Chuto ka Samundar - चूतो का समुंदर
06-08-2017, 11:10 AM,
RE: चूतो का समुंदर
रिचा के घर.........

जैसे ही रिचा ने गेट खोला तो मैने एक करारा थप्पड़ जड़ दिया उसे.....

रिचा- त्त्त...तुम...पर...मारा क्यो....????????????????

इतना बोलते ही रिचा के गाल पर एक और थप्पड़ पड़ा और रूम मे थप्पड़ की आवाज़ गूँज उठी....

""कककचहााआटततटत्त्ताआआक्कककककककक.......""

रिचा थप्पड़ खा कर डर तो गई थी...फिर भी गुस्सा दिखाते हुए बोल पड़ी....

रिचा- तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे हाथ लगाने की...हाअ...

इतना बोलते ही रिचा के गालो पर 3-4 थप्पड़ और पड़ गये ....और फिर रिचा रोते हुए गिडगिडाने लगी.....

रिचा- बस करो...प्ल्ज़....बस करो अंकित....प्ल्ज़....

मैं- अब अकड़ कम हुई कि नही....

रिचा- मुझे क्यो मार रहे हो...मैने क्या कर दिया...सब तो बता दिया....

मैं- अभी भी नही समझी....लगता है थोड़ी और मार चाहिए तुझे....

फिर मैने हाथ उठाया ही था तो रिचा लगभग पैरों मे गिरते हुए गिडगिडाने लगी....

रिचा- नही अंकित...प्लीज़...मारना मत...पर ये तो बता दो कि मैने किया क्या है...प्लज़्ज़्ज़्ज़.....

मैं- तो तू मेरे मुँह से ही सुनना चाहती है...हाँ...

रिचा- प्ल्ज़....बताओ ना...क्या ग़लती कि मैने....

मैं- तेरी ग़लती तो तुझे बताउन्गा ही...उससे पहले तू सरफ़राज़ को कॉल करेगी....वो भी मेरे सामने....अभी...

रिचा(डरते हुए)- क्क़..क्या...नही-नही...ऐसा मत बोलो....उसे ज़रा भी शक हो गया तो वो मुझे छोड़ेगा नही....

मैं- अच्छा....और अगर तूने मेरी बात नही मानी ...तो तेरे साथ तेरी बेटी को भी नही छोड़ूँगा....अब सोच ले....तू अकेले जाएगी या बेटी को ले कर....

रिचा- न...नही..मेरी बेटी को कुछ मत करना...उसकी तो कोई ग़लती भी नही...वो तो कुछ जानती भी नही...

मैं- ह्म्म..तो अब कॉल कर....

रिचा- अगर उसे शक हुआ तो...

मैं- तो तेरी बेटी बच जाएगी...तू अकेले मरना....अब कॉल कर....जल्दी...और जो मैं कहता हूँ...वो बोल...

फिर मैने रिचा को सब समझा दिया कि उसे क्या बात करनी है...और फिर ...मेरे कहने पर रिचा ने लाउड स्पीकर ऑन कर के सरफ़राज़ को कॉल किया....

( कॉल पर )

सरफ़राज़- हेलो....

रिचा- ह..हेलो ...कहाँ हो...

सरफ़राज़- इससे तुझे क्या....तू ये बता कि मेरे मना करने पर भी तूने कॉल क्यो किया....

रिचा- वो...वो मुझे ज़रूरी काम था...

सरफ़राज़- अच्छा...तो बोल..क्या काम आ पड़ा ..

रिचा- वो...वो अंकित...

सरफ़राज़(चौंक कर)- अंकित...अंकित का क्या हुआ....

रिचा- कुछ नही...पर वो यहाँ आया था...

सरफ़राज़- तेरे घर...पर किस लिए...कहीं कुछ गड़बड़ तो नही हुई ना...

रिचा- नही...गड़बड़ नही...वो तो बस...

सरफ़राज़- रुक क्यो गई...बस क्या...किस लिए आया था...

रिचा(मुस्कुरा कर)- मेरे हुश्न के दीदार के लिए...हहहे....

सरफ़राज़- ओह...तू तो है ही ऐसी चीज़..जिसके मुँह लग जाए वो पीछा नही छोड़ता...पर इसमे कॉल करने की क्या ज़रूरत थी....

रिचा- अरे नही...कॉल तो इसलिए किया...क्योकि मुझे लग रहा है कि उसे कुछ शक हो गया...शायद तुम पर...

सरफ़राज़- क्या मतलब...मुझ पर कैसे होगा...ऐसा क्यो लगा तुम्हे...बोलो...

रिचा- ज़्यादा तो कुछ नही बोला...पर बोल रहा था कि उस ट्रिप पर सम्राट ने जो हमला करवाया....उसमे किसी अपने का हाथ था...ट्रिप मे जो उसके साथ थे...उनमे से कोई...

सरफ़राज़- क्या बकती हो...वो तुमसे क्यो कहेगा...

रिचा- क्योकि वो मुझे अपना मानता है...इसलिए...

