College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
11-26-2017, 01:02 PM,
#54
RE: College Sex Stories गर्ल्स स्कूल
गर्ल्स स्कूल--20

पूरे 24 घंटे बीत जाने पर भी कोई जवाब ना आने पर टफ बेचैन हो गया था.. उसकी बेचैनी का ये आलम था की हर 15 मिनिट के बाद आज वो सिग्गेरेट निकल लेता... शमशेर ने उसके हाथ से सिग्गेरेट छीन ली," यार! क्या हो गया है तुझे; और कोई काम नही बचा क्या, खुद को जलाने के अलावा... "यार तू तो समझता है ना प्यार की तड़प! कुछ बता ना... ऐसे तो मैं मर ही जवँगा यार!" टफ ने दूसरी सिगरेट जलाते हुए कहा. शमशेर ने उसको गुरुमन्त्र देते हुए कहा," भाई, इशक़ आग का दरिया है... और अगर इसके पार उतरना है तो डूब कर ही जाना पड़ेगा... अगर तुझे लगता है की उसको गालियाँ निकालने के बाद तू एक लव लेटर उसके मुँह पर मारेगा, और वो हमेशा के लिए तेरी हो जाएगी; तो तुझसे बड़ा उल्लू पूरी दुनिया में नही है..." "तो भाई! तू ही बता ना, मैं क्या करूँ की मेरी लाइफ झक्कास हो जाए!" टफ ने शमहेर का हाथ पकड़ कर कहा. "मैं कुछ भी करूँगा यार, उसको पाने के लिए!" "तू तो कहता था तेरी लाइफ झकास है... ऐसे ही घुमक्कड़ बनकर यार दोस्तों में पड़े रहना और रोज़ नयी सुहाग्रात मानना! उसका क्या?" शमशेर ने उस्स पर कॉमेंट किया.. "नही यार! मुझे तो पता ही नही था अब तक की प्यार के बिना इस हसिनाओ के सागर में रहकर भी प्यास कभी नही बुझती... मेरी प्यास तो अब सीमा ही बुझा सकती है.." " तो फिर इंतज़ार काहे को करता है... पहुँच जा ना उधर ही उसके घर पे! बोल दे दिल की बात...!" फिर आगे भगवान की मर्ज़ी!" शमशेर ने उसके साथ मज़ाक किया. "यार तू मेरी बची कूची भी लुटवाएगा. कैसा भाई है रे तू!" टफ की हिम्मत ही ना हो रही थी सीमा के सामने जाने की. "फिर तो तेरे लिए ऐसे ही ठीक है... कोई बात नही.. साल छे महीने मैं भूल जाएगा.. पता है मुझे तेरा" "यार तू मेरे प्यार को गली दे रहा है... मैं सच में ही पहुँच जाउन्गा उसके घर...." टफ ने निर्णायक दाँव ठोका... "तो फिर रोका किसने है...? चल आजा खाना तैयार होगया होगा..." टफ ने घर की तरफ चलते हुए कहा....

