RE: Desi Chudai बिन पढ़ाई करनी पड़ी चुदाई
मैं सर के करीब आई और एकदम से सर को कस के हग कर लिया. सर ने मेरे कान में कहा
सूपरिंटेंडेंट - बेटा यू आर सो स्वीट आंड हॉट.
मे- सर आप ने चिट्स क्यूँ नही दी ऑफीस में?
सूपरिंटेंडेंट - बेटा उससे क्या फ़ायदा होता...तुम रोती और तुम्हारा कैरियर खराब होता, मुझे क्या मिलता और मैं चाहता था कि हम दोनो को फ़ायदा हो.....
मे- बिल्कुल सही सर. अपने बिल्कुल सही सोचा
फिर मैं कुछ बोलती उससे पहले ही सर ने मुझे कमर से कस के आगे को खीचा और मेरे दोनो होठ अपने होठों के बीच खीच लिए.
हाई वो बुड्ढ़ा साला मेरी जवान जवानी के होठों के रस को अपनी ढलती हुई उमर की जीभ के साथ मस्त तरीके से पी रहा था. उसने मेरी जीब को अपने मूह के अंदर तक खीचा और मज़े से 5-10 मिनट तक चूस्ता रहा. हाई मुझे बड़ा मज़ा आने लगा था. में यह भूल गई थी कि मेरे साथ 10 मिनट पहले क्या हो रहा था. मैं तो बॅस एक नये आगोश में समाती जा रही थी.
फिर मैने भी अपनी तपती जवानी को ठंडा करने के लिए उसके मूह में अपनी जीब को ज़ोर ज़ोर से डालने लगी. मैं पूरा ज़ोर लगा कर उसके मूह के अंदर की सीमा तक अपनी रस भरी जीब को पहुँचा रही थी. पता नही कितने पल ऐसे ही वो मेरा रस पीता गया और मैं उसे पिलाती गई. फिर उसने मेरे मूह में अपनी जीब डालकर अपना रस चुस्वाया. मैं कमसिन अदा से उसकी जीब को चूस्ति गई, चूस्ति गई और बस चूस्ति गई. जब अच्छे से मूह का स्वाद चख लिया तो फिर मैने सर को एक हल्के से धक्के के साथ बेंच की सीट पर गिरा दिया और सर की पेंट की ज़िप वाली जगह को देखने लगी. मैने पाया कि मेरी जवानी की रोशनी से उनके ढलते शरीर में नई सुबह आ गई है और उनका लंड एक उँचे टावर की तरह तंन गया है. मैने जब उसके उपर हाथ रखा तो एहसास हुआ कि यह तो काफ़ी मोटा और लंबा है. हाथ लगाते ही मेरे शरीर में एक आग सी जाग उठी. मैने धीरे से सर की पेंट की ज़िप खोल रही थी और सर को बार बार देख रही थी. सर तो बॅस आँखें बंद करके आँहे भर रहे थे.
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