सरफ़राज़- अच्छा...पर तुझे तो पता है ना कि उस हमले से मेरा कोई लेना देना...

रिचा- सच बोलो...मुझसे तो झूट मत बोलो...

सरफ़राज़- झूठ...मैं झूठ क्यो बोलने लगा....अगर मैं उसे मारना चाहता तो कब का मार देता...पर सिर्फ़ उसकी दौलत हथियाने के लिए उसे और उसके बाप को जिंदा छोड़ रखा है...तू जानती तो है...

रिचा- ह्म्म...दौलत ले कर क्या करोगे...हाँ...

सरफ़राज़- दौलत तो तुम सब के लिए है...मैं तो बस उसके खानदान के हर सख्श को एक साथ जला कर मारना चाहता हूँ...

रिचा- जला कर क्यो...??

सरफ़राज़- भूल गई क्या...मेरी फॅमिली जल-जल के मरी...मेरे अब्बू, अम्मी..भाई...सब जल गये....इसलिए आज़ाद की फॅमिली के बचे हुए लोग जल कर ही मरेगे...उसी तरह...

रिचा- ठीक है...जो करना है करो....बस संभाल कर करना...ओके...


सरफ़राज़- तू ज्ञान मत दे...और अब मुझे कॉल मत करना...और हाँ...अपने काम पर ध्यान दे...बाइ...

रिचा- बाइ...

कॉल कट होते ही रिचा ने मेरी तरफ देखा और बोली...

रिचा- सुन लिया....अब बोलो...मैने क्या ग़लत कहा था....मुझे क्यो मारा....

मैं- क्योकि मुझे लगा कि तुमने झूठ बोला है...

रिचा- अच्छा...अब तो सुन लिया ना....मैने जो कहा था...वो सब सच था....एक-एक बात सच थी...

मैं- ह्म...

रिचा- अब भी कोई शक है तो मार दो मुझे ...पर मेरी बेटी को कुछ मत करना....

मैं- ह्म्म ..कोई शक नही...मैं चलता हूँ....और तुम्हारी बेटी जल्दी आ जाएगी...डोंट वरी....

फिर मैं वहाँ से निकल गया....पर मेरे माइंड मे उथल-पुथल मच गई थी...

समझ मे नही आ रहा था कि किसकी बात को सच मानु....रिचा की, बहादुर की या सरफ़राज़ की....

रिचा कहती है कि मेरे दादाजी की वजह से अली की बीवी ने सुसाइड की...फिर मेरे दादाजी ने अली और उसके बेटे को जिंदा जला दिया....

सरफ़राज़ भी यही कहता है कि उसकी फॅमिली जल कर मरी...और उसका ज़िम्मेदार वो हमारी फॅमिली को मानता है...मतलब रिचा सच बोल रही है....

पर बहादुर ने बताया कि ऐसा कुछ हुआ ही नही...अली की फॅमिली तो मेरे डॅड के वापिस आने के पहले ही ख़त्म हो चुकी थी...पर उसने भी वजह आग ही बताई....

एक बात तो पक्की है कि अली की फॅमिली आग से मरी...पर क्या वो आग किसी ने लगाई थी...या अपने आप लग गई....

क्या मेरे दादाजी इतने गिरे हुए है कि अपने दोस्त की फॅमिली को जिंदा जला दिया...वो दोस्त जो उनको अपनी जान से बढ़ कर मानता था....या इस आग मे भी कोई राज है....

कुछ भी हो...पूरा सच जाने बिना मैं किसी को ज़िम्मेदार नही मान सकता....

पर पूरा सच पता कैसे चलेगा....कौन बता सकता है कि असल मे हुआ क्या था....कौन....?????

मैं अपनी सोच मे डूबा ड्राइविंग कर ही रहा था कि मेरा फ़ोन बजने लगा....ये रक्षा का कॉल था....

आज जबसे मैं रिचा के घर आया...तब से ले कर अब तक रक्षा के कम से कम 50 कॉल आ चुके थे...

मैं(मन मे)- इस साली को क्या हुआ...एक तो वैसे ही दिमाग़ घूम गया और उपेर से ये....

मैने कॉल कट कर दी...पर थोड़ी ही देर मे फिर से कॉल आ गया....

मैं(चिल्ला कर)- क्या है...क्यो परेशान हो..हाँ...

रक्षा- आप जल्दी से रूबी के घर आ जाओ भैया...बहुत ज़रूरी बात है...

इससे पहले कि मैं कुछ कहता ...कॉल कट हो गई...

मैं- इन दोनो को ज़्यादा ही गर्मी है...आज मैं ऐसा हाल करता हूँ कि फिर मुझे बुलाने से पहले 10 बार सोचेगी...

एक तो दिमाग़ भन्नाया हुआ है...और उपेर से ये दोनो....चलो...इनकी गान्ड मे सारा गुस्सा निकालता हूँ....

और मैने रूबी के घर की तरफ कार दौड़ा दी......
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