Chuto ka Samundar - चूतो का समुंदर
06-08-2017, 10:53 AM,
RE: चूतो का समुंदर
मैं- आंटी...आप तो मेरी माँ की खास सहेली थी...क्या उन्होने आपको मेरे डॅड के नेचर के बारे मे कुछ नही बताया...
आंटी- हूँ..बताया था...
मैं- तो क्या बताया ...क्या मेरे डॅड इतने गुस्से वाले है...पत्थर दिल है..हाँ...
आंटी- नही..अलका ने तो यही बताया कि वो बहुत प्यार करने वाला...शांत..सुर इमोशनल है...
मैं- हाँ..मैने भी आज तक अपने डॅड को गुस्सा करते नही देखा...कभी नही...अब बोलिए आपको सुनी हुई बात पर पूरा यकीन है...??
आंटी- नही पता...ये सब सुनकर तो नही...पर जो लोगो ने देखा वो...??
मैं- वो...उसका पता लगाना होगा...
आंटी- पर..पर कैसे..और कौन लगाएगा...??
मैं- पता मैं लगाउन्गा...क्योकि मुझे यकीन है कि जो भी हुआ...वो कोई नही जानता...सब अंधेरे मे है...
आंटी- बेटा मैं..क्या कहूँ...मुझे कुछ समझ नही आ रहा...
मैं- आप मेरा साथ देगी...??
आंटी- मतलब...??
मैं- आंटी...मैं सब सच्चाई बाहर लाना चाहता हूँ...और साथ मे अपने दुश्मनो को भी ख़त्म करना चाहता हूँ...इसके लिए मुझे सब कुछ जानना होगा..सब कुछ...
आंटी- सब कुछ क्या..??
मैं- वो सब...जिसकी वजह से ये दुश्मनी हुई...मैं जानना चाहता हूँ कि दामिनी, कामिनी, रिचा, विनोद और दीपा...क्यो मेरे डॅड के दुश्मन है...क्या बिगाड़ा है हमने इनका...सब कुछ..
आंटी- ह्म्म..मैं सब बताउन्गी...जो भी मैं जानती हूँ...पर मेरा क्या...मेरे लिए क्या करेगा तू..
मैं- आपके लिए...मैं सच पता करूगा....अगर आपकी बात सही है तो मेरे डॅड को सज़ा मिलेगी...क़ानूनन....और सच कुछ और है...तो असली कातिल को मैं खुद सज़ा दूँगा...
आंटी- पर तू ये सब करेगा कैसे बेटा...
मैं- मेरे साथ मेरी एक माँ का आशीर्वाद है...और दूसरी माँ का साथ...अब मुझे क्या फ़िक्र...कर लूँगा आंटी...
मेरी बात सुनकर आंटी के चेहरे पर खुशी दौड़ गई...और आंटी ने मेरा सिर चूम लिया...
आंटी- ठीक है बेटा...तुम्हारी माँ तुम्हारे साथ है...बोलो..क्या करना होगा...
मैं- सबसे पहले मुझे आपके सभी साथियों का नाम बताइए और फिर उनकी दुश्मनी की वजह...
और हाँ..मैं उस घटना को डीटेल मे जानना चाहूगा जब आपके भाई यानी मेरे फूफा जी और मेरी बुआ की मौत हुई थी...
आंटी- हाँ बेटा..वो मनहूस घटना मुझे अच्छी तरह से याद है...मैं वहाँ थी तो नही...पर जो सुना वो बताती हूँ....सब बताती हू...
गाओं मे एक घर मे धर्मेश और आरती खुशी-खुशी रह रहे थे...
आरती की बड़ी बेहन भी उसी गाओं मे अपने पति और बच्चे के साथ रहती थी...
आज़ाद की दोनो बेटियाँ खुश थी...ये देख कर आज़ाद को अपने बेटे की जुदाई का गम भी कम होता था...
सब ठीक चल रहा था...