अंदर दिशा और वाणी उनका ही वेट कर रही थी.... दिशा शादी के बाद गुलाब के फूल की तरह खिल सी गयी थी.. शमशेर के प्यार से उसका अंग अंग जैसे निखार गया था.. उसकी छातियों का कसाव और बढ़ गया था.. उसके नितंबों में थिरकन पहले से भी कामुक हो गयी थी... कल की स्वर्ग की राअजकुमारी अब महारानी बन चुकी थी.. शमशेर की महारानी.. हां, पहले जैसा उसका गुस्सा अब उतना नही रहा था.. उसके शरीर की दबी हुई कामवासना उसके नाकचॅढी होने के लिए ज़िम्मेदार थी और जब वो शमशेर ने जगा दी तो अब वो खुलकर मज़ा लेती थी, सेक्स का; प्यार का... इसीलिए अब वा बहुत ही सन्तुस्त दिखने लगी थी... पर उसने ग्रॅजुयेशन से पहले खुद को मा ना बनाने का फ़ैसला किया था और शमशेर को भी इश्स-से कोई ऐतराज ना था... वाणी... दीनो दिन जवानी के करीब आती जा रही वाणी अब समझदार होती जा रही थी और ये समझदारी उसके अंगों में भी सॉफ देखी जा सकती थी... उसके चेहरे और बातों की मासूमियत का उसके अंग विरोध करते दिखाई देते थे.. सहर में रहने के कारण उसको पहनावे का सलीका भी जल्दी ही आ गया.. अब दिशा उसकी वो तमाम हसरतें पूरी कर देना चाहती थी.. जो वो शादी से पहले खुद पूरी नही कर पाई.. ग़रीबी के कारण.. उसको जी भर कर अपनी पसंद के कपड़े खरीद वाती... सज़ा संवार कर रखती... वाणी अक्सर उसको टोक देती," दीदी! मैं क्या बच्ची हूं, आप मुझे 'ऐसे रहना! वैसे रहना!' समझाती रहती हैं..." "तू चुप कर! और जैसे मैं कहती हूँ, वैसे ही रहा कर... समझी.. कितनी प्यारी है तू.. राजकुमारी जैसी" और दिशा उसको अपने गले से लगा लेती. कल की गाँव की राजकुमारी... आज शहर की राजकुमारी को सारे शहर की धड़कन बना कर रखती थी.. और वाणी बन चुकी थी.. धड़कन, युवा दिलों की... जिधर से भी वा निकलती थी.. मानो कयामत आ जाती.. मानो समय रुक सा जाता... पर लड़कों के हर इशारे को समझने के बावजूद वो उनकी अनदेखी कर देती... उसको पता था.. समय आने पर उसको भी उसका राजकुमार मिल जाएगा... दिशा ने वाणी को बता दिया था की आजकल अजीत भी प्यार के जाल में उलझा हुआ है.. जब अजीत खाना खा रहा था तो वाणी रह रह कर उसके मुँह की और देखती और दिशा को हाथ लगाकर खिलखिला कर हंस पड़ती.. "क्या बात है? क्या मिल गया है तुझे वाणी" टफ ने वाणी को अपनी तरफ देख कर इस तरह हँसती पाकर पूछा. "भैया! ये टॉप सीक्रेट है..." वाणी ने उससे चुहल बाजी की... "देख भाई, पहले तो अपनी साली को समझा दे; मुझे भैया ना बोले.." टफ ने वाणी की शिकायत शमशेर से की.. "वाणी! ऐसे नही बोलते... तू अंकल भी तो कह सकती है.." और तीनो खिलखिला कर हंस पड़े... टफ का चेहरा देखने लायक था," भाई! यहाँ तो आना ही पाप है.. एक बार मेरा टाइम आने दे, देखना 'उससे' रखी ना बँधवाई तो मेरा भी नाम नही... कल ही जाता हूँ..

"उससे किस-से भैया! सीमा दीदी से, उसको तो मैने पहले ही दीदी बना लिया है..." टफ अपनी अंदर की बात का सबको पता लगे देख खीज गया," यार, तू तो बड़ा घनचक्कर है.. तूने तो मुनादी ही कर दी..." शमशेर ने वाणी की और देखकर इशारा किया और एक बार फिर से ठहाका गूँज उठा.. एक सुखी परिवार में... अगले दिन सुबह 11 बजे से ही टफ यूनिवर्सिटी के ईको देपारटमेंट के बाहर खड़ा था... वो बड़ी हिम्मत करके वहाँ आया था.. अपने दिल का हाल सुनने, उसका दिल हर लेने वाली सीमा को.. करीब 3 घंटे के सालों लंबे इंतज़्ज़ार के बाद टफ को सीमा दिखाई दी... डिपार्टमेंट से बाहर आते... टफ आज डंडा नही लाया था.. सीमा की नज़र टफ पर पड़ी.. पर वो अपनी सहेलियों के साथ थी.. उसने टफ को इग्नोर कर दिया और सीधी चली गयी.. टफ को अपने 3 घंटे पानी में जाते दिखाई दिए," सीमा जी!" टफ ने सीमा को पुकारा. "जी!" सीमा उसके पास आ गयी.. साथ ही सहेलियाँ भी थी. "वववो.. आपने जवाब नही दिया!" टफ की साँसे उखाड़ रही थी... जाने कितनो को पानी पीला पीला कर रुलाने वाला टफ आज प्यार की पतली डोर से ही अपने आपको जकड़ा हुआ सा महसूस कर रहा था..

