Chodan Kahani जवानी की तपिश
06-04-2019, 01:08 PM,
#16
RE: Chodan Kahani जवानी की तपिश
मुझे एक तरफ बड़े से स्टूल के पीछे खुद को छुपाने का मोका मिल गया। जहाँ से मैं आसानी से उस रूम पर नजर रख सकता था। मुझे वहाँ पर खड़े हुए अभी ज़्यादा देर ना हुई थी कि रूम का दरवाजा खुला। मेरे दिल की धड़कन बढ़ चुकी थी। जासूस ने मुझे बेचैन कर दिया था। मैं बड़े गौर से उस तरफ देख रहा था और नीम अंधेरे में मुझे एक बड़ी सी चादर में लिपटा हुआ वजूद रूम से बाहर आते नजर आया। जिसने दरवाजे से निकलकर एक नजर चारों तरफ देखा और किसी की मोजूदगी को महसूस ना करते हुए, वो जल्दी से बाहर आ गया। उसकी नजर मुझ पर नहीं पड़ी थी। एक तो में बड़े से स्टूल के पीछे था दूसरा वहाँ पर रोशनी दूसरी जगह के मुकाबले में कम ही थी।

वो पूरी तरह चादर में लिपटी हुई थी, और उसने अपने चेहरे पर चादर की ही मदद से नकाब लिया हुआ था। उसने जल्दी से नीचे जाने वाली सीढ़ियों की तरफ कदम बढ़ा दिया। मैं उसको सही तरह से देख नहीं पाया। मैंने जल्दी से एक फौरी फैसला लेते हुए सामने आने का सोचा, और फौरन ही स्टूल की आड़ से निकलकर उसके सामने आ गया। वो मुझसे कुछ ही दूर थी।


यह फैसला मैंने इसलिए लिया था कि अगर मैं उसको सही से देख नहीं पाया तो, कोई बात नहीं। मगर वो मुझे जरूर देखे और उसे पता होना चाहिए कि उसका यह खेल मैंने देखा है। मुझे इस तरह अचानक सामने देखकर वो डर गई और खुद को संभाल ना पाई। खौफ की वजह से पीछे हटते हुए उसका पाँव पीछे लटकती हुई अपनी ही चादर से उलझा और वो लड़खड़ाती हुई पीछे दीवार से जा टकराई, और गिर पड़ी। इस हड़बड़ाहट में उसकी चादर चेहरे से हट गई।

मगर हाए री किश्मत… मैं अब भी उसका चेहरा ना देख पाया। खुद को फौरी तौर पर मुझसे दूर करने के चक्कर में वो पलट गई थी, जिसके कारण उसका चेहरा दूसरी तरफ हो गया था। मैंने जल्दी से आगे बढ़कर उसको पकड़ने का सोचा ही था कि वो बड़ी तेजी से खुद की चादर संभालते हुए उठी और उसी तेजी से दो-दो सीढ़ियाँ फलाँगती हुई नीचे की तरफ भागी।

मैं भी उसके पीछे भागा मगर वो तो जैसे छलावा बनी हुई थी। उसकी फुर्ती काबिल-ए-तारीफ थी। अगले ही लम्हे वो सीढ़ियों से नीचे थी, और इस दौरान उसने अपने आपको संभाल लिया था। उसने एक बार फ़िर अपना चेहरा चादर से ढक लिया। सीढ़ियों की नीचे वो एक लम्हे के लिए रुकी और उसने मेरी तरफ देखा और फ़िर अगले ही लम्हे वो जनानखाने का दरवाजा खोलकर उसमें गुम हो चुकी थी।

मैं हैरत से सीढ़ियों के बीच ही खड़ा उसे देखता रहा, और उसकी फुर्ती पर हैरान होता रहा कि वो किस तेजी से मेरे हाथों से निकल गई थी। मैं कुछ देर तक वहीं खड़ा इस असमंजस में था कि क्या मैं उसके पीछे इस जनानखाने की तरफ जाऊँ या ना जाऊँ? मुझे इस बात का तो कोई खौफ नहीं था कि अगर मैं जनानखाने की तरफ गया तो कोई मुझे कुछ कहेगा। मगर इस वक्त वहाँ जाने पर मैं किसी को क्या जवाब दूँगा कि मैं जनानखाने में इस वक्त क्यों आया था? मुझे तो यह भी पता नहीं था कि जनानखाने में कौन-कौन रहता है और यह कौन हो सकता है? क्या मेरी सौतेली माँ, या मेरी वो सोतेली बहनों में से कोई एक?

