाथ से पकड़ कर अपने जघन क्षेत्र पर बैठाने में मेरी मदद करी। मैं क्या ही करती? मैं भी जैसे तैसे उनपर उकडूं बैठ गई – बहुत ही बेढब तरीका था.. लेकिन अब समझ आया की रूद्र क्या चाहते थे। एक तो मेरे उनके ऊपर इस तरह बैठने से मेरी योनि पूरी तरह से प्रदर्शित होती, और मूत्र उन्ही के ऊपर ही गिरता!

"जानू! आप श्योर हैं? मुझे बहुत जोर से आ रही है।" 

उन्होंने सर हिला कर हामी भरी, “बिलकुल श्योर! शुरू करो।"

उन्होंने दोनों हाथ से मैंरे दोनों टखने पकड़ लिए और मैंने अपने दोनों हाथ उनके सीने पर टिका दिए – सहारे के लिए। दिक्कत यह है की कुछ देर अगर मूत्र को रोक लिया जाए, तो फिर तुरंत ही नहीं हो पाता – कुछ देर इंतज़ार करना पड़ता है। मैंने कुछ देर तक अपनी साँसे नियंत्रित करीं, और अपनी मांस-पेशियाँ कुछ शिथिल करीं।

मैं अपनी आँखें मूँद लीं, और मूत्र करने पर ध्यान लगाया।
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