RE: Chudai Story अनोखी चुदाई
अब क्या बोलूं, मेरा लंड भी तो मचल गया था अपनी धर्म पत्नी की गाण्ड को मसलते देख.
गौर ज़रूर कीजिएगा, मेरे सवाल पर जो मैंने उपर पूछा.
मर्दों का ही लंड नहीं औरतों की चूत भी मचल ही जाती है.
कारण जो भी हो या मर्द जो भी हो.
खैर, गीली चूत का एहसास होते ही मैंने उंगली अंदर तक घुसेड दी.
पैंटी तो शायद उन दिनों पहनी नहीं जाती थी.
सिल्क के हल्के से कपड़े से, फ़ौरन ये एहसास हो गया बहुत गरम थी.
“भाभी की चूत.”
अब समझा वो मोटा सांड़ सा आदमी, उस की चूत में ही फिंगरिंग कर रहा था.
भाभी नीचे चड्डी तो पहनी नहीं थी, सलवार भी लगता था की या तो फटी हुई है या फिर छोटा सा होल है.
किस्मत मस्त थी, जो मस्त तरह से उंगली चूत के अंदर बाहर हो रही थी.
सटा सट सटा सट.. ..
हाय!! उंगली पर बहता चूत का पानी, इससे मस्त कुछ उंगली पर लग ही नहीं सकता.
उधर, मेरी बीबी की हालत भी और खराब लग रही थी और वो बड़ी मशक्कत से मेरी तरफ देख रही थी की जैसे, मैं उसकी मदद करूँ.
अब ये समझना मुश्किल था की वो भी सही में परेशान है या उसकी चूत भी पनिया रही है.
दोनों की चूत में अच्छी तरह से, फिंगरिंग हो रही थी.
मैंने भी सोचा, मज़ा लेने दो और देखते रहो, जो हो रहा है.
लेकिन फूटी किस्मत, भाभी वाला वो मोटा आदमी फिर भाभी के पीछे आ गया मुझे बड़ी चालाकी से धीरे से धक्का दे दिया.
मैं चुप रहा और देखने लगा, तिरछी नज़रों से.
अब ये तो कह नहीं सकता – साले सांड़, मुझे मज़े लेने दे…
खैर, मेरी नज़र नीचे ही थी.
वो मोटा, अब और अच्छी तरह से उंगली करने लगा.
भाभी ने धीरे से, मेरी तरफ देखा तो मैंने आँख मार दी.. जैसे, कह रहा हूँ की मज़े कर लो..
लगभग 10 मिनट के बाद, बारिश थोड़ी बंद हुई तो भागे सब घर की तरफ.
मैंने भाभी को कहा – आज कल, लोगों को शर्म भी नहीं आती है…
तो उन्होंने, पहले मुझे ऐसा देखा जैसे मैंने उनकी कोई चोरी पकड़ी हो.
उस प्रतिक्रिया को, मैं समझ नहीं पाया.
वैसे औरत को तो भगवान भी नहीं समझ पाया.. मैं अदना सा, इंसान क्या हूँ..
खैर, कुछ देर बाद भाभी ने कहा – ऐसा ही होता है, हमारे देश में… मनचले आदमी, कोई मौका नहीं छोड़ते ऐसी भीड़ में… ऐसे चिपक चिपक कर खड़े हो जाते हैं, जैसे गुड से मक्खी चिपक गई हो…. शरीफ औरतों का ये हाल तो बॉम्बे में आम दिनों में भी होता रहता है, भीड़ भाड़ वाली जगहों पर… पर आज कुछ ज़्यादा ही हो गया…
ये कहते ही, भाभी ने मेरी तरफ देखा.
बाहर आए तो बारिश फिर लग पड़ी, ज़ोर से और हम काफ़ी भीग गये.
पानी कपड़ों से होते हुए, पैरों में निकलने लगा था.
मेरी बीबी और भाभी, दोनों ही बुरी तरह से भीग चुकी थीं और मैं भी.
उन दोनों के कपड़े, पूरी तरह से बदन से चिपक गये थे.
मैंने भाभी को, मज़ाक में कहा – अच्छी तरह से सफाई हो गई आज, बारिश में… बहुत मस्त लग रहीं हैं, आप दोनों ही…
तो वो बोली – अरे यार, पूरी ऊपर से नीचे तक ठंड लग गई…
मेरी बीबी बोली – ठीक तो है ना, भाभी… अब और नहाना नहीं पड़ेगा….
दोनों की ही गाण्ड, एक दम से साफ़ दिखाई दे रही थी.
चलते हुए, दोनों की “गाण्ड की फाँकें” अलग अलग हो रही थीं.
दोनों ही, बार बार गाण्ड में घुसी हुई सलवार को बाहर खींच रही थीं.
देखने वालों को तो मज़ा आ रहा था, पर क्या कर सकते थे.
मैं तो खुद ही, उनके पीछे पीछे चल रहा था.
एक और सवाल यूँ ही मन में आया, जब हम चुदाई करते हैं तो गाण्ड या दूध की खूबसूरती का खुल के मज़ा नहीं ले पाते.
गाण्ड की असली खूबसूरती देखनी है तो चलती हुई, औरत की नंगी हिलती हुई गाण्ड की देखो.
जब सिल्क के सलवार में चिपकी गाण्ड, इतनी मस्त लगती है तो नंगी लड़की चले तो आह !!!
हैं ना बात में, “दम.”
मुझसे रहा नहीं गया, मैंने बीबी को धीरे से बोला – आज़ बहुत मनचले तुम्हारी दोनों की गाण्ड देख कर, ज़रूर मूठ मारेंगे…
कमीने और हरामी टाइप के स्वाभाव से, मेरी भोली भाली बीवी भी थोड़ा मुझसे खुली हुई थी.
शादी के एक महीने के अंदर ही, मैंने उसको चूत, चुदाई यहाँ तक की गालियाँ भी सीखा मारी थी.
हमारे बीच, शराफ़त का कोई परदा नहीं था.
दोनों मियाँ बीबी, बिंदास जीते थे.
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