अब तक जो रिश्ते मेरे सामने, सारा की जुबानी आ चुके थे। उनमें से यह तीन ही लोग थे जिनपर मैं शक कर सकता था। या फ़िर जनानखाने में इस वक्त आए हुए खानदान के लोगों में से कोई और? यह सब सोच-सोचकर मेरा सिर घूमने लगा। मैंने सिर झटक कर अपने आपको इन सोचों से आजाद किया और एक गहरी साँस लेकर और चारों तरफ नजरें घुमाते हुए, कुछ सोचकर मैं वापिस अपने कमरे की तरफ चल दिया और एक बार फ़िर मैं उस रूम के दरवाजे के सामने खड़ा हुआ था, जहाँ कुछ ही देर पहले सेक्स गेम चल रहा था।

एक लम्हे के लिए मैंने सोचा कि अंदर जाकर देखूँ की वो कौन कंजड़ है जो आज यहाँ अपनी हवस पूरी कर रहा था? फ़िर मैंने बड़ी मुश्किल से खुद को कंट्रोल किया, और यह सोचकर अपने रूम की तरफ बढ़ गया कि कल पता लगा लूँगा कि इस रूम में कौन था? और मुझे यह सारी चीजें सावधान होकर करनी होगी। कहीं किसी बेवकूफी में अपने आपको ना नुकसान पहुँचा लूँ?

रूम में दाखिल होकर मैंने रूम का दरवाजा बंद किया, मगर कोई लाक या कुण्डी ना लगाई। मैंने फ्रिज से एक ठंडे पानी की बोतल निकाली और उसका ढक्कन खोलकर ऐसे ही अपने मुँह से लगाकर बड़े-बड़े घूँट लेकर इस ठंडे पानी से अपने अंदर लगी उस आग को बुझाने की नाकाम कोशिस करने लगा, जो कुछ ही देर पहले वो खेल देखकर मेरे अंदर भड़क चुकी थी। मुझे पता था कि यह आग इस पानी से ठंडी नहीं होगी। मगर इस आग को ठंडा करने का ना तो कोई तरीका था अभी मेरे पास, और ना ही मैं उसको किसी तरीके से ठंडा भी करना चाहता था। क्योंकी यह आग अपनी जगह मगर अपनों का दुख अपनी जगह था।

मैं अपने बाबा और अम्मी की इस अचानक जुदाई को इतनी आसानी से नहीं भूल सकता था, की खुद को हवस की ख्वाहिश में गुम करके उनको भूल जाऊँ। लेकिन इस वाकिये ने मेरी सोच का रुख बदल दिया था। मैं वो बोतल लेकर बेड पर आकर बैठा, और एक बार फ़िर उस बोतल से ठंडे पानी का बड़ा सा घूँट अपने अंदर उतरा। मेरी तबीयत कुछ सम्भलने लगी थी। मैंने अपने जेहन को पुरसकून करने की कोशिस की और संजीदगी से अब सोचने लगा।

अब यह हवेली मुझे बहुत ही पुर-इसरार लग रही थी। मुझे महसूस होने लगा कि इस हवेली में कोई घिनौना खेल चल रहा है, और उसका ताल्लुक कहीं ना कहीं शायद बाबा की मौत से भी था। यह खयाल आते ही मैं चौंक गया। अब मेरा जेहन इस नज़रिए पर सोच रहा था कि कहीं बाबा और अम्मी की मौत एक दहशतगदी का वाकिया नहीं बल्की कोई सोची समझी साजिश ही ना हो।

यह खयाल आते हैं मैं बेचैन हो गया। मैं बेड से उठकर रूम में टहलने लगा। बहुत से खयालात मुझे परेशान करने लगे। अगर वाकई यह कोई सोची समझी साजिश है तो, मुझे क्या करना चाहिए। इस साजिश का कैसे पता लगाऊूँ। मैंने बहुत देर तक इस बारे में सोचा, और फ़िर मैंने फैसला किया कि मुझे इस सिलसिले में सलामू चाचा को विश्वास में लेना पड़ेगा। एक वही शख्स था जिसपर बाबा बहुत विश्वास करते थे।

मुझे तो अभी अपने दोस्त और दुश्मन का भी पता नहीं था। यह सब कुछ सोचने के बाद मैं अपने बिस्तर पर आ गया और सोने की कोशिस करने लगा। लेकिन नींद मेरी आँखों से कोसों दूर थी, और वक्त था कि गुजरने का नाम ही नहीं ले रहा था।
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