एक शाम को धर्मेश अपनी बीवी और बेटी के साथ सुनहरे पल बिता रहा था कि तभी वहाँ सुभाष भी सरिता के साथ आ गया....
सरिता सबको अपने घर पर बेटी के जन्मदिन की पार्टी को बुलाने आई थी...वो अभी सुभास के घर से ही आ रही थी....और सुभाष को साथ ले आई...
सभी हँसते - बोलते चाइ नाश्ता करने मे बिज़ी थे...
तभी बाहर एक आदमी चिल्लाते हुए आ गया...
आदमी- धर्मेश बाबू...धर्मेश बाबू...
आदमी की आवाज़ मे बहुत डर भरा हुआ था...
धर्मेश जल्दी से बाहर आ गया...
धर्मेश- क्या हुआ ...
आदमी- बाबू जी...छोटे मालिक (आकाश) आ रहे है...बड़े गुस्से मे है....
धर्मेश(डरते हुए)- कहाँ देखा तूने...
आदमी- वहाँ....चोपाल के पास...हरिया की बैलगाड़ी रास्ता रोके हुए खड़ी थी...तो वही फसे है कार मे....आते ही होगे...बड़े गुस्से मे है बाबू...
धर्मेश- ह्म्म...तू जा और आज़ाद अंकल को बुला ला...जल्दी...
आदमी आज़ाद को बुलाने चला गया और धर्मेश डरा हुआ अंदर चला आया...
जब धर्मेश ने ये बात अंदर बताई तो सबके होश उड़ गये....आरती की तो जान ही हलक मे आ गई...
आरती- भैया...यहाँ...उन्हे पता चल गया क्या...??
धर्मेश- लगता तो यही है...मैने पहले ही कहा था कि उसे बता देते है कि हम शादी करना चाहते है..पर तुम और तुम्हारे पापा...
आरती(बीच मे)- वो मार डालेगे मुझे...क्या करूँ...
घर के अंदर सब घबरा रहे थे...
और जब वो आदमी आज़ाद को बुला कर भागता हुआ वापिस आ रहा था तो उसने 3 गोलिया चलने की आवाज़ सुनी...
गोलियों की आवाज़ सुन कर वो वही बैठ गया...उसके पैर जाम हो गये...उसे कुछ दिखाई ही नही दे रहा था...
थोड़ी देर बाद उसे होश आया तो वो फिर से भागा और धर्मेश के घर पहुच गया...
वहाँ उसने देखा कि आकाश की कार बाहर ही खड़ी है...
वो कुछ बोलता या करता..उसके पहले आरती रोती हुई बाहर आ गई...उसके हाथ मे एक पिस्टल थी...
आरती- कोई है..कोई है...देखो आकाश ने मेरे पति को मार डाला....कोई है...
और आरती ज़ोर से रोने लगी...
तभी आकाश भी बाहर आ गया और उसके हाथ मे भी पिस्टल थी...
दूसरी तरफ आज़ाद भी कुछ गाँव वालो के साथ आ गया...और सामने का नज़ारा देख कर सन्न रह गया...
थोड़ी ही देर बाद आरती ने आकाश के पास जा कर अपने आप को गोली मार ली और ढेर हो गई...
किसी को कुछ समझ नही आया...
जब सबने अंदर जा कर देखा तो सिर्फ़ 3 लाशे पड़ी हुई थी...और कोई नही था वहाँ...
सबने आकाश को ज़िम्मेदार माना...पर आकाश सिर्फ़ रोता रहा...कुछ नही बोला...
गाओं वालो ने आज़ाद की वजह से आकाश को पोलीस के हवाले नही किया ..बस गाओं से निकाला दे दिया...जो पहले ही निकल चुके थे....
आकाश ने जाते-जाते आज़ाद से बात करना चाही..पर आज़ाद ने एक ना सुनी..और आकाश को थप्पड़ मारते हुए गाओं से बाहर कर दिया.....
ये बात आज़ाद की वजह से गाओं मे ही दब गई....और सच हमेशा के लिए दफ़न हो गया...
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