"किस बात का जवाब इनस्पेक्टर साहब?" सीमा ने अंजान बनते हुए पूछा... "क्या? क्या पीयान ने आपको कुछ नही दिया कल?" "हाँ! दिया तो था.. तो?" सीमा जी भर कर बदला लेना चाहती थी.. उसकी हर हरकत का "तो.. ट्त्तू... क्क्क.. कुछ नही... मतलब.. वो.. मैं.. " टफ को अब पता चला था की सही कहते हैं.. प्यार का इज़हार ही कर सको तो बहुत बड़ी बात है.. सारी लड़कियाँ उसकी हालत देखकर हंस पड़ी.. और चली गयी.. हंसते हुए ही.. सीमा को अपने से फिर दूर जाता देख टफ तड़प उठा.. आख़िर वो क्या मुँह दिखाएगा शमशेर को! उसने तो उसकी मुनादी ही करवा दी थी..," सीमा जी!" अब की बार सीमा अकेली आई.. उसकी सहेलियाँ दूर खड़ी होकर उसका इंतज़ार करने लगी... "बोलो इनस्पेक्टर साहब!" सीमा ने उसके पास आकर पूछा.. "सीमा जी! मेरा नाम अजीत है.. आप नाम से बुलाइए ना!" "पर मैं तो आपको एक बहुत ही अच्छे इनस्पेक्टर के रूप में जानती हूँ. मैं इतने बड़े आदमी का नाम कैसे लूँ?" "ज्जजई.. मैं बड़ा नही हूँ... 25 का ही हूँ..!" टफ ने अपनी उमर बताई.. सीमा उसके चेहरे पर जाने कहाँ से आई हुई मासूमियत देखकर हँसने को हुई पर उसने जैसे तैसे खुद को रोके रखा!"

"इट्स ओके! आप काम की बात पर आइए..." सीमा ने टफ से कहा. "जी आपने उस्स खत का जवाब नही दिया" टफ अपना धीरज खोता जा रहा था. "हुम्म.. तो आपको लगता है की मुझे जवाब देना चाहिए था!" सीमा उसकी शहनशीलता की हद देखना चाहती थी.. "जी.. वो... मैने रात भर भी इंतज़ार किया.." टफ अपने घुटने टेक चुका था.. सीमा के प्यार में.. "वैसे आपको क्या लगता था.. मैं जवाब दूँगी!" "पता नही.. पर... मुझे अब भी उम्मीद है..!" सीमा ने उसको और तड़पाना ठीक नही समझा... आख़िर वो भी तो सारी रात बार बार लेटर पढ़ती रही थी... पर प्यार के बेबाक इज़हार की उसमें हिम्मत नही थी," हम दोस्त बन सकते हैं...!" सीमा ने अपना हाथ टफ की और बढ़ा दिया... "सिर्फ़ दोस्त?" टफ तो जैसे जिंदगी भर आज से ही उसके पहलू में रहना चाहता था... "अभी तो.... सिर्फ़ दोस्त ही..! मैं आपको रात को फोने करती हूँ...." टफ ने उसके वापस जाते हाथ को दोनो हाथों से पक्क़ड़ लिया...," सीमा जी! मैं इंतज़ार करूँगा!" "अब ये सीमाजी कौन है? मैं सीमा हूँ... आपकी दोस्त.. अब चलूं.." टफ कुछ ना बोल पाया.... जाते हुए सीमा अचानक पलट कर बोली," मैने सारी रात वो लेटर पढ़ा... बार बार.. और हूल्का सा शर्मा कर चली गयी..... टफ प्यार की पहली सीधी चढ़ चुका था..........! शिवानी और राज दो दिन से बिना बोले रह रहे थे.. रात को शिवानी से ना रहा गया.. उसने मुँह फेरे लेट राज को अपनी बाहों में भर लिया...," आइ लव यू राज!" राज के लिए ये शब्द उसके घान्वो पर नमक जैसे थे..," मुझे हाथ लगाने की जुर्रत मत करना हरमज़ड़ी..." राज ने शिवानी को अपने से परे धकेल दिया.. "एक छोटी सी ग़लती की इतनी बड़ी सज़ा मत दो राज.... प्लीज़.. मेरा दम निकला हुआ है तीन दिन से..." राज हद से ज़्यादा दूर कर चुका था शिवानी को... अपने दिल से...," साली कुतिया... दम निकल रहा है तो वहाँ जा.. जहाँ तू अपनी गांद मरवा कर आई है... साली... दम निकला जा रहा है तेरा.. अरे ये सब करने से पहले तूने ज़रा भी नही सोचा... अपने बारे में.... मेरे बारे में...."

"जान वो ज़बरदस्ती थी... तुम्हे नही पता.. मैं पल पल कैसे रोई हूँ... वो एक हादसा था... रेप था मेरा! और तुमने उसकी तो रिपोर्ट भी करनी ज़रूरी नही समझी... जिसने तुम्हारी बीवी की धज्जियाँ उड़ा दी... क्या उसके लिए मैं दोषी हूँ..." "मैं उसकी बात नही कर रहा कुतिया! जान बूझ कर अंजान मत बन... मुझे झूठ बोल कर अपने यार के पास रहकर आई... भूल गयी तू..." "कौन यार! तुम किसकी बात कर रहे हो?" राज से शिवानी का ये नाटक शहान नही हुआ.. वो बैठ कर शिवानी को ताबड़तोड़ मारने लगा.. शिवानी बेजान की तरह मार खाती रही," साली! ये ले.. मैं बतावँगा नाम भी तेरे यार का... बता कहाँ गयी थी... बता साली बता!!!" शिवानी कुछ ना बोली... राज की अपराधी तो वो थी ही.. उससे इसकी जिंदगी का एक अहम राज छिपा कर रखने की... पर जो इल्ज़ाम राज ने उसस्पर लगाया.. उसने तो उसको अंदर तक तोड़ दिया... वा विकी के पास गयी थी.. अपने प्यारे विकी के पास... पर लाख चाहकर भी राज को वो कुछ नही बता सकती थी.. पर ये इल्ज़ाम लगने के बाद उस-से छुपा कर रखना भी मुश्किल हो गया... आख़िर किसी के लिए ही क्यूँ ना हो.... वो अपने घर की खुशियों को आग कैसे लगा सकती थी.... जब राज मार मार कर थक गया और बेड से खड़ा होकर जाने लगा तो शिवानी धीरे से बोली," तुम विकी से मिलना चाहते हो?" "क्या यही नाम है तेरे यार का? साली कितनी बेशर्म से नाम ले रही है... साली!" राज ने शिवानी की और देखकर ज़मीन पर थूक दिया... "हाँ यही नाम है, जिसके लिए मैने तुमसे झूठ बोला.. और सिर्फ़ अभी नही... मैं पहले भी काई बार उससे मिलने गयी हूँ... अपनी शादी के बाद... पर आप मिलकर सब समझ जाओगे! अब मैं इस राज को राज रखकर तुम्हारी नफ़रत शहन नही कर पाउन्गि.... मिलोगे ना... विकी से... राज ने कुछ ना बोला और बेड पर गिरकर चादर औधली... उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था.....

"कल से बोर्ड के एग्ज़ॅम शुरू हो रहे हैं..! आपको नही लगता की बच्चों की तैयारी कुछ खास नही है?" अंजलि ने ऑफीस में बैठे स्टाफ से पूछा. "नही मेडम! ऐसी तो कोई बात नही है.. आप खुद क्लास में चलकर बच्चों की तैयारी का जायजा ले सकती हैं!" एक मेडम ने अंजलि से कहा. "इट्स ओके! मैं बस यही जान'ना चाहती हूँ की आप लोग संत्ुस्त हैं या नही... और एक और मॅत टीचर शायद अगले हफ्ते तक जाय्न कर लेंगे.. न्यू अपायंटमेंट है.. उम्मीद है.. अब स्टाफ की कोई समस्या नही रहेगी...नेक्स्ट सेशन के लिए..मिस्टर. वासू को अपायंटमेंट लेटर मिल चुका है... बस मेडिकल वैईगारह की फॉरमॅलिटी बाकी है... राज जी आज नही आएँगे... उन्हे कहीं जाना है.. वैसे भी कल किसी भी क्लास का साइन्स का पेपर नही है... आप चाहें तो उनकी क्लास ले सकती हैं.... राज और शिवानी बस में बैठे जा रहे थे... शिवानी उसको विक्ककी से मिलाने लेकर जा रही थी... उस्स राज से परदा हटाने के लिए जो उसने शादी के 6 महीने बाद तक भी अपने राज से छिपाए रखा था... पानीपत आर्या नगर जाकर शिवानी ने एक घर का दरवाजा खटखटाया... अंदर से कोई पागल सी दिखने वाली महिला निकली...," तुम फिर आ गयी.. हूमें नही चाहिए कुछ.. अपना अपने पास रखो... चाहो तो जो है वो भी ले जाओ... मैं अब जीकर क्या करूँगी... तुम तो पागल हो गयी हो... यहाँ मत आया करो.. उस्स औरत की बातों का कोई मतलब नही निकल रहा था.. शिवानी ने कुछ ना कहा और अंदर चली गयी... पीछे पीछे राज भी अंदर घुस गया और वहाँ पड़े पुराने सोफे पर बैठ गया... घर काफ़ी पहले का बना हुआ लगता था... उसकी देख रेख भी लगता था होती ही नही है... जगह जगह दीवारों से रोगन उतरा हुआ था... राज के लिए सब कुछ असचर्या करने जैसा था... इश्स औरत और इश्स घर से शिवानी का क्या संबंध हो सकता है..भला!" वा मूक बैठा कभी उस्स औरत को कभी शिवानी को देखता रहा.. तभी एक 5-6 साल का प्यारा सा बच्चा बाहर से अंदर आया..," नमस्ते मम्मी.. और वो शिवानी से लिपट गया...
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